Matsya

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Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Ancient Indian Kingdoms in 600 BC
Map of Ancient Jat habitations

Matsya (मत्स्य) was one of the sixteen Mahajanapadas (great kingdoms). The kingdom was established by an Indo-Aryan tribe of Vedic India.[1]They fought Mahabharata War in Pandava's side

Variants

Location

By the late Vedic period, they ruled a kingdom located south of the Kurus, and west of the Yamuna river which separated it from the kingdom of the Panchalas. It roughly corresponded to the former state of Jaipur in Rajasthan, and included the whole of Hindaun, Alwar with portions of Bharatpur.

Jat Gotras Namesake

Jat clans

Mention by Panini

Matsyika (मात्स्यिका) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [3]

History

The capital of Matsya was at Viratanagari (present-day Bairat) which is said to have been named after its founder king, Virata. In Pali literature, the Matsya tribe is usually associated with the Surasena. The western Matsya was the hill tract on the north bank of the Chambal River. Matsya kingdom was founded by king Matsya who was the twin brother of Satyavati a who was contemporary to Bhishma.

In the early 6th century BCE, Matsya was one of the sixteen Mahajanapadas (great kingdoms) mentioned in the Buddhist text Anguttara Nikaya, but its power had greatly dwindled and it was of little political importance by the time of Buddha. The Mahabharata (V.74.16) refers to a King Sahaja, who ruled over both the Chedis and the Matsyas, which implies that Matsya once formed a part of the Chedi Kingdom.

Other than the Matsya kingdom to the south of Kuru Kingdom, which falls in the Hindaun and Alwar, Bharatpur districts of Rajasthan, the epic refers to as many as six other Matsya kingdoms. Upaplavya was a notable city of the kingdom. On the 13th year of Pandava's exile, pandavas and Draupadi stay in matsya kingdom of King Virata.

मत्स्य

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...1. मत्स्य (AS, p.697): महाभारत काल का एक प्रसिद्ध जनपद जिसकी स्थिति अलवर-जयपुर के परिवर्ती प्रदेश में मानी गई है। इस देश में विराट का राज था तथा वहाँ की राजधानी उपप्लव नामक नगर में थी। विराट नगर मत्स्य देश का दूसरा प्रमुख नगर था।

सहदेव ने अपनी दिग्विजय-यात्रा में मत्स्य देश पर विजय प्राप्त की थी-- ‘मत्स्यराजं च कौरव्यो वशे चके बलाद्बली’ महाभारत सभापर्व 31,2. भीम ने भी मत्स्यों को विजित किया था-- ‘ततो मत्स्यान् महातेजा मलदांश्च महाबलान्’ महाभारत, सभापर्व 30,9. अलवर के एक भाग में शाल्व देश था जो मत्स्य का पार्श्ववती जनपद था।

पांडवों ने मत्स्य देश में विराट के यहाँ रह कर अपने अज्ञातवास का एक वर्ष बिताया था। (दे. महाभारत, उद्योगपर्व). मत्स्य निवासियों का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में है-- पुरोला इत्तुर्वशो यक्षुरासीद्राये मत्स्यासोनिशिता अपीव, श्रुष्ट्रिञ्चकु भृगवोद्रुह्यवश्च सखा सखायामतरद्विषूचो: ऋग्वेद 7,18,6. इस उद्धरण में मत्स्यों का वैदिक काल के प्रसिद्ध राजा सुदास के शत्रुओं के साथ उल्लेख है। शतपथ ब्राह्मण 13,5,4,9 में मत्स्य-नरेश ध्वसन द्वैतवन का उल्लेख है, जिसने सरस्वती के तट पर अश्वमेध यज्ञ किया था। इस उल्लेख से मत्स्य देश में सरस्वती तथा द्वैतवन सरोवर की स्थिति सूचित होती है। गोपथ ब्राह्मण (1-2-9) में मत्स्यों को शाल्वों और कौशीतकी उपनिषद (14,1) में कुरु-पंचालों से सम्बद्ध बताया गया है। महाभारत में इनका त्रिगर्तों और चेदियों के साथ भी उल्लेख है-- ‘सहजश्चेदिमत्स्यानां प्रवीराणां वृषध्वज:’ महाभारत, उद्योगपर्व 74-16. मनुसंहिता में मत्स्यवासियों को पांचाल और शूरसेन के निवासियों के साथ ही ब्रह्मर्षि देश में स्थित माना है- 'कुरुक्षेत्रं च मत्स्याश्च पंचाला शूरसेनका: एष ब्रह्मर्षि देशो वै ब्रह्मवतदिनंतर: [p.698] मनुस्मृति 2,19

