Sikarwati Jat Kisan Panchayat

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Author: Laxman Burdak लक्ष्मण बुरड़क

Shekhawati Jat Kisan Panchayat (सीकरवाटी जाट किसान पंचायत) was a leading organization of Jats in Shekhawati farmers movement in Shekhawati region of Rajasthan to fight against the Jagirdars.

Variants of name

Princely States Report

The main agricultural caste in Rajasthan is the Jats: they comprise the largest single caste in the state (9 per cent), and were, in the 1930's and even earlier, the most self-conscious and prosperous among the peasant castes. In 1935 their claims to certain privileges led to a series of clashes between them and the Rajputs, who resisted their attempts to revise accepted signs of status. The clash of 1935 is reminiscent of similar ones in other areas between lower castes on the rise and higher established castes. [1]

The Jat demonstrations broke out in Sikar, the largest thikana in Jaipur State, and involved both economic and social issues. The Jats in the area had formed two associations, the Sikarwati Jat Panchayat and the Jat Kisan Sabha, and had received some help and encouragement from the British Indian province of Uttar Pradesh. Some of these "outsiders" were organizers for the socialist-oriented Kisan Sabha which attempted to mobilize the peasantry in the 1930's in response to radical pressures in the Congress. [2]

The initial demonstration in Khuri village on March 27, 1935, was occasioned by a social issue, whether a Jat bridegroom should be allowed to ride to his bride's house on a horse, a ceremonial act asserting higher station than Rajputs were prepared to concede. The Rajputs objected, the Jats insisted, fighting broke out, and an old Jat was killed. The incident led to further clashes, and the thikana police, the Sikar Lancers, under command of the English chief of the Sikar police, charged the Jat crowds with lathis (quarter-staffs), injuring many. This incident was followed by others as Jats in the area protested against the revenue collections and resisted and attacked Sikar revenue officials on April 22 at Bhaironpura and at Kudan village on April 25. The Sikar police killed four Jats while putting down this last demonstration and arrested 104 persons. The anti-rent agitation eventually involved some twenty-one villages, and local headmen were as active as any outsiders. A school where, according to the Jaipur durbar, unlawful doctrines were being preached by a Jat teacher from outside the state, was knocked down. The agitation had some effects. The Rao Raja of Sikar remitted all arrears of revenue previous to 1934 and promised to open schools, provide loans where needed, and embark on a permanent land settlement that would introduce some certainty into the vagaries of the thikana's revenue demand. [3] [4]

शेखावाटी जाट किसान पंचायत का गठन

सीकरवाटी किसान जाट पंचायत - शेखावाटी के किसान संगठनों की श्रंखला में अंतिम कड़ी सन 1934 के जनवरी महीने में सीकर में संपन्न 'जाट प्रजापति महायज्ञ' के दौरान जुडी जो 'सीकरवाटी किसान जाट पंचायत' के रूप में सामने आई. इस संगठन ने सीकर ठिकाने के विरुद्ध सिंहनाद किया और एक जबरदस्त आन्दोलन को जन्म दिया. इस संस्था की स्थापना सीकर ठिकाने के किसान आन्दोलन के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने एक नवयुग के आगमन की घोषणा की. कालांतर में यह 'शेखावाटी जाट किसान पंचायत' बन गयी. जिसका नेतृत्व सरदार हरलाल सिंह ने संभाला.

सीकर में जागीरी दमन और सीकर जाट किसान पंचायत

ठाकुर देशराज[5] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।

उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।

उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन


[पृ 229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।

अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।

तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।

और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।

उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब


[पृ 230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।

इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। धिरकाबास में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।

ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।

लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।

सीकर की परिस्थिति और जयपुर दरबार का कर्तव्य

ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है ....[पृ.245]: सीकर की परिस्थिति के संबंध में चिंताजनक समाचार निरंतर आ रहे हैं। सीकर वाटी जाट पंचायत द्वारा भेजे गए जांच कमीशन ने बोसाणा गांव के समाचारों के संबंध में जो रिपोर्ट प्रकाशित की है वह अर्जुन में प्रकाशित हो चुकी है। कटराथल में 12,000 जाट महिलाओं की विराट सभा का समाचार भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। सब समाचारों को एकत्र करने पर मन पर यह असर पड़ता है कि सीकर में कठोर शासन का दौर दौरा चल रहा है। सीकर रईस की ओर से सफाई पेश करने का यत्न भी किया गया है।

