Mahabharata in Hindi
- http://www.saralhindi.com/unicode/mb_unicode_toc_parva_01.htm
- http://www.sacred-texts.com/hin/m01/m01024.htm
1. सूची आदि पर्व
- १ [आदि पर्व - १] ग्रन्थ का उपक्रम, ग्रन्थ में कहे हुए अधिकांश विषयों की संक्षिप्त सूची तथा इसके पाठ की महिमा
- २ [आदि पर्व - २] समन्तपञ्चक क्षेत्र का वर्णन, अक्षौहिणी सेना का प्रमाण, महाभारत में वर्णित पर्वों और इनके संक्षिप्त विषयों का संग्रह तथा महाभारत के श्रवण एवम पठन का फल
- ३ [आदि पर्व - ३] जनमेजय को सरमा का शाप, जनमेजय द्वारा सोमश्रवा का पुरोहित के पद पर वरण; आरुणि, उपमन्यु, वेद और उत्तड़्क की गुरुभक्ति तथा उत्तड़्क का सर्पयज्ञ के लिए जनमेजय को प्रोत्साहन देना.
- ४ [आदि पर्व - ४] कथा - प्रवेश.
- ५ [आदि पर्व - ५] भृगु के आश्रम पर पुलोमा दानव का आगमन और उसकी अग्निदेव के साथ बातचीत.
- ६ [आदि पर्व - ६] महर्षि च्यवन का जन्म, उनके तेज से पुलोमा राक्षस का भस्म होना तथा भृगु का अग्निदेव को शाप देना.
- ७ [आदि पर्व - ७] शाप से कुपित हुए अग्निदेव का अदृश्य होना और ब्रह्मा जी का उनके शाप को संकुचित करके उन्हें प्रसन्न करना...
- ८ [आदि पर्व - ८] प्रमद्वरा का जन्म, रुरु के साथ उसका वाक्यदान तथा विवाह के पहले ही सांप के काटने से प्रमद्वरा की मृत्यु
- ९ [आदि पर्व - ९] रुरु की आधी आयु से प्रमद्वरा का जीवित होना, रुरु के साथ उसका विवाह, रुरुका सर्पों को मारने का निश्चय तथा रुरु- डुण्डुभ संवाद.
- १० [आदि पर्व - १०] रुरु मुनि और डुण्डुभ का संवाद.
- ११ [आदि पर्व - ११] डुण्डुभ की आत्मकथा तथा उसके द्वारा रुरु को अंहिसा का संदेश.
- १२ [आदि पर्व - १२] जनमेजय के सर्पसत्र के विषय में रुरु की जिज्ञासा और पिता द्वारा उसकी पूर्ति.
- १३ [आदि पर्व - १३] जरत्कारु का अपने पितरों के अनुरोध से विवाह के लिए उद्यत होना.
- १४ [आदि पर्व - १४] जरत्कारु द्वारा वासुकि की बहिन का पाणिग्रहण.
- १५ [आदि पर्व - १५] आस्तीक का जन्म तथा मात्र शाप से सर्पसत्र में नष्ट होने वाले नागवंश की उनके द्वारा रक्शा.
- १६ [आदि पर्व - १६] कद्रू और विनता को कश्यप जी के वरदान से अभीष्ट पुत्रों की प्राप्ति.
- १७ [आदि पर्व - १७] मेरु पर्वत पर अमृत के लिए विचार करने वाले देवताओं को भगवान नारायण का समुद्र - मन्थन के आदेश.
- १८ [आदि पर्व - १८] देवताओं और दैत्यों द्वारा अमृत के लिए समुद्र का मन्थन, अनेक रत्नों के साथ अम्रित की उत्पत्ति और भगवान का मोहिनी रूप धारण करके दैत्यों के हाथ से अमृत ले लेना.
- १९ [आदि पर्व - १९] देवताओं का अमृतपान, देवासुर संग्राम तथा देवताओं की विजय
- २० [आदि पर्व - २०] कद्रू और विनता की होड़, कद्रू द्वारा अपने पुत्रों का शाप एवम ब्रह्मा जी द्वारा उसका अनुमोदन.
- २१ [आदि पर्व - २१] समुद्र का विस्तार से वर्णन.
- २२ [आदि पर्व - २२] नागों द्वारा उच्चै: श्रवा की पूंछ को काली बनाना, कद्रू और विनता का समुद्र को देखते हुए आगे बढ़ना.
- २३ [आदि पर्व - २३] पराजित विनता का कद्रू की दासी होना, गरुड की उत्पत्ति तथा देवताओं द्वारा उनकी स्तुति.
- २४ [आदि पर्व - २४] गरुड के द्वारा अपने तेज और शरीर का संकोच तथा सूर्य के क्रोधजनित तीव्र तेज की शान्ति के लिए अरुण का उनके रथ पर स्थित होना.
- २५ [आदि पर्व - २५] सूर्य के ताप से मूर्छित हुए नागों की रक्षा के लिए कद्रू द्वारा इन्द्र देव की स्तुति.
- २६ [आदि पर्व - २६] इन्द्र द्वारा की हुई वर्षा से नागों की प्रसन्नता.
- २७ [आदि पर्व - २७] रामनीयक द्वीप, लवण समुद्र का वर्णन तथा गरुड का दास्य भाव से छुटने के लिए नागों से उपाय पूछना.
- २८ [आदि पर्व - २८] गरुड का अमृत के लिए जाना और अपनी माता की आज्ञा के अनुसार निषादों का भक्षण करना.
- २९ [आदि पर्व - २९] कश्यप जी गरुड को हाथी और कछुए के पूर्व जन्म की कथा सुनाना, गरुड का उन दोनों को पकड़कर एक दिव्य वट वृक्ष अलम्व की शाखा पर ले जाना और उस शाखा का टूटना.
