Sheshma
Sheshma (शेषमा) Sheshama (शेषमा) Sheshmo (शेषमो) [1]Sesma (सेस्मा) Seshma (सेष्मा) Sisama (सीसमा) Shesma (शेस्मा) Seswan (सेसवान) [2][3] Sheshwan (शेश्वां) Shesmo (शेसमो)/Sesamo (सेसमो)[4] Shesham (शेषम)/Shekham (शेखम)[5] Shishma (शिशमा) gotra Jats are found in Haryana, Rajasthan,[6] and Bhopal district of Madhya Pradesh.
Origin
They are Nagavanshi, descendants of Sheshanaga (शेषनाग). [7] Sheshanaga vansha people joined Jat Federation and were known as Sheshma.[8]
Jat Gotras Namesake
Amasra is a small Black Sea port town in the Bartın Province, Turkey, formerly known as Amastris. Pliny has also mentioned it as Sesamon. [9]
Jat Gotras Namesake
- Sesamo = Sesamos (Pliny.vi.35)
- Sesma = Sesambri (Pliny.vi.35)
Mention by Pliny
Pliny[10] mentions Ethiopia.... There are the Sesambri also, a people among whom all the quadrupeds are without ears, the very elephants even. On the African side are the Tonobari, the Ptoenphæ, a people who have a dog for their king, and divine from his movements what are his commands; the Auruspi, who have a town at a considerable distance from the Nile, and then the Archisarmi, the Phaliges, the Marigerri, and the Casmari.
Mention by Pliny
Pliny[11] mentions Ethiopia....On leaving Syene1, and taking first the Arabian side, we find the nation of the Catadupi, then the Syenitæ, and the town of Tacompsos2, by some called Thatice, as also Aramasos, Sesamos, Sanduma, Masindomacam, Arabeta and Boggia, Leupitorga, Tantarene, Mecindita, Noa, Gloploa, Gystate, Megada, Lea, Renni, Nups, Direa, Patiga, Bacata, Dumana, Rhadata, at which place a golden cat was worshipped as a god, Boron, in the interior, and Mallos, near Meroë; this is the account given by Bion.
1 As to Syene and the Catadupi, see B. v. c. 10.
2 This place was also called in later times Contrapselcis. It was situate in the Dodecaschœnus, the part of Æthiopia immediately above Egypt, on an island near the eastern bank of the river, a little above Pselcis, which stood on the opposite bank. It has been suggested that this may have been the modern island of Derar. The other places do not appear to have been identified, and, in fact, in no two of the MSS. do the names appear to agree.
History
Hukum Singh Panwar (Pauria)[12] writes that: Here we refer again to Varahamihira who gives somatometric traits or anthropometrical description of five great men Hansa, Sasa, Rucaka, Bhadra and Malavya to serve as specimen. Varahamihira divides human beings (Indians) into five standardised types to guide sculptors and gives details of their physical features for the benefit of those practising the art of sculpture in fine arts181. The names of the five men chosen by Varahamihira point to their respective
The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations: End of p.144
homonymous tribes, which are described by the classical writers and the Epics. The physionomical details of the five great men are given below.
Hukum Singh Panwar (Pauria)[13] writes that: Sasa, (Sese, Sse, Saso, Sasaka, Sakas), slightly projecting and thin teeth, thin nails, large eyeballs, fleshy cheek, too much narrow and slender waist, not very stout, age 70 years and is said to be a border-chief (Pratyantika) or vassal (Mandalika) with height, span and girth of 99 angulas or 72.9 inches each.
During first century A.D., Aspavarman, son of Vijayamitra and grandson of Indravardhan is said to have been the Viceroy of Azes II in a district of north-western India but later served under Gondopharnes, followed by his nephew Sasa, who later served Pacores successor of Gandopharnes190. Most probably the Sasa family Was from Indo-Parthian who were undoubtedly a section of the Scythians, who were also known as Sasa, Sese, Sse, Sasak or Sakas in history. Even row the Jats call the north-western frontier people as Sasse and Khakkhai (Afghans and Pathans). Prof. E.J. Rapson191 refers to a number of Sasa Strategoi (senapatis), the suffixes like 'Varman' and 'Daua 'in whose names show that they were Hinduised Saka chiefs under the Parthian rulers of N.W. India. Interestingly, there are Shak, Sakwan, Saklan, Sheshwan, Madra-Maderna, Mall, Malli and Hans gotras (tribes) in the Jats as well as Ros or Rosai (Rucak) in them. The Sasas may be later Sasodias.