सीकर के जाटों की सफलता

ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है ....ठिकाने ने जांच कमीशन नियुक्त कर दिया...जयपुर 29 मई 1934 : जाट पंचायत सीकर वाटी के महामंत्री देवा सिंह बोचल्या की प्रमुखता में लगभग 200 जाटों का एक डेपुटेशन सीकर के नए सीनियर अफसर एडबल्यू वेब से मिला और अपनी शिकायतें सुनाई। मिस्टर वेब ने उनकी बातों को सहानुभूति पूर्वक सुनकर बतलाया कि राव राजा सीकर ने आप लोगों की शिकायतों की जांच करने के लिए 8 व्यक्तियों का एक मिशन नियत करने की इजाजत दे दी है।

ठिकाने ने जांच कमीशन नियुक्त कर दिया

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....जयपुर 29 मई 1934 : जाट पंचायत सीकर वाटी के महामंत्री देवा सिंह बोचल्या की प्रमुखता में लगभग 200 जाटों का एक डेपुटेशन सीकर के नए सीनियर अफसर एडबल्यू वेब से मिला और अपनी शिकायतें सुनाई। मिस्टर वेब ने उनकी बातों को सहानुभूति पूर्वक सुनकर बतलाया कि राव राजा सीकर ने आप लोगों की शिकायतों की जांच करने के लिए 8 व्यक्तियों का एक मिशन नियत करने की इजाजत दे दी है। उसका प्रधान मैं स्वयं और मेंबर मेजर मलिक मुहम्मद सेन खां पुलिस तथा


[पृ.254]: जेलों के अफसर-इंचार्ज कैप्टन लाल सिंह, मिलिट्री मेंबर ठाकुर शिवबक्स सिंह, होम मेंबर और चार जाट प्रतिनिधि होंगे। चार जाटों में से दो नामजद किए जाएंगे और दो चुने जाएंगे।

आप ने यह भी कहा कि मुझे जाटों की शिकायतें कुछ अत्युक्तिपूर्ण मालूम पड़ती हैं तथापि यदि जांच के समय आंदोलन बंद रहा और शांति रही तो मैं जांच जल्दी समाप्त कर दूंगा और जाटों को कोई शिकायत नहीं रहेगी।

जाट जांच कमीशन की रचना से संतुष्ट नहीं हैं। न वे चारों जाट मेंबरों को चुनना ही चाहते हैं। वे झुंझुनू में एक सभा बुलाने वाले हैं। बोसना में भी एक पंचायत होगी इन दोनों सभाओं में मिस्टर वेब के ऐलान पर विचार होगा। (यूनाइटेड प्रेस)

इसके बाद राव राजा साहब और सीनियर साहब दोनों ही क्रमश: 2 जून और 6 जून सन 1934 को आबू चले गए।

आबू जाने से 1 दिन पहले सीनियर ऑफिसर साहब मिस्टर वेब ने सीकर वाटी जाट पंचायत को एक पत्र दिया जो पुलिस की मारफ़त उसे मिला। उसमें लिखा था, “हम चाहते हैं कि कार्यवाही कमीशन मुतल्लिका तहकीकात जाटान सीकर फौरन शुरू कर दी जावे। हम 15 जून को आबू से वापस आएंगे और नुमायदगान से जरूर सोमवार 18 जून सन 1934 को मिलेंगे। लिहाजा मुक्तिला हो कि जाट लीडरान जगह मुकर्रर पर हमसे जरूर मिलें।

सीनियर ऑफिसर के आबू जाने के बाद सीकर के जाट हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे। बराबर गांवों में मीटिंगें करते रहे। उन्होंने इन मीटिंगों में इस बात के प्रस्ताव पास किया, “जयपुर दरबार के सामने पेश की हुई हमारी मांगे


[पृ.255]: सर्वसम्मत हैं और हमारे ऐसी कोई भी पार्टी नहीं जो इन मांगों के विरुद्ध हो, सीकर के कर्मचारियों ने मिस्टर वेब को यह समझाया कि यहां के जाटों में दो पार्टियां हैं कतई झूट है” (नवयुग 12 जून 1934)

मि. वेब आबू से एक दो दिन की देर से वापस हुए। इसके बाद में शायद किसी जरूरी काम से जयपुर गए। इसलिए जाट पंचायत के प्रतिनिधियों से बजाय 18 जून 1934 के 22 जून 1934 को मुलाकात हुई। उन्होने पहली जुलाई तक कमीशन के लिए जाटों के नाम की लिस्ट देने को जाट पंचान से कहा और यह भी बताया कि राव राजा साहब ने ठिकाने में से सभी बेगार को उठा दिया है।