- ३० [आदि पर्व - ३०] गरुड का कश्यप जी से मिलना, उनकी प्रार्थना से वालखिल्य ऋषियों का शाखा छोड़कर तप के लिए प्रस्थान और गरुड का निर्जन पर्वत पर उस शाखा को छोड़ना.
- ३१ [आदि पर्व - ३१] इन्द्र के द्वारा वालखिल्यों का अपमान और उनकी तपस्या के प्रभाव से अरुण- गरुड की उत्पत्ति
- ३२ [आदि पर्व - ३२] गरुड का देवताओं के साथ युध्द और देवताओं की पराजय [देवता: अश्वक्रन्द (I.28.18), रेणुक, क्रथन, तपन (I.28.18), उलूक (I.28.19), वसना, निमेष, प्ररुज, प्रलिह (I.28.19)]
- ३३ [आदि पर्व - ३३] गरुड का अमृत लेकर लौटना, मार्ग में भगवान विष्णु से वर पाना एवम उन पर इन्द्र के द्वारा वज्र प्रहार.
- ३४ [आदि पर्व - ३४] इन्द्र और गरुड की मित्रता, गरुड का अमृत लेकर नागों के पास जाना और विनता को दासी भाव से छुड़ाना तथा इन्द्र द्वारा अमृत का अपहरण.
- ३५ [आदि पर्व - ३५] मुख्य मुख्य नागों के नाम... ११४
- ३६ [आदि पर्व - ३६] शेषनाग की तपस्या {गन्धमादन, बदरी, गॊकर्ण, पुष्करारण्य, हिमवत (I.32.3)}, ब्रह्मा जी से वर प्राप्ति तथा पृथ्वी को सिर पर धारण करना.
- ३७ [आदि पर्व - ३७] माता के शाप से बचने के लिए वासुकि आदि नागों का परस्पर परामर्श.
- ३८ [आदि पर्व - ३८] वासुकि की बहिन जरत्कारु का जरत्कारु मुनि (यायावर कुल) के साथ विवाह करने का निश्चय.
- ३९ [आदि पर्व - ३९] ब्रहमा जी की आज्ञा से वासुकि का जरत्कारु मुनि के साथ अपनी बहिन को ब्याह के लिए प्रयत्नशील होना.
- ४० [आदि पर्व - ४०] जरत्कारु की तपस्या, राजा परीक्षित का उपाख्यान तथा राजा के द्वारा मुनि के कंधों पर मृतक सांप रखने के कारण दु:खी हुए कृश का श्रिंड्गी को उत्तेजित करना
- ४१ [आदि पर्व - ४१] श्रिंड्गी रिषि का राजा परीक्षित को शाप देना और षमीक का अपने पुत्र को शान्त करते हुए शाप को अनुचित बताना.
- ४२ [आदि पर्व - ४२] शमीक का अपने पुत्र को समझाना और गौरमुख को राजा परीक्षित के पास भेजना, राजा द्वारा आत्मरक्षा की व्यवस्था तथा तक्षक नाग और कश्यप की बातचीत.
- ४३ [आदि पर्व - ४३] तक्षक का धन देकर कश्यप को लौटा देना और छल से राजा परीक्षित के समीप पहुंचकर उन्हें डंसना.
- ४४ [आदि पर्व - ४४] जनमेजय का राज्याभिषेक और विवाह. Married with Vapushtama (वपुष्टमा) daughter of Suvarnavarman (सुवर्णवर्माण), the king of Kashi
- ४५ [आदि पर्व - ४५] जरत्कारु को अपने पितरों का दर्शन और उनसे वार्तालाप (वीरणस्तम्ब).
- ४६ [आदि पर्व - ४६] जरत्कारु का शर्त के साथ विवाह के लिए उद्यत होना और नागराज वासुकि का जरत्कारु नाम की कन्या को लेकर आना.
- ४७ [आदि पर्व - ४७] जरतकारु मुनि का नागकन्या के साथ विवाह, नागकन्या जरत्कारु द्वारा पतिसेवा तथा पति का उसे त्याग कर तपस्या के लिए गमन.
- ४८ [आदि पर्व - ४८] वासुकि नाग की कन्या की चिन्ता, बहिन द्वारा उसका निवारण तथा आस्तीक का जन्म एवम विद्याध्ययन.
- ४९ [आदि पर्व - ४९ ] राजा परीक्षित के धर्ममय आचार तथा उत्तम गुणों का वर्णन, राजा का शिकार के लिए जाना और उनके द्वारा शमीक मुनि का तिरस्कार...
- ५० [आदि पर्व - ५०] श्रिड्गी रिषि का परीक्षित को शाप, तक्षक का काश्यप को लौटाकर छल से परीक्षित को डंसना और पिता की मृत्यु का वृतांत सुनकर जनमेजय की तक्षक से बदला लेने की प्रतिज्ञा.
- ५१ [आदि पर्व - ५१] जनमेजय के सर्पज्ञ का उपक्रम.
- ५२ [आदि पर्व - ५२] सर्पसत्र का आरम्भ और उसमें सर्पों का विनाश.
आदि पर्व - ५३
- ५३ [आदि पर्व - ५३] सर्पयज्ञ के रित्विजों की नामावली (चण्डभार्गव, कौत्स, जैमिनि, छार्ङ्ग, पिङ्गल, वयास, उद्दालक, शमठक, शवेतकेतु, पञ्चम, असित, देवल, नारद, पर्वत, आत्रेय, कुण्ड जठर, कुटि घट, वात्स्य, श्रुतश्रव, कहॊड देव शर्मा, मौद्गल्य, शम सौभर) सर्पों का भयंकर विनाश, तक्षक का इन्द्र की शरण में जाना तथा वासुकि का अपनी बहिन से आस्तीक को यज्ञ में भेजने के लिए कहना.
