Surajmal Shatabdi Samaroh 1933
Surajmal Centenary Celebration 1933 was celebrated on basant panchami i.e. 30 January 1933 in the commemoration of founding of the Bharatpur state in 1733 AD by Maharaja Surajmal.
सूरजमल शताब्दी समारोह 1933
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है .... सन् 1933 में पौष महीने में भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल की द्वीतीय शताब्दी पड़ती थी। जाट महासभा ने इस पर्व को शान के साथ मनाने का निश्चय किया किन्तु भरतपुर सरकार के अंग्रेज़ दीवान मि. हेनकॉक ने इस उत्सव पर पाबंदी लगादी।
28, 29 दिसंबर 1933 को सराधना में राजस्थान जाट सभा का वार्षिक उत्सव कुँवर बलराम सिंह के सभापतित्व में हो रहा था। यह उत्सव चौधरी रामप्रताप जी पटेल मकरेड़ा के प्रयत्न से सफल हुआ था। इसमें समाज सुधार की अनेकों बातें तय हुई। इनमें मुख्य पहनावे में हेरफेर की, और नुक्ता के कम करने की थी। इसमें जाट महासभा के प्रधान मंत्री ठाकुर झम्मन सिंह ने भरतपुर में सूरजमल शताब्दी पर प्रतिबंध लगाने का संवाद सुनाया।
यहाँ पर भरतपुर में कुछ करने का प्रोग्राम तय हो गया। ठीक तारीख पर कठवारी जिला आगरा में बैठकर तैयारी की गई। दो जत्थे भरतपुर भेजे गए जिनमे पहले जत्थे में चौधरी गोविंदराम हनुमानपुरा थे। दूसरे जत्थे में चौधरी तारा सिंह महोली थे। इन लोगों ने कानून तोड़कर ठाकुर भोला सिंह खूंटेल के सभापतित्व में सूरजमल शताब्दी को मनाया गया। कानून टूटती देखकर राज की ओर से भी उत्सव मनाया गया। उसमें कठवारी के लोगों का सहयोग अत्यंत सराहनीय रहा।
सूरजमल जयंती और भरतपुर-सप्ताह का आयोजन
ठाकुर देशराज [2] ने लिखा है:
महाराज श्रीकृष्णसिंह के निर्वासन के समय से ही राजपरिवार और प्रजाजनों पर विपत्तियां आनी आरम्भ हो गई थीं। उनके स्वर्गवास के पश्चात् तो कुछेक पुलिस के उच्च अधिकारियों ने अन्याय की हद कर दी थी। सुपरिण्टेंडेण्ट पुलिस मुहम्मद नकी को तो उसके काले कारनामों के लिए भरतपुर की जनता सदैव याद रखेगी। धार्मिक कृत्यों पर उसने इतनी पाबन्दियां लगवाईं कि हिन्दु जनता कसक गई। यही क्यों, भरतपुर-राज्यवंश के बुजुर्गों के स्मृति-दिवस न मनाने देने के लिए भी पाबन्दी लगाई गई। जिन लोगों ने हिम्मत करके अपने राज के संस्थापकों की जयंतियां मनाई, उनके वारंट काटे गए। ऐसे लोगों में ही इस इतिहास के लेखक का भी नाम आता है। आज तक उसे भरतपुर की पुलिस के रजिस्टरों में ‘पोलीटिकल सस्पैक्ट क्लाए ए’ लिखा जाता है।1 उसका एक ही कसूर था कि उसने दीवान मैकेंजी और एस. पी. नकी मुहम्मद के भय-प्रदर्शन की कोई परवाह न करके 6 जनवरी सन् 1928 ई. को महाराज सूरजमल की जयंती का आयोजन किया और महाराज कृष्णसिंह की जय बोली। इसी अपराध के लिए दीवान मि. मैंकेंजी ने अपने हाथ से वारण्ट पर लिखा था
