Peetha Mali

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Peetha Mali (born:?-death:24.08.1828) rehabilitated the village Rulyana Mali on 22.04.1784 in Laxmangarh tahsil in Sikar district of Rajasthan.

चौ.पीथा माली

'रुल्याणा माली', पृ.93, माली वंशवृक्ष
'रुल्याणा माली', पृ.94, माली वंशवृक्ष
'रुल्याणा माली', पृ.95, माली वंशवृक्ष

चौ.पीथा माली (मृत्यु:24 जुलाई 1828 गुरुवार) - 22 अप्रैल 1784 गुरुवार के दिन खंडहर बन चुका रुल्याणा गांव पुनः आबाद हुआ और पीथा इस गांव को बसाने वाला द्वितीय प्रवर्तक बना। पीथा माली के पिता का नाम दीपा माली था। पीथा माली की दो पत्नियाँ थी - पहली पत्नी पेमाराम की बेटी फूलां और दूसरी पत्नी सेवा गाँव की किसनी। पीथा माली के 5 बेटे हुये - 1. बालू, 2. डूंगा, 3. रामू, 4. रूपा, 5. उदा। पीथा माली के 6 बेटियाँ हुई - 1. रामा, 2. अणदी, 3. मेह, 4. बरजी, 5. गंगा, 6. जीवणी [1]

पीथा माली की वंशावली

लाखनसीखींवसीजिन्द्रपालमानकरावमालंगसी/मलसी माली (1135 ई. में सांभर छोड़ा और 1137 ई. में मालीसर) (मलसी की पत्नि:सुंदर पूनिया पुत्री जोधराज पूनिया, चन्द्रा की पोती ) → धरमा (1221 ) (पत्नि:हेमी गोदारा, पुत्री मेहा गोदारा/हिदु की पोती, ) → जैतपाल (1272, 1281) (पत्नि: रायमल भावरीया, की पुत्री सायर) (भाई: करमसी, बहिन: राजां, जोरां) → उदय (1286) (पत्नि: सुलखा हरचतवाल की बेटी सिणगारी) (भाई रतन, जीवराज, बहिन सरस्वती) (उदयसी, रतनसी, जीवराज मालीसर छोड़ पलसाना बसे- 1295) → धनराज (बहिन गणी) → → → कई पीढ़ियाँ → घासीराम माली (पलसाना छोड़कर कासली बसा 1456) → → → कई पीढ़ियाँ → धर्मा (खडता व धर्मा ने कासली छोड़ गांव पूरां बसाया (28 अप्रैल 1675 ई.) → पांचू (1723) (भाई बीजा, लौहट) → → → कई पीढ़ियाँ → दीपा मालीपीथा माली (पुरां छोड़ रुल्याणा माली बसा 22.04.1784, मृत्यु:24.08.1828) (पहली पत्नी पेमारम की बेटी फूलां, दूसरी पत्नी सेवा की किसनी) → बालू, डूँगा, रामू, रूपा, उदा

माली गोत्र का इतिहास

विक्रम संवत 1192 (=1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान के बाद मलसी ने मालीसर गांव बसाया- वैशाख सुदी आखा तीज के दिन विक्रम संवत 1194 साल (=1137 ई.)। जहां मलसी ने पनघट का कुआं खुदवाया, जोहड़ खुदवाया, सवा सौ बीघा पड़तल भूमि छोड़ी तथा महादेव जी की छतरी करवाई। [2]

मलसी माली (1135 ई.) (पत्नि:सुंदर पूनिया पुत्री जोधराज पूनिया, चन्द्रा की पोती ) → धरमा (पत्नि:हेमी गोदारा, पुत्री मेहा गोदारा/हिदु की पोती) → जैतपाल (पत्नि: रायमल भावरीया, की पुत्री सायर) (भाई: करमसी, बहिन: राजां, जोरां) → उदय (पत्नि: सुलखा हरचतवाल की बेटी सिणगारी) (भाई रतन, जीवराज, बहिन सरस्वती) → धनराज (बहिन गणी) [3]

