Jharkhand

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Districts Map in Jharkhand State

Jharkhand (झारखंड) is a state in eastern India. It was carved out of the southern part of Bihar on 15 November 2000. Ranchi is its capital and Dumka is its sub capital.

Variants

Location

Jharkhand shares its border with the states of Bihar to the north, Uttar Pradesh and Chhattisgarh to the west, Odisha to the south, and West Bengal to the east.

Jat History

The following areas and tribes find common place in Jat History. There is need to further research.

History

There was a distinct geo-political, cultural entity called Jharkhand even before the period of Magadha Empire. [1]

The tribal rulers, some of whom continue to thrive till today were known as the Munda Rajas,[2][3] who basically had ownership rights to large farmlands.[4]

Many scholars now believe that the language used by tribes in the state of Jharkhand is identical to the one used by Harappa people. This has led to a great interest in the deciphering of Harappa inscriptions using rock paintings and language used by these tribes. For a greater part of Vedic age, Jharkhand remained unnoticed. During the age of Mahajanpadas around 500 BC, India saw the emergence of 16 large states that controlled the entire Indian subcontinent. In those days the northern portion of Jharkhand state was a tributary to Magadha (ancient Bihar) Empire and southern part was a tributary to Kalinga (ancient Orissa) Empire.


According to Dr Naval Viyogi, It seems from the evidence of Puri Kushan coins that some branch Tanka of Taka royal family owing to attack of Kushanas up to Magadha, reached Mayurbhanj, Singhbhumi, Ganjam and Balasore and established colonies there, where remains of their offshoot, the royal family of Dhavaldev is still existing at Dalbhumigarh near Kharagpur. [5]


According to legend, Raja Jai Singh Deo of Orissa had declared himself the ruler of Jharkhand in the 13th century. The Singh Deo's of Orissa have been very instrumental in the early history of Jharkhand. The local tribal heads had developed into barbaric dictators who could govern the province neither fairly nor justly. Consequently, the people of this state approached the more powerful rulers of Jharkhand's neighboring states who were perceived to have a more fair and just governance. This became the turning point in the history of the region wherein rulers from Orissa moved in with their armies and created states that were governed for the benefit of the people and involved their participation, thus ending the barbarism that had marked the region for centuries. The good tribal rulers continued to thrive and were known as the Munda Rajas, and exist to this day.

Later, during the Mughal period, the Jharkhand area was known as Kukara.

In the year 1765, it came under the control of the British Empire and became formally known under its present title, "Jharkhand" — the Land of "jungles" (forests) and "jharis" (bushes).

झारखण्ड

झारखण्ड (AS, 378) का उल्लेख मध्ययुगीन साहित्य में मिलता है-- 'मेवार, ढुंडार, मारवाड़ और बुंदेलखंड झारखंड बांधौ घनी चाकरी इलाज की; --शिवराजभूषण 111. यह नाम अब भी प्रचलित है. संभवत: घने जंगलों का इलाका होने से यह झारखंड (झाड़=वृक्ष+खंड=प्रदेश) कहलाता है.[6]

झारखण्ड परिचय

झारखण्ड भारत का एक प्रमुख राज्य है। झारखण्ड राज्य में बहुत बड़ी संख्या में घने वन और झाड़-झंकार जैसी अधिकांश वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, यही कारण है कि राज्य का नाम झारखण्ड पड़ा है। यह राज्य छोटा नागपुर पठार पर बसा हुआ है, जो गंगा के मैदानी भाग के दक्षिण में है। 'झारखण्ड' का शाब्दिक अर्थ है- "वन का क्षेत्र"। माना जाता है कि झारखण्ड शब्द का प्रयोग लगभग चार सौ वर्ष पहले सोलहवीं शताब्दी में हुआ। अपने बृहत और मूल अर्थ में 'झारखण्ड' पुराने बिहार के ज़्यादातर दक्षिणी हिस्से और छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के कुछ आदिवासी ज़िले शामिल हैं। झारखण्ड में भारत की लगभग नब्बे प्रतिशत अनुसूचित जनजाति का निवास स्थल है। संपूर्ण भारत में वनों के अनुपात में यह प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है तथा वन्यजीवों के संरक्षण के लिये मशहूर है।

