Pakharia Kuntal

From Jatland Wiki
(Redirected from Veer Pakharia)
कौन्तेय वीर पाखरिया कुंतल (तोमर )
कौंतेय पुुष्करसिंह - बलिदान की अतुल्यनीय प्रतिमा

Pushkar Singh Kuntal alias Pakharia has been a great martyr in Tomar (Khuntail) gotra Jats. Pakharia played an important role in breaking the invincible gate of the fort at the time of attack on Delhi by Maharaja Jawahar Singh of Bharatpur. [1]

Variants of name

Chhatri of Pakharia Pushkar Singh Tomar

Chhatri of Pakharia Pushkar Singh Tomar

Pushkar Singh Tomar was born in a tomar (kuntal) jat family at Gunasara village at Kumher. He laid his life at Red fort when Maharaja Jawahar Singh of Bharatpur attacked at Delhi. He played an important role to break the gate of the fort. His chhatri is situated at Kuntal (Khuntel) patti between Bacchgaon and Konthra village. The Chhatri was built by Maharaja Jawahar Singhji in the memory of the martyrdom of his great warrior soldier Pushakr Singh Tomar. Tomar Jats are the descendants of the great warrior Arjuna(Mahabharata).

पाखरिया पुष्कर सिंह तोमर की छतरी: पुष्कर सिंह तोमर का जन्म कुम्हेर के गुनसरा गांव के तोमर कुंतल जाट परिवार में हुआ था। जब भरतपुर महाराज जवाहर सिंह जी ने दिल्ली पर आक्रमण किया था उस समय लाल किले पर पाखरिया ने अपने जीवन का बलिदान दिया था। लाल किले के दरवाजे को तोड़ने में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी। कुंतेला पट्टी के बछगांव और कोथरां गांव के बीच महाराज जवाहर सिंह जी ने उनकी छतरी बनवाई थी। तोमर जाट महान यौद्धा वीर अर्जुन (महाभारत) के वंशज हैं।

Ref - https://www.facebook.com/JatKshatriyaCulture/posts/757981798239289

पाखरिया का परिचय

लेखक:कौन्तेय मानवेन्द्रसिंह तोमर

पांडव वंशी सम्राट अनंगपाल तोमर के वंशज मथुरा भरतपुर जिलों में 384 ग्रामों में निवास करते हैं। इन ग्रामों को खूटेल पट्टी बोला जाता है। इस खूटेल पट्टी में बहुत से दुर्ग के अधिपति कुंतल (तोमर) जाट थे।[2]

जगाओं के अनुसार पाखरिया का जन्म गुनसारा ग्राम में कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा विक्रम संवत 1798 (1740 ईस्वी) के दिन हुआ था। इनके पिता का नाम वीरमदेव सिंह और माता प्रेमकौर(अकोला की चाहर गोत्र की) थी। पाखरिया का वास्तविक नाम पुष्कर सिंह था| अपनी वीरता के कारण यह पाखरिया नाम से प्रसिद्ध हुआ| दुश्मन के सबसे शक्तिशाली हाथी या यौद्धा को मार गिराने वाला वीर पाखरिया कहलाता है। यह उपाधि श्रेष्ठ यौद्धा को दी जाती थी।[3]


वंशावली

ब्रह्मा से अब तक वंशावली

(पदम पुराण, मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण, वायु पुराण, जागा/भाटो की पारिवारिक पोथी के आधार पर)

ब्रह्मा – मरिचि - कश्यप – चन्द्र – वेवस्वत – एला - पुरखा – आयु - नहुष - ययाति (ययाति के देवयानि ओर शर्मीष्टा दो पत्निया और पाच पुत्र तुर्वसु ,यदु,अनु द्रुहु,पुरु हुए) – तुर्वसु – वहि - गोभनु – त्रशम्ब – करघम - मरुत (इस ने पुरु वन्श के पुत्र को गोद ले लिय तब से पोरव कहलाये) -सोम दत्त – बहुगुन - सयाति - अहयाति - प्रार्वचौम - जयत्सेन – अवाचीन – अरिह - महाभौम - अयुतनामी - अक्रोधन – देवतिथि – त्रह्क्ष – भतिनार - तंसु - इलिंद (रविय) - दुष्यंत - भरत -भुमन्यु, वितथ - सुहोत्र - हस्ती - विकुंडन - अजमीढ़ - सवरण - कुरु - विधुर – अनश्या - परीक्षित प्रथम -भीमसेन - प्रतिश्रावा - प्रतिप -शांतनु , देवषी,बाह्लीक - भीष्म – चित्रवीर्य – विचित्रवीर्य - पांडू

