Nagda Udaipur

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Location of Nagda in Udaipur District‎

Nagda (नागदा) is an ancient town in Girwa tahsil of Udaipur District of Rajasthan.

Variants of name

Location

Founders

Nagda was founded by Nagas. Its ancient name was Nagahrada (नागहृद). It gets name from Naga+Dahan = burning of Nagas. In struggle between Aryans and Nagavanshis there took place a massacre of Nagas at this place.

History

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है....नाग - यह नागहृद और नागौर में राज करते थे। इनसे सातवीं शताब्दी में यह दोनों ही स्थान निकल गए।

Birth of Bappa

James Tod[2] writes that We know very little concerning these early princes but that they dwelt in this mountainous region for eight generations ; when the Bhils, tired of a foreign rule, assailed Nagaditya, the eighth prince, while hunting, and deprived him of life and Idar. The descendants of Kamlavati (the Birnagar Brahmani), who retained the office of priest in the family, Avere again the preservers of the line of Valabhi. The infant Bappa, son of Nagaditya, then only three years old, was conveyed to the fortress of Bhander, where he was protected by a Bhil of Yadu descent. Bhander is Fifteen miles south-west of Jharol, in the wildest region in India. [In Gwalior State, IGI, viii. 72.]


[p.260]: Thence he was removed for greater security to the wilds of Parasar. Within its impervious recesses rose the three-peaked (trikuta) mountain, at whose base was the town of Nagindra, the abode of Brahmans, who performed the rites of the ' great god.' In this retreat passed the early years of Bappa, wandering through these Alpine valleys, amidst the groves of Bal and the shrines of the brazen calf. Nagindra or Or Nagda, still a place of religious resort, about ten miles north of Udaipur. Here I found several very old inscriptions relative to the family, which preserve the ancient denomination Gohil instead of Gehlot. One of these is about nine centuries old. [The ancient name was Nagahrida (Erskine ii. A. 106).]


Nagda is site of ancient ruins. Founder of Mewar, Bappa Rawal had made it his first capital. Bappa was married with Kokila, daughter of Raja Chandra Singh of this place. Iltutmish destroyed it in 1210 AD. After this attack people left this place and moved to Ahar or Dulakota near Udaipur. Nagda or Nagahrada has been mentioned Jaina literature Tirtha-Mala Chaityavandana as - 'वन्दे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे (नागह्रद) नाणके'. [3]

Its Jaina temple is dedicated to Shantinatha. In earlier times Parshva temple of this place was well known. The present temple of Shantinatha was built during the reign of Kumbhakarna.[4]

Achaleshwar temple inscription of year 1342 V.E. (1285 AD)

डॉ. गोपीनाथ [5] लिखते हैं कि यह शिलालेख अचलेश्वर (आबू) के मंदिर के पास वाले मठ के एक चौपाल के दीवार में लगाया गया था. इसमें 47 पंक्तियाँ हैं. भाषा पद्य में संस्कृत है. इसका समय वि.सं. 1342 माघ शुक्ल १ दिया गया है. इसमें बापा से लेकर समरसिंह के काल की वंशावली दी है. समरसिंह के बारे में लिखा है की उसने यहाँ सुवर्णध्वजधारी मठ का निर्माण कराया और वह यहाँ रहने वाले भावशंकर महात्मा का शिष्य था. प्रस्तुत लेख में मेवाड़ का बड़ा रोचक वर्णन दिया गया है. मेदपाट के सम्बन्ध में प्रशस्तिकार लिखता है क़ि बापा के द्वारा यहाँ दुर्जनों का संहार हुआ और उनकी चर्बी से यहाँ की भूमि गीली हो जाने से इसे मेदपाट कहा गया. नागदा नगर के सम्बन्ध में हारीत ऋषि का वर्णन आता है जिन्होंने यहाँ घोर तपस्या की थी. इन्हीं की अनुकम्पा से बापा को राज्य प्राप्त हुआ और क्षत्रियत्व की प्राप्ती हुई. इसी प्रकार आबू को भी एक तपस्या का स्थान बताकर यहाँ के सौन्दर्य और वन की सम्पति का वर्णन बड़ा रोचक है. इस प्रशस्ति का रचयिता प्रियपटु का पुत्र वेद शर्मा नागर था. इसका लेखक शुभचंद्र और उत्कीर्णकर्ता कर्मसिंह सूत्रधार था.

