Puranik Bhugol

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Dvipas

In Indian Cosmology, dvīpa is the term for the major divisions of the terrestrial sphere, sometimes translated as "continents". Dvīpa has a further meaning than "island" and "continent". "Dvipa" also means "planets" situated in the ocean of outer space.

"The "planets" are called "dvīpas". Outer space is like an ocean of air. Just as there are islands in the watery ocean, these planets in the ocean of space are called dvīpas, or islands in outer space" (Chaitanya Caritamrita Madhya 20.218, Purport). The list of seven (sapta-dvipa) is (e.g. Mahabharata 6.604 )

  1. Jambudvipa (land of Indian black berries)
  2. Kushadvipa (land of Kusha grass)
  3. Plakshadvipa (land of fig trees)
  4. Pushkaradvipa (land of Maple tree)
  5. Salmalidvipa (land of Bombax or silk cotton trees)
  6. Kraunchadvipa (land of kraunca birds)
  7. Shakadvipa (land of Shaka trees or people).[1]

पौराणिक भूगोल

ठाकुर देशराज[2]ने लिखा है....आर्यों का कौन-सा समूह कहां बसा? इस प्रश्न को हल करने के लिए पुराणोक्त इतिहास हमें बहुत सहायता देता है। पृथ्वी को पुराणों ने सात द्वीपों में विभाजित किया है और प्रत्येक द्वीप को सात वर्षों (देशों) में।3 यह बटवारा स्वायम्भू मनु के पुत्र प्रियव्रत ने अपने पुत्रों में किया है। प्रियव्रत के दस पुत्र थे4 जिनमें से तीन तपस्वी हो गये। सात को उन्होंने कुल पृथ्वी बांट दी। प्रत्येक के बट में जो हिस्सा आया, वह द्वीप कहलाया। आगे चलकर इन सात पुत्रों के जो सन्तानें हुई उनके बटवारे में जो भूमि-भाग आया, वह वर्ष या आवर्त (देश) कहलाया। निम्न विवरण से यह बात भली भांति समझ में आ जाती है -

द्वीप - 1. जम्बू, 2. शाल्मली, 3. कुश, 4. क्रौंच, 5. शाक, 6. पुष्कर, 7. प्लखण


3. पुष्कर द्वीप दो देशों (वर्षों) में ही विभाजित है और जम्मू द्वीप 9 वर्षों में
4. दस पुत्र दूसरी रानी के भी थे


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-3


अधिकारी - 1. अग्निध्र, 2. वपुष्मान, 3. ज्योतिष्मान, 4. द्युतिमान, 5. भव्य, 6. सवन, 7. मेधातिथि

जम्बू द्वीप आगे चलकर अग्निध्र के नौ पुत्रों में इस भांति बट गया-

1. भरतखण्ड के उपर वाला देश किम्पुरूष को मिला, जो उसी के नाम पर किम्पुरूष कहलाया। यही बात शेष 8 भागों के सम्बन्ध में भी है। जो देश जिसको मिला उसी के नाम पर उस देश का भी नाम पड़ गया,

2. हरिवर्ष को निषध पर्वत वाला देश (हरिवर्ष),

3. जिस देश के बीच में सुमेर पर्वत है और जो सबके बीच में है, वह इलावृत को,

4. नील पर्वत वाला रम्य देश, रम्य को,

5. श्वेताचल को बीच में रखने वाला तथा रम्य के उत्तर का हिरण्यवान देश, हिरण्यवान को,

