Tripuri

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(Redirected from Tevar)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

District map of Jabalpur

Tripuri (त्रिपुरी) was the capital of Kalachuri Kingdom. Tripuri is identified with village Tewar near Jabalpur. Tripura (त्रिपुर) Kingdom is mentioned in Mahabharata (II.28.38),(VI.83.9)

Variants

Location

Tevar is located 7 miles west of Jabalpur on Jabalpur-Bheraghat Road.

Jat clans

History

Historians such as Dr. P.B. Desai are emphatic about the central Indian origin of the Kalachuris. Before the arrival of Badami Chalukya power, they had carved out an extensive empire covering areas of Gujarat, Malwa, Konkan and parts of Maharashtra.

However after their crippling defeat at the hands of Chalukya Magalesa, they remained in obscurity for a prolonged period of time. A 1174 CE. records says the dynasty was founded by one Soma who grew beard and moustache, to save himself from the wrath of Parashurama, and thereafter the family came to be known as "Kalachuris", Kalli meaning a long moustache and churi meaning a sharp knife.

Historian have also pointed out that several Kalachuri kings were related to Chalukyas and Rashtrakutas by matrimonial alliances and ruled from places like Tripuri, Gorakhpur, Ratanpur, Rajpur. They migrated to the south and made Magaliveda or Mangalavedhe (Mangalavada) their capital. They called themselves Kalanjarapuravaradhisvara, which indicates their central Indian origin. Their emblem was Suvarna Vrishabha or the golden bull. They must have started as modest feudatories of the Chalukyas of Kalyani.

Amoda Plates Of Prithvideva I (Kalachuri) Year 831 (=1079 AD)

Amoda Plates Of Prithvideva I (Kalachuri) Year 831 (=1079 AD)[1] mentions in VV.4-6 as under:


(V. 4) The kings born in his (Kartavirya) family became (known as) Haihayas on the earth. In their family was born that (famous) Kôkkala, the first king of the Chaidyas (the people of the Chedi country)

(V. 5) By that king was erected on the earth a pillar of victory after forcibly dispossessing the kings of Karnata and Vanga, the lord of the Gurjaras, the ruler of Konkana, the lord of Shakambhari, the Turushka and the descendant of Raghu (Probably the contemporary prince of the Gurjara-Pratihara dynasty) of their treasure, horses and elephants.

(V. 6) He had eighteen, very valiant sons, who destroyed their enemies as lions break open the frontal globes of elephants , the eldest of them, an excellent prince, became the lord of Tripuri and he made his brothers the lords of mandalas by his side.

Jat History

Bhim Singh Dahiya[2] writes....Dahal clan now found in Multan district, had given its name to the Berar area of Madhya Pradesh in medieval times when that area was called Dahal Desa. Piawan Inscriptions of 789 K.S. (A.D. 1038) mentions Sri Dhahalan iti.[3] 'Kitabul-Hind of Beruni mentions a Dahala with its capital of Tripuri as one of the countries of India.[4]

त्रिपुरी परिचय

त्रिपुरी आधुनिक मध्य प्रदेश के जबलपुर ज़िले में नर्मदा नदी तट पर स्थित है। इसकी अपनी भौगोलिक, धरीय अवस्थिति के कारण अधिक महत्त्व है। इसकी पहचान जबलपुर-भेड़ाघाट मार्ग पर स्थित तेवर ग्राम अथवा टेवर से की गई है। वृहत्संहिता में एक नगर के रूप में इसका वर्णन मिलता है। उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर जाने वाले मार्ग के मध्य में स्थित होने के कारण त्रिपुरी का आर्थिक महत्त्व था। यहाँ से 500 ई.पू. से 400 ई. के मध्य की संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं। मौर्योत्तर युग में यहाँ व्यापारिक संघों के द्वारा प्रशासनित होता था। पूर्व मध्यकाल में त्रिपुरी में कलचुरी वंश का शासन था।[5]