इतिहास: 15 नंवबर, 2000 को भारत संघ के 28वें राज्य के रूप में झारखण्ड राज्य का निर्माण हुआ। झारखण्ड आदिवासियों की गृहभूमि है। एक प्राचीन कथा से ज्ञात होता कि उड़ीसा के राजा जयसिंह देव ने तेरहवीं शताब्दी में खुद को झारखण्ड का शासक घोषित कर अपना शासन लागू कर दिया था। झारखण्ड में मुख्य रूप से छोटा नागपुर पठार और संथाल परगना के वन क्षेत्र शामिल हैं। यहाँ की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएं हैं।

प्राचीन इतिहास: झारखंड के कुछ स्थानों में जीवाश्म के कुछ अंश उन कलाकृतियों की ओर इशारा करते हैं जिससे यह पता चलता है कि छोटानागपुर क्षेत्र में होमो इरेकटस से होमो सिपियंस जाति में बदलाव को दर्शाता है। यहाँ पत्थर और अन्य उपकरण, सभ्यताओं के प्रारंभिक वर्षों से 3000 से अधिक वर्ष पहले के हैं। 6 या 7 वीं शताब्दी ई.पू. के -- महाकाव्य महाभारत युग के कीकट प्रदेश का उल्लेख ऋग्वेद में है जो पारसनाथ की पहाड़ियों में गिरिडीह जिले में, झारखंड में है।

यहाँ का समृद्ध, सभ्य अस्तित्व, मानव समाज और उनके सांस्कृतिक तरीके, गुफाओं में जीवित रहने के तरीके, स्मारक, चट्टानी कला में आश्रयों (पेट्रोग्राफ) के रहस्य जानना तो अभी तक शेष है। झारखंड के कुछ भागों में गुफा चित्र, 'पत्थर की कला' और 'शैलवर्णना' और भूवैज्ञानिक समय बीतने का भी संकेत है। प्राचीन सभ्यता में हड़प्पा की मौजूदगी का भी प्रमाण है। झारखंड के कई जिलों में इस तरह के साईट और अवशेष हैं।

भूगोल: झारखण्ड 21°58'10" उत्तरी अक्षांश से 25°19'15" उत्तरी अक्षांश तथा 83°20'50" पूर्वी देशांतर 88°4'40" पूर्वी देशांतर के मध्य विस्तृत है। झारखण्ड का कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किमी. जो भारत के कुल क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। इसमें 152 शहर एवं 32,615 गाँव है। प्रशासनिक दृष्टिकोण से पूरे राज्य को पाँच प्रमण्डलों एवं 24 ज़िलों में विभाजित किया गया है। झारखण्ड के पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार तथा दक्षिण में उड़ीसा से घिरा हुआ है। इस राज्य की लम्बाई (उत्तर से दक्षिण) 380 किमी. और चौड़ाई (पूर्व से पश्चिम) 463 किमी. है।

भू-आकृति: झारखण्ड का प्रमुख भौतिक लक्षण छोटा नागपुर पठार है, जो पठारों, पहाड़ियों व घाटियों की शृंखला है। यह लगभग समूचे राज्य में फैला है और अधिकांशतः स्फटकीय (क्रिस्टल) चट्टनों से बना है। हज़ारीबाग़राँची, ये दो मुख्य पठार दामोदर नदी के भ्रंशित और कोयला युक्त अवसादी बेसिन से विभाजित हैं। इनकी ऊँचाई औसतन लगभग 610 मीटर है। पश्चिम में 300 से अधिक विच्छेदित, लेकिन सपाट शिखर वाले पठार हैं, जिनकी ऊँचाई लगभग 914 मीटर है और ये पाट कहलाते हैं। झारखण्ड में उच्चतम बिंदु हज़ारीबाग़ स्थित पारसनाथ की शंक्वाकार ग्रेनाइट चोटी है, जिसकी ऊँचाई 1,369 मीटर है। जैन मतावालंबी और संथाल जनजाति, दोनों ही इसे पवित्र मानते हैं। दामोदर घाटी में मिट्टी बलुई है, जबकि पठार की मिट्टी अधिकांशतः लाल है।


भौगोलिक स्थिति एवं जलवायु

भौगोलिक स्थिति: झारखण्ड के पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार तथा दक्षिण में उड़ीसा से घिरा हुआ है। औद्योगिक नगरी राँची इसकी राजधानी है। इस प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में धनबाद, बोकारो एवं जमशेदपुर शामिल हैं। वर्तमान समय में झारखण्ड राज्य के कुल ज़िलों की संख्या 24 है।