I पांडू के पांच पुत्र पांडव कहलाए: युधिष्ठिर - भीम - अर्जुन - नकुल - सहदेव

अर्जुन का द्रौपदी से जन्मे पुत्र का नाम श्रुतकर्मा था. द्रौपदी के अलावा अर्जुन की सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक तीन और पत्नियां थीं। सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म हुआ।

अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु हुए अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र राजा परीक्षित हुए

परीक्षित - जन्मेजय - अश्वमेघ - धर्मदेव - मनजीत – चित्ररथ - दीपपाल - उग्रसेन - सुरसेन - भूवनपति - रणजीत – रक्षकदेव - भीमसेन - नरहरिदेव – सुचरित्र - सुरसेन – पर्वतसेन – मधुक – सोनचीर - भीष्मदेव - नृहरदेव - पूर्णसेल - सारंगदेव – रुपदेव - उदयपाल - अभिमन्यु - धनपाल – भीमपाल - लक्ष्मीदेव – विश्रवा मुरसेन – वीरसेन – आनगशायी – हरजीतदेव -सुलोचन देव –कृप - सज्ज -अमर –अभिपाल – दशरथ – वीरसाल - केशोराव – विरमाहा – अजित – सर्वदत्त – भुवनपति – वीरसेन – महिपाल - शत्रुपाल – सेंधराज --जीतपाल --रणपाल - कामसेन – शत्रुमर्दन -जीवन – हरी – वीरसेन – आदित्यकेतु – थिमोधर – महर्षि –समरच्ची - महायुद्ध – वीरनाथ – जीवनराज - रुद्रसेन - अरिलक वसु - राजपाल - समुन्द्रपाल - गोमिल - महेश्वर - देवपाल (स्कन्ददेव) - नरसिंहदेव - अच्युत - हरदत्त - किरण पाल अजदेव - सुमित्र - कुलज - नरदेव - सामपाल(मतिल ) – रघुपाल -गोविन्दपाल - अमृतपाल - महित(महिपाल) - कर्मपाल - विक्रम पाल - जीतराम जाट - चंद्रपाल - ब्रह्देश्वर (खंदक ) - हरिपाल (वक्तपाल) - सुखपाल (सुनपाल) - कीरतपाल (तिहुनपाल) -- अनंगपाल प्रथम – वासुदेव – गगदेव – पृथ्वीमल – जयदेव -- नरपाल देव -- उदय राज – आपृच्छदेव -- पीपलराजदेव – रघुपालदेव -- तिल्हण पालदेव – गोपालदेव – सलकपाल/सुलक्षणपाल – जयपाल – कुँवरपाल (महिपाल प्रथम ) – अनंगपाल द्वितीय - सोहनपाल – जुरारदेव – ज्ञानपाल (गन्नेशा)- गैंदासिंह – सूरद सिंह - द्वारिकासिंह - करनपाल - हरपाल सिंह - भीकम सिंह-टेकराम-उदय सिंह-देवा(देवीसिंह)-जीतपाल-भूदेव-सरजूपाल-देवपाल-वीरमदेव(वीरपाल)-पुष्कर सिंह

भीकम सिंह से आठवी पीढ़ी में पाखरिया का जन्म हुआ है।पुष्कर सिंह का अल्पायु में मृत्यु होने जाने से आगे वंश नही चल पाया था।

पाखरिया का योगदान

Veer Pakharia Smarak Gunsara

जवाहर सिंह कि दिल्ली विजय (अक्टूबर 1764) में पाखरिया का योगदान अतुल्यनीय है। जब जाट सेना दिल्ली पहुंची तब किले का फाटक बंद था| दिल्ली को फ़तेह करने के लाल किले के फाटक की कुण्डी (अर्गला ) तोडना जरुरी था| ताकि सेना किले में प्रवेश कर सके। लेकिन जब लाल किले के फाटक को तोड़ने के लिए केसरिया नाम के हाथी ने 12 टक्कर मारी, पर फाटक नहीं टूट पाया। हर बार हाथी के सिर पर फाटक पर लगी कीले चुभ जाने से हाथी घायल हो गया। यह देख महाराज जवाहर सिंह बोले किला मुश्किल से टूटेगा। युद्ध अध् पर में छूटेगा। बार-बार प्रयास करने के बाद भी सफलता नहीं मिल पाने से जाट सेना में निराशा छा गयी। तभी वीरता दिखाने पुष्करसिंह आगे आये। वीर पाखरिया ने अपना बलिदान दिया और किले के दरवाजे पर अपना सीना अड़ा दिया इस तरह फाटक टूट गया और दिल्ली पर जाटों कि विजय का डंका बज गया शहीद पाखरिया की देह को खुटैल पट्टी में लाया गया गोवर्धन में मानसिंह गंगा पर पूरे राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया उसके बलिदान और दिल्ली विजय को चिर स्थाही बनाने के लिए वो लाल किले के फाटक जिन पर पाखरिया ने अपना बलिदान दिया भरतपुर लाये गए जो आज भी भरतपुर में रखे हुए है[4]


