Jat Itihas By Dr Ranjit Singh/1.Jaton Ka Vistar

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जाट इतिहास (प्रथम खंड) (महाभारत काल से 1857 ई. तक)
लेखक: डॉ रणजीतसिंह, प्रकाशक: आचार्य प्रकाशन, दयानंदमठ, रोहतक, 1980

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प्रथम अध्याय : जाटों का विस्तार

प्रथम अध्याय : 'जाटों का विस्तार' से कुछ अंश नीचे दिये जा रहे हैं:


[पृष्ठ.3]: ....इन्हीं विचारों से मिलते जुलते विचार शिवदास गुप्ता4 ने इस प्रकार प्रकट किए हैं-

"जाटों ने तिब्बत, यूनान, अरब, ईरान, तुर्किस्तान, जर्मनी, साइबेरिया, स्कैंडिनेविया, इंग्लैंड, ग्रीक, रोम तथा मिस्र में कुशलता, दृढ़ता और साहस के साथ राज्य किया और वहां की भूमि को विकासवादी उत्पादन के योग्य बनाया था।"

जाटों का प्रसार बड़े-भारी भूखंड पर था, इसमें कोई संदेह नहीं है।


4. शिव दास गुप्ता, स्वार्थ पत्रिका अंक, 4-5 1976

[पृष्ठ.4]: इतिहासकार ईरान को तो जाटों की दूसरी मां तक मानते हैं और भारत उनकी प्रथम मां है।

देशराज1 अपने इतिहास में लिखते हैं-

"उनका (जाटों का) विस्तार उत्तर में जगजार्टिस और पश्चिम में ईरान की खाड़ी तक हो गया था। ईरान के डेरियस के अलावा अपने नेताओं के साथ उन्होंने यूनान को पहले ही देख लिया था। समय पाकर तथा अधिक संख्या एवं अन्य परिस्थितियों से वे आगे की ओर बढ़े और रोम तथा इटली में पूर्व की ओर से आक्रमण करने लगे। उधर मध्य एशिया में हूणों का प्रथम उपद्रव खड़ा हुआ तब जगजार्टिस के किनारे पर बसे हुए जाट लोगों का कुछ भाग नए और हरे-भरे देशों की खोज के लिए यूराल पर्वत को पार कर गया और जर्मनी में जा बसा। उससे भी अधिक उत्साही लोगों को वहां पहुंचा दिया जहां से आगे थल न था अर्थात जमीन का खात्मा हो गया था, वह देश था स्कंधनाभ अथवा स्कैंडिनेविया।"

कप्तान दलीपसिंह2 के अनुसार -

"प्राचीन काल में जाट वीरों ने तीर और तलवार का बल दिखाकर और हल चलाकर, एशिया और यूरोप की भूमि पर, पूर्व में मंगोलिया और चीन, पश्चिम में स्पेन और इंग्लैंड और दक्षिण में भारतवर्ष, ईरान और मिश्र की भूमि पर, 'जाट बलवान - जय भगवान' का रणघोष लगाकर अपने नाम की प्रसिद्धि की।"

जाटों के विस्तार संबंधी उपर्युक्त विचारों की पुष्टि एंटीक्विटी ऑफ जाट रेस के लेखक उजागर सिंह महल के विचारों से भी होती है। महल महोदय अपनी पुस्तक में लिखते हैं -

"मैं अब विशालतम जाट साम्राज्य का वर्णन करता हूं जो कि मात्र भौगोलिक सीमाओं के कारण ही बड़ा नहीं था, अपितु इजिप्ट और असीरिया के साम्राज्यों से भी बड़ा था। यह स्मरण रखना चाहिए कि पर्शियन साम्राज्य जाट साम्राज्य की देन है और पर्शियन राजाओं में जाट रक्त विद्यमान है। जाटों के इस साम्राज्य को मेड़ा साम्राज्य कहते हैं3 महल के मतानुसार जाटों ने रोमन साम्राज्य, स्पेन और ब्रिटेन तक को जीता था 4


1. देशराज, जाट इतिहास, पृष्ठ 169-71; 2. दलीपसिंह, जाट वीरों का इतिहास, पृष्ठ 68; 3. एंटीक्विटी ऑफ जाट रेस, पृष्ठ 9-7 ?; 4. एंटीक्विटी ऑफ जाट रेस, पृष्ठ 53-66;


[पृष्ठ.5]: इससे आगे वे लिखते हैं

"यूरोप की डेन्यूब नदी जाटों के पुरातात्विक इतिहास की दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है। इस नदी के दोनों किनारों पर जाट ही निवास करते थे। डेन्यूब नदी जाटों से इतनी संबंधित है कि वह उनके स्वप्नों में भी आती है।"

सिकंदर महान ने अपने एशिया आक्रमण के समय सोगड़ियाना (तुर्किस्तान) पर आक्रमण किया था। उस समय सोगड़ियाना की राजधानी समरकंद थी। उजागर सिंह के विचार अनुसार यह प्रदेश उस समय जाटों के अधीन था जो कि पंजाब के जाटों के बहुत दूर के पूर्वज थे।

