Jagdev Panwar

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Raja Jagdev Panwar

Jagdev Panwar was Panwar clan Jat Ruler of Umarkot, Dharanagari and Ujjain. The King of Dharanagari Jagdev Panwar died in V.S. 1191 (=1134 AD.) on Chatra Sudi Sunday.[1]

इतिहास

महाराजा जगदेव पंवार - अमरकोट के प्रसिद्ध राजा हुए जो पंवार गोत्री थे। गुजरात के जाट राजा सिद्धराज सोलंकी ने अपनी सुन्दर कन्या वीरमती का इनसे विवाह किया था। लोहचब पंवार गोत्र भी इन्हीं के वंशज हैं।[2]

शेषमा गोत्र के इतिहास में

शेषमा गोत्र के बड़वा की बही उज्जैन, धार की परमार या पंवार को शेषमा गोत्र से संम्बद्ध करता है जो आक्रमणकारियों द्वारा विस्तारित होकर अंततः शेषम ग्राम आ बसे।

शेषम ग्राम से शेषमा गोत्र का विस्तार निम्नानुसार हुआ: [3]

शेषमपलसानापूरांरुल्याणा माली[4]

नव आबाद गांव रुल्याणा माली (22 अप्रैल 1784 ई. गुरुवार) के प्रथम प्रवर्तक पीथा माली के पुत्र बाला (बालू) माली की तीन बेटियां (रुकमा, सामा व जैती) थी जिनमें से बड़ी बेटी रुकमा पूरां छोटी लाला शेषमा के साथ परणाई गई। रुल्याणा माली गांव के सारे शेषमा लाला शेषमा के ही वंशज हैं।[5]

अग्नि-वंशजगदेव पंवार के वंशज शेषमा शिप्रा नदी के तट पर बसी उज्जैन नगरी से निकले थे।[6]

डॉभ ऋषि के अवतार जगदेव पंवार के वंशजों (पौत्रों-प्रपौत्रों) में पवार जाति त्याग दी और यही लोग आगे चलकर शेषमा कहलाए। [7]

महमूद गजनवी सोमनाथ के शिव मंदिर को लूटकर मालव देश में आ धमका। महमूद गजनवी के इस आक्रमण में मालवा की पवार जाति के विध्वंस में विस्तारित हुई, पवार जाति के जो लोग किसी क्षेत्र विशेष में अवशेष रहे वही आगे चलकर शेषमा हुए।[8]

विक्रम संवत 1191 (=1134 ई.) चैत्र सुदी रविवार को धारा नगरी के राजा जगदेव पंवार ने अपना सिर समर्पित कर दिया।[9]

महमूद गजनवी के आक्रमण में सोमपाल पवार के कुछ वंशज शेष रहे जो भागकर शेषम ग्राम आ पहुंचे और यही वंशज शेषमा कहलाए[10]

मालवा से आकर कुछ शेषमा शेषम ग्राम बस गए, शेषम में इन्होंने अपना किला बनवाया और यहां से वे और 40 गांव में फैल गये। [11]

शेषम ग्राम को छोड़कर वे 40 गांव में फैल गए, इसी कड़ी में हरीपुराजीणवास में भी बसे। [12]

शेषमा वही गोत्र है जिसका राजा भोज पवार था। उज्जैनधारा-नगरी तथा काली कंकाली जगदेव की कथा भी इसी वंश की गाथा है। [13]

तुर्क शेषम ग्राम भी आ पहुंचे और घोर आतंक मचा दिया। इसी आतंक ने इनका शेषम ग्राम फिर छुड़ा दिया। [14]

शेषम से आकर जीणवास बसे शेषमाओं पर भी तुर्कों ने पुनः हमला कर दिया। एक दिन जब रात की एक घड़ी बाकी थी और भौर के 4:00 बजे थे तो जीणवास के शेषमा आक्रमणकारियों से चारों ओर से गिर गए।[15]

तुर्क शेषमाओं की गायों की मारकाट करने लगे ऐसी स्थिति में जीणवास का देवा शेषमा 'होनी हो सो होय' जानकर मुकाबले को आगे बढ़ा।[16]

देवा शेषमा मौत बनकर दुश्मन पर टूट पड़ा। देवराणा का जोहड़ा आज भी उसका यह दांव याद दिलाता है।[17]

