Jat Prachin Shasak/Patan Ka Karan: Kattarvaad Ka Utthaan

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जाट प्राचीन शासक (1982)
लेखक - बी. एस. दहिया (आइ आर एस, रिटायर्ड)

विकिफाईअर : चौ. रेयांश सिंह


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पतन का कारण : कट्टरवाद का उत्थान

ए.आर. मजूमदार लिखते हैं, "सम्भवतः किसी काल की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये हिन्दुओं ने ऐतिहासिक तथ्यों को दबा कर उन के स्थान पर कपोल कल्पित कहानियां घड़ लीं। अत्यधिक सम्भावना यह है कि यह काल 650 ई. से शुरू होने वाली शताब्दी रही होगी।"1
एच.इब्ल्यू बैले2 लिखते हैं कि इसे सौभाग्य ही समझा जाना चाहिये कि भारतीय भाषा अपने धार्मिक व अन्य साहित्य को अपने देश में सुरक्षित रखने में सफल रही। बैले आगे चल कर फिर कहते हैं कि इस दृष्टि से बौद्ध साहित्य को अत्यधिक क्षति पहुंची तथा चीनी और तिब्बती अनुवाद में इस क्षति की आंशिक रूप में पूर्ति सम्भव हो सकी।
अब यहां प्रश्न यह पैदा होता है कि ब्राह्मणीय साहित्य क्यों बचा रहा और बौद्ध साहित्य क्यों सुरक्षित न रह सका। ये दोनों ही भारत की अपनी देन ये तथा इसी धरती पर ये दोनों साहित्य पनपे, फले-फूले तथा समृद्ध हुये। मध्य युग से पूर्व लिखित ऐतिहासिक साहित्य के साथ क्या हुआ ? हमारे पास एक हज़ार वर्ष का एक ऐसा साक्ष्य है जिस के अनुसार राजकीय व्यवस्था का एक पूर्ण, अलग विभाग इतिहास लिखने के कार्य में लगा हुआ था। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में मैगस्थनीज़ हमारे लिये एक प्रमाण के रूप में यह लिखता है कि एक ऐसा विभाग था जिस के ज़िम्मे केवल ऐतिहासिक घटनाओं को संकलित करने का काम था। हर्ष के शासनकाल सातवीं शताब्दी में भी, हमें ह्यून-त्सांग के माध्यम से इसी इतिहास लेखन का प्रमाण मिलता है और अन्ततः यह क्योंकर हुआ कि सातवीं शताब्दी के पिछले अर्द्ध काल से ले कर नौंवीं शताब्दी तक का काल भारतीय इतिहास के सर्वाधिक अन्धकार भरे रूप में उभरा ?
इन सभी प्रश्नों का एक मात्र उत्तर केवल यही है कि ब्राह्मणीय कट्टरवाद का उत्थान हो रहा था और विशेष रूप में हर्ष की मृत्यु के पश्चात्‌ यह अपने चरम शिखर पर था। ब्राह्मणवाद को सैन्य शक्ति और अत्यधिक उत्साह के बल पर राज्य धर्म बना दिया गया था। यह काम केवल प्रचार एवं धर्म उपदेश दे कर ही नहीं किया गया अपितु हिंसा एवं अन्य धार्मिक समुदायों पर घृणित तीखे तेज़ हिंसक प्रहारों के साथ ही सम्पन्न किया गया। यह सब केवल शास्त्र बल पर ही नहीं अपितु शस्त्र बल पर {भी} किया गया। यहां तक कि जो राजा धर्म निरपेक्षता में विश्वास एवं आस्था रखते थे, एक धार्मिक समुदाय व

