Jhumman Singh
Thakur Jhumman Singh or Jhamman Singh was an Advocate from Aligarh who played very crucial role of awakening the farmers in Shekhawati Kisan Andolan.
He was Mantri Jat Mahasabha Aligarh.
Shekhawati farmers movement
The Jat Prajapati Maha-Yagya was organized at Sikar from 20 - 29 January 1934. The program was scheduled for one whole week. The main aim of this event was to present to , the Jats and other farmers of Shekhawati, the picture of advanced level of the cultural and education development, and the progressiveness of the Jat society in U.P. and elsewhere, so that the Jats of Shekhawati could be inspired to have a desire for education and upliftment.
Many prominent persons were present:
- Thakur Deshraj of Jaghina, the renowned Historian of Jat History, who was devoted his full efforts to the upliftment of the people and the cause of the Jat Sabha (assembly); Advocate ,
- Thakur Jhamman Singh who had been chairman of the Jat Sabha for many years;
- Richhpal Singh Phogat, (of Dhamera Kirat, Distt Bulandshahr) who was an honorary Magistrate and a minister with the Jat Sabha ;
- Kunwar Ratan Singh of Mandhona, District Bulandshahr, who was involved and very active in the affairs of Bulandshahr and Bharatpur;
- Chaudhary Moolchand , who was chairman for many years of the All India Jat Mahasabha and the founder of the Jat Boarding House, Nagaur;
- Rai Sahib Chaudhary Hariram Singh of Kurmalli, Dist Muzaffarnagar (Now Shamli, western Uttar Pradesh), who was a famous orator;
- Thakur Sansar Singh one of the founders of the Haridwar Girls Gurukul,
- Pandit Moolchand Shastri,
- Pandit Shanti Swarup etc.
People were enamored with their inspiring speeches.
ठाकुर झम्मन सिंह का जीवन परिचय
राजस्थान की जाट जागृति में योगदान
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।
[पृ.4]: अगस्त का महिना था। झूंझुनू में एक मीटिंग जलसे की तारीख तय करने के लिए बुलाई थी। रात के 11 बजे मीटिंग चल रही थी तब पुलिसवाले आ गए। और मीटिंग भंग करना चाहा। देखते ही देखते लोग इधर-उधर हो गए। कुछ ने बहाना बनाया – ईंधन लेकर आए थे, रात को यहीं रुक गए। ठाकुर देशराज को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होने कहा – जनाब यह मीटिंग है। हम 2-4 महीने में जाट महासभा का जलसा करने वाले हैं। उसके लिए विचार-विमर्श हेतु यह बैठक बुलाई गई है। आपको हमारी कार्यवाही लिखनी हो तो लिखलो, हमें पकड़ना है तो पकड़लो, मीटिंग नहीं होने देना चाहते तो ऐसा लिख कर देदो। पुलिसवाले चले गए और मीटिंग हो गई।
इसके दो महीने बाद बगड़ में मीटिंग बुलाई गई। बगड़ में कुछ जाटों ने पुलिस के बहकावे में आकार कुछ गड़बड़ करने की कोशिश की। किन्तु ठाकुर देशराज ने बड़ी बुद्धिमानी और हिम्मत से इसे पूरा किया। इसी मीटिंग में जलसे के लिए धनसंग्रह करने वाली कमिटियाँ बनाई।
जलसे के लिए एक अच्छी जागृति उस डेपुटेशन के दौरे से हुई जो शेखावाटी के विभिन्न भागों में घूमा। इस डेपुटेशन में राय साहब चौधरी हरीराम सिंह रईस कुरमाली जिला मुजफ्फरनगर, ठाकुर झुममन सिंह मंत्री महासभा अलीगढ़, ठाकुर देशराज, हुक्म सिंह जी थे। देवरोड़ से आरंभ करके यह डेपुटेशन नरहड़, ककड़ेऊ, बख्तावरपुरा, झुंझुनू, हनुमानपुरा, सांगासी, कूदन, गोठड़ा