धरमा माली ने बेटी राजा व जोरां का विवाह किया- वैशाख सुदी तीज विक्रम संवत 1278 (=1221 ई.) विवाह में 21 गायें दहेज में दी। विक्रम संवत 1329 (=1272 ई.) में मालीसर गांव में धर्मा की याद में करमसीजैतपाल ने ₹900 में पानी की 'पीय' कराई तथा विक्रम संवत 1338 (=1281 ई.) में मालीसर गांव में दान किया। विक्रम संवत 1342 (=1286 ई.) में मालीसर गांव में चौधरी उदय ने दान कार्य किया। (करमसी की पत्नि महासी निठारवाल की बेटी हरकू थी- वंश विराम)[4]

चौधरी उदयसी, रतनसी, जीवराज गांव मालीसर छोड़ पलसाना बसे- वैशाख सुदी 7 विक्रम संवत 1352 (=1295 ई.) (शनिवार) के दिन सवा पहर दिन चढ़ते समय छड़ी रोपी। [5]

विक्रम संवत 1513 (=1456 ई.) में चौधरी घासीराम माली पलसाना छोड़कर कासली बसा। [6]

वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1732 की साल (28 अप्रैल 1675 ई.) में चौधरी खडता व धर्मा ने कासली छोड़ गांव पूरां बसाया। [7]

विक्रम संवत 1746 (1689 ई.) की साल धर्मा ने पुरां में धर्माणा जोहड़ा खुदवाया। कार्तिक सुदी सात विक्रम संवत 1754 (=1697 ई.) में चौधरी पांचू, बीजा, लौहट ने पिता धर्मा का मौसर किया। वह गंगाजी घाल गंगोज कराया। विक्रम संवत 1780 (=1723 ई.) की साल चौधरी पांचू/बाछू ने दान कार्य किया। [8]

माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम

रुल्याणा माली गांव के माली गोत्र के पूर्वज तुर्कों के सांभर पर आक्रमण के फलस्वरूप विक्रम संवत 1192 (1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान कर गए तथा विक्रम संवत 1194 (1137 ई.) की साल के किसी दिन छड़ी रोककर मालीसर गाँव बसाया। माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम निम्न तरह से मिलता है[9]:

सांभर (विक्रम संवत 1192 = 1135 ई.) → मालीसर (विक्रम संवत 1194 = 1137 ई.) → पलसाना (विक्रम संवत 1352 = 1295 ई.) → कासली (विक्रम संवत 1513 = 1446 ई.) → छापर (विक्रम संवत 1518 = 1461 ई.) → बाड़ा (विक्रम संवत 1522 = 1465 ई.) → बुसड़ी खेड़ा (?) (विक्रम संवत 1525 = 1468 ई.) → भींवसर (विक्रम संवत् 1535 ई. = 1478 ई.) [10]

कासली (विक्रम संवत 1513= 1446 ई.) → पुरां डूंगरा की (विक्रम संवत 1732= 1675 ई.) → रुल्याणा माली (वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1841 = 22 अप्रैल 1784) [11]

झाड़ी वाले माली ढूंढाड़बादलवासदुगोलीरुल्याणा माली [12]

पलसाना से क्रमिक स्थानांतरण के लगभग चार सौ साल बाद माली पुरां (डूंगरा की) बसे और वहां से करीब सौ साल बाद दीपा माली का बेटा पीथा माली रुल्याणा माली में आकर बसा। [13]

वि.सं. 1841 में चौधरी पीथा का पुरां छोड़ रुल्याणा बसना

'रुल्याणा माली', पृ.93, माली वंशवृक्ष
'रुल्याणा माली', पृ.94, माली वंशवृक्ष
'रुल्याणा माली', पृ.95, माली वंशवृक्ष

