Panchala

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Kingdoms of late Vedic India
Ancient Indian Kingdoms in 600 BC
Map of Uttar Pradesh showing Rohilkand districts

Panchala (पञ्चाल) was an ancient kingdom of northern India, located in the Ganges-Yamuna Doab of the upper Gangetic plain. During Late Vedic times (c. 900-500 BCE), it was one of the most powerful states of the Indian subcontinent, closely allied with the Kuru Kingdom.[1] By the c. 5th century BCE, it had become an oligarchic confederacy, considered as one of the solasa (sixteen) mahajanapadas (major states) of the Indian subcontinent. After being absorbed into the Mauryan Empire (322-185 BCE), Panchala regained its independence until it was annexed by the Gupta Empire in the 4th century CE. They fought Mahabharata War in Pandava's side

Variants

Location

Present Bareilly, Badayun and Farrukhabad districts of Uttar Pradesh constituted the ancient region called Panchala. [2]

Jat clans

Panchala (पाञ्चाल)[3] [4] Pachaire (पचैरे)[5] Pachare (पचहरे)/(Pachehare (पचेहरे)[6] is gotra of Jats. Pachaire and Pachare are variants of Panchal. Panchala gotra originated from the Panchala Kingdom.

Mention by Panini

Panchala (पंचाल) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [7]


Panchala (पांचाल), Babhravya (बाभ्रव्य), is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [8]

History

Raja Jagadeva founded place and fort named Pachpuri (पचपुरी) which gave name to this gotra. [9]

During ancient times, it was home to an Indian kingdom, the Panchalas, one of the Mahajanapadas.

The Panchalas occupied the country to the east of the Kurus, between the mountains and river Ganga. It roughly corresponded to modern Budaun, Farrukhabad and the adjoining districts of Uttar Pradesh. The country was divided into Uttara-Panchala and Dakshina-Panchala. The northern Panchala had its capital at Adhichhatra or Chhatravati (modern Ramnagar, Uttar Pradesh in the Bareilly District), while southern Panchala had it capital at Kampilya or Kampil in Farrukhabad District. The famous city of Kanyakubja or Kannauj was situated in the kingdom of Panchala.

Panchala was the second "urban" center of Vedic civilization, as its focus moved east from the Punjab, after the focus of power had been with the Kurus in the early Iron Age. This period is associated with the Painted Grey Ware culture, arising beginning around 1100 BC, and declining from 600 BC, with the end of the Vedic period. The Shaunaka and Taittiriya Vedic schools were located in the area of Panchala.

Originally a monarchical clan, the Panchals appear to have switched to republican corporation around 500 BC. The 4th century BC Arthashastra also attests the Panchalas as following the Rajashabdopajivin (king consul) constitution.

In the great Indian Hindu epic Mahabharata, Draupadi (wife of the five Pandava brothers) was the princess of Panchala; Panchali was her other name.

History of Uttara Panchala

Google Scholar Reshma Rai[10] shares that the Chedi territory corresponded roughly to the eastern part of modern Bundelkhand. Pargiter places Chedis along the south bank of the Yamuna from the Chambal on the northwest to as far as Karvi on the south-east.

Its limits southwards may have been the Plateau of Malwa and the hills of Bundelkhand. Its capital was known as Sotthivati- nagar or Shuktimati or Shukti-Sahvaya. Other important towns were Sahajati and Tripuri.

The Chetiya Jataka traces the descent of Chedi kings from Mahasammata and Mandhata. Upachara, a king of the line, had five sons who are said to have founded the cities of Hatthipura (Hastinapura), Assapura (in Anga), Sinhapura (Lala from where Vijaya went to Ceylon), Uttarapanchala (Ahichchhatra) and Daddarapura (in the Himalayan region). Shishupala, the legendary enemy of Krishna, was a Chedi king. However, except these epic lengends nothing authentic is known about the Chedis.