जाटों के विषय में सर्वप्रथम जानकारी देने वाले हेरोडोटस थे। इन्होंने अपने यात्रा विवरणों के अध्ययन के आधार पर यह लिखा है कि प्रथम दारा के पुत्र जरक्सीज के यूनान पर आक्रमण के समय उसके साथ भारतीय जाटों का दल था। इसी प्रकार बहुत से विद्वान भागवत और महाभारत के आधार पर यह मानते हैं कि अर्जुन के साथ में द्वारिका से आने वाला यादव कुलीन जाटों का समूह था और यह परिवार (जाट) घुमक्कड़ कबीलों के रूप में भारतीय सीमाओं से बाहर इधर-उधर बिखर गया। सिकंदर के आक्रमणों के बाद ईसाई तथा मुस्लिम संघर्षों के बाद वे पुनः ईरान के मार्ग से भारत में लौट आए। इस प्रकार के जाट पच्छान्दे कहलाते हैं। इलियट तथा डाउसन के विचार में इस्लाम धर्म की स्थापना के समय सिंधु प्रांत (शाक द्वीप) में जाट शक्ति का बोलबाला था। इस प्रांत के जाट शासक जागीरदार तथा उपजाऊ भूमि के स्वामी होने के साथ-साथ वैदिक संस्कृति के पोषक भी थे और वे आत्मा के अमरत्व में विश्वास करते थे।

'किताबुल मसालिक वअल ममालिक' पुस्तक के लेखक इब्न खुरदादबा की पुस्तक का हवाला देते हुए इलियट तथा डाउसन ने लिखा है कि "किरमान की सीमा से मनसूरा 80 प्रसंग है (8 मील का एक प्रसंग) यह मार्ग जाटों के देश से होकर निकलता है। वह इसकी चौकसी करते हैं।1

विदेशों में पाई जाने वाली 'भारतीय रोमा' (जिप्सी) जाट जाति है। ये लोग कई देशों में पाए जाते हैं। परंतु विश्व में सबसे अधिक


1. भारत का इतिहास प्रथम भाग (हिन्दी) इलियट एंड डाउसन, पृष्ठ 11.


[पृष्ठ.6]: 'रोमा' जाट युगोस्लाव में बसे हुए हैं। इस देश में 'स्कोपिये' रोमा लोगों का सुंदर शहर है। यहाँ पर इनकी जनसंख्या चालीस हजार है। इसी प्रकार दक्षिणी फ्रांस में ग्रास में भी इनकी एक सुंदर बस्ती है। 'डेविड मकरिटचे'1 की सन 1986 ई. में प्रकाशित एक पुस्तक से स्पष्ट है कि जिप्सी राजस्थान के जाट हैं, जो भरतपुर के जाट राजा सूरजमल के शासनकाल में अपना देश छोड़कर विदेश चले गए थे।

दैनिक हिंदुस्तान दिनांक 27 जुलाई, 1983 के एक समाचार के एक समाचार के अनुसार जब लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ राष्ट्रमंडलीय संगठनों के कार्य दल की बैठक में भाग लेने के लिए लंदन गए थे, तो वहां पर उनकी मुलाकात ब्रिटेन की संसद के अध्यक्ष बर्नार्ड वेदरहिल (Bernard Weatherill) से हुई थी। वेदरहिल ने अपने भारतीय प्रवास की स्मृति को ताजा करते हुए हिंदी में कहा था "मैं भी जाट हूं"। यह बात सिद्ध करती है कि जाट शब्द पंजाब का पर्यायवाची बन गया था।

भारत भूमि में जाटों के विस्तार को देखते हुए योगेन्द्रपाल शास्त्री 2 ने लिखा है कि

"जाट अपने आदि देश भारतवर्ष के कोने-कोने में नहीं वरन उपजाऊ प्रदेशों की ऊंची भूमियों पर बसे हुए हैं। नदियों की अति निकटवर्ती खादर भूमि या पहाड़ों की तलहटी में उनकी सामूहिक विद्यमानता नहीं पाई जाती। डेरा गाजी खां, डेरा इस्माइल खां, डेरा फतेह खाँ, बन्नू, कोहाट, हजारा, नौशेरा, सियालकोट, गुजरात, गुजरान वाला, लायलपुर, मिंटगुमरी, लाहौर की चुनिया तहसील में कुल मिलाकर 25 लाख जाट आज भी बसे हुए हैं। यद्यपि इनका धर्म है इस्लाम है किंतु रक्त की दृष्टि से जाट होने का उन्हें गर्व है। विभाजित भारत में जाटों की संख्या किसी भी प्रकार कम नहीं है। "

यदि हम भारत के राजनीतिक इतिहास का अवलोकन करें तो हमें आंकड़ों से स्पष्ट प्रतीत होगा कि उत्तरी भारत के अनेक प्रांतों में जाट लोग छाए हुए हैं।


1. कप्तान दिलीप सिंह - जाट वीरों का इतिहास उद्धृत पृष्ठ.73.
2. योगेद्रपाल, क्षत्रिय जातियों का उत्थान और पतन, पृष्ठ 271-73
3. भारत का इतिहास प्रथम भाग (हिन्दी), इलियट एंड डाउसन, पृष्ठ 508.