Lohargal

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Author: Laxman Burdak IFS (R)

Lohargal Bawdi

Lohargal (लोहार्गल) is a beautiful place of great tourist interest, situated in the Jhunjhunu District, Rajasthan. It is famous for its natural scenic beauty. Lohargal is 68 km from Jhunjhunu via Nawalgarh and Udaipurwati. It is situated at a distance of 10 km from Udaipurwati.

Variants

History

Lohargal has great historical importance – regarded as the place of Bhima, one of the heroes of the great epic of India – the Mahabharata. The holy shrine of Lohargal is situated at the foot hills of the Aravalli Ranges.

In the Varāha Purana, a place named Lohārgala is stated to be ruled over by the Mleccha kings. [1]

There is a holy water tank at Lohargal, where pilgrims who cannot afford to go all the way to Varanasi come to wash away their sins. According to myth a mighty and huge army of Pandavas came to bathe here after their glorious victory on the battle fields only to find that their weapons and armours dissolved in the water. The literal meaning of Lohargal is Loha (Iron)+Gal (To melt), means that melts the iron.

Other tourist attractions worth visiting include Malket, Barkhandi, Gyan Bawari, Bhim Kund and Chetan Das Bawari. A large fair, held here every year from Krishna Janmashtami to Amawashya, is a major draw.

The nearest bus station is at Golyana. Regular buses are available to Nawalgarh, Udaipurwati and Sikar.

Shri Navrang Singh Jakhar along with Sahib Singh Verma, the Chief Minister of Delhi inaugurated the Lohargal Jat Dharmsala on 30 June 2004. The attempts of Navrang Singh Jakhar to develop this site have succeeded in making it a good centre for tourist attraction.

Jaina sources

From Lohārgalā the Lord Mahavira moved to Purimatāla and stood in meditation at the ‘Śakaṭamukha’ garden outside the city. From there, passing through 'Unnāga' and ‘Gobhūmi’, he arrived at Rājagṛha.[2][3]

लोहार्गल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...लोहार्गल (1) (AS, p.824) = लुहारू (AS, p.821) सीकर से 20 मील की दूरी पर स्थित राजस्थान का प्राचीन तीर्थ है। यह स्थान रामानंद संप्रदाय का विशिष्ट स्थान है। लुहारू में भगवान सूर्य देव का एक प्राचीन मंदिर स्थिति है। पर्वत के नीचे पुराणों में प्रसिद्ध 'ब्रह्मसर' बताया गया है। ऐसी प्रचीन अनुश्रति प्रचलित है कि पांडवों ने महाभारत के युद्ध के पश्चात् इस तीर्थ की यात्री की थी।

लोहार्गल (2) (AS, p.824) = वराह पुराण 15 में उल्लिखित है. यह स्थान संभवतः कुमायूं में चंपावत के निकट लोहाघाट है. यह वैष्णव तीर्थ है.

ब्रह्मह्रद

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...ब्रह्मह्रद = लोहार्गल (AS, p.651): लुहारू या प्राचीन लोहारगल पर्वत की तलहटी में यह पुराण प्रसिद्ध तीर्थ है। कहा जाता है कि पांडवों ने महाभारत के युद्ध के पश्चात् इस तीर्थ की यात्री की थी।

लोहार्गल परिचय

लोहार्गल राजस्थान के शेखावाटी इलाके के झुंझुनू ज़िले से 70 कि.मी. दूर अरावली पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे से क़रीब दस कि.मी. की दूरी पर स्थित है। लोहार्गल का अर्थ होता है- "जहाँ लोहा गल जाए"। पुराणों में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है। लोहार्गल में पर्यटन की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।

पौराणिक उल्लेख: लोहार्गल एक प्राचीन, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। लोगों की इसके प्रति अटूट आस्था भी है। भक्तों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है। लोहार्गल के विषय में कथा है कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया, तब पांडव अपने स्वजनों की हत्या के पाप से व्यथित थे। श्रीकृष्ण के निर्देश पर वह सभी तीर्थ स्थलों के दर्शन करते भटक रहे थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार जल में गल जायेंगे, वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांडव लोहार्गल आये तथा जैसे ही उन्होंने यहाँ के सूर्यकुंड में स्नान किया उनके सारे हथियार गल गये। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझा और इसे 'तीर्थराज' की उपाधि से विभूषित किया। फिर भगवान शिव की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की।

