Shakadvipa

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(Redirected from Saka-Dvipa)
Author: Laxman Burdak, IFS (R).

Shakadvipa (शाकद्वीप) was one of seven divisions according to Vishnu Purana. It was the region occupied by Shakas during Mahabharata.

Variants

Location

The region called Shakadwipa is mentioned in Mahabharata (12:14) as a region to the east of the great Meru mountains.

Mention by Panini

Shakadvipa (शाकद्वीप) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]

History

V. S. Agrawala[2] writes that Patanjali mentions names of two other janapadas, viz., Rishika and Jihnu. Rishika - The Rishika occurs in Mahabharata as part of Sakadvipa, Arjuna conquered Rishikas across the Vakshu (Oxus), which flowed through the Saka country. Rishikas were later known as Yuechis, whose language was called Ārśi. Jihnu is perhaps modern Jhind.

In Mahabharata

Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 12 describes Shakadvipa, Seven Varshas, Shaka tree, Four provinces and Rivers in Shakadvipa. ....That island is of twice the extent of Jambudvipa. Sakadwipa is surrounded on all sides by the ocean.

Seven mountains: There are seven mountains that are decked with jewels and that are mines of gems, precious stones. These are:

  1. Meru is the abode of the gods, Rishis, and Gandharvas.
  2. Malaya stretching towards the east. It is there that the clouds are generated and it is thence that they disperse on all sides.
  3. Jaladhara 1 Thence Indra daily taketh water of the best quality. It is from that water that we get showers in the season of rains.
  4. Raivataka, over which, in the firmament, hath been permanently placed the constellation called Revati.
  5. Syama has the splendour of newly-risen clouds, is very high, beautiful and of bright body. And since the hue of those mountains is dark, the people residing there are all dark in complexion.
  6. Durgasaila
  7. Kesari :The breezes that blow from that mountain are all charged with (odoriferous) effluvia.

Seven Varshas: There are seven Varshas in that island.

  1. The Varsha of Meru is called Mahakasa;
  2. that of the water-giving (Malaya) is called Kumudottara.
  3. The Varsha of Jaladhara is called Sukumara:
  4. while that of Raivatak is called Kaumara;
  5. and of Syama, Manikanchana.
  6. The Varsha of Kesari is called Mandaki,
  7. and that called after the next mountain is called Mahapuman.

Shaka tree: In the midst of that island is a large tree called Saka. In height and breadth the measure of that tree is equal to that of the Jambu tree in Jambudwipa. And the people there always adore that tree.

Four provinces: In that island of Saka, are four sacred provinces. They are the Mrigas, the Masakas, the Manasas, and the Mandagas.

  1. The Mrigas for the most part are Brahmanas devoted to the occupations of their order.
  2. Amongst the Masakas are virtuous Kshatriyas granting (unto Brahmanas) every wish (entertained by them).
  3. The Manasas, O king, live by following the duties of the Vaisya order. Having every wish of theirs gratified, they are also brave and firmly devoted to virtue and profit.
  4. The Mandagas are all brave Sudras of virtuous behaviour.

There in that island are, many delightful provinces where Siva is worshipped. In these provinces there is no king, no punishment, no person that deserves to be punished. Conversant with the dictates of duty they are all engaged in the practice of their respective duties and protect one another. This much is capable of being said of the island called Saka.

Rivers: The rivers there are full of sacred water, and Ganga herself, distributed as she hath been into various currents, is there as Sukumari, and Kumari, and Sita, and Keveraka, and Mahanadi and the river Manijala, and Chakshus, and the river Vardhanika, these and many other rivers by thousands and hundreds, all full of sacred water, are there. It is impossible to recount the names and lengths of rivers.

शाकद्वीप

पृथ्वी के द्वीप: विष्णुपुराण के अनुसार पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है। वे द्वीप एस प्रकार से हैं:-

  1. Jambudvipa (जम्बूद्वीप)
  2. Plakshadvipa (प्लक्षद्वीप)
  3. Shalmaladvipa (शाल्मलद्वीप)
  4. Kushadvipa (कुशद्वीप)
  5. Karaunchadvipa (क्रौंचद्वीप)
  6. Shakadvipa (शाकद्वीप)
  7. Pushkaradvipa (पुष्करद्वीप)

ये सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं। जम्बुद्वीप इन सब के मध्य में स्थित है।[3]

