Alaknanda River

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Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Location of Rivers and Panch Prayag
Map showing the Himalayan headwaters of the Ganges river of the Indian subcontinent.

Alaknanda (अलकनंदा नदी) is a Himalayan river in Uttarakhand and one of the two headstreams of the Ganga, the major river of Northern India. In hydrology, the Alaknanda is considered the source stream of the Ganges on account of its greater length and discharge; however, in Hindu mythology and culture, the other headstream, the Bhagirathi, is considered the source stream.

Variants

History

Course

The Alaknanda is considered to rise at the confluence and foot of the Satopanth and Bhagirath Kharak glaciers in Uttarakhand and meet the Sarasvati River tributary at Mana, India, 21 km from Tibet. Three km below Mana the Alaknanda flows past the Hindu pilgrimage centre of Badrinath.

The origin of Alaknanda River is of special interest to the tourists who visit the important pilgrimages in Uttarakhand. The Ganges as Alaknanda rises in the southern Himalayas on the Indian side of the Tibet border. On the Satopanth Glacier six km up from Alaknanda's origin at its snout, the triangular Lake Satopanth is found at a height of 4350 m and it is named after the Hindu trinity Lord Brahma, Lord Vishnu, Lord Shiva.

The five main tributaries joining with Alaknanda in order includes Dhauliganga, Nandakini, Pindar Ganga, Mandakini and Bhagirathi all rising in the northern mountainous regions of Uttarakhand. After the last tributary merging at Devprayag the river is known as the Ganges. The Alaknanda contributes a significantly larger portion to the flow of the Ganges than the Bhagirathi.

Badrinath, one of the holy destinations for Hindus in India is located near to the bank of the Alaknanda River. This place is surrounded by two mountain ranges of Nar and Narayan on either sides and Neelkanth peak located at the back of Narayan range.

Panch Prayag: Several rivers in the Garhwal region merge with the Alaknanda at places called Prayag or 'holy confluence of rivers'. These are:[6]

  1. Vishnuprayag, where the Alaknanda is met by the Dhauliganga River
  2. Nandaprayag, where it is met by the Nandakini River
  3. Karnaprayag, where it is met by the Pindar River
  4. Rudraprayag, where it is met by the Mandakini River
  5. Devprayag, where it meets the Bhagirathi River and officially becomes the Ganges

अलकनंदा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...अलकनंदा नदी (AS, p.40) कैलास और बद्रीनाथ के निकट बहने वाली गंगा नदी की एक शाखा है। कालिदास ने मेघदूत में जिस अलकापुरी का वर्णन किया है वह कैलास पर्वत के निकट अलकंनदा के तट पर ही बसी होगी जैसा कि नाम-साम्य से प्रकट भी होता है। कालिदास ने अलका की स्थिति गंगा की गोदी में मानी है और गंगा से यहाँ अलकनंदा का ही निर्देश माना जा सकता है। संभवत: प्राचीन काल में पौराणिक परंपरा में अलकनंदा को ही गंगा का मूलस्रोत माना जाता था क्योंकि गंगा को स्वर्ग से गिरने के पश्चात् सर्वप्रथम शिव ने अपनी अलकों अर्थात् जटाजूट में बाँध लिया था जिसके कारण नदी को शायद 'अलकनंदा' कहा गया। अलकनंदा का वर्णन महाभारत वन पर्व के अंतर्गत तीर्थयात्रा प्रसंग में है जहाँ इसे भागीरथी नाम से भी अभिहित किया गया है और इसका उद्गम बदरिकाश्रम के निकट ही बताया गया है। 'नर नारायणस्थानं भागीरथ्योपशोभितम्' (वनपर्व 145, 41)

यह भागीरथी अलकनंदा ही है क्योंकि नर नारायण - आश्रम अलकनंदा के तट पर ही है। वास्तव में महाभारत ने इस स्थान पर गंगा की दोनों शाखाओं- भागीरथी जो गंगोत्री से सीधी देवप्रयाग आती है. अलकनंदा जो कैलास और बदरिकाश्रम होती हुई देवप्रयाग में आकर भागीरथी से मिल जाती है- को अभिन्न ही माना है। विष्णु पुराण[2] में भी अलकनंदा का उल्लेख है- 'तथैवालकनंदापि दक्षिणेनैत्यभारतम्'। अलकनंदा और नंदा के संगम पर नंदप्रयास स्थित है।