विक्रम संवत 1840 का चालीसा अकाल या अन्य तत्कालीन दुरुह परिस्थितियों में दीपा माली का बेटा चौधरी पीथा अपने अन्य बंधुओं व घर परिवार को छोड़कर अन्यत्र बसने की खोज में पूरां गांव से विस्थापन कर गया। पूरां से प्रस्थान के पश्चात बसने के स्थल की तलाश में चौधरी (महत) पीथा बैशाख सुदी तीज (आखातीज) विक्रम संवत 1841 (22 अप्रैल 1784 ई. गुरुवार) के दिन इस खंडहर बन चुके प्राचीन निर्जन गांव भारमली का रुल्याणा से होकर अपनी बैलगाड़ी पर गुजर रहा था जहां गोधूलि बेला के समय क्षितिज में डूबते सूरज को देख रात्रि को विश्राम के लिए रुका और इन्हीं घड़ियों में प्रकृति के कुछ शुभ संकेतों को देखकर रात्रि विश्राम में धरती से जुड़े कुछ लगाओं से उसने यहीं बसने का फैसला किया। इस तरह से मात्र संयोगवस 22 अप्रैल 1784 गुरुवार के दिन खंडहर बन चुका रुल्याणा गांव पुनः आबाद हुआ और इत्तेफाक से पीथा इस गांव को बसाने वाला द्वितीय प्रवर्तक बना। [14]

बसने के पश्चात उसने जमाने के इंसान की दो प्रमुख आवश्यकतओं यथा जमीन और पानी अर्थात जोतने हेतु जमीन की खोज और कुएं से पानी निकालने के उपकरणों की तलाश में दोपहर बाद उत्तर पश्चिम दिशा के जंगल की ओर निकला। यह दिन वैशाख सुदी पंचम विक्रम संवत 1841 (24 अप्रैल 1784 ई.) था, अचानक से आई आंधी में जंगल में वह सुध-बुध भूल गया। अकस्मात आए संकट की घड़ी में घिरे पीथा ने अपने इष्ट देव रामापीर का स्मरण किया तब उसे सुध-बुध आई और रामापीर की याद में सवा सौ बीघा बनी छोड़ी। [15]

1784 ई. का यह वही साल है जब भारत के मुगल बादशाह है शाह आलम द्वितीय (1759-1806) के शासनकाल में अंग्रेजी गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स अंग्रेजी राज की जड़ें जमा रहा था यानी यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि आबाद गांव अंग्रेजी राज से पहले का है। पुराना गांव- भारमली का रुल्याणा तो कम से कम मुगलकाल या उससे भी पहले का रहा होगा तथापि ज्यादा संभावना यही है कि मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 ई. से पहले 13-14 वीं सदी में या राजपूत पतन काल में भी किसी न किसी रूप में या छोटे रूप में इसका अस्तित्व रहा होगा। [16]

सारांशत: समयचक्र की एक लंबी एवं पूरी की पूरी श्रंखला समेटे यह गांव कितने ही सालों-सदियों की सभ्यता व संस्कृति की विरासत की यादें अपनी आंखों में संजोए हुए है। [17]

बड़वा भइयों में वर्णित है- राजा लाखनसी जी का बेटा खींवसी जी का बेटा जिन्द्रपाल जी का बेटा मानकराव जी का बेटा मालंगसी से माली जाट गोत्र को प्रसिद्धि मिली। विक्रम संवत 1192 की साल गढ़ सांभर थान छोड़ मालीसर बसाया विक्रम संवत 1194 (=1137 ई.) की साल। [18]

पीथा के गाँव रुल्याणा माली में में बसने के वर्षों बाद ढूंढाड़ से रेखा माली आया। वह पहले बादलवास बसा फिर दुगोली और अंत में रुल्याणा आकर बस गया। रेखा माली एक सज्जन व अमीर आदमी था। रेखा माली के बारे में कहा जाता है कि उसके पास चांदी के रुपयों से भरे बिलोवने थे। रुल्याणा गांव में इनके घर झाड़ी का बड़ा पेड़ था जिस कारण इस परिवार को झाड़ी वाले भी बोला जाता है। बहुत समय तक बादलवास छोड़कर आने को लेकर मन में नाराजगी रही। [19]

पीथा की मृत्यु आषाढ़ शुक्ला द्वादशी विक्रम संवत 1885 (24 जुलाई 1828 गुरुवार) के दिन हुई और स्रावण बदी नवमी विक्रम संवत 1885 (4 अगस्त 1828 बुधवार) के दिन चौधरी (महत) बालू, डूँगा, रामू, रूपा ने पिता पीथा का मृत्यु भोज किया। गंगा (हरिद्वार) के पंडों की बही में में पीथा का दूसरा नाम 'बींजा' भी मिलता है। [20]

