Kalirana
Kalirana (कालीराना)[1] Kalirana (कलिराणा) [2] Gotra Jats live in Rajasthan and Madhya Pradesh. Same as Kaliramna (कालीरामणा).
Origin
Villages founded by Kalirana clan
- Kalirananagar (कालिराना नगर) - village in Phalaudi Tahsil of Jodhpur district in Rajasthan.
- Khed (खेड़) (Kher) - an ancient village in Pachpadra Tahsil of Barmer district in Rajasthan was founded by Kalirana Jats.
- Jhanwar - Village in Luni tahsil of Jodhpur district in Rajasthan was founded by Chaudhari Malji Kalirana in about 1200 AD.
- Patan (Hisar)
- Sandwa Bhiwani Tosham Tehsil of Bhiwani.
- Shishwala (Bhiwani)
- Sisai (सिसाय, सिसाह) town situated in Hisar district, tehsil Hansi.
- Kotli (कोटली), Bhinwar (भींवर), villages in Sialkot
- Chandovdala (चन्दोवडाला) at Manjha in Punjab
- Moongra (मूंगड़ा) (Mungda) is a village in Pachpadra Tahsil of Barmer district in Rajasthan.
- Khed (खेड़) (Kher) - village in Pachpadra Tahsil of Barmer district in Rajasthan.
- Mogra Kalan (मोगड़ा कलां) - village in Luni Tahsil of Jodhpur district in Rajasthan.
- Koshlu (कौशलू) -
Village in Sindhari Tahsil of Barmer district in Rajasthan.
History
The Kaliraman gotra is branch of nagavansh or Nagas. Dilip Singh Ahlawat has mention it as one of the ruling Jat clans in Central Asia. [3] Known as Kala in Maharashtra. Kalas are descendants of Kalashoka (कालाशोक) son of Shishunaga. They had won the Kalakuta (कालकूट) country also. [4] Kaliraman gotra started after Kali of Nagavansh. People of this gotra had republics in Singhpura and Bhagowala in Punjab.[5]
The history of Krishna and Kāliyā is told in Chapter Sixteen of the Tenth Canto of the Bhagavata Purana and Harivamsa (Viṣṇuparva, Ch.11-12).
A king of Kalirana gotra was the ruler near Mathura, on the banks of Yamuna River. The ancient fort of Kaliramna is in ruins near Mathura. His fort was known as fort of Kalidheh. The famous episode of Mahabharata regarding Lord Krishna’s killing of a black python, Kaliya (कालिया), is related with some bad ruler from this gotra. With the killing of Kaliya Naga, Krishna brought the end of this clan’s rule in Brij. Dilip Singh Ahlawat has mention it as one of the ruling Jat clans in Central Asia. [6]
From Mathura they went to Kabul-Ghazni with other other Jats - Yadavas. They founded the Kingdom of Garh - Ghazni. During rise of Islam they came back to Bhatner- Sirsa. According to their bards they founded the old village of Patan and Siswad (?Shishwala Bhiwani). From Patan Chaudhary Sishu came to Sisai. His brother Sunda founded village Sandwa and Salaywala.
Kaliranas came from Siswad to Marwar and founded village Jhanwar. Jhanwar Village was founded by Chaudhari Malji Kalirana about 800 years back. The Kalirana Jats of this village are known for justice. Its ancient name was Jhamara (झामरा) or Jhramvera (झ्रम्वेर) as in Jhramvera inscription (V. 1227) of Kelhana. Jhamwera (झम्वेर) inscription of Alhana. (JPASB, xii, pp. 102 ff). It gets name from Chanwar, the twig of Khejri tree.