आज भी हर्ष पर्वत के पास बसे जीणवास में देवा शेषमा की समाधि उसकी वीरता का अमिट निशान है।[18]

देवा शेषमा अपने वंशजों को कह गया कि जगदेव पंवार के वंशजों! उसका यह भाव मत भूलो कि अपने धर्म की रक्षा के लिए उसने प्राणोत्सर्ग किया है, अब आप के हवाले ही इस वंश की नाव है जिसे आगे खेना है।[19]

अत: अग्नि वंश के विक्रम के वंशजों! अपने इष्ट महाकाल को दिन रात याद करो।[20]

ठाकुर देशराज लिखते हैं

उमरकोट - सिन्ध और राजपूताना के मध्य में यह स्थान है। इस पर हुमायूं के समय तक पंवार गोत्री जाटों का राज्य था। पंवार शब्द के कारण कर्नल टाड ने उसे राजपूतों का राज्य बताया है। किन्तु जनरल कनिंघम ने 'हुमायूं नामा' के लेखक के कथन का हवाला देकर उसे जाट पंवार लिखा है। टाड राजस्थान के कथन का प्रतिवाद करते हुए जनरल कनिंघम लिखते हैं - “किन्तु हुमायूं की जीवनी लिखने वाले ने प्रमार के राजा और उनके अनुचरों का 'जाट' के नाम से परिचय दिया है।”1 यह वंश धारा नगर के जाट-परमारों से सम्बन्धित रहा होगा। क्योंकि धारा नगर में जगदेव नाम का जाट राजा राज्य करता था और प्रमार जाट था। बिजनौर के कुछ जाट अपने को धारा नगर के महाराज जगदेव की संतान बताते हैं2, जो कि वहां से महमूद गजनवी के आक्रमण के समय यू० पी० की ओर बढ़ गए थे। प्रमार भी 'अवार' की भांति एक शब्द है। जाट एक समय अवार कहलाते थे, जिसका कि भारत में अवेरिया से सम्बन्ध है। इसी भांति एक प्रदेश का नाम पंवार-प्रदेश था, जो कि धारा नगर और उज्जैन के मध्य में था और जो प्रान्त पंवार लोगों के बसने के कारण प्रसिद्ध हुआ।

इसी तरह से सिन्ध के अन्य अनेक स्थानों पर जाट-राज्यों की सामग्री मिल सकती है, किन्तु उसके लिए महान् साधन और खोज की आवश्यकता है।


1. Memoirs of Humayoon P.45 ।
2. ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न प्राविंसेज एण्ड अवध।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-705

दलीप सिंह अहलावत

दलीप सिंह अहलावत[21] लिखते हैं ....

4. जगदेव पंवार - इसकी माता सोलंकी थी। सभी राजदरबारी एवं जनता इसे ही राजा बनाना चाहते थे। इस राजकुमार का विवाह टोंक टोडा के चावड़ा (चाबुक) जाटवंशी राजा की पुत्री वीरमती से हुआ। इससे बघेली रानी और अधिक जलने लगी। पिता एवं राजमाता बघेली की कृपादृष्टि न होने से जगदेव पंवार ने अपने अनुयायियों सहित धारा नगरी छोड़ दी। जगदेव


आधार पुस्तकें - जाट इतिहास पृ० 701, लेखक ठा० देशराज; जाटों का उत्कर्ष पृ० 372-374, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री; भारत का इतिहास (प्री-यूनिवर्सिटी कक्षा के लिए) पृ० 169, लेखक अविनाशचन्द्र अरोड़ा।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-553


पंवार अपनी पत्नी वीरमती के साथ सम्राट् सिद्धराज सोलंकी के पास अनहिलवाड़ा पाटन पहुंच गया। उस सिद्धराज राजा ने जगदेव पंवार की वीरता सुन रखी थी। उस राजा ने जगदेव पंवार को 60,000 रुपये प्रतिमास वेतन पर अपने यहां रख लिया।

