Jat Prachin Shasak/Dakshin Bharat Me Jat Kul

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जाट प्राचीन शासक (1982)
लेखक - बी. एस. दहिया (आइ आर एस, रिटायर्ड)

विकिफाईअर : चौ. रेयांश सिंह


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दक्षिण भारत में जाट कुल

दक्षिण भारत में मौर्य काल से ही उत्तर भारतीय क्षत्रियों का उल्लेख प्राप्त होना शुरू हो जाता है। तमिल संगम साहित्य में इन्हें "नव-उत्तरीय" तथा "वम्बा मोरियार" कहा गया है। एस.के. आयंगर ने दक्षिण भारत पर मौर्य आक्रमण की विशद्‌ चर्चा की है | (इस संदर्भ में उन की कृति देखी जा सकती है।)1
हमारा मन्तव्य यहां केवल यही दिखाना है कि उत्तर भारत में अभी तक विद्यमान जाट कुलों के नाम वाले कुल नाम दक्षिण भारत में भी शासन कर रहे थे। हम इस से पूर्व यह चर्चा कर चुके हैं कि उड़ीसा के मान तथा सिलार शासकों के नाम भी जाट कुलों के नाम पर आधारित हैं। उड़ीसा राज्य का नाम भी एक जाट कुल पर आधारित है जिसे ओड्र/ओड्रान कहते हैं। एक जर्मन कबीले का भी यही नाम है Autran, ओड्र शब्द में ईश जोड़ने से हमें ओडरेश शब्द प्राप्त होता है जो उड़ीसा में परिवर्तित हो जाता है। मान तथा मौर्य वंश परवर्ती काल में महाराष्ट्र तथा कोंकण क्षेत्रों में भी शासन कर रहे थे। अशोक काल के रठिकों ने महाराष्ट्र को यह नाम दिया। (महाराष्ट्र अर्थात्‌ महारठिक) इन रठिकों की तादात्मयता जाटों में राठी कुल से स्थापित की जा सकती है। जाटों के अन्दर कुल को, संस्कृत रूप दे कर आंध्र बना दिया गया दिखाई देता है। यहां तक केरल का प्रश्न है निश्चित रूप से इस का नामकरण केर नाम के एक जाट कुल पर हुआ है। केर पंजाब के खेर जाट ही हैं और केर में ल प्रत्यय लगाने सें केरल बनता है। केर लोगों के साथ ही साहित्य में चोल तथा पांडिय लोगों का भी उल्लेख मिलता है और ये नाम भी जाट कुलों, चाहल/चौल तथा पांडी के नामों के अतिरिक्त कोई अन्य नहीं हैं। चोल उत्तरी क्षेत्र के लोग थे और उन का राज्य गिलगित के पास होने की जानकारी प्राप्य है।2 चोल केरल तथा पांडिय पितृ प्रधान समाज के लोग थे (न कि मातृ प्रधान समाज के लोग)। ऐच.डी. सांकलिया3 तथा टाल्मी4 तक ने भी दक्षिण भारत में एक पांडियाण राज्य का तथा पंजाब में एक पांडोवी राज्य का उल्लेख किया है। चौथी शताब्दी ई. पू. में, पाणिनी की "जनपद शब्दात्‌ क्षत्रियाद"5 पर टिप्पणी करते हुए कात्यायन एक वार्तिका, पांडोर ड्यान का उल्लेख करते हैं, जिस से हमें पाण्डय शब्द की प्राप्ति होती है और यह एक

1. Ancient India & South Indian History & Culture, (1941) Poona, p. 53.
2. JBROS, Vol. XVIII (1932) p. 97.
3. "Aspects of Indian History & Archeology" Edt. S.P. Gupta.
4. LA, Vol. XIII, pp. 331 & 349.
5. Panini's Astadhyayi, IV/1/168.

