Daranagar

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(Redirected from Vidur Kuti)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Location of Daranagara on Map of Bijnor district

Daranagar (दारानगर) is a Village in Haldaur (Khari Jhalu) Block in Bijnor District of Uttar Pradesh State, India. It belongs to Moradabad Division. It is associated with Vidura of Mahabharata.

Location

It is located 11 kms towards South from District head quarters Bijnor, 14 KM from Haldaur (Khari Jhalu). [1]

Origin

महाभारत के युद्ध के पश्चात् मृत क्षत्रिय नरेशों की रानियों को इस स्थान पर विदुर जी ने शरण दी थी। इसीलिए इस स्थान का नाम 'दारानगर' (दारा = स्त्री) पड़ गया।

Variants

History

Excavation at Hastinapur, Kurukshetra and Surrounding sites

Hastinapur and Surroundings: Excavations were conducted at Hastinapur (29°9'; 78°3', Dt Meerut ,Uttar Pradesh ) in 1950-52 by B.B.Lal on behalf of the ASI. Hastinapur, which is located between Meerut and Mawana in Uttar Pradesh is now a forgotten village, but the 1952 excavations revealed a few interesting discoveries which are highly debatable as whether they can be really correlated with the Mahabharata period.

After the archaeological excavations at ‘Vidura-ka-tila’, a collection of several mounds ,some being 50 to 60 feet high and extending a few furlongs, named after Vidura, a site 37 km (23 miles) north-east of Meerut, it was concluded to be remains of the ancient city of Hastinapur, the capital of Kauravas and Pandavas of Mahabharata, which was washed away by Ganges floods. In the archaeological excavations around hastinapur, about 135 iron objects which included arrow and spearheads, shafts, tongs, hooks, axes, and knives were found, which indicate the existence of a vigorous iron industry. There are indications of brick – lined roads and drainage systems, and an agro – livestock based economy. The painted grey ware (PGW) of Hastinapura has been assigned to 2800 BCE and beyond.

Further excavations at what is today referred to as Draupadi–ki–rasoi (Draupadi’s Kitchen) and Draupadi Ghat resulted in the finding of copper utensils, iron seals, Ornaments made of gold and silver, terracotta discs and several oblong shaped ivory dice used in the game of chauper, all dating to around 3000 BC. These places are visited frequently by tourists since the excavations.

Kota venkatachalam assigns 3138 B.c., as the year of Mahabharata War according to the calculations based on the movement of saptarishi mandala given in the text of Mahabharata Later, according to the Matsya and vayu puranas a heavy flood on the river Ganga destroyed Hastinapura and Nichakshu, the fifth king after Parikshit (Arjuna’s grand son) who ascended the throne after Kurukshetra war, shifted his capital to Kausambi, 50 kms from prayagraj. There is definite archaeological evidence of a massive flood level. The devastation by the Ganga is still visible in the thick clay soil. After the exile, the pandavas asked for three villages: Paniprastha, Sonaprastha and Indraprastha, generally identified with the modern panipat, Sonepat and Purana Kila in New Delhi. These sites have also yielded the same pottery and anti Quities. Building structures with drainage sytems and painted grey ware (PGW) were excavated at purana Qila.

Kurukshetra and Surroundings: Kurukshetra, now in Haryana, was the site kurukshtra war. Excavations here now yielded iron arrow and spearheads dated by Thermoluminence Test (TM) to 3100 B.C. (CIRCA). The Mahabharata mentions many small villages, tanks and hills, which are still identifiable. What is the historicity of the Mahabharata? Our doubting historians will never accept any of these finds unless they are supported by inscriptions, which will never be forthcoming as the earliest inscriptions belong to 300B.C.

Reference: Dwarka to Kurushetra. Dr. S. R. Rao. Journal of Marine Archaeology (1995-96).

