Mali
Mali (माली) gotra Jats are found in Rajasthan and Madhya Pradesh. Mali (मली) or Mal is found in Afghanistan.[1]They are same as Malii Jats in India and Pakistan. Mali Jats were supporters of chauhans and worship Shakambhari and Jeenmata godesses like Chauhans. Mali and Chotia have brotherly relations.[2]
Origin
- This gotra is said to be originated from ancient tribe Malava of Mahabharata which are same as Mallians of Arrian[3], the historian of Alexander the Great.
Jat Gotras Namesake
- Mali = Malīṭīná = Melitene (Pliny.vi.3)
- Mali (माली) (Jat clan) → Mali (माली). Mali (माली) village is in Jamai tahsil in Chhindwara district of Madhya Pradesh.
- Mali (Jat clan) → Mali village in Bandhogarh tahsil, Umaria district, Madhya Pradesh.
- मालिसै (जाट गोत्र - माली) : मालिसै नाम का गाँव झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले की सोनुआ विकास-खंड में है।
Villages founded by Mali clan
- Malisar (मालीसर) is an ancient village in tahsil .... district Sikar in Rajasthan, founded by Malsi Mali in VS 1194 (=1137 AD.)
- Rulyana Mali (रुल्याणा माली) - village in Laxmangarh tahsil in Sikar district in Rajasthan.
Mention by Panini
Mala (माल) is a place name mentioned by Panini in Ashtadhyayi under Sankaladi (संकलादि) (4.2.75) group[4].
Mala (माला) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [5]
History
Dr Pema Ram writes that after the invasion of Alexander in 326 BC, the Jats of Sindh and Punjab migrated to Rajasthan. They built tanks, wells and Bawadis near their habitations. The tribes migrated were: Shivis, Yaudheyas, Malavas, Madras etc. The Shivi tribe which came from Ravi and Beas Rivers founded towns like Sheo, Sojat, Siwana, Shergarh, Shivganj etc. This area was adjoining to Sindh and mainly inhabited by Jats. The descendants of Malavas are: Mal, Madra, Mandal, Male, Malloi etc. [6]
माली गोत्र का इतिहास
विक्रम संवत 1192 (=1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान के बाद मलसी ने मालीसर गांव बसाया- वैशाख सुदी आखा तीज के दिन विक्रम संवत 1194 साल (=1137 ई.)। जहां मलसी ने पनघट का कुआं खुदवाया, जोहड़ खुदवाया, सवा सौ बीघा पड़तल भूमि छोड़ी तथा महादेव जी की छतरी करवाई। [7]
मलसी माली (1135 ई.) (पत्नि:सुंदर पूनिया पुत्री जोधराज पूनिया, चन्द्रा की पोती ) → धरमा (पत्नि:हेमी गोदारा, पुत्री मेहा गोदारा/हिदु की पोती) → जैतपाल (पत्नि: रायमल भावरीया, की पुत्री सायर) (भाई: करमसी, बहिन: राजां, जोरां) → उदय (पत्नि: सुलखा हरचतवाल की बेटी सिणगारी) (भाई रतन, जीवराज, बहिन सरस्वती) → धनराज (बहिन गणी) [8]
धरमा माली ने बेटी राजा व जोरां का विवाह किया- वैशाख सुदी तीज विक्रम संवत 1278 (=1221 ई.) विवाह में 21 गायें दहेज में दी। विक्रम संवत 1329 (=1272 ई.) में मालीसर गांव में धर्मा की याद में करमसी व जैतपाल ने ₹900 में पानी की 'पीय' कराई तथा विक्रम संवत 1338 (=1281 ई.) में मालीसर गांव में दान किया। विक्रम संवत 1342 (=1286 ई.) में मालीसर गांव में चौधरी उदय ने दान कार्य किया। (करमसी की पत्नि महासी निठारवाल की बेटी हरकू थी- वंश विराम)[9]
