Ishwar Singh Bhamu

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Author:Laxman Burdak IFS (R)

Ishwar Singh Bhamu (ईश्वरसिंह भामू ) (b. 1885-d.4 January 1973) was a leading Freedom Fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. He was born on samvat 1942 kartik sudi dooj in the family of Chaudhary Mota Ram Bhamu in village Bhainrupura in Sikar district in Rajasthan. His wife was Manshi Devi who also took leading part in Shekhawati farmers movement.

Shekhawati farmers movement

He started social service from 1935 when Jat Prajapati Mahayagya was organized at Sikar against the misrule and oppression of farmers by the Jagirdars. His village was attacked by Rao Kalyan Singh, the Jagirdar of Sikar in 1935. His house was damaged and Ishwar Singh Bhamu along with his wife were badly injured. He was also badly injured in Khudi kand. He was member of the committee appointed in 1946 with the efforts of Thakur Bheru Singh General for agreement between Jat farmers and the Rajput thikanedars. He strongly pleaded for arriving at some agreement but thikanedars refused to do so.

Shekhawati Movement Leaders: Sitting from left are Hari Singh Burdak, Prithvi Singh Bhukar, Ishwar Singh Bhamu and others

He was one of the important leaders of the farmers' organization constituted in 1945-46 for the Jaipur state.

He was elected MLA in 1952 and defeated Ramdev Singh Mahria of Congress.[1]

He was one of the leaders who negotiated with Rao Raja Sikar for Jat Boarding House at Sikar.

Demand of Jat Boarding at Sikar

He was one of the leaders who negotiated with Rao Raja Sikar for Jat Boarding House at Sikar. Jats demanded land for Jat Boarding House near Sikar railway station. Rao Raja Sikar did not accept this demand because he was not in favour of educating people. It was for the good luck of the farmers of Sikar that differences developed between Rao Raja Sikar and Maharaja of Jaipur state in the end of 1937. The differences were of so much magnitude that Rao Raja Sikar Kalyan Singh was punished exile to Delhi. At this juncture the Jats of Sikar supported Maharaja Jaipur. As per court order Sikar thikana came under direct control of Jaipur state. Wife of Kalyan Singh requested Prime Minister of Jaipur state Raja Gyan Nath to get Kalyan Singh freed from exile. Gyan Nath put forward a condition that it is possible to free Kalyan Singh only when the Jat leaders of Sikar thikana give him in writing this request. Rani of Sikar was now forced to invite the Jat leaders of Sikar thikana who put before her the demand for land allotment for constructing Jat Boarding house near Sikar railway station. In order to apprise Rao Raja Sikar at Delhi and get consent from him she sent two representatives of Jat leaders from each tehsil on government expenses.

Jat leaders to negotiate:

The Jat leaders selected for this purpose were as follows:

Sikar tehsil

1. Hari Singh Burdak, Palthana

2. Ishwar Singh Bhamu, Bhainrupura

Laxmangarh tehsil

1. Panne Singh Batar, Bataranau

2. Lekh Ram Dotasara, Kaswali

Fatehpur tehsil

1. Mansa Ram Thalor, Narsara

2. Kanhaiya Lal Mahla, Swarupsar

Rao Raja Sikar Kalyan Singh discussed the demands of above leaders at Delhi and agreed to allot the land for Jat Boarding near railway station after which the Jat leaders gave the request in writing to Raja Gyan Nath to free Kalyan Singh from exile.

The punishment of exile of Rao Raja Kalyan Sing ended in August 1942, when he came back to Sikar with the powers to rule Sikar thikana. Rao Raja Sikar allotted 12 bigha of land for Jat Boarding near Sikar railway station and inaugurated it on basant panchami of samvat 1999 (February 1943).

After this the construction of Hostels started under the guidance of Ishwar Singh Bhamu and Kalu Ram Sunda. Meanwhile, Master Kanhaiya Lal Mahla started hostel under a shed. In 1945 Sir Chhotu Ram inaugurated this Jat hostel. Ranmal Singh, Katrathal retired from teacher and started helping in the running of this. By 1946 there were 15 rooms and two kitchens, with boundary wall around it. The hall was constructed with the help of Burdak Jats of Palthana. One room each was constructed by Rao Raja Sikar, Ch. Gopiram, Ch. Udaram Mawa of Dadia, Ch. Ishwar Singh Bhamu, Ch Gopal Ram Fandan Rasidpura, Ch. Hari Ram Bhukar Gothra Bhukaran. Rest of the rooms were constructed with collective contribution from Jats of various villages.

Death

He died on 4 January 1973

जाट जन सेवक

रियासती भारत के जाट जन सेवक (1949) पुस्तक में ठाकुर देशराज द्वारा चौधरी ईश्वरसिंह जी का विवरण पृष्ठ 295-297 पर प्रकाशित किया गया है । ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी ईश्वर सिंह जी - [पृ.295]: पहाड़ की चट्टान की तरह अडिग और मजबूत इरादों के चौधरी ईश्वर सिंह जी से सीकर वाटी का बच्चा-बच्चा परिचित है। संवत 1942 (1885 ई.) की कार्तिक सुदी 2 को उनका जन्म हुआ था। उनके पिता चौधरी मोटाराम जी भांबू गोत्र के जाट सरदार थे। आपका गांव सीकर ठिकाने में भैरूपुरा है।

सीकर के जाट महायज्ञ से आपका सार्वजनिक क्षेत्र में आगमन हुआ और तभी से बराबर अपने इलाके के जाट


[पृ.296] किसानों की हालत सुधारने के प्रयत्न में लगे हुए हैं। सन् 1935 में आपके गांव पर भी सीकर ठिकाने की फ़ौज पुलिस ने धावा किया और आपके मकान को लूट लिया। उस समय आप की धर्मपत्नी ने बड़ी वीरता के साथ आक्रमणकारी गुंडों का सामना किया। बदमाशों ने आप को पीटा भी किंतु आप दोनों स्त्री पुरुष क्षत्रियों की भांति दुश्मन से कभी नहीं झुके।

खुड़ी कांड में चौधरी ईश्वर सिंह के ऊपर बदमाशों ने इतनी लाठियां बरसाई कि महीनों तक उनकी हड्डी हड्डी दुखती रही।

