Jat Jan Sewak/Rajasthan Ki Jat Jagriti Ka Sankshipt Itihas
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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580
संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर
राजस्थान की जाट जागृति का संक्षिप्त इतिहास
[पृ.1]: उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय सामूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रतन सिंह भरतपुर को जाता है।
यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।
सन् 1925 में राजस्थान की रियासतों में जहां भी जैसा बन पड़ा लोगों ने शिक्षा का काम आरंभ कर दिया किन्तु महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुये सन् 1931 के मई महीने से जब दिल्ली महोत्सव के बाद ठाकुर देशराज अजमेर में ‘राजस्थान संदेश’ के संपादक होकर आए। आपने राजस्थान प्रादेशिक जाट क्षत्रिय की नींव दिल्ली महोत्सव में ही डाल दी थी।
दिल्ली के जाट महोत्सव में राजस्थान के विभिन्न
[पृ 2]: भागों से बहुत सज्जन आए थे। यह बात थी सन 1930 अंतिम दिनों में ठाकुर देशराज ‘जाट वीर’ आगरा सह संपादक बन चुके थे। वे बराबर 4-5 साल से राजस्थान की राजपूत रियासतों के जाटों की दुर्दशा के समाचार पढ़ते रहते थे। ‘जाट-वीर’ में आते ही इस ओर उन्होने विशेष दिलचस्पी ली और जब दिल्ली महोत्सव की तारीख तय हो गई तो उन्होने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और दूसरी रियासतों के कार्य कर्ताओं को दिल्ली पहुँचने का निमंत्रण दिया। दिल्ली जयपुर से चौधरी लादूराम किसारी, राम सिंह बख्तावरपुरा, कुँवर पन्ने सिंह देवरोड़, लादूराम गोरधनपुरा, मूलचंद नागौर वाले पहुंचे। कुछ सज्जन बीकानेर के भी थे। राजस्थान सभा की नींव डाली गई और उसी समय शेखावाटी में अपना अधिवेशन करने का निमंत्रण दिया गया। यह घटना मार्च 1931 की है।
इसके एक-डेढ़ महीने बाद ही आर्य समाज मड़वार का वार्षिक अधिवेशन था। लाला देवीबक्ष सराफ मंडावा के एक प्रतिष्ठित वैश्य थे। शेखावाटी में यही एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने कानूनी तरीके से ठिकानाशाही का सामना करने की हिम्मत की थी। उन्होने ठाकुर देशराज और कुँवर रतन सिंह दोनों को आर्य समाज के जलसे में आमंत्रित किया। इस जलसे में जाट और जाटनियाँ भरी संख्या में शामिल हुये। यहाँ हरलाल सिंह, गोविंद राम, चिमना राम आदि से नया परिचय इन दोनों नेताओं का हुआ।
लौटती बार ठाकुर देशराज ने गाड़ी की जंजीर खींचकर रेलवे अधिकारियों को इस बात के लिए चेतावनी दी कि
[पृ 3]: वे गाड़ियों की टट्टीयों में पानी डालना ना भूलें। यह एक छोटा सा मूवमेंट था जो लिखा पढ़ी के रूप में जयपुर रेलवे के खिलाफ सर्वप्रथम आरंभ हुआ था।
