Antil

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(Redirected from Anttal)

Antil (अंतिल) Antal (अंतल) / Antal (अनतल)[1] [2] Antal (आन्तल)[3] [4][5] Andhak (अन्धक) Aundh (औंध)[6] Anlak (अनलक)[7] Anttal (अन्टाल) is a gotra of Jats found in Haryana and Uttar Pradesh. [8] They were supporters of Tomar Confederacy. [9]

Origin

Jat Gotras Namesake

  • (Jat clan) → Ant (आंत): तोमर (तूर) जाटों के एक समूह ने युद्ध मे मुस्लिमो की आंते निकाल ली थी। आगे चलकर यह ही तोमर जाट आंतिल नाम से प्रसिद्ध हुए हैं।

History

Ram Sarup Joon [10] writes that ...Antal Tanwar: It cannot be said with certainty why they wee called Antal. They might be (antim=last) Tanwar rulers, about Sonepat. They have 24 villages near about Sonepat.


Greek historian Pliny has mentioned about Antal as Amatae, [11]the people living in Sindh.

Andhak Jats were the rulers of Anjai in the north of Mathura. Uttar Pradesh. Initially they lived in Sindh. Found in Gujarat also. Pliny has called them Amitae people, who were known as Antal in Jats. [12]

Antal (आंतल) Jats are said to be from Tanwars who had took out the intestine (आंत) of enemies in a war hence known as Antal (आंतल). This gotra is based on title.[13]

Megasthenes has described about this clan in Indica as Amatae. He writes, Then next to these towards the Indus come, in an order which is easy to follow The Amatae (Antal), Bolingae (Balyan), Gallitalutae (Gahlot), Dimuri (Dahiya), Megari (Maukhari), Ordabae (Buria), Mese (Matsya). (See -Jat_clans_as_described_by_Megasthenes)

Atil, also spelled Itil (literally meaning "Big River"), was the capital of Khazaria from the middle of the 8th century until the end of the 10th century. The word is also a Turkic name for the Volga River. Atil was located along the Volga delta at the northwestern corner of the Caspian Sea.

The Russian "Antas" are the same as the Indian Antals. [14]

In History of Europe

Map of Lycia in Antalya Province of Turkey, showing significant ancient cities and some major mountains and rivers. Red dots are mountain peaks, white dots are ancient cities. Each place in this map is after some Jat clan

Antalya is is an Ancient Lycian city in Antalya Province in the Mediterranean Region of Turkey. It is the capital of Antalya province. It was called Attalia in ancient times. (See Attalia)

Attal is a French surname originated from the Arab word "attâl" (porter).[15] It can be associated with the Spanish town of Atal from the province of La Coruña and is documented since the 17th century as a surname used by Jews.[16]

आंतिल इतिहास

आन्तल ,आंतिल गोत्र मूल रूप से तोमर(तंवर) जाट है ।इसलिए आंतिल गोत्र को तोमर गोत्र की शाखा भी माना जाता है। पारिवारिक जगाओ के अनुसार आंतिल तोमरो का निकास दिल्ली से है। आज से 1100 साल पहले जब दिल्ली पर तोमर जाटो का राज था तो उनके सेनापति नान्हू तोमर (तँवर) ने युद्ध में मुस्लिमो की आँते निकाल ली थी।इस घटना के बाद दिल्ली के तोमर जाट महाराज ने अपने वीरो को आन्तल (आंतिल) की उपाधि दी जिसका अर्थ आंत निकालने वाले

इस लड़ाई में तोमरो की सेना की विजय हुई इस ख़ुशी में दिल्ली के जाट राजा ने खुश होकर अपने सेनापति और युद्ध के नायक रहे नान्हू तोमर को सोनीपत का नांगल क्षेत्र उपहार में दे दिया था। नान्हूसिंह ने सबसे पहले नांगल गाँव बसाया था। इस ग्राम को दादी नांगल भी बोला जाता है । आज भी यह आंतिल तोमरो का प्रधान गाँव है।

आगे चलकर इनमे लाडोसिंह तोमर नाम का वीर खिलजी वंश के समय हुआ था। सर्वखाप की फ़ौज में उसका बड़ा सम्मान था सन 1319 ई. में मुबारकशाह खिलजी के सेनापति जाफ़र अली ने बैशाखी की अमावश्या के दिन कोताना (बडौत के निकट) यमुना नदी में कुछ हिन्दू ललनाओं को स्नान करते देखा तो उसकी कामवासना भड़क उठी. उसने हिन्दू बालाओं को घेर कर पकड़ने का प्रयास किया तो बालाओं ने डटकर मुकाबला किया. आस-पास के लोग भी सैनिकों से जा भिडे. भारी मारकाट मची. इस बात की खबर सर्वखाप पंचायत को लगने पर पंचायती मल्लों को जाफर अली को सबक सिखाने भेजा. सर्वखाप इतिहास के अनुसार पंचायत ने लाडो सिंह तोमर को सेनापति चुना जिसने बाकी बचे कामांध सैनिकों का पीछा किया और इन्हें कत्ल कर दिया. बादशाह ने अंत में इस घटना के लिए सर्व खाप पंचायत से लिखित में माफ़ी मांगी और लाडो सिंह को दिल्ली बुलाकर सम्मान किया उसके लिए एक सराय का निर्माण करवाया जो आज भी लाडोसराय कहलाती है जब भरतपुर के जाटों ने दिल्ली मुगलों से जीती थी।उस से कुछ समय पहले ही यह लोग भी अपने भाइयो के पास मुरथल और उसके आसपास जाकर बस गए क्यों की मुरथल की ज़मीन अधिक उपजाऊ थी और यह लाडो सराय उजड़ गया था।भरतपुर सेना में आये सेजवार गोत के जाट आकर इस लाडो सराय में बस गये जो अभी तक आबाद है।आंतिल जाटों का आज भी लाडोसराय(आंतिल तोमरो का दूसरा निकास लाडोसराय से है) से लगाव है इसलिए लाडो सराय में बसने वालो जाटों से यह विवाह संबंध नही करते हैं।

