Sham Singh Badhala
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Sham Singh Badhala (चौधरी शामसिंह बधाला) was from village Badhala Ki Dhani, District Sikar, Rajasthan. He was Freedom fighter of Shekhawati farmers movement. [1]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी शामूसिंह जी बधाला - [p.478]: आपका जन्म बधाला की ढाणी में हुआ था। आप संवत 1988 से जाट जाति की सेवा में लगे थे। आप रात-दिन जाटों की उन्नति का ही कार्य करते रहें। आप की ढाणी सीकर और जयपुर के रास्ते पर होने से आप की ढाणी में हमेशा ही सीकरवाटी आंदोलन के समय काफी लोग आते रहते थे। आप सब की खातिरदारी करते रहे और खर्च भी बर्दाश्त करते थे। आप की ढाणी में श्री विजय सिंह पथिक, ठाकुर देशराज जी आदि की मौजूदगी में सीकरवाटी आंदोलन की नींव पड़ी थी। आपके बड़े भाई साहब चौधरी मांगूराम जी आपका पूरा हाथ बटाते थे। आपका और आपकी धर्मपत्नी का देहांत अभी 4 महीने पहले हो गया। आपके बिछड़ जाने से खंडेलावाटी के किसानों को काफी धक्का लगा है। आपके बड़े भाई मांगू राम जी तो आप के योग से बड़े भारी दुखी हैं। आपके पीछे तीन चार लड़के भी हैं। खंडेलावाटी को उनसे काफी उम्मीद है।
जीवन परिचय
बधालों की ढाणी के चौधरी मांगुजी ने भी समय पर जाट क्रांतिकारियों की सेवा की। [3]
बधाला की ढाणी में विद्यालय खोला गया
ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है ....[पृ.470]: सन् 1931 में दिल्ली में रायबहादुर चौधरी लालचंद्र जी के सभापतित्व में अखिल भारतीय जाट महासभा के महोत्सव के अवसर पर मैंने चौधरी लादूराम जी से सर्वप्रथम साक्षात किया। वे बड़े-बड़े ढब्बों वाला छपा हुआ साफा बांध रहे थे और बंगाली फैशन का कुर्ता पहन रहे थे। धोती उनकी मारवाड़ी ढंग की बंधी हुई थी। ‘जाटवीर’ अखबार में उनका नाम अनेकों बार पढ़ा था। जातीय संस्थाओं को दिल खोलकर दान देने में वे इन दिनों नाम पैदा कर रहे हैं।
मेरा उनका यह प्रथम परिचय सदा के लिए प्रगाढ़ हो गया और वह मित्रता का रूप धारण कर गया। इसके 12 महीने बाद ही जब मैं मंडावा आर्य समाज के जलसे में जाने को तैयार हो रहा था तो आप का एक पत्र मुझे मिला जिसमें बधाला की ढाणी में आपने एक जाट पाठशाला खोल देने के लिए लिखा था।
मंडावा आर्य समाज के जलसे के अवसर पर मुझे खादी आश्रम रींगस के व्यवस्थापक लाला मूलचंद्र अग्रवाल और उनके एक स्नेही पंडित बद्रीनारायण जी लोहरा के दर्शन भी हुए थे और उन्हें लेकर मैं बधाला की ढाणी पहुंचा। वहां चौधरी श्यामूजी - मांगूजी के सहयोग से पाठशाला की स्थापना हुई और इसके प्रथम अध्यापक हुए पंडित ताड़केश्वर जी शर्मा। उनके बाद मास्टर लालसिंह और बलवंतसिंह यहां पर रहे।
बधाला की ढाणी सिर्फ 4 घरों का एक गांव है किंतु यहां पाठशाला के कायम होते इस जगह को अत्यंत महत्व प्राप्त हुआ। मैं जयपुर राजय के तमाम गांव से अधिक
[पृ.471]: इस ढाणी का आदर करता हूं। चार-पांच साल तक तो समस्त शेखावाटी, सीकरवाटी और खंडेलावाटी की जाट प्रगतियों का स्रोत केंद्र रही थी।
इस पाठशाला का कुल खर्च 5 वर्ष तक चौधरी लादूराम जी ने ही किया। इसके अलावा ठाकुर भोला सिंह, हुकुम सिंह और पंडित सावलप्रसाद जी चतुर्वेदी को एक साल तक अपनी ओर से वेतन देकर इस इलाके को जगाने का प्रयत्न कराया। शेखावाटी के आज के लीडर जिन दिनों साधनहीन फिरते, उन दिनों चौधरी लादूराम जी ने ही अपने परमित साधनों से लगभग डेढ़ हजार गांवों के क्षेत्र सीकर खंडेला और शेखावाटी में जीवन ज्योति पैदा करने को लगाया। इस पाठशाला के अलावा उन्होंने कुंवरपुरा, अभयपुरा, सामेर और गोवर्धनपुरा में भी पाठशालाये कायम की और उन्हें कई वर्ष तक अपने ही खर्चे से चलाया भी किंतु खेद है कि कोई भी पाठशाला स्थावलंबी नहीं बन सकी।
बाहरी कड़ियाँ
संदर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.478
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.478
- ↑ Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush Part 1/Chapter 10,p.95
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.470-471
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