वहां रहते हुए चार वर्ष में जगदेव पंवार ने वीरमती से दो पुत्र उत्पन्न किए, जिनके नाम जगधावल और बिजधावल थे। जगदेव पंवार ने राजा सिद्धराज की तन मन से सेवा की और एक सच्चे आज्ञाकारी एवं देशभक्त का प्रमाण दिया। सिद्धराज सोलंकी बड़ा प्रसन्न हुआ तथा उसने जगदेव पंवार से अपनी बड़ी राजकुमारी का विवाह कर दिया और 250 गांव दहेज में दे दिये। जगदेव की तीसरी शादी कच्छ के राजा फूल के बेटे लाखा की छोटी पुत्री से हो गई। यह कीर्ति कथा जब धारा में महाराज उदयादित्य को मिली तो उन्होंने भी अन्त समय जगदेव पंवार को ही धारा का शासन भार देकर संसार से विदाई ली। 15 वर्ष की आयु में पाटन जा रहने पर, 18 वर्ष सिद्धराज सोलंकी की सेवा करने के उपरान्त, 52 वर्ष पर्यन्त धारा नगरी पर शासन करते हुए जगदेव पंवार ने विद्वत्ता में तो नहीं किन्तु शूरवीरता और शासन क्षमता में राजा भोज को भी भुला दिया। धारा नगरी छोड़ने पर इस वंश के बहुत लोग इसके अनुयायी हो गये, जो बाहिर निकलकर अपने को जगदेव पंवार की औलाद बताने लगे। दूसरे शब्दों में यह समझो कि पंवार या परमार जाटों का एक बड़ा संघ (दल) जगदेव पंवार के नाम पर अपने को जगदेव पंवार वंशज कहने लगा। बाद में ये कुछ लोग गुर्जरों में मिल गये और बहुत से राजपूत संघ में मिलकर अपने को राजपूत कहने लगे। मुग़लकाल में बहुत से राजपूत परमारों ने मुसलमान धर्म अपना लिया। आज भी इस वंश के लोग हिन्दू जाट, हिन्दू राजपूत तथा मुस्लिम धर्मी भी हैं। परन्तु इनकी सबसे अधिक संख्या हिन्दू जाटों की है।

पंवार वंशज राजाओं ने मालवा पर लगभग 450 वर्ष तक 24 पीढ़ी राज्य किया। जब यहां पर मुसलमान बादशाह मुहम्मद तुगलक का अधिकार हो गया तब पंवारों की बहुत बड़ी जनसंख्या मालवा को छोड़कर देश के अन्य भूभागों में जा बसी। तब पंवार राजपूतों का राज्य रणथम्भौर, विजोल्या (मेवाड़), छत्तरपुर (बुन्देलखण्ड), टेहरी (उत्तरप्रदेश) और मालवा में राजगढ़, नरसिंहगढ़ पर रहा।

राजा जगदेव पंवार के वंशज जाटों के गांवककड़ीपुर, नाला, भारसी, |भनेड़ा, एलम, ओली माजरा, सबगा, दोघट, भगवानपुर, कान्धड़, दरीसपुर, नगौड़ी, दान्तल, जटौली, टिकरौल, लण्ढोरा, भैंसवाल, बसी, सुन्हेड़ा, मौलाहेड़ी, घासीपुर, बेगर्जपुर आदि मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर जिलों में ये गांव प्रमुख हैं।

महरौली देहली के पास शाहपुरजट्ट, सोनीपत के पास सैदपुर, मुरादाबाद में कांठ के समीप रैली, पालनपुर, बिजनौर में मुगलवाला गांव पंवार जाटों के हैं। राजस्थान में पंवार जाटों की बड़ी संख्या है।

मानवेन्द्र सिंह तोमर फेसबुक

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राजा जगदेव पंवार परिचय

राजा जगदेव राजा उदयादित्यके पुत्र थे राजा उदयादित्य के चार पुत्र रणधवल, लक्ष्यदेव, नरवर्म देव, जगदेव तथा एक पुत्री श्यामल देवी थी उदयादित्य राजा भोज का भाई था जो जयसिंह के बाद धारा नगरी पर शासक हुआ।महाराजा जगदेव "जाट " जाति मे सुप्रसिद्ध राजा हूआ, जैनाड (अदिलाबाद तेलंगना) से प्राप्त अभिलेखानुसार-

"यशोदयादित्य नृप: पितासिदैव पितृव्यस्त च: भोजराज:। विरेजंतुयों वसुंधिपत्य प्राप्तप्रतिष्ठाविद पुष्पदंतो।।६

