Egypt
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Egypt (मिश्र) is a Middle Eastern country in North Africa. While the country is geographically situated in Africa, the Sinai Peninsula, east of the Suez Canal, is a land bridge to Asia.
Variants
- Egypt and Egyptians (Anabasis by Arrian, p. 109, 118, 120, 135, 140-149, 158, 193, 266, 271, 276, 308, 317, 818, 385. 410, 416, 423.)
- Arabic: مصر,
- romanized Misr / Misra / El Misra,
- in Egyptian Arabic Máṣr,
- Hindi: मिश्र
History
Jat History in Egypt
Bhim Singh Dahiya[1] writes that Jats are known as Jatts in Turkey and Egypt.
Ram Swarup Joon[2] writes that Pliny has written that during a conflict between KhanKesh, a province in Turkey, and Babylonia, they sent for the Sindhu Jats from Sindh. These soldiers wore cotton uniforms and were experts in naval warfare. On return from Turkey they settled down in Syria. They belonged to Hasti dynasty. Asiagh Jats ruled Alexandria in Egypt. Their title was Asii
जाटों का शासन
दलीप सिंह अहलावत[3] ने लिखा है.... ययाति महाराज जम्बूद्वीप के सम्राट् थे। जम्बूद्वीप आज का एशिया समझो। यह मंगोलिया से सीरिया तक और साइबेरिया से भारतवर्ष शामिल करके था। इसके बीच के सब देश शामिल करके जम्बूद्वीप कहलाता था। कानपुर से तीन मील पर जाजपुर स्थान के किले का ध्वंसावशेष आज भी ‘ययाति के कोट’ नाम पर प्रसिद्ध है। राजस्थान में सांभर झील के पास एक ‘देवयानी’ नामक कुंवा है जिसमें शर्मिष्ठा ने वैरवश देवयानी को धकेल दिया था, जिसको ययाति ने बाहर निकाल लिया था[4]। इस प्रकार ययाति राज्य के चिह्न आज भी विद्यमान हैं।
महाराजा ययाति का पुत्र पुरु अपने पिता का सेवक व आज्ञाकारी था, इसी कारण ययाति ने पुरु को राज्य भार दिया। परन्तु शेष पुत्रों को भी राज्य से वंचित न रखा। वह बंटवारा इस प्रकार था -
1. यदु को दक्षिण का भाग (जिसमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरयाणा, राजस्थान, दिल्ली तथा इन प्रान्तों से लगा उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं कच्छ हैं)।
2. तुर्वसु को पश्चिम का भाग (जिसमें आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब,यमन, इथियोपिया, केन्या, सूडान, मिश्र, लिबिया, अल्जीरिया, तुर्की, यूनान हैं)।
3. द्रुहयु को दक्षिण पूर्व का भाग दिया।
4. अनु को उत्तर का भाग (इसमें उत्तरदिग्वाची[5] सभी देश हैं) दिया। आज के हिमालय पर्वत से लेकर उत्तर में चीन, मंगोलिया, रूस, साइबेरिया, उत्तरी ध्रुव आदि सभी इस में हैं।
5. पुरु को सम्राट् पद पर अभिषेक कर, बड़े भाइयों को उसके अधीन रखकर ययाति वन में चला गया[6]। यदु से यादव क्षत्रिय उत्पन्न हुए। तुर्वसु की सन्तान यवन कहलाई। द्रुहयु के पुत्र भोज नाम से प्रसिद्ध हुए। अनु से म्लेच्छ जातियां उत्पन्न हुईं। पुरु से पौरव वंश चला[7]।
