Dravida
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.) |
Dravida (द्रविड़) or Dravira, was a Buddhist Kingdom visited by Xuanzang in 640 AD in South India. They fought Mahabharata War in Pandava's side
Variants
Location
Jat clans
- Danghad (दांघड़)[1] Danghar (दांघड़) is gotra of Jats. It is said to have originated from Dravida (द्रविड़). These people were inhabitants of Dravida province. [2]
History
Visit by Xuanzang in 640 AD
Alexander Cunningham[3] writes that In the seventh century the province of Ta-lo-pi-cha, or Dravida, was 6000 li, or 1000 miles, in circuit, and its capital, named Kien-chi-pu-lo, or Kanchipura, was 80 li, or 5 miles, in circuit.[4] Kanchipura is the true Sanskrit name of Conjeveram, on the Palar river, a large straggling town of great antiquity. As Dravida was bounded by Konkana and Dhanakakata on the north, and by Malakuta on the south, while no district is mentioned to the west, it seems certain that it must have extended right across the peninsula, from sea to sea. Its northern boundary may therefore be approximately defined as running from Kundapur, on the western coast, via Kadur and Tripati, to the Pulikat Lake, and its southern boundary from Calicut to the mouth of the Kaveri. As the circuit of these limits is very nearly 1000 miles, the boundaries suggested may be accepted as very nearly correct.
During the pilgrim's stay at Kanchipura, about 300 Buddhist monks arrived from Ceylon, which they had quitted on account of political disturbances, consequent on the death of the king. By my reckoning, Hwen Thsang must have arrived in Kanchipura, about the
[p.549]: 30th of July, A.D. 639, and, according to Tumour's list of the kings of Ceylon, Raja Buna Mugalan was put to death in A.D. 639. From the information furnished by these monks, the pilgrim drew up his account of Seng.kia.lo, or Ceylon, which he was prevented from visiting by the disturbed state of the country.
In Rajatarangini
Rajatarangini[5] mentions works done by various chiefs during the reign of king Jayasimha (1128 - 1155 AD) of Kashmir....The chief among the kings made his own matha a specially desirable object. He was without vanity, and gave away in gifts many villages, the principal among which was celebrated as Simhapura by those who knew of his gifts. In this place the son of the daughter of the lord of Kārapatha established a Colony of the twice-born who were going to Sindhu and of the rough out caste people of Dravida who formerly lived at Siddhachchhatra. (p.218-219)
In Mahabharata
Dravina (द्रविण) in Mahabharata (I.60.20).
Dravida (द्रविड़) in Mahabharata (II.28.48),(II.31.12),(III.48.18),(V.158.20), (VI.10.57),(VIII.4.46),
Adi Parva, Mahabharata/Book I Chapter 60 gives genealogy of all the principal creatures. Dravina (द्रविण) is mentioned in Mahabharata (I.60.20).[6]....And Dhara had two sons, Dravina and Huta-havya-vaha. And the son of Dhruva is the illustrious Kala (Time), the destroyer of the worlds.
Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 28 mentions Sahadeva's march towards south: kings and tribes defeated. Dravida (द्रविड़) is mentioned in Mahabharata (II.28.48).[7]....The hero brought under his subjection and exacted tributes from the Paundrayas and the Dravidas along with the Udra-Keralas and the Andhras and the Talavanas, the Kalingas and the Ushtrakarnikas, and also the delightful city of Atavi (Roma) and that of the Yavanas.
Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 31 mentions the Kshatriyas who brought tributes on Rajasuya sacrifice of Yudhisthira. Dravida (द्रविड़) is mentioned in Mahabharata (II.31.12).[8].... and the Dravidas and the Singhalas and the king of Kashmira, and king Kuntibhoja of great energy and king Gauravahana,....
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 48 describes Rajasuya sacrifice of Yudhisthira attended by the chiefs of many islands and countries. Dravida (द्रविड़) is mentioned in Mahabharata (III.48.18). [9]....I saw all kings, even those of the Vangas and Angas and Paundras and Odras and Cholas and Dravidas and Andhakas, and the chiefs of many islands and countries....