तेलंगना के आदिलाबाद समीप जैनड से प्राप्त अभीलेख मे जगदेव के सेनापती दहिया आमात्य लोकार्क का विवरन मिलता है। श्लोक ७ से १२ मे जगदेव द्वारा क्रमश् आंध्र प्रदेश, चक्रदुर्ग (बस्तर) दोरसमुद्र (मैसुर- हलेविद) पाटन (गुजरात) त्रिपुरी चेदी नरेश (जबलपुर) इत्यादी पर विजय संग्रामो का उल्लेख मिलता है। परमार नरेश अर्जुन वर्मन रचित "रासिक संजिवनी" पृष्ठ ८ पर पाया जाता है की जगदेव अत्यंत रुपवान था। महाविर था। सद्गुणी, सदाचारी, धर्मपरायन, तथा स्वामीभक्त था। जगदेव ने अपने राज्यकाल मे ७ प्रकार के सोने के सिक्के प्रचलन मे लाए थे जो नागपूर और हैदराबाद के संग्रहालय मे रखे हूए है। जगदेव पंवार सोलंकी /सोरोत जाट राजा की कन्या से हुआ राजा जगदेव के बाद उसके गादी पर उसका जेष्ठ पुत्र जगधवल बैठा राजा जगदेव का क्षेत्र उत्तर, पश्चिम, मध्य और दक्षिण भारत तक फैला हुआ था, इतिहासकारो में भले ही मतभेद हो पर राजा भोज के भतीजे महराज जगदेव को आज भी महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छतीसगृह, गुजरात, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचलप्रदेश आदि राज्यों में आज भी पूजा जाता है. इनका कार्यक्षेत्र पुरे भारत में फैला था और वे किसी एक जगह पर स्थिर नहीं थे Iराजा जगदेव की मर्त्यु ११५१ ईशवी के आसपास माना जाता है जगदेव पंवार के सूजन सिंह और अरिया सिंह के वंशज आजकल मथुरा में पचहेरा पंवार कहलाते है जबकि चौधरी हेमराज पँवार के वंशज शबगा में निवास करते है बिजनौर के कुछ जाट अपने को धारा नगर के महाराज जगदेव पंवार की संतान बताते हैं, जो कि वहां से महमूद गजनवी के आक्रमण के समय यू० पी० की ओर बढ़ गए थे


राजा जगदेव पंवार जन्म दिवस उत्सव बसंत पंचमी को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है जिनके वंशज आज भी मौजूद है राजा उदयादित्य पंवार के तीन पुत्र नरवर्मन,लछ्मण देव,जगदेव और एक पुत्री थी। राजा जगदेव अपनी वीरता दान के लिए जग प्रसिद्ध है। राजा जगदेव की वीरता के बारे मेंआचार्य मेरुतंग सुरी ने प्रबंध चिंतामनी मे जगदेव पर एक स्वतंत्र अध्याय लिखा है। राजा जगदेव आंख झपकते ही तलवार से 40 दुश्मन सैनिको को मौत के घाट उतार देता था। जैनाड (अदिलाबाद तेलंगना) से प्राप्त अभिलेखानुसार- "यशोदयादित्य नृप: पितासिदैव पितृव्यस्त च: भोजराज:। विरेजंतुयों वसुंधिपत्य प्राप्तप्रतिष्ठाविद पुष्पदंतो।।६ अर्थात- जिसका (जगदेव) पिता नरेश उदयादित्य था और भोजराज पितातुल्य था; जिन्होने वसुंधरा स्वामी (परमार वंश को) बन प्रतिष्ठा दिलाई। इनकी दान शीलता के किस्से जग प्रसिद्ध है। राज गद्दी के लिए जब भाई ही भाई का कत्ल कर देता था। तब राजा जगदेव ने अपने पिता उदयादित्य ने अपने छोटे पुत्र जगदेव को उज्जैनी धार गद्दी का उत्तराधिकारी घोषित किया लेकिन जगदेव ने अपने ब बड़े भाई के पक्ष में गद्दी का त्याग कर दिया था। राजा जगदेव ने उत्तरभारत में उदयादित्य की आयरखेड़ा की गद्दी को सुशोभित किया था। इनके वंश यहां निवास करते हैं। पंवार खाप अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध है।पंवार जाट सिख भी अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध है। शीश का दानी जगदेव कहते हैं कि इनकी दानशीलता को परखने के लिए कुलदेवी ने भाटनी के रुप में आकर इनकी परीक्षा ली थी। संवत इग्यारह इकांणवै,चैत तीज रविवार। सीस कंकाळी भट्ट नै,जगदे दियो उतार।। शब्दार्थ - विक्रम संवत् 1151 चैत्र सुदी तीज रविवार को जगदैव पवार नै अपना मस्तक (सिर ) दान स्वरूप माँ कंकाली को अपनै हाथ से काटकर दै दिया था जय हो दानवीर जगदैव पँवार