चौधरी उदयसी, रतनसी, जीवराज गांव मालीसर छोड़ पलसाना बसे- वैशाख सुदी 7 विक्रम संवत 1352 (=1295 ई.) (शनिवार) के दिन सवा पहर दिन चढ़ते समय छड़ी रोपी। [10]
विक्रम संवत 1513 (=1456 ई.) में चौधरी घासीराम माली पलसाना छोड़कर कासली बसा। [11]
वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1732 की साल (28 अप्रैल 1675 ई.) में चौधरी खडता व धर्मा ने कासली छोड़ गांव पूरां बसाया। [12]
विक्रम संवत 1746 (1689 ई.) की साल धर्मा ने पुरां में धर्माणा जोहड़ा खुदवाया। कार्तिक सुदी सात विक्रम संवत 1754 (=1697 ई.) में चौधरी पांचू, बीजा, लौहट ने पिता धर्मा का मौसर किया। वह गंगाजी घाल गंगोज कराया। विक्रम संवत 1780 (=1723 ई.) की साल चौधरी पांचू/बाछू ने दान कार्य किया। [13]
विक्रम संवत 1840 का चालीसा अकाल या अन्य तत्कालीन दुरुह परिस्थितियों में दीपा माली का बेटा चौधरी पीथा अपने अन्य बंधुओं व घर परिवार को छोड़कर अन्यत्र बसने की खोज में पूरां गांव से विस्थापन कर गया। पूरां से प्रस्थान के पश्चात बसने के स्थल की तलाश में चौधरी (महत) पीथा बैशाख सुदी तीज (आखातीज) विक्रम संवत 1841 (22 अप्रैल 1784 ई. गुरुवार) के दिन इस खंडहर बन चुके प्राचीन निर्जन गांव भारमली का रुल्याणा से होकर अपनी बैलगाड़ी पर गुजर रहा था जहां गोधूलि बेला के समय क्षितिज में डूबते सूरज को देख रात्रि को विश्राम के लिए रुका और इन्हीं घड़ियों में प्रकृति के कुछ शुभ संकेतों को देखकर रात्रि विश्राम में धरती से जुड़े कुछ लगाओं से उसने यहीं बसने का फैसला किया। इस तरह से मात्र संयोगवस 22 अप्रैल 1784 गुरुवार के दिन खंडहर बन चुका रुल्याणा गांव पुनः आबाद हुआ और इत्तेफाक से पीथा इस गांव को बसाने वाला द्वितीय प्रवर्तक बना। [14]
बसने के पश्चात उसने जमाने के इंसान की दो प्रमुख आवश्यकतओं यथा जमीन और पानी अर्थात जोतने हेतु जमीन की खोज और कुएं से पानी निकालने के उपकरणों की तलाश में दोपहर बाद उत्तर पश्चिम दिशा के जंगल की ओर निकला। यह दिन वैशाख सुदी पंचम विक्रम संवत 1841 (24 अप्रैल 1784 ई.) था, अचानक से आई आंधी में जंगल में वह सुध-बुध भूल गया। अकस्मात आए संकट की घड़ी में घिरे पीथा ने अपने इष्ट देव रामापीर का स्मरण किया तब उसे सुध-बुध आई और रामापीर की याद में सवा सौ बीघा बनी छोड़ी। [15]
1784 ई. का यह वही साल है जब भारत के मुगल बादशाह है शाह आलम द्वितीय (1759-1806) के शासनकाल में अंग्रेजी गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स अंग्रेजी राज की जड़ें जमा रहा था यानी यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि आबाद गांव अंग्रेजी राज से पहले का है। पुराना गांव- भारमली का रुल्याणा तो कम से कम मुगलकाल या उससे भी पहले का रहा होगा तथापि ज्यादा संभावना यही है कि मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 ई. से पहले 13-14 वीं सदी में या राजपूत पतन काल में भी किसी न किसी रूप में या छोटे रूप में इसका अस्तित्व रहा होगा। [16]
सारांशत: समयचक्र की एक लंबी एवं पूरी की पूरी श्रंखला समेटे यह गांव कितने ही सालों-सदियों की सभ्यता व संस्कृति की विरासत की यादें अपनी आंखों में संजोए हुए है। [17]
बड़वा भइयों में वर्णित है- राजा लाखनसी जी का बेटा खींवसी जी का बेटा जिन्द्रपाल जी का बेटा मानकराव जी का बेटा मालंगसी से माली जाट गोत्र को प्रसिद्धि मिली। विक्रम संवत 1192 की साल गढ़ सांभर थान छोड़ मालीसर बसाया विक्रम संवत 1194 (=1137 ई.) की साल। [18]