परिचक्रा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है ...परिचक्रा (AS, p.532) शतपथ ब्राह्मण 13,5,4,7 में पंचाल देश की नगरी का नाम उल्लेख है. बेवर ने इसका अभिज्ञान महाभारत की एकचक्रा (=अहिछात्र) से किया है-- (देखें वैदिक इंडेक्स 1,494) परिचक्रा नाम से शायद यह व्यंजित होता है कि इस नगरी का आकार चक्र के समान वर्तुल रहा होगा यह संभव है अहिच्छत्र के 'छत्र' से संबंध परंपरा से इसका नामकरण (चक्र-छत्र के समान गोल आकृति) हुआ हो-- (देखें एकचक्र,अहिछत्र). कई जगह परिचक्रा का रूपांतर परिवक्रा भी मिलता है.

पंचाल=पांचाल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[12] ने लेख किया है ...पंचाल=पांचाल (AS, p.516): उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूँ और फर्रूख़ाबाद ज़िलों से परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम है। कनिंघम के अनुसार वर्तमान रुहेलखंड उत्तर पंचाल और दोआबा दक्षिण पंचाल था।

संहितोपनिषद ब्राह्मण में पंचाल के प्राच्य पंचाल भाग (पूर्वी भाग) का भी उल्लेख है। शतपथ ब्राह्मण 13,5,4,7 में पंचाल की परिवक्रा या परिचक्रा नामक नगरी का उल्लेख है जो वेबर के अनुसार महाभारत की एकचक्रा है। श्री राय चौधरी का मत है कि पंचाल पाँच प्राचीन कुलों का सामूहिक नाम था। वे ये थे— 1. क्रिवि, 2. केशी, 3. सृंजय, 4. तुर्वसस्, 5. सोमक

ब्रह्मपुराण 13,94 तथा मत्स्य पुराण 50,3 में इन्हें मुद्गल सृंजय, बृहदिषु, यवीनर और कृमीलाश्व कहा गया है। पंचालों और कुरु जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे। महाभारत के आदिपर्व से ज्ञात होता है कि पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन की सहायता से पंचालराज द्रुपद को हराकर उसके पास केवल दक्षिण पंचाल (जिसकी राजधानी कांपिल्य थी) रहने दिया और उत्तर पंचाल को हस्तगत कर लिया था -- ‘अत: प्रयतितं राज्ये यज्ञसेन त्वया सह, राजासि दक्षिणे कूले भागीरथ्याहमुत्तरे’, महाभारत आदिपर्व 165,24 द्रोणाचार्य ने परास्त होने पर कैद में डाले हुए पंचाल राज द्रुपद से कहा—‘मैंने राज्य प्राप्ति के लिए तुम्हारे साथ युद्ध किया है। अब गंगा के उत्तरतटवर्ती प्रदेश का मैं, और दक्षिण तट के तुम राजा होंगे’। इस प्रकार महाभारत-काल में पंचाल, गंगा के उत्तरी और दक्षिण दोनों तटों पर बसा हुआ था। द्रुपद पहले अहिच्छत्र या छत्रवती नगरी में रहते थे--‘पार्षतो द्रुपदो नामच्छत्रवत्यां नरेश्वर’ महाभारत आदिपर्व 165,21. इन्हें जीतने के लिए द्रोण ने कौरवों और [p.517]: पांडवों को पंचाल भेजा था-- ‘धार्तराष्ट्रैश्च सहिता पंचालान पांडवा ययु:’. द्रोपदी पंचाल-राज द्रुपद की कन्या होने के कारण ही पांचाली कहलाती थी.

महाभारत आदिपर्व में वर्णित द्रौपदी का स्वयंवर कांपिल्य में हुआ था। दक्षिण पंचाल की सीमा गंगा नदी के दक्षिणी तट से लेकर चम्बल नदी या चर्मण्वती नदी तक थी--‘सोऽघ्यवसद् दीनमना: कांपिल्य च पुरोत्तमम् दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वता नदी’,महाभारत आदिपर्व 137,76. विष्णु पुराण 2,3,15 में कुरु-पांचालों को मध्यदेशीय कहा गया है--‘तास्विमे कुरुपांचाला मध्यदेशादयोजना:’. पंचाल निवासियों को भीमसेन ने अपनी पूर्व देश की दिग्विजय-यात्रा में अनेक प्रकार से समझा-बुझा कर वश में कर लिया था-- ‘सगत्वा नरशार्दूल: पंचालानां पुरं महत् पंचालान् विविधोपाये: सांत्वयामास पांडव:', महाभारत सभापर्व 29,3-4.