अलकनंदा नदी परिचय

यह गंगा के चार नामों में से एक है। चार धामों में गंगा के कई रूप और नाम हैं। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा के नाम से जाना जाता है। यह उत्तराखंड में 'शतपथ' और 'भगीरथ खड़क' नामक हिमनदों से निकलती है। यह स्थान गंगोत्री कहलाता है। आकाशगंगा नदी की अलकनंदा की शाखा जान पड़ती है।

सहायक नदियाँ: अलकनंदा की पाँच सहायक नदियाँ हैं जो गढ़वाल क्षेत्र में 5 अलग अलग स्थानों पर अलकनंदा से मिलकर 'पंचप्रयाग' बनाती हैं। ये हैं-

  • विष्णु प्रयाग जहाँ धौली गंगा अलकनंदा से मिलती है।
  • नंदप्रयाग जहाँ नंदाकिनी नदी अलकनंदा से मिलती है।
  • कर्णप्रयाग जहाँ पिंडारी अलकनंदा से मिलती है।
  • रुद्रप्रयाग जहाँ मंदाकिनी अलकनंदा से मिलती है।
  • देवप्रयाग जहाँ भागीरथी अलकनंदा से मिलती है।

किलकिलेश्वर महादेव, चौरास श्रीनगर

किलकिलेश्वर महादेव, चौरास श्रीनगर

गढ़वाल के पांच महातम्यशाली शिव सिद्धपीठों किलकिलेश्वर, क्यूंकालेश्वर, बिन्देश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर में किलकिलेश्वर का प्रमुख स्थान है। श्रीनगर के ठीक सामने अलकनन्दा के तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यह मन्दिर युगों से अलकनन्दा के गर्जन-तर्जन को सुनता आ रहा है।

श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मन्दिर की तरह ही किलकिलेश्वर मन्दिर मठ की प्राचीनता और मान्यता पौराणिक है। केदारखण्ड पुराण से प्राप्त वर्णन के अनुसार महाभारत काल में पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिये अर्जुन ने इन्द्रकील पर्वत पर तपस्या की थी। अर्जुन के पराक्रम की परीक्षा लेने के लिये भगवान शिव ने किरात (भील) का रूप धारण कर अर्जुन से युद्ध किया था। युद्ध के समय शिव के किरात रूपी गणों के किलकिलाने का स्वर चारों ओर गूंजने लगा। अत: यह स्थान किलकिलेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

भागीरथी का एक नाम किराती था उसकी प्रमुख सहायक भिलंगना (भील-गंगा) और अलकनन्दा के मध्यवर्ती क्षेत्र में भील राज्य था और यह पूर्णतया संभव है कि उत्तराखण्ड आगमन में अर्जुन का संघर्ष सुअर का शिकार करते हुये भीलों से हुआ होगा। वर्तमान मन्दिर निश्चित रुप से विशाल मन्दिर है। गर्भगृह के तीन और प्रवेशद्वार है, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर। क्योंकि पश्चिम दिशा के प्रवेशद्वार के शीर्ष पर निर्माण शिलालेख लगा है अत: इसे ही मुख्य द्वार कहेंगें। मन्दिर में भैरवलिंग स्थापित हैं। मुख्य मन्दिर के अन्दर आठ इन्च ऊचें शिवलिंग के चारों तरफ़ लकड़ी के आठ खंभों पर काष्ठ का एक बहुत ही सुन्दर मन्दिर बना है। मन्दिर के अन्दर गणेश श्री की ढाई फीट ऊंची चतुर्भुजी मूर्ति अति सुन्दर है। मन्दिर परिसर में ही पूर्व दिशा की ओर मुंह किये पूंछ को अग्रीव उठाये हुये एक उन्नत सिहं लगभग एक हजार वर्ष की प्राचीनता का स्मारक है।[2]

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External links

References

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