- “मैं देशराज को दफा 124 में गिरफ्तार करने का हुक्म देता हूं और उसे जमानत पर भी बिना मेरे हुक्म के न छोड़ा जाए।”
हवालातों के अन्दर जो तकलीफें दी गई, पुलिसमैनों के जो कड़वे वचन सुनने पड़े, उन बातों का यहां वर्णन करना पोथा बढ़ाने का कारण होगा। पूरे एक सौ आठ दिन तंग किया गया। सबूत न थे, फिर भी जुटाए गए। गवाह न थे, लालच देकर बनाए गए - उनको तंग करके गवाही देने पर
1. बीकानेर के सुप्रसिद्ध राजनैतिक केस में भरतपुर पुलिस के सी. आई. डी. इन्सपेक्टर ने यही बात अपनी गवाही में कही थी।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-675
विवश किया गया। किन्तु आखिर जज को यही कहना पड़ा कि पुलिस सबूत जुटाने में और देशराज से बहस करने में फेल हुई।
जिस किसी प्रजाजन और राजकर्मचारी पर यह सन्देह हुआ कि यह जाट-हितैषी और स्वर्गीय महाराज श्रीकृष्ण का भक्त है, उसे दण्ड दिया गया। दीवान ने महाराज और महारानी तथा बाबा साहब (श्री रामसिंह) के अंत्येष्ठि कर्मों के समय पर सम्मानित भाव से उपेक्षा की। आखिर जाटों के लिए यह बात असहय्य हो गई और सन् 1929 ई. के दिसम्बर के अन्तिम दिनों में भरतपुर-सप्ताह मनाने का आयोजन हुआ। सारे भारत के जाटों ने भरतपुर के दीवान मैंकेंजी और मियां नकी की अनुचित हरकतों की गांव-गांव और नगर-नगर में सभाएं करके निन्दा की। राव बहादुर चौधरी छोटूराम जी रोहतक, राव बहादुर चौधरी अमरसिंह जी पाली, ठाकुर झम्मनसिंह जी एडवोकेट अलीगढ़ और कुंवर हुक्मसिंह जी रईस आंगई जैसे प्रसिद्ध जाट नेताओं ने देहातों में पैदल जा-जा कर जाट-सप्ताह में भाग लिया। आगरा जिला में कुंवर रतनसिंह, पं. रेवतीशरण, बाबू नाथमल, ठाकुर माधौसिंह और लेखक ने रात-दिन करके जनता तक भरतपुर की घटनाओं को पहुंचाया। महासभा ने उन्हीं दिनों आगरे में एक विशेष अधिवेशन चौधरी छोटूराम जी रोहतक के सभापतित्व में करके महाराज श्री ब्रजेन्द्रसिंह जी देव के विलायत भेजने और दीवान के राजसी सामान को मिट्टी के मोल नीलाम करने वाली उसकी पक्षपातिनी नीति के विरोध में प्रस्ताव पास किए। इस समय भरतपुर के हित के लिए महाराज राजा श्री उदयभानसिंह देव ने सरकार के पास काफी सिफारिशें भेजीं।
आखिरकार गवर्नमेण्ट की आज्ञा से कुछ दिनों बाद दीवान मैकंजी साहब की भरतपुर से दूसरे स्थान की नियुक्ति का हुक्म हुआ। जबकि उन्हें शहर की म्यूनिस्पलटी की ओर से मान-पत्र दिया जा रहा था, पं. हरिश्चन्द्रजी पंघेरे ने उनको उसी समय छपा हुआ विरोध-पत्र देकर रंग में भंग और मान में अपमान का दृश्य उपस्थित कर दिया। मुकदमा चला और पं. जी को एक साल की सजा हुई। उसके थोड़े ही दिन बाद नरेन्द्रकेसरी (महाराज श्री कृष्णसिंह के जीवन चरित्र) को बेचते हुए बालक दौलतराम