इसके कुछ पद्यांश इस प्रकार हैं -

हारीतात्किल बप्पकोअध्रिवलय व्याजेन लेभे मह:
क्षात्रंधातृनिभाद्वितीर्य मुनये ब्राह्मं स्वसेवाच्छ्लात्
एते अद्यापि महीभुज क्षितितल तद्व श संभूतय:
शोभंते सुतरामुपात्तवपुष: क्षात्राहि धर्मा इव ।।11।।


Notes by Wiki editor -

1. हारीत ऋषि - Harita (हरिता) is a village in Hisar tahsil and in district Haryana. It was founded by Nagil Jats who came from Ranthambhor. There is a need to research relation between Harta Rishi and history of Nagil clan.

2. Bappa Rawal - Bappa Rawal (Kalbhoj) (b. Prince Kalbhoj, ca 713-d. 753, at Eklingji), eighth ruler of the Guhilot Dynasty and founder of the Mewar Dynasty. He acquired Kshatriya status by blessings of Harita Rishi at Nagda. His actual name was Prince Kalbhoj who came from Atri clan and did not continue the family name of seven generations when he came to the throne.[6]

नागदा उदयपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...नागदा (AS, p.484) उदयपुर, राजस्थान से 13 मील (लगभग 20.8 कि.मी.) उत्तर की ओर स्थित एक प्राचीन नगर है। यह प्राचीन नगर अधिकतर खंडहरों के रूप में पड़ा हुआ है। चारों ओर अरावली पहाड़ की चोटियाँ दिखाई देती हैं। प्राचीन काल के अनेक मंदिर, जिनका नष्टप्राय कलावैभव आज भी दर्शकों को मुग्ध कर देता है, एक झील के निकट बने हुए हैं। मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने नागदा ही में अपनी राजधानी बनाई थी। यहां के राजा चंद्र सिंह की कन्या कोकिला से उनका विवाह हुआ था.

1210 ई. में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने आक्रमण करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इस आक्रमण के पश्चात नागदा के निवासी नगर को छोड़कर आहार अथवा धूलकोट (अब उदयपुर का एक भाग) नामक स्थान पर जाकर बसने लगे. किंतु फिर भी कई 100 वर्षों तक नागदा में अनेक कलापूर्ण मंदिरों का निर्माण होता रहा.


नागदा के प्राचीन मंदिरों की संख्या 2112 कही जाती है, जो आस-पास की पहाड़ियों पर दूर-दूर तक दिखाई देते हैं। वर्तमान मंदिरों में अधिकांश हिन्दू शैली में बने हैं। कुछ जैन मंदिर भी बने हुए हैं। दो उल्लेखनीय जैन मंदिर खुमाण रावल तथा अद्भुतजी नाम के हैं। यह दूसरा मंदिर 1437 ई. में ओसवाल सारंग ने बनवाया था। सास-बहू के प्रसिद्ध मंदिर विष्णु के देवालय थे। ये 10वीं-11वीं शती ई. में बने थे। ये दोनों श्वेत पत्थर के चौकोर चबूतरों पर बने हैं, जो 140 फुट लम्बे हैं। प्रवेश द्वार तोरण के रूप में निर्मित हैं।

सास के मंदिर का शिखर ईंटों का है और शेष मंदिर संगमरमर का बना हुआ है। ये विशाल संगमरमर के पत्थर इतने सुदृढ़ रूप से जुड़े हुए हैं कि सैकड़ों वर्षों के बाद आज भी अडिग हैं। शिखर अब जीर्ण अवस्था में है। सास के मंदिर के स्तम्भ,