- ५४ [आदि पर्व - ५४] माता की आज्ञा से मामा को सान्त्वना देकर आस्तीक का सर्पयज्ञ में जाना.
- ५५ [आदि पर्व - ५५] आस्तीक के द्वारा यजमान, यज्ञ, यज्ञ, रित्विज, सदस्यगण और अग्निदेव की स्तुति- प्रशंसा.
- ५६ [आदि पर्व - ५६] राजा का आस्तीक को वर देने के लिए तैयार होना, तक्षक नाग की व्याकुलता तथा आस्तीक का वर मांगना.
- ५७ [आदि पर्व - ५७] सर्पयज्ञ में दग्ध हुए प्रधान- प्रधान सर्पों के नाम
- ५८ [आदि पर्व - ५८] यज्ञ की समाप्ति एवम आस्तीक का सर्पों से वर प्राप्त करना.
- ५९ [आदि पर्व - ५९] महाभारत का उपक्रम.
- ६० [आदि पर्व - ६०] जनमेजय के यज्ञ में व्यास जी आगमन, सत्कार तथा राजा की प्रार्थना से व्यास जी का वैशम्पायन से महाभारत - कथा सुनाने के लिए कहना.
- ६१ [आदि पर्व - ६१] कौरव- पाण्डवों में फूट और युध्द होने के वृतांत का सूत्ररूप में निर्देश.
- ६२ [आदि पर्व - ६२ ] महाभारत की महत्ता.
- ६३ [आदि पर्व - ६३] चेदि-राजा उपरिचर्का का चरित्र, मघवत, महारथ, बृहद्रथ, परत्यग्रह, कुशाम्ब, मणिवाहनम, मच छिल्ल, यदु, सत्यवती, व्यास आदि प्रमुख पात्रों की संक्षिप्त जन्म- कथा
- ६४ [आदि पर्व - ६४] परसुराम द्वारा पृथ्वी को क्षत्रियविहीन करने पर क्षत्रिय महिलाओं और ब्राहमणों के संसर्ग से क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति और वृद्धि, उस समय के धार्मिक राज्य का वर्णन; शक्तिशाली असुरों का अन्य प्रजाति की योनियों में जन्म
और उनके भार से पीड़ित पृथ्वी का ब्रह्मा जी की शरण में जाना तथा [Brahma|ब्रह्मा जी]] का देवताओं को अपने अंश से पृथ्वी पर जन्म लेने का आदेश.
- ६५ [आदि पर्व - ६५] देव, दानव,गन्धर्व, अप्सरा,मानव,यक्ष और राक्षस का जन्म, ब्रह्मा, मरीचि, कश्यप, दक्ष और उसकी पुत्रियों से अदिति आदि दक्ष कन्याओं के वंश का विवरण
- ६६ [आदि पर्व - ६६] ब्रह्मा के ऋषि पुत्रों, दक्ष, मनु, प्रजापति और अन्य प्रमुख प्रजातियों की वंशावली
- ६७ [आदि पर्व - ६७] देवता,दैत्य, असुर,कौरव,पांडव,गन्धर्व, अप्सरा, राक्षस अदि की वंशावली
- ६८ [आदि पर्व - ६८] राजा दुष्यन्त की अद्भुत शक्ति तथा राज्य शासन की क्षमता का वर्णन.
- ६९ [आदि पर्व - ६९] दुष्यन्त का शिकार के लिए वन में जाना और विविध हिंसक वन जन्तुओं का वध करना
- ७० [आदि पर्व - ७०] तपोवन और कण्व के आश्रम का वर्णन तथा राजा दुष्यन्त का उस आश्रम में प्रवेश.
- ७१ [आदि पर्व - ७१] राजा दुष्यन्त का शकुन्तला के साथ वार्तालाप, शकुन्तला के द्वारा अपने जन्म का कारण बतलाना तथा उसी प्रसंग में विश्वामित्र की तपस्या से इन्द्र का चिन्तित होकर मेनका को मुनि का तपोभंग करने के लिए भेजना.
- ७२ [आदि पर्व - ७२] मेनका - विश्वामित्र मिलन, कन्या की उत्पत्ति, शकुन्त पक्षियों के द्वारा उसकी रक्षा और कण्व का उसे अपने आश्रम पर लाकर शकुन्तला नाम रखकर पालन करना.
- ७३ [आदि पर्व - ७३] शकुन्तला और दुष्यन्त का गान्धर्व विवाह और महर्षि कण्व के द्वारा उसका अनुमोदन.
- ७४ [आदि पर्व - ७४] शकुन्तला के पुत्र का जन्म, उसकी अद्भुत शक्ति, पुत्र सहित शकुन्तला का दुष्यन्त के यहां जाना, दुष्यन्त- शकुन्तला संवाद, आकाशवाणी द्वारा शकुन्तला की शुध्दि का समर्थन और भरत का राज्याभिषेक.
- ७५ [आदि पर्व - ७५] दक्ष, वैवस्वत मनु तथा उनके पुत्रों की उत्पत्ति, पुरूरवा, नहुष और ययाति के चरित्रों का संक्षिप्त वर्णन, यदुवंश और कुरुवंश की वंशावली
- ७६ [आदि पर्व - ७६] कच का शिष्य भाव से शुक्राचार्य से और देवयानी की सेवा में संलग्न होना और अनेक कष्ट सहने के पश्चात म्रित संजीविनी विद्या प्राप्त करना.