दर्शनीय स्थल: पहले लोहार्गल में केवल साधु-संन्यासी ही रहा करते थे, पर अब गृहस्थ लोग भी यहाँ रहने लगे हैं। यहाँ एक बहुत विशाल बावड़ी है, जो महात्मा चेतन दास जी ने बनवाई थी। यह राजस्थान की बड़ी बावड़ियों में से एक है। साथ के पहाड़ पर प्राचीन सूर्यमंदिर बना हुआ है। साथ ही वनखंड़ी जी का मंदिर भी है। कुंड़ के पास ही प्राचीन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर तथा पांडव गुफ़ा स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढियाँ चढने पर मालकेतु जी के दर्शन किये जा सकते हैं। यहाँ समय-समय पर मेले लगते रहते हैं। हज़ारों नर-नारी यहाँ आकर कुंड में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।

राजस्थान के शेखावटी इलाके के झुंझुनूं जिले से 70 कि. मी. दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे से करीब दस कि.मी. की दूरी पर स्थित है लोहार्गल। जिसका अर्थ होता है जहां लोहा गल जाए। पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है। झुंझुनू जिले में अरावली पर्वत की शाखाये उदयपुरवाटी तहसील से प्रवेश कर खेतडी, सिंघाना तक निकलती है, जिसकी सबसे उंची चोटी 1050 मीटर लोहार्गल में है ।

महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था, पर पांडव स्वजनों की हत्या के पाप से व्यथित थे। श्री कृष्ण के निर्देश पर वह सभी तीर्थ स्थलों के दर्शन करते भटक रहे थे। श्री कृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांण्ड़व लोहार्गल आये तथा जैसे ही उन्होंने यहां के सूर्य कुंड़ में स्नान किया उनके सारे हथियार गल गये। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ राज की उपाधी से विभूषित किया। फिर शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की।

लोहार्गल में सिर्फ पांडवों ने ही कुल हत्या का पाप नहीं धोया था, बल्कि ये जगह गवाह है परशुराम के पश्चाताप की भी. विष्णु के छठें अंशअवतार परशुराम ने क्रोध में क्षत्रियों का संहार कर दिया था, लेकिन शांत होने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ.

पहले यहां सिर्फ साधू-सन्यासी ही रहा करते थे, पर अब गृहस्थ लोग भी रहने लगे हैं। यहां एक बहुत विशाल बावड़ी है जो महात्मा चेतन दास जी ने बनवाई थी, यह राजस्थान की बड़ी बावड़ियों में से एक है। साथ के पहाड़ पर प्राचीन सूर्यमंदिर बना हुआ है। साथ ही वनखंड़ी जी का मंदिर है। कुंड़ के पास ही प्राचीन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर तथा पांड़व गुफा स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढियां चढने पर मालकेतु जी के दर्शन किये जा सकते हैं। यहां समय-समय पर मेले लगते रहते हैं। हज़ारों नर-नारी यहां आ कुण्ड़ में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।

लोहार्गल एक प्राचीन, धार्मिक, ऐतिहासिक स्थल है। लोगों की इसके प्रति अटूट आस्था भी है। भक्तों का यहां आना-जाना लगा रहता है फिर भी इस क्षेत्र की हालत सोचनीय है। सरकार की ओर से पूर्णतया उपेक्षित इस जगह पर प्राथमिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। चारों ओर गंदगी का आलम है। पशु-मवेशी खुले आम घूमते रहते हैं। सड़कों की हालत दयनीय है। नियमित बस सेवा भी उपलब्ध नहीं है। रहने खाने का भी कोई माकूल इंतजाम नहीं है। यदि इस ओर थोड़ा सा भी ध्यान पर्यटन विभाग दे तो यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का आना शुरु हो सकता है।

भूतपूर्व विधायक नवलगढ़ श्री नवरंग सिंह ने 30 जून 2004 को दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री साहिब सिंह वर्मा के साथ जाट धर्मशाला लोहार्गल का उद्घाटन किया. आपके प्रयास से इस स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए गति प्रदान की गई.

