Pallava

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Pallav (पल्लव)[1] Pallavan (पल्लवान)[2] Palhav (पल्हव)[3] is gotra of Jats. They were rulers in Central Asia. [4]

Origin

This gotra originated from place named Pallava (पल्लव). [5]

History

In Mahavansa

Pallavabhogga is place, Mahadeva came from Pallavabhogga, mentioned in Mahavansa/Chapter 29

पल्लव जाटवंश

वैदिक सम्पत्ति पृ० 424 पर पुराणों के संकेत से स० पं० रघुनंदन शर्मा साहित्यभूषण ने लिखा है - अर्थात् वैवस्वतमनु के इक्ष्वाकु, नाभाग, धृष्ट, शर्याति, करुष, पृषध्र, दिष्ट, प्राशु, नृग, नरिष्यन्त दस पुत्र हुए। (विष्णु पुराण, चतुर्थ अंश, अध्याय 1 श्लोक 7) हरिवंश अध्याय 10, श्लोक 28 में लिखा है कि नरिष्यन्त के पुत्रों का ही नाम शक है। इन शकों को राजा सगर ने ‘अर्धमुण्डान् शकान्’ अर्थात् आधा सिर मुंडवाकर निकाल दिया। यह घटना इस कारण हुई कि सम्राट् सगर ने अपने पिता बाहु के युद्ध में हार जाने का बदला शत्रुओं को हराकर इस तरह से लिया कि उसने यवनों के शीश मुंडवाये, शकों के आधे सिरों को मुंडवाया, पारदों को लम्बे बाल वाला बनाया, पह्लवों की मूंछ दाढ़े रखवाई तथा वषट्कार आदि से वंचित कर दिया। ब्राह्मणों ने भी इनका परित्याग कर दिया, इसलिए ये सब म्लेच्छ कहे गये (विष्णु पुराण चतुर्थ अंश, अध्याय 3, श्लोक 47-48)। शक लोग सीथिया (शकावस्था का अपभ्रंश) में जाकर बस गये। इसलिये इनके आर्य होने में कोई सन्देह नहीं है।1 (वैदिक सम्पत्ति पृ० 424)

आर्य क्षत्रियों को ब्राह्मणों के दास न होने के कारण म्लेच्छ, शूद्र, व्रात्य करार दिया गया। इसकी अधिक जानकारी के लिये देखो द्वितीय अध्याय, जाट क्षत्रिय वर्ण के हैं, प्रकरण।

रामायण काल में भी उपर लिखित जाटवंशों का राज्य व देश थे। इनका वर्णन इस प्रकार है - पह्लव, शक, बर्बर योद्धाओं ने वसिष्ठ ऋषि की ओर से विश्वामित्र की शक्तिशाली सेना के साथ युद्ध करके उसे हरा दिया। (वा० रा० बालकाण्ड 54-55वां सर्ग)। सीता जी की खोज के लिये सुग्रीव ने वानर सेना को उत्तर दिशा में अन्य देशों के साथ शकों के देश में भी जाने का


1. शक लोगों ने आर्यावर्त से बाहिर जाकर शक देश बसाया, जोकि उनके नाम पर शकावस्था कहलाया, जिसका अपभ्रंश नाम सीथिया पड़ गया (वैदिक सम्पत्ति, पृ० 424, लेखक पं० रघुनंदन शर्मा)।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-263


आदेश दिया (वा० रा० किष्किन्धाकाण्ड, सर्ग 43वां)। महाभारत काल में इन जाट वंशों का वर्णन निम्न प्रकार से है - पाण्डवों की दिग्विजय के समय भीमसेन ने पूर्व दिशा की ओर अनेक देशों को जीतकर शकों और बर्बरों को छल से पराजित किया (सभापर्व 30वां अध्याय)। नकुल ने पश्चिम दिशा में जाकर बर्बर, पह्लव और शकों को जीतकर उन से रत्नों की भेंट ली (सभापर्व, 32वां अध्याय)। महाराजा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में शक, बर्बर लोगों ने सहस्रों गधे और शक लोगों ने तलवारें, फरसे और सहस्रों रत्न भेंट दिये (सभापर्व, 51वां अध्याय, श्लोक 23-25)। पह्लव और शक ये उत्तम कुल में उत्पन्न श्रेष्ठ एवं शस्त्रधारी क्षत्रिय राजकुमारों ने बहुत धन अर्पित किया (सभापर्व, 52वां अध्याय)। महाभारत युद्ध में शक, पह्लव, बर्बर कौरवों की ओर होकर लड़े (भीष्मपर्व 19वां अध्याय श्लोक 13, और द्रोणपर्व)।