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क्षत्रिय कुल का नाम है. कात्यायन इस के साथ चोड-चोल लोगों का भी उल्लेख करते हैं। अतः चौल, पाण्डय तथा केरल उत्तर भारत के क्षत्रिय कुल थे जिन्होंने सुदूर दक्षिण में भी अपने राज्य स्थापित किये और जिन के नाम उन्होंने अपने कुल तथा कबीलों के नाम पर रखे।
डी.आर. भण्डारकर तो 1918 से यह मान रहे हैं कि पाण्डय पंजाब का एक आर्य कुल है, जो दक्षिण की ओर गया। यह लोग मथुरा से दक्षिण की और बढ़े और उन्होंने अपने दक्षिणी राज्य की राजधानी का नाम भी मदुरा रखा। (मदुरा.....मदुरई) और फिर श्रीलंका में भी एक नगर का नाम उन्होंने मथुरा ही रखा।6कोसर लोग, जो पोथियाल की पहाड़ियों में मौर्य सेनाओं का नेतृत्व कर रहे थे, कोसर कुल के ही लोग है। वे ऐसे महान योद्धाओं के रूप में विख्यात थे, जो सदा ही अपने वचन का पालन करते थे और उनको लेकर ही यह मुहावरा प्रचलित है - "कोसर वचन कभी न जाय"।7 कोसर कुल के शिशु शस्त्रों का प्रयोग वृक्षों पर प्रहार कर के सीखा करते थे।8 बाण/बान जो आज भी जाटों का एक विद्यमान कुल है, तुर्किस्तान तक में पाया जाता है।9 इस कुल के ही कुछ लोग दक्षिण की ओर गये तथा उन्होंने कर्नाटक के क्षेत्र में अपने राज्य स्थापित किये। एक बानधिराज अथवा महाबलि बान राजा, अपना सम्बन्ध प्रख्यात पौराणिक नाम, बाली/बान-असुर से स्थापित करता था।10 बान राज्य आंध्र प्रदेश के पश्चिम में स्थित था।
बान राजाओं के सम्बन्ध में और भी देखिये।11 एक बृहद बान अथवा महाबान जिसे तमिल में पेरूमबान कहा जाता था, की राजधानी वानपुरम अर्थात्‌ तिरू वल्लम में थी।12 प्रख्यात चालुक्य तो निस्संदेह चुलिक/सोलगी कुल के हैं, जिन्हें आजकल सोलंकी/सोलगी कहा जाता है और यह कुल जाटों तथा राजपूतों में पाया जाता है।
"महाभारत" (6/9/62) में दक्षिणी क्षेत्र में स्थित एक जनपद कलकल का उल्लेख मिलता है, यह भी कलकिल जाट कुल ही है, पुराणों में इन्हें कलकिल यवन कह कर सम्बोधित किया गया है। सौथोर शिलालेख में लोनिया कुल की एक महिला कृष्णा देवी का उल्लेख है, जिस का विवाह डाहल देश के कशपुर राजा देउक13 के साथ हुआ। जिस का सम्बन्ध कलेर कुल से था।14 अब लुनिया, डाहल, कलेर तीनों ही आज भी

6. The Carmichael Lectures; IHQ, (1939) Vol. XV, pp. 466-7.
7. "Kosar of the Unfailing World".
8. S.K. Ayanger, op. cit., Vol. II, p. 721; Indian Culture Vol. I (1934-5) p. 97.
9. JRAS (1930) p. 91.
10. Ep. Ind. Vol. Ill, p. 74; Vol. IV, p. 221.
11. J. I. H. Vol. XXIX (1951) p. 221.
12. Ep. Ind., III, p. 28 Note.
13. मण्ड राजा देउक/देवक से समानता देखिये
14. Ep. Ind., Vol. XXVII, p. 170.