जब हम जाटों की प्राचीन निवास भूमि का वर्णन पढते हैं तो कुभा (काबुल) और कृमि (कुर्रम) नदी उसकी पच्छिमी सीमायें, तिब्बत की पर्वतमाला पूर्वी सीमा, जगजार्टिस और अक्सस नदी
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-185
उत्तरी सीमा और नर्मदा नदी दक्षिणी सीमा बनाती है। वास्तव में यह देश उन आर्यों का है जो चन्द्रवंशी अथवा यदु, द्रुहयु, तुर्वसु, कुरु और पुरु कहलाते थे। भगवान् श्रीकृष्ण के सिद्धान्तों को इनमें से प्रायः सभी ने अपना लिया था। अतः समय अनुसार वे सब जाट कहलाने लग गये। इन सभी खानदानों की पुराणों ने स्पष्ट और अस्पष्ट निन्दा ही की है। या तो इन्होंने आरम्भ से ही ब्राह्मणों के बड़प्पन को स्वीकार नहीं किया था या बौद्ध-काल में ये प्रायः सभी बौद्ध हो गये थे। वाह्लीक,तक्षक, कुशान, शिव, मल्ल, क्षुद्रक (शुद्रक), नव आदि सभी खानदान जिनका महाभारत और बौद्धकाल में नाम आता है वे इन्हीं यदु, द्रुहयु, कुरु और पुरुओं के उत्तराधिकारी (शाखायें) हैं[8]।
सम्राट् ययातिपुत्र यदु और यादवों के वंशज जाटों का इस भूमि पर लगभग एक अरब चौरानवें करोड़ वर्ष से शासन है। यदु के वंशज कुछ समय तो यदु के नाम से प्रसिद्ध रहे थे, किन्तु भाषा में ‘य’ को ‘ज’ बोले जाने के कारण जदु-जद्दू-जट्टू-जाट कहलाये। कुछ लोगों ने अपने को ‘यायात’ (ययातेः पुत्राः यायाताः) कहना आरम्भ किया जो ‘जाजात’ दो समानाक्षरों का पास ही में सन्निवेश हो तो एक नष्ट हो जाता है। अतः जात और फिर जाट हुआ। तीसरी शताब्दी में इन यायातों का जापान पर अधिकार था (विश्वकोश नागरी प्र० खं० पृ० 467)। ये ययाति के वंशधर भारत में आदि क्षत्रिय हैं जो आज जाट कहे जाते हैं। भारतीय व्याकरण के अभाव में शुद्धाशुद्ध पर विचार न था। अतः यदोः को यदो ही उच्चारण सुनकर संस्कृत में स्त्रीलिंग के कारण उसे यहुदी कहना आरम्भ किया, जो फिर बदलकर लोकमानस में यहूदी हो गया। यहूदी जन्म से होता है, कर्म से नहीं। यह सिद्धान्त भी भारतीय धारा का है। ईसा स्वयं यहूदी था। वर्त्तमान ईसाई मत यहूदी धर्म का नवीन संस्करण मात्र है। बाइबिल अध्ययन से यह स्पष्ट है कि वह भारतीय संसकारों का अधूरा अनुवाद मात्र है।
अब यह सिद्ध हो गया कि जर्मनी, इंग्लैंण्ड, स्काटलैण्ड, नार्वे, स्वीडन, रूस, चेकोस्लोवाकिया आदि अर्थात् पूरा यूरोप और एशिया के मनुष्य ययाति के पौत्रों का परिवार है। जम्बूद्वीप, जो आज एशिया कहा जाता है, इसके शासक जाट थे[9]।
जाट सेना का मिश्र पर आक्रमण
दलीप सिंह अहलावत[10] लिखते हैं कि साईरस की मृत्यु होने पर उसका पुत्र कैम्बाईसिज़ फारस की राजगद्दी पर बैठा। उसने अपनी जाटसेना के साथ 525 ई० पू० में मिश्र पर आक्रमण कर दिया। डेल्टा (नील नदी) में जाटसेना का मिश्र की सेना से रक्तपातपूर्ण युद्ध हुआ। हैरोडोटस ने लिखा है कि “मैंने इस युद्ध के 50-60 वर्ष पश्चात् इस रणक्षेत्र में काम आये सैनिकों की हड्डियां तथा खोपड़ियां स्वयं देखी थीं। इस युद्ध के बाद कैम्बाईसिज़ की सेना ने मेमफिस तथा अधिकतम मिश्र को अपने अधिकार में ले लिया।” सूसा की ओर लौटते समय कैम्बाईसिज़ की मृत्यु एक दुर्घटना के कारण हुये घाव से सीरिया में हो गई।