29 जून 1934 को राव राजा साहब भी आबू से वापस आ गए। कुछ किसानों ने रींगस स्टेशन पर उनसे मुलाकात करनी चाहिए किंतु नौकरों ने उन्हें धक्के देकर हटा दिया।

इससे पहले ही तारीख 24 जून 1934 को कूदन में सीकर वाटी के प्रमुख जाटों की एक मीटिंग कमीशन के लिए मेंबर चुनने के लिए हो चुकी थी। भरतपुर से ठाकुर देशराज और कुंवर रतन सिंह जी भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे। तारीख 25 जून 1934 को एक खुली मीटिंग गोठड़ा में हुई जिसमें रायबहादुर चौधरी छोटूराम और कुंवर रतन सिंह बाहर से तथा कुंवर पृथ्वी सिंह और चौधरी ईश्वर सिंह सीकर से जांच कमीशन के लिए चुने गए।

वेब का ऐलान 15 जुलाई 1934 अधूरा और निराशा पूर्ण

ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है .... इस एलान से सीकर के किसानों के दुख दूर नहीं हो सकते। 15 जुलाई 1934 को मिस्टर ए.डबल्यू.टी. वेब साहब सीनियर ऑफिसर सीकर ने राव राजा साहब सीकर की मंजूरी से ऐलान अपने इजलास से निकाला है, वह निराशाजनक है। ऐसा निर्णय सीकरवाटी जाट पंचायत अपने विशेष मीटिंग द्वारा 16000 की उपस्थिति में 29 जुलाई 1934 को कर चुकी है। सीकर के समस्त किसान जिन कारणों और कमियों से एलान को अपूर्ण और निराशाजनक समझते हैं, वह इस एलान में जोकि पंचायत द्वारा प्रकाशित कराया जाता है..... इसलिए वह तब तक स्वीकार होना कठिन है जब तक सीकर वाटी जाट पंचायत द्वारा विस्तार से दी गई लिखित बातों का उसमें समावेश और संशोधन न हो जाए। ....देवासिंह बोचल्या, मंत्री सीकर वाटी जाट क्षत्रिय पंचायत

23 अगस्त 1934 का समझौता (तसफिया नामा)

ठाकुर देशराज[10] ने लिखा है .... यह तसफिया नामा आज 23 अगस्त 1934 को मुकाम सीकर इस गर्ज से तहरीर हुआ कि सीकर और जाटान सीकर के देरीना झगड़े का खात्मा किया जाए।

सीकर की जानिब से ए. डब्ल्यू. टी. वेब ऐस्क्वायर सीनियर ऑफिसर सीकर, दीवान बालाबक्स, रेवेन्यू अफसर और मेजर मलिक मोहम्मद हुसैन खान अफसर इंचार्ज पुलिस, किशोर सिंह, मंगलचंद मेहता और विश्वंभर प्रसाद सुपी: कस्टम।


[पृ.268]

जाटान की तरफ से

मंदरजे जेर बातें दोनों फरीको ने मंजूर की और जाट पंचायत ने यह समझ लिया है कि यह फैसला जब जरिए रोबकारे जारी किया जाएगा तमाम जाटान सीकर इसकी पूरी पाबंदी करेंगे। अलावा इसके उन्होंने उस अमल का इकरार किया है कि उस फैसले के बाद जो जरिए हाजा किया जाता है आइंदा कोई एजीटेशन नहीं होगा और वह एजीटेशन को बंद करते हैं।

1. लगान

() संवत 1990 का बकाया लगान 30 दिन के अंदर अदा किया जाएगा अगर कोई काश्तकार अपना कुछ भी बकाया लगान फौरन अदा करने में वाकई नाकाबिल है तो वह एक दरख्वास्त इस अमल की पेश करेगा कि इसके मुझे इस कदर मुतालबा दे और इसकी वसूली मुनासिब सरायल पर एक या ज्यादा साल में फरमापी जावे। राज ऐसी दरख्वास्तों को, जो वाकई सच्ची होंगी, वह उस पर गौर करेगा और उनसे बकाया रकम पर सूद नहीं लेगा अगर बकाया 20 दिन के अंदर तारीख इजराय नोटिस जेर फिकरा हजा से जमा करा दी जावेगी तो सूद माफ किया जाएगा।