माली गोत्र के प्रमुख निकास स्थल व गांव: आबू कुंड निकास, नाडोल निकाल, अजमेर-सांभर का राज-थान, मालीसर गांव-थान, पलसाना, पूरां, कासली, रुल्याणा, बोठ-बादेड़, छापर, भींवसर, धोलीपाल, किलावाली, कीलानी (Kelania?), करियाहाली, गोलूहाला, पक्का सारना, रावतसर, रतनपुर, पुरोहित का बास, चौमू, सांगलिया, सिमली का बास (?), मीठड़ी, धरानिया, सुपका, कलवानिया (?), लालासरी, आदि। [19]
माली जाट गोत्र पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान में भी मिलती है। राजस्थान में छापर, खिरकिया (हरदा, म.प्र), रींगस, फकीरपुरा, भींवसर, ढाबां (संगरिया), नून्द (Nagaur) आदि मालियों के अन्य मुख्य गांव हैं। [20]
पीथा के गाँव रुल्याणा माली में में बसने के वर्षों बाद ढूंढाड़ से रेखा माली आया। वह पहले बादलवास बसा फिर दुगोली और अंत में रुल्याणा आकर बस गया। रेखा माली एक सज्जन व अमीर आदमी था। रेखा माली के बारे में कहा जाता है कि उसके पास चांदी के रुपयों से भरे बिलोवने थे। रुल्याणा गांव में इनके घर झाड़ी का बड़ा पेड़ था जिस कारण इस परिवार को झाड़ी वाले भी बोला जाता है। बहुत समय तक बादलवास छोड़कर आने को लेकर मन में नाराजगी रही। [21]
पीथा की मृत्यु आषाढ़ शुक्ला द्वादशी विक्रम संवत 1885 (24 जुलाई 1828 गुरुवार) के दिन हुई और स्रावण बदी नवमी विक्रम संवत 1885 (4 अगस्त 1828 बुधवार) के दिन चौधरी (महत) बालू, डूँगा, रामू, रूपा ने पिता पीथा का मृत्यु भोज किया। गंगा (हरिद्वार) के पंडों की बही में में पीथा का दूसरा नाम 'बींजा' भी मिलता है। [22]
माली जाट गोत्र को चौहानों का समर्थक और सहयोगी माना गया है। चौहनों की तरह जीणमाता तथा सांभर मूल निवास होने के कारण सम्भराय (शाकंभरी) माता को पूजते हैं। माली व चोटिया दोनों जात भाई माने जाते हैं। [23]
रुल्याणा माली गांव के माली गोत्र के पूर्वज तुर्कों के सांभर पर आक्रमण के फलस्वरूप विक्रम संवत 1192 (1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान कर गए तथा विक्रम संवत 1194 (1137 ई.) की साल के किसी दिन छड़ी रोककर मालीसर गाँव बसाया। माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम निम्न तरह से मिलता है[24]:
सांभर (विक्रम संवत 1192 = 1135 ई.) → मालीसर (विक्रम संवत 1194 = 1137 ई.) → पलसाना (विक्रम संवत 1352 = 1295 ई.) → कासली (विक्रम संवत 1513 = 1446 ई.) → छापर (विक्रम संवत 1518 = 1461 ई.) → बाड़ा (विक्रम संवत 1522 = 1465 ई.) → बुसड़ी खेड़ा (?) (विक्रम संवत 1525 = 1468 ई.) → भींवसर (विक्रम संवत् 1535 ई. = 1478 ई.) [25]
कासली (विक्रम संवत 1513= 1446 ई.) → पुरां डूंगरा की (विक्रम संवत 1732= 1675 ई.) → रुल्याणा माली (वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1841 = 22 अप्रैल 1784) [26]
झाड़ी वाले माली ढूंढाड़ → बादलवास → दुगोली → रुल्याणा माली [27]
पलसाना से क्रमिक स्थानांतरण के लगभग चार सौ साल बाद माली पुरां (डूंगरा की) बसे और वहां से करीब सौ साल बाद दीपा माली का बेटा पीथा माली रुल्याणा माली में आकर बसा। [28]