पंघोर को गिरफ्तार किया गया। कहा जाता है कि जिस समय श्रीमान् दीवान साहब भरतपुर से विदा हुए उस समय ठा. उम्मेदसिंह तुरकिया और पं. सामंलप्रसाद चौबे ने उन्हें काले झण्डे स्टेशन भरतपुर पर दिखाए। उनके बाद में भी मियां नकी अपनी चालें बराबर चलता रहा। भुसावर के आर्य-समाजियों को अनेक तरह से केवल इसलिए तंग किया कि वे उधर जोरों से वैदिक-धर्म का प्रचार कर रहे थे। पं. विश्वप्रिय, ला. बाबूराम, ला. रघुनाथप्रसाद, चौधरी घीसीराम पथैना पर केस भी चलाया गया। पेंघोर के पटवारी किरोड़सिंह और कमलसिंह पर तो ‘भरतपुर तू वीरों की खानि’
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-676
जैसी भजन पुस्तकों के छापने के कारण मुकदमा चलाया गया और सजा दी गई। उनके भाई प्यारेलाल पटवारी को अलग किया गया। एक मास्टर और बीहरे पर केवल इस पुस्तक को रखने के कारण मुकदमा चला। सन् 1928 ई. से सन् 1933 ई. तक जब तक मियां नकी जी भरतपुर में रहे किसी को दफा 124 ए. व 108 में और किसी को दफा 153 में रगड़ते रहे। ऐसे लोगों में श्रीमान् गोकुलजी वर्मा और पं. गोकुलचन्द दीक्षित विशेष उल्लेखनीय हैं। वर्माजी को तो दो बार जेल पहुचाने से भी मियां साहब को संतोष नहीं हुआ। इसी प्रकार उसने राव राजा श्री रघुनाथसिंह जी के विरुद्ध भी मुकदमा बनाने की धृष्टता की। दीवानों को बना लेना उसके बाएं हाथ का काम था। भले से भले दीवान को उसने हिन्दुओं के विरुद्ध कर दिया। स्वर्गीय महाराज साहब द्वारा पेंघोर के जिन महंत श्री स्वामी सच्चिदानन्दजी को महामान्य की उपाधि मिली थी उन्हीं को राजद्रोही साबित करने की चेष्टा की गई। बाबू दयाचन्द, भोली नम्बरदार, जगन्नाथ, किशनलाल और उसके बूढ़े बाप आदि अनेक सीधे नागरिकों को तंग किया गया। यह सब कुछ महाराज श्री कृष्णसिंह के स्वर्गवास के बाद उनकी प्यारी प्रजा के साथ हुआ। यही क्यों, मेव-विद्रोह के लक्षण भी दीखने आरंभ हो गए थे। यदि दीवान श्री हैडोंक साहब थोड़े समय और सावधान न होते तो स्थिति भयंकर हो जाती।
इस एडमिन्सट्रेशनरी शासन में सबसे कलंकपूर्ण बात यह हुई कि ‘सूरजमल शताबदी’ जो कि बसंत पंचमी सन् 1933 ई. में भरतपुर की जाट-महासभा की ओर से मनाई जाने वाली थी, हेकड़ी के साथ न मनाने की आज्ञा दी गई। ठाकुर झम्मनसिंह और कुंवर हुक्मसिंह जैसे जाट-नेताओं को कोरा जवाब दे दिया गया। इस घटना ने जाट-जाति के हृदय को हिला दिया। यद्यपि महासभा नहीं चाहती थी कि कानून तोड़कर भरतपुर में ‘सूरजमल शताब्दी’ मनाई जाए। किन्तु उत्साह और जोश के कारण जाट लोगों के जत्थे बसंत-पंचमी 30 जनवरी सन् 1933 ई. को भरतपुर पहुंच गए और नगर में घूम-घूमकर उन्होंने ‘सूरजमल शताब्दी’ मनाई। इसी शताब्दी-उत्सव का ‘जाटवीर’ में इस भांति वर्णन छपा था - सूरजमल शताब्दी नियत समय पर मनाई गई।