शेषमा गोत्र का इतिहास
शेषमा गोत्र का इतिहास इस पुस्तक के पृष्ठ 348-359 से लिया गया है - रुल्याणा माली (झाँकता अतीत), लेखक - रघुनाथ भाखर (Mob:7303286310, भास्कर प्रकाशन सीकर, वर्ष 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0
[पृ.348]: शेषमा गोत्र के जाटों की उत्पत्ति नागवंशी राजा शेषनाग (110 BC-90 BC) से हुई मानी जाती है। शेषनाग वंश पूर्णरूप से जाट-संघ में शामिल हो गया जो आज शेषमा जाट गोत्र के रूप में जाने जाते हैं। [14]
10वीं सदी में गुर्जर-प्रतिहार शक्ति के पतन के पश्चात मालवा में परमार वंश का उदय हुआ। परमारों की अनेक शाखाएं थी जिनमें उज्जैन-धारा नगरी के परमार विख्यात थे। राजा भोज (1000-1055 ई.) ने उज्जैन के स्थान पर धारानगरी को राजधानी बनाया व अनेक तालाब, मंदिर आदि बनवाये। 12 वीं सदी तक परमार वंश इतिहास के पटल से लुप्त हो गया। 1234 ई. में इल्तुतमिश ने मालवा को लूट लिया। और बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने इनकी शक्ति को समाप्त कर दिया। [15]
[पृ.349]: ठाकुर देशराज[16] लिखते हैं - उमर कोट सिन्ध और राजस्थान के मध्य में यह स्थान है। इस पर हुमायूं के समय तक पंवार गोत्री जाटों का राज्य था। पंवार शब्द के कारण कर्नल टाड ने उसे राजपूतों का राज्य बताया है। किन्तु जनरल कनिंघम ने 'हुमायूं नामा' के लेखक के कथन का हवाला देकर उसे जाट पंवार लिखा है। टाड राजस्थान के कथन का प्रतिवाद करते हुए जनरल कनिंघम लिखते हैं - “किन्तु हुमायूं की जीवनी लिखने वाले ने प्रमार के राजा और उनके अनुचरों का 'जाट' के नाम से परिचय दिया है।”[17] यह वंश धारा नगर के जाट-परमारों से सम्बन्धित रहा होगा। क्योंकि धारा नगर में जगदेव नाम का जाट राजा राज्य करता था और प्रमार जाट था। बिजनौर के कुछ जाट अपने को धारा नगर के महाराज जगदेव की संतान बताते हैं[18], जो कि वहां से महमूद गजनवी के आक्रमण के समय यू० पी० की ओर बढ़ गए थे। प्रमार भी 'अवार' की भांति एक शब्द है। जाट एक समय अवार कहलाते थे, जिसका कि भारत में अबेरिया से सम्बन्ध है। इसी भांति एक प्रदेश का नाम पंवार-प्रदेश था, जो कि धारा नगर और उज्जैन के मध्य में था और जो प्रान्त पंवार लोगों के बसने के कारण प्रसिद्ध हुआ।[19]
इन आक्रमणों के फलस्वरूप, परमार जाति को उसकी मूल स्थली उज्जैन-धारानगरी आदि से खदेड़ दिए जाने के कारण, अपने अस्तित्व को संकट में पाकर विस्तारित होकर पँवार लोग उत्तर की ओर बढ़े। कुछ लोग राजस्थान, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार तक फैले। राजस्थान में बसने वाली शेषमा जाति इन्हीं परमार या पँवार की वंशज मानी जाती है। [20]
नीचे शेषमा गोत्र के बड़वा की बही से कुछ विवरण दिया जा रहा है। बड़वा का विवरण भी उज्जैन, धारा की परमार या पवार जाति को शेषमा वंश से संम्बद्ध करता है जो आक्रमणकारियों द्वारा विस्तारित होकर अंततः शेषम ग्राम आ बसे। शेषम ग्राम से शेषमा गोत्र का विस्तार निम्नानुसार हुआ: [21]
शेषम → पलसाना → पूरां → रुल्याणा माली[22]