अपनी शेखावाटी यात्रा में ठाकुर देशराज ने एक धारावाहिक लेखमाला ‘जाटवीर’ में प्रकाशित की जिससे शेखावाटी के लोगों में एक चिनगारी जैसी चमक पैदा की। बाहर के लोगों ने यहाँ की स्थिति को समझा।
यह सभी लोग मानते हैं कि ठाकुर देशराज की लेखनी में चमत्कार है। उन्होने 3-4 महीने में ही लेखों द्वारा तमाम जाट समाज में शेखावाटी के जाटों के लिए एक आकर्षण पैदा कर दिया।
इसके बाद ठाकुर देशराज अजमेर आ गए। उन्होने यह नियम बना लिया कि शनिवार को शाम की गाड़ी से चलकर रियासतों में घुस जाते और सोमवार को 10 बजे ‘राजस्थान संदेश’ के दफ्तर में आ जाते।
उन्हें आरंभ में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। एक घटना इस संबंध में बताना उचित होगा। वे भैंसलाना स्टेशन पर शाम को उतरे और रेलवे लाइन के सहारे दिन छिपने तक एक ढाणी में पहुँच गए। वहां के जाटों ने इस बात पर तनिक भी यकीन नहीं किया कि यह जाट है और न ठहरने की जगह दी और तो और पीने को भी पानी नहीं दिया। लाचार उन्होंने एक चबूतरे पर बैठकर रात काटी।
वह जमाना आतंक का था। आज जो शेखावाटी में तीसमारखां लीडर हैं उस समय उनके भी इतने मजबूत पैर नहीं थे। ठिकानेदारों का उनके साथ भी सर्वसाधारण का जैसा व्यवहार था।
[पृ.4]: अगस्त का महिना था। झूंझुनू में एक मीटिंग जलसे की तारीख तय करने के लिए बुलाई थी। रात के 11 बजे मीटिंग चल रही थी तब पुलिसवाले आ गए। और मीटिंग भंग करना चाहा।
देखते ही देखते लोग इधर-उधर हो गए। कुछ ने बहाना बनाया – ईंधन लेकर आए थे, रात को यहीं रुक गए। ठाकुर देशराज को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होने कहा – जनाब यह मीटिंग है। हम 2-4 महीने में जाट महासभा का जलसा करने वाले हैं। उसके लिए विचार-विमर्श हेतु यह बैठक बुलाई गई है। आपको हमारी कार्यवाही लिखनी हो तो लिखलो, हमें पकड़ना है तो पकड़लो, मीटिंग नहीं होने देना चाहते तो ऐसा लिख कर देदो। पुलिसवाले चले गए और मीटिंग हो गई।
इसके दो महीने बाद बगड़ में मीटिंग बुलाई गई। बगड़ में कुछ जाटों ने पुलिस के बहकावे में आकार कुछ गड़बड़ करने की कोशिश की। किन्तु ठाकुर देशराज ने बड़ी बुद्धिमानी और हिम्मत से इसे पूरा किया। इसी मीटिंग में जलसे के लिए धनसंग्रह करने वाली कमिटियाँ बनाई।
जलसे के लिए एक अच्छी जागृति उस डेपुटेशन के दौरे से हुई जो शेखावाटी के विभिन्न भागों में घूमा। इस डेपुटेशन में राय साहब चौधरी हरीराम सिंह रईस कुरमाली जिला मुजफ्फरनगर, ठाकुर झुममन सिंह मंत्री महासभा अलीगढ़, ठाकुर देशराज, हुक्म सिंह जी थे। देवरोड़ से आरंभ करके यह डेपुटेशन नरहड़, ककड़ेऊ, बख्तावरपुरा, झुंझुनू, हनुमानपुरा, सांगासी, कूदन, गोठड़ा
[पृ.5]: आदि पचासों गांवों में प्रचार करता गया। इससे लोगों में बड़ा जीवन पैदा हुआ।