(बी) बकाया लगान संवत 1990 का हिसाब लगाते वक्त जो कभी जेरे ऐलान मुवरखा 15 जुलाई 1934 को दी जानी मंजूर की गई है यह मुजरा दी जावेगी। जिन काश्तकारान ने जेर ऐलान जायद अदा कर दिया है जावेद


[पृ.269]: अदा सुदा रकम उनको उसी सूद के साथ वापस की जाएगी कि जिस शरह से कि उनसे सूद लिया जाता है।

(सी) आइंदा के लिए यह हरएक काश्तकार की मर्जी पर होगी कि वह बटाई देवे या लगान मौजूदा शरह से। बटाई का हिसाब हस्ब जेल होगा।

(i) हर साल कम अज कम 75 फ़ीसदी जमीन का रकबा कास्त हरएक काश्तकार को करना होगा।
(ii) रकबा काश्त की पैदावार में से आधा हिस्सा अनाज और तिहाई हिस्सा तरीका बतौर बटाई लेवेगा। रब्बा जो कास्ट नहीं किया जाएगा उस पर हर साल दो ने फी बीघा हिसाब से नकद लिया जाएगा।
2. जेल

जेल सीकर की तरतीब की जाकर बाकायदा बनाई जाएगी और आइंदा मेडिकल अफसर या जुडिशल अफसर के चार्ज में रहेगी। जेल पुलिस अफसर के चार्ज में नहीं रहेगी

3. बेगार

जैसा की ऐलान किया गया है तमाम बेगार बंद की जाती हैं। कसबात में किराए पर बैलगाड़ी और ऊंट चलाने के लिए लाइसेंस असली कीमत पर दिया जाएगा। देहात में अगर राज के मुलाजिम को वार वरदारी की जरूरत होगी वह इंडेंट मेहता को दे देगा जो वारवारदारी का इंतजाम करेगा और काश्तकार को एक याददाश्त पर्छ दिया जाएगा जिसमें दर्ज किया जावेगा कि काश्तकार इस कदर फासले पर ले जाना है। बारबरदारी को शरह किराया वही होगी जो अब


[पृ.270]: राज्य में है मगर खाली वापसी सफर की सूरत में किराएदार को निशंक किराया दिया जावेगा।

4. सीकर दफ्तर की तहरीरात किस जबान में हो

आइंदा से दफ्तर सीकर की जबान हिंदी मुकर्रर की जाती है।

5. अंदरुनी जकात

जो अस आय इलाके सीकर के अंदर एक देहात से दूसरे देहात में ले जाई जावे उन पर आइंदा से जकात नहीं ली जाएगी। घी और तंबाकू पर जकात आइंदा से खुर्दा फ़रोसों से ली जावेगी जिनको लाइसेंस हासिल करने होंगे। जिनके कवायद मुर्त्तिव किए जाएंगे।

मुंदरजा वाला से मौजूदा आइंदा कायम होने वाली म्युनिसिपल कमेटियों के हदूद दरबारे लगान चुंगी उन चीजों पर कि जो उनके म्युनिसिपल हदूद के अंदर आवे कोई असर नहीं होगा।

6. लाग बाग

सब लालबाग जो जमीन के कर की परिभाषा में नहीं आती है हटा दी जाएंगी।

7. जमीन पर हकूक

बंदोबस्त के समय जयपुर के टेनेंसी एक्ट के अनुसार जमीन पर किसानों के मौरूसी हक़ होंगे।

8. पंचायत स्वीकृत संस्था

लगान तय करते समय बंदोबस्त में जाट पंचायत से सलाह ली जाएगी।


[पृ.271]

9. मंत्री रिहा

पंचायत के मंत्री ठाकुर देवी सिंह जी बोचल्या को बिना शर्त छोड़ दिया जाएगा।

इस फैसले का प्रभाव: जाटों और ठिकाने के बीच यह जो फैसला हुआ समाचार पत्रों ने प्रसन्नता प्रकट की और दोनों पक्षों को इसे निभाने की सलाह दी। यहां तक हिंदी के कुछ समाचार पत्रों के अग्रलेख और टिप्पणियां देते हैं।

