Ahar Udaipur

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Location of Ahar near Udaipur Railway station

Ahar (अहार) is an ancient historical place in Udaipur District in Rajasthan. Its ancient name was Aghata (आघाट)/Aghatapura (आघाटपुर)/Atapura (आटपुर).

Variants

Location

Location of Ahar is near Udaipur Railway station. उदयपुर नगर से करीब डेढ़ मील की दूरी पर ईशान कोण में रेलवे स्टेशन के समीप आहाड़ नामक प्राचीन नगर के खंडहर हैं.

History

It is known for shvetambar centre from 10th century AD. The Parshvanatha temple of this place is as old as 972 AD. It has also temple dedicated to Mahavira. [1]

The remains of Chalcolithic culture have been recovered from the excavation of Ahar (1800-1300 BC) and Gelund sites of Bana valley in Rajasthan.The date of this culture is 2000 BC to 500 BC. Later it was occupied by the 'Iron Age People'. [2]

Ahar, Kayatha, and Malwa cultures

Dr Naval Viyogi[3] writes about The South and the Central Indian Cultures of Chalcolithic Age: (Ahar, Kayatha, and Malava) ...The remains of Chalcolithic culture have been recovered from the excavation of Ahar and Gelund sites of Bana valley in Rajasthan [4]The date of this culture is 2000 BC-500 BC. Later it was occupied by the 'Iron Age People'. The latest Carbon date of Kalibanga has been calculated to be 1500 B.C. It means Harappan culture survived there later, for a period of about 300 years. In this way Harappan culture of Kalibanga and Chalcolithic culture of Ahar lived contemporarily for a long period of about 700 years (2000 BC-1300 BC). The date 1725 BC, derived by the Tata Institute of Technology Bombay, is also not less contemporary. Since the carbon dates of Eran (Distt [[Sagar Madhya Pradesh]]), Navadatoli (Distt Nimad in Madhya Pradesh), Nevasa (Distt Ahmad Nagar), Songaon, Inamgaon Chandoli (Distt Pune M.R.) etc have been fixed within the second millenium B.C. From this it has become clear that Chalcolithic culture developed in the South and the Central India[5] during the last period of Harappan culture or last phase of some sites or just after.

In this age, the successive development of three cultures of Kayatha, Malava and Jorve is also evident. The Savalda culture of Tapti valley is of some specific type, but it is similar to Kayatha culture. Remains of whatever Chalcolithic culture have come to hands from Maheshwara and Navadatoli (9 kms South of Indore) lying in between Ujjain and Indore, has been named as Malava culture. On a later date, from excavation of Kayatha (on the bank of Kali Sindh) we have come to know about a rich Chalcolithic culture, which developed a few centuries (about 2000 BC) earlier than the Malava culture. Ahar, Kayatha and Malava cultures are so similar that it will be Justified to call them fundamentally one culture. The Ahar and the Kayatha cultures should be taken as parent cultures of Malava[6].

Owing to fixation of carbon-14 date[7] of Malva culture between 1660 ± 130 and 1445 ± 130 BC, period of its origin has been decided 1500 BC (Aggarwal-l971). Evidences of extension of this culture from the region of Ujjain and Navadatoli up to the Tapti and onward up to the Bhima valley, has been noted from the excavation of Chandoli, Songaon and Inamgaon.[8]

5,000-yr-old Ahar remains enthrall archaeologists

Archaeologists are enthralled at the discovery of a multi-cultural site near Moola Mata temple at Kapasan town in Chittorgarh. Of the remains found here in three different layers, one beneath the other, the oldest one identified dates back to 5,000-year-old Ahar culture while the other two are believed to fall somewhere between around 2,500 and 1,000 years, respectively. This is the 116th site found so far of the Ahar civilization whose remains is believed to be sprawled in a vast area across Rajasthan, Madhya Pradesh and Gujarat.