धनसंग्रह करने वाली कमिटियों ने तत्परता से कार्य किया और 11,12, 13 फरवरी 1932 को झुंझुनू में जाट महासभा का इतना शानदार जलसा हुआ जैसा सिवाय पुष्कर के कहीं भी नहीं हुआ। इस जलसे में लगभग 60000 जाटों ने हिस्सा लिया। इसे सफल बनाने के लिए ठाकुर देशराज ने 15 दिन पहले ही झुंझुनू में डेरा डाल दिया था। भारत के हर हिस्से के लोग इस जलसे में शामिल हुये। दिल्ली पहाड़ी धीरज के स्वनामधन्य रावसाहिब चौधरी रिशाल सिंह रईस आजम इसके प्रधान हुये। जिनका स्टेशन से ही ऊंटों की लंबी कतार के साथ हाथी पर जुलूस निकाला गया।
कहना नहीं होगा कि यह जलसा जयपुर दरबार की स्वीकृति लेकर किया गया था और जो डेपुटेशन स्वीकृति लेने गया था उससे उस समय के आईजी एफ़.एस. यंग ने यह वादा करा लिया था कि ठाकुर देशराज की स्पीच पर पाबंदी रहेगी। वे कुछ भी नहीं बोल सकेंगे।
यह जलसा शेखावाटी की जागृति का प्रथम सुनहरा प्रभात था। इस जलसे ने ठिकानेदारों की आँखों के सामने चकाचौंध पैदा कर दिया और उन ब्राह्मण बनियों के अंदर कशिश पैदा करदी जो अबतक जाटों को अवहेलना की दृष्टि से देखा करते थे। शेखावाटी में सबसे अधिक परिश्रम और ज़िम्मेदारी का बौझ कुँवर पन्ने सिंह ने उठाया। इस दिन से शेखावाटी के लोगों ने मन ही मन अपना नेता मान लिया। हरलाल सिंह अबतक उनके लेफ्टिनेंट समझे जाते थे। चौधरी घासी राम, कुँवर नेतराम भी
[पृ.6]: उस समय तक इतने प्रसिद्ध नहीं थे। जनता की निगाह उनकी तरफ थी। इस जलसे की समाप्ती पर सीकर के जाटों का एक डेपुटेशन कुँवर पृथ्वी सिंह के नेतृत्व में ठाकुर देशराज से मिला और उनसे ऐसा ही चमत्कार सीकर में करने की प्रार्थना की।
चीन की जागृति के इतिहास में चांग काई शेक द्वारा सुस्त चीनियों में जान पैदा करने के प्रसंग में एक जगह आता है कि लोगों में जीवन पैदा करने के लिए आरंभिक नारे ये थे (1) बार बार मत चुको (2) दायें बाएँ देखकर चलो (3) हँसते खेलते रहो
शेखावाटी में नया जीवन
ठाकुर देशराज ने शेखावाटी में नया जीवन पैदा करने के लिए लोगों के नामों, पहनाओं, और खानपान तक में परिवर्तन करने की आवाजें लगाई। कुँवर पन्ने सिंह उस समय पंजी कहलाते थे और वे खुद अपने लिए पन्ना लाल लिखते थे। यह नाम उन्हें ठाकुर देशराज ने दिया। चौधरी हरलाल को सरदार हरलाल सिंह, भूरामल को भूर सिंह, देवाराम को देवी सिंह जैसे उत्साह वर्धक नाम ठाकुर देशराज ने दिये। उन्होने ऊनी मोटे कपड़े की घाघरी पहनने का विरोध किया। आज प्रत्येक शिक्षित और समझदार घर से घाघरी गायब हो गई है उनका स्थान धोती सड़ियों ने ले लिया है। उन्होने राबड़ी और खाटा खाने का विरोध किया क्योंकि बासी छाछ से बनी राबड़ी एक मादक पदार्थ बन जाती है।
उन्होने नुक्ता, शादी की फिजूल खर्ची को छोडकर अच्छा खाने , दूध दही खाने पर ज़ोर दिया। यह उनकी आरंभिक सामाजिक क्रांति थी।