सूर्यकुण्ड (लोहार्गल)

सूर्यकुण्ड राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसकी धार्मिक मान्यता है। यह लोहार्गल की पहाड़ियों में स्थित है, जिसका अर्थ होता है- "जहाँ लोहा गल जाए"। यह राजस्थान में पुष्कर के बाद दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ है। इस तीर्थ का सम्बन्ध पांडवों, भगवान परशुराम, भगवान सूर्य और भगवान विष्णु से है। झुंझुनू ज़िले के दक्षिण में ज़िला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत शृंखला में स्थित यह पवित्र स्थल सीकर-नीम का थाना सड़क मार्ग पर सीकर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है। यहाँ का अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शनीय है, जो यात्रियों को सहज ही आकर्षित करता है। भाद्रपद मास में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से अमावस्या तक प्रत्येक वर्ष लोहार्गल के पहाड़ों में हज़ारों लाखों नर-नारी पैदल परिक्रमा करते हैं और अमावस्या के दिन सूर्यकुण्ड में पवित्र स्नान के साथ यह परिक्रमा विधिवत संपन्न होती है।

पांडवों को पाप से मुक्ति: महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, लेकिन जीत के बाद भी पांडव अपने परिजनों की हत्या के पाप से चिंतित थे। लाखों लोगों के पाप का दर्द देख श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि जिस तीर्थ स्थल के तालाब में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे, वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पाण्डव लोहार्गल आ पहुँचे तथा जैसे ही उन्होंने यहाँ के सूर्यकुण्ड में स्नान किया, उनके सारे हथियार गल गये। इसके बाद शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ राज की उपाधि से विभूषित किया। मान्यता

यह क्षेत्र पहले ब्रह्मक्षेत्र था। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक दैत्य का संहार करने के लिए मत्स्य अवतार लिया था। शंखासुर का वध कर विष्णु ने वेदों को उसके चंगुल से छुड़ाया था। इसके बाद इस जगह का नाम ब्रह्मक्षेत्र रखा।

यहां प्राचीन काल से निर्मित सूर्य मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसके पीछे भी एक अनोखी कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में काशी में सूर्यभान नामक राजा हुए थे, जिन्हें वृद्धावस्था में अपंग लड़की के रूप में एक संतान हुई। राजा ने भूत-भविष्य के ज्ञाताओं को बुलाकर उसके पिछले जन्म के बारे में पूछा। तब विद्वानों ने बताया कि पूर्व के जन्म में वह लड़की मर्कटी अर्थात बंदरिया थी, जो शिकारी के हाथों मारी गई थी। शिकारी उस मृत बंदरिया को एक बरगद के पेड़ पर लटका कर चला गया, क्योंकि बंदरिया का मांस अभक्ष्य होता है। हवा और धूप के कारण वह सूख कर लोहार्गल धाम के जलकुंड में गिर गई किंतु उसका एक हाथ पेड़ पर रह गया। बाकी शरीर पवित्र जल में गिरने से वह कन्या के रूप में आपके यहाँ उत्पन्न हुई है। विद्वानों ने राजा से कहा, आप वहां पर जाकर उस हाथ को भी पवित्र जल में डाल दें तो इस बच्ची का अंपगत्व समाप्त हो जाएगा। राजा तुरंत लोहार्गल आए तथा उस बरगद की शाखा से बंदरिया के हाथ को जलकुंड में डाल दिया। जिससे उनकी पुत्री का हाथ स्वतः ही ठीक हो गया। राजा इस चमत्कार से अति प्रसन्न हुए। विद्वानों ने राजा को बताया कि यह क्षेत्र भगवान सूर्यदेव का स्थान है। उनकी सलाह पर ही राजा ने हजारों वर्ष पूर्व यहां पर सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड का निर्माण करवा कर इस तीर्थ को भव्य रूप दिया।

परशुराम की प्रायश्चित स्थली: विष्णु के छठे अंशअवतार भगवान परशुराम ने क्रोध में क्षत्रियों का संहार कर दिया था, लेकिन शान्त होने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। तब उन्होंने यहां आकर पश्चाताप के लिए यज्ञ किया तथा पाप मुक्ति पाई थी। [6]

Population

As per Census-2011 statistics, Lohargal village has the total population of 1470 (of which 766 are males while 704 are females).[7]

Notable Persons

External Links

References


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