Mohammadpur South Delhi

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Note - Please click → Mohammadpur for details of similarly named villages at other places.


Mohammad Pur(मोहम्मद पुर) village is now an urbanised village in Delhi, surrounded all around by Central Govt. employees locality called 'R.K. Puram' in south Delhi. Same condition persists in respect of its neighbouring village, Munirka.

Jat Gotras

  • Dagar : Jats of Dagar Gotra established Mohammad pur village first then Tokas from munirka joined the village in 1902.
  • Tokas : Jats of Tokas gotra settled in this village, from neighbouring Munirka village.

Notablee People

History

Dagar established this village later joined by tokas and tomars, Tokas Jats from Munirka village to Humayunpur (हुमायूंपुर), Mohammad Pur (मोहम्मदपुर), Mukhmailpur (मुखमैलपुर), Silanigaon (सिलानीगांव), Lahiki Hasanpur (लहिकी हसनपुर) (Near Hodal) on Palwal to Sohana Road. They are in villages Tawadu (तावडू ), Gudda Guddi (Nihalgarh), Shekhpura (शेखपुरा), Vasi (वसी), Pataudi Goyala (पटौदी गोयला) , Rawata (रावता), Ambarahi (अम्बराही) , Galampur (गालमपुर) , Munda (मुण्डा), Kheda (खेड़ा), Jhad Setli (झाड़ सेतली), Dhul Siras (धूल सिरस), (Nazafgarh Kharkhadi Raund), Safiabad (सफिआबाद), Kharkhoda, Sonipat etc villages.[1]


Ram Sarup Joon[2] writes...At present, there are five villages of Takshak Jats in this area viz. Mohammed Pur, Manirka, Shahpura, Haus Khas and Katwaria.

भाट ग्रन्थ की पुस्तक

भाट ग्रन्थ की पुस्तक के अनुसार टोकस जाटों का वंश - चन्द्रवंश, कुल-यदुकुल, मूल गोत्र-अत्री, शाखा-टोकस, किला-तहन गढ़ (राजस्थान), तख्त (मुख्यस्थान) - मथुरापुरी , निशान-पीला, घोड़ा-मुद्रा , कुल देवी- योगेश्वरी , देवता-कृष्ण, मन्त्र - पंचाक्षरी, पूजन व शस्त्र-तलवार, नदी-यमुना, वेद-यजुर्वेद, उपवेद-धनुर्वेद, वृक्ष-कदम्ब, निकास - टांक टोडा से और पहला पडाव रावलदी (हरयाणा) है. [3]

चरखी दादरी के पास रावलदी की भागा/भागवती नाम की कन्या बहरोड़ ब्याही थी. बहरोड़ में भागा को वहां के बहुसंख्यक समाज के लोग तंग करते थे. भागा ने रावलदी से अपने भाई राजा उदय सिंह टोकस व राजा रुद्ध सिंह टोकस को बुलवाया. उन्होंने बहुसंख्य तंग करने वाले समाज को परास्त किया. भागा के नाम से अलग गाँव बसाया. जो आज भांगी बहरोड़ के नाम से प्रसिद्द है. [4]

अपनी बहन भागा की रक्षा के लिए टोकस वंश के लोग भागी में रहने लगे. तबसे गाँव भागी में टोकसों का खेड़ा आबाद हुआ.

कुछ समय पश्चात चौधरी उदय सिंह और चौधरी रुद्ध सिंह की पत्नियों ने कहा कि आपकी बहन अब सुरक्षित है और सुख से रह रही है. अतः अब हमें बहन के घर से प्रस्थान करना चाहिए. बहन के पास कुछ आदमी छोड़कर वे वहां से निकले. रस्ते में चले जा रहे थे की उनकी गाड़ी का धूरा टूट गया. उन्होंने वहीँ पड़ाव डाला

पंडित चन्द्रभान वैद्द्य (भट्ट) के अनुसार छोटी रानी (रुद्ध सिंह की पत्नि) के यह कहने पर कि जेठ जी को थोडा हटकर आगे डेरा डालने के लिए कहदें तो राजा उदय सिंह ने इस बात को ताना मानकर पीलीभीत चले गए. वहां से पुछवाया कि छोटी रानी से पूछो कि क्या और आगे जाऊं . इस तरह राजा उदय सिंह पीलीभीत में बस गए.