[पृ.350]: नव आबाद गांव रुल्याणा माली के प्रथम प्रवर्तक पीथा माली के पुत्र बाला (बालू) माली की तीन बेटियां (रुकमा, सामा व जैती) थी जिनमें से बड़ी बेटी रुकमा पूरां छोटी लाला शेषमा के साथ परणाई गई। रुल्याणा माली गांव के सारे शेषमा लाला शेषमा के ही वंशज हैं।[23]
अग्नि-वंश व जगदेव पंवार के वंशज शेषमा शिप्रा नदी के तट पर बसी उज्जैन नगरी से निकले थे।[24]
डॉभ ऋषि के अवतार जगदेव पंवार के वंशजों (पौत्रों-प्रपौत्रों) में पवार जाति त्याग दी और यही लोग आगे चलकर शेषमा कहलाए। [25]
महमूद गजनवी सोमनाथ के शिव मंदिर को लूटकर मालव देश में आ धमका। महमूद गजनवी के इस आक्रमण में मालवा की पवार जाति के विध्वंस में विस्तारित हुई, पवार जाति के जो लोग किसी क्षेत्र विशेष में अवशेष रहे वही आगे चलकर शेषमा हुए।[26]
विक्रम संवत 1191 (=1134 ई.) चैत्र सुदी रविवार को धारा नगरी के राजा जगदेव पंवार ने अपना सिर समर्पित कर दिया।[27]
महमूद गजनवी के आक्रमण में सोमपाल पंवार के कुछ वंशज शेष रहे जो भागकर शेषम ग्राम आ पहुंचे और यही वंशज शेषमा कहलाए।[28]
[पृ.351]: मालवा से आकर कुछ शेषमा शेषम ग्राम बस गए, शेषम में इन्होंने अपना किला बनवाया और यहां से वे और 40 गांव में फैल गये। [29]
शेषम ग्राम को छोड़कर वे 40 गांव में फैल गए, इसी कड़ी में हरीपुरा व जीणवास में भी बसे। [30]
शेषमा वही गोत्र है जिसका राजा भोज पवार था। उज्जैन व धारा-नगरी तथा काली कंकाली जगदेव की कथा भी इसी वंश की गाथा है। [31]
तुर्क शेषम ग्राम भी आ पहुंचे और घोर आतंक मचा दिया। इसी आतंक ने इनका शेषम ग्राम फिर छुड़ा दिया। [32]
शेषम से आकर जीणवास बसे शेषमाओं पर भी तुर्कों ने पुनः हमला कर दिया। एक दिन जब रात की एक घड़ी बाकी थी और भौर के 4:00 बजे थे तो जीणवास के शेषमा आक्रमणकारियों से चारों ओर से गिर गए।[33]
तुर्क शेषमाओं की गायों की मारकाट करने लगे ऐसी स्थिति में देवा शेषमा 'होनी हो सो होय' जानकर मुकाबले को आगे बढ़ा।[34]
[पृ.352]: देवा शेषमा मौत बनकर दुश्मन पर टूट पड़ा। देवराणा का जोहड़ा आज भी उसका यह दांव याद दिलाता है।[35]
आज भी हर्ष पर्वत के पास बसे जीणवास में देवा शेषमा की समाधि उसकी वीरता का अमिट निशान है।[36]
देवा शेषमा अपने वंशजों को कह गया कि जगदेव पंवार के वंशजों! उसका यह भाव मत भूलो कि अपने धर्म की रक्षा के लिए उसने प्राणोत्सर्ग किया है, अब आप के हवाले ही इस वंश की नाव है जिसे आगे खेना है।[37]
अत: अग्नि वंश के विक्रम के वंशजों! अपने इष्ट महाकाल को दिन रात याद करो।[38]
शेषम गांव छोड़कर शेषमा पहले पलसाना बसे फिर पूरां बसे और वहां से लाला शेषमा गांव रुल्याणा माली में आकर सबसे पहले बसा जिसका विवरण आगे दिया गया है। एक बार गांव वालों ने लाला शेषमा को ₹5 देकर 20 आदमियों की अस्थियां गंगा में विसर्जित करने हेतु हरिद्वार भेजा क्योंकि उस समय आने जाने के साधन के अभाव में वर्षों तक इकट्ठी अस्थियाँ लेकर पैदल ही हरिद्वार जाना पड़ता था। गंगा के पंडे इस बात पर अड़ गए कि 20 की अस्थियों के विसर्जन का नेग ₹20 लगेगा। पंडों ने लाला का तिरस्कार करना शुरू कर दिया, लाला उनसे तंग आकर अपनी सारी की सारी 200 बीघा जमीन पंडों को नेग में दे आया।[39] चौमासे में बारिश के
