Dhandhusar

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Location of Rawatsar in Hanumangarh district

Dhandhusar (धांधूसर) is a town in Rawatsar tahsil of Hanumangarh district in Rajasthan. It has a population of about 2008 persons living in around 289 households.

Jat Gotras

History

Thakur Deshraj [1]while discussing Bhatis of Bhatner writes with reference to writer Munshi Jwalasahay in 'Wakaye Rajputana' that there are large number of traces of ruins near Hakra River. Village Dhandhusar (धांधूसर) was a well developed city at the time of Invasion of Alexander. It is said that their chieftains had good palaces, people were having number of ponds and sufficient land was left for cattle grazing. They lost their Kingdoms during reign of Akbar but still they were in possession of large tracts of land. In 18th century Kuhadwas the area was ruled by Kuhad Singh and his son Panne Singh. Later Bhatis of Kuhadsar were known as Kuhads. Kunwar Panne Singh was a Public Servant of Shekhawati and Kuhad ruler Pannesingh was 15 generations earlier to him. Like Kuhads, the Dular Bhatis also migrated from Punjab and established a small state here. The Bard records tell us they occupied land near Gorir and Singhana.


According to James Tod, Alexander the Great, as per traditions among Johyas, (Annals ii, p. 1134) is said to have reached Dandosar, (Annals ii, p.1167).[2]

जाट इतिहास में धांधूसर

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है कि मुन्शी ज्वालासहाय जी ‘वाकए राजपूताना’ के लेखक ने आगे लिखा है-

‘‘हाकरा नदी के आसपास बहुत से खंडहर पाये जाते हैं। रंगमहल के मकानात जो दिखाई पड़ते है बहुत जमाने के हैं। धांधूसर जो कि भटनेर से दक्षिण 25 मील के फासले पर है, उसके सम्बन्ध में एक भटनेर निवासी सज्जन ने बतलाया था कि यह कस्बा कभी सिकन्दर के आक्रमण के समय पूरा रईस था।

"x x अगर कोई हांसीहिसार की ओर से बीकानेर में प्रवेश करे तो इन मशहूर खंडहरों के सम्बन्ध की कहावतों की बखूबी जानकारी हासिल कर सकता है, जो पुराने जमाने में परमार, जोहिया अथवा जाट रईसों के महल की बुनियाद थी। इधर से यात्री को काफी ऐतिहासिक सामग्री मिल सकती है।
"अमौर, बंजीर का नगर, रंगमहल, सोदल (सूरतगढ़) माचूताल, रातीबंग, बन्नी, मानिकखर, सूर सागर, कालीबंग, कल्यान सर, फूलरा, मारोट, तिलवाड़ा, गिलवाड़ा, भामेनी, कोरीवाला, कुल ढेरनी, नवकोटि, मासका ये ऐसे स्थान हैं जिनमें से अधिकांश के सम्बन्ध में काफी ऐतिहासिक सामग्री मिल सकती है।’’

‘वाकए-राजपूताना’ के लेख से जहां यह बात प्रकट होती है कि जाटों का एक बडे़ प्रदेश पर लम्बे समय तक राज रहा है तथा उन्होंने प्रत्येक आक्रमणकारी मुसलमान विजेता से सामना किया है, वहां जाट-राज्यों के सम्बन्ध में यह बात भी इस लेख से मालूम हो जाती है कि ये जाट-राज्य सब प्रकार से समृद्धिशाली थे। उनके समय में कला-कौशल की भी वृद्धि हुई। यही तो कारण था कि सिकंदर ने आने के समय उनका धांधूसर नामक नगर पूरे वैभव पर पाया गया। उनकी राजधानियों में जहां सरदारों के रहने के लिए अच्छे-अच्छे राज-भवन थे, वहां प्रजा के सुख के लिए तालाब भी थे। पशुओं के लिए वे काफी गोचर भूमि छोड़ते थे।

खास भटनेर से भाटी जाटों की हुकूमत यद्यपि अकबर के समय अर्थात् सत्राहवीं सदी में नष्ट हो गई थी, किन्तु फिर भी वे जांगल तथा ढूंढार पंजाब के बहुत से भू-भाग को विभिन्न स्थानों पर दबाये रहे। अठारहवीं सदी में कुहाड़वास और उसके प्रदेश पर कुहाड़सिंह और उसका पुत्र पन्नेसिंह शासक था। हालांकि


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-602


यह उनकी बहुत ही छोटी रियासत थी। आगे चलकर कुहाड़सर के भाटी कुहाड़ नाम से प्रसिद्ध हुए। शेखावाटी के लोग-सेवक कुंवर पन्नेसिंह जी से कुहाड़ का शासक पन्नेसिंह 15 पीढ़ी पहले हुआ था। कुहाड़ों की भांति पंजाब से सरककर दूलड़ भाटियों ने भी एक छोटा-सा राज्य स्थापित कर रखा था। मालवा में भी वे चुप नहीं बैठे रहे। भूमि पर कब्जा करके अपने प्रभुत्व को जमाने का अधिकार तो उन्होंने अब तक नहीं छोड़ा है। भाट लोगों की शाखा ने गोरीर और सिंधाना के निकट की भूमि पर प्रभुत्व स्थापित किया ऐसा भी भाट-ग्रन्थों में वर्णन मिलता है।

Notable persons

External links

References


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