दारानगर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...दारानगर (AS, p.431) बिजनौर ज़िला, उत्तर प्रदेश में नगर से सात मील दक्षिण की ओर गंगा नदी के तट पर स्थित है। दारानगर में ही महाभारत के विदुर का निवास स्थान माना जाता है। महाभारत के अनुसार यहीं पर श्री कृष्ण ने विदुर के घर जाकर भोजन ग्रहण किया था।


प्राचीन जनश्रुति है कि इस स्थान पर श्री कृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात् द्वारका से आई हुई यादव स्त्रियाँ ठहरी थीं। एक दूसरी जनश्रुति के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात् मृत क्षत्रिय नरेशों की रानियों को इस स्थान पर विदुर जी ने शरण दी थी। इसीलिए इस स्थान का नाम 'दारानगर' (दारा = स्त्री) पड़ गया।

महामना विदुर का निवास स्थान दारानगर के सन्निकट 'विदुरकुटी' नामक स्थान कहा जाता है। प्राचीन हस्तिनापुर के खंडहर विदुरकुटी से कुछ दूर गंगा के पार ज़िला मेरठ में स्थित हैं। महाभारत, उद्योगपर्व की कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने दुर्योधन द्वारा संधि प्रस्ताव के ठुकराये जाने पर उसका राजसी आतिथ्य अस्वीकार कर विदुर के घर आकर भोजन किया था। विदुरकुटी में आज भी बथुवे का साग उगा हुआ है, जो किंवदंती के अनुसार विदुर के यहाँ श्री कृष्ण ने खाया था। विदुर जी की पादुकाएं अब भी इस स्थान पर सुरक्षित हैं।

दुर्योधन का राजसी भोजन छोड़कर कृष्ण का विदुर के घर भोजन करने का वर्णन महाभारत में इस प्रकार है- 'एवमुक्त्वा महाबाहुर्दुर्योधनमर्षणम् निश्चक्राम तत: शुभ्राद्धातैराष्ट्र निवेशनात्। निर्याय च महाबाहुर्वासुदेवो महामना:, निवेशाय ययौवेश्म विदुरस्य महात्मन:, ततोऽनुयायिभि: साघँ मरुदिभरेव वासव:। विदुरान्नानि बुभुजे शुचीन् गुणवन्ति च' महाभारत, उद्योगपर्व 91, 33-34-41.

महाभारत में कृष्ण का विदुर के घर रूखा-सूखा शाक खाने का कोई उल्लेख नहीं है। वहाँ विदुर के भोजन को 'शुचि' और 'गुणवान' बताया गया है।

बिजनौर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है .....बिजनौर, उ.प्र. (AS, p.628): बिजनौर गंगा नदी के वामतट पर लीलावाली घाट से तीन मील की दूरी पर एक छोटा सा क़स्बा है। कहा जाता है कि इसे विजयसिहं ने बसाया था। दारानगर और विदुरकुटी यहाँ से 7 मील की दूरी पर स्थित है। ये दोनों स्थान महाभारत कालीन बताये जाते हैं।

स्थानीय जनश्रुति में बिजनौर के निकट गंगातटीय वन में महाभारत काल में मयदानव का निवास स्थान था। भीम की पत्नी हिडिंबा मयदानव की पुत्री थी और भीम से उसने इसी वन में विवाह किया था। यहीं घटोत्कच का जन्म हुआ था। नगर के पश्चिमांत में एक स्थान है जिसे हिडिंबा और पिता मयदानव के इष्टदेव शिव का प्राचीन देवालय कहा जाता है। मेरठ या मयराष्ट्र बिजनौर के निकट गंगा के उस पार है।

बिजनौर के इलाके को वाल्मीकि रामायण में प्रलंब नाम से अभिहित किया गया है। नगर से आठ मील दूर मंडावर है जहाँ मालिनी नदी के तट पर कालिदास के [p.629]: "अभिज्ञान शाकुंतलम" नाटक में वर्णित कण्वाश्रम की स्थिति परंपरा से मानी जाती है।

कुछ लोगों का कहना है कि बिजनौर की स्थापना राजा बेन ने की थी जो पंखे या बीजन बेचकर अपना निजी ख़र्च चलाता था और बीजन से ही बिजनौर का नामकरण हुआ।

External links

References