[पृ.353]: बाद जब सब लोग अपना खेत जोतने लगे तब लाला ने अपना खेत छोड़कर दूसरों का खेत जोतना शुरू किया। जब उसकी पत्नी (बालू माली की पुत्री रुकमा) ने पूछा तो उसने बताया कि मैं तो सारी जमीन गंगा के पंडों को दक्षिणा में दे आया। यह वाकया बालू माली की बेटी ने अपने बाप को बताई तो माली परिवार उसे रुल्याणा माली ले आए। लाला शेषमा ने यहाँ आकर हासिल के बदले जमीन लेकर जोतना शुरू किया। सबसे पहले वर्तमान श्मशान भूमि के पूरब की तरफ वाली साठ बीघा जमीन जोती गई । फिर चार जगह 60-60 बीघा जमीन खरीदकर लाला ने अपने चार पुत्रों को दी। इस प्रकार इस गांव रुल्याणा माली में शेषमा वंश परंपरा की शुरुआत हुई। लोग बताते हैं कि जब लाला शेषमा इस गांव आकर बसा तो उसके दोनों बेटे जोधा व डालू उम्र में बड़े-बड़े थे।[40]
नीचे शेषमा गोत्र के बड़वा की बही से कुछ विवरण दिया जा रहा है।
पूरां गांव वालों ने गले में फूल (पूर्वजों की अस्तियां) डालकर लाला शेषमा को गंगा (हरिद्वार) भेज दिया परंतु वहां पंडे उन्हें सीधा साधा इंसान देखकर ज्यादा दान मांगते हैं। यह इतर बताया जा चुका है कि जोधा हट्टा-कट्टा एवं शालीन इंसान था। [41]
लाला ने अपनी सारी जमीन गंगा के पंडों को दान में दे दी। [42]
बालू माली की एक पुत्री (रुकमा) पूरां परणाई गई थी जो अपने पति लाला माली के साथ अपने पीहर रुल्याणा माली आ बसी। [43]
मालियों की लड़की अपने पति के साथ पिता के इस गांव में आकर बस गई। [44]
[पृ.354]: लाला शेषमा के दो बेटे जोधा व डालू हुए, आज के इस गांव रुल्याणा माली के सारे शेषमा इन्हीं दो के वंशज हैं। [45]
जोधा के 4 पुत्र हुए जिनसे जोधा का वंश खूब बढा और डालू के राजू एक ही बेटा हुआ जो आज तक 1-1 ही चला रहा है। [46]
रतना शेषमा इस शेषमा वंश की शान था। जिसने अपने तीन भाइयों के साथ शेषमा वंश का मान बढ़ाया। [47]
रतना राहगीरों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहता था और उन को भोजन कराए बिना जाने नहीं देता था। उन्होंने दो अनजान बरात भी जिमाई थी। [48]
[पृ.355]: रविवार के दिन रामू शेषमा का जन्म हुआ था। रामू शेषमा का जन्म दसमी रविवार हुआ था। जिसने शेषमा वंश की शान बढ़ा दी। [49]
राम लक्ष्मण की तरह बक्सा के बेटे रामू व बागा के नाम से यह बस्ती धन्य हुई है। [50]
रामू धर्म पर चलने वाला इंसान था।[51]
[पृ. 358]: रतना शेषमा - अपने समय का रुल्याणा माली गांव का सबसे उदार व परोपकारी इंसान माना जाता है। उसके पास पीतल जड़ा हुआ एक गाड़ा (बैलगाड़ी) थी जो उस समय ₹500 में खरीदी गई थी और उस समय के हिसाब से यह बहुत बड़ी रकम होती है। यह गाड़ा उस समय बहुत प्रसिद्ध था। यह बहुत महंगा और सबसे बड़ा माना जाता था। यह परहित में इतने संलग्न रहते थे कि रास्ते से गुजरते किसी भी राहगीर को बुलाकर भोजन कराए बिना जाने नहीं देते थे। इन्होंने दो बारात भोजन करवाई थी जिसे आज भी लोग याद करते हैं- एक किसी ब्राह्मण परिवार में और दूसरी राजपूतों की जो इस गांव से ऊंटों पर गुजर रही थी। बताया जाता है कि रतना शेषमा की पहुंच सीकर राज दरबार तक थी।[52]
