Indarpat
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.) |
Indarpat (इंदरपत) is an ancient village near Delhi. It has been identified with the site of the ancient Indraprastha, the headquarters of the Pandavas of Mahabharata fame.
Variants
- Indrapat (इंद्रपत)
- Inderpat (इंदरपत)
- Purana Kila (पुराना किला) (AS, p.758)
- Purana Qila (पुराना किला)
Location
Indarpat is situated in 28° 36' N. and 77° 17' E., close to the modern city of Delhi. The original town stood upon the banks of the Jumna, between the Kotila of Firoz Shah and the tomb of Humayun
History
Village in Delhi District, Punjab, occupying the site of the ancient Indraprastha, and situated in 28° 36' N. and 77° 17' E., close to the modern city of Delhi. The original town stood upon the banks of the Jumna, between the Kotila of Firoz Shah and the tomb of Humayun ; and although the river has now shifted its channel a mile eastward, the former bed may still be traced past the early site. Scarcely a stone of the ancient capital remains standing ; but the village of Indarpat and the Muhammadan fort of Purana Kila probably occupy- the true site, while the modern name is obviously a corruption of the old Hindu name. Indraprastha is commonly believed to have been founded by the earliest Aryan colonists of India : and the Mahabharata relates how the five Pandavas, Yudhishthira and his brethren, leading a body of settlers from Hastinapur on the danges, expelled the savage Nagas, and built their capital upon this sjjot. [1][2]
Excavations at Purana Quila
ASI[3] conducted large-scale excavations at site of Purana Quila (28°38′; 77°12′), Delhi: The ‘Old Fort’ on the Yamuna in New Delhi, off Delhi-Mathura-Agra road, built by Humayun and with standing monuments built by Sher Shah, situated on a mound on which stood the village Inderpat till the beginning of this century, identified with Indraprastha, the headquarters of the Pandavas of Mahabharata fame. It was explored by Cunningham and later on by others. An inscription of Bhoja of the Pratihara dynasty (c. 836-85) was found here in 1913-14. In a trial excavation of 1954-5 conducted by B.B. Lal of the ASI sherds of the PGW and NBPW and remains of the Sunga Kushan periods were found. Between 1969-70 and 1972-3 the ASI conducted large-scale excavations here revealing remains of eight.
Periods, -though neither the PGW nor anything associated with it was found:
- Period I, Mauryan (4th -3rd century B.C.);
- Period II, Sunga (2nd -1st century B.C.;
- Period III, Saka-Kushan (1st -3rd century AD.);
- Period IV, Gupta (4th -6th century);
- Period V, post-Gupta (7th -9th century);
- Period VI, Rajput (10th – 12th century);
- Period VII, Sultanate (13th -15th century); and
- Period VIII, Mughal (16th -19th century).
One of five villages demanded by Pandavas
It was one of five villages demanded by Pandavas. Mahabharata tells that When Pandavas were defeated in chausar they were forced to leave the state for 13 years. During most of this time, they lived at place called Varnavata (modern Bairat) in Jaipur district in Rajasthan. Having lived there for pretty long time, the Pandawas sent a message to the Kauravas that they won't lay their claim to the throne if they were given just five villages. These 5 villages were :
- Indraprastha (इन्द्रप्रस्थ) (Indarpat) - Purana Kila (Delhi)
- Panaprastha (पणप्रस्थ) (Panipat) - Haryana
- Sonaprastha (सोणप्रस्थ) (Sonipat) - Haryana
- Tilaprastha (तिलप्रस्थ) (Tilpat) - Haryana
- Vyaghraprastha (व्याग्रप्रस्थ) (Bagpat) - Uttar Pradesh
If you study the population of people who lived in all these areas mentioned in Mahabharata it is is found to be the homeland of Jats.
मेरठ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है .... मेरठ (AS, p.758): उत्तर प्रदेश में स्थित है. इसका प्राचीन नाम मयराष्ट्र था. किंवदंती के अनुसार इस नगर को महाभारत काल में मयदानव ने बसाया था. मयदानव उस समय का महान शिल्पी था तथा इसी ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में अद्भुत सभा भवन का निर्माण किया था. अर्जुन तथा कृष्ण ने खांडववन को जलाते समय यहां रहने वाले मयदानव की रक्षा करके उसे अपना मित्र बना लिया था. (देखिए आदिपर्व 233, सभा.1). संभवतः खांडव वन की स्थिति वर्तमान मेरठ के निकटवर्ती क्षेत्र में थी. जान पड़ता है कि वास्तव में खांडव वन दिल्ली के इंद्रप्रस्थ नामक स्थान के निकट (पुराने किले के आसपास) रहा होगा. क्योंकि पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ, इसी वन को जला डालने पर जो स्वच्छ भू-भाग प्राप्त हुआ था उसी में बसाई गई थी. किंतु यह भी संभव है कि यह वर्तमान दिल्ली से लेकर मेरठ तक के क्षेत्र में विस्तृत था.