- ७७ [आदि पर्व - ७७] देवयानी का कच से पाणिग्रहण के लिए अनुरोध, कच की अस्वीकृती तथा दोनों का एक- दूसरे को शाप देना.
- ७८ [आदि पर्व - ७८] देवयानी और शर्मिष्ठा का कलह, शर्मिष्ठा द्वारा कुएं में गिरायी गयी देवयानी को ययाति का निकालना और देवयानी का शुक्राचार्य जी के साथ वार्तालाप.
- ७९ [आदि पर्व - ७९] शुक्राचार्य द्वारा देवयानी को समझाना और देवयानी का असंतोष.
- ८० [आदि पर्व - ८०] शुक्राचार्य का व्रिष्पर्वा को फटकारना तथा उसे छोड़कर जाने के लिए उद्यत होना और वृषपर्वा के आदेश से शर्मिष्ठा का देवयानी की दासी बनकर शुक्राचार्य तथा देवयानी को संतुष्ट करना.
- ८१ [आदि पर्व - ८१] सखियों सहित देवयानी और शर्मिष्ठा वन विहार, राजा ययाति का आगमन, देवयानी की उनके साथ बातचीत तथा विवाह.
- ८२ [आदि पर्व - ८२] ययाति से देवयानी को पुत्र प्राप्ति; ययाति और शर्मिष्ठा का एकांत- मिलन और उनसे एक पुत्र का जन्म
- ८३ [आदि पर्व - ८३] देवयानी और शर्मिष्ठा का संवाद, ययाति से शर्मिष्ठा के पुत्र होने की बात जानकर देवयानी का रूठकर पिता के पास जाना, शुक्राचार्य का ययाति को बूढ़े होने का शाप देना.
- ८४ [आदि पर्व - ८४] ययाति का अपने पुत्र यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु और उनसे अपनी युवास्था देकर वृद्धावस्था लेने के लिए आग्रह और उनके अस्वीकार करने पर उन्हें शाप देना, फिर अपने पुत्र पुरु को जरावस्था देकर उनकी युवास्था लेना तथा उन्हें वर प्रदान करना.
- ८५ [आदि पर्व - ८५] राजा ययाति का विषय- सेवन और वैराज्ञ तथा पूरु का राज्याभिषेक करके वन में जाना.
- ८६ [आदि पर्व - ८६] वन में राजा ययाति की तपस्या और उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति.
- ८७ [आदि पर्व - ८७] इन्द्र के पूछने पर ययाति का अपने पुत्र पूरु को दिए हुए उपदेश की चर्चा करना.
- ८८ [आदि पर्व - ८८] ययाति का स्वर्ग से पतन और अष्टक का उनसे प्रश्न करना.
- ८९ [आदि पर्व - ८९] ययाति और अष्टक का संवाद.
- ९० [आदि पर्व - ९०] अष्टक और ययाति का संवाद.
- ९१ [आदि पर्व - ९१] ययाति और अष्टक का आश्रम धर्म संबंधी संवाद.
- ९२ [आदि पर्व - ९२] अष्टक - ययाति - संवाद और ययाति द्वारा दूसरों के दिए हुए पुण्यदान को अस्वीकार करना.
- ९३ [आदि पर्व - ९३] राजा ययाति का वसुमान और शिबि के प्रतिग्रह को अस्वीकार करना तथा अष्टक आदि चारों राजाओं के साथ स्वर्ग में जाना.
- ९४ [आदि पर्व - ९४] पूरुवंश (ऐल ऐल वंश) का वर्णन
- ९५ [आदि पर्व - ९५] दक्ष प्रजापति से लेकर पूरुवंश, भरतवंश एवम पाण्डुवंश का इतिहास और वंशावली
- ९६ [आदि पर्व - ९६] महाभिष को ब्रह्मा जी का शाप तथा शपग्रस्त वसुओं के साथ गंगा की बातचीत.
- ९७ [आदि पर्व - ९७] राजा प्रतीप का गंगा को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना और शन्तनु का जन्म, राज्याभिषेक तथा गंगा से मिलना.
- ९८ [आदि पर्व - ९८] शन्तनु और गंगा का कुछ शर्तों के साथ सम्बन्ध, वसुओं का जन्म और शाप से उद्धार तथा भीष्म की उत्पत्ति.
- ९९ [आदि पर्व - ९९] महर्षि वसिष्ठ द्वारा वसुओं को शाप प्राप्त होने की कथा.
- १०० [आदि पर्व - १००] शान्तनु के रूप, गुण और सदाचार की प्रशंसा, गंगा जी के द्वारा सुशिक्षित पुत्र की प्राप्ति तथा देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा.
- १०१ [आदि पर्व - १०१] सत्यवती के गर्भ से चित्रागंद और विचित्रवीर्य की उत्पत्ति, शान्तनु और चित्रागंद का निधन तथा विचित्रवीर्य का राज्याभिषेक.
- १०२ [आदि पर्व - १०२] भीष्म के द्वारा स्वयंवर से काशिराज की कन्याओं का हरण, युद्ध में सब राजाओं तथा शल्व की पराजय, अम्बिका और अम्बालिका के साथ विचित्रवीर्य का विवाह तथा निधन.
- १०३ [आदि पर्व - १०३] सत्यवती का भीष्म से राज्य- ग्रहण और संतानोत्पादन के लिए आग्रह तथा भीष्म के द्वारा अपनी प्रतिज्ञा बतलाते हुए उसकी अस्वीकृति.
- १०४ [आदि पर्व - १०४] भीष्म की सम्मति से सत्यवती द्वारा व्यास का आवाहन और व्यास जी का माता की आज्ञा से कुरु वंश की वृद्धि के लिए विचित्रवीर्य की पत्नियों के गर्भ से संतानोत्पादन करने की स्वीकृति देना
- १०५ [आदि पर्व - १०५] व्यास जी के द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र से धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर की उत्पत्ति.