सीकर वाटी में जाटों पर सबसे अधिक किसी एक आदमी का असर है तो वह चौधरी ईश्वर सिंह जी हैं। इसका कारण यह है कि वह हमेशा क्षेत्र में रहे हैं, कभी भी हटे नहीं और एक ही रास्ते पर रहे हैं। कोई लोभ लालच उन्हें दूसरे रास्ते पर नहीं ले जा सका। आप जेल भी गए तो अपने प्लेटफार्म से और अपने ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए।

प्रजामंडल और सेठ जमनालाल ने जब सन् 1940 में जयपुर के विरुद्ध सीकर ठिकाने का साथ दिया तब आप बराबर सीकर ठिकाने के विरुद्ध उसी प्रकार रहे जैसे कि सन् 1933 से चले आ रहे थे। इसके बाद हीरालाल और हरलाल के प्रवाह ने सैंकड़ों जाट सेवकों को उनके मार्ग से भ्रष्ट करके अपने साथ मिला लिया किंतु चौधरी ईश्वर सिंह प्रोढ़ शेर की भांति निश्चिंतता से अपने ही मार्ग पर रहे। यही नहीं कि वह उस समय अकेले पड़ गए हों नहीं उनका भी एक दल रहा जिसमें चौधरी हरि सिंह और हरदेव सिंह वगैरह उस दल के नेता रहे।

प्रजामंडलियों ने झुंझुनू जाट बोर्डिंग की भांति ही सीकर जाट बोर्डिंग को भी मिटाने की कोशिश की किंतु यह


[पृ.297] चौधरी ईश्वर सिंह और उनकी पार्टी का ही काम था कि उन्होंने अपने बोर्डिंग के नाम के साथ से जाट शब्द को नहीं मिटने दिया। अंशिगर और पर अंशी की बहाव में वह इस प्रकार पूरी तरह पास हुये।

चौधरी ईश्वर सिंह की इस दृढ़ता से उनके साख बढी और एक टाइम यह आया कि सन् 1945-46 में नए सिरे जयपुर राज्य के लिए जो किसान संगठन कायम हुआ उसके प्रमुख नेताओं में आपको स्थान मिला।

सन् 1946 में ठाकुर भैरो सिंह जनरल के प्रयत्न से जयपुर राज्य के जाट किसान और राजपूत ठिकानेदारों के बीच मौलिक समझोता होने के लिए जो कमेटी बनी उसमें भी आप मेंबर नियुक्त हुए और आपने बड़ी बुद्धिमानी के साथ अपने केस को रखा और उस प्रकार का समझौता हो जाता तो वह राजपूत और जाट दोनों के लिए ही अत्यंत हितकर होता किंतु ठिकानेदारों के प्रतिनिधियों के दिमाग उस समय तक सातवें आसमान पर थे।

चौधरी ईश्वर सिंह जी ने जहां अपना तन कौमी सेवा के लिए दे रखा है वहां धन देने में भी कभी नहीं हिचकते। आपने सीकर बोर्डिंग हाउस में अपने नाम पर ₹1000 की लागत से एक कमरा भी बनवाया है।

आप की अवस्था इस समय 60 साल से ऊपर है किंतु स्वास्थ्य और बल उनका 30 साल के नौजवान से बराबरी करता है।

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह[3] लिखते हैं कि [पृष्ठ-113]: सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने हमारे गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जाने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।

चैत्र सुदी प्रथमा को संवत बदल गया और विक्रम संवत 1992 प्रारम्भ हो गया। सीकर ठिकाने के जाटों ने लगान बंदी की घोषणा करदी, जबरदस्ती लगान वसूली शुरू की। पहले भैरुपुरा गए। मर्द गाँव खाली कर गए और चौधरी ईश्वरसिंह भामू की धर्मपत्नी जो चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथना की बहिन थी, ने ग्राम की महिलाओं को इकट्ठा करके सामना किया तो कैप्टेन वेब ने लगान वसूली रोकदी। चौधरी बक्साराम महरिया ने ठिकाने को समाचार भिजवा दिया कि हम कूदन में लगान वसूली करवा लेंगे।

कूदन ग्राम के पुरुष तो गाँव खाली कर गए। लगान वसूली कर्मचारी ग्राम कूदन की धर्मशाला में आकर ठहर गए। महिलाओं की नेता धापू देवी बनी जिसका पीहर ग्राम रसीदपुरा में फांडन गोत्र था। उसके दाँत टूट गए थे, इसलिए उसे बोखली बड़िया (ताई) कहते थे। महिलाओं ने काँटेदार झाड़ियाँ लेकर लगान वसूली करने वाले सीकर ठिकाने के कर्मचारियों पर आक्रमण कर दिया, अत: वे धर्मशाला के पिछवाड़े से कूदकर गाँव के बाहर ग्राम अजीतपुरा खेड़ा में भाग गए। कर्मचारियों की रक्षा के लिए पुलिस फोर्स भी आ गई। ग्राम गोठड़ा भूकरान के भूकर एवं अजीतपुरा के पिलानिया जाटों ने पुलिस का सामना किया। गोठड़ा गोली कांड हुआ और चार जने वहीं शहीद हो गए। इस गोली कांड के बाद पुलिस ने गाँव में प्रवेश किया और चौधरी कालुराम सुंडा उर्फ कालु बाबा की हवेली , तमाम मिट्टी के बर्तन, चूल्हा-चक्की सब तोड़ दिये। पूरे गाँव में पुरुष नाम की चिड़िया भी नहीं रही सिवाय राजपूत, ब्राह्मण, नाई व महाजन परिवार के। नाथाराम महरिया के अलावा तमाम जाटों ने ग्राम छोड़ कर भागे और जान बचाई।


[पृष्ठ-114]: कूदन के बाद ग्राम गोठड़ा भूकरान में लगान वसूली के लिए सीकर ठिकाने के कर्मचारी पुलिस के साथ गए और श्री पृथ्वीसिंह भूकर गोठड़ा के पिताजी श्री रामबक्स भूकर को पकड़ कर ले आए। उनके दोनों पैरों में रस्से बांधकर उन्हें (जिस जोहड़ में आज माध्यमिक विद्यालय है) जोहड़े में घसीटा, पीठ लहूलुहान हो गई। चौधरी रामबक्स जी ने कहा कि मरना मंजूर है परंतु हाथ से लगान नहीं दूंगा। उनकी हवेली लूट ली गई , हवेली से पाँच सौ मन ग्वार लूटकर ठिकाने वाले ले गए।