[p.485]: उत्कीर्ण शिलापट्ट एवं मूर्तियाँ सभी शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मंदिर के बाहरी भाग में भी सुंदर मूर्तिकारी प्रदर्शित है। पूर्वी व दक्षिणी भागों में कई प्रकार की चित्रविचित्र जालियां बनी हैं, जिनसे सूर्य का प्रकाश छन कर अंदर पहुँचता है। सभा मंडप विशाल है और अद्भुत शिल्पकारी से संपन्न है। इसकी छत में एक बृहत् कमल पुष्प उकेरा हुआ है, जिसकी विकसित पंखड़ियों पर चार नर्तकियाँ नृत्य मुद्रा में प्रदर्शित हैं। नृत्य की मुद्रा का अंकन अपूर्व भावगरिमा एवं कला लावण्य के साथ किया गया है। स्तम्भों पर भी अनेक कलामयी मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। इनमें से कई पर रास व भजन मंडलियों के दृश्यों का अंकन है। दूसरों पर नारी सौंदर्य के अप्रतिम मूर्तिचित्र केवल उच्च कला ही के नहीं वरन् तत्कालीन समाज के भी प्रतिदर्श हैं।

बहू के मंदिर की कला भी कम विदग्धतापूर्ण नहीं। इसके सभा मंडप की मूर्तियों में मुख्यत: विष्णु, शिव, गरुड़ आदि प्रदर्शित हैं। इसकी छत पर भी सुंदर तक्षण कला की अभिव्यंजना है। मंदिर का शिखर अब पूर्ण रूप से टूट चुका है। इन मंदिरों की शिल्पकला आबू के दिलवाड़ा मंदिरों की याद दिलाती है। नागदा या नागह्रद का नामोल्लेख जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस प्रकार है- 'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे (नागह्रदे) नाणके।'

नागदा परिचय

नागदा में हिन्दू एवं जैन मन्दिरों के अनेक स्मारक हैं। नागदा पहले गुहिल शासकों की प्राचीन राजधानी रह चु्का है। 661 ई. (संवत् 718) का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। यहाँ के प्राचीन स्मारक समय के साथ नष्ट हो गये होंगे। यहाँ से प्राप्त 1026 ई. के एक अभिलेख के अनुसार, गुहिल शासक श्रीधर ने यहाँ के कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया था, वर्त्तमान का सास-बहू मंदिर इन्हीं मंदिरों में है। शैलीगत समानता के आधार पर भी ये मंदिर 10वीं और 11 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की स्थापना सहस्रबाहु नामक राजा के द्वारा करवाई गई थी, लेकिन चूँकि गुहिल वंश के इतिहास में इस नाम से किसी भी शासक की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।

गुहिल शासकों के सूर्यवंशी होने के कारण नागदा के इस मंदिर को विष्णु जी को समर्पित किया गया है। गर्भगृह के पृष्ठभाग की प्रमुख ताख में एक चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा प्रतिष्ठित है। दोनों मंदिरों के बाह्य भाग पर श्रृंगार-रत नर-नारियों का अंकन किया गया है। इस मंदिरों के दायीं ओर के कोने पर एक शक्ति मंदिर निर्मित है, जिस मंदिर में शक्ति के विविध रुपों का अंकन किया गया है। नागदा के पास ही एक मंदिर समूह एकलिंग या कैलाशपुरी के नाम से जाना जाता है। यहाँ के लकुलीश मंदिर से प्राप्त शिलालेख 971 ई. का है और यह सर्वाधिक प्राचीन है। अन्य मंदिर 12वीं शताब्दी के हैं। [8]

See also

  • Achalgarh
  • Chirwa - For Mewar history in 'Chirwa Inscription of 1265 AD'
  • Eklingaji - For Mewar history in many Inscriptions

References

  1. Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Shashtham Parichhed, p.127
  2. James Tod: Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume I, Annals of Mewar, p.259-260
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.484
  4. Encyclopaedia of Jainism, Volume-1 By Indo-European Jain Research Foundation p.5531
  5. शर्मा डॉ. गोपीनाथ शर्मा: राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत, 1983, पृ. 116
  6. http://en.wikipedia.org/wiki/Bappa_Rawal
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.484
  8. भारतकोश-नागदा उदयपुर

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