6. श्रृंगवान पर्वत वाला सबके उत्तर समुद्री तट पर बसा हुआ कुरू-प्रदेश, कुरू को,

7. भद्राश्व जो कि सुमेरू का पूर्वी खण्ड है, भद्राश्व को,

8. इलावृत के पच्छिम सुमेर पर्वत वाला केतुमाल को और,

9. हिमालय के दक्षिण समुद्र का फैला हुआ भरतखण्ड नाभि को मिला ।

आज यह बता सकना कठिन है कि कौन-सा द्वीप कहां था? और उसके वर्ष (खण्ड, देश) आज किस नाम से पुकारे जाते हैं। विष्णु पुराण अंश 2, अध्याय 4 में इन द्वीपों का पता बताया गया है, किन्तु तब से भौगोलिक स्थिति में इतना परिवर्तन हुआ कि आज इन द्वीपों का ठीक स्थान जान लेना कठिन है। पुराणों के रचयिता ने जैसी बात सुनी थी, उसी के अनुसार उसका वर्णन कर दिया है। यह वर्णन प्रथम मनु के समय का है। तब से तो भूगोल में बड़े हेर-फेर हुए है। जल-प्रलय तो सातवें मनु के प्रारम्भिक समय ही में हो चुका था। इसके अतिरिक्त जहां समुद्र थे, आज रेत के बड़े-बड़े टीले हैं अथवा सहस्त्रों वर्ष पहले जहां जल ही जल दिखाई देता था, आज वहां आकाशचुम्बी पर्वत-मालाएं है।


1 . यह बटवारा क्रमश: है अर्थात जम्बू अग्निध्र को और प्लाक्षण मेघतिथि को मिला. श्रीमद्भागवत में वर्णित नामों में कुछ अंतर है
2 . विष्णु पुराण अंश 2 , अध्याय-1
3 . राजपूताने का उथला समुद्र. देखो 'भारतभूमि और उसके निवासी' पे. 21 , F E Partiger 'Ancient Indian Historical Tradition', p. 260
4 . कल्पों का इतिहास जानने वाले बताते हैं कि भारतवर्ष में सबसे पुराणी रचना आड़ावला (अरावली) विन्ध्यामेखला और दक्षिण भारत का पत्थर है. उनका विकास सजीव-कल्प में ही पूरा हो चूका था. उत्तर भारत अफगानिस्तान, पामीर, हिमालय, तिब्बत उस समय समुद्र के अन्दर थे. उसी प्राचीन समुद्र की लहरों में आड़ावला पर्वत को काट-काट कर उसके लाल पत्थर से मालवा का पत्थर बना दिया. द्वीतीय कल्प के अंतिम भाग खटिका (Cretaceous Period) युग से एक भारी भूकम्पों का सिलसिला आरंभ हुआ. जो तृतीय कल्प के आरंभ तक जारी रहा. उन्हीं भूकम्पों से हिमालय, तिब्बत, पामीर आदि तथा उत्तर-भारत के कुछ अंश समुद्र के ऊपर उठ गए. 'भारतभूमि और उसके निवासी पे. 19


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-4


फिर भी अनुमान के आधार पर पर्शिया और उसके निकटवर्ती देशों को शाक द्वीप कहने की कुछ इतिहासकारों ने हिम्मत की है। हमारे विचार में भी ईरान शाक द्वीप जंचता है, क्योंकि पुराणों में शाक द्वीप के ब्राह्मणों को मग लिखा है।1 और यह बात सर्वविदित है कि मग ईरानी ब्राह्मण थे जिन्हें पौराणिक कथा के अनुसार शाम्ब सूर्य-पूजा के निमित्त भारत में लाये थे। यह द्वीप प्रियव्रत ने अपने पुत्र ‘भव्य’ को सौंपा था।

जम्बू द्वीप के पच्छिमी किनारे के सहारे-सहारे प्लक्षण द्वीप था। आज का पच्छिमी तिब्बत और दक्षिणी साइबेरिया इसे समझा जा सकता है, क्योंकि विष्णु-पुराण में इसे जम्बू-द्वीप को घेरने वाला बताया है। इस द्वीप के अधिकारी मेधातिथि बनाये गये थे।

शाल्मली द्वीप में शाल के वृक्ष बहुतायत से पैदा होते थे। तब अवश्य ही नेपाल के पच्छिम से आरम्भ होकर यह द्वीप प्लक्षण तक फैला हुआ था। इक्षुर-सोद समुद्र को दोनों ओर से स्पर्श करने वाला पर्वत पुराणों में इसे कहा गया है। इससे यह तो साबित ही है कि ये दोनों द्वीप पास-पास थे। यह द्वीप वपुष्मान के बट में आया था।