कूदन के बाद जाट एजीटेशन के पंचों – चौधरी हरीसिंह बुरड़क, पलथना, चौधरी ईश्वरसिंह भामु, भैरूंपुरा; पृथ्वी सिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; चौधरी पन्ने सिंह बाटड़, बाटड़ानाऊ; एवं चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल (मंत्री) कटराथल – को गिरफ्तार करके देवगढ़ किले मैं कैद कर दिया। इस कांड के बाद कई गांवों के चुनिन्दा लोगों को देश निकाला (ठिकाना बदर) कर दिया। मेरे पिताजी चौधरी गनपत सिंह को ठिकाना बदर कर दिया गया। वे हटूँड़ी (अजमेर) में हरिभाऊ उपाध्याय के निवास पर रहे। मई 1935 में उन्हें ठिकाने से निकाला गया और 29 फरवरी, 1936 को रिहा किया गया।

जब सभी पाँच पंचों को नजरबंद कर दिया गया तो पाँच नए पंच और चुने गए – चौधरी गणेशराम महरिया, कूदन; चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथाना; चौधरी जवाहर सिंह मावलिया, चन्दपुरा; चौधरी पन्नेसिंह जाखड़; कोलिडा तथा चौधरी लेखराम डोटासरा, कसवाली। खजांची चौधरी हरदेवसिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; थे एवं कार्यकारी मंत्री चौधरी देवीसिंह बोचलिया, कंवरपुरा (फुलेरा तहसील) थे। उक्त पांचों को भी पकड़कर देवगढ़ किले में ही नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद पाँच पंच फिर चुने गए – चौधरी कालु राम सुंडा, कूदन; चौधरी मनसा राम थालोड़, नारसरा; चौधरी हरजीराम गढ़वाल, माधोपुरा (लक्ष्मणगढ़); मास्टर कन्हैयालाल महला, स्वरुपसर एवं चौधरी चूनाराम ढाका , फतेहपुरा

चौधरी ईश्वरसिंह का जीवन परिचय

चौधरी ईश्वरसिंह भामू का जन्म वि.सं. 1942 (1885 ई.) की कार्तिक सुदी 2 को चौधरी मोटाराम के घर गाँव भैरूपुरा में हुआ. ईश्वरसिंह का संयुक्त परिवार था. उनके दादा भोमाराम के वंशज, जो पांच परिवारों में विभक्त हो चुके थे, एक पोली के भीतर रहते थे. इसे 'बूढली पोली' कहा जाता था. ईश्वरसिंह के एक बेटी थी जिसका नाम सुखदेवी था. प्रारंभ में ईश्वरसिंह भी उन चौधरियों में थे, जो जागीरदारों के साथ होते थे. किसान आन्दोलन शुरू होने के पश्चात् ईश्वर सिंह ठिकानेदारों की आँखों में सबसे अधिक खटकने लगे थे. [4]

जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[5]

दो बार विधायक रह चुके कूदन के रामचंद्रसिंह सुंडा कहते हैं कि -

"ईश्वर सिंह निडर और बहादुर व्यक्ति थे. सच बात कहने से कभी चूकते नहीं थे, भले ही सामने वाला कितना ही बड़ा व्यक्ति क्यों न हो. एक बार ईश्वर सिंह को जेल डाल दिया था. एक सिपाही उन्हें देखने आया और फूहड़ भाषा में बोला, 'तुझे हमने बहुत ढूँढा था, पता नहीं तुम कहाँ छुप गए थे.' ईश्वर सिंह कुछ क्षण सिपाही को देखते रहे और फिर एक तमाचा कस कर मारते हुए बोले, 'बड़ों से कैसे बात करनी है, यह भी पता नहीं' सिपाही भौंचक्का रह गया. कोई अन्य न देख ले, यही सोच चुपचाप चला गया. किसान नेताओं के दुस्साहस का यह उदहारण है. पृथ्वी सिंह गोठडा के विरुद्ध शिवबक्षराम ने गवाही दी थी. जब वे गवाही देने जयपुर जा रहे थे, सीकर रेलवे स्टेशन पर, ट्रेन में बैठे शिवबक्स राम से अनेक लोगों ने अनुरोध किया था कि वे पृथ्वीसिंह के विरुद्ध गवाही देने न जावें. शिवबक्स राम ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया." [6]


सामंती जुल्मों का आपने प्रत्यक्ष अनुभव किया. आयु का काफी भाग उन्होंने सामंतों से टक्कर लेने में बिताया. आप शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए परन्तु शिक्षा का महत्व समझते थे. रूढ़िवादी और धार्मिक पाखंडों का हमेशा विरोध किया. आपने सीकर ठिकाने के लाग-बाग़, बेगार-प्रथा और जुल्मों का डटकर विरोध किया. इसके लिए वे कई बार जेल गए. सीकर ठिकाने में देवगढ़ किला एक तरह से 'कालापानी' समझा जाता था और यहाँ बंदियों को कठोर यातनाएं दी जाती थी. ईश्वर सिंह की दिलेरी ने इन यातनाओं की कभी परवाह नहीं की. जिस दिन उन्हें रिहा किया जाता, उसी दिन वे पुन: किसान आन्दोलन में सम्मिलित हो जाते थे. पृथ्वी सिंह के पश्चात् ईश्वर सिंह सीकर वाटी में अधिक लोकप्रिय थे. सं 1932 में जब झुंझुनू में विशाल किसान रैली हुई तब ईश्वर सिंह ने उत्साह से भाग लिया. सं 1934 में सीकर में प्रजापति यज्ञ हुआ तब आप एक जन-नेता के रूप में उभरे. सीकर में जब किसान पंचायत की स्थापना हुई तो पांच बड़े किसान नेता के रूप में आप भी चुने गए थे.[7]

सीकर में जागीरी दमन

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।

उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।

उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन


[पृ 229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।

अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।

तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।

और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।

उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब


[पृ 230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।

इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। धिरकाबास में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।

ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।

लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।

सार्वजनिक क्षेत्र में पदार्पण

सीकर के जाट महायज्ञ से आपका सार्वजनिक क्षेत्र में पदार्पण हुआ और तभी से बराबर इलाके के जाट किसानों की हालत सुधारने में लगे रहे. उस समय सीकर के किसानों में पांच बड़े नेता चुने गए थे : हरी सिंह बुरड़क पलथाना, ईश्वर सिंह भामू भैरूपुरा, गोरु सिंह कटराथल , पृथ्वी सिंह गोठडा और पन्ने सिंह. इन सभी पर सीकर ठिकाने की आँख थी. सं 1935 में सीकर ठिकाने ने आप के गाँव पर ठिकाने की फ़ौज के साथ हमला किया. आपके मकान को लूट लिया. खुड़ी काण्ड में आप के ऊपर बदमाशों ने इतनी लाठियां बरसाई की महीनों तक आपकी हड्डी-हड्डी दुखती रही. सीकरवाटी में जाटों पर सबसे अधिक किसी एक आदमी का असर था तो वे चौधरी ईश्वर सिंह थे क्योंकि वे हमेशा क्षेत्र में रहे, कभी हटे नहीं और एक ही रस्ते पर चले. [9]

सत्ता का लालच उन्हें कभी नहीं रहा. आप हमेशा किसान-मजदूर हितैषी के रूप में जाने जाते रहे हैं. वे गाँव, गरीब और किसान, मजदूर के लिए हमेशा तत्पर रहे और संघर्ष का बिगुल बजाते रहे. यही कारण है की जब किसान सभा का प्रजामंडल में विलय हुआ तो ईश्वर सिंह ने विरोध किया. मात्र एक के बहुमत से यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था. सं 1952 में प्रथम आम चुनाव में वे किसान सभा की और से सिंगरावट निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए. उनके कोई संतान नहीं थी और पूरे सीकर जिले को अपना परिवार समझते थे. [10]

ठिकाने ने जांच कमीशन नियुक्त कर दिया

ठाकुर देशराज[11] ने लिखा है ....जयपुर 29 मई 1934 : जाट पंचायत सीकर वाटी के महामंत्री देवा सिंह बोचल्या की प्रमुखता में लगभग 200 जाटों का एक डेपुटेशन सीकर के नए सीनियर अफसर एडबल्यू वेब से मिला और अपनी शिकायतें सुनाई। मिस्टर वेब ने उनकी बातों को सहानुभूति पूर्वक सुनकर बतलाया कि राव राजा सीकर ने आप लोगों की शिकायतों की जांच करने के लिए 8 व्यक्तियों का एक मिशन नियत करने की इजाजत दे दी है। उसका प्रधान मैं स्वयं और मेंबर मेजर मलिक मुहम्मद सेन खां पुलिस तथा


[पृ.254]: जेलों के अफसर-इंचार्ज कैप्टन लाल सिंह, मिलिट्री मेंबर ठाकुर शिवबक्स सिंह, होम मेंबर और चार जाट प्रतिनिधि होंगे। चार जाटों में से दो नामजद किए जाएंगे और दो चुने जाएंगे।

आप ने यह भी कहा कि मुझे जाटों की शिकायतें कुछ अत्युक्तिपूर्ण मालूम पड़ती हैं तथापि यदि जांच के समय आंदोलन बंद रहा और शांति रही तो मैं जांच जल्दी समाप्त कर दूंगा और जाटों को कोई शिकायत नहीं रहेगी।

जाट जांच कमीशन की रचना से संतुष्ट नहीं हैं। न वे चारों जाट मेंबरों को चुनना ही चाहते हैं। वे झुंझुनू में एक सभा बुलाने वाले हैं। बोसना में भी एक पंचायत होगी इन दोनों सभाओं में मिस्टर वेब के ऐलान पर विचार होगा। (यूनाइटेड प्रेस)

इसके बाद राव राजा साहब और सीनियर साहब दोनों ही क्रमश: 2 जून और 6 जून सन 1934 को आबू चले गए।

आबू जाने से 1 दिन पहले सीनियर ऑफिसर साहब मिस्टर वेब ने सीकर वाटी जाट पंचायत को एक पत्र दिया जो पुलिस की मारफ़त उसे मिला। उसमें लिखा था, “हम चाहते हैं कि कार्यवाही कमीशन मुतल्लिका तहकीकात जाटान सीकर फौरन शुरू कर दी जावे। हम 15 जून को आबू से वापस आएंगे और नुमायदगान से जरूर सोमवार 18 जून सन 1934 को मिलेंगे। लिहाजा मुक्तिला हो कि जाट लीडरान जगह मुकर्रर पर हमसे जरूर मिलें।

सीनियर ऑफिसर के आबू जाने के बाद सीकर के जाट हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे। बराबर गांवों में मीटिंगें करते रहे। उन्होंने इन मीटिंगों में इस बात के प्रस्ताव पास किया, “जयपुर दरबार के सामने पेश की हुई हमारी मांगे


[पृ.255]: सर्वसम्मत हैं और हमारे ऐसी कोई भी पार्टी नहीं जो इन मांगों के विरुद्ध हो, सीकर के कर्मचारियों ने मिस्टर वेब को यह समझाया कि यहां के जाटों में दो पार्टियां हैं कतई झूट है” (नवयुग 12 जून 1934)

मि. वेब आबू से एक दो दिन की देर से वापस हुए। इसके बाद में शायद किसी जरूरी काम से जयपुर गए। इसलिए जाट पंचायत के प्रतिनिधियों से बजाय 18 जून 1934 के 22 जून 1934 को मुलाकात हुई। उन्होने पहली जुलाई तक कमीशन के लिए जाटों के नाम की लिस्ट देने को जाट पंचान से कहा और यह भी बताया कि राव राजा साहब ने ठिकाने में से सभी बेगार को उठा दिया है।

29 जून 1934 को राव राजा साहब भी आबू से वापस आ गए। कुछ किसानों ने रींगस स्टेशन पर उनसे मुलाकात करनी चाहिए किंतु नौकरों ने उन्हें धक्के देकर हटा दिया।