रामू शेषमा: रामू शेषमा का जन्म दसमी रविवार को हुआ था जो भाग्यशाली माना जाता है। मध्यम सुडौल शरीर परंतु 6 फीट ऊंचाई, सिर पर साफा, फीडी जूतियां, कानों में सोने के गुर्दे, व सांकली , हाथ में सोने का कड़ा, पैरों में चांदी की कड़ियां पहनते थे। उस जमाने में जब लोग लंगोट के सिवा बहुत कम कपड़े रखते थे तब यह धोती, गंजी, चोला व बारंडी-कोट पहनते थे। जिस समय लोग गुड़ के लिए तरसते थे यह मजदूरों को दूध-गुड़ भरपेट खिला कर उन्हें खुश रखते थे। उनका मानना था- "जितना चराओगे उतना ही काम करेंगे।" विपदा में हर किसी के लिए तैयार रहते थे और लड़ते-झगड़ते लोगों के बीच पहुंचकर कहते थे कि किसी भी चीज की कमी है तो मैं दे दूंगा। गांव में सांड के लिए ग्वार और गुड सबसे ज्यादा देने वालों में से एक थे। पढ़े-लिखे बिल्कुल नहीं परंतु कोई भी हिसाब तुरंत बता देते थे। कपटहीन तीक्ष्ण दिमाग था। जिस रास्ते से निकलते कोई न कोई व्यापार करते हुए ही निकलते थे। हर जाति के हिसाब से उसी प्रकार की व्यापारिक वस्तु ले आते थे यथा जूतियों के लिए फूल/फूली, चद्दर के टेंक, झाड़ी का रांग, मसाले, कपड़े इत्यादि। उनकी नजर में कोई काम छोटा-बड़ा नहीं था। उस समय लोग कहते थे- रामू जिस रास्ते से निकलता है लक्ष्मी बरसने लगती है। वह 4 गांव (जालू, खाखोली, चेलासी व रुल्याणा माली) के बोहरा थे जिनमें कई शादियां तो इन्होंने अपने पैसे से खुद ही करवाई थी। इनकी एक आदत थी- वह अमूमन किसी संबंधी के घर खाना नहीं खाते थे। उन्होंने पीठ किसी की नहीं तकी, किसी की कोई गुम हुई वस्तु वापस लाकर दे देते थे। किसी का भी कोई उजाड़ (नुकशान) होता दिखता तो स्वयं सहायता के लिए पहुंच जाते थे। इनकी इमानदारी की आज भी मिसाल दी जाती है। गोरू शेषमा की मृत्यु के एक[53]
[पृ. 359]: साल बाद विक्रम संवत 2035 (=1978 ई.) में रामू शेषमा की मृत्यु हुई। इस साल भयंकर टीडी आई थी जो खड़ी फसल को खा गई और अकाल पड़ा। रामू शेषमा की मौत शेषमा परिवार के लिए अपूर्णीय क्षति के साथ गांव के परिपेक्ष्य में एक अद्भुत वंश-काल का युग का अंत था। उनकी मौत पर लोगों द्वारा कही गई यह बात उनके गौरव को अभिभूत करने वाली है- शेषमा वंश का राम चला गया।[54]
बागा शेषमा: अक्खड़-निडर स्वभाव, जीवन में किसी के दुश्मन नहीं- निरपेक्ष, पक्ष-विपक्ष से परे गांव के इतिहास के सर्वश्रेष्ठ निष्पक्ष आदमी। गालीयुक्त मुंहफट अहित-रहित दबंग आवाज, हमेशा सत्य के पक्षकार, लोगों के कहने की परवाह न करते हुए कुछ भी पहनना-खाना, आंखों पर चश्मा, रफ-टफ मेहनती किसान-मजदूर का भेष, अपनी कही बात पर हमेशा अडिग, किसी भी परिस्थिति में कितने ही लोगों में एक ही अंदाज में बात करने में माहिर, कर्म का पुजारी जो मेहनत के लिए जन्मा मेहनत के लिए मरा, सादगी का सर्वोत्तम उदाहरण, पंचायती-राजस्व कानून का जानकर, गांधी जैसे ही कर्म और गांधी जैसा ही भेष! सचमुच रुल्याणा माली गांव का महात्मा गांधी।[55]
Villages founded by Sheshma clan
- Sheshma Ka Bas (शेष्मा का बास) - village in Nawa tehsil of Nagaur district in Rajasthan.