उत्खनन: सर्वप्रथम त्रिपुरी की खोज 1860 ई.में ले. कर्नल युले ने लार्ड कैनिंग के शिविर व्यवस्था की यात्रा के समय की। तदनंतर जनरल कनिंघम ने 1873 -1874 ई. में त्रिपुरी के अवशेषों पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रकाशित की। इसके पश्चात् कीलहार्न ने तेवर से प्राप्त अभिलेखों को प्रकाशित किया। 1922 ई. में राखालदास बनर्जी ने पूरे त्रिपुरी राज्य का सर्वेक्षण कर दि हैयहयाज ऑफ त्रिपुरी एण्ड देयर मोनुमेंट्स प्रकाशित किया। 1952 -1953 ई. में सागर विश्वविद्यालय के तत्वावधान में त्रिपुरी का पुरातात्विक कार्य कराया गया। इस उत्खनन में प्राप्त सफलता से सागर विश्वविद्यालय ने 1966 ई. व बाद में भी वहाँ अनेक उत्खनन कराये, जिससे त्रिपुरी की प्राचीनता पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ा। त्रिपुरी के विभिन्न उत्खननों से उसके विभिन्न कालों का ज्ञान हुआ है यथा-[6]

प्रथम काल में अवशेष: प्रथम काल (1000 ई.पू. से 500 ई.पू.) - यह उल्लेखनीय है कि प्रथम काल से ताम्रश्मयुगीन संस्कृति की सामग्री मिली है। यहाँ के उत्खनन से सूक्ष्म पाषाण अस्त्र और लाल सतह पर काली चित्रकारी से युक्त मृद्भाण्डों के अवशेष मिले हैं।

द्वितीय काल में अवशेष: द्वितीय काल (500 ई.पू. से 300 ई.पू.) - द्वितीय काल में बस्ती के निवासी मिट्टी की दीवारों और छाये हुए छप्परों वालों घरों में रहते थे। वे कहीं-कहीं खपरैल का भी प्रयोग करते थे। इस काल के निवासी पकी मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते थे। यहाँ से उत्तरी-काले ओपदार (एन.बी.पी.) मिट्टी के बर्तनों के अवशेष भी मिले हैं।

तीसरे काल में अवशेष: तृतीयक काल (300 ई. से 100 ई.पू.)- त्रिपुरी के तीसरे काल में लोगों के जीवन स्तर में काफ़ी उन्नति हुई। मिट्टी के मकानों के अतिरिक्त इस काल में पकी ईंटों के भी मकान बनने लगे थे। यहाँ गन्दे पानी के निकास की समुचित व्यवस्था थी। यहाँ इस काल के पिछले काल की तरह ताँबे की आहत मुद्राओं का प्रचलन था। यह प्रचलन अब सीमित हो रहा था। इन आहत मुद्राओं के अतिरिक्त यहाँ की त्रिपुरी जनपद की मुद्राएँ भी ढाली जाने लगी थीं। इन मुद्राओं पर त्रिपुरी लेख ब्राह्मी लिपि में अंकित मिलता है। काँच के उपयोग का भी प्रमाण इस काल में यहाँ से मिलता है।

चतुर्थ काल में अवशेष: चतुर्थ काल (100 ई. से 200 ई.)- चतुर्थ काल में त्रिपुरी का अबाध गति से विकास हुआ। यहाँ से दैनिक जीवन के उपयोग की वस्तुएँ मिली हैं। इन वस्तुओं में पैर वाली चक्की उल्लेखनीय है। इस काल के स्तर से सातवाहनों की ताँबे, सीसे और पोटिन की मुद्राएँ बड़ी संख्या में मिली हैं, जिनसे इस काल में यहाँ पर सातवाहनों के शासन का ज्ञान होता है। परंतु चतुर्थ काल में त्रिपुरी का महत्व गौण ही रहा। पंचम काल में अवशेष