The famous villages from Kalirana Khap are Lilon (लिलोन), Khedi (खेड़ी), Sambhalka (सम्भालका), Banat (बनत) and Hakimpur (हकीमपुर). [7]
Kotli (कोटली), Bhimbar (भींवर), villages in Sialkot and Chandovdala (चन्दोवडाला) at Manjha in Punjab were founded by Jats of this clan. Jhanwar (झवर) village was founded by Malji Kalirana clan about 800 years back. They people had settled in Siswada near Delhi and Hisar. Kalu came to Marwar and founded villages Mungda (मूंगड़ा), Kheda (खेड़ा), Mogda (मोगड़ा) etc. From there they came to Jhanwar. [8]
According to the local tradition of these people, their ancestors had migrated from Garh Ghazni, through darra Bolan and Pakpattan in Punjab to Sirsa. From Sirsa, they spread to various places about 1300 years back. [9]
इतिहास
कालीराणा का मारवाड़ आगमन: झंवर गाँव जोधपुर जिले की लूनी तहसील में जोधपुर-बाड़मेर मार्ग पर जोधपुर से 35 कि.मी. दूरी पर स्थित है. ठाकुर देशराज ने 'मारवाड़ का जाट इतिहास' में लिखा है कि झंवर गाँव कालीराणा/ कालिरामणा गोत्र के जाटों ने बसाया था. गाँव के पश्चिम दिशा में एक कुआं है जिस पर संवत 1810 का लेख है और ब्रह्मा, विष्णु और महेश एवं गणेश कि मूर्तियाँ हैं. यह गाँव 800 वर्ष पहले का बसाया हुआ है. इसको बसाने वाले मालजी नाम के कलीराणा चौधरी थे. कालीराना गोत्र का निकास गढ़ गजनी से है. फिर ये लोग दर्रा बोलन होते हुए, पंजाब होते हुए पाकपत्तन शहर के नजदीक से आकर हिसार के पास सीसवाड़ में आकर बस गए. यहाँ से चल कर ये मारवाड़ आगये.
यह गाँव दूदोजी के पुत्र मालजी ने बसाया था. मालजी के वंश में रामोजी, भींवराज जी, पाथोजी, जीवनजी, खेतोजी, सेवजी, पुरखोजी, भैरजी, हरजी, मालजी, चतुरोजी हुए जो वर्तमान में जिन्दा हैं.
कालीराणा जाटों को महादेव जी का वरदान था कि जो न्याय बादशाह नहीं कर सकेगा, वो न्याय तुम करोगे. कालीराणा जिस पत्थर की शिला पर बैठ कर न्याय करते थे 'पद्म शिला' कहलाती थी जो आज भी गाँव में बने भव्य 'न्यायेश्वर महादेव' के मंदिर प्रांगण में पड़ी है. मंदिर के आगे एक खेजड़ी है. गाँव वालों ने बताया कि यह वही चंवरे (खेजड़ी की डाली) वाली खेजड़ी है, जिसे गाँव बसाते वक्त रोपा गया था और जिसके आधार पर गाँव का नाम चंवर से झंवर पड़ा. इस खेजड़ी के नीचे बैठ कर चौधरी न्याय करते थे. काली राणा चौधरी जिस पत्थर की शीला पर बैठ कर न्याय करते थे वो पद्म शीला कहलाती थी जो आज भी गाँव में बने महादेव मंदिर के प्रांगन में पड़ी है, वहां खेजड़ी वही है जो टहनी से लगी थी . इन चौधरियों में भींवराजजी का न्याय बड़ा प्रसिद्द था. इनके बारे में कहा जाता है:
- दुर्गादास जी मान्या, रामाजी मन भावणा ।
- भीवराज न्याय मोटा करे, कर्ण मींड कालीराणा ।।
अर्थात-जोधपुर रियासत का राजा दुर्गादास इन्हें मानता है. ये रामाजी के पुत्र हैं. भींवराज एतिहासिक फैसले कर कालीराणा का नाम कर रहे हैं.
कहते हैं कि झंवर के चौधरियों को दिल्ली बादशाह ने ताम्र पत्र दिया था. आजादी से पूर्व रियासत क़ी तरफ से इन्हें प्रति वर्ष पाग (सफ़ा) बंधाई जाती थी. इसी वंश के एक पुरखोजी के बारे में कहा जाता था-
- पुरखो पढ्यो पाटवी, गेण हुई गज बम्ब ।
- न्याय करे नव लाखो, जटियायत रो थम्ब ।।
अर्थात - पुरखो चौधरी अपने बाप का सबसे बड़ा पुत्र यानि पाटवी है . यह गजब का बुद्धिशाली है , जोकि नौ लखां (अनुपम) न्याय करता है . यह जाट समाज का स्तम्भ है .
