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'''प्रजामण्डल''' ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय रियासतों की जनता के संगठन थे। | {| class="wikitable" style="text-align:center"; border="5" | ||
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'''[[प्रजामण्डल]]''' ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय रियासतों की जनता के संगठन थे। इनकी स्थापना 1920 के दशक में तेजी से हुई. राजस्थान में प्रजामंडलों के संस्थापन की प्रथम कड़ी के रूप में जयपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना सन 1931 में हुई. किसान सभाएं 1937 में ही जयपुर प्रजा-मण्डल में विलीन हो चुकी थी. | |||
==प्रस्तावना == | ==प्रस्तावना == | ||
इनकी स्थापना '''1920''' के दशक में तेजी से हुई। चूँकि रियासतों की शासन व्यवस्था ब्रिटिश नियंत्रण वाले भारतीय क्षेत्र से भिन्न थी, तथा अनेक रियासतों के राजा प्रायः अंग्रेजों के मुहरे के समान व्यवहार करते थे, इस सारी जटिलता के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जो कि उस समय ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता संघर्ष चला रही थी, ने रियासतों को अपने अभियान से अलग रखा था। परन्तु जैसे-जैसे रियासतों की जनता में निकटवर्ती क्षेत्रों के कांग्रेस चालित अभियानों से जागरूकता बढ़ी, उनमें अपने कल्याण के लिए संगठित होने की प्रवृत्ति बलवती हुई, जिससे प्रजामंडल बने। | इनकी स्थापना '''1920''' के दशक में तेजी से हुई। चूँकि रियासतों की शासन व्यवस्था ब्रिटिश नियंत्रण वाले भारतीय क्षेत्र से भिन्न थी, तथा अनेक रियासतों के राजा प्रायः अंग्रेजों के मुहरे के समान व्यवहार करते थे, इस सारी जटिलता के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जो कि उस समय ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता संघर्ष चला रही थी, ने रियासतों को अपने अभियान से अलग रखा था। परन्तु जैसे-जैसे रियासतों की जनता में निकटवर्ती क्षेत्रों के कांग्रेस चालित अभियानों से जागरूकता बढ़ी, उनमें अपने कल्याण के लिए संगठित होने की प्रवृत्ति बलवती हुई, जिससे प्रजामंडल बने। | ||
शुरुआती दौर में राष्ट्रीय कांग्रेस देशी रियासतों के प्रति उदासीन रही। परन्तु हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस की नीति में परिवर्तन आया। रियासती जनता को भी अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने की छूट दे दी। | शुरुआती दौर में राष्ट्रीय कांग्रेस देशी रियासतों के प्रति उदासीन रही। परन्तु हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस की नीति में परिवर्तन आया। रियासती जनता को भी अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने की छूट दे दी। | ||
== प्रजामण्डल का जन्म == | |||
[[Rameshwar Singh Meel|रामेश्वरसिंह]]<ref>[[Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Jaipur Rajya Aur Krishak Andolan]],pp.30-32</ref>ने लिखा है.... सन '''1931''' में '''[[प्रजामण्डल]] का जन्म''' हुआ। आरम्भ में इसका कार्य शिथिल ही रहा। सन 1933 में श्री हीरालाल जी शास्त्री के उत्साह के कारण प्रजामण्डल के कार्य में गति आई। | |||
सन 1938 में प्रजामण्डल का प्रथम जलसा '''[[Jamana Lal Bajaj|सेठ जमनालाल]]''' जी की अध्यक्षता में हुआ। इसकी जिला कमेटियां बनी, साथ ही अन्य कमेटियों का निर्माण भी हुआ। प्रजामण्डल में अब कुछ जान आई और उसने शासन में सुधारों के लिए विविध स्तर पर अपनी गतिविधिया तेज कर दी। | |||