प्रदेश का ज्यादातर हिस्सा छोटानागपुर पठार का हिस्सा है जो कोयल, दामोदर, ब्रम्हाणी, खड़कई, एवं स्वर्णरेखा नदियों का उद्गम स्थल भी है जिनके जलक्षेत्र ज्यादातर झारखण्ड में है। प्रदेश का ज्यादातर हिस्सा वन-क्षेत्र है, जहाँ हाथियों एवं बाघों की बहुतायत है।

मिट्टी के वर्गीकरण के अनुसार, प्रदेश की ज्यादातर भूमि चट्टानों एवं पत्थरों के अपरदन से बनी है। जिन्हें इस प्रकार उप-विभाजित किया जा सकता है:-

  • लाल मिट्टी, जो ज्यादातर दामोदर घाटी, एवं राजमहल क्षेत्रों में पायी जाती है।
  • माइका युक्त मिट्टी, जो कोडरमा, झुमरी तिलैया, बड़कागाँव, एवं मंदार पर्वत के आसपास के क्षेत्रों में पायी जाती है।
  • बलुई मिट्टी, ज्यादातर हजारीबाग एवं धनबाद क्षेत्रों की भूमि में पायी जाती है।
  • काली मिट्टी, राजमहल क्षेत्र में
  • लैटेराइट मिट्टी, जो राँची के पश्चिमी हिस्से, पलामू, संथाल परगना के कुछ क्षेत्र एवं पश्चिमी एवं पूर्वी सिंहभूम में पायी जाती है।

वानस्पतिकी एवं जैविकी

झारखंड वानस्पतिक एवं जैविक विविधताओं का भंडार कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रदेश के अभयारण्य एवं वनस्पति उद्यान इसकी बानगी सही मायनों में पेश करते हैं। बेतला राष्ट्रीय अभयारण्य (पलामू), जो डाल्टेनगंज से 25 किमी की दूरी पर स्थित है, लगभग 250 वर्ग किमी में फैला हुआ है। विविध वन्य जीव यथा बाघ, हाथी, भैंसे सांभर, सैकड़ों तरह के जंगली सूअर एवं 20 फुट लंबा अजगर चित्तीदार हिरणों के झुंड, चीतल एवं अन्य स्तनधारी प्राणी इस पार्क की शोभा बढ़ाते हैं। इस पार्क को 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था।

झारखंड के लोग

झारखंड क्षेत्र विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों का संगम क्षेत्र कहा जा सकता है। द्रविड़, आर्य, एवं आस्ट्रो-एशियाई तत्वों के सम्मिश्रण का इससे अच्छा कोई क्षेत्र भारत में शायद ही हो। हिंदी, नागपुरी, खोरठा, कुरमाली यहाँ की प्रमुख भाषायें हैं। झारखंड में बसने वाले स्थानीय हिन्द-आर्य भाषाएँ बोलने वाले लोगों को सादान कहा जाता है। इसके अलावा यहां कुड़ुख, संथाली, मुंडारी, हो बोली जाती है।

सादान: झारखंड में बसने वाले स्थानीय जन जो हिन्द-आर्य भाषाएँ बोलते हैं उन लोगों को सादान कहा जाता है। सादानो की मुल भाषा नागपुरी, खोरठा, कुरमाली है। सदानो में अहीर, बिंझिया, भोगता, चेरो, चिक बड़ाइक, घासीं, झोरा, केवट, कुम्हार, लोहरा, रौतिया और तेली आदि जातियां शामिल हैं।झुमइर सदानो का लोक नृत्य है। अखरा गाँव का मैदान है जहाँ लोग नृत्य करते हैं। करम , जितिया सदानो के महत्वपूर्ण त्योहार हैं। अन्य मुख्य पर्ब टुसू, सहरई और फगुआ आदि है।

जनजातियाँ: पौराणिक असुर और संथाल, बंजारा, बिहोर, चेरो, गोंड, हो, खोंड, लोहरा, करमाली, माई पहरिया, मुंडा, उरांव आदि बत्तीस से अधिक आदिवासी समूहों (राज्य की कुल आबादी का 28 %), इस क्षेत्र की संस्कृति पर अपनी छाप छोड़ गए हैं |