शाकद्वीप का वर्णन: इस द्वीप के स्वामि भव्य वीरवर थे। इनके सात पुत्रों : जलद, कुमार, सुकुमार, मरीचक, कुसुमोद, मौदाकि और महाद्रुम के नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं। मठ्ठे का सागर अपने से दूने विस्तार वाले शाक द्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां भी सात पर्वत, सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।[4]

पर्वत: 1. उदयाचल, 2. जलाधार, 3. रैवतक, 4. श्याम, 5. अस्ताचल, 6. आम्बिकेय और 7. केसरी नामक सात पर्वत हैं।[5]

नदियां: सुमुमरी, कुमारी, नलिनी, धेनुका, इक्षु, वेणुका और गभस्ती नामक सात नदियां हैं।[6]

सात वर्ष: जलद, कुमार, सुकुमार, मरीचक, कुसुमोद, मौदाकि और महाद्रुम। यहां वंग, मागध, मानस और मंगद नामक चार वर्ण हैं।[7]

यहां अति महान शाक वृक्ष है, जिसके वायु के स्पर्श करने से हृदय में परम आह्लाद उत्पन्न होता है। वस्तुतः शाक आज के पालक सम था। यह द्वीप अपने ही बराबर के दुग्ध (दूध) से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह सागर अपने से दुगुने विस्तार वाले पुष्कर द्वीप से घिरा है।

शाकद्वीप के सात पर्वत

1. उदयाचल, 2. जलाधार, 3. रैवतक, 4. श्याम, 5. अस्ताचल, 6. आम्बिकेय और 7. केसरी नामक सात पर्वत हैं।

उदयाचल

उदयगिरि गुफ़ाएँ ( p.95): विष्णु पुराण के अनुसार उदयगिरि शाकद्वीप के सप्तपर्वतों में से है--'पूर्वस्तत्रोदयगिरिर्जलधरस्तथापर:, तथा रैवतकश्यामस्तथैवास्त गिरिर्द्विज। आंबिकेयस्तथारम्य: केसरी पर्वतोत्तम: शाक:स्तत्र महावृक्षा: सिद्धगंधर्वसेवित: विष्णु पुराण 2.4.62,63

जलाधार

विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...जलाधार पर्वत (AS, p.359) का उल्लेख विष्णु पुराण में हुआ है, जहाँ इसे शाक द्वीप का एक पर्वत बताया गया है- 'पूर्वस्तत्रोदयगिरिर्जलाधारस्तथपर:, तथा रैवतक: श्यामस्तथैवास्तगिरिर्द्विज विष्णु पुराण 2, 4, 62.

रैवतक

रैवतक (AS, p.802): 'विष्णुपुराण' 2.4.62 के अनुसार रैवतक शाकद्वीप का एक पर्वत था- 'पूर्वस्तत्रो-दयगिरिर्जलाधारस्तथापरः तथा रैवतकः श्यामस्तथैवास्तगिरिद्विज।'. [9]

श्याम

श्याम पर्वत (AS, p.914): 'विष्णुपुराण' 2,4,62 में उल्लिखित शाकद्वीप का एक पर्वत - 'पूर्वस्तत्रोदयगिरिर्जलाधारस्तथापर: तथा रैवतकः श्यामस्तथैवास्तगिरिद्विंज।' [10]

अस्ताचल

अस्तगिरि (AS, p.54) शाक द्वीप के एक पहाड़ का नाम है। 'पूर्वस्तत्रोदय गिरिर्जला धारस्तथापर:, तथा रैवतक: श्यामस्तथेवास्त गिरिर्द्विज'। (विष्णु पुराण 2, 4, 61). इस उद्धरण के प्रसंग के अनुसार अस्तगिरि शाक द्वीप के सात पर्वतों में से एक सिद्ध होता है।[11]

आम्बिकेय

आंबिकेय (AS, p.59) विष्णुपुराण 2,4,62 के अनुसार शाकद्वीप का एक पर्वत है-- 'आंबिकेयस्तथारम्य: केसरी पर्वतोत्तम:'। [12]

केसरी

केसरी पर्वत (AS, p.226) का उल्लेख विष्णु पुराण में हुआ है। इस उल्लेख के अनुसार यह शाक द्वीप का एक पर्वत है- 'आंबिकेयस्तथारम्य: केसरी पर्वतोत्तम:।'[13]

कुशलवर्ष

विजयेन्द्र कुमार माथुर[14] ने लेख किया है ...कुशल (AS, p.211) विष्णु-पुराण 2,4,60 के अनुसार शाकद्वीप का एक भाग या वर्ष जो इस द्वीप के राजा भव्य के पुत्र के नाम पर कुशल कहलाता है.