सन 1938 के प्रजामंडलों की कोई राजनीतिक गतिविधियाँ नहीं थी. इसी साल प्रजामंडल ने संवैधानिक सुधार एवं कृषि सुधार के लिए आन्दोलन चलाये. '''किसान सभाएं 1937 में ही जयपुर प्रजा-मण्डल में विलीन हो चुकी थी.''' इसी साल '''सेठ जमनादास बजाज''' और '''पंडित हीरालाल शास्त्री''' इसके सचिव बने. इसी के साथ इसके वार्षिक अधिवेशन नियमित रूप से होने लगे. | इसी वर्ष सीकर में एक बात को लेकर संघर्ष छिड़ गया। सन 1935-36 | ||
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<center><small>[[Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram|शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम]], भाग-III, पृष्ठांत-30 </small></center> | |||
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में सीकर के किसानों ने आन्दोलन किया था। इस आन्दोलन के समय गोली कांड भी हुआ था, जिसमे कुछ आदमी मारे गये थे। | |||
सन '''1937''' में जयपुर के महाराजा ने सीकर के राजकुमार हरदयाल सिंह को अपने साथ इंग्लैंड ले जाना चाहा। राजकुमार के माता पिता दोनों इस बात के विरुद्ध थे। हिन्दू-मुसलमान सभी जयपुर के विरुद्ध सीकर की मदद करने बड़ी संख्या में सीकर में एकत्रित हो गये। उधर जयपुर की फौज सीकर में आ गई। और उसने घेराबन्दी कर दी। सीकर की मदद के लिए राजपूतों में से कई जयपुर की फौज द्वारा की गई गोली वर्षा में मारे गये। नगर में भयंकर तनाव बना रहा और हड़ताल चलने लगी। आगे चलकर '''सेठ जमनालाल जी, लादूराम जी जोशी, श्री हीरालाल जी शास्त्री''' आदि के कारण समझौता हुआ। सीकर के राव राजा कल्याणसिंह पुनः सीकर आकर यथवत राजकाज चलाने लगे। आगे चलकर श्री लादूराम जी जोशी को गिरफ्तार किया गया और उनको एक साल की सजा मिली। | |||
[[प्रजामण्डल]] निरन्तर प्रगति कर रहा था। जगह-जगह आन्दोलन जारी थे। राज्य में दमन करना चाहा और दमनकारी कानून बनाये। पब्लिक सोसायटीज रेगुलेशन एक्ट (सार्वजनिक संस्था नियंत्रण कानून) बनाया गया। यह एक्ट 18 जनवरी 1939 को बनाया गया। जिसका उद्देश्य यह था कि राज्य में बिना सरकार की आज्ञा के कोई संस्था नहीं बने। इसी समय एक प्रेस एक्ट बनाया। जिसका उद्देश्य प्रेस और छापेखाने पर पाबन्दी लगाना था। साइक्लोस्टाइल रखने के लिए भी स्वीकृति आवश्यक थी। | |||
राज्य कर्मचारियों को कहा गया कि वे अपने परिवार के लोगों को आन्दोलन में भाग लेने से रोकें और विभागीय अफसरों को सूचना दें। सभा करने और जुलूस निकालने पर पहले ही पाबन्दी लगी हुई थी। | |||
इस साल राज्य में भयंकर अकाल था। सेठ जमनालाल बजाज अकाल सेवा कार्यों का निरीक्षण करने आ रहे थे कि 27 दिसम्बर 1938 को उन्हें सवाईमाधोपुर पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर राज्य में प्रवेश करने पर पाबन्दी | |||
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<center><small>[[Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram|शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम]], भाग-III, पृष्ठांत-31 </small></center> | |||
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लगा दी। 12 फरवरी को सेठ जी को गठभोरो में बन्द कर दिया गया। 5 फरवरी से नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए सत्याग्रहियों के जत्थे निकालने लगे। इस पर गिरफ्तारियों एवं दमन के दौर शुरू हुए। 19 मार्च को गाँधी जी के आदेश से सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया। | |||