पंचम काल में अवशेष: पंचम काल (200 ई.से 350 ई.) - पंचम काल के स्तर से त्रिपुरी से प्राप्त वस्तुओं में लोहे के भाले, बर्छे, बाणों के फलक बड़ी संख्या में मिले हैं। इस काल के स्तर में अभ्रक के लेप से युक्त चिकने लाल मिट्टी के बर्तन मिले हैं। इस काल के स्तर के मकान कुछ अव्यवस्थित मिले हैं। विद्वानों का विचार है कि इस काल में त्रिपुरी पर कोई आक्रमण हुआ होगा। पूर्व मध्य काल में त्रिपुरी कलचुरी राज्य की राजधानी बनी। कलचुरियों के राज्याश्रय में त्रिपुरी का सहज विकास हुआ। यहाँ से प्राप्त कलचुरी अभिलेख और कलाकृतियों से त्रिपुरी के गौरवमयी इतिहास का ज्ञान होता है। कलचुरी काल के पश्चात् त्रिपुरी का राजनीतिक महत्त्व समाप्त प्रायः हो गया।

त्रिपुरी का इतिहास

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लिखा है.... त्रिपुरी (जिला जबलपुर, मध्य प्रदेश) (AS, 416-417) जबलपुर से 7 मील पश्चिम की ओर तेवर नामक एक छोटा सा ग्राम है प्राचीन काल की वैभवशाली नगरी त्रिपुरी का वर्तमान स्मारक है. त्रिपुरी का इतिहास महाभारत के समय तक जाता है. महाभारत में त्रिपुरी के राजा


[p.417]: अमितौजस पर सहदेव की विजय का वर्णन है--माद्रीसुतस्ततः प्रायाद विजयी दक्षिणां दिशम्, त्रैपुरं स वशे कृत्वा राजानम् अमितौजसम्' (सभा पर्व में 31,60 (II.28.38)) पद्मपुराण और लिंगपुराण (अध्याय 7) में भी त्रिपुरी का उल्लेख है. तीसरी सती ई. की मुद्राओं में त्रिपुरी का नाम मिलता है. परिव्राजक महाराज संक्षोभ के 528 ई. के ताम्रपट्टलेख में भी त्रिपुरी का नाम है. 9 वीं शती ई. में मध्य प्रदेश के कलचुरी नरेश कोकल्लदेव ने त्रिपुरी में अपनी राजधानी बनाई. कलचुरी नरेशों के शासनकाल में 12 वीं सदी के मध्य तक त्रिपुरी की सर्वांगीण उन्नति हुई. स्थापत्य के अतिरिक्त संस्कृत साहित्य भी त्रिपुरी के अनुकूल वातावरण में खूब फला फुला. कर्पूरमंजरी के प्रसिद्ध लेखक महाकवि राजशेखर कुछ समय तक त्रिपुरी में रहे थे.