[पृ.5]: आदि पचासों गांवों में प्रचार करता गया। इससे लोगों में बड़ा जीवन पैदा हुआ। धनसंग्रह करने वाली कमिटियों ने तत्परता से कार्य किया और 11,12, 13 फरवरी 1932 को झुंझुनू में जाट महासभा का इतना शानदार जलसा हुआ जैसा सिवाय पुष्कर के कहीं भी नहीं हुआ। इस जलसे में लगभग 60000 जाटों ने हिस्सा लिया। इसे सफल बनाने के लिए ठाकुर देशराज ने 15 दिन पहले ही झुंझुनू में डेरा डाल दिया था। भारत के हर हिस्से के लोग इस जलसे में शामिल हुये। दिल्ली पहाड़ी धीरज के स्वनामधन्य रावसाहिब चौधरी रिशाल सिंह रईस आजम इसके प्रधान हुये। जिंका स्टेशन से ही ऊंटों की लंबी कतार के साथ हाथी पर जुलूस निकाला गया।
कहना नहीं होगा कि यह जलसा जयपुर दरबार की स्वीकृति लेकर किया गया था और जो डेपुटेशन स्वीकृति लेने गया था उससे उस समय के आईजी एफ़.एस. यंग ने यह वादा करा लिया था कि ठाकुर देशराज की स्पीच पर पाबंदी रहेगी। वे कुछ भी नहीं बोल सकेंगे।
यह जलसा शेखावाटी की जागृति का प्रथम सुनहरा प्रभात था। इस जलसे ने ठिकानेदारों की आँखों के सामने चकाचौंध पैदा कर दिया और उन ब्राह्मण बनियों के अंदर कशिश पैदा करदी जो अबतक जाटों को अवहेलना की दृष्टि से देखा करते थे। शेखावाटी में सबसे अधिक परिश्रम और ज़िम्मेदारी का बौझ कुँवर पन्ने सिंह ने उठाया। इस दिन से शेखावाटी के लोगों ने मन ही मन अपना नेता मान लिया। हरलाल सिंह अबतक उनके लेफ्टिनेंट समझे जाते थे। चौधरी घासी राम, कुँवर नेतराम भी
[पृ.6]: उस समय तक इतने प्रसिद्ध नहीं थे। जनता की निगाह उनकी तरफ थी। इस जलसे की समाप्ती पर सीकर के जाटों का एक डेपुटेशन कुँवर पृथ्वी सिंह के नेतृत्व में ठाकुर देशराज से मिला और उनसे ऐसा ही चमत्कार सीकर में करने की प्रार्थना की।
सीकर ठिकाने से किसानों का समझौता 23 अगस्त 1934
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....जनता को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि सीकर के जाटों का आंदोलन अंत में प्रशंसनीय सफलता के साथ समाप्त हुआ है। किसानों की मांगों में से अधिकांश पूरी कर दी गई हैं। निशंदेह जमीन का लगान जो रखा गया है वह बहुत अधिक है और अनुचित अवश्य है तो भी सीनियर अफसर की सब इच्छाओं पर विश्वास करते हुए किसान आंदोलन समाप्त करने के लिए सहमत हो गए हैं। सब संबंधितों के साथ न्याय करने के लिए यह अवश्य ही कहना पड़ेगा कि किसानों की ओर से कुँवर रतन सिंह सभापति राजपूताना जाट महासभा भरतपुर, ठाकुर झम्मन सिंह एडवोकेट मंत्री अखिल भारतीय जाट महासभा, अजमेर के वी.एस. पथिक आदि और ठिकाने की ओर से कैप्टन वेब सीनियर ऑफिसर सीकर के सुप्रयास और बुद्धिमानी पूर्ण सुकृत्यों तथा निर्देश के बिना आंदोलन का, बिना एक भी दुर्घटना के, अंत और अनूठा समझोता होना असंभव था। मि. जोन्स वाइस प्रेसिडेंट स्टेट कौंसिल और मि. यंग आई जी पुलिस जयपुर तथा ब्रिटिश भारत प्रेस भी अपनी उस सहानुभूति के लिए जो कि उन्होंने पीड़ित किसानों के प्रति प्रगट की तथा उपरोक्त सफलता में जिसका कुछ कम भाग नहीं है यह सभी बधाई के पात्र हैं।
सीकर ठिकाने की चाल
ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....सीकर ठिकाने ने इस बीच आंदोलन को ठंडा करने के लिए एक और चाल चली। राव बहादुर चौधरी लालचंद जी की सिफारिश किए हुए किसी चौधरी राजसिंह को सीकर में फौजदार (मुंशिफ) और ठाकुर झम्मन सिंह जी मंत्री जाट महासभा के एक स्वजन ठाकुर साहब सिंह जी को तहसीलदार के ओहदे पर लेकर बाहरी जाटों की जबान बंद करनी चाही किंतु इससे उसे फायदा कुछ भी नहीं हुआ। यूं तो उसने कुदन के चौधरी सुखदेव जी को जाट आंदोलन के खिलाफ इस्तेमाल किया किंतु जब दावानल लगती है तो उसे ओस के कण नहीं भुजा सकते।
References
- ↑ ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1, 4-6
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.272-273
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.277