- १०६ [आदि पर्व - १०६] महर्षि माण्डव्य का शूली पर चढ़ाया जाना.
- १०७ [आदि पर्व - १०७] माण्डव्य का धर्मराज को शाप देना.
- १०८ [आदि पर्व - १०८] धृतराष्ट्र आदि के ज्नम तथा भीष्म जी के धर्मपूर्ण शासन से कुरुदेश की सर्वांगीण उन्नति का दिग्दर्शन.
- १०९ [आदि पर्व - १०९] राजा धृतराष्ट्र का विवाह
- ११० [आदि पर्व - ११०] कुन्ती को दुर्वासा से मन्त्र की प्राप्ति, सूर्यदेव का आवाहन तथा उनके संयोग से कर्ण का जन्म एवम कर्ण के द्वारा इन्द्र को कवच और कुण्डलों का दान.
- १११ [आदि पर्व - १११] कुन्ती द्वारा स्वयंवर में पाण्डु का वरण और उनके साथ विवाह.
- ११२ [आदि पर्व - ११२] माद्री के साथ पाण्डु का विवाह तथा राजा पाण्डु की दिग्विजय.
- ११३ [आदि पर्व - ११३] राजा पाण्डु का पत्नियों सहित वन में निवास तथा विदुर का विवाह.
- ११४ [आदि पर्व - ११४] धृतराष्ट्र के गान्धारी से एक सौ पुत्र तथा एक कन्या की तथा सेवा करने वाली वैश्यजातीय युवती से युयुत्सु नामक एक पुत्र की उत्पत्ति.
- ११५ [आदि पर्व - ११५] दुशाला के जन्म की कथा.
- ११६ [आदि पर्व - ११६] धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों की नामावली
- ११७ [आदि पर्व - ११७] राजा पाण्डु के द्वारा मृगरूपधारी मुनि का वध तथा उसके शाप की प्राप्ति.
- ११८ [आदि पर्व - ११८] पाण्डु का अनुताप, संन्यास लेने का निश्चय तथा पत्नियों के अनुरोध से वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश.
- ११९ [आदि पर्व - ११९] पाण्डु का कुन्ती को पुत्र- प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने का आदेश.
- १२० [आदि पर्व - १२०] कुन्ती का पाण्डु को व्युषिताश्व के मृत शरीर से उसकी पतिव्रता पत्नी भद्रा के द्वारा पुत्र प्राप्ति का कथन.
- १२१ [आदि पर्व - १२१] पाण्डु का कुन्ती को समझाना और कुन्ती का पति की आज्ञा से पुत्रोत्पत्ति के लिए धर्मदेवता का आवाहन करने के लिए उद्यत होना.
- १२२ [आदि पर्व - १२२] युधिष्ठर, भीम और अर्जुन की उत्पत्ति.
- १२३ [आदि पर्व - १२३] नकुल और सहदेव की उत्पत्ति तथा पाण्डु पुत्रों के नामकरण संस्कार.
- १२४ [आदि पर्व - १२४] राजा पाण्डु की म्रित्यु और माद्री का का उनके साथ चितारोहण.
- १२५ [आदि पर्व - १२५] रिषियों का कुन्ती और पाण्डवों को लेकर हस्तिनापुर जाना और उन्हें भीष्म आदि के हाथों सौंपना.
- १२६ [आदि पर्व - १२६] पाण्डु और माद्री की अस्थियों का दाह संस्कार तथा भाई- बन्धुओं द्वारा उनके लिए जलांजलिदान.
- १२७ [आदि पर्व - १२७] पाण्डवों तथा धृतराष्ट्र पुत्रों की बालक्रीडा, दुर्योधन का भीम को विष खिलाना तथा गंगा में ढकेलना और भीम का नागलोक में पहुंच कर आठ कुण्डों के दिव्य रस का पान करना.
- १२८ [आदि पर्व - १२८] भीमसेन के न आने से कुन्ती आदि की चिन्ता, नागलोक से भीम का आगमन तथा उनके प्रति दुर्योधन की कुचेष्टा.
- १२९ [आदि पर्व - १२९] कृपाचार्य, द्रोण और अश्वत्थामा की उत्पत्ति तथा द्रोण को परशुराम जी से अस्त्र- शस्त्र की प्राप्ति की कथा.
- १३० [आदि पर्व - १३०] द्रोण का द्रुपद से तिरस्कृत हो हस्तिनापुर में आना, राजकुमारों से उनकी भेंट, उनकी बीटा और अंगूठी को कुएं में से निकालना एवम भीष्म का उन्हें अपने यहां सम्मानपूर्वक रखना.
- १३१ [आदि पर्व - १३१] द्रोणाचार्य द्वारा राजकुमारों की शिक्षा, एकल्व्य की गुरुभक्ति तथा आचार्य द्वारा शिष्यों की परीक्षा.
- १३२ [आदि पर्व - १३२] अर्जुन के द्वारा लक्ष्यवेध, द्रोण का ग्राह से छुटकारा और अर्जुन को ब्रह्मशिर नामक अस्त्र की प्राप्ति.
- १३३ [आदि पर्व - १३३] राजकुमारों का रंगभूमि में अस्त्र- कौशल दिखाना.
- १३४ [आदि पर्व - १३४] भीमसेन, दुर्योधन तथा अर्जुन के द्वारा अस्त्र कौशल का प्रदर्शन.
- १३५ [आदि पर्व - १३५] कर्ण का रंगभूमि में प्रवेश तथा राज्याभिषेक.