Archaeologists have found typical white painted black and red ware pottery pieces which are known as the peculiar and distinct feature of the Ahar civilization. The chemical analysis of the discovered material is expected to bring important revelations on how the culture flourished in different periods, experts claim.

The discovery came when an official of the Nagar Palika happened to visit the temple recently. He was informed by the residents of remains seen on the mound thus suggesting a possibility of some ancient civilization unearthed. Taking the clue the officer ordered excavation at the site few days back and what came out stunned everyone. Pillars, pieces of earthen pots, brick walls, broken pieces of stone structures were discovered from the site.

"It is a huge mound which roughly measures 250 m north-south and 150 m east-west. Remains of Ahar culture are superimposed by a very thick cultural deposit of Historic and Medieval phase," informed Prof Jeevan Singh Kharakwal, director, Sahitya Sansthan of Rajasthan Vidyapeeth University. The total cultural deposit is about 10m thick.

"We visited the site since a few members of a medieval temple got exposed while digging for soil to level the ground. The local villagers are making a shrine of Moola Mata on top of this mound. Our close examination thus revealed that it is a multicultural site.There are a few well-known Ahar culture sites such as Gilund, Umand, Rawalia in this area located about 20, 8 and 11 km respectively, from Moola Mata," Kharakwal said.

The exploration was carried out jointly by a team of Sahitya Sansthan, Rajasthan Vidyapeeth, Udaipur and Ahar museum, Udaipur.

Reference - Times of India, Jaipur, Dated 4.12.2015

अहार

विजयेन्द्र कुमार माथुर[9] ने लेख किया है ...Ahar Udaipur अहार (उदयपुर, राज.) (AS, p.56): 1954-55 में भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में यहां से काले और लाल रंग के मिट्टी के बर्तनों के अवशेष प्राप्त हुए थे। इस प्रकार के मृद्भांग दक्षिण भारत के महापाषाण (Megalithic) मृद्भांडों के सदृश हैं और ये प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक काल के अंतर्वर्तीं युग से संबंधित माने जाते हैं। यह स्थल उदयपुर स्टेशन के निकट है।

आहर परिचय

आहर राजस्थान राज्य के उदयपुर शहर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ मेवाड़ के 19 शासकों के स्‍मारक है। यहाँ सबसे प्रमुख स्‍मारक महाराणा अमर सिंह का है। अमर सिंह ने सिंहासन त्‍यागने के बाद अपना अंतिम समय यहीं व्‍यतीत किया था। इस स्‍थान का संबंध हड़प्पा सभ्‍यता से भी जोड़ा जाता है। यहाँ एक पुरातात्विक संग्रहालय भी है।[10]

अभिलेख: आहर से प्राप्त एक अभिलेख, जो 953 ई. (संवत् 1010) का था, उससे एक विष्णु जी के मंदिर का उल्लेख किया गया था, यहाँ पर एक वैष्णव भक्त द्वारा आदि वराह की प्रतिमा को स्थापित करवाया गया था। यहाँ पर एक सूर्य मंदिर भी था। इसका प्रमाण 14 द्रम्मों के दान का उल्लेख करने वाले एक अन्य अभिलेख से मिलता है। [11]

मंदिर: यहाँ एक अन्य मंदिर में विष्णु के लक्ष्मीनारायण रूप की अर्चना होती थी, जिसे अब मीराबाई मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के बाह्य ताखों में ब्रह्मा-सावित्री, गरुड़ पर बैठे लक्ष्मी-नारायण, नंदी पर आसीन उमा-महेश्वर आदि की प्रतिमाओं के अतिरिक्त मेवाड़ के तत्कालीन सामाजिक जीवन के दृश्यों को भी प्रस्तुत किया गया है, जो उल्लेखनीय है। [12]

आहाड़ नामक प्राचीन नगर

उदयपुर नगर से करीब डेढ़ मील की दूरी पर ईशान कोण में रेलवे स्टेशन के समीप आहाड़ नामक प्राचीन नगर के खंडहर हैं। जैन ग्रंथों तथा कुछ शिलालेखों के अनुसार इसे आघाटपुर या आटपुर के नाम से जाना जाता है।