इससे पहले ही तारीख 24 जून 1934 को कूदन में सीकर वाटी के प्रमुख जाटों की एक मीटिंग कमीशन के लिए मेंबर चुनने के लिए हो चुकी थी। भरतपुर से ठाकुर देशराज और कुंवर रतन सिंह जी भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे। तारीख 25 जून 1934 को एक खुली मीटिंग गोठड़ा में हुई जिसमें रायबहादुर चौधरी छोटूराम और कुंवर रतन सिंह बाहर से तथा कुंवर पृथ्वी सिंह और चौधरी ईश्वर सिंह सीकर से जांच कमीशन के लिए चुने गए।

23 अगस्त 1934 का समझौता (तसफिया नामा)

ठाकुर देशराज[12] ने लिखा है .... यह तसफिया नामा आज 23 अगस्त 1934 को मुकाम सीकर इस गर्ज से तहरीर हुआ कि सीकर और जाटान सीकर के देरीना झगड़े का खात्मा किया जाए।

सीकर की जानिब से ए. डब्ल्यू. टी. वेब ऐस्क्वायर सीनियर ऑफिसर सीकर, दीवान बालाबक्स, रेवेन्यू अफसर और मेजर मलिक मोहम्मद हुसैन खान अफसर इंचार्ज पुलिस, किशोर सिंह, मंगलचंद मेहता और विश्वंभर प्रसाद सुपी: कस्टम।


[पृ.268]

जाटान की तरफ से

मंदरजे जेर बातें दोनों फरीको ने मंजूर की और जाट पंचायत ने यह समझ लिया है कि यह फैसला जब जरिए रोबकारे जारी किया जाएगा तमाम जाटान सीकर इसकी पूरी पाबंदी करेंगे। अलावा इसके उन्होंने उस अमल का इकरार किया है कि उस फैसले के बाद जो जरिए हाजा किया जाता है आइंदा कोई एजीटेशन नहीं होगा और वह एजीटेशन को बंद करते हैं।

1. लगान

() संवत 1990 का बकाया लगान 30 दिन के अंदर अदा किया जाएगा अगर कोई काश्तकार अपना कुछ भी बकाया लगान फौरन अदा करने में वाकई नाकाबिल है तो वह एक दरख्वास्त इस अमल की पेश करेगा कि इसके मुझे इस कदर मुतालबा दे और इसकी वसूली मुनासिब सरायल पर एक या ज्यादा साल में फरमापी जावे। राज ऐसी दरख्वास्तों को, जो वाकई सच्ची होंगी, वह उस पर गौर करेगा और उनसे बकाया रकम पर सूद नहीं लेगा अगर बकाया 20 दिन के अंदर तारीख इजराय नोटिस जेर फिकरा हजा से जमा करा दी जावेगी तो सूद माफ किया जाएगा।

(बी) बकाया लगान संवत 1990 का हिसाब लगाते वक्त जो कभी जेरे ऐलान मुवरखा 15 जुलाई 1934 को दी जानी मंजूर की गई है यह मुजरा दी जावेगी। जिन काश्तकारान ने जेर ऐलान जायद अदा कर दिया है जावेद


[पृ.269]: अदा सुदा रकम उनको उसी सूद के साथ वापस की जाएगी कि जिस शरह से कि उनसे सूद लिया जाता है।

(सी) आइंदा के लिए यह हरएक काश्तकार की मर्जी पर होगी कि वह बटाई देवे या लगान मौजूदा शरह से। बटाई का हिसाब हस्ब जेल होगा।

(i) हर साल कम अज कम 75 फ़ीसदी जमीन का रकबा कास्त हरएक काश्तकार को करना होगा।
(ii) रकबा काश्त की पैदावार में से आधा हिस्सा अनाज और तिहाई हिस्सा तरीका बतौर बटाई लेवेगा। रब्बा जो कास्ट नहीं किया जाएगा उस पर हर साल दो ने फी बीघा हिसाब से नकद लिया जाएगा।
2. जेल

जेल सीकर की तरतीब की जाकर बाकायदा बनाई जाएगी और आइंदा मेडिकल अफसर या जुडिशल अफसर के चार्ज में रहेगी। जेल पुलिस अफसर के चार्ज में नहीं रहेगी

3. बेगार

जैसा की ऐलान किया गया है तमाम बेगार बंद की जाती हैं। कसबात में किराए पर बैलगाड़ी और ऊंट चलाने के लिए लाइसेंस असली कीमत पर दिया जाएगा। देहात में अगर राज के मुलाजिम को वार वरदारी की जरूरत होगी वह इंडेंट मेहता को दे देगा जो वारवारदारी का इंतजाम करेगा और काश्तकार को एक याददाश्त पर्छ दिया जाएगा जिसमें दर्ज किया जावेगा कि काश्तकार इस कदर फासले पर ले जाना है। बारबरदारी को शरह किराया वही होगी जो अब


[पृ.270]: राज्य में है मगर खाली वापसी सफर की सूरत में किराएदार को निशंक किराया दिया जावेगा।

4. सीकर दफ्तर की तहरीरात किस जबान में हो

आइंदा से दफ्तर सीकर की जबान हिंदी मुकर्रर की जाती है।

5. अंदरुनी जकात

जो अस आय इलाके सीकर के अंदर एक देहात से दूसरे देहात में ले जाई जावे उन पर आइंदा से जकात नहीं ली जाएगी। घी और तंबाकू पर जकात आइंदा से खुर्दा फ़रोसों से ली जावेगी जिनको लाइसेंस हासिल करने होंगे। जिनके कवायद मुर्त्तिव किए जाएंगे।

मुंदरजा वाला से मौजूदा आइंदा कायम होने वाली म्युनिसिपल कमेटियों के हदूद दरबारे लगान चुंगी उन चीजों पर कि जो उनके म्युनिसिपल हदूद के अंदर आवे कोई असर नहीं होगा।

6. लाग बाग

सब लालबाग जो जमीन के कर की परिभाषा में नहीं आती है हटा दी जाएंगी।

7. जमीन पर हकूक

बंदोबस्त के समय जयपुर के टेनेंसी एक्ट के अनुसार जमीन पर किसानों के मौरूसी हक़ होंगे।

8. पंचायत स्वीकृत संस्था

लगान तय करते समय बंदोबस्त में जाट पंचायत से सलाह ली जाएगी।


[पृ.271]