संथाल: झारखण्ड की आदिवासी आबादी में संथाल वर्चस्व रखते हैं | उनकी अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है और सबसे याद करने वाला उनके लोक संगीत, गीत और नृत्य हैं | संथाली भाषा व्यापक रूप से है, दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है | उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'ओल चिकी' है, जो अतुलनीय है और शायद किसी अन्य आदिवासी समुदाय द्वारा कहीं भी नहीं है | संथाल के सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है -- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन, और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है|दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी | संथाल के सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के पैटर्न -- पितृसत्तात्मक, पति पत्नी के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है| विवाह अनुष्ठानों में पूरा समुदाय आनन्द के साथ भाग लेते हैं | लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं | संथाल मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है | धार्मिक विश्वासों और अभ्यास को हिंदू और ईसाई धर्मों से लेकर माना जाता है। संथालों का अपनी मूल धर्म सारना है, इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिञ बोंगा' (सिञ चाँदो), 'माराङ बुरु' और 'जाहेर आयो' हैं । पूजा अनुष्ठान में बलिदानों का इस्तेमाल किया जाता है | सरकार और उद्योग के कई महत्वपूर्ण पदों पर आज संथाल लोगों का कब्जा है।

असुर (आदिवासी): सबसे प्राचीन जनजातीय समुदायों में से एक है, ये अपने सदियों पुरानी " लोहे के प्रगालन " कौशल के लिए जाने जाते हैं| पुरुष और महिलाएं साथ मिलकर काम करते है, साथ मिलकर खाते हैं, एक साथ वंश की देखभाल करते हैं और रोटी कमाने के लिए संघर्ष करते हैं और अपने परिवार के साथ रहते है | श्रम का विभाजन अद्वितीय है सामाजिक, आर्थिक एकता भी है | तथाकथित आधुनिक समाज को इन लोगों से बहुत कुछ सीखना चाहिए |

बंजारा: यह एक और समूह है जिनकी संख्या तेजी से घट रही है | उनके गाँव पहाड़ियों और जंगलों के निकट स्थित है |वे कुशल बुनकर हैं और मैट, टोकरियाँ, ट्रे आदि जंगल के जंगली घास से बनते है | वे बच्चे के जन्म पर गांवों के आसपास प्रार्थना गाने के लिए भी जाते है| ये झारखंड में सबसे 'छोटी' आदिवासी आबादी है |

महली: बंसफोर महली टोकरी बनाने के विशेषज्ञ हैं, पतर महली टोकरी बनाने के उद्योग से जुड़े हैं और सुलुन्खी महली श्रम की खेती पर जीवित है, तांती महली पारंपरिक 'पालकी' के पदाधिकारी हैं और मुंडा महली किसान है | आमतौर पर महली वंश, जनजाति और कबीले के साथ उत्कृष्ट संबंध बनाए रखते हैं |

बिरहोर: यह एक खानाबदोश जनजाति है जो उनके फायटोप्लेकटन क्षमताओं के लिए जाने जाते है |ये उच्च पहाड़ी चोटियों या जंगलों के बाहरी इलाके में वास करते हैं |जो अस्थायी झोपडियों में समूहों में वास करते हैं और लच्छीवाला परिवार के जीवन का आनंद ले रहे हैं जगही बिरहोर के नाम से जाना जाता है और कलाइयों समूहों को ऊथेइअन बिरहोर कहा जाता है |

चिक बड़ाइक: चिक बड़ाइक सादान जाती है। यह स्पिनर और बुनकरों के समुदाय के रूप में, गांवों में अन्य जातियों और जनजातियों के साथ रहते हैं | इनकी मुख्य भाषा नागपुरी भाषा है।

बिरजिया बैगास: ये छोटी अनुसूचित जनजातियाँ अभी भी वन संसाधनों पर निर्भर है। ये गहरे जंगल और दुर्गम कृषि क्षेत्रों में रहते हैं। हाल के दिनों में उन्होंने खेती को त्याग दिया है। बिगास की खोज 1867 में 'जंगली' के रूप में और दूरदराज के दुर्गम पहाड़ियों के वन क्षेत्रों में रहने वाले के रूप में हुई थी।

झारखंड में स्थानों का नामकरण: झारखंड के अनेक ग्रामों/स्थानों/नदियों/पर्वतों आदि के नामों की जाटों में प्रचलित गोत्रों से अश्चर्यजनक समानता मिलती है। यह एक अनुसंधान का विषय है। यह भी उल्लेखनीय है कि झारखंड में वर्तमान में जाटों का आवास नहीं है। केवल नाम में समानता को कोई प्रमाण नहीं माना जा सकता परंतु झारखंड के इस भू-भाग में नामों और जाट गोत्रों में इतनी अधिक समानता कुछ संकेत अवश्य देती है। समानता का कारण संभवत: यह हो सकता है कि झारखंड वस्तुत: प्राचीन नागवंशी शासकों द्वारा शासित छोटा नागपुर प्रदेश का भाग है। किवदंती के अनुसार, छोटानाग नामक नागवंशी राजा के नाम पर छोटा नागपुर नाम पड़ा है। प्राचीन जनजातियों को समय-समय पर वैदिक संस्कृति में लाने के प्रयासों (आर्यकरण) के समय काफी संख्या में नागवंशी लोग जाट जाति में समाहित हो गए थे।