माली जाट गोत्र को चौहानों का समर्थक और सहयोगी माना गया है। चौहनों की तरह जीणमाता तथा सांभर मूल निवास होने के कारण सम्भराय (शाकंभरी) माता को पूजते हैं। मालीचोटिया दोनों जात भाई माने जाते हैं। [21]

पूरां (डूंगरा की) की शक्ति माता

पिथा के रुल्याणा माली गांव में बसने से पहले उनके पैतृक गांव पूरां (डूंगरा की) में गठित हुई एक घटना का विवरण आज तक लोगों से कहते सुना जा सकता है। कहते हैं कि पिथा के परिवार में भोजाई की सोने की नथ ननंद ने चुरा ली थी। भोजाई द्वारा उसे वापस मांगने या चोरी कर लेने की आशंका दर्शाने पर ननदने मना कर दिया। आखिर विवाद से तंग आकर व ननद के 'जलजा' के चुभने वाले बोल पर भोजाई ने आत्मदाह कर लिया। उसी समय जलती हुई भोजाई ने श्राप दे दिया कि "मालियों के आई हुई सुख पाएगी और गई हुई (जाई-जन्मी) दुख पाएगी (स्वर्गीय श्री हरदेवा पटेल के अनुसार)। [22]

इस कहावत में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता परंतु आज भी जब इस गांव की किसी बेटी को उसके ससुराल में कष्ट पहुंचता है तो उस समय सती का कहा गया कथन लोगों को अनायास ही स्मरण हो जाता है। आज भी पूरा (डूंगरां की) गांव में शक्ति का चबूतरा मौजूद है जिसे माली पूजते हैं तथा उस शक्ति को देवी स्वरूप मानकर उसकी याद में विवाह के अवसर पर फेरों में शक्ति का एक नख टाला जाता है। [23]

रुल्याणा माली गांव में बसने के चार पांच साल बाद संभवत है विक्रम संवत 1845 के कार्तिक मास में सेवाग्राम की घटना घटी। उस समय भूमिगत पानी से पीने और सिंचाई के लिए बैलों द्वारा पानी निकाला जाता था। रुल्याणा माली गाँव में बसने के कुछ सालों बाद पीथा ने विक्रम संवत 1865 में पहला कुआं आथुनी कोठी खुदवाई। इसके अगले ही वर्ष विक्रम संवत 1866 में वर्तमान ढूँढाणी कोठी खुदवाई। कुछ वर्षों बाद उत्तराधी पोली का निर्माण किया जो इस आबाद गांव के इतिहास की पहली पोली थी, जो बाद में उनके बड़े बेटे बालू के हिस्से में आई। आगे चल कर पीथा ने अपने अन्य दो विवाहित बेटों (दूंगा व रामू) के लिए दो पोलियाँ बनवाई। यही प्रारंभिक तीन पोलियाँ थी जिनके बनाने के स्थान की अवस्थिति के आधार पर इस गांव के मालियों को आज तक जाना-पहचाना जाता रहा है। [24]

आषाढ़ शुक्ला द्वादशी गुरुवार विक्रम संवत 1885 (24 अगस्त 1828 ई.) को पीथा का स्वर्गवास हुआ और उसके चारों बेटों बालू, डूँगा, रामू और रूपा ने श्रद्धांजलि दी। [25]

पिथा का मृत्यु भोज श्रावण बदी नवमी (4 अगस्त 1828) बुधवार के दिन किया गया। इस अवसर पर दूर-दराज से कोसों तक के गांवों के लोग कुछ हजार की संख्या में इकट्ठा हुए थे। बारहवें जिन लोगों को देसी घी के हलवे का जीमण करवाया गया और शाम तक जब भीड़ असीमित बढ़ी तो अंत में बचे लोगों को 105 मण सूखे मोठ बांटे गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस जमाने में पीथा के मौसर में जीमण के लिए कितने लोग इकट्ठे हुये होंगे। [26]