पिथा के रुल्याणा माली गांव में बसने से पहले उनके पैतृक गांव पूरां (डूंगरा की) में गठित हुई एक घटना का विवरण आज तक लोगों से कहते सुना जा सकता है। कहते हैं कि पिथा के परिवार में भोजाई की सोने की नथ ननंद ने चुरा ली थी। भोजाई द्वारा उसे वापस मांगने या चोरी कर लेने की आशंका दर्शाने पर ननदने मना कर दिया। आखिर विवाद से तंग आकर व ननद के 'जलजा' के चुभने वाले बोल पर भोजाई ने आत्मदाह कर लिया। उसी समय जलती हुई भोजाई ने श्राप दे दिया कि "मालियों के आई हुई सुख पाएगी और गई हुई (जाई-जन्मी) दुख पाएगी (स्वर्गीय श्री हरदेवा पटेल के अनुसार)। [29]
इस कहावत में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता परंतु आज भी जब इस गांव की किसी बेटी को उसके ससुराल में कष्ट पहुंचता है तो उस समय सती का कहा गया कथन लोगों को अनायास ही स्मरण हो जाता है। आज भी पूरा (डूंगरां की) गांव में शक्ति का चबूतरा मौजूद है जिसे माली पूजते हैं तथा उस शक्ति को देवी स्वरूप मानकर उसकी याद में विवाह के अवसर पर फेरों में शक्ति का एक नख टाला जाता है। [30]
रुल्याणा माली गांव में बसने के चार पांच साल बाद संभवत है विक्रम संवत 1845 के कार्तिक मास में सेवाग्राम की घटना घटी। उस समय भूमिगत पानी से पीने और सिंचाई के लिए बैलों द्वारा पानी निकाला जाता था। रुल्याणा माली गाँव में बसने के कुछ सालों बाद पीथा ने विक्रम संवत 1865 में पहला कुआं आथुनी कोठी खुदवाई। इसके अगले ही वर्ष विक्रम संवत 1866 में वर्तमान ढूँढाणी कोठी खुदवाई। कुछ वर्षों बाद उत्तराधी पोली का निर्माण किया जो इस आबाद गांव के इतिहास की पहली पोली थी, जो बाद में उनके बड़े बेटे बालू के हिस्से में आई। आगे चल कर पीथा ने अपने अन्य दो विवाहित बेटों (दूंगा व रामू) के लिए दो पोलियाँ बनवाई। यही प्रारंभिक तीन पोलियाँ थी जिनके बनाने के स्थान की अवस्थिति के आधार पर इस गांव के मालियों को आज तक जाना-पहचाना जाता रहा है। [31]
आषाढ़ शुक्ला द्वादशी गुरुवार विक्रम संवत 1885 (24 अगस्त 1828 ई.) को पीथा का स्वर्गवास हुआ और उसके चारों बेटों बालू, डूँगा, रामू और रूपा ने श्रद्धांजलि दी। [32]
पीथा का मृत्यु भोज श्रावण बदी नवमी (4 अगस्त 1828) बुधवार के दिन किया गया। इस अवसर पर दूर-दराज से कोसों तक के गांवों के लोग कुछ हजार की संख्या में इकट्ठा हुए थे। बारहवें जिन लोगों को देसी घी के हलवे का जीमण करवाया गया और शाम तक जब भीड़ असीमित बढ़ी तो अंत में बचे लोगों को 105 मण सूखे मोठ बांटे गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस जमाने में पीथा के मौसर में जीमण के लिए कितने लोग इकट्ठे हुये होंगे। [33]
रुल्याणा माली नामकरण: गांव के उजाड़ होने से पहले, उजाड़ के समय तथापि पीथा माली के बसने तक की लंबी अवधि तक इस गांव को भारमली का रुल्याणा कहा जाता था। भारमली एक ब्राह्मणी का नाम था। उसके नाम के पीछे यह नाम फैलता चला गया परंतु उसका मूल नाम रुल्याणा कहां से आया यह पता नहीं चल पाया है। ऐसा माना जाता है कि ढूंढाड़ से आकर इस जगह पर बसने वाले लोगों द्वारा ढूंढाड़ (प्राचीन जयपुर- आमेर) में अवस्थित इसी नाम के किसी गांव की तर्ज पर यह नाम अपनाया गया हो। [34]
मल्ल: ठाकुर देशराज
ठाकुर देशराज[35] ने लिखा है.... मल्ल - [पृ.100]: सिकंदर के साथियों ने इन्हें मल्लोई ही लिखा है। हिंदुस्तान के कई इतिहासकारों को उनके संबंध में बड़ा भ्रम हुआ है। वह इन्हें कहीं उज्जैन के आसपास मानते हैं। वास्तव में यह लोग पंजाब में रावी नदी के किनारे पर मुल्तान तक फैले हुए थे। फिरोजपुर और बठिंडा के बीच के लोग अपने प्रदेश को मालवा कहते हैं। बौद्ध काल में हम लोगों को चार स्थानों