Source - AKHIL Bhartiya JAT Mahasabha, Fecebook Post

पंवार गोत्र का इतिहास

लेकखक : मानवेन्द्र सिंह तोमर

पंवार गोत्र परमार गोत्र का भाषीय रूपांतर है जो एक चन्द्रवंशी जाट गोत्र है इस गोत्र कि उप गोत्र शाखा निम्न है मोहन , खड़वान ,मौण पंवार , पचार, लोहचब पंवार , पंवार जाट गोत्र का इतिहास भोज पंवार जाट थे, इसके प्रमाण -

(i) सिंध और राजस्थान के मध्य में उमरकोट एक स्थान है। इस पर बादशाह हुमायूं के समय तक पंवार गोत्री जाटों का राज्य था। वे लोग धारा नगर के जाट पंवार या परमारों से सम्बन्धित थे। पंवार शब्द के कारण कर्नल टॉड ने उमरकोट के राज्य को राजपूतों का राज्य बताया है। किन्तु जनरल कनिंघम ने “हुमायूं नामा” के लेखक के कथन का हवाला देकर उसे जाट पंवार लिखा है। टॉड राजस्थान के कथन का प्रतिवाद करते हुए जनरल कनिंघम साहब लिखते हैं - “किन्तु हुमायूं की जीवनी लिखने वाले ने परमार राजा और उनके अनुचरों का जाट के नाम से परिचय दिया है।” (Memoirs of Humayoon, P. 45)। (ii) धारा नगर में जगदेव नाम का जाट राजा राज्य करता था जो कि परमार जाट था। बिजनौर के कुछ जाट अपने को धारा नगर के महाराज जगदेव पंवार की संतान बताते हैं। (ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स आफ़ दी नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज एण्ड अवध)। (३ ) इतिहासकारो के अनुसार पंवार जाट लोग आबू पर हुए अग्निकुंड यज्ञ से राजपूत संघ में मिले इसलिए राजपूतो में इनको अग्निकुण्डी राजपूत बोलै जाता है भलेराम बेनीवाल के अनुसार पंवार चन्द्रवंशी गोत्र है। पंवारो का प्रथम राज्य मालवा में माना गया है तथा राजा भोज इस कुल के सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा हुये हैं।कुछ इतिहासकार जगदेव पंवार को महत्वपूर्ण मानते हैं। इसने ५० वर्ष तक राज्य किया था।. इस वंश के कुछ लोग अग्नि कुण्ड के बाद राजपूत संघ में मिल गये और राजपूत कहलाने लगे. पंवार वंश का आरम्भ ईशा पूर्व माना गया है. राजा भोज का मालवा में शासन रहा. वह बहुत दानी और पराक्रमी थे। इस वंश का मालवा में ५०० वर्ष तक राज्य रहा। पंवार गोत्र का पहला महान राजा मुंज देव को माना गया है।कुछ इतिहासकार इस गोत्र का इलाका खैबर घाटी को मानते हैं। कर्नल टाड उमरकोट को राजपूतों का राज्य मानते हैं जबकि जनरल कनिंघम हुमायूंनामा के लेखक के हवाले से उमरकोट को पंवार जाटों का राज्य लिखते हैं.