उड़ीसा की भूतपूर्व मयूरभंज रियासत में प्रचलित जनश्रुति के अनुसार मत्स्य देश सतियापारा (ज़िला मयूरभंज) का प्राचीन नाम था। उपर्युक्त विवेचन से मत्स्य की स्थिति पूर्वोत्तर राजस्थान में सिद्ध होती है किन्तु इस किंवदंती का आधार शायद तह तथ्य है कि मत्स्यों की एक शाखा मध्य काल के पूर्व विजिगापटम (आन्ध्र प्रदेश) के निकट जा कर बस गई थी (दे. दिब्बिड़ ताम्रपत्र, एपिग्राफिका इंडिया, 5,108) उड़ीसा के राजा जयत्सेन ने अपनी कन्या प्रभावती का विवाह मत्स्यवंशीय सत्यमार्तड से किया था जिनका वंशज 1269 ई. में अर्जुन नामक व्यक्ति था। सम्भव है प्राचीन मत्स्य देश की पांडवों से संबंधित किंवदंतियाँ उड़ीसा में मत्स्यों की इसी शाखा द्वारा पहुँची हो (दे. अपर मत्स्य).

2. मत्स्य (AS, p.698): मल्लराष्ट्र का एक नाम – ‘ततॊ मत्स्यान महातेजा मलयांश च महाबलान, अनवथ्यान गयांश चैव पशुभूमिं च सर्वशः (II.27.8) महा. वनपर्व 2,30,8. प्रसंग से यह जनपद उत्तरी बिहार या नेपाल के निकट जान पड़ता है और मल्लराष्ट्र से इसका अभिज्ञान ठीक जान पड़ता है.

अधिराज

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...अधिराज (AS, p.19): महाभारत सभा पर्व [31,3] के अनुसार सहदेव ने अपनी दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में इस देश के राजा दंतवक्र को पराजित किया था- 'अधिराजाधिपं चैव दंतवक्रं महाबलम्, जिगाय करदं जैव कृत्वा राज्ये न्यवेशयत्'। अधिराज का उल्लेख मत्स्य के पश्चात् होने से सूचित होता है कि यह देश मत्स्य (जयपुर का परवर्ती प्रदेश) के निकट ही रहा होगा। किंतु श्री नं. ला. डे का मत है कि यह रीवा का परवर्ती प्रदेश था।

मत्स्य जनपद: दलीप सिंह अहलावत

दलीप सिंह अहलावत[6] ने लिखा है... मत्स्य जनपद अति प्राचीनकाल से विद्यमान था। इस जनपद के उत्तर में दशार्ण, दक्षिण में पांचाल, नवराष्ट्र (नौवार), मल्ल (मालव) आदि और शाल्व, शूरसेनों से घिरा हुआ था। सुग्रीव वानरों को सीता जी की खोज के लिये दक्षिण दिशा के देशों में अन्य देशों के साथ मत्स्य देश में जाने का भी आदेश देता है (वा० रा० किष्कन्धाकाण्ड, 41वां सर्ग)। पाण्डवों की दिग्विजय में सहदेव ने दक्षिण दिशा में सबसे पहले शूरसेनियों को जीतकर फिर मत्स्यराज विराट को अपने अधीन कर लिया (महाभारत सभापर्व, 31वां अध्याय)। महाभारत विराट पर्व के लेख अनुसार