यह कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के मैदान में फैला हुआ था। इसकी भी दो शाखाएँ थीं- पहली शाखा उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र (वर्तमान बरेली) थी। दूसरी शाखा दक्षिण पांचाल की राजधानी कांपिल्य (वर्तमान अलीगढ़) थी। पांडवों की पत्नी द्रौपदी को पंचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया। पांचाल वर्तमान रुहेलखंड का प्राचीन नाम था। इसका यह नाम राजा हर्यश्व के पांच पुत्रों के कारण पड़ा था।[13]

उत्तरपंचाल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[14] ने लेख किया है ...उत्तर पंचाल (AS, p.92) : चेतिय जातक (कॉवेल सं. 422) के अनुसार चेदि-प्रदेश का एक नगर है। इसकी स्थापना चेदिनरेश उपचर के पुत्र ने की थी।

पांचाल: ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज[15] ने लिखा है .... पांचाल: [पृ.98]: बौद्ध काल में इनके दो दल हो गए थे। उत्तर पांचाल और दक्षिण पांचाल। दक्षिणी लोगों की राजधानी कन्नोज थी। उत्तरी लोगों की कांपिल्य। लोगों का अनुमान है कि बदायूं के आसपास उनका राज्य होगा। लेकिन हमारा अनुमान है कि कासगंज और अलीगढ़ के बीच में इनकी कम्पिलानगरी थी। पीछे के समय में फूल सिंह पांचाली जिसे साधारण बोलचाल में लोग पंजाबी कहते हैं।* यहां का राजा था। निषद देश के राजा नल के बाप से इसी फूलसिंह ने इस बात पर युद्ध किया था कि जबकि गंगा मेरे राज्य में होकर बहती है तुमने हमारे घाट पर हमसे पहले स्नान कैसे कर लिया। राजा रानी


* यूपी के जाटों में पंजाबी एक गोत्र भी है जो कि पांचाली का ही अपभ्रंश और समान अर्थी है।


[पृ.99]: दोनों बहुत दिनों तक उसके यहां कैद रहे थे। पंजाबी गोत्र के जाट इन्हीं पाँचालों के उत्तराधिकारी हैं। महाभारत की प्रसिद्ध चतुर स्त्री द्रोपदी पाँचालों में पैदा हुई थी। ठाकुर देशराज[16] ने लिखा है ....

पचहरे: ठाकुर देशराज

यह शब्द पांचाल का अपभ्रंश है। राजा जगदेव उनमें एक प्रसिद्ध राजा हो गये हैं, ऐसा इनका अनुमान है। यह पंजाब में मालवा होकर बृज में आए हैं। पहले इन्होंने पचपुरी नामक स्थान में, जो आजकल पीपरी कहलाता है, गढ़ निर्माण कराया था। सरदार अरिसिंह की अध्यक्षता में अरिखेड़ा अथवा Ayara Kheda (आयरखेड़ा) की नींव डाली। गदर के समय में रामसिंह नाम के एक सरदार ने विद्रोह में भाग लिया था। मथुरा जिले में इनकी भारी संख्या है। [17]