- १३६ [आदि पर्व - १३६] भीमसेन के द्वारा कर्ण का तिरस्कार और दुर्योधन द्वारा उसका सम्मान.
- १३७ [आदि पर्व - १३७] द्रोण का शिष्यों द्वारा द्रुपद पर आक्रमण करवाना, अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना और द्रोण द्वारा द्रुपद को आधा राज्य देकर मुक्त कर देना.
- १३८ [आदि पर्व - १३८] युधिष्ठर का युवराज पद पर अभिषेक, पाण्डवों के शौर्य, कीर्ति और बल के विस्तार से धृतराष्ट्र को चिन्ता.
- १३९ [आदि पर्व - १३९] कणिक का धृतराष्ट्र को कूटनीति का उपदेश.
- १४० [आदि पर्व - १४०] पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन की चिन्ता.
- १४१ [आदि पर्व - १४१] दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों काए वारणावत भेज देने का प्रस्ताव.
- १४२ [आदि पर्व - १४२] धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत-यात्रा.
- १४३ [आदि पर्व - १४३] दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना.
- १४४ [आदि पर्व - १४४] पाण्डवों की वारणावत-यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश.
- १४५ [आदि पर्व - १४५] वारणावत में पाण्डवों का स्वागत, पुरोचन का सत्कारपूर्वक उन्हें ठहराना, लाक्षागृह में निवास की व्यवस्था और युधिष्ठर एवम भीम की बातचीत.
- १४६ [आदि पर्व - १४६] विदुर से भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण.
- १४७ [आदि पर्व - १४७] लाक्षागृह का दाह और पाण्डवों का सुरंग के रास्ते निकल जाना.
- १४८ [आदि पर्व - १४८] विदुर जी के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगाजी के पार उतारना.
- १४९ [आदि पर्व - १४९] धृतराष्ट्र आदि के द्वारा पाण्डवों के लिए शोकप्रकाश एवम जलांजलि दान तथा पाण्डवों का वन में प्रवेश.
- १५० [आदि पर्व - १५०] माता कुन्ती के लिए भीम का जल ले आना, माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम का विषाद एवम दुर्योधन के प्रति उनका क्रोध.
- १५१ [आदि पर्व - १५१] हिडिम्ब के भेजने से हिडिम्बा राक्षसी का पाण्डवों के पास आना और भीम से उसका वार्तालाप.
- १५२ [आदि पर्व - १५२] हिडिम्ब का आना, हिडिम्बा का उससे भयभीत होना और भीम तथा हिडिम्बासुर का युद्ध
- १५३ [आदि पर्व - १५३] हिडिम्बा का कुन्ती आदि से अपना मनोभाव प्रकट करना तथा भीम के द्वारा हिडिम्बासुर का वध.
- १५४ [आदि पर्व - १५४] युधिष्ठर का भीम को हिडिम्बा के वध से रोकना, हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना, भीम और हिडिम्बा का मिलन तथा घटोत्कच की उत्पत्ति.
- १५५ [आदि पर्व - १५५] पाण्डवों को व्यास जी का दर्शन और उनका एकचक्रा नगरी में प्रवेश
- १५६ [आदि पर्व - १५६] ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने के लिए कुन्ती की भीम से बातचीत तथा ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उदार.
- १५७ [आदि पर्व - १५७] ब्राह्मणी का स्वयं मरने के लिए उद्यत होकर पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना.
- १५८ [आदि पर्व - १५८] ब्राह्मण- कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन तथा कुन्ती का उन सबके पास जाना.
- १५९ [आदि पर्व - १५९] कुन्ती के पूछने पर ब्राह्मण का उनसे अपने दु:ख का कारण बताना.
- १६० [आदि पर्व - १६०] कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत.
- १६१ [आदि पर्व - १६१] भीमसेन को राक्षस के पास भेजने के विषय में युधिष्ठर और कुन्ती की बातचीत.
- १६२ [आदि पर्व - १६२] भीमसेन का भोजन- साम्रगी लेकर बकासुर के पास जाना और स्वयं भोजन करना तथा युध्द करके उसे मार गिराना.
- १६३ [आदि पर्व - १६३] बकासुर के वध से राक्षसों का भयभीत होकर पलायन और नगर निवासियों की प्रसन्नता.
- १६४ [आदि पर्व - १६४] पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएं सुनना.
- १६५ [आदि पर्व - १६५] द्रोण के द्वारा द्रुपद के अपमानित होने का वृतांत.
- १६६ [आदि पर्व - १६६] द्रुपद के यज्ञ से धृतराष्ट्र और द्रौपदी की उत्पत्ति.
- १६७ [आदि पर्व - १६७] कुन्ती की अपने पुत्रों से पूछकर पांचाल देश में जाने की तैयारी.
- १६८ [आदि पर्व - १६८] व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्व जन्म का वृतांत सुनना.
- १६९ [आदि पर्व - १६९] पाण्डवों की पांचाल यात्रा और अर्जुन के द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवम उन दोनों की मित्रता.
- १७० [आदि पर्व - १७०] सूर्यकन्या तपती को देखकर राजा संवरण का मोहित होना.
- १७१ [आदि पर्व - १७१] तपती और संवरण की बातचीत.
- १७२ [आदि पर्व - १७२] वसिष्ठ जी की सहायता से राजा संवरण को तपती की प्राप्ति.
- १७३ [आदि पर्व - १७३] गन्धर्व का वसिष्ठ जी महत्ता बताते हुए किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना.
- १७४ [आदि पर्व - १७४] वसिष्ठ जी के अद्भुत क्षमा बल के आगे विश्वामित्र जी का पराभव.