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विद्यमान जाट कुलों के नाम हैं, जैसे चोल, केर तथा पाण्ड्य आदि। पल्लव भी एक जाट कुल ही हैं जिन्होंने दक्षिण के एक प्रदेश को अपना नाम दिया, ये लोग भी पलवल जाट ही हैं।
एक अन्य जाट कुल के अभिलेख भी दक्षिण भारत में प्राप्त हुए हैं। यह एक पंघाल कुल है। जिस ने अपना नाम तमिलनाडू की तरह पंघालनाडू को दिया।15 इसी तरह कंगनाडु जाटों के कंग कुल द्वारा बसाया गया था। कंग राजाओं को संस्कृत रूप देते हुए गंग भी कहा गया। शिवमार को एक कोंगुणी राजा कहा गया है।16 तथा एक अन्य राजा मार सिंह की उपाधियां इस प्रकार दी गई है गंग-वज्र, गंग चूड़ामणी तथा गुट्टीय गंग। जैसा कि सर्व विदित है कंग लोगों को पुराणों में कन्क कहा गया है तथा कोंग प्रदेश दक्षिणी भारत का प्राचीनतम खण्ड था।17 यहां तक कि एक राष्ट्रीय मार्ग का नाम, कोंग, इसी कुल के नाम पर था। हम यहां इस तथ्य पर कुछ विशद्‌ चर्चा करना चाहते हैं कि इन कुलों को कई बार गुट तथा गुटी कहा गया है जिस से इतिहासकार असमंजस में पड़ जाते हैं तथा इस शब्द की भिन्न-भिन्न रूप से व्याख्या होने लगती है। मार सिंह को गुट्टीय गंग भूप कहा गया है जिस का अर्थ लिया गया है, "मितभाषी या गुप्त गंग।" यह अर्थ पूर्ण रूप से अस्वीकार्य है। एक अन्य अनुवाद इससे कुछ बेहतर है। "उस की उपलब्धियां, जो गुटी का गंग राजा है तीनों लोकों में प्रशंसा का विषय रहीं।"18
किन्तु इस का विशुद्ध एवं स्पष्ट अर्थ है "गुटी लोगों के कंग (कुल का) राजा।" जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि गुटी वही शब्द है जिसे चीनी यूची लिखते हैं और उस का उच्चारण गुटी अथवा जटी के रूप में होता है अर्थात्‌ जाट, यूची में पहला शब्द 'ग' अथवा 'ज' होना चाहिये।19 यू-ची = गुटी, यह समीकरण पूर्ण रूप से शुद्ध एवं सुनिश्चित समझा जाना चाहिये।20 कार्ल ग्रेन का भी मत है कि यू-ची का अर्थ गोट/गुट/गाट ही है। डी.आर. भण्डारकर शब्द 'गुटी' अथवा 'गोटी पुत्र' पर विचार करते हैं। उन का विचार है कि सम्भवतः यह शब्द संस्कृत के गुप्ती तथा कोट/कोटी एक मां का नाम होना चाहिये। एक अन्य विद्वान यह घोषणा करते हैं कि भारत में गुट तथा गोट की उपस्थिति मात्र काल्पनिक है।
लेकिन ये विद्वान इस तथ्य से अवगत नहीं है कि जाट अथवा गोट आज भी भारत में विद्यमान हैं और वे भी हिन्दुओं में ही। यद्यपि गोट अथवा गाट राजस्थान में आज भी विद्यमान एक जाट कुल है, हम ने दोनों शब्द रूप, जाट तथा गाट एक ही अर्थ देने वाले

15. Ep. Ind., Vol. XXXIII, p. 23.
16. -do- Vol. V, p. 154.
17. -do- Vol., XXX, p. 98.
18. -do- Vol., ХХII, pp. 178-80.
19. JBORS Vol. XVIII, p. 09.
20. JAOS (1945) Vol. LXV, p. 77.

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पर्यायवाची शब्दों के रूप में लिये हैं, अंतर केवल उच्चारण करते हुए 'ज' तथा 'ग' का है। भारतीय अभिलेखों में गोट, गोटी, गुट्टीया, गोटी-पुत्र से सम्बन्धित कई उल्लेख हैं और यहां उन की विस्तृत चर्चा की आवश्यकता नहीं है। इस संदर्भ में एक अकेला वास्तविक तथ्य यही है कि हर कुल (या व्यक्ति) जिसे गुट अथवा गोट कहा गया है वह जाटों के आज भी विद्यमान कुलों का ही प्रतीक है तथा यह बात कोई आकस्मिक घटना भी नहीं है अपितु यह बिना कोई भूल किये सीधे इस ऐतिहासिक तथ्य की और संकेत करती है कि ये लोग जाटों के ही कुल थे और आज भी हैं।
दक्षिण में कांची के कामाक्षी अम्माल मन्दिर में बहुत सी बौद्ध प्रतिमायें मिली हैं।21 इनमें एक तो 7 फुट ऊंची है। टी.ए. गोपीनाथ राव का मत है कि कामाक्षी मन्दिर, प्राचीन बौद्ध देवी तारा का मन्दिर है। कवयित्री अव्वैयार की एक कविता में लिखा है कि "मलईनाडू में हाथी हैं, चोल देश में खाद्य पदार्थ विपुलता से हैं, पांड्य देश में मोती हैं और तोन्डईनाडू में विद्वान जन"।22 यह चारों देश, दक्षिण भारत में हैं और चार जाट कुलों के नाम पर हैं जिन्हें आजकल, मल्ली, चोहल, पांडी और थांडी कहा जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि जाट कुल समस्त भारत में फैले थे और अन्ततः वे स्थानीय जनों में घुल मिल गये। उनके द्वारा इतिहास में छोड़े गये नाम ही, उनकी पहचान हैं।

21. Ind. Antiquary, Vol. XLIV (1915) pp. 128-29.
22. J. I. H., Vol. LIII (1975) p. 23.

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