[पृ.101]: पर राज्य करते पाते हैं-- पावा, कुशीनारा, काशी और मुल्तान। इनमें सिकंदर को मुल्तान के पास के मल्लों से पाला पड़ा था। इनके पास 90000 पैदल 10000 सवार और 900 हाथी थे। पाणिनी ने इन्हें आयुध जीवी क्षत्रिय माना है। हमें तो अयोधन और आयुध इन्हीं के साथी जान पड़ते हैं। जाटों में यह आज भी मल, माली और मालवन के नाम से मशहूर हैं। एक समय इनका इतना बड़ा प्रभाव हो गया था इन्हीं के नाम पर संवत चल निकला था। इनके कहीं सिक्के मिले जिन पर 'मालवानाम् जय' लिखा रहता है। ये गणवादी (जाति राष्ट्रवादी) थे। इस बात का सबूत इन के दूसरे प्रकार के उन सिक्कों से भी हो जाता है जिन पर 'मालव गणस्य जय' लिखा हुआ है। जयपुर के नागर नामक कस्बे के पास से एक पुराने स्थान से इनके बहुत से सिक्के मिले थे। जिनमें से कुछ पर मलय, मजुप और मगजस नाम भी लिखे मिले हैं। हमारे मन से यह उन महापुरुषों के नाम हैं जो इनके गण के सरदार रह चुके थे। इन लोगों की एक लड़ाई क्षत्रप नहपान के दामाद से हुई थी। दूसरी लड़ाई समुद्रगुप्त से हुई। इसी लड़ाई में इनका ज्ञाति राष्ट्र छिन्न-भिन्न हो गया और यह समुद्रगुप्त के साम्राज्य में मिला लिया गया इनके सिक्के ईसवी सन के 250-150 वर्ष पूर्व माने जाते हैं।
मल्ल या मालव जाट गोत्र
दलीप सिंह अहलावत[36] लिखते हैं: मल्ल या मालव चन्द्रवंशी जाट गोत्र है। रामायणकाल में इस वंश का शक्तिशाली राज्य था। सुग्रीव ने वानर सेना को सीता जी की खोज के लिये पूर्व दिशा में जाने का आदेश दिया। उसने इस दिशा के ब्रह्ममाल, विदेह, मालव, काशी, कोसल, मगध आदि देशों में भी छानबीन करने को कहा। (वा० रा० किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 40, श्लोक 22वां) भरत जी लक्षमणपुत्र चन्द्रकेतु के साथ मल्ल देश में गए और वहां चन्द्रकेतु के लिए सुन्दर नगरी ‘चन्द्रकान्ता’ नामक बसाई जो कि उसने अपनी राजधानी बनाई। (वा० रा० उत्तरकाण्ड, 102वां सर्ग) इससे ज्ञात होता है कि उस समय मालव वंश का राज्य आज के उत्तरप्रदेश के पूर्वी भाग पर था। महाभारत काल में भी इनका राज्य उन्नति के पथ पर था। महाभारत सभापर्व 51वें अध्याय में लिखा है कि मालवों ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में असंख्य रत्न, हीरे, मोती, आभूषण भेंट दिये। इससे इनके वैभवशाली होने का अनुमान लगता है। मालव क्षत्रिय महाभारत युद्ध में पाण्डवों एवं कौरवों दोनों की ओर से लड़े थे। इसके प्रमाण निम्न प्रकार हैं - महाभारत भीष्मपर्व 51वां, 87वां, 106वां के अनुसार मालव क्षत्रिय कौरवों की ओर से पाण्डवों के विरुद्ध लड़े। इससे ज्ञात होता है कि मालव (मल्ल) वंशियों के दो अलग-अलग राज्य थे। पाण्डवों की दिग्विजय में भीमसेन ने पूर्व दिशा में उत्तर कोसल देश को जीतकर मल्लराष्ट्र के अधिपति पार्थिव को अपने अधीन कर लिया। इसके पश्चात् बहुत देशों को जीतकर दक्षिण मल्लदेश को जीत लिया। (सभापर्व, अध्याय 30वां)। कर्णपर्व में मालवों को मद्रक, क्षुद्रक, द्रविड़, यौधेय, ललित्थ आदि क्षत्रियों का साथी बतलाया है। उन दिनों इनके प्रतीच्य (वर्तमान मध्यभारत) और उदीच्य (वर्तमान पंजाबी मालवा) नामक दो राज्य थे। इन दोनों देशों के मालवों ने महाभारत युद्ध में भाग लिया। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 311, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।)