झारखंड के सिंहभूम में समुद्र से पहली बार बाहर निकली थी धरती

दुनिया में सबसे पहले समुद्र से बाहर कौन सा द्वीप बाहर आया? अब तक हम सब यही मानते रहे कि सबसे पहले अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया समुद्र से बाहर आए, लेकिन अब नई रिसर्च में सामने आया है कि झारखंड में सिंहभूम जिला समुद्र से बाहर आने वाला दुनिया का पहला जमीनी हिस्सा है। 3 देशों के 8 रिसर्चर्स 7 साल की रिसर्च के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। यह क्षेत्र उत्तर में जमशेदपुर से लेकर दक्षिण में महागिरी तक, पूर्व में ओडिशा के सिमलीपाल से पश्चिम में वीर टोला तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र को हम सिंहभूम क्रेटान (महाद्वीप) कहते हैं।[7]

अमेरिका के विज्ञान के चर्चित जर्नल 'प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी आफ साईंस (पीएनएएस)' में पिछले सप्ताह प्रकाशित एक शोध के मुताबिक़, आज से 310 करोड़ साल पहले सिंहभूम क्रेटोन (महाद्वीप) का जन्म हुआ, यानी यह क्षेत्र पहली बार पानी से बाहर आया. उस समय ज़मीन का अस्तित्व समुद्र के अंदर हुआ करता था. लेकिन, धरती के 50 किलोमीटर भीतर हुए एक बड़े ज्वालामुखी विस्फोट के कारण पृथ्वी का यह हिस्सा (सिंहभूम क्रेटोन) समुद्र से बाहर आ गया. इस शोध में भारतीय मूल के चार शोधकर्ता डॉ. प्रियदर्शी चौधुरी, सूर्यजेंदु भट्टाचार्यी, शुभोजीत राय और शुभम मुखर्जी शामिल हैं. [8]

Geography

Most of the state lies on the Chhota Nagpur Plateau, which is the source of the Koel, Damodar, Brahmani, Kharkai, and Subarnarekha rivers, whose upper watersheds lie within Jharkhand. Much of the state is still covered by forest.

The People

During the first census of 1872 the following 18 tribal communities were listed as the Aboriginal Tribes: (1) Khorta (2) Binjhia, (3) Gond, (4) Ho, (5) Kharia, (6) Kharwar, (7) Khond, (8) Kisan, (9) Korwa, (10) Mal Paharia, (11) Munda, (12) Oraon, (13) Santhal, (14) Sauria Paharia, (15) Savar, (16) Bhumij, (17) Birhor Chero.

Later 4 Tribes were classified as semi-Hinduized aboriginals, viz., (1) Banjara, (2) Bathundi, (3) Chik Baraik and (4) Mahli.

As of now the following 32 communities of Jharkhand are listed as the Scheduled Tribes as per details in the state government’s website.

Primitives Tribes: Asur, Birhor, Birajia, Korba, Mal Paharia, Sauriya Paharia, Sabar, Hill Kharia and Parahiya.

Other Tribes: Biga, Banjara, Bathudi, Bedia, Bhumij, Binjhia, Chero, Chik Baraik, Gond, Gorait, Ho, Karmali, Khadia, Kharwar, Khond, Kisan, Kora, Lohra, Mahali, Munda, Oraon and Santhal.

Administrative districts

Palamu Division:

North Chhotanagpur Division:

South Chhotanagpur Division:

Kolhan Division:

Santhal Pargana Division:

External links

References

  1. Gautam Kumar Bera (2008). The unrest axle: ethno-social movements in Eastern India. Mittal Publications. pp. 32–35. ISBN 978-81-8324-145-8.
  2. Munda Rajas
  3. jharkhandstatenews http://www.jharkhandstatenews.com/arjun-munda-unveils-ancient-tribal-rajas-statue-in-pithoria/
  4. J.B. Hoffmann (1984). A missionary social worker in India. Editrice Pontificia Università Gregoriana. p. 54. ISBN 978-88-7652-539-1.
  5. Dr Naval Viyogi: Nagas – The Ancient Rulers of India, p.158
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.378
  7. bhaskar.com, 13.12.2021
  8. Source: https://www.bbc.com/hindi/india-59325568