जब शेर-ए-हिन्द वीर जवाहर सिंह दिल्ली विजय कर भरतपुर महलों में लोटे तो उनसे माँ किशोरी ने पूछा की बेटा दिल्ली विजय से तुम कौनसी अनमोल वस्तु लाये हो तो वीर जवाहर सिंह ने जबाब दिया उन चित्तोड़ कोट के किवाड़ो को लाया हूँ जिनपर वीर पाखरिया ने बलिदान दिया है वीर जवाहर से माता किशोरी पूछती है -

पंडित कौशिक जी दवारा रचित और ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर में पाखरिया का वर्णन
जगमग जगमग करता जलुस
रण विजयी वीर जवाहर का
माँ किशोरी बोली
कुछ सुना बात दिल्ली रण की
सौगात वहां से क्या लाया
बेटा मेरे वचनों पर ही
तूने अत्यन्य कष्ट पाया
चर्चा क्या उन सौगातो की
जो भरी बहुत तेरे ही घर
दो वस्तु किन्तु लाया ऐसी
जिनका उज्ज्वल इतिहास प्रखर
चित्तोड़ कोट के माँ किवाड़
लाया हूँ आज्ञा पालन कर
है ये किवाड़ तेरे मनकी
मेरे मन की है और अपर
पाखरिया ने बलिदान दिया
निज तन का किवाड़ो पर
उनकी स्मृति स्वरुप लाया
उनके भी बजा नगाडो पर
सुन माँ ने चूम कर सिर
दी वाह वाह खुस हो मन भर
मणि मानक मुक्त मूल्यवान
कर दिए निछावर झोली भर
तब यह उद्घोस अंबर में गूंजा था
श्री गोवर्धन गिर्राज की जय
जवाहर सिंह की जय
जाटों के सक्ल समाज की जय
रन अजय भरतपुर राज की जय

ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर के अनुसार जवाहर सिंह ने वीर पाखरिया का अतिंम संस्कार पुरे सम्मान के साथ गोवर्धन के घाटो पर लिया उनकी याद में एक छतरी का निर्माण भी करवाया था. यह प्रसंग भरतपुर राजपरिवार द्वारा लिखित ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर और पंडित गोपालप्रसाद दवार लिखित जोहर नामक किताबो से लिया गया है.

कुछ इतिहासकारों के कथन

  • दिलीप सिंह अहलावत[5] पाखरिया वीर के बारे में लिखते है - तोमर खूंटेल जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है। यह वीर योद्धा महाराजा जवाहरसिंह की दिल्ली विजय में साथ था। यह लालकिले के द्वार की लोहे की सलाखें पकड़कर इसलिए झूल गया था क्योंकी सलाखों की नोकों पर टकराने से हाथी चिंघाड़ मार कर दूर भागते थे। उस वीर मे इस अनुपम बलिदान से ही अन्दर की अर्गला टूट गई और अष्टधाती कपाट खुल गये। देहली विजय में भारी श्रेय इसी वीर को दिया गया है। इस पर भारतवर्ष के खूंटेल तथा जाट जाति आज भी गर्व करते हैं।

  • ठाकुर देशराज[6] पाखरिया वीर के बारे में लिखते हैं - महाराजा जवाहरसिंह भरतपुर नरेश के सेनापति तोमर गोत्री जाट जिसने लाल किले के किवाड़ उतारकर भरतपुर पहुंचाये । पाखरिया -खूंटेला जाटों में पुष्करसिंह अथवा पाखरिया नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध शहीद हुआ है । कहते हैं, जिस समय महाराज जवाहरसिंह देहली पर चढ़कर गये थे, अष्टधाती दरवाजे की पैनी सलाखों से वह इसलिये चिपट गया था कि हाथी धक्का देने से कांपते थे । पाखरिया का बलिदान और महाराज जवाहरसिंह की विजय का घनिष्ट सम्बन्ध है ।


  • भरतपुर महाराजा ब्रिजेन्द्र सिंह के दरबार में रचित ब्रिजेन्द्र वंश भास्कर नामक ग्रन्थ में भी दिल्ली के दरवाजो पर बलिदान देने वाले वीर का नाम खुटेल पाखारिया अंकित है राजपरिवार भी पाखारिया खुटेल को भी बलिदानी मानता है
  • जाटों के जोहर नामक किताब में भी पंडित आचार्य गोपालदास कौशिक जी ने दिल्ली पर बलिदान हुए वीर को पाखारिया और उसके वंश को कुंतल (तोमर ) लिखा है |
  • जाटों के नविन इतिहास में उपेन्द्र नाथ शर्मा ने भी दिल्ली विजय पर खुटेल पाखरिया के बलिदान होने की बात लिखी है


  • राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी दुवारा प्रकाशित "राजस्थान के अज्ञात ब्रज भाषा साहित्यकार" नामक किताब के लेखक विष्णु पाठक ,मोहनलाल मधुकर ,गोपालप्रसाद मुद्गल ने दिल्ली विजय पर लिखा है पेज 135 पर लिखा है -
कहे कवी "माधव " हो तो न एक वीर
कैसे बतलाओ दिल्ली जाट सेना लुटती
आप ही विचार करो अपने मनन मोहि
पाखरिया खुटेल न होतो
तो दिल्ली नाय टूटती ||

कुछ भ्रांतियों का प्रमाणों से खण्डन

भरतपुर महाराजा बृजेन्द्र सिंह के समय लिखी गयी बृजेन्द्र वंश भास्कर में उस वीर का नाम पाखरिया खुटेला लिखा गया है। भरतपुर राज परिवार से अधिक इस विषय पर किसको जानकारी होगी। इतिहासकार भी राज परिवार के कथन की पुष्टि करते हैं। परन्तु कुछ लोगो को यह भ्रान्ति है कि वो शहीद बलराम था। महाराजा सूरजमल के दो साले थे - जिनका नाम बलराम था प्रथम रानी किशोरी देवी का भाई होडल का बलराम सोलंकी (सोरोत)। दूसरा - बल्लभगढ़ का बलराम तेवतिया। दोनों ही महाराजा जवाहर सिंह के मामा थे।

अब आते है महाराजा जवाहर सिंह की दिल्ली विजय युद्ध जो अक्टूबर 1764 में हुई। जबकि बलराम तेवतिया की मृत्यु महाराजा सूरजमल के जीवनकाल में मुर्तिज़ा खान के बेटे अकवित महमूद से लड़ते हुए 29 नवम्बर 1753 को ही हो गई थी। इसका प्रमाण सूरजमल कालीन इतिहास में मिलता है। बलराम के मारे जाने के बाद में महाराज सूरजमल ने उनके लड़के विशनसिंह , किशनसिंह का किलेदार और नाजिम बनाया। वे सन् 1774 तक बल्लभगढ़ के कर्ता-धर्ता रहे। जब बलराम तेवतिया की 29 नवम्बर 1753 में मृत्यु हो चुकी थी तो वो कैसे शहीद हुए अक्टूबर 1764

दूसरा था होडल के बलराम तो उनके बारे में इतिहासकार दिलीप सिंह, ठाकुर देशराज ,उपेंद्र नाथ शर्मा लिखते है| दिल्ली विजय के बाद देहली की चढ़ाई से लौट आने के पीछे उन्होंने अपरे आन्तरिक शत्रुओं के दमन करने की अत्यन्त आवश्यकता समझी। कुछ समय के पश्चात् वह आगरे गए और होडल के बलराम तथा दूसरे लोगों को गिरफ्तार करा लिया। बलराम और एक दूसरे सरदार ने अपने अपमान के डर से आत्महत्या कर ली। जब दिल्ली विजय के बाद बलराम ने आत्महत्या की थी तो उनके दिल्ली पर शहीद होने का सवाल ही पैदा नहीं होता है

कविता

लेखक:कौन्तेय मानवेन्द्रसिंह तोमर

जब हुए जवाहर निराश

कैसे टूटे यह द्वार

तब रोशनी की किरण जागी थी

देनी है अपने प्राणो की आहुति

पुष्कर ने यह दहाड़ लगाई थी

सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो

जाट कभी झुके नहीं ,जाट कभी रुके नहीं

जाटों की हुकांरो से दिल्ली की नीव हिल जाती है

पाखरिया के बलिदान से दिल्ली भी झुक जाती है

बलिदान दे अपना वीर ने लाज बचाई थी

अड़ा दिया सीना फाटक पै

बही रक्त की धार थी

किले के द्वार खुले बलिदान से

पाखरिया की जयघोष के होने लगे जयकारे।

हे वीर तेरी वीर गति, पर श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं।

External links

Gallery

References

  1. Kishori Lal Faujdar: Uttar Pradesh ke Madhyakalin Jatvans avam Rajya, Jat Samaj, Agra, April 1999.
  2. Pandav Gatha, page 262
  3. Pandav Gatha, page 262
  4. Pandav Gatha page 263
  5. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III (Page 298)
  6. Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII,p.560

Back to The Rulers