डॉ मोहन लाल गुप्ता प्रबंध चिंतामणी के हवाले से लिखते हैं कि परमार राजा सीयक द्वितीय के कोइ पुत्र न था।एक दिन उसे एक बालक मु्ंज घास पर पड़ा मिला।राजा बालक को महल ले आया तथा उसका लालन-पालन पुत्र की भांति किया।मुंज घास पर मिलने के कारण उसका नाम मुंज रखा गया।मुंज को गोद लिये जाने के बाद राजा सीयक की रानी ने सिंधुराज नामक पुत्र को जन्म दिया।किन्तु सीयक मुंज को इतना प्रेम करता था कि उसने मुंज को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया।

पंवार रियासत के बारे में ठाकुर देशराज लिखते हैं -

सिन्ध और राजपूताना के मध्य में यह स्थान है। इस पर हुमायूं के समय तक पंवार गोत्री जाटों का राज्य था। पंवार शब्द के कारण कर्नल टाड ने उसे राजपूतों का राज्य बताया है। किन्तु जनरल कनिंघम ने 'हुमायूं नामा' के लेखक के कथन का हवाला देकर उसे जाट पंवार लिखा है। टाड राजस्थान के कथन का प्रतिवाद करते हुए जनरल कनिंघम लिखते हैं - “किन्तु हुमायूं की जीवनी लिखने वाले ने परमार (पंवार ) के राजा और उनके अनुचरों का 'जाट' के नाम से परिचय दिया है।”यह वंश धारा नगर के जाट-परमारों से सम्बन्धित रहा होगा। क्योंकि धारा नगर में जगदेव नाम का जाट राजा राज्य करता था और प्रमार जाट था। ।

पंवार गोत्र के उपगोत्रा शाखाए

मोहन पंवार उप गोत्र - यह शाखा पंजाब के कुछ गॉवो में निवास करते है जो मुख्य रूप से पंवार ही है और पंवारो विवाह सम्बन्ध नहीं करते है

मौण पंवार- मौण गोत्र पंवार की एक उप-शाखा है. काफ़ी समय पहले शेरखां खेड़ी गांव की मौणी देवी सत्ती हो गयी थी. इस कारण यहां के लोगों ने अपने आप को मौण लिखना शुरु कर दिया. इनका मूल गोत्र पंवार है. शेरखां खेड़ी और मटौर गॉव - जिला कैथल में मौण गोत्र के जाट आबाद हैं खड़वान पंवार -यह पंवार गोत्र कि उप शाखा है जो खड़क सिंह के नाम पाए खड़वान कहलाते है यह गोत्र खंडार तहसील जिला सवाई माधोपुर और कोटा जिले में निवास करता है

लोह्चब पंवार - यह गोत्र अब कुछ जगहो पर अलग गोत्र बन चूका है और पंवार गोत्र में शादी करने लगा है मुग़ल काल में पंवार जाट अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे वो दुश्मन को लोहे के चने चबा देते थे यानि वो दुश्मन को युद्ध में हरा देने में माहिर थे इसलिए उनको लोहचब उपाधि मिली जो बाद में एक गोत्र बन गया है यह लोहचब पंवार दिल्ली में बामड़ौली ,औचंदी गॉव में और हरियाणा में सोनीपत के झिंझोली,कतलुपुर और झज्जर के बुपणियां ,शाहपुर में निवास करता है राजस्थान के नागौर और सीकर में भी लोहचब पंवार निवास करते है

पचार - यह पंवार का बिगाड़ा रूप है जो मथुरा जिले में उधर,आयरा खेड़ा,दुलेटियाँ,खेरिया,बहावीन गॉव में निवास करता है इस गोत्र के गॉव राजस्थान में बहुत संख्या में है जो नागौर बाड़मेर , बीकानेर टोंक जिलो में है इस गोत्र कि शादी अब पंवारो में होती है

पंवार गोत्र के कुछ गॉव


उत्तर प्रदेश - मुज्जफ़रनगर,शामली सहारनपुर, जिलों में पंवार गोत्र के गांव टिकरौल(सहारनपुर),भनेड़ा, सबगा, दोघट, कान्घड़, नगौड़ी, जटौली, ककड़ीपुर, , एलम(आलम) , छासीपुर बेजलपुर ,बढेड़ी,नाला, भैसवाल, डोगर,गन्देवड़ा ,घासीपुरा ,, ककड़ीपुर , खेड़ीगंज , मादलपुर , नंगली महासिंह , ओलीमाजरा , पीनना,राजपुर छाजपुर, राझड़ , सबका ,मोलाहेड़ी ,पंवार खेड़ा ,