9. मंत्री रिहा

पंचायत के मंत्री ठाकुर देवी सिंह जी बोचल्या को बिना शर्त छोड़ दिया जाएगा।

इस फैसले का प्रभाव: जाटों और ठिकाने के बीच यह जो फैसला हुआ समाचार पत्रों ने प्रसन्नता प्रकट की और दोनों पक्षों को इसे निभाने की सलाह दी। यहां तक हिंदी के कुछ समाचार पत्रों के अग्रलेख और टिप्पणियां देते हैं।

24 दिसंबर 1934 का अध्यादेश

सीकर ठिकाने में आन्दोलन होने लगे और किसानों ने लगान देना बंद कर दिया तब 24 दिसंबर 1934 ई. को जयपुर सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया जिससे लगान देने से रोकने की कार्यवाही पर रोक लग गयी. इस क़ानून से सीकर ठिकाने के प्रशासन को और कड़े अधिकार मिल गए तथा उनका हाथ मजबूत हो गया. 31 जनवरी 1935 ई. को जुडिसियल आफिसर, रेवेन्यु मेंबर और पुलिस इंचार्ज के साथ सीकर ठिकाने की सशस्त्र पुलिस ने सीकर जाट पंचायत के सदस्यों के साथ 16 मुख्य जाट नेताओं को, जिनमें हरी सिंह, ईश्वर सिंह, पृथ्वी सिंह, गोरू सिंह, पन्ने सिंह, गणेश राम, सूरज सिंह, तेजा सिंह, गंगा सिंह आदि प्रमुख थे, किसानों को लगान न देने के लिए भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.[13] इन गिरफ्तारियों पर किसानों में भारी असंतोष फैला और आस-पास के गाँवों से हजारों की संख्या में किसान सीकर पहुँच गए और उन्होंने सीकर प्रशासक मि. ए. डब्ल्यू. टी. वेब के बंगले को चारों और से घेर लिया और अपने नेताओं की रिहाई की मांग की एवं साथ ही पंचपाना शेखावाटी ठिकानों की तरह चार आना प्रति रूपया लगान में भी माफ़ी की मांग की. [14] [15]

शेखावाटी किसान आन्दोलन के दौरान सन 1935 में अंग्रेज अफसर वेब और जागीरदारों द्वाराइ अन्यायों का ताँता बंध गया था और गाँवों में जाटों को पीटा जाने लगा. भैरूपुरा गाँव में औरतों के बदन से उनका जेवर लगान में उतारा. चौधरी ईश्वर सिंह की पत्नी को पीटा गया और उससे लगान के 53 रुपये बकाया के स्थान पर 145 रुपये ईश्वर सिंह की गैर हाजरी में वसूल किये. कनलाऊ गाँव से पिछला माफ़ हुआ 750 रुपये भी वसूल किया. अपमानित करने के लिए वहां कई जाटों की मूंछें काट दी गयी. इसी प्रकार जेठवा का बास में रामू चौधरी को पीटा और फिर उससे तमाम गाँव का 1700 रुपये लगान वसूल किया और पन्ने सिंह जाट का भी उससे लगान वसूल कर 200 रूपया जुरमाना लिया गया. उसके भी की दाढ़ी काटकर बेइज्जत किया गया. यहाँ भी स्कूल बंद करवा दिया.

सन 1938 में सीकर रावराजा के सीकर से निर्वासन प्रकरण में सीकर व पंचापना शेखावाटी के सारे ठिकानेदार व राजपूत पहले से ही रावराजा सीकर के पक्ष में थे. रावराजा सीकर ने सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के सदस्यों को देवीपुरा की कोठी में बुलाया. जो पांच गए उन में ईश्वर सिंह सम्मिलित थे.[16]

जाटों ने सीकर दिवस मनाया:26 मई 1935

ठाकुर देशराज[17] ने लिखा है....26 मई 1935 को अखिल भारतीय जाट महासभा के आदेशों से भारत भर में जाटों ने सीकर दिवस मनाया। जगह-जगह सभाएं की गई, जुलूस निकाले गए। महासभा के तत्कालीन मंत्री झम्मन सिंह जी एडवोकेट ने एक प्रेस वक्तव्य द्वारा सीकर के दमन की निंदा की।

11 मई 1935 को जाट महासभा का अधिवेशन रायबहादुर चौधरी सर छोटूराम जी की अध्यक्षता में जयपुर काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट सर बीचम साहब से मिला और उसने सीकर कांड की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की।

सर जौंस बीचम एक गर्वीले अंग्रेज थे उन्होंने यह तो माना की सीकर की घटनाएं खेद जनक है और उन्हें सुधारा जाएगा किंतु जांच कराने से साफ इंकार कर दिया और जाट डेपुटेशन को भी सीकर जाकर जांच करने की इजाजत नहीं दी।

जाट डेपुटेशन जयपुर से लौट गया और दमन में कोई कमी नहीं हुई। सीकर में त्राहि-त्राहि मच गई। कुँवर पृथ्वी सिंह गोठड़ा और गणेशराम कूदन, गोरु राम कटराथल बाहर के जाटों के पास दौड़-दौड़ कर जा रहे थे। इन लोगों के सीकर में


[पृ.293]: वारंट थे और पुलिस चाहती थी कि यह हाथ लग जाए तो इन्हें पीस दिया जाए। अंत में दमन का मुकाबला करने के लिए यह सोचा गया कि जयपुर राजधानी में सत्याग्रह किया जाए। पहले तो एक डेपुटेशन मिले, जो यह कह दे या तो जयपुर हमारे जान माल की गारंटी दे वरना हम मरेंगे तो गांवों में क्यों मरे जयपुर आकर यहां गोलियां खाएंगे। सत्याग्रह के लिए कुछ जत्थे बाहर से भी तैयार किए गए।

इधर जून के प्रथम सप्ताह कुंवर रतन सिंह, ईश्वर सिंह, धन्नाराम ढाका, गणेश राम, ठाकुर देशराज जी आदि मुंबई गए। वहां मुंबई में श्री निरंजन शर्मा अजीत और देशी राज्यों के आदी अधिदेवता अमृत लाल जी सेठ के प्रयतन से मुंबई के तमाम पत्रों में सीकर के लिए ज़ोरों का आंदोलन आरंभ हो गया और कई मीटिंग में भी हुई, जिनमें सीकर की स्थिति पर प्रकाश डाला गया। मुंबई के बड़े से बड़े लीडर श्री नरीमान, जमुनादास महता आदि ने सीकर के संबंध में अपनी शक्ति लगाने का विश्वास दिलाया।