रुद्ध सिंह अकेले रह गए. वहां से नाहरपुर आकर बसे. वहां की जमीन ख़राब होने के कारण बाबरपुर आकर बसे, जिसे हार्डिंग ब्रिज कहते हैं. यहाँ से चलकर रुद्ध सिंह टोकस स्थाई रूप से मुनीरका में आकर बस गए. भट्ट ग्रन्थ के अनुसार विक्रमी संवत १५०३ सन १४४६ वरखा सावन सुदी नवम तिथि दिन सोमवार को रुद्ध सिंह ने मुनिरका गाँव बसाया. रुद्ध सिंह टोकस का गाय, भैंस का दूध का कारोबार था. और वे मनीर खां नामक पठान से भी दूध का कारोबार करते थे. मनीर खां पठान रुद्ध सिंह का कर्जदार था. वह कर्जा नहीं पटा पाया. इसलिए मनीर खां ने वीरपुर, रायपुर, उजीरपुर तीनों पट्टियां रुद्ध सिंह को दे दी. इस तरह से वे इस जागीर के मालिक बने. मनीर खान को ये जागीरें बादशाह मुबारक शाह ने इनाम में दी थी. [5]

उस समय मुनीरका गाँव की जमीन ७००० बीघे थी. जिसमें आज आर. के. पुरम, जे. अन. यू, डी. डी. ए. फ्लेट , बसंत कुञ्ज, बसंत बिहार आबाद हैं. सन १६७५ विक्रम संवत १७३२ में रुद्ध सिंह के वंशज रूपा राम/रतिया सिंह टोकस मुनिरका से हुमायूंपुर गाँव जा बसे और उसके पश्चात् १७१५ विक्रम संवत १७७२ में तुला राम टोकस मुनीरका से मोहम्मदपुर गाँव जा बसे. [6]

आज मुनिरका गाँव में टोकस वंश के २०० परिवार हैं जिनकी आबादी २० से २५ हजार के बीच है. अरावली पर्वत के अंचल में बसा मुनिरका गाँव प्राकृतिक नालों के बीच स्थित है. पहले यहाँ बीहड़ जंगल हुआ करते थे. मुनिरका गाँव में सिद्ध मच्छेन्द्र यती गुरु गोरख नाथ सिद्ध बाबा से सम्बद्ध गाँव के इष्टदेव मुनिवर बाबा गंगनाथ जी का प्राचीन मंदिर है. बाबा गंगनाथ जी ने यहाँ वर्षों तपस्या करके जिन्दा समाधी ली थी. बाबा गंगनाथ जी की समाधी, इनका भव्य मंदिर और इनकी धूनी आज भी गाँव का हृदय स्थल है. मंदिर के पास एक प्राचीन भव्य तालाब है. [7]

See also

References

  1. Jat Samaj Patrika, Agra, October-November 2001, p.9
  2. History of the Jats/Chapter II,p. 31
  3. Jat Samaj Patrika, Agra, October-November 2001, p.9
  4. जाट समाज पत्रिका:आगरा, अक्टूबर-नवम्बर २००१, पृष्ठ ९
  5. जाट समाज पत्रिका:आगरा, अक्टूबर-नवम्बर २००१, पृष्ठ ९
  6. जाट समाज पत्रिका:आगरा, अक्टूबर-नवम्बर २००१, पृष्ठ ९
  7. जाट समाज पत्रिका:आगरा, अक्टूबर-नवम्बर २००१, पृष्ठ १७

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