प्राचीन काल में आहाड़ एक समृद्धशाली नगर था। नगर में कई देवालय बने थे। मालवों के परमार राजा मुंज (वाक्पतिराज, अमोघवर्ष) ने विक्रम संवत् 1030 के आसपास इस नगर पर आक्रमण कर इसे बहुत हद तक नष्ट कर दिया। इसके बावजूद भी यह नगर आबाद रहा लेकिन संभवतः बाद में आये भूकंप के कारण यह पूरी तरह नष्ट हो गया। इन खंडहरों में धूलकोट नामक एक ऊँचा स्थान है, जहाँ की खुदाई में बड़ी-बड़ी ईंटें, मूर्तियाँ व प्राचीन सिक्के मिल जाते हैं। अब इस स्थान पर प्राचीन नगर के स्थान पर इसी नाम से नया गाँव बसा है। यहाँ गंगोद्भेद (गंगोभेव) नामक एक पुरातन तीर्थरुप चतुरस्र कुंड है। उसके मध्य में एक प्राचीन छत्री बनी हुई है जिसे लोग उज्जैनी के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के पिता गंधर्वसेन का स्मारक बतलाते हैं। कुड बड़ा ही पवित्र माना जाता है जिसमें सैकड़ों लोग स्नानार्थ आते हैं। उदयपुर के भूतपर्व दीवान कोठारी बलवंतसिंह जी ने इसका जीर्णोद्धार किया। कुंड के दक्षिण में शिवालय के सामने एक दूसरा चतुरस्र कुड तथा तिवारियाँ बनी हुई है। इन्हीं कुंडों के निकट अहाते से घिरा हुआ महाराणाओं का दाहस्थल है जो महासती के नाम से जाना जाता है। महाराणा प्रताप के बाद के राणाओं का अंत्येष्टि संस्कार बहुधा यहीं होता रहा। यहाँ अनेक छोटी-छोटी छत्रियाँ बनी हुई हैं जिसमें अमर सिंह (प्रथम) अमरसिंह (द्वितीय) तथा संग्राम सिंह द्वितीय की छत्रियाँ बड़ी भव्य बनी हुई है।

यहाँ बने नये मंदिरों में पुराने मंदिरों के बहुत से पत्थरों का उपयोग किया गया है। कई पुराने शिलालेख व मूर्तियाँ भी लगा दिये गये हैं। मेवाड़ के राजा भर्तृभट द्वितीय के समय (वि सं 1000) का एक शिलालेख दूसरे कुंड की दीवार पर देखा जा सकता है। बाद में बनाये गये जैन मंदिर तथा हस्तमाता के मंदिर की सीढियों में भी शिलालेख वाले पत्थरों का उपयोग किया गया था। राजा अल्लट के समय (वि सं 1010) के शिलालेख से सारणेश्वर के मंदिर का छबना बनाया गया था। राजा अल्लट के समय का लेख मूल में वाराह मंदिर में लगा हुआ है जो मेवाड़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

Ahar Udaipur Inscription of 953 AD

आहड़ से प्राप्त एक अभिलेख 953 ई.: आहड़ से प्राप्त एक अभिलेख , जो 953 ई. (संवत् 1010) का था, उससे एक विष्णु जी के मंदिर का उल्लेख किया गया था, यहाँ पर एक वैष्णव भक्त द्वारा आदि वराह की प्रतिमा को स्थापित करवाया गया था. यहाँ पर एक सूर्य मंदिर भी था. इसका प्रमाण 14 द्रम्मों के दान का उल्लेख करने वाले एक अन्य अभिलेख से मिलता है.