साईरस के मुख्य सलाहकार हरपेगस जाट का पुत्र डेरियस ( Darius) 521 ई० पू० में कम्बाईसिज का उत्तराधिकारी बना।[11]।
सीथियन जाटों का मिश्रसेना से युद्ध
जस्टिन के लेख अनुसार – मिश्र का राजा वेक्सोरिस प्रथम राजा था जिसने सीथियन जाटों से युद्ध किया। उसने पहले तो अपने राजदूत को सीथियनों के पास इसलिए भेजा कि वे किस शर्त पर हथियार डालने को तैयार हैं। इस सन्देश का सीथियन्ज ने दूत को निम्नलिखित उत्तर दिया -
- “तुम्हारा स्वामी जो कि बहुत धनवान् लोगों का अध्यक्ष है, निःसन्देह गरीब लोगों पर छापा मारने के लिए गुमराह किया गया है। उसको अपने घर ही रहना उचित है। युद्ध में संकट बहुत हैं। विजय का महत्त्व तुम्हारे लिए बिल्कुल नहीं है किन्तु हानि अटल है। इसलिए हम उस समय तक ठहरेंगे जब तक कि राजा हमारे पास पहुंच जाये। क्योंकि राजा के पास हमारे लूटने के लिए पर्याप्त धन है, इसलिए उस धन को अपने लाभ के लिए छीनने की शीघ्रता करेंगे।”
जब मिश्र के राजा को अपने संदेशवाहक से यह सूचना मिली कि सीथियन जाट उसकी ओर तीव्र गति से बढ़ रहे हैं तो उसने अपनी सेना तथा सभी भण्डार छोड़ दिये और अपने देश को भाग गया। जाटों ने प्रत्येक वस्तु पर अपना अधिकार कर लिया किन्तु अनुल्लंघनीय दलदल के कारण वे मिश्र में प्रवेश न कर सके। लौटने पर उन्होंने एशिया पर विजय पाई और कर लगाये जो 1500 वर्ष तक जारी रहे। केवल असीरिया के राजा ‘नीनस’ ने यह कर देना बन्द किया था।
कुप्पाडोसिया के युद्ध में जब सारे सीथियन पुरुष मारे गये तब इनकी स्त्रियों ने हथियार उठाए थे और युद्ध किया था। घटनाक्रम से उन औरतों को ‘एमेजन’ कहा जाता था। ऐण्टीओपे तथा ओरिथिया नामक दो एमेजन रानियां थीं। अन्तिम एमेजन रानी का नाम मिनिथिया था।[12]
मिस्र में सूर्य मंदिर की खोज
मिस्र में पुरातत्व विभाग ने काहिरा के अबुसीर इलाके में एक प्राचीन सूर्य मंदिर खोज निकाला है। दावा है कि यह मंदिर करीब 4500 साल पुराना है। मंदिर के साथ-साथ कुछ टिकट भी मिली हैं इन पर तब के शासकों का नाम दर्ज है। इसे देखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि यह मिस्र के पांचवें साम्राज्य का है। इस समय के 4 मंदिर मिट्टी में धंस गए थे जिनका उल्लेख किताबों में भी मिलता है। यह खोज अभियान इटली और पोलैंड की ओर से मिलकर चलाया जा रहा है।
जाट इतिहास
डॉ रणजीतसिंह[13] लिखते हैं ...शिवदास गुप्ता[14] ने 'जाटों का विस्तार' के संबंध में अपने विचार इस प्रकार प्रकट किए हैं- "जाटों ने तिब्बत, यूनान, अरब, ईरान, तुर्किस्तान, जर्मनी, साइबेरिया, स्कैंडिनेविया, इंग्लैंड, ग्रीक, रोम तथा मिस्र में कुशलता, दृढ़ता और साहस के साथ राज्य किया और वहां की भूमि को विकासवादी उत्पादन के योग्य बनाया था।"
