Kachchhawa
Kachchhawa (कच्छवा) Kachhwaha (कछवाहा) [1] [2][3] Kachhwala (कछवाला)[4][5] gotra Suryavanshi Jats live in Rajasthan, Punjab and Uttar Pradesh.This is a Jat gotra which has Rana Jat sub-clan based on lineage and title. [6]
Origin
They are the descendants of Lord Rama (कश्यप), who was progenitor of Suryavansh. [7]
ढुंढार
विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...ढुंढार, आमेर (जयपुर, राजस्थान) की रियासत का मध्य युगीन तथा परवर्ती नाम है। इस रियासत की स्थापना कछवाहों ने ग्वालियर से निष्कासित होने के पश्चात् जंगली मीनाओं की सहायता से की थी। 'ढुंढार' राजस्थान की राजधानी जयपुर का पुराना नाम था। ढुंढार का उल्लेख तत्कालीन साहित्य तथा लोक कथाओं में है- 'मेवार ढुंढार मारवाड़ औ बुंदेलखंड, झारखंड बांधौधनी चाकरी इलाज की।'[9] कहा जाता है कि 1129 ई. के लगभग जब ग्वालियर से कछवाहों को परिहारों ने निष्काषित कर दिया तो उन्होंने आमेर के इलाके में मीनाओं की सहायता से ढुंढार रियासत की नींव डाली। ढुंढार के स्थान पर बाद में आमेर की प्रसिद्ध रियासत बनी। (दे. आमेर, जयपुर)
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज
ठाकुर देशराज[10] लिखते हैं....कछवाहा : राजपूत-कछवाहे अपने को लव की सन्तान बताते हैं। इस तरह से वे सूर्यवंशी हैं। कुछ लोग कछवाहा शब्द को कुशवाहा अथवा कच्छपघाति का रूपान्तर मानते हैं, किन्तु हमारा जाट-कछवाहों के लिए मत है कि वे काश्यप हैं और महाभारत-काल में प्रजातंत्री थे। जाटों का एक दल अपने लिए शिव गोत्री और दूसरा काश्यप गोत्री या काश्यप ऋषि की संतान मानता है। इस विषय का एक अंग्रेज विद्वान का मत भी हमने पिछले किसी पृष्ठ में उद्धृत कर दिया है। वैदिक साहित्य में काश्यप का बड़ा ऊंचा स्थान है। काश्यप सूर्यवंश के आदि पुरुष हैं। काश्यप शब्द से कछवाह बनना बिल्कुल संभव बात है। कछवाहे जाटों की युक्त-प्रदेश में अनेक शाखा-प्रशाखायें हैं। मौर्य-बुद्ध के समय में चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम आया है। किन्तु पुराणवालों ने उसे मुरा नाम शूद्रा से उत्पन्न हुआ माना है। चन्द्रगुप्त बौद्ध-धर्मावलंबी था, इसीलिए पुराणकार ने उसे बदनाम किया हो तो अचम्भे की बात नहीं। वरना पिप्पलिवन में मौर्यों का एक प्रजातंत्र था। बौद्ध-जातकों में पिप्पलिवन के क्षत्रियों का पर्याप्त परिचय मिलता है1। इस गोत्र के जाट युक्त-प्रान्त और राजपूताना में अनेक स्थानों पर पाये जाते हैं। अब से बहुत पहले झुंझनूं के पास के प्रदेश पर उनका पंचायती राज था।
Distribution of Kachchawas
Villages in Jodhpur district
Villages in Nawanshahr district
History
James Tod[11] writes that The warriors assembled under Visaladeva Chauhan against the Islam invader included the ruler of Kachhwaha. The Mori and Bargujar also joined with the Catchwahas of Anterved.
Ram Sarup Joon[12] writes that General Cunningham has proved that the Kachwaha Rajputs are also from the Pratihars and were not the descendants of Ram Chandraji's son Kush as they claim to be.
Ram Sarup Joon[13] writes that ...The Pehwa edict describes the rule of three Tomar kings. It is mentioned that they were the descendants of 'Jabala', the Hun who had ruled there before them- the third edict narrates the rule of Jabla Toraman.
There is an old saying in Rohilkhand that the Chief Toraman Kachwaha attacked Iran in 943 A.D. He conquered the territory from Iran to Bhopal. He constructed a fort at Gwalior. The descendants of Bhur Sen came to be called Kachhwaha in 945 A.D., and ruled Gwalior till 933 A.D., when Pratihars seized power. Therefore, if we accept this the Kachwaha Rajputs are the descendants of Torman, Jabla Gujars.
Charak Rai (the Bhat] who lived during the reign of Emperor Shah Jehan writes that the king of Iran was Torman. Shri Bhanderkar and General Cunningham and Mr. Smith all prove that Torman, Kachwaha and Pratihars are all descendants of Jabla Gujars. One of the edicts of Hun Chief Jabla was excavated in Malwa, at Mandsor, and is said to have been inscribed in 533 A.D.
According to this edict King Meharkul was the son of Torman, who was defeated and driven out by Yashodharaman.
Notable persons
- Padam Shree Moti Singh Rana
- Nar Singh Kachhwaha (नरसिंह कछवाह), from ----, Jodhpur, was a social worker in Marwar, Rajasthan. He was a fredom fighter and hero of The Dabra farmers movement-1947 for abolition of Jagirs in Rajasthan. [14]
External links
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n.क-15
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.29,sn-172.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-329.
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. क-135
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.29,sn-172.
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII,s.n. 215, p. 586
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, Agra 1998, p.226
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.384
- ↑ शिवराज, भूषण, छंद 111
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter V, p. 149)
- ↑ James Tod: Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume II,Annals of Haravati,p.414-416
- ↑ History of the Jats/ChapterVIII,p. 135-136
- ↑ Ram Sarup Joon: History of the Jats/ChapterVIII,p. 138
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.220-221
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