जाट-जगत् यह सुनकर फूला नहीं समाएगा कि बसन्त पंचमी ता. 30 जनवरी सन् 1933 ई. को नियत समय पर भरतपुर में परम प्रतापी महाराज सूरजमल की शताब्दी अपूर्व शान और धूम-धाम के साथ मनाई गई।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-677
पिछली बातें
जाट-जगत् को सूरजमल शताबदी के सम्बन्ध की पिछली बातों की खबर तो ‘जाटवीर’ द्वारा मिलती ही रही हैं इसलिए उन सब बातों पर प्रकाश डालने की जरूरत नहीं, किन्तु कुछेक बातों का लिखना उचित भी है। ता. 13 जनवरी को जाट-महासभा के डेपूटेशन को भरतपुर के कुचक्रियों द्वारा बहकाए हुए प्रेसिडेण्ट मि. हेडोंक ने जो सूखा जवाब दे दिया था उससे जाट-जगत् तिलमिला उठा था। ता. 22 जनवरी की मीटिंग की ओर सभी जाट भाइयों की निगाह लगी हुई थी।
यद्यपि भरतपुर के प्रतिष्ठित प्रेसिडेण्ट कौंसिल साहब के सूखे और कड़वे फैसले ने बड़े-बड़े राज-भक्त और उपाधिकारी जाटों के दिल पर गहरा आघात किया था, किन्तु फिर भी उन्होंने अपनी ब्रिटिश शासन-परस्ती का सबूत देने के लिए बड़ी सहनशीलता से काम लिया और सूरजमल शताब्दी को मुल्तबी कर दिया। लेकिन सर्व-साधारण जाट-जगत् ने भरतपुर के प्रेसिडेण्ट साहब के फैसले को अपमानजनक और अन्यायपूर्ण समझा और वह तिलमिला उठा। चारों ओर से यही सुनाई देने लगा कि वह आज्ञा ऐसी है जैसी असभ्य सरकार भी नहीं दे सकती।
बस यही बात थी प्रायः भारतवर्ष के सभी प्रान्तों के जाट-युवक व वृद्ध भरतपुर की ओर सूरजमल की जयन्ती मनाने के लिए चल पड़े।
उत्साह
यद्यपि महासभा शताब्दी को मुल्तबी कर चुकी थी फिर भी सूरजमल शताब्दी समिति, जिसका कि जन्म आदि-सृष्टि की भांति हुआ था, के पास बीसियों स्थानों से तार आने लगे कि हम आ रहे हैं। लगभग दो हजार मनुष्यों के बिस्तर भरतपुर-दर्शन के लिए बंध चुके थे। फिर भी ता. 30 जनवरी को हिन्डोन, खेरली, जाजन पट्टी, आगरा और मथुरा में 500 जाट आ चुके थे जो स्वागत-समिति ने यहीं रोक दिए।
सूचना
ता. 29 जनवरी को शताब्दी स्वागत समिति के सेक्रेटरी ने भरतपुर के प्रेसिडेण्ट साहब को इस आशय का तार दिया -
- “सूरजमल शताब्दी हमारा धार्मिक उत्सव है। उसे कल बसन्त-पंचमी को भरतपुर में मनाया जाएगा और कल 10 बजे रेलवे-स्टेशन से प्रेसिडेण्ट का जुलूस निकलेगा। अतः सहयोग देने की कृपा करें।”
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-678
इसी तरह का एक तार भरतपुर के पोलिटीकल एजेण्ट महोदय को भी दिया गया ।
भरतपुर में इस तार के पहुचते ही जो कार्यवाही हुई, वह इस तरह सुनने में आई है कि - दीवान ने कौंसिल के मेम्बरों को बुलाकर मीटिंग की। एक मेम्बर इस पक्ष में थे कि उन्हें यहां आते ही गिरफ्तार किया जाय, पर नहीं मालूम कि उनकी राय का क्या हुआ? रात के नौ बजे सी. आई. डी. वालों को स्टेशन पर तथा शहर के दरवाजों पर नियुक्त कर दिया। उन्होंने उसी समय से स्टेशन पर प्रत्येक ट्रेन के मुसाफिरों में सूरजमल के जयन्ती के आगत जनों की तलाश की। कहा जाता है कि स्वयं दीवान साहब भी बेचैनी के साथ स्टेशन तक लगातार भागदौड़ करते रहे।
