Pallu
Pallu (पल्लू ) is a village in Rawatsar tahsil in Hanumangarh district in Rajasthan. It was a fort of Sihag Jats of Jangal Desh prior to its annexation by Rathores. PIN: 335524
Variants of name
- Pahlukot
- Pahulkot
- Pallukot
- Palhupura (पल्हुपुर)
- Prahladakupa (प्रह्लादकूप)
Origin of place name
- Sihag chieftain named Kod Khokhar (1375 AD) reached Dadrera and then constructed fort at Pahalkot (Pallukot) in memory of his father named Pallu Rana (1350 AD). [1]
Jat Gotras
History
Its ancient name was Prahladakupa (प्रह्लादकूप) as mentioned in A prasasti of the Chauhan Sapadalaksha line, L-15. (See:Towns and Villages of Chauhan Dominions, S.No.74, Early Chauhan Dynasties" by Dasharatha Sharma, p.50 )
The details of the expedition of Arnoraja to Sindhu and Sarasvati are not clear. "Rendered thirsty", says the Chauhan Sapadalaksha prashasti, "by having remained in the waterless desert with his thirst unquenched by Prahladakupa (perhaps Pallu in Bikaner area), Arnoraja reached Sindhu and Sarasvati. [2][3]
Towns and Villages of Chauhan Dominions include Palhupura (पल्हुपुर) (Table-1, S.No 24)
Thakur Deshraj[4] writes that Sihag Jats were chieftains of a place called ‘Kod Khokhar’ (कोड खोखर) in Mewar region of Rajasthan. After some time they reached Marwar and constructed fort at Pahalkot (Pallukot) in memory of their chieftain named Pallu Rana (1350 AD). They occupied Pallukot and Dadrewa areas. Pahalu or Pall was title of Rana. Their ancestors were Vira Rana and Dhira Rana had ruled over the land of Medapat prior to this.
Ram Sarup Joon[5] writes that Kot Khokhar in Mewar has been the capital of the Sihag rulers. Pahulkot has also been their capital.
Ram Sarup Joon[6] writes that ...In Mewar, Kot Khokhar was a Jat kingdom and Pahlukot was ruled by the Pahlu Jats.
स्यागोटी
चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[7] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।
क्र.सं. | जनपद | क्षेत्रफल | राजधानी | मुखिया | प्रमुख ठिकाने |
---|---|---|---|---|---|
3. | सिहाग (स्यागोटी) | 140 गाँव | सूंई (लूणकरणसर) | चोखासिंह सिहाग | पल्लू, दांदूसर, बीरमसर, गन्धेली, रावतसर |
सूई चुरू से उत्तर-पश्चिम में 58 मील दूर तथा गोदारा जाटों के ठिकाने शेखसर से 12 मील उत्तर-पूर्व में लूणकरणसर तहसील में है. यह सिहाग जाटों की राजधानी थी और यह प्रदेश सियागगोटी कहलाता था. दयालदास ने इनके गाँवों की संख्या 140 लिखी है जबकि कर्नल टाड व ठाकुर देशराज ने इनको असिहाग लिखा है तथा इनके गाँवों की संख्या 150 बताई है जिन पर इनका अधिकार था. [8] ठाकुर देशराज व दयालदास के अनुसार इनकी राजधानी पल्लू थी. और राजा का नाम चोखा था. इनके राज्य की सीमा में रावतसर, बीरमसर, दांदूसर, गण्डेली आदि थे. सिहागों का दूसरा ठिकाना संभवतः पल्लू रहा हो जो सूई से कुछ मील दूर नोहर तहसील में है. चौहानों के काल में पल्लू जैन धर्म का एक प्रमुख केन्द्र था, जहाँ से 11 वीं शताब्दी की अनेक मूर्तियाँ मिली हैं जिनमें एक राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली व एक बीकानेर संग्रहालय में है.
कहा जाता है कि पहले इसका नाम कोट किलूर था जो बादमें इस ठिकाने के जाट सरदार की लड़की के नाम पर पल्लू हो गया. पल्लू के बारे में एक कथा प्रचलित है कि मूगंधड़का नामक जाट का कोट किलूर पर अधिकर था. उसने डरकर दिल्ली के साहब नामक शहजादे से अपनी बेटी पल्लू का विवाह कर दिया. लेकिन वह मन से नहीं चाहता था, अतः उसने अपने दामाद को भोजन में विष देदिया जो अपने महल में जाकर मरगया. कुछ देर बाद जाटने अपने बेटे को पता लगाने के लिए भेजा कि साहब मरगया या नहीं. उसने जैसे ही महल की खिड़की में मुंह डाला, क्रुद्ध पल्लू ने उसका सिर काट लिया और उसकी लाश को महल में छुपा लिया. इस प्रकार बारी-बारी से उसने पांचो भाइयों को मार दिया, इस पर जाट ने कहा-
- जावै सो आवै नहीं, यो ही बड़ो हिलूर (फितूर)।
- के गिटगी पल्लू पापणी, के गिटगो कोट किलूर ।।[9]
विक्रम की 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अन्य जाट ठिकानों की तरह पल्लू व सूई पर भी राठोड़ों का अधिकार हो गया. कहते हैं कि सिहाग जाटों ने बाद में भी सरलता से राठोड़ों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी. तब सिहाग जाटों को धोखे से बुलाकर एक बाड़े में खड़ा करके जला दिया गया था. [10][11]
Jat Monuments
- Jat Dharmshala Pallu
Population
External links
References
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas, pp. 596-97
- ↑ Line-14:मन्ये समाक्रान्त-मरू-पिपासु: संसारसिन्धुञ्च सरस्वतीञ्च
- ↑ "Early Chauhan Dynasties" by Dasharatha Sharma, p.50
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas, pp. 596-97
- ↑ History of the Jats/Chapter V, p.102
- ↑ Ram Sarup Joon:History of the Jats/ChapterVIII,p.141
- ↑ 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
- ↑ ठाकुर देशराज , जाट इतिहास, पेज 616
- ↑ मरू भारती, वर्ष 12, अंक 1
- ↑ चौधरी हरिश्चंद्र नैन, बीकानेर में जनजाति, प्रथम खंड, पेज 18
- ↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 205-206
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