Kusha
Kusha (कुश), in Hindu mythology, was one of the twin sons of Lord Rama and Sita (the other being Lava). Also called "Kush," he was believed to be the ruler of a kingdom centered at Karachi in ancient times, and the present day Pakistani city Kasur still references him in name. His brother Lava is purported to be the founder of Lahore.
Jat Gotras from Kusha
- Kaswan (कसवां) Kaswa (कस्वा) Kasvan (कसवां) Kuswan (कुसवां) Kasuan (कसुवां) Kusuma (कुसुमा) Kushman (कुशमान) - Kusha is the ancestor of these clans of Jats.[1]
- Kush (कुश) gotra of Jats found in Haryana is based on descendants of Kusha, son of Rama. [2]
- Kushwah (कुशवाह) gotra of Jats became popular from Kharavela's inscriptions, who got victory in vikram second century at Sidhmukh (Ratangarh). (See - Hathigumpha inscription). They are descendants of Kusha (कुश). [3]
Mention by Panini
Kusha (कुश), pavitra (पवित्र), is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [4]
Kusha (कुशा) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [5]
In Bhagavata Purana
They are descendant of a Suryavanshi King Langala in the Ancestry of Kusha, son of Rama, in Bhagavata Purana.
Rama → Kusha → Atithi → Nishadha → Nabha → Pundarika → Kshema Dhanvan → Devanika → Aniha → Pariyatra → Balasthala → Vajra Nabha (Incarnation of Surya) → Sagana → Vidhriti → Hiranya Nabha → Pushpa → Dhruva Sandhi → Sudarshana → Agni Varna → Maru → Prasusruta → Sandhi → Amarshana → Mahasvat → Visvabahu → Prasenajit → Takshaka → Brihadbala (killed at the battle of Kurukshetra by Abhimanyu)
(Time of Parikshit)
Brihat-rana → Vatsa-vriddha → Prativyoma → Bhanu → Divaka → Sahadeva → Brihadasva → Bhanumat → Pratikasva → Supratika → Marudeva → Sunakshatra → Pushkara → Antariksha → Sutapas → Amitrajit → Brihadrai → Barhi → Kritanjaya → Rananjaya → Sanjaya → Shakya → Suddhoda → Langala → Prasenajit → Kshudraka → Sumitra
Sumitra shall be shall be the last of Ikshvaku dynasty in this Kaliyuga.
Kusheshwar temple
कुशेश्वर महादेव मंदिर - द्वारकाधीश जी के मंदिर परिसर में कुल बीस मंदिर हैं. मोक्षद्वार से प्रवेश करने पर दाहिने और नवग्रह देवता के यंत्र और समीप कुशेश्वर महादेव शिवलिंग विराजमान है। कहा जाता है कि द्वारका की यात्रा के आधे भाग का मालिक कुशेश्वर महादेव है। एक मत के अनुसार कुश नामक दैत्य के नाम से कुशस्थली नाम पड़ा है,जिन्हें यहाँ कुशेश्वर महादेव नाम से जाना जाता है। [6]
कुशावती
विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...1. कुशावती (AS, p.213): वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड 108,4 से विदित होता है कि स्वर्गारोहण के पूर्व रामचंद्र जी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुशावती नगरी का राजा बनाया था-- 'कुशस्य नगरी रम्या विंध्यपर्वत रोधसि, कुशावतीति नाम्ना साकृता रामेण धीमता'. उत्तरकांड 107, 17 से यह भी सूचित होता है कि, 'कोसलेषु कुशं वीरमुत्तरेषु तथा लवम्' अर्थात रामचंद्र जी ने दक्षिण कौशल में कुश और उत्तर कौशल में लव का राज्याभिषेक किया था. कुशावती विंध्यपर्वत के अंचल में बसी हुई थी और दक्षिण कोसल या वर्तमान रायपुर (बिलासपुर क्षेत्र छत्तीसगढ़) में स्थित होगी. जैसा की उपयुक्त उत्तर कांड 108,4 सेवा से सूचित होता है
स्वयं रामचंद्र जी ने यह नगरी कुश के लिए बनाई थी. कालिदास ने भी रघुवंश 15,97 में कुश का, कुशावती का राजा बनाए जाने का उल्लेख किया है--'स निवेश कुशावत्यां रिपुनागांकुशं कुशम्'. रघुवंश सर्ग 16 से ज्ञात होता है कि कुश ने कुशावती में कुछ समय पर्यंत राज करने के पश्चात अयोध्या की इष्ट देवी के स्वप्न में आदेश देने के फलस्वरूप उजाड़ अयोध्या को पुनः बसाकर वहां अपनी राजधानी बनाई थी. कुशावती से ससैन्य अयोध्या आते समय कुश को विंध्याचल पार करना पड़ा था-- 'व्यलंङघयद्विन्ध्यमुपायनानि पश्यन्पुलिंदैरूपपादितानि' रघुवंश 16,32. विंध्य के पश्चात कुश की सेना ने गंगा को भी हाथियों के सेतु द्वारा पार किया था, 'तीर्थे तदीये गजसेतुबंधात्प्रतीपगामुत्तर-तोअस्य गंगाम, अयत्नबालव्यजनीबभूवुर्हंसानभोलंघनलोलपक्षा:...' रघुवंश 16,33 अर्थात जिस समय कुश, पश्चिम वाहिनी गंगा को गज सेतु द्वारा पार कर रहे थे, आकाश में उड़ते हुए चंचल पक्षों वाले हंसों की श्रेणियां उन (कुश) के [p.214]: ऊपर डोलती हुई चंवर के समान जान पड़ती थीं. यह स्थान जहां कुश ने गंगा को पार किया था चुनार (जिला मिर्जापुर उत्तर प्रदेश) के निकट हो सकता है क्योंकि इस स्थान पर वास्तव में गंगा एकाएक उत्तर पश्चिम की ओर मुड़ कर बहती है और काशी में पहुंचकर फिर से सीधी बहने लगती है.
References
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudi, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 227
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 231
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 230
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.371
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.214
- ↑ दिव्य द्वारका, प्रकाशक दण्डी स्वामी श्री सदानन्द सरस्वती जी, सचिव श्रीद्वारकाधीश संस्कृत अकेडमी एण्ड इंडोलॉजिकल रिसर्च द्वारका गुजरात, पृ.10,61
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.213-214
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