यहाँ एक अन्य मंदिर में विष्णु के लक्ष्मीनारायण रूप की अर्चना होती थी, जिसे अब मीराबाई मंदिर के नाम से जाना जाता है. मंदिर के बाह्य ताखों में ब्रह्मा-सावित्री, गरुड़ पर बैठे लक्ष्मी-नारायण, नंदी पर आसीन उमा-महेश्वर आदि की प्रतिमाओं के अतिरिक्त मेवाड़ के तत्कालीन सामाजिक जीवन के दृश्यों को भी प्रस्तुत किया गया है, जो उल्लेखनीय है.

Ahar Inscription of Shaktikumara of 977 AD

Inscription No. V of James Tod[13]

Text of Atpur Inscription of Shaktikumara 977 A.D.

Inscription from the ruins of Atpur--

In Samvatsir 1034, the 10 of the month Bysak, was erected dwelling of Nanukswami.

From Anaunpoor came he of Brahmin [Vipra cula] race (may he flourish), Muhee Deva Sri Goha Dit, from whom became famous on the earth the Gohil, tribe:

2. Bhoj.
3. Mahindra.
4. Naga.
5. Syeela.
6. Aprajit.
7. Mahindra, no equal as a warrior did then exist on the earth’s surface.
8. Kalbhoj was resplendent as the sun (Arc).
9. Khoman, an unequalled warrior; from him
10. Bhitrpad, the Tiluk of the three worlds; and from whom was
11. Singji; whose Ranee Maha Lakmee, ‘of the warlike race of Rashtra (Rahtore), and from her was born:
12. Sri Ullut. To him who subdued the earth and became its lord, was born Haria Devi: her praise was known in Hurspoora; and from her was born a mighty warrior in whose arm victory reposed; the Khetri of the field of battle, who broke the confederacy of his foes, and from the tree of whose fortune riches were the fruit: an altar of learning, from him was
13. Nirvahana. By daughter of Sri Jaijah, of Chauana race, was born
14. Salvahana. Such were their (the princes whose names are given) fortunes which I(related. From him was born
15. Secti Koomar. How can he be described ?—He who conquered and made his own the three qualifications (sacti Priboo, Ootccha and Muntri); whose fortunes equaled those of Bhitarpad. In the abode of wealth Sri Aitpoor, which he had made his dwelling, surrounded by crowd of princes; the kulpdroom to his people; whose foot-soldiers are many; with vaults of treasure—whose fortunes have ascended to heaven—whose city derives its beauty from the intercourse of merchants; and in which there is but one single evil, the killing darts from the bright eyes of beauty, carrying destruction to the vassals of the prince.
Atpur Inscription of Shaktikumara 977 A.D.[14]


The earliest epigraphic record containing a full genealogy of the family is inscription dated 977 AD found at Atpur. It gives the names of 20 kings in an unbroken line of succession beginning from Guhadatta and ending in Shaktikumara. Allowing five reins in a century Guhadatta may be placed in second half of the sixth century AD. This view is corroborated by other epigraphic evidences, but goes against the bardic tradition that the Guha, the founder of the family , was the son of Siladitya, the last ruler of Valabhi, as the later was on the throne till at least 766 AD.[15]

The inscription of Atpur (Ahar) of V.S 1034 has mentioned the first king's name as Guhadatta meaning gift of Guha or Sadanana, the first son of God Shiva, the family deity of this family.[16]


आहड़ का शक्तिकुमार का लेख 977 ई.