आखिरकार जयपुर को हार झक मारकर झुकना पड़ा और उसने सीकर के मामले में हस्तक्षेप किया। अनिश्चित समय के लिए राव राजा साहब सीकर को ठिकाने से अलग रहने की सलाह दी गई। गिरफ्तार हुए लोगों को छोड़ा गया। जिनके वांट थे रद्द किए गए। किंतु जाटों की नष्ट की हुई संपत्ति का कोई मुआवजा नहीं मिला और न उन लोगों के परिवारों को कोई सहायता दी गई जिनके आदमी मारे गए थे। इस प्रकार इस नाटक का अंत सीकर के राव राजा और दोनों को सुख के रूप में नहीं हुआ। किंतु यह अवश्य है कि सीकर के जाट को नवजीवन दे दिया।

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह[18] लिखते हैं कि [पृष्ठ-113]: सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने हमारे गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जाने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।

चैत्र सुदी प्रथमा को संवत बदल गया और विक्रम संवत 1992 प्रारम्भ हो गया। सीकर ठिकाने के जाटों ने लगान बंदी की घोषणा करदी, जबरदस्ती लगान वसूली शुरू की। पहले भैरुपुरा गए। मर्द गाँव खाली कर गए और चौधरी ईश्वरसिंह भामू की धर्मपत्नी जो चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथना की बहिन थी, ने ग्राम की महिलाओं को इकट्ठा करके सामना किया तो कैप्टेन वेब ने लगान वसूली रोकदी। चौधरी बक्साराम महरिया ने ठिकाने को समाचार भिजवा दिया कि हम कूदन में लगान वसूली करवा लेंगे।

कूदन ग्राम के पुरुष तो गाँव खाली कर गए। लगान वसूली कर्मचारी ग्राम कूदन की धर्मशाला में आकर ठहर गए। महिलाओं की नेता धापू देवी बनी जिसका पीहर ग्राम रसीदपुरा में फांडन गोत्र था। उसके दाँत टूट गए थे, इसलिए उसे बोखली बड़िया (ताई) कहते थे। महिलाओं ने काँटेदार झाड़ियाँ लेकर लगान वसूली करने वाले सीकर ठिकाने के कर्मचारियों पर आक्रमण कर दिया, अत: वे धर्मशाला के पिछवाड़े से कूदकर गाँव के बाहर ग्राम अजीतपुरा खेड़ा में भाग गए। कर्मचारियों की रक्षा के लिए पुलिस फोर्स भी आ गई। ग्राम गोठड़ा भूकरान के भूकर एवं अजीतपुरा के पिलानिया जाटों ने पुलिस का सामना किया। गोठड़ा गोली कांड हुआ और चार जने वहीं शहीद हो गए। इस गोली कांड के बाद पुलिस ने गाँव में प्रवेश किया और चौधरी कालुराम सुंडा उर्फ कालु बाबा की हवेली , तमाम मिट्टी के बर्तन, चूल्हा-चक्की सब तोड़ दिये। पूरे गाँव में पुरुष नाम की चिड़िया भी नहीं रही सिवाय राजपूत, ब्राह्मण, नाई व महाजन परिवार के। नाथाराम महरिया के अलावा तमाम जाटों ने ग्राम छोड़ कर भागे और जान बचाई।


[पृष्ठ-114]: कूदन के बाद ग्राम गोठड़ा भूकरान में लगान वसूली के लिए सीकर ठिकाने के कर्मचारी पुलिस के साथ गए और श्री पृथ्वीसिंह भूकर गोठड़ा के पिताजी श्री रामबक्स भूकर को पकड़ कर ले आए। उनके दोनों पैरों में रस्से बांधकर उन्हें (जिस जोहड़ में आज माध्यमिक विद्यालय है) जोहड़े में घसीटा, पीठ लहूलुहान हो गई। चौधरी रामबक्स जी ने कहा कि मरना मंजूर है परंतु हाथ से लगान नहीं दूंगा। उनकी हवेली लूट ली गई , हवेली से पाँच सौ मन ग्वार लूटकर ठिकाने वाले ले गए।

कूदन के बाद जाट एजीटेशन के पंचों – चौधरी हरीसिंह बुरड़क, पलथना, चौधरी ईश्वरसिंह भामु, भैरूंपुरा; पृथ्वी सिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; चौधरी पन्ने सिंह बाटड़, बाटड़ानाऊ; एवं चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल (मंत्री) कटराथल – को गिरफ्तार करके देवगढ़ किले मैं कैद कर दिया। इस कांड के बाद कई गांवों के चुनिन्दा लोगों को देश निकाला (ठिकाना बदर) कर दिया। मेरे पिताजी चौधरी गनपत सिंह को ठिकाना बदर कर दिया गया। वे हटूँड़ी (अजमेर) में हरिभाऊ उपाध्याय के निवास पर रहे। मई 1935 में उन्हें ठिकाने से निकाला गया और 29 फरवरी, 1936 को रिहा किया गया।

जब सभी पाँच पंचों को नजरबंद कर दिया गया तो पाँच नए पंच और चुने गए – चौधरी गणेशराम महरिया, कूदन; चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथाना; चौधरी जवाहर सिंह मावलिया, चन्दपुरा; चौधरी पन्नेसिंह जाखड़; कोलिडा तथा चौधरी लेखराम डोटासरा, कसवाली। खजांची चौधरी हरदेवसिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; थे एवं कार्यकारी मंत्री चौधरी देवीसिंह बोचलिया, कंवरपुरा (फुलेरा तहसील) थे। उक्त पांचों को भी पकड़कर देवगढ़ किले में ही नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद पाँच पंच फिर चुने गए – चौधरी कालु राम सुंडा, कूदन; चौधरी मनसा राम थालोड़, नारसरा; चौधरी हरजीराम गढ़वाल, माधोपुरा (लक्ष्मणगढ़); मास्टर कन्हैयालाल महला, स्वरुपसर एवं चौधरी चूनाराम ढाका , फतेहपुरा