11 वीं सदी में दौर क्षेत्रीय हरदत्त ने मेरठ को जीतकर यहां एक किला बनवाया जिसे कुतुबुद्दीन ने 1191 में जीत लिया. यहां एक बौद्ध मंदिर के भी अवशेष मिले थे. शाहपीर की दरगाह को नूरजहां ने बनवाया था. जामा मस्जिद, महमूद गजनी के वजीर हसन मेंहदी ने बनवाई थी (1019 ई.). इसकी मरमत हुमायूं ने करवाई थी.
खांडवप्रस्थ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है कि....खांडवप्रस्थ (AS, p.255) हस्तिनापुर के पास एक प्राचीन नगर था जहां महाभारतकाल से पूर्व पुरुरवा, आयु, नहुष तथा ययाति की राजधानी थी. कुरु की यह प्राचीन राजधानी बुधपुत्र के लोभ के कारण मुनियों द्वारा नष्ट कर दी गई. युधिष्ठिर को, जब प्रारंभ में, द्यूत-क्रीडा से पूर्व, आधा राज्य मिला तो धृतराष्ट्र ने पांडवों से खांडवप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाने तथा फिर से उस प्राचीन नगर को बसाने के लिए कहा था. (महाभारत आदि पर्व, 206 दक्षिणात्य पाठ) तत्पश्चात पांडवों ने खांडवप्रस्थ पहुंच कर उस प्राचीन नगर के स्थान पर एक घोर वन देखा. (आदि पर्व: 206, 26-27). खांडवप्रस्थ के स्थान पर ही इंद्रप्रस्थ नामक नया नगर बसाया गया जो भावी दिल्ली का केंद्र बना. खांडवप्रस्थ के निकट ही खांडववन स्थित था जिसे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने अग्निदेव की प्रेरणा से भस्म कर दिया. खांडवप्रस्थ का उल्लेख अन्यत्र भी है. पंचविंशब्राह्मण 25,3,6 में राजा अभिप्रतारिन् के पुरोहित द्दति खांडवप्रस्थ में किए गए यज्ञ का उल्लेख है. अभिप्रतारिन् जनमेजय का वंशज था. जैसा पूर्व उद्धरणों से स्पष्ट है, खांडवप्रस्थ पांडवों के पुराने किले के निकट बसा हुआ था. (दे. इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर)
इंद्रप्रस्थ का इतिहास
विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है कि....इंद्रप्रस्थ वर्तमान नई दिल्ली के निकट पांडवों की बसाई हुई राजधानी थी. महाभारत आदि पर्व में वर्णित कथा के अनुसार प्रारंभ में धृतराष्ट्र से आधा राज्य प्राप्त करने के पश्चात पांडवों ने इंद्रप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाई थी. दुर्योधन की राजधानी लगभग 45 मील दूर हस्तिनापुर में ही रही. इंद्रप्रस्थ नगर कोरवों की प्राचीन राजधानी खांडवप्रस्थ के स्थान पर बसाया गया था--
'तस्मातत्वं खांडवप्रस्थं पुरं राष्ट्रं च वर्धय, ब्राह्मणा: क्षत्रिया वैश्या: शूद्राश्च कृत निश्चया:। त्वदभ्क्त्या जंतग्श्चान्ये भजन्त्वेव पुरं शुभम्' महाभारत आदि पर्व 206
अर्थात धृतराष्ट्र ने पांडवों को आधा राज्य देते समय उन्हें कौरवों के प्राचीन नगर वह राष्ट्र खांडवप्रस्थ को विवर्धित करके चारों वर्णों के सहयोग से नई राजधानी बनाने का आदेश दिया. तब पांडवों ने श्री कृष्ण सहित खांडवप्रस्थ पहुंचकर इंद्र की सहायता से इंद्रप्रस्थ नामक नगर विश्वकर्मा द्वारा निर्मित करवाया--'विश्वकर्मन् महाप्राज्ञ अद्यप्रभृति तत् पुरम्, इंद्रप्रस्थमिति ख्यातं दिव्यं रम्य भविष्यति' महाभारत आदि पर्व 206.
इस नगर के चारों ओर समुद्र की भांति जल से पूर्ण खाइयाँ बनी हुई थी जो उस नगर की शोभा बढ़ाती थीं. श्वेत बादलों तथा चंद्रमा के समान उज्ज्वल परकोटा नगर के चारों ओर खींचा हुआ था. इसकी ऊंचाई आकाश को छूती मालूम होती थी--
[पृ.76]: इस नगर को सुंदर और रमणीक बनाने के साथ ही साथ इसकी सुरक्षा का भी पूरा प्रबंध किया गया था तीखे अंकुश और शतघ्नियों और अन्यान्य शास्त्रों से वह नगर सुशोभित था. सब प्रकार की शिल्प कलाओं को जानने वाले लोग भी वहां आकर बस गए थे. नगर के चारों ओर रमणीय उद्यान थे. मनोहर चित्रशालाओं तथा कृत्रिम पर्वतों से तथा जल से भरी-पूरी नदियों और रमणीय झीलों से वह नगर शोभित था.
युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ इंद्रप्रस्थ में ही किया था. महाभारत युद्ध के पश्चात इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर दोनों ही नगरों पर युधिष्ठिर का शासन स्थापित हो गया. हस्तिनापुर के गंगा की बाढ़ से बह जाने के बाद 900 ई. पू. के लगभग जब पांडवों के वंशज कौशांबी चले गए तो इंद्रप्रस्थ का महत्व भी प्राय समाप्त हो गया. विदुर पंडित जातक में इंद्रप्रस्थ को केवल 7 क्रोश के अंदर घिरा हुआ बताया गया है जबकि बनारस का विस्तार 12 क्रोश तक था. धूमकारी जातक के अनुसार इंद्रप्रस्थ या कुरूप्रदेश में युधिष्ठिर-गोत्र के राजाओं का राज्य था. महाभारत, उद्योगपर्व में इंद्रप्रस्थ को शक्रपुरी भी कहा गया है. विष्णु पुराण में भी इंद्रप्रस्थ का उल्लेख है.
आजकल नई दिल्ली में जहाँ पांडवों का पुराना किला स्थित है उसी स्थान के परवर्ती प्रदेश में इंद्रप्रस्थ की स्थिति मानी गई है. पुराने किले के भीतर कई स्थानों का संबंध पांडवों से बताया जाता है. दिल्ली का सर्वप्रचीन भाग यही है. दिल्ली के निकट इंद्रपत नामक ग्राम अभी तक इंद्रप्रस्थ की स्मृति के अवशेष रूप में स्थित है.
इंडिया-वाटर-पोर्टल वेबसाईट[7] के अनुसार इंद्रप्रस्थ वर्तमान दिल्ली के समीप इंदरपत गाँव का प्राचीन नाम। यह नगर शक्रप्रस्थ, शक्रपुरी, शतक्रतुप्रस्थ तथा खांडवप्रस्थ आदि अन्य नामों से भी अभिहित किया गया है। इसके उदय और अभ्युदय का रोचक वर्णन महाभारत (आदिपर्व, 207अ.) के अनेक स्थलों पर किया गया है। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतकर जब पांडव हस्तिनापुर में आने लगे तब धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों के साथ उनके भावी वैमनस्य तथा विद्रोह की आशंका के विदुर के हाथों युधिष्ठिर के पास यह प्रस्ताव भेजा कि वह इद्रंवन या खांडववन को साफ कर वहीं अपनी राजधानी बनाएँ। युधिष्ठिर ने इस प्रस्ताव को मानकर इंद्रवन को जलाकर यह नगर बसाया। महाभारत के अनुसार मय असुर ने 14 महीनों तक परिश्रम कर यहीं पर उस विचित्र लंबी चौंड़ी सभा का निर्माण किया था जिसमें दुर्योधन को जल में स्थल का और स्थल में जल का भ्रम हुआ था। इस सभा के चारों ओर का घेरा 10,000 किस्कु (8,750 गज) था। ऐसी रूपसंपन्न सभा न तो देवों की सुधर्मा ही थी और न अंधक वृष्णियों की सभा ही। इसमें 8,000 किंकर या गुह्यक चारों ओर उत्कीर्ण थे जो अपने मस्तकों पर उसे ऊपर उठाए प्रतीत होते थे। राजा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का विधान इसी नगर में किया (महाभारत, सभापर्व, 30-42 अध्याय) जिसमें कौरवों ने भी अपना सहयोग दिया था। ऐसी समृद्ध नगरी पर पांडवों को गर्व तथा प्रेम होना स्वाभाविक था और इसीलिए उन लोगों ने दुर्योधन से अपने लिए जिन पाँच गाँवों को माँगा उनमें इंद्रपस्थ ही प्रथम नगर था : इंद्रप्रस्थं वृक्रप्रस्थं जयंतं वारणावतनम्। देहि में चतुरो ग्रामान् पंचमं किंचिदेव तु।।
आज इस महनीय नगरी की राजनीतिक गरिमा फिर से दिल्ली और नई दिल्ली की भारतीय राजधानी में संचित हुई है। पद्मपुराण ने इंद्रप्रस्थ में युमना को अतीव पवित्र तथा पुण्यवती माना है : यमुना सर्वसुलभा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा। इंद्रप्रस्थे प्रयागे च सागरस्य च संगमे।।
यहाँ यमुना के किनारे 'निगमोद्बोध' नामक तीर्थ विशेष प्रसिद्ध था। इस नगर की स्थिति दिल्ली से दो मील दक्षिण की ओर उस स्थान पर थी जहाँ आज हुमायूँ द्वारा बनवाया 'पुराना किला' खड़ा है।
References
- ↑ http://www.indpaedia.com/ind/index.php/Indarpat
- ↑ THE IMPERIAL GAZETTEER OF INDIA , 1908. OXFORD, AT THE CLARENDON PRESS.
- ↑ ASI excavations in Delhi
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.758
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.255
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.75-76
- ↑ https://hindi.indiawaterportal.org/node/25883