1. The Hindu History (1979) p. 11; 14.
2. А Half Century of Irano-Indian Studies in JRAS (1972) p. 99.

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दूसरे के बीच ब्राह्मणों, बौद्धों तथा जैनियों में कोई भेदभाव नहीं रखते थे, उन पर आक्रमण किये गये और कट्टरवादियों के गुप्तचरों द्वारा उन की हत्याएं तक करवाई गई। इस सम्बन्ध में कुछेक उदाहरण इस प्रकार हैं :-
1. कश्मीर का राजा चन्द्रपीड़ 722 ई. में ब्राह्मणों के हाथों मारा गया।3
2. अगले शासक तारापीड़ की भी हत्या 724 ई. में ब्राह्मणों द्वारा ही की गई।4
3. कश्मीर के तृतीय राजा ललितादित्य के जीवन की रक्षा काबुल के शाही शासकों के कारण ही सम्भव हो सकी। इन राजाओं ने कश्मीर प्रशासन के पांच महत्वपूर्ण विभागों की व्यवस्था के लिये अपने विशेष अधिकारी भेजे थे जिनके प्रयासों से ललितादित्य के जीवन की रक्षा हो सकी। शाही राजाओं की पांच पीढ़ियों को मुसलमानों की शक्तिशाली सेनाओं के विरुद्ध केवल अपने बल पर निरन्तर युद्धरत रहना पड़ा। उन्हें शेष भारत से, न कोई सहायता मिली और न सहानुभूति, क्योंकि वहां कट्टरवाद ज़ोर पकड़ रहा था।5 सिंध के जाटों तथा बौद्धों को दाहिर के विरुद्ध मुहम्मद बिन कासिम का साथ देने के लिये विवश होना पड़ा जो इसी कट्टरवाद का राजनैतिक परिणाम था।5A चच के भाई चन्द्र का सारा समय, मन्दिर में लोगों के साथ धर्म अध्ययन में लगता था।5B इस तरह हम देखते हैं कि तत्कालीन शासक, राज्य के मामलों तथा जन कल्याण के कार्यों में व्यस्त न हो कर, नये धर्म के अध्ययन एवं प्रसार में लगे हुये थे, जिसे माऊंट आबू में आयोजित अग्नि यज्ञों के बल पर सर्वोच्च धर्म घोषित कर दिया गया था तथा जिस के माध्यम से एक नया योद्धा वर्ग "ब्रह्म-क्षात्र" अस्तित्व में लाया गया था जिस का एक मात्र उद्देश्य बौद्धों को पराजित करना था, पुराणों के अनुसार "जित्वा बौद्धान्"
4. उत्तर भारत के बैंस राजा हर्ष वर्धन की हत्या विशेष रूप से नियुक्त एक हत्यारे द्वारा करवाने का प्रयास किया गया किन्तु सौभाग्य से वह बच गया। तदोपरान्त हर्ष ने हत्या के इस षड्यण्त्र में संलिप्त ब्राह्मण परिवारों को विंध्याचल के पार सुदूर दक्षिण में निष्कासित कर दिया।
5. चच "ब्राह्मण" ने सिंध के वैध शासक साहसी राय को शारीरिक रूप में खत्म कर के सिंध राज्य को हथिया लिया तथा उसकी विधवा रानी से विवाह कर लिया। अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिये उस ने अपनी बहनों तथा बेटियों के विवाह स्थानीय क्षत्रियों से किये, जो ब्राह्मण नहीं थे। (संयोग से चच को इस कार्य तथा उस {के} द्वारा किये जा रहे अन्य ऐसे कई कार्यों से तथा जाटों में दाहिर नाम का गोत्र पाये जाने से ऐसा दिखाई देता है कि चच स्वयं ब्राह्मण न हो कर एक ऐसा क्षत्रिय था, जिस ने

3. राजतरंगिणी भाग 4/124.
4. -उपरोक्त-
5. Journal of Indian History Vol. XLVII (1965) p. 363.
5A. ibid., p. 365.
5B. ibid., p. 377, quoting Kalichbegh.