यह लेख टोड को मिला था.[17] सम्भवत: वह इसे इंगलैण्ड ले गया. यह वि.सं. 1034 वैशाख सुदी 1 का है. इसमें शक्तिकुमार को प्रभुशक्ति, मंत्रशक्ति और उत्साह शक्ति से सम्पन्न बताया गया है. इसमें यह भी उल्लेखित है कि शक्तिकुमार का निवास स्थान आहड़ था. इस लेख से शक्तिकुमार की राजनीतिक प्रभुता तथा आहड़ की आर्थिक सम्पन्नता का बोध होता है. इस लेख में अल्लट की माता महालक्ष्मी का राठौड़ वंश की होना तथा अल्लट की राणी हरियदेवी का हूण राजा की पुत्री होना और उस राणी का हर्षपुर गांव बसाना अंकित है. इस लेख में गुहदत्त से शक्ति कुमार तक पूरी वंशावली दी है जो मेवाड़ के प्राचीन इतिहास के लिये बड़े काम की है. इस लेख में वर्णित शक्तिकुमार की राजनीतिक प्रभुता आहड़ के देवकलिका वाले शिलालेख से प्रमाणित होती है. एक अन्य लेख द्वारा हमें यह सूचना मिलती है कि राजा नरवाहन के अक्षपटलिक श्रीपति के दो पुत्र मत्तट और गुंदल थे. ये दोनों भाई शक्तिकुमार की दोनों भुजाओं के समान थे. यह राजधानी एक प्रकार से सैनिक छावनी थी. इसलिये प्रशस्तिकार ने इसके लिये ’कटक’ शब्द का प्रयोग किया है. ये दोनों बन्धु इस कटक के भूषण बताये गये हैं. इससे इनके सैनिक उपयोगिता का आभाष होता है. एक अन्य जैन मन्दिर के सीढी के लगे हुये अपूर्ण शिलालेख से मत्तट का शक्तिकुमार का अक्षपटलाधिपति होना सूचित होता है. उसने राजा की आज्ञा से एक सूर्य मन्दिर के लिये प्रतिवर्ष 14 द्रम देने की व्यवस्था की थी. यह अपूर्ण लेख उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित है.

Ahar Devakulika Inscription of 977 AD

आहड़ का देवकुलिका का लेख 977 ई.

इस लेख का संवत वाला भाग टूट गया है पर मेवाड़ के राजा अल्लट, नरवाहन और शक्तिकुमार के नाम होने से यह शक्तिकुमार के समय का प्रतीत होता है.[18] इस लेख का सबसे बड़ा उपयोग यह है कि इससे इन तीनों शासकों के समय के अक्षपटलाधीशों का वर्णन मिलता है. अब यह लेख का खण्ड आहड़ के जैन मन्दिर के छबने में तोड़फोड़कर लगा दिया गया है. इसका थोड़ासा भाग बचा है जिससे यह सूचनायें मिलती हैं. अल्लट के सम्बन्ध में इसमें उल्लिखित है कि उसने अपनी भयानक गदा से अपने प्रबल शत्रु देवपाल को युद्ध में मारा. सम्भव है कि देवपाल कन्नौज का शासक था जिसने अपने राज्य में मेवाड़ सम्मिलित करने के लिये प्रयास किया हो और चढाई के अवसर पर मारा गया हो. इस लेख में अल्लट के अक्षपटलाधीश का नाम मयूर दिया है.

References

  1. Encyclopaedia of Jainism, Volume-1 By Indo-European Jain Research Foundation p.5505
  2. Dr Naval Viyogi: Nagas – The Ancient Rulers of India, p.57
  3. Dr Naval Viyogi: Nagas – The Ancient Rulers of India, p.57
  4. Dr. Madan Mohan Singh, "Puratatva Ki Ruprekha" (1989), p.54
  5. Dr. Madan Mohan Singh, "Puratatva Ki Ruprekha" (1989), p.56
  6. ibid
  7. Dr. Madan Mohan Singh, "Puratatva Ki Ruprekha" (1989), p.57
  8. ibid
  9. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.56
  10. भारतकोश-आहर
  11. भारतकोश-आहर
  12. भारतकोश-आहर
  13. James Tod, Annals and Antiquities of Rajasthan, Vo. 1, pp. 628-29
  14. James Tod, Annals and Antiquities of Rajasthan, Vo. 1, pp. 628-29
  15. Ancient India By R.C. Majumdar, pp. 288-299
  16. Origin Guhilas
  17. डॉ गोपीनाथ शर्मा: 'राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत', 1983, पृ.67 E.I. Vol. 39,p.191
  18. डॉ गोपीनाथ शर्मा: 'राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत', 1983, पृ.66

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