1. ठा० देशराज जाट इतिहास पृ० 702, इस मालवा नाम से पहले इस प्रदेश का नाम अवन्ति था।
  • . नोट - कोली व शाक्य जाट वंश हैं।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-255


भरतपुर, अलवर, जयपुर की भूमि पर मत्स्य जनपद बसा हुआ था। इसकी राजधानी विराट या वैराट नगर थी, जो जयपुर से 40 मील उत्तर की ओर अभी भी स्थित है। यहां का नरेश महाभारत युद्ध के समय वृद्ध था। इसने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में सुवर्णमालाओं से विभूषित 2000 मतवाले हाथी उपहार के रूप में दिये थे (महाभारत सभापर्व, 52वां अध्याय; श्लोक 26वां)। यह विराट नरेश वृद्ध होते हुए भी महाभारत युद्ध में पाण्डवों की ओर होकर लड़ा था (महाभारत भीष्मपर्व 52वां अध्याय)। यह विराट नरेश अत्यन्त शूरवीर योद्धा था। इसी के नाम पर महाभारत का एक अध्याय ‘विराट पर्व’ विख्यात है।

इस विराट नरेश की महारानी सुदेष्णा, कीचक की बहिन थी। इसी मत्स्यराज विराट के यहां अज्ञातवास के दिनों पांचों पाण्डव द्रौपदी सहित गुप्तवेश में आकर रहे थे। इसी नरेश की कन्या उत्तरा का विवाह अर्जुनपुत्र अभिमन्यु से हुआ था। इन्हीं दोनों का पुत्र परीक्षित हस्तिनापुर राज्य का उत्तराधिकारी बना था। राजा विराट का भाई शतानीक था। विराट के दो पुत्र उत्तर और श्वेत नामक थे। महाभारत युद्ध में मद्रराज शल्य ने उत्तर को और भीष्म ने श्वेत को मार था। बौद्धकाल के 16 महाजनपदों में से एक मत्स्य जनपद भी था। इस गणराज्य की ध्वजा का चिह्न मछली था।

15 अगस्त सन् 1947 ई० को भारतवर्ष स्वतन्त्र होने पर भारत सरकार ने राजपूताना की रियासतों में से अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली को मिलाकर ‘मत्स्य संघ’ बनाया और शेष रियासतों को मिलाकर ‘राजस्थान’ बनाया। जून 1949 ई० में मत्स्य संघ की चारों रियासतें भी राजस्थान में मिला दी गयीं।

मत्स्यवंश (माथुर) की सत्ता जाटों में पाई जाती है। भरतपुर राज्य की ओर से मत्स्यवंशज जाट धीरज माथुर एवं नत्था माथुर को दिल्ली के पास कराला, पंसाली, पूंठ खुर्द, किराड़ी, हस्तसार नामक पांच गांव का शासक बनाकर कचहरी करने के लिए नियत किया था। इस कचहरी के खण्डहर अभी तक कराला में पड़े हुए हैं। इस गांव से ही ककाना गांव (गोहाना के पास) जाकर बसा। इसके अतिरिक्त मत्स्य-मत्सर या माछर जाट बिजनौर के पुट्ठा और उमरपुर गांवों में निवास करते हैं। राजस्थान के जिला सीकर में खेतड़ी गांव मत्स्य या माछर गोत्र के जाटों का है।

In Mahabharata

Matsya (मत्स्य) is mentioned in Mahabharata (I.144.2), (1.158),(II.13.27), (II.27.8),(II.28.2), (II.48.25),(IV.1.9),(V.19.12),(V.53.17),(V.72.16),(V.158.20), (VI.10.38),(VI.18.13), (VI.20.12),(VI.52.4), (VI.68.1),(VIII.30.60),(VIII.30.62),(VIII.30.73),(VIII.30.75),(VIII.51.6), (IX.44.77),

External links

References