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ब्राह्मण धर्म अपना लिया था और वह भी चित्तौड़ के बापारावल की तरह एक ब्रह्म क्षात्र था)।
6. बापारावल चित्तौड़ के एक मौर्य राजा की पुत्री का पुत्र था। इस मौर्य राजा नाम मनु राज अथवा मान राज था और एक अन्य मौर राजा दुर्ग गण था जिस ने चित्तौड़ पर 690 ई. में शासन किया।6 मौर राजा, धवल, कोटा में 725 से 738-39 तक शासक था।6A बापारावल का जन्म गुहिल गौत् में हुआ था। ब्राह्मणों के द्वारा उकसाये जाने पर उसने अपने नाना को मार कर राज्य पर बलात्‌ कब्ज़ा कर लिया। मौर्य राजा के चार भतीजों ने अपनी उंगली काट कर अपने रक्त से बापा का राज तिलक किया था। उन के तीन अन्य भाइयों ने भी बापा को अपना राजा मान लिया था किन्तु इस कृतप्न बापा रावल ने इन चारों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया। अबुल फज़ल कृत आईन-ए-अकबरी में इस घटना का काल 734 ई. दिया गया है।7 इन चित्तौड़ के मौर शासकों ने,अपने सम्बन्धी महरत, को साहसी राय की सहायतार्थ सिन्ध भेजा किन्तु चच द्वारा युद्ध में मारा गया।7A
7. ग्रह वर्मन मौखरी (जिस ने हर्ष की बहिन राज्यश्री से विवाह किया था) की हत्या गौढ़ (बंगाल) के राजा शशांक ने विश्वासघात द्वारा की और यह भी कहा जाता है कि इस राजा ने कई बौद्ध स्तूपों एवं मंदिरों को तथा विख्यात बौद्धि वृक्ष तक को नष्ट किया था।
8. दक्षिण में नागार्जुन कौण्ड़ा में स्थित बौद्ध अध्ययन केन्द्र के एक विख्यात परिसर को नवोदित ब्राह्मण कट्टरवाद के प्रतिनिधियों के हाथों जानबूझ कर नष्ट करवाया गया। 'शंकर दिग्विजय' के अनुसार नव धर्म परिवर्तित ब्रह्म क्षात्र राजाओं ने हिमालय से ले कर कन्या कुमारी तक प्रत्येक व्यक्ति को ये आदेश दे रखे थे कि वह बौद्धों, चाहे वे बूढ़े हो या युवा, की हत्या करते चले जाये और उन लोगों को भी जान से मार दें जो बौद्धों की हत्या करने से इन्कार करें। यहां तक कि जब पृथ्वीराज चौहान अपने राष्ट्र की रक्षा के लिये अपनी जान पर खेल रहा था तो दक्षिण भारत का एक राजा, वीर गोगी देव, स्वयं यह घोषित करता हुआ अत्यधिक गर्व महसूस कर रहा था कि वह "जैन धर्म ग्रंथों के लिये अग्नि समान है, जिन के अनुयायियों के रूप में जंगली जानवरों के लिये वह एक शिकारी है और वह बौद्ध धर्म को तबाह करने में पूर्ण रूप से दक्ष है।"8 इन और अन्य ऐसे कार्यों के परिणाम स्वरूप सभी गैर ब्राह्मणीय साहित्य विधिवत रूप में नष्ट कर दिया गया, जैसे वृहस्पति द्वारा लिखित लोकायत/चार्वाक दर्शन साहित्य की

6. IA, Vol. LVI, p. 213.
6А. IHQ, Vol XXII, p. 316.
7. Translation by Jarret, Vol. II (1891; p. 268-9).
7A. J. I. H. (1965) p. 377.
8. Epigraphica Indian Vol. XXIX p. 141-144.