Udyoga Parva/Mahabharata Book V Chapter 158 mentions Dravida (द्रविड़) in Mahabharata (V.158.20).[10]...Having reached the Pandava camp, the gambler's son (Uluka) presented himself before the Pandavas, and addressing Yudhishthira said Duryodhana's words after Pandavas were defeated at dice....and which is protected by these kings like the gods protecting theirs in heaven, and which, swarming with the kings of the East, West, South, and North, with Kambojas, Sakas, Khasas, Shalwas, Matsyas, Kurus of the middle country, Mlechchhas, Pulindas, Dravidas, Andhras, and Kanchis, indeed, with many nations, all addressed for battle, is uncrossable....
Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 10 describes geography and provinces of Bharatavarsha. Dravida (द्रविड़) is mentioned in the list of other Kingdoms in the south in Mahabharata (VI.10.57). [11].... They are the Dravidas, the Keralas, the Prachyas, the Mushikas, and the Vanavashikas; the Karanatakas, the Mahishakas, the Vikalpas, and also the Mushakas;....
Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 4 mentions the warriors who are dead amongst the Kurus and the Pandavas after ten days. Dravidas (द्रविड़) are mentioned in Mahabharata (VIII.4.46).[12]....the Malavas, the Madrakas the Dravidas of fierce prowess, the Yaudheyas, the Lalittyas, the Kshudrakas, the Mavellakas, the Usinaras,....
द्रविड़
विजयेन्द्र कुमार माथुर[13] ने लेख किया है ... द्रविड़ (AS, p.455) तमिलनाडु का प्राचीन नाम-- 'पांड्याश्च द्रविडांश्चैव सहितांश्चोंड्र केरलै: आंध्रास्तालवनांश्चैव कलिंगानुष्ट्रकर्णिकान्'- महाभारत सभा पर्व 31, 71. इस उल्लेख के अनुसार सहदेव ने द्रविड़ तथा अन्य दक्षिणात्य राज्यों पर दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में विजय प्राप्त की थी। वनपर्व 51, 22 में द्राविड़ों का चोलों और आंध्रों के साथ उल्लेख है। 'सवंगांगान् सपौंड्रोड्रानू सचोल द्राविड़ांध्रकान्। कहा जाता है कि द्रविड़ और तमिल शब्द मूलत: एक ही हैं, केवल उच्चारण के भेद के कारण अलग-अलग हो गए हैं। मनु के अनुसार द्राविड़ मूलत: क्षत्रिय थे।
क्या 'द्रविड़' भारतवर्ष के आदिवासी हैं?
- लेखक- डॉ० शिवपूजनसिंह जी कुशवाहा "वैदिक गवेषक"
- प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ
जब भारतवर्ष पराधीन था और अंग्रेजों का प्रभुत्व था तब उन्होंने हमारी भाषा, वेष, इतिहास, संस्कृति सब का विनाश करने का प्रयत्न किया था। उन्होंने इतिहास में लिखवाया कि आर्य लोग भारत वर्ष के मूल निवासी नहीं वरन् बाहर से आए थे। यहां के आदि वासी कोल, भील, संथाल, मुण्डा, उरांव, द्रविड़ प्रभृति थे; पर यह बात सरासर भ्रम-पूर्ण है!
आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द जी महाराज ने लिखा है कि-
- (प्रश्न) इस देश का नाम क्या था, और इसमें कौन बसते थे?
