Bateshwar Morena

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For similar names see Bateshwar
Author: Laxman Burdak IFS (R)
Temples at Batesar

Bateshwar (बटेश्वर) Batesar (बटेसर) is the site of many ancient temples in Morena district in Madhya Pradesh.

Variants

Location

Location of Mitawali, Padhavli & Bateshwar on Google Map

Bateshwar Temple Complex (near Padhavli) is situated at a distance of 40 km from Gwalior. Batesara, Padavali and Mitaoli are located within a distance of 5 kms in Morena District in Madhya Pradesh. The nearest airport is at Gwalior, which is 40 kms away.[1][2]

Batesara Group of Temples

Batesar Group of Temples ASI

A group of ruined temples spread over the western slopes of an isolated Hill are located south-west of Padavali village in the Morena district of Madhya Pradesh. Made of stone masonry, the ruins comprised of temple remains, gateways, stepped tanks, Architectural members, Amalakas, Brahmanical icons etc which can be stylistically ascribed to post Guptas to early Pratihara period ranging from 6th-9th century AD. One of the surviving temple dedicated to Lord Shiva known as Bhuteshwara shows all the features of Pratihara art. Archaeological Survey of India has reconstructed and renovated these temples. Nearly 100 temples have been restored by Archaeological Survey of India. [3]

Temple at Batesar

According to a report The temples here dedicated mainly to Shiva and Vishnu date back to the 8-9th century AD. They are said to be built during the Pratihara rulers, 300 years before Khajuraho temples were built. The cluster of temples is spread over an area of 1.5 km in the ravines of Chambal. [4]

Excavations

The Archaeological Survey of India had started excavation works in year 2007 which are still continuing. Presently sites of Padavali or Padawli and Mitaoli being excavated, where one temple each has been discovered till now. A temple cluster at Dodamath in the same place is also being excavated. The ravages of time and earthquakes had destroyed these forgotten temples. [5]

Jat clans

In Jat History

  • Bat (बट) is a Jat clan found in Punjab[6]. Bat (बट) Jat clan is found in Multan, Pakistan. Bat is also a sept of Kashmiri Pandit, converted to Islam and found in the north-west submontane Districts of the Punjab. [7]. Bat is mentioned in Rajatarangini[8]. As per traditions in Rajatarangini, a king of Bat clan establishes a temple of God after his memory it used be called Bateshwar. It is a matter of research if any Bat clan king had been a ruler of this area.
  • Batesar: Batesar (बटेसर) gotra Jats are found in Rajasthan, Madhya Pradesh and Uttar Pradesh. (See - Batesar). It is a matter of research if at all they have any relation with Bateshwar.
  • Shoor people were the rulers of Bateshwar (बटेश्वर). They were so powerful that the entire country was named Shaursain (शौरसैन) after them. Shaursaini (शौरसैनी) people were at Bharatpur, whose one branch was known as Sewar/Sevar (सेवर). [9]

भूतेश्वर, म.प्र.

भूतेश्वर, म.प्र., (AS, p.675), भूतपूर्व ग्वालियर रियासत में पढावली नामक स्थान के निकट एक पहाड़ी क्षेत्र या घाटी जिसमें प्राचीन समय के अगणित छोटे-छोटे शिव या विष्णु मंदिर हैं. इनमें से वर्तमान समय में केवल भूतेश्वर शिव के मंदिर की मान्यता शेष है.[10]

बटेश्वर संस्कृत शिलालेख

इतिहासकार श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace में 100 से भी अधिक प्रमाण एवं तर्क देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। यह तेजाजी के नाम से बनाया गया था । इसके अनुक्रमांक 30 पर बटेश्वर शिलालेख का उल्लेख है।

30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता है। इस शिलालेख में, जिसे कि बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है (वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में संरक्षित है) में संदर्भित है, “एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।” शाहज़हां के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया| इस शिलालेख को ‘बटेश्वर शिलालेख’ नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर में पाया गया था| वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम ‘तेजोमहालय शिलालेख’ होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था| शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archaeological Survey of India Reports (1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा है, great square black balistic pillar which, with the base and capital of another pillar…. now in the grounds of Agra,…it is well known, once stood in the garden of Tajmahal”.