सत्याग्रह बन्द होने पर सभाबन्दी और जुलूस बन्दी कानून रद्द हो गए। समाचार पत्रों पर लगाई गई रोक हटा दी गई। प्रजामण्डल का उद्देश्य स्वतन्त्र भारतीय संघ के अंतर्गत जयपुर राज्य में न्यायोचित उत्तरदायी शासन प्राप्त करना था। पहले 'महाराज की छत्रछाया में'शब्द थे जिन्हें आगे चलकर 1946 में हटा दिया गया। | |||
जयपुर राज्य [[प्रजामण्डल]] एक संस्था थी। इसमें अपनी नीति में आवश्यकतनुसार परिवर्तन किये और धीरे-धीरे योग्य नेतृत्व पाकर सफलता की और बढ़ती रही। इसके चार आना सदस्य 43 हजार से ऊपर थे। सामान्य कमेटी में 85 और कार्यकारिणी में 15 सदस्य थे। इसकी 14 इलाका समितियाँ जगह-जगह सेवा कार्यों में रत थी। | |||
सन 1945 से यह सिद्धराज ढड्डा के सम्पादन में दैनिक रूप से निकलना प्रारम्भ हुआ। यह रियासती भारत का सर्वप्रथम दैनिक पत्र था। | |||
जयपुर राज्य प्रजामण्डल जमनालाल जी के कारण से महत्मा गाँधी के निकट रहा। इसके नवें अधिवेशन का उद्घाटन स्वयं राष्ट्रपति कृपलानी जी ने किया। सहयोग और जनप्रेम के कारण प्रजामण्डल निरन्तर प्रगति करता रहा। अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार प्रजामण्डल लोक परिषद आदि संस्थाये बराबर उत्तरदायी शासन की मांग कर थी तथा आन्दोलन का संचालन कर रही थी। इनके फलस्वरूप रियासतों में कुछ रूप में उत्तरदायी शासन प्रारम्भ हुआ। | |||
== [[प्रजा मण्डल]] एवं जाट पंचायतों में गठबंधन == | |||
'''सन 1938''' में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें कहा गया कि कांग्रेस रियासती जनता से अपनी एकता की घोषणा करती है और स्वतंत्रता के उनके संघर्ष के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है. त्रिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस ने रियासती जनता के प्रति समर्थन की घोषणा कर दी, इससे जनता में बड़ा उत्साह और उमंग जगी. आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस की स्थानीय इकाइयों के रूप में जगह-जगह [[प्रजा-मंडल]] अथवा लोकपरिषदों का गठन हुआ. राजस्थान में प्रजामंडलों के संस्थापन की प्रथम कड़ी के रूप में जयपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना सन '''1931''' में हुई. <ref>[[Gyan Prakash Pilania|डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया]]: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 36</ref> | |||
सन 1938 के प्रजामंडलों की कोई राजनीतिक गतिविधियाँ नहीं थी. इसी साल [[प्रजामंडल]] ने संवैधानिक सुधार एवं कृषि सुधार के लिए आन्दोलन चलाये. '''किसान सभाएं 1937 में ही जयपुर [[प्रजा-मण्डल]] में विलीन हो चुकी थी.''' इसी साल '''सेठ जमनादास बजाज''' और '''पंडित हीरालाल शास्त्री''' इसके सचिव बने. इसी के साथ इसके वार्षिक अधिवेशन नियमित रूप से होने लगे. [[प्रजा मण्डल]] का उद्देश्य जनता के लिए प्राथमिक नागरिक अधिकार प्राप्त करना और जयपुर राज्य में समग्र विकास की प्रक्रिया शुरू करना था. अब तक प्रजा मंडल का काम शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित था. ग्रामीण क्षेत्रों में पैठ नहीं होने से प्रजा मंडल ने जाट पंचायत के साथ जागीरदार विरोधी संधि में शामिल होने पर विचार किया. उधर शेखावाटी में भी यह विचार चल रहा था कि क्या हमें किसान पंचायतों का विलय प्रजा मंडल में कर देना चाहिय. '''एक गुट''', जिसमें [[Ghasi Ram Chaudhari|चौधरी घासीराम]], [[पंडित ताड़केश्वर शर्मा]], [[Vidyadhar Kulhari|विद्याधर