- १७५ [आदि पर्व - १७५] शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना, विश्वामित्र की प्रेरणा से राक्षस द्वारा वसिष्ठ के पुत्रों का भक्षण और वसिष्ठ का शोक.
- १७६ [आदि पर्व - १७६] कलमाषपाद का शाप से उद्धार और वसिष्ठ जी के द्वारा उन्हें अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति.
- १७७ [आदि पर्व - १७७] शक्ति पुत्र पराशर का जन्म और पिता की मृत्यु का हाल सुनकर कुपित हुए पराशर को शांत करने के लिए वसिष्ठ जी का उन्हें और्वो पाख्यान सुनाना.
- १७८ [आदि पर्व - १७८] पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण.
- १७९ [आदि पर्व - १७९] और्व और पितरों की बातचीत तथा और्व का अपनी क्रोधाग्नि को बड़वानल रूप से समुद्र में त्यागना.
- १८० [आदि पर्व - १८०] पुलस्त्य आदि महर्षियों के समझाने से पराशर जी के द्वारा राक्श सत्र की समाप्ति.
- १८१ [आदि पर्व - १८१] राजा कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप.
- १८२ [आदि पर्व - १८२] पाण्डवों का धोम्य को अपना पुरोहित बनाना.
- १८३ [आदि पर्व - १८३] पाण्डवों की पांचाल यात्रा और मार्ग में ब्राह्मणों से बातचीत.
- १८४ [आदि पर्व - १८४] ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में जाकर कुम्हार के यहां रहना, स्वयंवर सभा का वर्णन तथा धृष्टद्युम्न की घोषणा.
- १८५ [आदि पर्व - १८५] धृष्टद्युम्न का द्रौपदी के स्वयंवर में आये हुए राजाओं का परिचय देना
- १८६ [आदि पर्व - १८६] राजाओं का लक्ष्वेध करके उद्योग और असफल होना.
- १८७ [आदि पर्व - १८७] अर्जुन का लक्ष्वेवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना.
- १८८ [आदि पर्व - १८८] द्रुपद को मारने के लिए उद्यत हुए राजाओं का सामना करने के लिए भीम और अर्जुन का उद्यत होना और उनके विषय में भगवान श्री कृष्ण का बलराम जी से वार्तालाप.
- १८९ [आदि पर्व - १८९] अर्जुन और भीम के द्वारा कर्ण तथा शल्य की पराजय और द्रौपदी सहित भीम अर्जुन का अपने डेरे पर जाना.
- १९० [आदि पर्व - १९०] कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठर की बातचीत, पांचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह का विचार तथा बलराम और श्री कृष्ण की पाण्डवों से भेंट.
- १९१ [आदि पर्व - १९१] धृष्टद्युम्न का गुप्त रूप से वहां का सब हाल देखकर राजा द्रुपद के पास आना तथा द्रौपदी के विषय में द्रुपद का प्रशन.
- १९२ [आदि पर्व - १९२] धृष्टद्युमन के द्वारा द्रौपदी तथा पाण्डवों का हाल सुनकर राजा द्रुपद का उनके पास पुरोहित को भेजना तथा पुरोहित और युधिष्ठर की बातचीत.
- १९३ [आदि पर्व - १९३] पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद के घर में जाकर सम्मानित होना और राजा द्रुपद द्वारा पाण्डवों के शील स्वभाव की परीक्षा.
- १९४ [आदि पर्व - १९४] द्रुपद और युधिष्ठर की बातचीत तथा व्यास जी का आगमन.
- १९५ [आदि पर्व - १९५] व्यास जी के सामने द्रौपदी का पांच पुरुषों से विवाह होने के विषय में द्रुपद, धृष्टद्युम्न और युधिष्ठर का अपने- अपने विचार व्यक्त करना.
- १९६ [आदि पर्व - १९६] व्यास जी का द्रुपद को पाण्डवों तथा द्रौपदी के पूर्वजन्म की कथा सुनाकर दिव्यदृष्टि देना और द्रुपद का उनके दिव्य रूपों की झांकी करना.
- १९७ [आदि पर्व - १९७] द्रौपदी का पांचों पाण्डवों के साथ विवाह.
- १९८ [आदि पर्व - १९८] कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश और आशीर्वाद तथा भगवान श्री कृष्ण का पाण्डवों के लिए उपहार भेजना.
- १९९ [आदि पर्व - १९९] पाण्डवों के विवाह से दुर्योधन आदि की चिन्ता, धृतराष्ट्र का पाण्डवों के प्रति प्रेम का दिखावा और दुर्योधन की कुमन्त्रणा.
- २०० [आदि पर्व - २००] धृतराष्ट्र और दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय.
- २०१ [आदि पर्व - २०१] पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति.
- २०२ [आदि पर्व - २०२] भीष्म की दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने की सलाह.
- २०३ [आदि पर्व - २०३] द्रोणाचार्य की पाण्डवों को उपहार भेजने और बुलाने की सम्मति तथा कर्ण के द्वारा उनकी सम्मति का विरोध करने द्रोणाचार्य की फटकार.
- २०४ [आदि पर्व - २०४] विदुर जी की सम्मति- द्रोण और भीष्म के वचनों का ही समर्थन.
- २०५ [आदि पर्व - २०५] धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर का द्रुपद के यहां जाना और पाण्डवों हस्तिनापुर भेजने का प्रस्ताव करना.
- २०६ [आदि पर्व - २०६] पाण्डवों का हस्तिनापुर में आना और आधा राज्य पाकर इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण करना एवम भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी का द्वारका के लिए प्रस्थान.
- २०७ [आदि पर्व - २०७] पाण्डवों के यहां नारद जी का आगमन और उनमें फूट न हो इसके लिए कुछ नियम बनाने के लिए प्रेरणा करके सुन्द और उपसुन्द की कथा को प्रस्तावित करना.