पाणिनि ऋषि ने इन लोगों को आयुधजीवी क्षत्रिय लिखा है। बौद्ध काल में मालवों (मल्ल लोगों) का राज्य चार स्थानों पर था। उनके नाम हैं - पावा, कुशीनारा, काशी और मुलतान। जयपुर में नागदा नामक स्थान से मिले सिक्कों से राजस्थान में भी इनका राज्य रहना प्रमाणित हुआ है। अन्यत्र भी प्राप्त सिक्कों का समय 205 से 150 ई० पूर्व माना जाता है। उन पर मालवगणस्य जय लिखा मिलता है। सिकन्दर के समय मुलतान में ये लोग विशेष शक्तिसम्पन्न थे। मालव क्षत्रियों ने सिकन्दर की सेना का वीरता से सामना किया और यूनानी सेना के दांत खट्टे कर दिये। सिकन्दर बड़ी कठिनाई से आगे बढ़ सका। उस समय मालव लोगों के पास 90,000 पैदल सैनिक, 10,000 घुड़सवार और 900 हाथी थे। मैगस्थनीज ने इनको ‘मल्लोई’ लिखा है और इनका मालवा मध्यभारत पर राज्य होना लिखा है। मालव लोगों के
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-254
नाम पर ही उस प्रदेश का नाम मालवा पड़ा था। [37][38]वहां पर आज भी मालव गोत्र के जाटों की बड़ी संख्या है। सिकन्दर के समय पंजाब में भी इनकी अधिकता हो चुकी थी। इन मालवों के कारण ही भटिण्डा, फरीदकोट, फिरोजपुर, लुधियाना के बीच का क्षेत्र (प्रदेश) ‘मालवा’ कहलाने लगा। इस प्रदेश के लगभग सभी मालव गोत्र के लोग सिक्खधर्मी हैं। ये लोग बड़े बहादुर, लम्बे कद के, सुन्दर रूप वाले तथा खुशहाल किसान हैं। सियालकोट, मुलतान, झंग आदि जिलों में मालव जाट मुसलमान हैं। मल्ल लोगों का अस्तित्व इस समय ब्राह्मणों और जाटों में पाया जाता है। ‘कात्यायन’ ने शब्दों के जातिवाची रूप बनाने के जो नियम दिये हैं, उनके अनुसार ब्राह्मणों में ये मालवी और क्षत्रिय जाटों में माली कहलाते हैं, जो कि मालव शब्द से बने हैं। पंजाब और सिंध की भांति मालवा प्रदेश को भी जाटों की निवासभूमि एवं साम्राज्य होने का सौभाग्य प्राप्त है। (जाट इतिहास पृ० 702, लेखक ठा० देशराज)। महात्मा बुद्ध के स्वर्गीय (487 ई० पू०) होने पर कुशिनारा (जि० गोरखपुर) के मल्ल लोगों ने उनके शव को किसी दूसरे को नहीं लेने दिया। अन्त में समझौता होने पर दाहसंस्कार के बाद उनके अस्थि-समूह के आठ भाग करके मल्ल, मगध, लिच्छवि, मौर्य ये चारों जाट वंश, तथा बुली, कोली (जाट वंश), शाक्य (जाट वंश) और वेथद्वीप के ब्राह्मणों में बांट दिये। उन लोगों ने अस्थियों पर स्तूप बनवा दिये (जाट इतिहास पृ० 32-33, लेखक ठाकुर देशराज।) मध्यप्रदेश में मालवा भी इन्हीं के नाम पर है।
मालव वंश के शाखा गोत्र - 1. सिद्धू 2. बराड़
Distribution in Rajasthan
Villages in Churu district
Bara Sujangarh, Bhimsar (Sujangarh) Chhapar (22),
Villages in Hanumangarh district
Dhaban (Sangaria), Hanumangarh, Pakka Sarna,
Villages in Nagaur district
Villages in Sikar district
Fakirpura, Ringas, Rulyanamali, Sangalia, Sewad Badi, Sikar,
Villages in Pali district
Villages in Ajmer district
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Bhopal district
Villages in Hoshangabad district
Villages in Harda district
Notable persons
- Malsi Mali (मलसी माली) founded village Malisar (मालीसर), an ancient village in tahsil .... district Sikar in Rajasthan, in VS 1194 (=1137 AD.). He has been also mentioned as Malangsi (मालंगसी) in Badwa records
- Peetha Mali (born:?-death:24.08.1828) (पीथा माली) rehabilitated the village Rulyana Mali on 22.04.1784 in Laxmangarh tahsil in Sikar district of Rajasthan.