कौंच द्वीप जो द्युतिमान को मिला था, वह भू-भाग हो सकता है जिसमें श्याम, चीन, कम्बोडिया, मलाया आदि प्रदेश अब स्थित हैं। यहां रूद्र की पूजा पुराण में होना बताई गई है। यहां रूद्र को तिग्मी कहा जाता था।

कुश द्वीप जयोतिष्मान को मिला था। आज इस भू-भाग को किस नाम से पुकारें तथा यह कहां पर था, यह पता पुराणों के वर्णन में कुछ भी नहीं मिलता है। इसमें एक मन्दराचल पहाड़ का वर्णन है। कल्पना से यह वही पहाड़ हो सकता है जिसे सूर्यास्त का पहाड़ कहा करते हैं। तब तो इस द्वीप का भू-भाग अमेरिका के सन्निकट रहा होगा।

लेकिन ऐतिहासिकों ने केवल शाक द्वीप की खोज में दिलचस्पी ली है। अथवा यह कहना चाहिए कि वे यहीं तक खोज करने में सफल हुए हैं।

इन समस्त द्वीपों में जम्बू-द्वीप सबसे बड़ा था। यदि पुष्कर को भी उसी का एक भाग मान लें तो फिर केवल छः द्वीप रह जाते हैं।


1 . विष्णु पुराण अंश 2 , अध्याय-4

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-5


जैन-ग्रन्थ इन द्वीपों की संख्या 16 तक मानते हैं।1 जैन हरिवंश-पुराण में जम्बू-द्वीप का इस तरह वर्णन है - यह लवण समुद्र तक है। बीच में इसके सुमेर पर्वत है। इसमें सात क्षेत्र (देश-वर्ष-आवर्त) हैं।2 छः कुल पर्वत हैं एवं चौहद महानदी हैं। पहला क्षेत्र (देश) भारतवर्ष सुमेर की दक्षिण दिशा में है, 2. हेमवत, 3. विदेह, 4. हरि, 5. रम्यक, 6. हैरण्यवत, 7. ऐरावत सुमेर के उत्तर में है।3 जैन अथवा ब्राह्ममण दोनों के पुराणों में यह भौगोलिक वर्णन प्रायः एक-सा है। जो भी अन्तर है वह नगण्य है।

हरिवर्ष को ऐतिहासिक लोग यूरोप मानते है।4 मानसरोवर के पच्छिम और सुमेर पर्वत के बीच के देश रम्य और भद्राश्व थे। यह काश्मीर का उत्तरी प्रदेश रहा होगा। केतुमाल देश को एशियाई माइनर समझना चाहिए। यह वर्तमान रूस का दक्षिणी-पूर्वी भाग था, क्योंकि पुराण इसे इलावृत के पच्छिम में बताते हैं।5 कुरू आज का मध्य-ऐशिया अथवा पूर्वी साइबेरिया था। इस विष्णु-पुराण ने समुद्र के किनारे और सब देशों के उत्तर में बताया है। किम्पुरूषवर्ष तातारियों का देश समझना चाहिए। इसका पता उसी पुराण में भारत के उत्तर में सबसे पहले के स्थान में बताया है। इलावृत को सुमेर के चतुर्दिक फैला हुआ प्रदेश माना गया है

आर्यों की दूसरी टोली इलावृत देश से भारत में आई बताई जाती है। पुराणों में विवस्वान मनु का भी स्थान सुमेर पर्वत बताया जाता है, जो कि इलावृत के मध्य में कहा गया है। इस तरह पहली टोली के मान्व-आर्य और दूसरी टोली के ऐल-आर्य एक ही महादेश के निवासी सिद्व होते हैं, किन्तु ऐल लोगों के साथ कुरू लोगों का भी एक बड़ा भाग था। मालूम ऐसा होता है, ऐल की कुरू देश में बसने के कारण कुरू कहलाते थे। पुराणों में इला का चन्द्र पुत्र बुध की स्त्री कहा गया है। इल-बुध सहवास से पुरूरवा हुए। भारत के समस्त चन्द्रवंशी क्षत्रिय पुरूरवा की ही संतति माने जाते हैं।

संदर्भ