1934 में सीकर यज्ञ के बाद का आन्दोलन

वर्ष 1934 में सीकर में यज्ञ के सफल आयोजन से सीकर और दूसरे ठिकानेदार बौखला उठे थे. यज्ञ के बाद दस दिन तक अपनी तकलीफों का विश्लेषण किया. महायज्ञ के समय हाथी को भगवा देने तथा हाथी पर बैठकर सभापति का जुलुस न निकालने देने से जाट सीकर रावराजा से नाराज थे. उन्होंने वहीँ यज्ञ की समाप्ति के बाद एक तम्बू में बैठकर ठाकुर देशराज की अध्यक्षता में यह निर्णय लिया की अब किसानों व ठिकानेदारों के अधिकारों का खुलासा करने के लिए पहले सीकर ठिकाने के सवाल को ही उठाया जय तथा उसके बाद छोटे ठिकानेदारों द्वारा होने वाली मनमानियों का खात्मा हो तथा निरंतर बढ़ने वाला शोषण समाप्त हो. इसके लिए सीकर जाट किसान पंचायत की स्थापना की गयी. सीकर के प्रमुख लोगों को इसमें लिया गया और दफ्तरी काम के लिए तथा अन्य काम में अनुभव होने से ठाकुर देवसिंह बोचल्या को इसका जनरल सेक्रेटरी नियुक्त किया. ठाकुर देशराज ने इस पूरे काम की देखरेख तथा बाहरी लोकमत बनाने में प्रचार प्रसार का काम हाथ में लिया. [11]

23 अगस्त 1934 ई. को किसानों व ठिकानेदारों के बीच समझौता

किसान 23 अगस्त 1934 के समझौते से संतुष्ट हो गए और अपने काम धंधे लग गए. किसानों की सफलता से ठिकाने के अधिकारी और राजपूत जागीरदार नाराज थे. वे समझौते खो ख़त्म करने के लिए षडयंत्र रचने लगे. अधिकारी कभी गोचर भूमि पर लगान लगाने की बात करते तो कभी घी , तम्बाकू पर जो कस्टम माफ़ हो गया था, उसे फिर लगाने की बात करते. ठिकाने के अधिकारियों ने बेईमानी करना शुरू कर दी. चैनपुरा के चौधरी के पास लगान चुकाने की रशीद थी फिर भी लगान दुबारा माँगा गया. जिन खेतों को किसानों ने कभी जोता नहीं था और जिनमें ठिकाने ने ही घास पैदा करवाई थी, उन खेतों का लगान भी माँगा जाने लगा. ये छोटी बातें तो किसानों ने बर्दास्त कर ली लेकिन ठिकाने ने फसल ख़राब हालत देखते हुए भी समझौते के खिलाफ सीकर जाट पंचायत से राय लिए बिना लगान ज्यादा तय कर दिया तो चौधरियों ने इसका प्रतिरोध किया. किसान संगठित होने लगे और और लगान की वसूली बिलकुल बंद हो गयी. [12]

देवीसिंह बोचल्या की गिरफ़्तारी पर विचार करने के लिए शेखावाटी के प्राय: प्रमुख व्यक्ति सीकर पहुंचे. ठाकुर देशराज भी सीकर पहुँच गए. सब लोगों ने सीकर के पास भैरूपुरा में बैठक की. इसमें देवी सिंह की गिरफ़्तारी का विरोध किया गया तथा किसान पंचायत ने गोरुसिंह कटराथल को मंत्री नियुक्त कर उन्हें पूरा अधिकार दिया गया कि वे अपने स्तर पर कुछ भी निर्णय ले सकते हैं. सीकर में इकट्ठे होने वाले जाटों की संख्या को देख कर सीकर के अधिकारी घबरा गए. उन्होंने पंचों को गेस्ट हाऊस में बुलाया और अपनी तकलीफें बताने को कहा. पञ्च लोग अधिकारियों से मिले. अफसरों द्वारा साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति अपनाई गयी पर स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. अंत में विवश होकर मि. वेब ने फिर समझौते की बातचीत चलाई. कुंवर रतन सिंह, ठाकुर झम्मन सिंह एडवोकेट एवं मंत्री अखिल भारतीय जाट महासभा, विजयसिंह पथिक आदि के सहयोग से 23 अगस्त 1934 ई. को किसानों व ठिकानेदारों के बीच समझौता हो गया. ठिकाने की और से ए.डब्ल्यू. टी.वेब, प्रशासक सीकर, दीवान बालाबक्ष रेवेन्यु अफसर, मेजर मलिक मोहम्मद हुसैन खान अफसर इंचार्ज पुलिस आदि तथा किसानों की और से हरीसिंह बुरड़क पलथाना, अध्यक्ष सीकरवाटी जाट पंचायत, गोरुसिंह कटराथल, उपमंत्री जाट किसान पंचायत, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, ईश्वरसिंह भैरूपुरा तथा पन्नेसिंह बाटड ने समझौते पर हस्ताक्षर किये. [13]