- (उत्तर) इसके पूर्व इस देश का नाम कोई भी नहीं था और न कोई आर्यों के पूर्व इस देश में बसते थे। क्योंकि आर्य लोग सृष्टि की आदि में कुछ काल के पश्चात् तिब्बत से सीधे इसी देश में आकर बसे थे।
- (प्रश्न) कोई कहते हैं कि यह लोग ईरान से आये। इसी से इन लोगों का नाम आर्य हुआ है। इनके पूर्व यहां जंगली लोग बसते थे कि जिनको असुर और राक्षस कहते थे। आर्य लोग अपने को देवता बतलाते थे और उनका जब संग्राम हुआ उसका नाम देवासुर संग्राम कथाओं में ठहराया।
- (उत्तर) यह बात सर्वथा झूठ है क्योंकि-
- विजानीह्यार्यान्ये च दस्यवोबर्हिष्मते रन्धया शासद व्रतान्।। -ऋ०, मं० १/सू० ५१/मं० ८।।
- उत शूद्रे उतार्ये।। -अथर्व०, कां० १९ व ६२।
यह लिख चुके हैं कि आर्य नाम धार्मिक विद्वान् आप्त पुरुषों का और इनसे विपरीत जनों का नाम दस्यु अर्थात् डाकू, दुष्ट, अधार्मिक और अविद्वान् है। तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, द्विजों का नाम आर्य और शूद्र का नाम अनार्य्य अर्थात् अनाड़ी है। जब वेद ऐसे कहता है तो दूसरे विदेशियों के कपोल-कल्पित को बुद्धिमान लोग कभी नहीं मान सकते।'(१)
महर्षि दयानन्द जी महाराज के इस लेख से स्पष्ट ज्ञात होता है कि विदेशियों की बात कपोल-कल्पित है।
आज मद्रास राज्य में "द्रविड़ मुन्नेतरम कजघम" नामक साम्प्रदायिक दल ने आर्यों से द्वेष करना, भारतवर्ष का मानचित्र जलाना, "द्रविड़ास्थान" की मांग करना प्रारम्भ कर दिया है। इस दल के प्रमुख नेता श्रीयुत सी०ऐन० अन्नादुराई हैं। 'हिन्दी भाषा' का ये लोग प्रबलरूप से विरोध करते हैं। श्री राजगोपालाचार्य भी कभी २ 'द्रविड़ास्थान' का समर्थन करते हैं तो महान् आश्चर्य होता है। वास्तव में 'द्रविड़' यहां के आदिवासी नहीं हैं वरन् वे स्वयं आर्य हैं। यहां द्रविड़ों के आर्य होने का कतिपय प्रमाण दिया जाता है-
(क) राजर्षि मनु जी कहते हैं-
- "शनकैस्तु क्रियालोपादिमाः क्षत्रियजातयः।
- वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणादर्शनेन च।।४३।।
- पौण्ड्रकाश्चौड्रद्रविडा: काम्बोजा यवनाः शकाः
- पारदा पह्लवाश्चीनाः किराता दरदाः खशाः"।।४४।। [मनुस्मृति, अ० १०]
- अर्थ- "ये क्षत्रिय जातियां धीरे धीरे शास्त्रानुकूल कर्मों के लोप होने और ब्राह्मणों के दर्शन न होने के कारण लोक में वृषल (पापी और दुष्कर्मा) हो गई- पौण्ड्रक, चोड, द्रविड़, काम्बोज, यवन, शक, पारद, पहलव, चीन, किरात, दरद, खश।"
मनुस्मृति के सुप्रसिद्ध भाष्यकार 'श्री कुल्लूक भट्ट जी भी इनका अर्थ करते हैं-
- इमा वक्ष्यमाणाः क्षत्रिय जातप उपनयनादिक्रियालोपेन ब्राह्मणानां च याजनाध्यापन
- प्रायश्चित्ताद्यर्थदर्शनाभावेन शनैः शनैर्लोके शूद्रतां प्राप्ताः।।४३।।
- पौण्ड्रादिदेशोद्भवाः सन्तः क्रियालोपादिनाशूद्रत्वमापन्नः।।४४॥
अर्थात्- "ये क्षत्रिय जातियां उपनयनादि क्रिया के लोप से ब्राह्मणों के और यज्ञ, अध्यापन, प्रायश्चित आदि के अभाव से धीरे धीरे लोक में शूद्रता को प्राप्त हो गई। पौण्ड्रादि देशों में उत्पन्न क्रिया लोप से शूद्रत्व को प्राप्त हो गए।" राजर्षि मनु जी स्पष्ट द्रविड़ों को क्षत्रिय बतलाते हैं।
(ख) श्री अविनाशचन्द्रदास जी लिखते हैं-
