Osian
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.) |

Osian (ओसियां) or Osia (ओसिया) is a town and tahsil in Jodhpur district in Rajasthan. Its ancient name was Upakesa (उपकेश).
Variants of name
- Akesha (अकेश = Osian (ओसियां) (AS, p.8)
- Ukesha (उकेश) = Osian ओसियां (AS, p.85)
- Upakesa (उपकेश) = Osian (ओसियां) (AS, p.98)
- Osian (ओसियां) (जिला जोधपुर, राज.) (AS, p.119)
- Melarapattana मेलरपत्तन दे. Osian ओसियां (AS, p.759)
- Melapurapattana (मेलपुरपत्तन) (AS, p.120)
- Navaneri (नवनेरी) (AS, p.120)
- Navanagari नवनगरी = Navaneri नवनेरी = Osian ओसियां (AS, p.483)
Location
It is an oasis in the Thar Desert, 65 km (40 miles) north of the district headquarters at Jodhpur, on a diversion off the main Jodhpur – Bikaner Highway.
Osian is famous as home to the cluster of ruined Brahmanical and Jain temples dating from the 8th to 11th centuries. The city was a major religious centre of the kingdom of Marwar during the Pratihara dynasty. Of the 18 shrines in the group, the Surya or Sun Temple and the later Kali temple, Sachiya Mata Temple and the main Jain temple dedicated to Lord Mahavira stand out in their grace and architecture.
ओसियां
ओसियां (जिला जोधपुर, राज.) (AS, p.119): विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ... [p.119]: ओसियां राजस्थान के जोधपुर नगर से 32 मील (लगभग 51.2 कि.मी.) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित है। यहाँ 9वीं शती से 12वीं शती ई. तक के स्थापत्य की सुन्दर कृतियां मिलती हैं। प्राचीन देवालयों में शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्धनारीश्वर, हरिहर, नवग्रह, कृष्ण, तथा महिषमर्दिनी देवी आदि के मन्दिर उल्लेखनीय हैं।
गुप्तकालीन शिल्प: ओसियां की कला पर गुप्तकालीन कला और स्थापत्य का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है। ग्राम के अंदर जैन तीर्थंकर महावीर का एक सुन्दर मन्दिर है, जिसे वत्सराज (770-800 ई.) ने बनवाया था। यह परकोटे के भीतर स्थित है। इसके तोरण अतीव भव्य हैं तथा स्तंभों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। यहीं एक स्थान पर 'संवत 1075 आषाढ़ सुदि 10 आदित्यवार स्वातिनक्षत्रे' यह लेख उत्कीर्ण है और सामने विक्रम संवत् 1013 की एक प्रशस्ति भी एक शिला पर खुदी है, जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा 1013 वि. सं.(= 956 ई.) में इसके मंडप का निर्माण हुआ था।
मन्दिर, ओसियां: निकटवर्ती पहाड़ी पर एक और मंदिर विशाल परकोटे से घिरा हुआ दिखलाई पड़ता है। यह 'सचिया देवी' या शिलालेखों की 'सच्चिकादेवी' से संबंधित है, जो महिषमर्दिनी देवी का ही एक रूप है। यह भी जैन मंदिर है। मूर्ति पर एक लेख 1234 वि. सं. का भी है, जिससे इसका जैन धर्म से संबंध स्पष्ट हो जाता है। इस काल में इस देवी की पूजा राजस्थान के जैन सम्प्रदाय में अन्यत्र भी प्रचलित थी। इस विषय का ओसियां नगर से संबंधित एक वादविवाद, जैन ग्रंथ 'उपकेश गच्छ पट्टावलि' में वर्णित है। (उपकेश-ओसियां का संस्कृत रूप है) इसी मंदिर के निकट कई छोटे-बड़े देवालय है। इसके दाईं ओर सूर्य मंदिर के बाहर अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति, सभा-मंडप की छत में वंशीवादक तथा गोवर्धन कृष्ण
[p.120]: की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। गोवर्धन-लीला की यह मूर्ति राजस्थानी कला की अनुपम कृति मानी जा सकती है।
प्रतिमाएँ: ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्ण-लीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।