रणमल सिंह के साथ

रणमल सिंह[19] लिखते हैं कि कूदन ग्राम में पढ़ते समय मेरा संपर्क श्री बद्रीनारायण सोढानी से हुआ। उनको सीकर का गांधी कहते थे। उन्होने कहा कि पढ़ाना छोड़ो और देश की आजादी के आंदोलन में आ जाओ। उनकी प्रेरणा से मैं 29 फरवरी 1944 को अध्यापक पद से त्याग पत्र देकर जयपुर प्रजामण्डल में शामिल हो गया। प्रजामण्डल में मेरे साथ माधोपुरा का लालसिंह कुलहरी था। हम दोनों जनजागृति के लिए रोजना गाँव में 24 मील पैदल सफर करते थे। मैं देश की आजादी के लिए जागीरदारों के ज़ुलम के खिलाफ सीकर किसान आंदोलन में भाग लेने लगा। सीकर ठिकाने में काश्त की जमीन का बंदोबस्त सन 1941 में हो गया था परंतु लगान व लाग-बाग के नाम पर जागीरदारों की लूट-खसोट बंद नहीं हुई थी। हमने इसका विरोध किया। हमने पहली मीटिंग बेरी गाँव की खेदड़ों की ढाणी में की। इसमें ईश्वर सिंह, त्रिलोक सिंह भी साथ थे, जिनहोने आगे चलकर अलग किसान सभा बना ली थी।

किसान सभा का उपाध्यक्ष चुना 1946

किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन 30 जून 1946 को बुलाया गया. इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए. यह निर्णय किया गया कि पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें. आपको जयपुर स्टेट की किसान सभा का उपाध्यक्ष चुन लिया गया. (राजेन्द्र कसवा, p. 203)


सीकर वाटी में त्रिलोक सिंह, देवा सिंह बोचल्या, ईश्वर सिंह भामू, हरी सिंह बुरड़क आदि किसान सभा के जिम्मेवार नेताओं के रूप में पहचाने गए. (राजेन्द्र कसवा, p. 204)

महरामपुर में किसानों की बृहत सभा आयोजित 1947

जयपुर राज्य किसान सभा ने महरामपुर में 16 फ़रवरी 1947 को किसानों की एक बृहत सभा आयोजित की. झुंझुनू के डिप्टी कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक, नाजिम और डिप्टी इंस्पेक्टर पुलिस बहुत से पुलिस दल के साथ पहुँच कर सारी शेखावाटी में दो महीने के लिए दफा 144 लगा दी. स्थल पर दफा 144 तोड़ने पर पंडित ताड़केश्वर शर्मा, राधावल्लभ अग्रवाल, दुर्गादत्त जयपुर, ख्याली राम मोहनपुरा, शिवकरण उपदेशक, माली राम अध्यापक, मान सिंह बनगोठडी और डूंगर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. जयपुर राज्य किसान सभा ने धरा 144 उठाने की मांग की और न उठाने पर शेखावाटी की जनता के मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए विद्याधर कुलहरी, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, देवासिंह बोचल्या, राधावल्लभ अग्रवाल और आशा राम ककड़ेऊ की एक सर्वाधिकार युक्त कमेटी बना दी जो जनता के सामने सविनय अवज्ञा भंगकरने का प्रोग्राम रखे और सत्याग्रह चलाये. साथ ही गाँवों में आये दिन होने वाले झगड़े-फसादों के समय रक्षार्थ 'किसान रक्षा दल' के संगठन का निर्णयलिया तथा 'किसान सन्देश' नामक बुलेटिन निकालने का निश्चय किया. (किसान सन्देश 13 मार्च 1947) (डॉ पेमा राम 216 )

पाठ्यपुस्तकों में स्थान

शेखावाटी किसान आंदोलन ने पाठ्यपुस्तकों में स्थान बनाया है। (भारत का इतिहास, कक्षा-12, रा.बोर्ड, 2017)। विवरण इस प्रकार है: .... सीकर किसान आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतिया का बास नामक गांव में किसान महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी की अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। सीकर ठिकाने ने उक्त सम्मेलन को रोकने के लिए धारा-144 लगा दी। इसके बावजूद कानून तोड़कर महिलाओं का यह सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। जिनमें श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती फूलांदेवी, श्रीमती रमा देवी जोशी, श्रीमती उत्तमादेवी आदि प्रमुख थी। 25 अप्रैल 1935 को राजस्व अधिकारियों का दल लगान वसूल करने के लिए कूदन गांव पहुंचा तो एक वृद्ध महिला धापी दादी द्वारा उत्साहित किए जाने पर किसानों ने संगठित होकर लगान देने से इनकार कर दिया। पुलिस द्वारा किसानों के विरोध का दमन करने के लिए गोलियां चलाई गई जिसमें 4 किसान चेतराम, टीकूराम, तुलसाराम तथा आसाराम शहीद हुए और 175 को गिरफ्तार किया गया। हत्याकांड के बाद सीकर किसान आंदोलन की गूंज ब्रिटिश संसद में भी सुनाई दी। जून 1935 में हाउस ऑफ कॉमंस में प्रश्न पूछा गया तो जयपुर के महाराजा पर मध्यस्थता के लिए दवा बढ़ा और जागीरदार को समझौते के लिए विवश होना पड़ा। 1935 ई के अंत तक किसानों के अधिकांश मांगें स्वीकार कर ली गई। आंदोलन नेत्रत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में थे- सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह गौरीर, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, पन्ने सिंह बाटड़ानाउ, हरु सिंह पलथाना, गौरू सिंह कटराथल, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, लेख राम कसवाली आदि शामिल थे। [20]

चित्रा गैलरी

References

  1. Jat Bandhu, 25 September 2007, pp.13,15
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.295-297
  3. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113-114
  4. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 151
  5. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
  6. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 151
  7. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 81
  8. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.228-230
  9. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.86
  10. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 81-82
  11. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.253-255
  12. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.267-271
  13. दी स्टेट्समेन दिनांक 16 फरवरी 1935
  14. दी स्टेट्समेन दिनांक 16 फरवरी 1935
  15. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.113
  16. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.158
  17. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949,p.292-93
  18. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113-114
  19. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0, पृष्ठ 57, 121
  20. भारत का इतिहास कक्षा 12, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, 2017, लेखक गण: शिवकुमार मिश्रा, बलवीर चौधरी, अनूप कुमार माथुर, संजय श्रीवास्तव, अरविंद भास्कर, p.155

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