कलचुरी-नरेश शैव होते हुए भी अन्य संप्रदायों के प्रति पूर्णत: सहिष्णु थे और इसलिए इनके राजत्व-काल में हिंदू संस्कृति का सुंदर विकास हुआ. युवराज देव द्वितीय (975-1000) के समय में त्रिपुरी अमरावती के समान सुंदर थी-- तत्रान्वये नयवतां प्रवरो नरेंद्र: पौरन्दरीमीवपुरीं त्रिपुरीं पुनान:'(जबलपुर ताम्रलेख). कलचुरी-नरेश कर्णदेव 1041-73) ने भी त्रिपुरी के यश को दूर-दूर तक फैलाया. त्रिपुरी के खण्डहरों से अनेक मूर्तियां उपलब्ध हुई हैं. इनमें त्रिपुरेश्वर महादेव की प्रतिमा उल्लेखनीय है. कुछ लोगों का मत है कि त्रिपुरेश्वर शिव का मंदिर कलचुरीकाल में त्रिपुरी में स्थित था किंतु यह आश्चर्य की बात है कि इस मंदिर का उल्लेख किसी कलचुरी अभिलेख में नहीं है. यद्यपि ये नरेशशैव ही थे. बालसागर नामक सरोवर के तट पर कई शैव मंदिरों के अवशेष आज भी हैं. यहीं गजलक्ष्मी की मूर्ति भी मिली थी. त्रिपुरी की कलचुरीकालीन मूर्तियों में आभूषणों का बाहुल्य दिखलाई देता है. त्रिपुरी से प्राप्त बहुत ही ऐतिहासिक सामग्री भारतीय संग्रहालय कोलकाता में सुरक्षित है. इसमें प्रवचन मुद्रा में स्थित बुद्ध की मूर्ति विशेष कलापूर्ण है. त्रिपुरी के समीप ही जंगलों के भीतर कर्णबेल या कर्णावती नगरी के खंडहर हैं.

In Mahabharata

Tripura (त्रिपुर) Kingdom is mentioned in Mahabharata (II.28.38),(VI.83.9),

Tripuri (त्रिपुरी) (3-255-10) in Mahabharata


Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 28 mentions Sahadeva's march towards south: kings and tribes defeated. Tripura (त्रिपुर) Kingdom is mentioned in Mahabharata (II.28.38). [8]....And having brought king Nila under his sway thus, the victorious son of Madri (Sahadeva) then went further towards the south. The long-armed hero then brought the king of Tripura (अमितौजस) of immeasurable energy under his sway.


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 83 describes the array of the Kauravas army against the Pandavas. Tripura (त्रिपुर) King is mentioned in Mahabharata (VI.83.9). [9].... Next to Drona was the valiant Bhagadatta. Behind Bhagadatta was Vrihadvala the king of the Kosalas accompanied by the Mekalas, the Tripuras, and the Chichhilas.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 255 describes Karna's victory march and countries subjugated. Tripuri (त्रिपुरी) is mentioned in Mahabharata (3-255-10). [10]....Having (thus) conquered the eastern quarter Karna then presented himself before Vatsabhumi (वत्सभूमि) (3-255-9a). And having taken Batsa-bhumi (3-255-10a), he reduced Kevala (केवल) (3-255-10a), and Mrittikavati (मृत्तिकावती) (3-255-10a), and Mohana (मोहन) (3-255-10b) and Pattana (पत्तन) (3-255-10b), and Tripuri (त्रिपुरी) (3-255-10b), and Kosala (कोसला) (3-255-10b),--and compelled all these to pay tribute.



See also

References

  1. Corpus Inscriptionium Indicarium Vol IV Part 2 Inscriptions of the Kalachuri-Chedi Era, Vasudev Vishnu Mirashi, 1955, p.401-409
  2. Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.335
  3. ASIAR, Vol. XXl, pp. 112-113.
  4. S.C. Sachan, Alberuni's India, Vol. I, p. 202.
  5. भारतकोष-त्रिपुरी
  6. भारतकोष-त्रिपुरी
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.416-17
  8. परतिगृह्य च तां पूजां करे च विनिवेश्य तम, माथ्री सुतस ततः प्रायाद विजयी दक्षिणां दिशम (II.28.37) त्रैपुरं स वशे कृत्वा राजानम अमितौजसम, निजग्राह महाबाहुस तरसा पॊतनेश्वरम (II.28.38)
  9. पराग्ज्यॊतिषाथ अनु नृपः कौसल्यॊ ऽद बृहथ्बलः, मेकलैस त्रैपुरैश चैव चिच्छिलैश च समन्वितः (VI.83.9)
  10. वत्सभूमिं विनिर्जित्य केवलां मृत्तिकावतीम् (3-255-10a) मोहनं पत्तनं चैव त्रिपुरीं कोसलां तथा (3-255-10b)

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