- Dr Harlal Singh Mali - Mob: 9549654561, Associate Professor in Mechanical Engineering Department at MNIT Jaipur Websites : Website-1 and Website-2, Email: harlal.singh@gmail.com; harlal.singh@mnit.ac.in
- Late Magharam Jat Mali: Former member of Nagarpalika Chhapar Churu,
- Prakash Mali: From Chhapar Churu Executive Engineer in NLCIL (Govt. of India Enterprises) posted at Barsingsar Thermal Power Plant, Bikaner,Rajasthan,Mo. No.-9001780042
- Har Narain Mali: Ex. President Madhya Pradesh Jat Sabha, Bhopal, Mob: 9926352094
- Ram Niwas Jat Mali - From Khirkiya. Amature Kabbadi Federation of India appointed him as national Empire. [39]
- Rajvir Singh Chaudhari (Mali): Soil Scientist, Krishi Vigyan Kendra, Chandgothi, Churu, Swami Keshwanand Rajasthan Agricultural University, Bikaner
Gallery of Mali people
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Har Narain Jat Mali: Ex. President Madhya Pradesh Jat Sabha, Bhopal
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Har Narain Jat Mali with daughter Pallawai Anil Lathi, Sarpanch Haliya Khedi, Nasrullaganj, Sehore, Madhya Pradesh
External links
See also
References
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan By H. W. Bellew, The Oriental University Institute, Woking, 1891, p.14,28,104,108,111,117,121,125,126,137,164
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.70
- ↑ Arrian (The Anabasis of Alexander, Ch-5.22,6.4,6.5,6.6,6.7,6.8,6.9,6.11,6.12,6.14)
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.507
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.247
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, First Edition 2010, ISBN:81-86103-96-1,p.14
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.55
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.56
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.57
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.58
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.59
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.59
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.59
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.70
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.72
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.76
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.77
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.77
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.78
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.80
- ↑ Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Pancham Parichhed,p.100-101
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.254-255
- ↑ ठा० देशराज जाट इतिहास पृ० 702, इस मालवा नाम से पहले इस प्रदेश का नाम अवन्ति था।
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter XI, p.706
- ↑ Jat Samaj, March 2009, p.32
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