बसन्त-पंचमी
भरतपुर में यद्यपि इस खबर को छिपाने की काफी कोशिश अधिकारियों की ओर से हुई थी, कि यहां ब्रज के धर्म-प्रिय और हिन्दु जाट सरदार शताब्दी मनाने आ रहे हैं। फिर भी अधिकारियों की फुस-फुस से जनता को पता चल ही गया। इधर ठीक 10 बजे की ट्रेन से बसन्ती पोशाक में सजे हुए शताब्दी के प्रेसिडेण्ट ठाकुर भोलासिंह मय अपने साथियों के स्टेशन पर उतरे। ‘महाराज सूरजमल की जय’, ‘महाराज ब्रजेन्द्रसिंह की जय’ और ‘जाट-जाति की जय’ से प्लेटफार्म गूंज गया। बैंड बाजे से (भरतपुर) प्रेसिडेण्ट तथा उनके साथियों का स्वागत हुआ। बैंड बाजे और बीन बाजे वालों ने बाजे में यही एक स्वागत-गान गाया। जिस समय जुलूस प्लेटफार्म से बाहर निकला, उस समय सरकारी मोटरें और गाड़ियां इधर-उधर से जुलूस का चक्कर काटने लगीं। ठाकुर हुक्मसिंह, [[ठाकुर रामबाबूसिंह ‘परिहार’ के भतीजे कुं. बहादुरसिंह, कुं. प्रतापसिंह और चिरंजीव फूलसिंह परिहार-वंश के नवयुवक अपनी भड़कीली बसन्ती पोशाक में जनता के मन को मोह रहे थे। चौधरी गोविन्दराम, चौ. थानसिंह, कुं. जगनसिंह, कुं. नारायणसिंह, राजस्थानी सैनिक तथा अन्य जाट-वीर अपनी गम्भीर मुद्रा से हंसते हुए उत्साह प्रकट कर रहे थे। साथ में लम्बे बांसों में महाराज सूरजमल तथा भरतपुर के अन्य महाराजगान के फोटू थे, जिन पर पुष्प-मालाएं लहरा रही थीं।
गिरफ्तारी की आशंका
आशंका यह थी कि पुलिस जुलूस को भंग करेगी और लोगों को गिरफ्तार करेगी, किन्तु पुलिस ने उस समय तक कुछ नहीं किया, जब तक कि जुलूस प्रवेश द्वार गोवर्धन दरवाजे तक पहुंचा। किन्तु हुआ यह कि एक भले-मानस मोटर लेकर आए। पहले तो मोटर को जुलूस के आगे-पीछे घुमाया और फिर कहने लगे -
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-679
आप लोग मोटर में बैठकर चलिए, इतनी तकलीफ क्यों उठाते हो? मालूम होता है कि जुलूस को वह मोटरों के द्वारा शीघ्रता से घुमाकर बाहर निकाल देना चाहते थे, किन्तु उनसे साफ कह दिया कि आपकी महरबानी को सधन्यवाद अस्वीकार करते हैं। बेचारे अपना-सा मुंह लेकर चले गए। यइस मौके पर अधिकारियों ने एक और भी चाल चली। हिन्दी-साहित्य-समिति के द्वारा भी सूरजमल-शताब्दी मनाने का आयोजन कर डाला और उसके जुलूस को इसके जुलूस में मिला दिया। यह कार्यवाही इसलिए की गई जान पड़ती है कि भरतपुर की आम पब्लिक को इस बात से अंधेरे में रखा जाए कि दीवान की हेकड़ी में दी हुई आज्ञा का उल्लंघन करके यह वृज-वासी हिन्दु तथा जाट लोग शताब्दी मना रहे हैं। साहित्य-समिति का जुलूस भी इसी जुलूस में शामिल हो गया। ठाकुर भोलासिंह से काफी तौर पर कहा कि प्रेसिडेण्ट साहब पैदल न चलिए, घोड़ा गाड़ी में बैठ जाइए या मोटर ले लीजिए। किन्तु उन्होंने अस्वीकार कर दिया और राज-महलों से आगे निकलकर अपना जुलूस भी अलग कर लिया और बाजार में होते हुए नाज-मण्डी में गंगा-मन्दिर के पास, जहां सभा का आयोजन किया गया था, ठहर गए।