सुकुमार

सुकुमार (AS, p.971): विष्णु पुराण 2,4,60 के अनुसार शाकदीप का एक भाग या वर्ष जो इस द्वीप के राजा भव्य के पुत्र सुकुमार के नाम पर ही सुकुमार कहलाता है.[15]

दधिसमुद्र

विजयेन्द्र कुमार माथुर[16] ने लेख किया है ...दधिसमुद्र (AS, p.425): पौराणिक भूगोल की उपकल्पना में पृथ्वी के सप्तमहासागरों में से एक. यह शाकद्वीप के चतुर्दिक स्थित है-- 'ऐते द्वीपा: समुद्रैस्तु सप्तसप्तभिरावृता: लवणेक्षुसुरासर्पिदधिदुग्ध जलै:समम्' विष्णु पुराण 2,2,6

गभस्ती नदी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[17] ने लेख किया है ... गभस्ती (AS, p.278) विष्णु पुराण 2,4,66 के अनुसार शाकद्वीप की एक नदी कहा गया है-- 'इक्षुश्चवेणुकाचैव गभस्ती सप्तमी तथा अन्याश्चशतशस्तत्र क्षुद्रनद्यो महामुने'

सुकुमारी नदी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[18] ने लेख किया है ...1. सुकुमारी (AS, p.971) : 'नद्यश्चात्र महापुण्याः, सर्वपापभयापहाः, सुकुमारी कुमारी च नलिनी धेनुका च या, इक्षुश्च वेणुका चैव गभस्ती सप्तमी तथा, अन्याश्च शतशस्तत्र क्षुद्रनद्यो महामुने'--विष्णु पुराण 2,4,65-66. इस उद्धरण से विदित होता है कि सुकुमारी शाकद्वीप की सप्त महानदियों में से है. [दे. सुकुमार (2)]

2. सुकुमारी (AS, p.971) = कुमारी नदी (मत्स्या पुराण 113)

जाटों का यूरोप की ओर बढ़ना

ठाकुर देशराज[19] ने लिखा है .... हूणों के आक्रमण के समय जगजार्टिस और आक्सस नदियों के किनारे तथा कैस्पियन सागर के तट पर बसे हुए जाट यूरोप की ओर बढ़ गए। एशियाई देशों में जिस समय हूणों का उपद्रव था, उसी समय यूरोप में जाट लोगों का


[पृ.154]: धावा होता है। कारण कि आंधी की भांति उठे हुए हूणों ने जाटों को उनके स्थानों से उखाड़ दिया था। जाट समूहों ने सबसे पहले स्केंडिनेविया और जर्मनी पर कब्जा किया। कर्नल टॉड, मिस्टर पिंकर्टन, मिस्टर जन्स्टर्न, डिगाइन, प्लीनी आदि अनेक यूरोपियन लेखकों ने उनका जर्मनी, स्केंडिनेविया, रूम, स्पेन, गाल, जटलैंड और इटली आदि पर आक्रमण करने का वर्णन किया है। इन वर्णनों में में कहीं उन्हें, जेटा, कहीं जेटी, और कहीं गाथ नाम से पुकारा है। क्योंकि विजेता जाटों के यह सारे समूह ईरान और का कैस्पियन समुद्र के किनारे से यूरोप की ओर बढ़े थे। इसीलिए यूरोपीय देशों में उन्हें शकसिथियन के नाम से भी याद किया गया है। ईरान को शाकद्वीप कहते हैं। इसीलिए इरान के निवासी शक कहलाते थे। यूरोपियन इतिहासकारों का कहना है कि जर्मनी की जो स्वतंत्र रियासतें हैं, और जो सैक्सन रियासतों के नाम से पुकारी जाती हैं। इन्हीं शक जाटों की हैं। वे रियासतें विजेता जाटों ने कायम की थी। हम यह मानते हैं और यह भी मानते हैं कि वे जाट शाकद्वीप से ही गए थे। किंतु यूरोपियन लेखकों के दिमाग में इतना और बिठाना चाहते हैं कि शाल-द्वीप में वे जाट भारत से गए थे। और वे उन खानदानों में से थे जो राम, कृष्ण और यदु कुरुओं के कहलाते हैं।