झंवर नाम का आधार:
झंवर गाँव के बसने के पीछे भी एक रोचक कहानी है. एक समय कालीराणा, सारण आदि जाटों का काफिला चारे-पानी की तलास में हरियाणा से मारवाड़ होते हुए सिंध की तरफ जा रहा था. इन्हें एक साधू ने चंवर (खेजड़ी की टहनी) दिया और कहा कि जहाँ रात्रि विश्राम करो, वहीँ यह रोप देना, जिस स्थान पर यह हरी हो जाये, वहीँ बस जाना. जोधपुर से 35 कि.मी. पश्चिम में गाँव के स्थान पर कालीराणा जाटों का काफिला जहाँ रुका हुआ था वहां यह डाली हरी हो गयी. यहीं पर इन्होने बसने का निर्यण लिया. सारणों के काफिला उस समय तक काफी आगे निकल चूका था. इसी चंवर का अपभ्रंश होकर गाँव का नाम कालांतर में झंवर हो गया. कहते हैं कि वह खेजड़ी का पेड़ आज भी विद्यमान है.
सन्दर्भ: 1. भागीरथ सिंह नैण:जाट समाज, आगरा, नवम्बर 2009, पृ. 17, 2. मनसुख रणवा की पुस्तक 'राजस्थान के संत - शूरमा एवं लोक कथाएं', पृ. 181.
Distribution in Rajasthan
Villages in Barmer district
Villages in Jodhpur district
Bhatida, Budkiya, Jajiwal Jakhro Ki Dhani, Jhanwar, Kalirananagar, Khokariya, Mangra Poongla , Nandiya Prabhawati, Nandwan, Rupana (Lohawat),
Villages in Pali district
Chheetariya, Falka, Naya Gaon Pali,
Villages in Nagaur district
Kheri Khinwasi (50), Palri Kalan,
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Nimach district
Villages in Dewas district
Amoda, Belkha, Dabri Dewas, Sergona,
Villages in Harda district
Villages in Sehore district
Ashta, Khandwa Sehore, Dudlai (Ichhawar tahsil)[10],
Distribution in Punjab
Bara Kalirana is vilage in Zira tahsil in Firozpur district in Punjab.
Notable Persons
- Mahendra Chaudhary Kalirana महेन्द्र चौधरी (कलीराणा) - पाली जिले के सोजत तहसील के गाँव के ग्राम पंचायत चोपड़ा के नयागांव के रहने वाले थे। आप जोधपुर में उदय मंदिर थाने में उपनिरीक्षक थे। दिनांक 2 अप्रेल 2018 को सर्वोच्च न्यायालय के एससी/एसटी एक्ट के निर्णय पर भारत बंध के दौरान आपकी मृत्यु हो गई। आपको इलाज के लिए गुजरात के मेहसाना ले जया गया था, जहाँ आपने अंतिम सांसें लीं।
- Saheed Bhupendra Kalirana - शहीद भूपेन्दर कालीराणा, गांव- बुड़कीया भोपालढ़, (जोधपुर) । आप 13 नवम्बर 2012, दिपावली की रात, दुशमनों से लोहा लेते कुपवाड़ा (जम्मु) में वीरगति को प्राप्त हुए।
- Sukhram Kalirana / सुखराम कालीराणा पुत्र श्री जेताराम कालीराणा - आप जोधपुर जिले की भोपालगढ़ तहसील की ग्राम पंचायत नांदिया प्रभावती के रहने वाले हैं। आप राजस्थान में प्रतियोगिता जगत् में हिंदी के जाने माने शिक्षाविद् हैं। आपने हिंदी व्याकरण पर दो पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें से हिंदी व्याकरण मीमांसा--जो हिंदी व्याकरण का एक शब्दानुशासन कोश है--हिंदी भाषा प्रेमियों एवं प्रतियोगिता विद्यार्थियों के लिए रामबाण ओषधि है। आपने यह पुस्तक 12 वर्षों के अध्यापन अनुभव और आपकी धर्मपत्नी सीमा जाखड़ (राजस्थान पुलिस में उपनिरीक्षक) के सहयोग से पूर्ण की हैं।
- Choudhary Khoja Ram Kalirana - From Jajiwal Jakhro Ki Dhani.
See also
References
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-279.
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. क-124
- ↑ Dilip Singh Ahlawat: Jat viron ka Itihas
- ↑ Jat Bandhu, 25 September, 2007
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 229
- ↑ Dilip Singh Ahlawat: Jat viron ka Itihas
- ↑ Jat Bandhu, 25 September 2007
- ↑ Jat Bandhu, 25 September 2007
- ↑ Jat Bandhu, 25 September 2007
- ↑ User:Sk56
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