Maharaja Kartik

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(Redirected from Karttika)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Maharaja Kartik (महाराजा कार्तिक) was a Jat ruler born in Yuti vansha in Bundi area of Rajasthan around 4-6th century .

Ancestry of Kartika

ThotChandrasenaKartika (m. Gunaniwas) → Daruka (+Mukunda) → KuhalaDhunaka

History

James Todd obtained a Pali inscription about Jit or Jat tribe at village Ramchandrapura 3 kos (6 miles) east of Bundi state, which he sent to Asiatic Society London. The inscription reveals that there was a king Thot (थोत) born in Yuti (यूती) vansha. His son was Raja Chandrasain (चंद्रसैन), a powerful and beloved of his subject. The son of Chandrasain was Kartika (कार्तिक), renowned for his prowess. His wife was Gunaniwas (गुणनिवास) , who gave birth to two sons Mukunda (मुकुन्द) and Daruka (दारुक). Daruka produced son named Kuhal (कुहल). Kuhal produced son named Dhunak (धुनक), who achieved great works. He had war with Hill Meenas tribes and defeated and destroyed them. He along with his brother Dok worshipped gods and brahmanas. They founded a Sun-temple for the pleasure of his beloved wife. The temple will stand till the sumer suvarna mountain stands on the sand. Kuhal had founded this temple and a Maheshwar temple in east. The popularity of this was spread by Achal, son of Mahabali Maharaja Yashovarma. [1]

Period of Thot dynasty

The period of war of this dynasty with pahari Meenas is difficult to asses. If we assume that Jat ruler Kartik had war with Menander then the period of this comes about 150 BC. Menander had attacked areas upto Chittor. It is very likely that Kartika had a war with Menander. This way the period of his descendant becomes the first century. Achal was son of Maharaja Yashodharma of Mandsaur. Being neighbouring rulers and from same community Achal might have spread the fame of this dynasty. If we look into the period of Achal who made this temple popular it comes around third or fourth century or beyond it, as ruler Yashovarman was in Maukhari vansha in eighth century in Kannauj. He had sent a delegation to China in 731 AD. [2] Lack of records and history prior to sixth century prevents prom determining the exact period of the rule of Kartik and his descendants. According to Thakur Deshraj, We can presume their rule from fourth to sixth century. [3]

Ram Chandra Pura Inscription of Maharaja Kartik

रामचन्द्रपुरा शिलालेख

कर्नल टाड को जिट जाति सम्बन्धी एक शिलालेख बून्दी राज्य के तीन कोस पूर्व में रामचन्द्रपुरा नामक स्थान में कुवा खोदते समय मिला था. यह गाँव वर्तमान में कोटा शहर की सीमा में 'छावनी रामचन्द्रपुरा' नाम से जाना जाता है. यह एक खोदित लिपि है जिसको टाड ने 'रोयल एसियाटिक सोसायटी लंदन' की चित्रशाला में भेज दिया था. उसकी प्रतिलिपि उन्होने ’टाड राजस्थान’ में प्रकाशित की थी जो निम्नानुसार है:

"यूती वंश में राजा थोत ने जन्म लिया, उनकी यश किरण समस्त पृथ्वी मण्डल पर व्याप्त हुई.
राजा चन्द्रसैन पवित्र चित, अमित बलशाली और प्रजा-समूह के परमप्रिय पात्र थे. (१) जिन्होने अपने शत्रुओं को बिल्कुल दुर्बल कर दिया और युद्ध में तलवार चलाते समय ऐन्द्रजालिक की भान्ति विचित्र बाहुबल का परिचय दिया उसका विषय किस प्रकार कहा जा सकता है? प्रजा के प्रति बड़ा उदार व्यवहार करते और उस कारण से शुभमय फल पाते थे. उन विख्यात चन्द्रसैन के औरस से कार्तिक ने जन्म लिया. उन कार्तिक का बाहुबल सर्वत्र विख्यात था. मनुष्य समाज में उनकी बडी प्रशंसा थी. वह अपनी जिन राणी को प्राणों के सरिस चाहते थे उन रानी के विषय में किस प्रकार वर्णन किया जाये? जिस प्रकार अग्नि से शिखा को अलग नहीं किया जा सकता है, उसी प्रकार वह रानी अपने पति के साथ मिलित थी. वह सूर्य-किरण के समान थीं. उनका नाम गुणनिवास था. उनका आचरण उनके नाम के समान था. उन रानी के गर्भ से कार्तिक के माणिक्य के समान भुवनरंजन दो पुत्र उत्पन्न हुये. बड़े का नाम मुकुन्द छोटे का नाम दारुक था. उनके सौभाज्ञ्य को देखकर हृदय विदीर्ण होता था. उनके अनुगामी लोग अनन्त सुख भोगते थे. देवताओं को जिस भांति कल्पवृक्ष प्यारा है, वैसे ही ये दोनों भ्राता अपनी प्रजा के लिये प्रिय थे. वे प्रजा की प्रार्थना पूर्ण करके जिस वंश में जन्म लिया था, उस वंश की गौरव-गरिमा फैलाते थे. (कर्नल टोड ने यहां कई श्लोक निष्प्रयोजन समझकर उनका अनुवाद नहीं किया.)
दारुक के कुहल नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ. कुहल के औरस से धुनक का जन्म हुआ, उन्होने बड़े-बड़े कार्य सिद्ध किये. वह मनुष्य के हृदय के भाव अनुभव कर लते थे. उनका चित समुद्र के समान गंभीर था. उन्होने पहाड़ी मीना जाति को विताड़ित, परास्त और सर्वथा विध्वंश कर दिया. उनको फिर कहीं स्थान नहीं मिला. वह अपने छोटे भ्राता दोक के सहित देवता और ब्रह्मणों की पूजा करते थे. उन्होने अपने धन से अपनी प्राण प्यारी की प्रसन्नता के लिये सूर्य के उद्देश्य से यह मन्दिर स्थापना किया.
जब तक सुमेर सुवर्ण बालूका के ऊपर खड़ा है, तब तक यह मन्दिर विराजमान रहेगा. जब तक लक्ष्मी धन-दान करेंगी, तब तक उनका यश और मन्दिर अक्षय भाव से विराजमान रहेगा.
कुहल ने यह मन्दिर तथा इसके पूर्व पार्श्व में महेश्वर के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई थी. महावली महाराज यशोवर्मा के पुत्र अचल के द्वारा इसकी प्रसिद्धि फैली." (टाड परिशिष्ट -१)

ठाकुर देशराज[4] लिखते हैं कि इस शिलालेख के पढने से कम से कम तीन बातें साफ मालूम होती हैं -

पहाड़ी मीना जाति से इनका कब और कहां पर युद्ध हुआ, इसका पता लगान टेढा काम है. यदि हम यह कहें कि मिनण्डर के साथी मीना लोगों से जाट नरेश कार्त्तिक का युद्ध हुआ, तो मानना पड़ेगा कि वे ईस्वी सन 150 के पहले बूंदी के आस-पास के प्रदेश पर राज कर रहे थे क्योंकि कई इतिहासकार भारत पर मिनेण्डर के आक्रमण का समय ई.पू. 155 मानते हैं. [5] उसने चित्तौड़ तक धावा किया था. बहुत संभव है कि इसी समय आक्रमण में महराज कार्तिक का उनसे युद्ध हुआ हो.

इन लोगों तथा इनके मन्दिर की प्रसिद्धि फैलाने वाले यशोवर्मा के पुत्र अचल के समय पर जब ध्यान देते हैं तो इन लोगों का समय ई. सन की तीसरी-चौथी या इसके पहले का समय मानना पड़ेगा. हम यह मानें कि इस शिलालेख का यशोवर्मा वही हैं जो यशोधर्मा नाम से कहा गया है और मंदसौर के जाट शासक थे तो उनका समय 5-6ठी सदी का होता है. यह संभव है कि निकटवर्ती तथा सजातीय होने से यशोधर्मा के पुत्र अचल ने उनकी प्रसिद्धि फैलाई हो.

ऐतिहासिक सामग्री की कमी तथा ६ठी सदी के पहले का इतिहास अप्राप्त होने के कारण यह निश्चय करने में बाधा पड़ती है कि कार्तिक और उसके पूर्वज तथा वंशज किस समय में शासक रहे. फिर भी हम कह सकते हैं कि उनका समय 4-6ठी के बीच होना चाहिय.


Note - Bandhu Varma was contemporary of Kumargupta I and Samudragupta. He was ruler of Mandsaur before Huna victory of Yashodharman. There is a inscription about Bandhu Varma at Mandsaur. The silk workers had constructed Sun temple here which was repaired by Bandhu Varma in samvat 530 (473 AD). This facts indicates that both had constructed sun temples. Hence the ruler Yashodharman of Mandsaur's son Achala may be considered as person who spread the glory of this place.

See also

References

  1. James Todd, Appendix 1, Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, p.588-589
  2. Bharat Ke Prachin Rajvansh, II
  3. Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, p.589-590
  4. ठाकुर देशराज:जाट इतिहास, 1992,पृ.588-90
  5. जनार्दन भट्ट: बौद्ध-कालीन भारत,पृ.271

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