दूसरा जत्था
भरतपुर पुलिस की अब तक की स्वच्छन्दता और प्रेसिडेण्ट साहब की भूल से यह बात सही-सी जान पड़ रही थी कि स्टेशन से जाने वाला पहला जत्था शहर में पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इसी खयाल से दूसरा जत्था दूसरे रास्ते से शताब्दी-समिति के मंत्री ठा. कुंवर लालसिंह, कुंवर बलवन्तसिंह, आगरे जिले के कुंवर श्री रामसिंह, सेन्ट्रल इण्डिया के भाई जादवेन्द्र, राजस्थानी भाई सूरजमल और दलेलसिंह सरदार थे। ज्यों ही इन्होंने भरतपुर में चौबुर्जा पर इक्कों से उतरकर ‘महाराजा सूरजमल की जय’ बोली कि सी. आइ. डी. वाले अचानक शहर में इस तरह जत्थे को आता देखकर भौचक्के हो गए। यह जत्था भी गंगाजी के मन्दिर के पास, ठीक साथ ही साथ, अपने पहले आए जत्थे में मिल गया।
सभा-समारोह
यद्यपि इन लोगों के साथ ही हजारों मनुष्यों की भीड़ थी फिर भी कुछ उत्साही भाइयों ने प्रमुख मुहल्लों में बुलावा दे दिया। थोड़ी ही देर में मंडी खचा-खच भर गई। चारों ओर भीड़ जमा हो गई। मंगल-गान के बाद स्वागताध्यक्ष कुंवर बहादुरसिंह (सुपुत्र स्वर्गीय ठाकुर पीतमसिंह परिहार, जमींदार कठबारी) ने अपना छपा हुआ भाषण पढ़ा । अनन्तर ठाकुर हुक्मसिंह परिहार ने ठाकुर भोलासिंह जी फौजदार का प्रख्यात नाम इस महोत्सव के प्रधान बनाए जाने के लिए पेश किया।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-680
कुंवर प्रतापसिंह परिहार सुपुत्र ठाकुर रामसरनसिंह परिहार ने समर्थन व कुंवर लालसिंह ने अनुमोदन किया। करतल-ध्वनि के बीच ठाकुर भोलासिंह सभापति के आसन पर आसीन हुए और अपने छपे हुए वीर-रस पूर्ण भाषण को पढ़ा। इसके बाद ठाकुर तारासिंह का मर्मस्पर्शी भाषण हुआ और तत्पश्चात् निम्नलिखित प्रस्ताव सर्व-सम्मति से पास हुए -
- (1) यह शताब्दी महोत्सव निश्चय करता है कि प्रत्येक दसवें वर्ष महाराजा सूरजमल की यादगार में सूरजमल शताब्दी-महोत्सव मनाया जाया करेगा।
- (2) क्योंकि महाराजा सूरजमल की तरह महाराजा जवाहरसिंह भी जाट इतिहास में खास स्थान रखते है, इसलिए इस महोत्सव की राय है कि उनकी भी शताब्दी मनाई जाया करे।
- (3) पंजाब-केसरी महाराज रणजीतसिंह की सन् 1939 ई. में शताब्दी मनाने का जो आयोजन सिख-समाज की ओर से हो रहा है, उस पर यह महोत्सव हर्ष प्रकट करता है और सर्व जाट भाइयों से निवेदन करता है कि इस पवित्रा कार्य में सहयोग दें। महाराज रणजीतसिंह जाट-जाति के ही सपूत थे।
