Satyadev Singh Kuhad
Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur |
Satyadev Singh Kuhad (b.22-02-1925) was a leading Freedom fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. He was born at village Deorod in Chirawa tahsil, district Jhunjhunu , Rajasthan. He was second son of Panne Singh Deorod born on 22-02-1925. Panne Singh Deorod died at an early age in year 1933. Satyadev Singh has son named Vijay Singh who runs private School. Mob: 9414368111.
सत्यदेव सिंह का जीवन परिचय
सत्यदेव सिंह शेखावाटी किसान आन्दोलन के अग्रणी नेता पन्ने सिंह देवरोड़ के दूसरे नंबर के पुत्र हैं. सत्यदेव सिंह का जन्म 22 फ़रवरी सन 1925 को हुआ. सत्यदेव सिंह जब आठ साल के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया. सत्यदेव सिंह को सन 1937 में सरदार हरलाल सिंह एवं नेत राम सिंह उनके गाँव देवरोड़ से झुंझुनू ले आये. विद्यार्थी भवन में रहकर सत्यदेव ने शिक्षा ग्रहण की. उनका कहना है कि उस समय विद्यार्थी भवन में करीब 15 छात्र थे. इनके नाम थे - सुल्तान सिंह, गुलाब सिंह खाजपुर नया एवं पुराना, नत्थू सिंह बाडलवास, नाहर सिंह पातुसरी, सरदार हरलाल सिंह के दो पुत्र - नरेंद्र सिंह एवं फ़तेह सिंह, श्योदान सिंह, शीश पाल सिंह भादरवास, शिव लाल सिंह, नानक सिंह वारिसपुरा, अमर सिंह नरुका, सब्बल सिंह देरवाला, त्रिलोक सिंह अलपसर, संवत सिंह हनुमानपुरा आदि. [1]
झुंझुनू सम्मलेन
झुंझुनू सम्मलेन, बसंत पंचमी गुरुवार, 11 फ़रवरी 1932 को होना तय हुआ जो तीन दिन चला. स्वागत-समिति के अध्यक्ष पन्ने सिंह को बनाया गया. उनके पुत्र सत्यदेव सिंह के अनुसार महासम्मेलन के आयोजन के लिए बिड़ला परिवार की और से भरपूर आर्थिक सहयोग मिला. मुख्य अतिथि का स्वागत करने के लिए बिड़ला परिवार ने एक सुसज्जित हाथी उपलब्ध कराया. यह समाचार सुना तो ठिकानेदार क्रोधित हो गए. उन्होंने कटाक्ष किया - तो क्या जाट अब हाथियों पर चढ़ेंगे? यह सामंतों के रौब-दौब को खुली चुनोती थी. जागीरदारों ने सरे आम घोषणा की, 'हाथी को झुंझुनू नहीं पहुँचने दिया जायेगा.' पिलानी के कच्चे मार्ग से हाथी झुंझुनू पहुँचाना था. रस्ते में पड़ने वाले गाँवों ने हाथी की सुरक्षा का भर लिया. इस क्रम में गाँव खेड़ला, नरहड़ , लाम्बा गोठड़ा, अलीपुर, बगड़ आदि गाँवों के लोग मुस्तैद रहे. हाथी दो दिन में सुरक्षित झुंझुनू पहुँच गया. ठिकाने दारों की हिम्मत नहीं हुई कि रोकें. (राजेन्द्र कसवा, p. 110)
सत्यदेव सिंह का कहना है कि कुम्भाराम आर्य प्रथम बार जब झुंझुनू के सम्मलेन में आये तो वे पुलिस की वर्दी में थे और पिस्तौल साथ था. दूधवा खारा गाँव में चले आन्दोलन के दौरान सत्यदेव सिंह भेष बदल कर झुंझुनू से गए थे. पुलिस द्वारा पूछ-ताछ करने पर उन्होंने बिड़ला का मुनीम बताया और ऊन खरीदने का मकसद जाहिर किया. इस पर पुलिस ने गाँव में जाने दिया. गाँव पहुँच कर सम्बंधित किसान को सरदार हरलाल सिंह का सन्देश दिया. (राजेन्द्र कसवा, p. 196)
विद्यार्थी भवन झुंझुनू में पढाया
प्रजामंडल का दूसरा वार्षिक अधिवेशन मई 1940 के अंत में जयपुर में होना तय हो गया था. इसी बीच कोई आन्दोलन की गतिविधियाँ भी नहीं चल रही थी. तब यह तय किया गया कि फरार चल रहे किसान नेता गिरफ़्तारी दे दें. अधिवेशन से पूर्व ही मई 1940 में चौधरी घासीराम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा और नेतराम सिंह ने झुंझुनू कोर्ट में उपस्थित होकर स्वेच्छा से गिरफ़्तारी दे दी. इन तीनों को झुंझुनू की जेल में बंद कर दिया जो गढ़ में स्थित थी. [2]
यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा की इसी दौरान घासी राम की इकलौती पुत्री मनोरमा बनस्थली विद्यापीठ में प्रवेश ले चुकी थी. घासी राम का बड़ा बेटा बीरबल उनकी गिरफ़्तारी के समय विद्यार्थी भवन झुंझुनू में रह कर पढ़ रहा था. विद्यार्थी भवन में प्राथमिक विद्यालय चल रहा था. जिसमें पन्ने सिंह देवरोड़ के पुत्र सत्यदेव बच्चों को पढ़ाते थे. [3]
अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया
स्वतंत्रता सेनानी सांवलराम भारतीय ने लिखा है, 'पंडित हीरा लाल शास्त्री एवं सरदार हरलाल सिंह ने प्रजामंडल के फतेहपुर अधिवेशन 1942 में कांग्रेस के 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' आन्दोलन को जयपुर रियासत में चलाने का विरोध किया था. प्रजामंडल के मंच से बहुमत द्वारा प्रस्ताव पास करवा दिया कि जयपुर प्रजामंडल एवं उसके सदस्य भारत छोडो आन्दोलन में भाग नहीं लेंगे. (आजादी के जन आन्दोलन पृष्ठ 81 ) झुंझुनूवाटी से इस आन्दोलन में प्रमुख रूप से भाग लेने वालों में नवलगढ़ के सांवल राम भारतीय थे. उन्हें 6 माह की सजा मिली. पन्ने सिंह देवरोड़ के बेटे सत्यदेव सिंह देवरोड़ ने इस आन्दोलन में भाग लिया था. वे उस समय चर्खा संघ गोविन्दगढ़ में थे. वहीँ से जयपुर चले गए. (राजेन्द्र कसवा, p. 184)
बीबासर में लगान वसूली के खिलाफ धरना
5 जनवरी 1946 को मंडावा ठिकाने के कर्मचारी गाँव बीबासर में लगान लेने पहुंचे. उन्होंने किसानों को धमकाना शुरू कर दिया. किसी भी तरीके से लगान लेना चाहते थे. कुछ भयभीत किसानों ने लगान दे दिया था. सत्यदेव सिंह के नेतृत्व में वहां किसान कार्यकर्ताओं ने धरना दिया. हरदेव सिंह बीबासर, भौरु सिंह तोगडा सहित आस-पास के गाँवों के अनेक किसान कार्यकर्ताओं का जमघट लग गया. धरना रात-दिन निरंतर चलता था. किसान रात को समय बिताने के लिए वे देशभक्ति के गीत गाने लगे. सत्य देव सिंह धरना स्थल से थोड़ा हटकर घूम रहे थे. सहसा ही गोली चलने की आवाज आई. धरना-स्थल के किसान चोकन्ने हो गए. उन्हें लगा की ठिकानेदारों के कारिंदों ने गोली चलाई है. लेकिन कारिंदों में कोई हलचल नहीं हुई. बाद में पता लगा कि बीबासर गाँव का डकैत सूरजभान वहीँ पहाड़ी पर छिपा हुआ था. अँधेरा होने पर उसने ठिकानेदारों का कैम्प समझकर गोली चलादी. सौभाग्य से गोली किसी को लगी नहीं. असलियत प्रकट होने पर सूरजभान ने भी खेद प्रकट किया. रात को ही पुलिस गाँव में आ गयी थी. यह देख कर सूरजभान वहां से तुरंत फरार हो गया. (राजेन्द्र कसवा, p. 192)
पुलिस ने बीबासर में 17 किसानों को गिरफ्तार किया ये सभी पैदल जाने को तैयार नहीं थे. पुलिस के पास ऐसी गाड़ी नहीं थी, जिसमें पंद्रह व्यक्ति बैठ सकें. गिरफ्तार किसानों को वहीँ छोड़ दिया गया. धरना बराबर चलता रहा. आखिर 15 जनवरी को पुलिस द्वारा बीबासर गाँव से 13 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जयपुर सेन्ट्रल जेल में डाल दिया. इनमें प्रमुख थे - सत्यदेव सिंह देवरोड़, भैरू सिंह तोगडा, ओंकार सिंह हनुमानपुरा, नत्थू सिंह एवं अर्जुन सिंह सम्मिलित थे. बाद में ताड़केश्वर शर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. (राजेन्द्र कसवा, p. 192)
References
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, p. 175
- ↑ राजेन्द्र कसवा:किसान यौद्धा, कलम प्रकाशन, झुंझुनू, 2009, p.59
- ↑ राजेन्द्र कसवा:किसान यौद्धा, कलम प्रकाशन, झुंझुनू, 2009, p.60
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