[पृ.7]: राजनैतिक क्रांति फैलाने के लिए उन्होने अपने आरंभिक भाषणों में निम्न बातों पर ज़ोर दिया:
- 1. दुखों का अंत करने के लिए कष्टों को आमंत्रण दो
- 2. अपने लिए अपने आप ही कमजोर मत समझो
- 3. साथी न मिले तो अकेले ही बढ़ो। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता किन्तु अकेला आदमी दुनिया को पलट सकता है बशर्ते कि वह दृढ़ निश्चई हो।
- 4. संगठित मधु-मक्खियाँ हाथी को चिंघड़वा सकती हैं।
- 5. अपनी संतानों के वास्ते सुख के द्वार खोलने के लिए बलिदान होने से मत डरो।
शेखावाटी जग उठी। ठिकानेदार ने और भी जुल्म किए। जो कुछ हुआ उसका विवरण आगे है किंतु इन मंत्रों से दीक्षित हुआ। शेखावाटी और सीकर इलाका आज जाग्रत और सबल इलाका समझा जाता है।
सीकर में भी जागृति का बिगुल बजाना था किंतु यहां जाट सभा के प्रचार की कोई गुंजाइश नहीं थी। उपदेशकों फटकने तक नहीं दिया जाता। बहुत सोचने विचारने के बाद ठाकुर देशराज जाटमहा यज्ञ करने की सोची।
जाट महायज्ञ सीकर 1933: सीकरवाटी में जागृति लाने के लिए ठाकुर देशराज ने जाट महायज्ञ करने की सोची। इसके लिए पलथाना में अक्तूबर 1932 में एक बैठक बुलाई। इसमें शेखावाटी के तमाम कार्यकर्ता और सीकर के हजारों आदमी इकट्ठे हुये। बसंत पर 7 दिन का यज्ञ करने का प्रस्ताव पारित हुआ। जिस समय यह मीटिंग चल रही थी सीकर ठिकाने ने पुलिस का गारद भेजा। जिसके साथ ऊंट पर हथकड़ियाँ लदी हुई थी। जिन्हें देखकर लोगों के होश खराब होने लगे। तब ठाकुर देशराज ने कहा ये हथकड़ियाँ तो हमको आजाद
[पृ.8]: कराएंगे। अगर आप इनसे डरोगे तो आप कभी भी आनंद प्राप्त नहीं कर सकते जो आप प्राप्त करना चाहते हो। हम यहाँ धर्म का काम करने के लिए इकट्ठा हुये हैं। यज्ञ में विघ्न डालना क्षत्रियों का काम नहीं है यह तो राक्षसों का काम है। आप डरें नहीं ठिकाना हमारे काम में विघ्न डाल कर बदनामी मौल नहीं लेगा। मुझसे अभी कहा गया है कि मैं राव राजा साहब सीकर के पास चलूँ। ऐसे तो मैं नहीं जा सकता। मुझे न तो किसी रावराजा का डर है न महाराजा का। इन शब्दों ने बिजली जैसा असर किया, लोग शांति से जमे रहे और यज्ञ के लिए कमेटियों का निर्माण कर लिया गया।
इससे कुछ ही महीने पहले खंडेलावाटी इलाके की जाट कनफेरेंस चौ. लादूराम गोरधनपुरा के सभापतित्व में बड़ी धूम-धाम से गढ़वाल की ढानी में हो चुकी थी। इस प्रकार जागृति का बिगुल तमाम ठिकानों में बज चुका था।
सीकर यज्ञ होने में थोड़े दिन शेष थे कि नेछआ में ठाकुर हुकम सिंह परिहार जब चंदा कमेटी का काम करने गए थे तो पकड़ कर काठ में दे दिया। और एक जाट की पिटाई सीकर में की। इन्हीं दिनों अर्थात दिसंबर 1932 को पिलानी में राय साहिब हरीराम सिंह के सभा पतित्व में अखिल भारतीय जाट विद्यार्थी कानफेरेंस का अधिवेशन हो रहा था। उसमें चौधरी छोटूराम साहब भी पधारे थे। तार द्वारा जब उनको सीकर से इतला मिली तो वे सीकर पहुँच गए। वहाँ उन्होने 5000 लोगों की उपस्थिती में एक तगड़ा भाषण दिया। इससे ठिकाने के भी होश ढीले हो गए। और जाटों में भी जीवन पैदा हो गया।