Distribution in Haryana
Villages in Hisar district
Sesma (सेसमा) Jats live in village: Sundawas,
Distribution in Rajasthan
Villages in Alwar district
Shesham (शेषम) Jats live in villages: Alwar,
Locations in Jaipur city
Ambabari, Sanganer,
Villages in Jaipur district
Sesma (सेसमा) Jats live in villages:
Bookni, Jhag (3), Mandawara Nareda (10), Mandawara Phagi (10), Keria Khurd (3), Sanaudiya,
Villages in Jhunjhunu district
Hatoopura, Kolsiya, Swami Sehi,
Villages in Baran district
Villages in Nagaur district
Deusar, Gugadwar, Hudeel, Kyamsar, Payali, Sheshma Ka Bas, Pandorai, Dayalpura, Lalasri,
Villages in Sikar district
Banuda (10), Bhawanipura Srimadhopur, Bijarnia ki Dhani (Banuda), Bheema (80), Charanwas (Khud), Chhotipura (Dhod), Haripura (Losal), Jeenwas (70), Jethwan Ka Bas (3), Neemera, Nimeda Sikar[56], Nosal, Pura Chhoti, Rulyani (20), Rulyanamali, Sikar, Sulyawas, Thehat, Vijaipura Laxmangarh[57]
Villages in Tonk district
Sesma (सेस्मा) Jats live in villages:
Kalanada (1),
Sheshama (शेषमा) Jats live in villages:
Akodiya, Banthali, Deoli Gaon, Rampura Deoli, Tantya (2),
Villages in Churu district
Chhapar Churu (11), Sujangarh (3),
Distribution in Madhya Pradesh
Beragarh (Bhopal),
Villages in Ratlam district
Villages in Ratlam district with population of this gotra are: Ratlam 1,
Villages in Bhopal district
Villages in Barwani district
Villages in Indore district
Notable persons
- Deva Sheshma was a warrior of village Jeenwas in Sikar district of Rajasthan. He died fighting with the army of invader Turks (?) in 1134 AD. Devarana Johad in village Jeenwas was left in his memory.
- Ram Singh Shesham (born:2.7.1890-) (कप्तान रामसिंह शेषम), ----, Alwar, was a Social worker in Alwar, Rajasthan. [58]
- सरदार बहादुर नत्थासिंह - सीआईई, ओबीआई अलवर राज्य के सेनापति, कप्तान रामसिंह शेषम के पिता।
- Narain Singh Sheshma (RAS) - Date of Birth : 4-April-1954, SDO, Chirawa, Office Phone Number : 222777
- Hanuman Ram Sesma - ACF Forest. Village - Gugadwar, PO.- Nagwara, Nagaur, Rajasthan. Phone: 01586-248123. Mob: 9414282452
- Mana Ram Sheshma - Martyr of militancy in Kupwara Jammu-Kashmir in 2003. From Hatupura, Dudu, Jaipur, Rajasthan.
Gallery of Sheshma people
External links
References
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.60,s.n. 2323
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. स-153
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.63,s.n. 2509
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. श-13
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.85
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX, s.n. 135, p.695
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 281
- ↑ Kishori Lal Faujdar: "Mahabharata kalin Jatvansha", Jat Samaj, Agra, July 1995, p. 8
- ↑ Pliny.vi.2
- ↑ Natural History by Pliny Book VI/Chapter 35
- ↑ Natural History by Pliny Book VI/Chapter 35
- ↑ The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations/An Historico-Somatometrical study bearing on the origin of the Jats, p.144
- ↑ The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations/An Historico-Somatometrical study bearing on the origin of the Jats, p.146
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.348
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.348
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter X, p.705
- ↑ Memoirs of Humayoon P.45
- ↑ ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न प्राविंसेज एण्ड अवध
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.349
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.349
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.349
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.351
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.352
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.352
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.352
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.353
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.353
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.353
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.353
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.354
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.354
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.354
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.355
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- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.355
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.358
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.358
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.359
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.359
- ↑ User:ManojJat23
- ↑ User:VPC123
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.85-86
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