यूरोप में जाने वाले जाटों ने राज्य तो कायम किए ही थे साथ ही उन्होंने यूरोप को कुछ सिखाया भी था। प्रातः बिस्तरे


[पृ.155]: से उठकर नहाना, ईश्वर आराधना करना, तलवार और घोड़े की पूजा, शांति के समय खेती करना,भैंसों से काम लेना यह सब बातें उन्होंने यूरोप को सिखाई थी। कई स्थानों पर उन्होंने विजय स्तंभ भी खड़े किए थे। जर्मनी में राइन नदी के किनारे का उनका स्तंभ काफी मशहूर रहा था।

भारत माता के इन विजयी पुत्रों ने यूरोप में जाकर भी बहुत काल तक वैदिक धर्म का पालन किया था। किंतु परिस्थितियों ने आखिर उन्हें ईसाई होने पर बाध्य कर ही दिया। यदि भारत के धर्म प्रचारक वहां पहुंचते रहते तो वह हरगिज ईसाई ना होते। किंतु भारत में तो सवा दो हजार वर्ष से एक संकुचित धर्म का रवैया रहा है जो कमबख्त हिंदूधर्म के नाम से मशहूर है। उनकी रस्म रिवाजों और समारोहों के संबंध में जो मैटर प्राप्त होता है उसका सारांश इस प्रकार है:-

  • जेहून और जगजार्टिस नदी के किनारे के जाट प्रत्येक संक्रांति पर बड़ा समारोह किया करते थे।
  • विजयी अटीला जाट सरदार ने एलन्स के किले में बड़े समारोह के साथ खङ्ग पूजा का उत्सव मनाया था।
  • जर्मनी के जाट लंबे और ढीले कपड़े पहनते थे और सिर के बालों की एक बेणी बनाकर गुच्छे के समान मस्तक के ऊपर बांध लेते थे।

[पृ.156]:
  • उनके झंडे पर बलराम के हल का चित्र था। युद्ध में वे शूल (बरछे) और मुग्दर (गदा) को काम में लाते थे।
  • वे विपत्ति के समय अपनी स्त्रियॉं की सम्मति को बहुत महत्व देते थे।
  • उनकी स्त्रियां प्रायः सती होने को अच्छा समझती थी।
  • वे विजिट लोगों को गुलाम नहीं मानते थे। उनकी अच्छी बातों को स्वीकार करने में वे अपनी हेटी नहीं समझते थे।
  • लड़ाई के समय वे ऐसा ख्याल करते थे कि खून के खप्पर लेकर योगनियां रणक्षेत्र में आती हैं।

बहादुर जाटों के ये वर्णन जहां प्रसन्नता से हमारी छाती को फूलाते हैं वहां हमें हृदय भर कर रोने को भी बाध्य करते हैं। शोक है उन जगत-विजेता वीरों की कीर्ति से भी जाट जगत परिचित नहीं है।

जाट इतिहास

डॉ रणजीतसिंह[20] लिखते हैं...जाटों के विषय में सर्वप्रथम जानकारी देने वाले हेरोडोटस थे। इन्होंने अपने यात्रा विवरणों के अध्ययन के आधार पर यह लिखा है कि प्रथम दारा के पुत्र जरक्सीज के यूनान पर आक्रमण के समय उसके साथ भारतीय जाटों का दल था। इसी प्रकार बहुत से विद्वान भागवत और महाभारत के आधार पर यह मानते हैं कि अर्जुन के साथ में द्वारिका से आने वाला यादव कुलीन जाटों का समूह था और यह परिवार (जाट) घुमक्कड़ कबीलों के रूप में भारतीय सीमाओं से बाहर इधर-उधर बिखर गया। सिकंदर के आक्रमणों के बाद ईसाई तथा मुस्लिम संघर्षों के बाद वे पुनः ईरान के मार्ग से भारत में लौट आए। इस प्रकार के जाट पच्छान्दे कहलाते हैं। इलियट तथा डाउसन के विचार में इस्लाम धर्म की स्थापना के समय सिंधु प्रांत (शाक द्वीप) में जाट शक्ति का बोलबाला था। इस प्रांत के जाट शासक जागीरदार तथा उपजाऊ भूमि के स्वामी होने के साथ-साथ वैदिक संस्कृति के पोषक भी थे और वे आत्मा के अमरत्व में विश्वास करते थे।

References


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