शूर: ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज[11] ने लिखा है ....शूर - इन्हें सौरसेनों के नाम से भी याद किया जाता है। महाभारत के बाद इनके भी दो दल हो गए थे। एक दल की राजधानी मथुरा थी। कुछ दिन बाद शौरसेनी (सिनसिनी) बना ली। इनमें से विजयदेव ने बयाना को अपनी राजधानी बनाया। इनका दूसरा समुदाय सोरों और बटेश्वर के बीच में आबाद था।

सूरसैन

ठाकुर देशराज[12] ने लिखा है कि -

खेमकरण सोगरिया शेर से लड़ते हुए

बटेश्वर के आसपास शूर लोगों का राज्य था। कुछ लोगों के मत से सिनसिनी के आसपास शूर लोग राज्य करते थे। एक समय उनका इतना प्रचंड प्रताप था कि सारे देश का नाम ही शौरसैन हो गया। समस्त यादव शौरसैनी कहलाने लगे। मध्यभारत की भाषा का नाम ही उनके नाम पर पड़ गया। आज वे संयुक्त प्रदेश और राजपूताने में सिहोरे (शूरे) सूकरे और सोगरवार कहे जाते हैं। शूरसैनी लोगों की एक शाख पहले सेवर (शिवर) भरतपुर के निकट आबाद थी। आसपास के अनेक गांवों पर उसका प्रभुत्व था। वंशावली रखने वाले भाटों ने सिनसिनवार और सौगरवारों को 10-12 पीढ़ी पर ही कर दिया है। यह गलत है। हां, वे दोनों ही यादव अथवा चन्द्रवंश संभूत हैं। सोगरवार लोगों में सुग्रीव नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध योद्धा हुआ है। उसने वर्तमान सोगर को बसाया था। उस स्थान पर एक गढ़ बनाया थ, जो सुग्रीवगढ़ कहलाता था। सुग्रीव गढ़ ही आजकल सोगर कहलाता है जो क्रमशः सुग्रीव गढ़ से सुगढ़, सोगढ़ और सोगर हो गया है। यहां पर सुग्रीव का एक मठ है। सारे सोगरवार पहले उसके नाम पर फसल में से कुछ अन्न निकालते थे। अब भी ब्याह-शादियों में सुग्रीव के मठ पर एक रुपया अवश्य चढ़ाया जाता है। इसी वंश में खेमकरण नाम का एक प्रचंड वीर उत्पन्न हुआ था। वह महाराज सूरजमल से कुछ समय पहले उत्पन्न हुआ था। औरंगजेब की सेना के उसने रास्ते बन्द कर दिये थे। अपने मित्र रामकी चाहर के साथ मिलकर आगरा, धौलपुर और ग्वालियर तक उसने अपना आतंक जमा दिया था। मुगलों के सारे सरदार उसके भय से कांपते थे। कहा जाता है वर्तमान भरतपुर उसी के राज्य में शामिल था। दोपहर को धोंसा बजाकर भोजन करता था। आज्ञा थी कि धोंसे के बजने पर जो भी कोई भाई सहभोज में शामिल होना चाहे, हो जाये। वीर होने के सिवा खेमकरण दानी और उदार भी था। कहा जाता है कि उसके पास हथिनी बड़ी चतुर और स्वामिभक्त थी। यह प्रसिद्ध बात है कि अडींग के तत्कालीन खूटेल शासक ने उसे भोजन में विष दे दिया था। जिस समय खेमकरण भोजन पर बैठा था उसे मालूम हो गया था कि भोजन में विष है, किन्तु कांसे पर से उठना उसने पाप समझा। भोजन करते ही हथिनी पर सवार होकर अपने स्थान सुग्रीवगढ़ को चल दिया। कहा जाता है कि विष इतना तीक्षण था कि वह हथिनी पर ही टुकड़े-टुकड़े हो गया। उसके मरने पर उसकी हथिनी भी मर गई। वह बलवान इतना था कि कटार से ही एक साथ दो दिशाओं से छूटे शेरों को मार देता था। मुगल बादशाहों ने उसे फौजदार का खिताब दिया था। सोगर का ध्वंश गढ़ उसके अतीत की स्मृति दिलाता है। यह स्थान संयुक्त-प्रदेश की सीमा के निकट राजस्थान में है।

Gallery

References


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