किसानों के लिए भारी सफलता

इस समझौते के अनुसार मास्टर चंद्रभानसिंह तथा देवासिंह को रिहा कर दिया गया. समझौते में संवत सन 1933 का लगान एक माह के भीतर देना था. सन 1934 में लगान नहीं बढेगा. फसल ख़राब हुई तो लगान कम किया जायेगा. सन 1934 के पश्चात् लगान एक निश्चित समय के लिए तय किया जायेगा. इसके लिए किसान पंचायत से सलाह-मशविरा किया जायेगा. यथाशीघ्र भूमि का बंदोबस्त किया जायेगा. प्रत्येक तहसील में दो-दो किसान प्रतिनिधि चुने जायेंगे जो किसानों की समस्याओं बाबत मि . वेब से बातचीत करते रहेंगे. समस्त लाग-बाग़ समाप्त की जाएँगी. जयपुर रियासत के कानून के अनुसार जमीन पर किसान का मौरूसी अधिकार होगा. किसान पंचायत द्वारा सुझाये पांच गाँवों में सीकर ठिकाने द्वारा स्कूलें खोली जाएँगी. गोचर भूमि सबके उपयोग के लिए रहेगी. जाटों को भी सरकारी नौकरी में रखा जायेगा. ठिकाने की सीमाओं में माल लाने-ले जाने में जकात नहीं ली जाएगी. इस समझौते में बेगार, नजराना, चिकित्सा आदि के बारे में उचित आदेश दिए गए. [14]

यह समझौता किसानों के लिए भारी सफलता थी क्योंकि इसमें ठिकाने से अनेक रियायतें व सुविधाएँ किसानों को प्राप्त हुई थीं. यह किसानों की सामंती शक्ति के खिलाफ न केवल भारी विजय थी बल्कि किसानों की संस्था सीकरवाटी जाट किसान पंचायत को भी मान्यता दी गयी थी जो किसानों के हितों के लिए संघर्ष कर रही थी. इस समझौते द्वारा किसानों की अधिकांश मांगे मान ली गयी थी. [15]

15 मार्च 1935 का समझौता

जब यह देखा गया कि राजस्व वसूली नहीं हो रही है, कानून व्यवस्था उत्तरोत्तर ख़राब होती जा रही है , सीकर के सीनियर अफसर वेब ने ठिकाने में चलने वाले इस संकट को ख़त्म करने हेतु सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के प्रतिनिधियों को वार्ता के लिए फिर आमंत्रित किया. पंचायत ने अपनी और से दो प्रतिनिधि सर छोटूराम और कुंवर रतनसिंह भरतपुर को वार्ता करने हेतु नियुक्त किया. अंत में 10 मार्च 1935 ई. को मि. वेब से एक समझौता हो गया. समझौते के अनुसार रावराजा सीकर ने 15 मार्च 1935 को पिछली रियायतों के अलावा निम्न सहूलियतें और देने की घोषणा की- शीघ्र लगान अदा करने वालों को छूट, यूरोपीय अनुभवी सेटलमेंट आफिसर नियुक्त करना, जाट आफिसरों को उच्च पदों पर नियुक्त करना, जाटों द्वारा हाथी पर सवारी पर कोई रोक न लगाना, लगान में मतभेद होने पर उचित जाँच करना, जेल गए जाटों को छोड़ना, सात बीघा का एक प्लाट उपयुक्त जगह पर 'जाट बोर्डिंग हाऊस' हेतु निशुल्क आवंटित करना.[16]


सन्दर्भ

  1. Princely States Report
  2. Princely States Report
  3. Amrit Bazar Patrika, April 4, 1935; Statesmen, April 4 and 18, Mayj2 and 16, June 6, 1935; Times (London), April 30 and July 5, 1935. Barnett R. Rubin, Feudal Revolt
  4. Princely States Report
  5. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.228-230
  6. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.245
  7. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.254
  8. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.253-255
  9. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.262-267
  10. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.267-271
  11. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.90
  12. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.111-112
  13. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.108
  14. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 126
  15. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.110
  16. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.114-115

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