पांचाल: दलीप सिंह अहलावत

दलीप सिंह अहलावत[18] लिखते हैं कि पांचाल चन्द्रवंशी जाटगोत्र है जो कि प्राचीनकाल से प्रचलित है। ठा० देशराज जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड) पृ० 98 पर लिखते हैं कि “प्राचीन समय में पांचाल देश का राजा फूलसिंह था। निषध देश के राजा नल के पिता वीरसेन से इसी राजा फूलसिंह ने इस बात पर युद्ध किया था कि गंगा मेरे राज्य में से होकर बहती है। तुमने हमारे घाट पर हमसे पहले स्नान कैसे कर लिया। राजा वीरसेन व उसकी रानी बहुत दिनों तक फूलसिंह की कैद में रहे थे।” महाभारतकाल में पांचाल लोगों की बड़ी प्रतिष्ठा थी। अर्जुनपत्नी द्रौपदी इन्हीं पांचालों में पैदा हुई थी। पाण्डवों की दिग्विजय के समय भीमसेन पूर्व की ओर कई देशों को विजय करता हुआ पांचालों की महानगरी अहिच्छत्रा (बरेली) में पहुंचा। वहां उसने पांचाल वीरों को समझा-बुझाकर अपने वश में कर लिया (महाभारत सभापर्व, 29वां अध्याय)। महाभारत युद्ध में पांचालवीरों ने पाण्डवों की ओर होकर कौरव सेना से युद्ध करके उसे भयभीत किया था। (महाभारत भीष्मपर्व, 59वां अध्याय)।

महाभारत युद्ध में पंचालों का राजा द्रुपद व उसकी सेना पाण्डवों की ओर से लड़े थे। द्रुपद का पुत्र प्रचण्ड वीर योद्धा धृष्टद्युम्न पाण्डव सेना का, 18 दिन के युद्ध में अन्त तक सेनापति रहा था। महाभारतकाल में पांचाल राज्य की सीमा गंगा के उत्तर और यमुना के दक्षिण तक फैली हुई थी। माकन्दी और काम्पिल्य इस राज्य के मुख्य नगर थे। बौद्धकाल में पांचालों के दो दल हो गये थे - उत्तरी पांचाल और दक्षिणी पांचाल। दक्षिणी लोगों की राजधानी कन्नौज थी और उत्तरी लोगों की काम्पिल्य थी जो कासगंज और अलीगढ़ के बीच है।

तेजाजी का इतिहास

संत श्री कान्हाराम[19] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-84]: तेजाजी के जन्म के समय (1074 ई.) यहाँ मरुधरा में छोटे-छोटे गणराज्य आबाद थे। तेजाजी के पिता ताहड़ देव (थिरराज) खरनाल गणराज्य के गणपति थे। इसमें 24 गांवों का समूह था। तेजाजी का ससुराल पनेर भी एक गणराज्य था जिस पर झाँझर गोत्र के जाट राव रायमल मुहता का शासन था। मेहता या मुहता उनकी पदवी थी। उस समय पनेर काफी बड़ा नगर था, जो शहर पनेर नाम से विख्यात था। छोटे छोटे गणराज्यों के संघ ही प्रतिहारचौहान के दल थे जो उस समय के पराक्रमी राजा के नेतृत्व में ये दल बने थे।


[पृष्ठ-85]: पनैर, जाजोतारूपनगर गांवों के बीच की भूमि में दबे शहर पनेर के अवशेष आज भी खुदाई में मिलते हैं। आस पास ही कहीं महाभारत कालीन बहबलपुर भी था। पनेर से डेढ़ किमी दूर दक्षिण पूर्व दिशा में रंगबाड़ी में लाछा गुजरी अपने पति परिवार के साथ रहती थी। लाछा के पास बड़ी संख्या में गौ धन था। समाज में लाछा की बड़ी मान्यता थी। लाछा का पति नंदू गुजर एक सीधा साधा इंसान था।

तेजाजी की सास बोदल दे पेमल का अन्यत्र पुनःविवाह करना चाहती थी, उसमें लाछा बड़ी रोड़ा थी। सतवंती पेमल अपनी माता को इस कुकर्त्य के लिए साफ मना कर चुकी थी।

खरनालशहर पनेर गणराजयों की तरह अन्य वंशों के अलग-अलग गणराज्य थे। तेजाजी का ननिहाल त्योद भी एक गणराज्य था। जिसके गणपति तेजाजी के नानाजी दूल्हण सोढ़ी (ज्याणी) प्रतिष्ठित थे। ये सोढ़ी पहले पांचाल प्रदेश अंतर्गत अधिपति थे। ऐतिहासिक कारणों से ये जांगल प्रदेश के त्योद में आ बसे। सोढ़ी से ही ज्याणी गोत्र निकला है।

Distribution in Madhya Pradesh

Villages in Gwalior district

Morar (Gwalior),

Notable persons

Population

References