मेरठ जिले में सकौटी ,

बागपत जिले में भारसी ,सुनहेड़ा ,भगवानपुर ,बसी, पेंगा(ग़ाज़ियाबाद ),रोली कलां (ग़ाज़ियाबाद )

बुलंदशहर जिले में बुटाना,प्रानगढ़, बूटीना, रोड़ा,करीमपुर,

मुरादाबाद में कांठ के समीप रैली, पालनपुर, बिजनौर में मुगलवाला मथुरा जिले में पचहेरा पंवारो के 70 ग्राम है उधर ,आरया खेड़ा ,दुलेटिया ,बहावीन ,और पिपरामई मुख्य गाँव है

हरियाणा में लोहचब पंवार ,खुब्बड़ पंवार ,मौण पंवार के ग्राम चन्दौली(पानीपत ),बुपानिया ,शाहपुर ,डिमाना खचरौली(झज्जर ),चौधरी बास,खेरी लोहचब किरमरा,पनहारी (हिसार ),कैमला(करनाल ) .झिंझौली ,कतलूपुर ,सैदपुर (सोनीपत ),बळहम्बा ,कन्हेली (रोहतक ),पधाना ,गढ़ी मलाड (जींद ),इंद्री और कालियका ( नूह तहसील जिला मेवात ) , ,सालरपुर माज़रा ,सिवांका (गुड़गांव/गुरुग्राम ) दानीपुर ,जंधेड़ी ,कालवाड़ ,सोंटा (अम्बाला ),तंगोली (कुरुक्षेत्र ),कासनी ,बजीणा,किरावड,मंसरवास,खोरड़ा (भिवानी ) .टोटाहेडी ,बुढवाल (महेंद्रगढ़ )

मेवात जिले में कुछ पंवार मुस्लिम मेव भी है जो अपना पूर्वज जाट को मानते है जो पल्ला तहसील नूह जिला मेवात में है और झिरका(मेवात ) के नसीरबास ,राजाका में भी पंवार मुस्लिम है मानस ,शेरखां खेड़ी और मटौर गॉव - जिला कैथल में मौणपंवार गोत्र के जाट आबाद हैं अम्बाला छावनी के पास खुब्बड पंवार जाट के 5 गांम है। करधान, शाहपुर, मच्छौंडा, उगाडा, बाडा यमुनानगर में गुंडियाणा कनीपला दिल्ली में शाहपुर जाट ,नेब सराय ,बेर सराय

राजस्थान में गॉव लोहचब /लोमरोड़ पंवार ,मोगर पंवार सवाईमाधोपुर--गोकलपुरा ,बोरुंदा , नागौर--कचोलिया ,बड़गांव ,भड़ाना ,चंदा रूण ,डाबड़ा ,गोवा खुर्द ,खजवाना ,जोधा पालड़ी टहला ,पांचवा ,लोहछाब की ढाणी ,मामडोली ,नामडोली ,बेसरोली अलवर--खानपुर जाट

जोधपुर--बच कलां ,नाड़सर ,सियारा ,नानां ,लावड़ी ,कोसाना

टोंक --बड़ा मोजा ,छोटा मोजा बाड़मेर --गरल ,लोमरोडो का तला

पाली --फलका अजमेर --रूपाहेली

मध्यप्रदेश लोमरोड पंवार और मोगर पंवार श्योपुर --राडेप धार --- तलवंडी ,हरदा खुर्द रतलाम --- घटवास ,नारायणगढ़ ,सैलाना ,सीखेड़ी

देवास -- बोलोडा ,देवास हरदा --आदमपुर ,बिछापुर ,

उज्जैन --डंगवाड़ा

External links

References

  1. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.350
  2. Hawa Singh Sangwan: Asli Lutere Koun/Part-I,p.60
  3. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.349
  4. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.349
  5. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.350
  6. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.350
  7. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.350
  8. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.350
  9. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.350
  10. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.350
  11. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
  12. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
  13. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
  14. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
  15. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
  16. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
  17. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.352
  18. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.352
  19. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.352
  20. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.352
  21. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter VI,pp.553-554

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