आंतिल गोत्र इतिहास दिलीप सिंह अहलावत

आन्तल जाट गोत्र जो कि वैदिक कालीन तंवर या तोमर जाटों की शाखा है। ये तंवर जाट चन्द्रवंशी हैं। दिल्ली प्रान्त के गांव लाडोसराय से इन आन्तल जाटों का निकास हुआ। यह लाडोसराय के विद्वान् व वृद्ध लोगों से पूछताछ करने से मुझे जानकारी मिली है (लेखक)। लाडोसराय के जाटों का गोत्र जेसवाल है जो कि तंवर-तोमर जाटों की शाखा है। लाडोसराय के निकट जेसवाल जाटों का एक और गांव अधचीनी है। जिला मुरादाबाद में जेसवाल जाटों के लगभग 12 गांव हैं। लाडोसराय से निकलकर जेसवाल जाटों का एक संघ किसी दूसरे स्थान पर आबाद होने के लिए गया। जनश्रुति के अनुसार एक युद्ध में इन जाटों के दल ने ब्राह्मणों की आंतें निकाल ली थीं, जिसके कारण ये जाट आन्तल तंवर के नाम पर प्रसिद्ध हुए। इन जाटों ने सोनीपत जिले में जाकर अपनी बस्तियां बसाईं।

जिला सोनीपत में इन तंवर आन्तल जाटों के 24 गांव एक जत्थे के रूप में बसे हुए हैं। खेवड़ा के आसपास 12 गांव और मुरथल के चारों ओर 12 गांव इन जाटों के हैं, जिनका प्रधान गांव मुरथल है। मुरथल, नांगल, केमाशपुर, मकीमपुर, दीपालपुर, हुसेनपुर, खेवड़ा आदि तंवर आन्तल जाटों के प्रसिद्ध गांव हैं।

जिला बिजनौर में नूरपुर गांव में भी आन्तल जाट आबाद हैं। पटियाला जिले के 30 गांवों में तंवर आन्तल जाट आबाद हैं।[17]


अन्धक शब्द से अन्तल

ठाकुर देसराज लिखते हैं - भगवान् कृष्ण ने पहले-पहल अन्धक और वृष्णि लोगों को सम्मिलित करके ही ज्ञाति राज्य की नींव डाली थी, जिसका कि हम पीछे के पृष्ठों में वर्णन कर चुके हैं। अन्धक लोग मथुरा से उत्तर की ओर आजकल के आंजई नामक स्थान के आसपास गणतंत्र प्रणाली से शासन करते थे। साम्राज्यवादी जरासंध से तंग आकर ये वृष्णियों के साथ समुद्र-स्थित द्वारिका में जा बसे थे। राजपूताने से होकर ये किस समय संयुक्त-प्रदेश में वापस आए, यह कुछ पता नहीं चलता। किन्तु आजकल ये औंध, अन्तल और अनलक नामों से पुकारे जाते हैं। अन्धक शब्द का औंध, अन्तल और अनलक बन जाना भाषा-शास्त्र से बिल्कुल सम्भव है।[18]

Distributon in Haryana

Villages in Gwalior district

Gwalior, Morar,

Distributon in Haryana

Villages in Ambala district

Balana, Chaourmastpur, Nagal, Nandwali, Naneola,

Villages in Kurukshetra district

Ghisarpari,

Villages in Sonipat district

There are total 24 villages in Sonipat district Asadpur, Asawarpur (असावरपुर) Bakhtawarpur (बख्तावरपुर), Basaudi, Bhaghaan, Deepalpur, Garhi Mehandipur, Hassanpura, Kumaspur (कुमासपुर), Khewara (खेवड़ा), Kishora (किशोरा), Kurar Ibrahimpur, Machholaa (मच्छोला), Mehndipur Sonipat, Mukimpur, Murthal, Nandnour, Nangal Kalan, Palra, Palri,

Villages in Jind district

Kurar (कुरड़),

Distributon in Uttar Pradesh

Villages in Bijnor district

Nurpur Chandpur.

Distributon in Madhya Pradesh

Villages in Sehore district

Bayan Sehore,

See also

Notable persons from this clan

Further reading

References

  1. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. अ-47
  2. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.27,sn-25.
  3. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. आ-9
  4. B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p.236
  5. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.28,sn-86.
  6. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ओ-3
  7. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n.अ-8
  8. Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII,s.n. 13,p.585
  9. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,p.192
  10. Ram Sarup Joon: History of the Jats/Chapter V, p.70
  11. Races as described by Megasthenes
  12. Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas,
  13. Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, p. 222,s.n. 7
  14. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/The Jats, p. 61
  15. Laurent Hertz, Dictionnaire étymologique de noms de famille français d'origine étrangère, L'Harmattan, 1997, p.88
  16. Attal, Beit Hatfutsot (Jewish diaspora museum, Tel Aviv), accessed 6 March 2020
  17. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-1024
  18. Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII, p. 556



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