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एक कृति जिस का उल्लेख अलबेरुनी ने 11वीं शताब्दी में किया था, अब उपलब्ध नहीं है।
9. कन्नौज के मौर्य राजा यशोवर्मन ने अरब आक्रमणों का मुक़ाबला करने के लिये उत्तर पश्चिम सीमा पर उत्तरीय क्षेत्र के लोग मन्त्री पदों पर नियुक्त कर रखे थे जैसे मालद सपुत्र तिकिन8A किन्तु यह राजा अपने देश को आंतरिक कट्टरवाद के उत्पात से सुरक्षित न रख सका।
इस तरह कठोर सामाजिक मर्यादाओं एवं ह्रासोन्मुख वर्ण व्यवस्था से ग्रस्त "हिन्दूवाद" को लोगों पर बलपूर्वक ठोंसा गया और यहां तक हिन्दू धर्म के बहुवादी स्वरूप को दान दक्षिणा तथा कर्म काण्ड़ में अंध विश्वास रखने बाले ब्राह्मण धर्म में परिवर्तित कर दिया गया, जिस में दलित वर्ग को, पुनर्जन्म के सिद्धान्त तथा अगले जन्म में उन्हें अच्छी भाग्य प्राप्ति का दिवास्वप्न दिखा कर निम्नतम स्थान पर रखा गया। अशोक कालीन यह महान्‌ आदर्श कि राजा प्रजा का पिता होता है, भुला दिया गया। अशोक ने कहा था, "सभी लोग मेरे बच्चे हैं। तथा सभी सम्प्रदायों के लोग सभी जगह निवास करें।" इस के अतिरिक्त अशोक इस न्यायपूर्ण लोकतांत्रिक सिद्धान्त में भी आस्था रखता था कि "न्यायिक प्रक्रिया तटस्थता पूर्ण होनी चाहिये, दण्ड विधान भी भेदभाव रहित होना चाहिये।" किन्तु यह सब कट्टरवादी पक्षपातपूर्ण व्यवस्था में संभव नहीं था जिस में निर्दोष बौद्धों अथवा जैनियों की हत्याएं की जा रही थीं और उन के धर्म स्थलों को नष्ट किया जा रहा था। आभीर राजा उषवदात ने वाराही के पुत्र अश्विभूति, जो कि एक ब्राह्मण था, से कुछ भूमि 4000 कहापन्न दे कर खरीदी। (अधिग्रहण नहीं की) तथा उसे बिना किसी भेदभाव के साधुओं को दान में दे दिया।9 रुद्रदमन (शक राजा) ने राजकीय कोष से सुदर्शन झील की मुरम्मत करवाई, इस के लिये उस ने "न तो कर लगाये न ही किसी से विशेष धन मांगा और न ही श्रमिकों से बलपूर्वक काम लिया।" दूसरी ओर एक युद्धरत शासक, गौतमी पुत्र सतकर्णी, स्वयं को एक "अश्वितीय ब्राह्मण" समझ रहा था तथा एक अन्य सतकर्णी राजा एक विदेशी शक शासक रुद्रदमन की पुत्री से विवाह कर रहा था और ये लोग फिर भी कह रहे थे कि "उन्होंने अन्तर्जातीय सम्बन्धों को खत्म कर दिया है।"10
क्या यह कट्टरवाद के उत्थान तथा जातीय संघर्षों का परिणाम नहीं था जिस ने नये राजपूत शासकों को, काबुल के शाही शासकों की सहायता करने से, सिंध को अरबों से बचाने, और मातृभूमि की रक्षा के लिये संगठित होने से रोका ? यही वह काल था जिस में तिरूमंगाई अलवर ने नागापट्टम की प्रख्यात स्वर्ण निर्मित बौद्ध प्रतिमा को

(8A). EP. Ind., XX, p. 41.
9. Nasik Cave Inscription, No. 10.
10. D.D. Kosambi, "Introduction to the Story of Indian History" (1975) p. 318.

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पिघलवाया ताकि श्रीरंगम में बन रहे रंगनाथ स्वामी मंदिर का खर्च पूरा किया जा सके। जगन्नाथ पुरी का बौद्ध मंदिर वैष्णव पूजा का मंदिर बना दिया गया। अशोक तथा अन्य बौद्ध धर्म के अनुयायी राजाओं की उपाधि "देवानाम प्रिय थी" (जो देवताओं का प्रिय है)12 किन्तु कात्यायन ने फतवा दिया कि, "देवानामप्रिय का अर्थ है मूर्ख।" अन्य धर्मों के प्रति निरादर व्यक्त करने के लिये उन के नामों के विकृत अर्थ प्रस्तुत किये गये जैसे कि बुद्ध को बुद्धू अर्थात मूर्ख कहा जाने लगा। जैन भिक्षुओं की विशिष्ट पहचान, नग्न एवं लुचिंत का अर्थ लिया गया लुच्चा लुगांड़ा।13 इसी तरह पाषण्ड सम्प्रदाय को पाखण्ड कहा गया। (इस सम्बन्ध में डाक्टर राज बलि पाण्डेय की कृति "अशोक के अभिलेख" पृ. 2 आदि भी देखिये।)
उपर्युक्त सभी तथ्यों से स्वतः यह स्पष्ट होता है कि तत्कालीन समाज, धार्मिक स्थानों के बलात्‌ ध्वंसों, अब्राह्मणों की निर्बाध हत्याओं, विशाल भारतीय जनता की धार्मिक भावनाओं के प्रति खुले निरादर से किस सीमा तक टूट कर छिन्न भिन्न हो गया होगा। अतः ब्राह्मणीय कट्टरवाद को ही 8वीं शताब्दी में तथा उस के बाद इस्लामी शक्तियों द्वारा भारत पर विजय प्राप्त करने के लिये दोषी ठहराया जा सकता है।

11. TA. Gopinath Rao, qouted East & West. Vol. 35, p. 112.
12. JRAS (1901) p. 577.
13. Nagna, mean Naked, without clothes; and Luncita means short-head, the two main characteristics of Jain Sadhus.

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