पह्लव (पल्लव) जाटों ने छठी सदी के मध्य से आठवीं सदी के मध्य तक दक्षिण भारत में शासन किया। इसका वर्णन “भारतवर्ष में जाटवीरों का दक्षिण में राज्य” अध्याय में किया जायेगा। पाठक समझ गये होंगे कि शक, बर्बर, पह्लव जाट गोत्र हैं जो क्षत्रिय आर्य हैं और भारतवर्ष के ही आदिवासी हैं। महाभारत के पश्चात् बौद्ध-काल के अन्तिम समय और गुप्त राजाओं के शासन काल में जिन शक, कुषाण, हूण आदि जातियों ने भारतवर्ष पर आक्रमण किये वे विदेशी कबीले थे। उनसे जाटों के निकास का कोई सम्बन्ध नहीं है। आज भी शक, बर्बर, पह्लव (पल्लव) गोत्र के जाट कई स्थानों पर बसे हुए हैं। हां शक (सीथियन), कुषाण और श्वेत हूण लोग स्वयं जाट थे परन्तु इन से अन्य जाट गोत्रों की उत्पत्ति नहीं हुई।[6]

कैस्पियन सागर में पह्लव पार्थियन राज्य

दलीप सिंह अहलावत[7] लिखते हैं:

पह्लव पार्थियन' - पह्लव गोत्र के जाटों ने अपने राजा अर्सकस (Arsaces) के नेतृत्व में पार्थिया राज्य स्थापित किया। यह पार्थिया देश बैक्ट्रिया के पश्चिम और कैस्पियन सागर के दक्षिण-पूर्व में था। इन लोगों ने अपना राज्य कैस्पियन सागर तक बढ़ाया। पह्लव लोगों ने 256 ई०


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-351


पू० से सन् 224 ईस्वी तक अर्थात् 480 वर्ष तक ईरान पर शासन किया। (जाट्स दी ऐन्शन्ट रूलर्ज, पृ० X, 77, लेखक बी० एस० दहिया)।

पह्लव लोगों के विषय में सत्यकेतु विद्यालंकार ने पृ० 57 पर लिखा है कि “प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में प्रार्थिया को ‘पह्लव’ कहा गया है, और पुराणों में शक और पह्लव साथ-साथ आते हैं। 25 ई० पू० में कुषाण वीर राजा कुजुलकफस कदफिसस ने पार्थियन लोगों के शासन का अन्त कर दिया।” यही लेखक पृ० 53 पर लिखते हैं कि “सैल्युकस द्वारा स्थापित सीरियन साम्राज्य जब दुर्बल हो गया तब वहां के निवासियों ने विद्रोह कर दिया और 248 ई० पू० स्वतन्त्र पार्थियन राज्य की स्थापना कर ली। पार्थियन विद्रोह के नेता अरसक और तिरिदात नाम के दो भाई थे। उन्होंने धीरे-धीरे पार्थियन राज्य की शक्ति को बहुत बढ़ा लिया और शीघ्र ही ईरान का सम्पूर्ण प्रदेश उनकी अधीनता में आ गया। 223 ई० पू० सीरिया के राजसिंहासन पर राजा एष्टियोकस तृतीय आरूढ़ हुआ। उसने पार्थिया पर आक्रमण कर दिया परन्तु असफल रहा और पार्थिया के राजा से सन्धि कर ली।” आगे पृ० 10 पर लिखते हैं कि “छठी शताब्दी ई० पू० में ईरान के हखामनी (जाट) सम्राटों ने सुग्ध देश को अपने अधीन कर लिया। बाद में ग्रीक, शक और पार्थियन (पह्लव) लोगों ने काम्बोज़, वाह्लीक और सुग्ध पर शासन किया।” (मध्य एशिया तथा चीन में भारतीय संस्कृति, लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार)।

Distribution

Notable persons

Population

Reference


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