Pushkar Jat Mahotsav 1925

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Pushkar Jat Mahotsav 1925

Pushkar Jat Mahotsav 1925 was organized in Pushkar to awaken the farmers of Rajasthan specially Jats. It was chaired by Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. The farmers from all parts of Rajasthan had come to attend it. This led to a mass movement in Rajasthan against the Jagirdars and the British Government resulting in abolition of Jagirs.

Pushkar Adhiveshan of Jats, November 1925

The Pushkar Adhiveshan in November 1925 organized by All India Jat Mahasabha was presided over by Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. Sir Chhotu Ram, Madan Mohan Malviya, Chhajju Ram and many other farmer leaders also attended it. This function was organized with the initiative of Master Bhajan Lal Bijarnia of Ajmer - Merwara. The farmers from all parts of Shekhawati had come to attend it. To name a few of them, Chaudhary Govind Ram, Kunwar Panne Singh Deorod, Ram Singh Bakhtawarpura, Chetram Bhadarwasi, Bhuda Ram Sangasi, and Moti Ram Kotri and Har Lal Singh attended it. The Shekhawati farmers took two oaths in Pushkar namely,

  1. They would work for the development of the society through elimination of social evils and spreading of education.
  2. ‘Do or Die’ in the matters of exploitation of farmers by the Feudal lords (Jagirdars).

and finaly,

  1. A Resolution was passed to work for ending the British rule from India.

जाट महासभा का पुष्कर जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें चिमनाराम सांगसी, भूदाराम सांगसी, सरदार हरलाल सिंह, चौधरी घासीराम, पृथ्वीसिंह गोठडा, पन्नेसिंह बाटड़, हरीसिंह पलथाना, गोरुसिंह, ईश्वरसिंह, चौधरी गोविन्दराम, पन्ने सिंह देवरोड़, रामसिंह बख्तावरपुरा, चेतराम भामरवासीभूदाराम सांगसी, मोती राम कोटड़ी आदि प्रमुख थे. ये लोग एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण से उन्हें भान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से शेखावाटी के किसान दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[1]

पुष्कर ले लौटने के बाद बगड़ में जाट पंचायत की स्थापना की गयी. प्रचार के लिए भजनोपदेशकों की टोलियाँ तैयार की गयी. अनपढ़ समाज पर भजनोपदेशकों के गीतों का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा. भजनोपदेशक अन्य राज्यों से भी आये थे और स्थानीय स्तर पर भी तैयार हुए. पंडित दत्तुराम, भोलासिंह, चौधरी घासीराम, पृथ्वी सिंह बेधड़क, हुकमीचंद, मनसाराम आदि कलाकारों ने गाँव-गाँव को गीतों से गूंजा दिया. स्थानीय स्तर पर मोहरसिंह, सूरजमल साथी, हनुमानदास, बस्तीराम, देवकरण पालोता, तेज सिंह भादौन्दा, गनपतराम महाशय आदि भजनोपदेशक तैयार हो गए. शेखावाटी के ग्रामीण अंचलों को जगाने का श्रेय इन्ही भजनोपदेशक को जाता है. 1925 में झुंझुनू जिले के हनुमानपुरा और कुहाडवास में जन सहयोग से स्कूल खोली गयी. उत्तर प्रदेश के शिक्षक हेमराज सिंह कुहाडवास में और चंद्रभान सिंह हनुमानपुरा में पढ़ाने लगे. इसी क्रम में आगे चलकर कूदन, पलथाना, कटराथल, मांडासी आदि गाँवों में स्कूल खोली गयी. खंडेलावाटी में चौधरी लादूराम रानीगंज ने आर्थिक भार वहन कर शिक्षा की जोत जगाई. शेखावाटी में जनसहयोग से करीब 30 स्कूल खोली गयी. [2]

पुष्कर सम्मलेन के पश्चात् शेखावाटी में दूसरी पंक्ति के जो नेता उभर कर आये, उनमें प्रमुख नाम निम्न हैं - ताराचंद झारोड़, बूंटीराम किशोरपुरा, भैरूसिंह तोगडा , डूंगरसिंह कुमावास, हरलालसिंह-बेगराज मांडासी, रेखसिंह हनुमानपुरा, छत्तू सिंह टाईं (राजपूत), हरदेव सिंह पातुसरी , रंगलाल गाड़िया, दुर्गादत्त कांइयां झुंझुनू, रामेश्वर रामगढ़िया मंडावा, कुरड़ाराम झारोड़ा, इन्द्राज सिंह, हंसराज घरडाना, चेतराम-ख्याली राम भामरवासी, स्वामी मिस्रानंद बिगोदना, चत्तर सिंह बख्तावरपुरा, देवकरण पालोता, आशा राम भारू का बास, देवासिंह बोचाल्या, चन्द्र सिंह , खमाण सिंह पलथाना, देवी सिंह दिनारपुरा, गोपाल सिंह रशीद्पुरा, हरिराम फरटिया , गणेश राम, कल्लूराम, स्वामी पदमदास कूदन, किसन सिंह बाटड़ानाऊ, बालूराम कंवरपुरा (खंडेला वाटी) पेमाराम पलसाना, हरबक्श गढ़वाल खंडेला वाटी , गणेश राम भारनी आदि... इतिहास में आम जन की भागीदारी का यह अनुपम उदहारण है. [3]

राजस्थान की जाट जागृति में योगदान

ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।

यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।

जागीरदारी उन्मूलन और किसान को भूमि पर अधिकार

आजादी के बाद भी गुलाम: 1947 में देश आजाद हो गया था परंतु किसानों को आजादी नहीं मिली थी। जागीरदारों के शोषण के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी गई। चौधरी कुंभाराम जी आर्य की अगुवाई में "राजस्थान लैंड रिफोर्म एंड रिजम्प्शन ऑफ़ जागीर एक्ट" (Rajasthan Land Reform And Resumption of Jagir Act) 18 फ़रवरी 1952 को कानून बन गया था परन्तु इस कानून का क्रियान्वयन दो साल तक नहीं हो सका क्योंकि जागीरदारों ने राजस्थान उच्च न्यायलय से स्थगनादेश प्राप्त कर लिए थे। आखिर शहीदों का खून रंग लाया और जुल्मों का अंत हुआ. "राजस्थान लैंड रिफोर्म एंड रिजम्प्शन ऑफ़ जागीर एक्ट 1954" (Rajasthan Land Reform And Resumption of Jagir Act, 1954) पारित किया गया। इस कानून के तहत 16 जून 1954 को बड़ी जागीरें समाप्त कर दी गईं। बची हुई जागीरें भी धीरे-धीरे जब्त कर ली गईं। इसी बीच राजस्थान टेनेंसी एक्ट 1955 बन चुका था जिसके तहत किसानों के भूमि सम्बन्धी अधिकार स्पष्ट कर दिए गए और उन्हें खातेदारी अधिकार भी मिल गए। अब किसान जमीन का मालिक था। जमीन जोतने वाला किसान जमीन पर खातेदारी अधिकार प्राप्त कर उसका स्वामी बन गया।

External links

References

  1. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
  2. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 100
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 100
  4. ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1

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