- २०८ [आदि पर्व - २०८] सुन्द -उपसुन्द की तपस्या, ब्रह्मा जी के द्वारा उन्हें वर प्राप्त होना और दैत्यों के यहां आनन्दोत्सव.
- २०९ [आदि पर्व - २०९] सुन्द और उपसुन्द द्वारा क्रूरतापूर्ण कर्मों से त्रिलोकों पर विजय प्राप्त करना.
- २१० [आदि पर्व - २१०] तिलोत्तमा की उत्पत्ति, उसके रूप का आकर्षण तथा सुन्दोपसुन्द को मोहित करने के लिए उसका प्रस्थान.
- २११ [आदि पर्व - २११] तिलोत्तमा पर मोहित होकर सुन्द -उपसुन्द का आपस में लड़ना और मारा जाना एवम तिलोत्तमा को ब्रह्मा जी द्वारा वर- प्राप्ति तथा पाण्डवों का द्रौपदी के विषय में नियम निर्धारण.
- २१२ [आदि पर्व - २१२] अर्जुन के द्वारा ब्राह्मण के गोधन की रक्षा के लिए नियमभंग और वन की ओर प्रस्थान.
- २१३ [आदि पर्व - २१३] अर्जुन का गंगाद्वार में ठहरना और वहां उनका उलपी के साथ मिलन.
- २१४ [आदि पर्व - २१४] अर्जुन का पूर्वदिशा के तीर्थों में भ्रमण करते हुए मणिपुर में जाकर चित्रागंदा का पाणिग्रहण करके उसके गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न करना.
- २१५ [आदि पर्व - २१५] अर्जुन द्वारा वर्गा अप्सरा का ग्राहयोनि से उद्धार तथा वर्गा की आत्मकथा का आरंभ.
- २१६ [आदि पर्व - २१६] वर्गा की प्राथना से अर्जुन का शेष चारों अप्सराओं को भी शापमुक्त करके मणिपुर जाना और चित्रागंदा से मिलकर गोकर्ण तीर्थ को प्रस्थान करना.
- २१७ [आदि पर्व - २१७] अर्जुन प्रभासतीर्थ में श्री कृष्ण से मिलना और उन्हीं के साथ उनका रैवतक पर्वत एवम द्वारकापुरी में आना.
- २१८ [आदि पर्व - २१८] रैवतक पर्वत के उत्सव में अर्जुन का सुभद्रा पर आसक्त होना और श्री कृष्ण तथा युधिष्ठर की अनुमति से उसे हर ले जाने का निश्चय करना
- २१९ [आदि पर्व - २१९] यादवों की युध्द के लिए तैयारी और अर्जुन के प्रति बलराम जी के क्रोधपूर्ण उदार.
- २२० [आदि पर्व - २२०] द्वारिका में अर्जुन और सुभद्रा का विवाह, अर्जुन के इन्द्रप्रस्थ पहुंचने पर श्री कृष्ण आदि का दहेज लेकर वहां जाना, द्रौपदी के पुत्र एवम अभिमन्यु के जन्म संस्कार और शिक्षा.
- २२१ [आदि पर्व - २२१] युधिष्ठर के राज्य की विशेषता, कृष्ण और अर्जुन का खाण्डव वन में जाना तथा उन दोनों के पास ब्राह्मण- वेषधारी अग्निदेव का आगमन.
- २२२ [आदि पर्व - २२२] अग्निदेव का खाण्डव वन को जलाने के लिए श्री कृष्ण और अर्जुन से सहायता की याचना करना, अग्निदेव उस वन को क्यों जलाना चाहते थे, इसे बताने के प्रसंग में राजा श्वेतकि की कथा.
- २२३ [आदि पर्व - २२३] अर्जुन का अग्नि की प्राथना स्वीकार करके उनसे दिव्य धनुष एवम रथ आदि मांगना.
- २२४ [आदि पर्व - २२४] अग्निदेव का अर्जुन और श्री कृष्ण को दिव्य धनुष, अक्षय तरकस, दिव्य रथ और चक्र आदि प्रदान करना तथा उन दोनों की सहायता से खाण्डव वन को जलाना.
- २२५ [आदि पर्व - २२५] खाण्डव वन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा और इन्द्र के द्वारा जल बरसाकर आग बुझाने की चेष्टा.
- २२६ [आदि पर्व - २२६] देवताओं आदि के साथ श्री कृष्ण और अर्जुन का युध्द.
२२७ [आदि पर्व - २२७] देवताओं की पराजय, खाण्डव वन का विनाश और मयासुर की रक्षा.
- २२८ [आदि पर्व - २२८] ???शांर्गकोपाख्यान - मन्दपाल मुनि के द्वारा जरिता शार्गिंका से पुत्रों की उत्पत्ति और उन्हें बचाने के लिए मुनिका की स्तुति करना.
- २२९ [आदि पर्व - २२९] जरिता का अपने बच्चों की रक्षा के लिए चिन्तित होकर विलाप करना.
- २३० [आदि पर्व - २३०] जरिता और उसके बच्चों का संवाद.
- २३१ [आदि पर्व - २३१] शारंग्कों के स्तवन से प्रसन्न होकर अग्निदेव का उन्हें अभय देना.
- २३२ [आदि पर्व - २३२] मन्दपाल का अपने बाल- बच्चों से मिलना.
- २३३ [आदि पर्व - २३३] इन्द्रदेव का श्री कृष्ण और अर्जुन को वरदान तथा श्री कृष्ण, अर्जुन और मयासुर का अग्निदेव से विदा लेकर एक साथ यमुनापार तट पर बैठना.