सन 1933 की जनवरी में बसंत आ गया और उसके
[पृ.9]: सुनहले दिनों में लगभग 80000 की हाजिरी में यज्ञ का कार्य आरंभ हुआ। किरथल आर्य महाविद्यालय के ब्रह्मचारियों ने पंडित जगदेव सिद्धांती के नेतृत्व में यज्ञ आरंभ किया।
यज्ञपति थे आंगई के कुँवर हुकम सिंह परिहार और यज्ञमान ने कूदन के चौधरी कालूराम। वेदी पर दो दाढ़िया आर ब्रह्मचारी गण वैदिक काल के राजाओं और ऋषि बालकों की याद दिलाते थे। दस दिन तक वेद मंत्रों से यज्ञ हुआ। यज्ञभूमि छोटी-छोटी झोंपड़ियों और छोलदारियों का एक उपनिवेश सा बन गई थी।
यज्ञपति और वेदों का जुलूस निकालने के लिए जयपुर से एक हाथी मंगवाया गया था। किन्तु सीकर ठिकाने ने हाथी पर जुलूस न निकालने देने की जिद की। तीन दिन तक बराबर चख-चख रही। जयपुर के आईजी एफ़एस यंग को जयपुर से हवाई जहाज से मौके पर सीकर भेजा। दोनों तरफ की झुका-झुकी के बाद हाथी पर जुलूस निकल गया।
इस यज्ञ में 10 दिन तक जाट संगठन और जाट उत्थान का प्रचार होता रहा। लगभग 10 भजन मंडलियों और दर्जनों वक्ताओं ने जनता का मनोरंजन और ज्ञान-वर्धन किया। इसी समय कुँवर रतन सिंह की सदारत में राजस्थान जाटसभा का भी जलसा किया गया। इस में राजस्थान के तो हर कोने से लोग आए ही थे भारत के भी हर कोने से लोग आए थे। इसी समय जाट इतिहास का प्रकाशन हुआ और सर्वप्रथन उसकी कापी यज्ञकर्ताओं के लिए दी गई।
सीकर महयज्ञ के बाद जाटों में जागृति की वह लहर
[पृ.10]: आई जिसे लाख जुल्म करने पर भी सीकर ठिकाना नहीं दबा सका जिसका विवरण अन्यत्र दिया गया है।
सूरजमल शताब्दी समारोह 1933
सन् 1933 में पौष महीने में भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल की द्वीतीय शताब्दी पड़ती थी। जाट महासभा ने इस पर्व को शान के साथ मनाने का निश्चय किया किन्तु भरतपुर सरकार के अंग्रेज़ दीवान मि. हेनकॉक ने इस उत्सव पर पाबंदी लगादी।
28, 29 दिसंबर 1933 को सराधना में राजस्थान जाट सभा का वार्षिक उत्सव कुँवर बलराम सिंह के सभापतित्व में हो रहा था। यह उत्सव चौधरी रामप्रताप जी पटेल भकरेड़ा के प्रयत्न से सफल हुआ था। इसमें समाज सुधार की अनेकों बातें तय हुई। इनमें मुख्य पहनावे में हेरफेर की, और नुक्ता के कम करने की थी। इसमें जाट महासभा के प्रधान मंत्री ठाकुर झम्मन सिंह ने भरतपुर में सूरजमल शताब्दी पर प्रतिबंध लगाने का संवाद सुनाया।