- "The dark skinned and Dasyus mentioned in the Rigved were not the people of the colarian and Dravidian races, but they were either the dark nomadic Aryan Savages and remanants of the race in its onward march towards progress on the non-sacrificing Aryans tribes who did not subscribe to the orthodox Vaidic faith, and accept the Vaidic gods and hence were put down as "blacks" to depict their character."(२)
अर्थात्- "ऋग्वेद में बताए हुए काली चमड़ी वाले दास और दस्यु, कोल और द्रविड़ जाति के लोगों में नहीं थे। किन्तु या तो वे खानाबदोष जगली आर्यों में से थे, या उन आर्यों के शेष थे, जो पूर्व समय में उन्नति पथ पर पड़ गये, परन्तु ये (काले) अयाज्ञिक रहे और आर्य देवताओं के पूजक भी नहीं रहे, न उनका विश्वास वैदिक मार्ग पर रहा। अतः ये 'काले' कहकर पुकारे गये, उनका चित्र उनके व्यवहार के कारण ही ऐसा खींचा गया।"
द्राविड़ों को आयों ने सभ्य बनाया-
(ग) पुनः श्री अविनाशचन्द्र जी लिखते हैं-
- "The Dravidians were famous in ancient time for their astronomical knowledge which they undoubtedly derived from the Vaidic Aryans."(३)
- अर्थात्- द्रविड़ लोग प्राचीन काल में अपनी ज्योतिष विद्या के लिए विख्यात थे, इस विद्या को निस्सन्देह उन्होंने वैदिक आर्यों से सीखा।
(घ) मद्रास यूनिवर्सिटी के श्री बी०आर० रामचन्द्र दीक्षितार एम०ए० ने अपने व्याख्यान में कहा था कि-
"The fact is that the Dasyus were not non-Aryans. The theory that the Dasyus-Dravidians inhabited the Punjab and the Ganges valley at the time of the so-called Aryan invasion of India, and overcome by the latter, they fled to South India and adopted it as their home, cannot stand. To say that all India was a wild country once, and that it was civilised by the invading Dravidians first and by the invading Aryans next, cannot carry conviction. home.....
In the same way we have to look upon the theory of a Dravidian race. If the Aryan race theory is a myth, the theory of the Dravidian race is a greater myth. The word Dravida is the name for the speakers of a group of South Indian languages Tamil, Malayalam, Kanarese and Telugu."(४)
अर्थात्- "तथ्य यह है कि दस्यु अनार्य न थे। यह सिद्धान्त कि दस्यु-द्रविड़ लोग पंजाब और गंगा की घाटी में रहते थे जब आर्यों ने भारत पर अभियान किया और आयों से पराजित होकर वे दक्षिण भारत में भाग गए और उसी को उन्होंने अपना गृह बना लिया; प्रामाणिक नहीं है। यह कथन कि समस्त भारतवर्ष एक जंगली देश था, और इसको पहिले आक्रमणकारी द्रविड़ और पुनः आक्रमणकारी आर्यों ने सभ्य बनाया, यह भी विश्वसनीय नहीं।
उसी तरह हमें द्रविड़ जाति के सिद्धान्त को देखना है। यदि 'आर्य जाति' का सिद्धान्त कल्पित है तो द्राविड़ जाति का सिद्धान्त उससे भी अधिक कल्पित है। द्राविड़ यह शब्द तामिल, मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु इस दक्षिण भारतीय भाषा वर्ग के बोलने वालों का नाम है।"
इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि "द्रविड़" आर्य क्षत्रिय हैं। आज तक ऐतिहासिक विद्वान् यह निर्णय नहीं कर सके कि इनका मूलस्थान कहां था।
श्री बी०एन० लूनिया, एम०ए० प्राध्यापक इतिहास तथा राजनीति विभाग, होल्कर कॉलेज, इन्दौर लिखते हैं कि- 'द्रविड़-आर्यों से पूर्व को जातियों में द्रविड़ ही सबसे अधिक महत्त्वशाली थे। अभाग्यवश इनका मूल निवास स्थान अभी भी विवाद-ग्रस्त है।"(५)
श्री सी०एस० श्री निवासाचारी एम०ए० तथा श्री एम०एस० रामस्वामी आयगर एम०ए० भी कहते हैं कि- "द्रविड़ों के उद्गम स्थान और उनके इतिहास के बारे में विद्वानों में भारी मतभेद पाया जाता है।..."(६)
अतः राजर्षि मनु जी का यह मत नितान्त सही ज्ञात होता है कि 'द्राविड़' क्षत्रिय हैं।
पाद टिप्पणियां-
- १. "सत्यार्थप्रकाश", अष्टम समुल्लास
- २. "ऋग्वैदिक इण्डिया" पृष्ठ ५६२, तुलना करो, मासिक "वेदोदय" प्रयाग, जुलाई १९३३ ई०, पूर्णसंख्या ४०, पृष्ठ ३५६-३५७
- ३. "ऋग्वैदिक इण्डिया" पृष्ठ २५३, तुलना करो- मासिक "वेदोदय" प्रयाग, जुलाई १९३३ ई०, पृष्ठ ३५९
- ४. "Origin and spread of the Tamils" PP. 12,14 तुलना करो "वेदों का यथार्थ स्वरूप", प्रथम संस्करण, पृष्ठ ३४९-३५०
- ५. "भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का विकास" पृष्ठ २४, [लेखक की मूल पुस्तक "Evolution of Indian Culture " का हिंदी अनुवाद, नवम्बर १९५२ ई० में श्री लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, आगरा द्वारा प्रकाशित, प्रथमावृत्ति
६. "प्राचीन भारत" (हिंदू काल, पृष्ठ २२) [सन् १९४८ ई० में श्रीराम नारायणलाल प्रकाशक तथा पुस्तक विक्रेता, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित]
References
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.45,s.n. 1286
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya etc,: Ādhunik Jat Itihas, p.256
- ↑ The Ancient Geography of India/Southern India, p.548-549
- ↑ Julien's ' Hiouen Thsang,' iii. 118. See Map No. I.
- ↑ Kings of Kashmira Vol 2 (Rajatarangini of Kalhana)/Book VIII (i), p.218-219
- ↑ धरस्य पुत्रॊ द्रविणॊ हुतहव्यवहस तथा, धरुवस्य पुत्रॊ भगवान कालॊ लॊकप्रकालनः (I.60.20)
- ↑ पाण्ड्यांश च द्रविड़ांश चैव सहितांश चॊथ्र केरलैः, अन्ध्रांस तलवनांश चैव कलिङ्गान ओष्ट्र कर्णिकान (II.28.48)
- ↑ द्रविडाः सिंहलाश चैव राजा काश्मीरकस तदा, कुन्तिभॊजॊ महातेजाः सुह्मश च सुमहाबलः
- ↑ यत्र सर्वान महीपालाञ शस्त्रतेजॊ भयार्थितान, सवङ्गाङ्गान सपौण्ड्र उड्रान सचॊल द्रविडान्धकान (III.48.18)
- ↑ 20 पराच्यैः परतीच्यैर अद थाक्षिणात्यैर; उदीच्यकाम्बॊजशकैः खशैश च, शाल्वैः समत्स्यैः कुरुमध्यदेशैर मलेच्छैः पुलिन्थैर द्रविडान्ध्र काञ्च्यैः (V.158.20)
- ↑ द्रविडाः केरलाः पराच्या भूषिका वनवासिनः, उन्नत्यका माहिषका विकल्पा मूषकास तदा (VI.10.57)
- ↑ मालवा मद्रकाश चैव द्रविडाश चॊग्रविक्रमाः, यौधेयाश च ललित्दाश च क्षुद्रकाश चाप्य उशीनराः (VIII.4.46)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.455