डॉ रणजीतसिंह[15] लिखते हैं....जाटों के विस्तार की पुष्टि एंटीक्विटी ऑफ जाट रेस के लेखक उजागर सिंह महल के विचारों से भी होती है। महल महोदय अपनी पुस्तक में लिखते हैं - "मैं अब विशालतम जाट साम्राज्य का वर्णन करता हूं जो कि मात्र भौगोलिक सीमाओं के कारण ही बड़ा नहीं था, अपितु इजिप्ट और असीरिया के साम्राज्यों से भी बड़ा था। यह स्मरण रखना चाहिए कि पर्शियन साम्राज्य जाट साम्राज्य की देन है और पर्शियन राजाओं में जाट रक्त विद्यमान है। जाटों के इस साम्राज्य को मेड़ा साम्राज्य कहते हैं[16] महल के मतानुसार जाटों ने रोमन साम्राज्य, स्पेन और ब्रिटेन तक को जीता था [17] [पृष्ठ.5]: इससे आगे वे लिखते हैं ....:"यूरोप की डेन्यूब नदी जाटों के पुरातात्विक इतिहास की दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है। इस नदी के दोनों किनारों पर जाट ही निवास करते थे। डेन्यूब नदी जाटों से इतनी संबंधित है कि वह उनके स्वप्नों में भी आती है।"
सिकंदर महान ने अपने एशिया आक्रमण के समय सोगड़ियाना (तुर्किस्तान) पर आक्रमण किया था। उस समय सोगड़ियाना की राजधानी समरकंद थी। उजागर सिंह के विचार अनुसार यह प्रदेश उस समय जाटों के अधीन था जो कि पंजाब के जाटों के बहुत दूर के पूर्वज थे।
References
- Thakur Deshraj: Jat Itihas, 1934
- Ram Swarup Joon: History of the Jats, Rohtak, India (1938, 1967)
- ↑ Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study)/The Jats,p.25
- ↑ Ram Sarup Joon: History of the Jats/Chapter III, p.40-41
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, p.185-186
- ↑ महाभारत आदिपर्व 78वां अध्याय, श्लोक 1-24.
- ↑ ये वे देश हैं जो पाण्डव दिग्विजय में अर्जुन ने उत्तर दिशा के सभी देशों को जीत लिया था। इनका पूर्ण वर्णन महाभारत सभापर्व अध्याय 26-28 में देखो।
- ↑ जाट इतिहास पृ० 14-15 लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज ।
- ↑ हाभारत आदिपर्व 85वां अध्याय श्लोक 34-35, इन पांच भाइयों की सन्तान शुद्ध क्षत्रिय आर्य थी जिनसे अनेक जाट गोत्र प्रचलित हुए । (लेखक)
- ↑ जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड) पृ० 146-47 ले० ठा० देशराज।
- ↑ जाट इतिहास पृ० 14-18 लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज ।
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-355
- ↑ अनटिक्विटी ऑफ जाट रेस, पृ० 41, लेखक उजागरसिंह माहिल।
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV (Page 357)
- ↑ Jat Itihas By Dr Ranjit Singh/1.Jaton Ka Vistar, p.3
- ↑ शिवदास गुप्ता, स्वार्थ पत्रिका अंक 4-5, 1976
- ↑ Jat Itihas By Dr Ranjit Singh/1.Jaton Ka Vistar, pp.4-5
- ↑ एंटीक्विटी ऑफ जाट रेस, पृष्ठ 9-7 ?
- ↑ एंटीक्विटी ऑफ जाट रेस, पृष्ठ 53-66