- (4) इस महोत्सव की राय है कि प्रतिवर्ष महाराज श्री कृष्णसिंहजी की स्मृति मनाई जाया करे।
कार्यवाही समाप्त होने ही को थी कि सी. आई. डी. ने कहा कि आप लोग कोतवाली के सामने पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिए जाएंगे। अतः सब लोग शेष यात्रा करने ‘सूरजमल कीर्ति-गान’ (जाट-जाति के सुप्रसिद्ध कवि ठाकुर रामबाबूसिंह ‘परिहार’ द्वारा रचित) गाते हुए कोतवाली के सामने पहुंचे ओर आध घण्टे तक ‘सूरजमल-गान’ को दुहरा-दूहरा कर गाया। अन्त में महाराज सूरजमल की जय बोलकर बीसों सहयोगियों तथा आठों बैंड वालों के साथ ट्रेन में बैठकर रवाना हो गए। इस तरह महाराज सूरजमल की यह एतिहासिक शताब्दी सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गई।
धारणाएं
लोगों का कहना है कि भरतपुर कौंसिल के प्रेसिडेण्ट साहब ने जाटों के वास्तविक जोश का ख्याल करके अपनी त्रुटि को संभाल लेने की चेष्टा कर ली थी।
विशेष बातें
जिन लोगों को दूसरे दिन के लिए रोका जा रहा था, वे इस बात के लिए नाराज हो रहे थे कि हमें आज ही क्यों नहीं भेजा जाता। कठवारी के मुख्य-मुख्य सरदार ठा. छिद्दासिंहजी, ठा. गोपीचन्दजी, ठा. कलियानसिंहजी, (ठा. रामबाबूसिंहजी ‘परिहार’ के बड़े भाई) और महाशय
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-681
प्यारेलालजी ने आए हुए लोगों की आव-भगत में अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी।
शाम को जब दोनों जत्थे महाराज सूरजमल की जय बोलते हुए वापस लौटे तो परिहार बन्धुओं ने आगे बढ़कर स्वागत किया। श्रीमती ठकुरानी उत्तमादेवीजी ने सबकी आरती उतारी। इसके पश्चात् ठा. तारासिंहजी, ठा. भोलासिंहजी, कु. पन्नेसिंहजी, सरदार हरलालसिंग जी आदि के भाषण हुए।1
मीठी विजय
भरतपुर कौंसिल के प्रेसिडेण्ट को उल्टा-सीधा समझाकर जो लोग जाट-जाति को कोरी बातून जाति साबित करने की चेष्टा में थे उनकी यह धारणा भ्रम-मूल सिद्ध हुई। उनके इस भ्रम को मिटाने के लिए यह एक जीता-जागता उदाहरण है। फिर भी भरतपुर के दीवान साहब ने असलियत को समझकर ऐसा काम किया, जिसके लिए उन्हें हृदय से धन्यवाद देना पड़ता है और जाट-जाति तथा ब्रजवासियों को इस ‘सूरजमल जयन्ती’ के मनाने के निश्चय को साहसपूर्वक नियत समय पर पूर्ण करने के लिए बधाई है।
- नोट - भरतपुर राजघराने की वर्तमान जानकारी ठाकुर देशराज की पुस्तक में नहीं थी जो जाटलैंड टीम द्वारा जोड़ी गयी है. सुधार के लिए जाटलैंड सदस्य बहादुर सिंह ने सराहनीय प्रयास किये.
References
- ↑ ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.10
- ↑ Thakur Deshraj: Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX ,p.675-682
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