पीथा की ग्राम सेवा की दूसरी पत्नी किसनी

पीथा की दूसरी पत्नी - विक्रम संवत 1845 (=1788 ई.) में पीथा माली एक बार सीकर जगीरदार की एक बैठक में भाग लेकर ऊंट पर सवार होकर सेवा गांव से गुजरते हुये घर लौट रहे थे। रास्ते में वह सेवा ग्राम में एक चौधरी को हुक्का पीते देखकर उसके साथ हुक्का पीने के लिए खाट पर बैठ गए। पराई जगह से आकर बसने के कारण आसपास के गांव के लोग पीथा को एक 'ओपरा जाट' (बाहरी) मानते थे और उसको यहां से भगाना चाहते थे। इसी संदर्भ में सेवा के जाट ने मजाक में कह दिया- 'माली कौन सी जाति होती है?' इतना कहकर पीथा को नली निकाल कर हुक्का पकड़ा दिया- यह जताने के लिए कि वह उनकी बिरादरी का नहीं है। इस प्रकार उसने पीथा का अपमान कर दिया। [27]

पीथा को यह अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने हुक्का फैंकते हुये हुए मूछों पर ताव लगाकर कसम खाई - "अब हुक्का तो तभी पीऊँगा जब तुम्हारी जाई या ब्याही को घर ले जाऊंगा"। उसी दिन वहां से लौटकर यही प्रण उसने अपने धर्म की बहन (बठोठ गढ़ के ठाकुर की पत्नी) को बताया और उस दिन के बाद वह अपने अपमान का बदला लेने हेतु मौके की ताक में रहने लगा। कहते हैं एक दिन जब विक्रम संवत 1845 कार्तिक मास में पीथा सेवा गांव के खेतों से होकर अपने ऊंट पर सवार होकर सीकर से घर लौट रहा था। [28]

पीथा ने एक खेत में दो औरतों (ननद - भोजाई) को काम करते हुए देखा। उसने सोच-समझ कर ऊंट के नीचे जमीन पर अपनी लाठी गिरा दी तथा उस लड़की को वापस पकड़ाने के लिए कहा। ज्योंही वह लड़की लाठी पकड़ाने लगी त्योंही पीथा ने उस लड़की का हाथ पकड़कर ऊँटपर बैठा लिया और सीधा बठोठ गढ़ में ले आया जहाँ उसकी धर्म की बहन (बठोठ गढ़ के ठाकुर की पत्नी) ने पहले ही उसे बोल रखा था कि मैं इसे किसी को नहीं ले जाने दूंगी। घटना के समय खेत में कुछ ही दूरी पर खड़ी भोजाई ने इस घटना को देखा और जाकर गांव वालों को बताया। सेवा के लोग ऊंट के पद-चिन्हों के साथ-साथ बठोठ गढ़ के ठाकुर के पास पहुंचे। [29]

बठोठ ठाकुर ने दोनों गुटों से कहा कि जो ज्यादा पैसा देगा यह लड़की उसी की होगी। साजिश के तहत ठाकुर ने पीथा को ₹1000 पहले ही दे दिए थे और वही पैसे लेकर वह सबके सामने आ पहुंचा। सेवा के चौधरी के पास ₹150 ही जमा हो पाए थे। इस प्रकार लड़की जिसका नाम संभवत: 'किसानी' था, पीथा के दल को सौंप दी गई। बताया जाता है कि दोनों पक्षों में इस बारे में मुकदमा भी चला था। आगे चलकर पीथा की इस पत्नी से उसे एक बेटी की प्राप्ति हुई जो गांगियासर ब्याही गई। पीथा के जीवन सत्य में यह खलल जरूर है परंतु यह हादसा सही था या गलत यह तो उस समय की परिस्थितियों की समझ में ही निहित है। उस काल में बदनाम करने के लिए बड़वा लोगों द्वारा जागीरदारों के समर्थन से इस तरह की काल्पनिक कहानियाँ हर जाट गोत्र के साथ जोड़ी गई थी।[30]

See also

External links

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  1. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.93
  2. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
  3. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
  4. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
  5. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
  6. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
  7. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
  8. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
  9. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.72
  10. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.72
  11. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.72
  12. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.72
  13. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.72
  14. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.57
  15. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.57
  16. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.58
  17. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.58
  18. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.58
  19. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.59
  20. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.59
  21. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.70
  22. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.76
  23. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.77
  24. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.77
  25. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.77
  26. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.78
  27. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.89
  28. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.89
  29. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.90
  30. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.91