यहाँ पर भरतपुर में कुछ करने का प्रोग्राम तय हो गया। ठीक तारीख पर कठवारी जिला आगरा में बैठकर तैयारी की गई। दो जत्थे भरतपुर भेजे गए जिनमे पहले जत्थे में चौधरी गोविंदराम हनुमानपुरा थे। दूसरे जत्थे में चौधरी तारा सिंह महोली थे। इन लोगों ने कानून तोड़कर ठाकुर भोला सिंह खूंटेल के सभापतित्व में सूरजमल शताब्दी को मनाया गया। कानून टूटती देखकर राज की ओर से भी उत्सव मनाया गया। उसमें कठवारी के लोगों का सहयोग अत्यंत सराहनीय रहा।
जोधपुर में जाट महासभा अथवा स्थानीय जाट सभा का कोई शानदार उत्सव नहीं कराया गया परंतु उसके भीतर
[पृ.11] जाकर ठाकुर देशराज और उनके साथियों ने जागृति न फैलाई हो ऐसी बात नहीं।
जोधपुर, बीकानेर, लोहारु ऐसी कौनसी रियासत है जहां के कड़े मोर्चे पर जाट सभा न पहुंची हो।
अलवर में भी जाट सभा के दो जलसे बड़ी शान से हुये।
राजस्थान के अलावा ग्वालियर राज्य में एक जलसे का ठाकुर देशराज ने सभापतित्व किया। उससे पहले एक साल वहाँ जाकर पचासों गांवों का हाल देखा था। इसी तरह दतिया के जाट गांवों का भी परिचय प्राप्त किया। गर्ज यह है कि जहां भी जाट आबाद रियासतें थी वहाँ राजस्थान जाट सभा के प्राण ठाकुर देशराज ने रूह फूंकी।
किसानों का बुरी तरह शोषण
इस आंदोलन से पहले राजस्थान की रियासतों के किसानों का जिस बुरी तरह शोषण होता था उसका चित्र हम वहां उस समय पर प्रकाशित हुई लेखों में ही देते हैं जो आंदोलन के कारण बताने के लिए ठाकुर देशराज जी ने हिंदी प्रमुख दैनिक पत्र 'अर्जुन', 'लोकमान्य' और 'नवयुग' आदि में लिखे थे।
उस समय तक अजमेर मेरवाड़ा और मारवाड़ के कई ठिकानों में ठिकानेदार लोग ब्याह-शादी और मृतक भोजन के अवसर पर किसानों से कांसे (भोजन थाल) लेते थे।
खंडेला के ठिकानों में लगान में बटाई देने का कायदा था। बटाई देने के बाद किसान के पास खाने के लिए कभी-कभी तो कुछ भी नहीं बचता था। क्योंकि बटाई के लिए खड़ी फसल कि कूंत होती थी और कूंत (अंदाजा) का नतीजा कमी में गिना जाता था। खेतड़ी ठिकाने में भैंस के हर ब्यान्त पर पांच
[पृ 12]: रुपया टैक्स वसूल किया जाता था। रेनवाल किशनगढ़ का ठिकानेदार लड़कियों के शादी के अवसर पर किसानों से फीस-शादी वसूल करता था जो ₹2 प्रति शादी थी।
बीकानेर के छोटे ठिकानों में जब कोई मेहमान पहुंचता तो ठिकानेदार उसे लेकर गांव में पहुंच जाते थे और मय अतिथि के किसानों के घर मेहमानी उड़ाते थे।
सीकर के ठिकानेदार ने तो एक वर्ष हरिद्वार स्नान का खर्च भी अपने किसानों से वसूल किया था। नई-नई मोटरों और घोड़े घोड़ियों की कीमत तो प्राय सभी ठीकानेदार अपने किसानों से वसूल करते थे।
इन अत्याचारों के खिलाफ अगर किसान अदालतों में जाते तो वहां भी उनकी सुनवाई नहीं होती थी क्योंकि हर कचहरी और हर महकमें में ठिकानेदारों के रिश्तेदार और पोषक लोग भरे पड़े थे। यही कारण था कि रियासतों के किसान जलहीन सरोवर की मछलियां की भांति तड़प तड़प कर रह जाते थे।