ओसियां के अन्य नाम: स्थानीय प्राचीन अभिलेखों से सूचित होता है कि ओसियां के कई नाम मध्य काल तक प्रचलित थे, जो हैं- 'उकेश', 'उपकेश', 'अकेश' आदि। किंवदंती है कि इसको प्राचीन काल में 'मेलपुरपत्तन' तथा 'नवनेरी' भी कहते थे। 'ओसवाल' जैनों का मूल स्थान ओसियां ही है।
ओसियां के दर्शनीय स्थल
आठवीं से दसवीं शताब्दी तक राजस्थान में मंदिर स्थापत्य की एक 'महामारू शैली' का विकास हुआ था। इस शैली ने जैन और वैष्णव परम्परा को सैकड़ों सुंदर मंदिर तथा देवालय दिये हैं। ओसियां के जैन मंदिर भी इसी शैली के जीवंत प्रमाण हैं। ओसियां में भगवान महावीर के मुख्य जैन मंदिर के अतिरिक्त और भी कई मंदिर हैं, जिनमें भगवान शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्द्धनारीश्वर, हरिहर, नवग्रह, दिक्पाल, श्रीकृष्ण, पिप्पलाद माता एवं सचिया माता आदि उल्लेखनीय हैं। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प, पत्थर पर खुदाई और प्रतिमा निर्माण, प्रत्येक वस्तु दर्शनीय हैं।[2]
जैन परम्परा में ओसियां
संदर्भ - ओसियां के इतिहास का यह भाग 'श्री सार्वजनिक पुस्तकालय तारानगर' की स्मारिका 2013-14: 'अर्चना' में प्रकाशित अशोक बच्छावत (अणु) के लेख 'जैन परम्परा' (पृ. 75-78) से लिया गया है।
जैन परम्परा के इतिहास में तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्रों में चक्रवर्ती भरत एवं बाहुबली प्रसिद्ध हुये हैं। भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। भरत का पुत्र सूर्यवंश और बाहुबल का पुत्र चंद्रवंश हुये जिनके नाम पर सूर्यवंश और चंद्रवंश चले हैं। जैन परम्परा मे 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की पट्टावली मे 7 वें पट्टधर रत्नप्रभ सूरी हुये हैं। इनका कथानक इस प्रकार है - तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के 70 वर्ष बाद अर्थात विक्रम संवत 400 पूर्व भीनमाल नगरी मे भीमसेन राजा राज्य करता था, उनके दो पुत्र थे, श्री पुंज और उपलदेव। उपलदेव ने मंत्री उहड़ देव को साथ लेकर मंडोर के पास उपकेश नगर वर्तमान ओसियां बसाकर अपना राज्य स्थापित किया। इसी समय तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पट्टधर रत्नप्रभ सूरी उपकेश पट्टण (उपकेश ओसियां) पधारे। वहाँ पर राजा उपलदेव सहित सवालख लोग आचार्य श्री से प्रतिबोध पाकर जैन धर्मावली बने। आचार्य श्री द्वारा महाजन वंश की स्थापना हुई एवं ओसियां नागरी के नाम पर वहाँ निवासियों को ओसवाल कहा गया। ('अर्चना':पृ.75)
उपरोक्त ओसियां नागरी के राजा, मंत्री एवं अन्य क्षत्रियों द्वारा जैन धर्म स्वीकार किया गया। उस समय आचार्य श्री द्वारा 18 गोत्रों की स्थापना की - 1. तातेहड़, 2. कर्णाट, 3. बाफणा, 4. बलहरा, 5. मोराक्ष, 6. कुलहट, 7. विरहट, 8. श्रीमाल श्रेष्ठी, 9. सहचिता 10. आईचणाग, 11. भूरि, 12. भाद्र, 13. चींचट, 14. कुंभट, 15. डीडु, 16. कन्नोज 17. लघु श्रेष्ठी 18.ओसवाल
यह कथानक लगभग 2470 वर्ष पूर्व का है.('अर्चना':पृ.76)
Jat Gotras
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- Beda
- Bhakar
- Bhamu
- Bhari
- Bidiyasar
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- Karwasra
- Khot
- Khowde
- Machra
- Nain
- Saran
- Siyol
Villages in Osian tahsil
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History
Monuments
- Asavari Mata - New large temple in Osian, 10 kms from Jaisalmer, at Didwanna, 12 kms from Kiradu Barmer
- सच्चिका देवी ओसिया
- ओसिया माता ओसिया
- बेरडों का बास बैरड़ कुलदेवी माँ ब्राह्मणी देवी धाम, नागेश्वर महादेव मंदिर
Notable persons
External links
References
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