कुलहरी]] आदि थे, का सोच था कि इससे किसानों की मांगें उपेक्षित होंगी, क्योंकि अपनी बहुविध गतिविधयों में प्रजा मंडल इस और पूरा ध्यान नहीं दे पायेगा. '''दूसरी और''' [[Har Lal Singh|सरदार हरलाल सिंह]], [[Netram Singh Gaurir|चौधरी नेतराम सिंह]] आदि इस विचार के थे कि प्रजा मंडल जैसे सशक्त संगठन में शामिल होने से किसान पंचायतों को सीमित क्षेत्र से निकाल कर विशाल क्षेत्र तक पहुँचाने का यह एक सशक्त माद्यम बन सकेगा. प्रजामंडल में शामिल होने से उनकी पहुँच सीधी जयपुर राज्य से हो जाएगी जिससे जागीरी जुल्मों का वे अधिक सक्रियता से और ताकत से मुकाबला करने में समर्थ होंगे. इस द्विविध विचारधारा के कारण शेखावाटी का राजनीतिक संघर्ष विभाजित हो गया. ([[Gyan Prakash Pilania|डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया]]: पृ. 37) | |||
== प्रजामंडल की शेखावाटी में गतिविधियाँ == | == प्रजामंडल की शेखावाटी में गतिविधियाँ == | ||
नवंबर 1937 में में प्रजामंडल के महासचिव हीरा लाल शास्त्री ने शेखावाटी का दौरा किया. सरदार हरलाल सिंह तथा चौधरी नेतराम सिंह आदि उनके साथ थे. 25 एवं 30 नवम्बर 1937 को उनका भाषण हनुमानपुरा में हुआ. 16 दिसंबर 1938 को प्रजामंडल के अध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज के जयपुर राज्य में प्रवेश पर रोक लगा दी गयी और 'पब्लिक सोसायटीज एक्ट' के तहत प्रजामंडल को 12 जनवरी 1939 को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. प्रजामंडल के दमन का कारण उसका [[जाट किसान पंचायत]] से मेल जोल बढ़ाना था और किसानों को भी इसी संधि की सजा दी जा रही थी. सेठजी ने दो बार 1 फ़रवरी और 5 फ़रवरी को जयपुर की सीमा में प्रवेश की कोशिश की किन्तु दोनों ही बार उन्हें बलपूर्वक खदेड़ कर राज्य से बाहर कर दिया गया. शेखावाटी में इस पर भयंकर प्रतिक्रिया हुई. किसानों ने जगह-जगह सत्याग्रह व आन्दोलन शुरू कर दिए. किसानों पर घोड़े दौडाए गए और लाठी चार्ज हुआ. झुंझुनू में 1 से 4 फ़रवरी तक एकदम अराजकता की स्थिति रही. इसी दौरान प्रजामंडल के प्रभाव में आकर [[शेखावाटी जाट किसान पंचायत]] का नाम बदल कर [[किसान पंचायत]] और '''जाट बोर्डिंग हाऊस झुंझुनू''' का नाम '''विद्यार्थी भवन''' कर दिया. सन 1942 में झुंझुनू एवं सन 1942 में श्रीमाधोपुर में प्रजामंडल के वार्षिक अधिवेशन आयोजित किये गए लेकिन ठिकानों की ज्यादतियां अब नए सिरे से शुरू होने लगीं, क्योंकि अब जयपुर दरबार व ब्रिटिश अधिकारी भी उन्हें शह दे रहे थे. ठिकाने कई तरह की लाग-बाग़ और मोहराने मांगने लगे. ([[Gyan Prakash Pilania|डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया]]: पृ. 37) | नवंबर 1937 में में प्रजामंडल के महासचिव हीरा लाल शास्त्री ने शेखावाटी का दौरा किया. सरदार हरलाल सिंह तथा चौधरी नेतराम सिंह आदि उनके साथ थे. 25 एवं 30 नवम्बर 1937 को उनका भाषण हनुमानपुरा में हुआ. 16 दिसंबर 1938 को प्रजामंडल के अध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज के जयपुर राज्य में प्रवेश पर रोक लगा दी गयी और 'पब्लिक सोसायटीज एक्ट' के तहत प्रजामंडल को 12 जनवरी 1939 को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. प्रजामंडल के दमन का कारण उसका [[जाट किसान पंचायत]] से मेल जोल बढ़ाना था और किसानों को भी इसी संधि की सजा दी जा रही थी. सेठजी ने दो बार 1 फ़रवरी और 5 फ़रवरी को जयपुर की सीमा में प्रवेश की कोशिश की किन्तु दोनों ही बार उन्हें बलपूर्वक खदेड़ कर राज्य से बाहर कर दिया गया. शेखावाटी में इस पर भयंकर प्रतिक्रिया हुई. किसानों ने जगह-जगह सत्याग्रह व आन्दोलन शुरू कर दिए. किसानों पर घोड़े दौडाए गए और लाठी चार्ज हुआ. झुंझुनू में 1 से 4 फ़रवरी तक एकदम अराजकता की स्थिति रही. इसी दौरान प्रजामंडल के प्रभाव में आकर [[शेखावाटी जाट किसान पंचायत]] का नाम बदल कर [[किसान पंचायत]] और '''[[जाट बोर्डिंग हाऊस झुंझुनू]]''' का नाम '''[[Vidyarthi Bhawan|विद्यार्थी भवन]]''' कर दिया. सन 1942 में झुंझुनू एवं सन 1942 में श्रीमाधोपुर में प्रजामंडल के वार्षिक अधिवेशन आयोजित किये गए लेकिन ठिकानों की ज्यादतियां अब नए सिरे से शुरू होने लगीं, क्योंकि अब जयपुर दरबार व ब्रिटिश अधिकारी भी उन्हें शह दे रहे थे. ठिकाने कई तरह की लाग-बाग़ और मोहराने मांगने लगे. ([[Gyan Prakash Pilania|डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया]]: पृ. 37) | ||
[प्रजामंडल]] का दूसरा वार्षिक अधिवेशन मई 1940 के अंत में जयपुर में होना तय हो गया था. इसी बीच कोई आन्दोलन की गतिविधियाँ भी नहीं चल रही थी. तब यह तय किया गया कि फरार चल रहे किसान नेता गिरफ़्तारी दे दें. अधिवेशन से पूर्व ही मई 1940 में चौधरी घासी राम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा और नतराम सिंह ने झुंझुनू कोर्ट में उपस्थित होकर स्वेच्छा से गिरफ़्तारी दे दी. इन तीनों को झुंझुनू की जेल में बंद कर दिया जो गढ़ में स्थित थी. <ref>[[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]]:किसान यौद्धा, कलम प्रकाशन, झुंझुनू, 2009, p.59</ref> | |||
यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा की इसी दौरान घासी राम की इकलौती पुत्री मनोरमा बनस्थली विद्यापीठ में प्रवेश ले चुकी थी. घासी राम का बड़ा बेटा बीरबल उनकी गिरफ़्तारी के समय [[विद्यार्थी भवन झुंझुनू]] में रह कर पढ़ रहा था. विद्यार्थी भवन में प्राथमिक विद्यालय चल रहा था. जिसमें [[Panne Singh Deorod|पन्ने सिंह देवरोड़]] के पुत्र [[Satya Deo Singh|सत्यदेव]] बच्चों को पढ़ाते थे. <ref>[[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]]:किसान यौद्धा, कलम प्रकाशन, झुंझुनू, 2009, p.60</ref> | |||
== प्रजा मंडल में फूट और किसान सभा की स्थापना == | == प्रजा मंडल में फूट और किसान सभा की स्थापना == | ||
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*चिमना राम [[Lutu|लुटू]], | *चिमना राम [[Lutu|लुटू]], | ||
*चीखा राम [[Niwai Jhunjhunu|निवाई]], | *चीखा राम [[Niwai Jhunjhunu|निवाई]], | ||
*चुन्नी लाल | *चुन्नी लाल [[Dhani Majhau|ढाणी मझाऊ]], | ||
*चौधरी घासी राम]] | *[[चौधरी घासी राम]] | ||
*छानू राम [[भोबिया]], | *छानू राम [[Bhobiya Chirawa|भोबिया]], | ||
*जगदीश राम [[Loona|लूणा]], | *जगदीश राम [[Loona Jhunjhunu|लूणा]], | ||
*जगन सिंह [[Bhojasar Jhunjhunu|भोजासर]] | *जगन सिंह [[Bhojasar Jhunjhunu|भोजासर]] | ||
*जयदेव सिंह [[Sangasi|सांगासी]] | *जयदेव सिंह [[Sangasi|सांगासी]] | ||
*जीता राम [[Bhadunda | *जीता राम [[Bhadunda Kalan|भडून्दा कला]], | ||
*जीता राम [[Jherli|झेरली]], | *जीता राम [[Jherli|झेरली]], | ||
*जीवन राम [[Khiror|खिरोड़]], | *जीवन राम [[Khiror|खिरोड़]], | ||
*ठण्डी राम [[बाकरा]], | *ठण्डी राम [[Bakra|बाकरा]], | ||
*डूंगर सिंह [[Kumawas|कुमावास]], | *डूंगर सिंह [[Kumawas|कुमावास]], | ||
*डूंगर सिंह [[Mandasi|मांडासी]], | *डूंगर सिंह [[Mandasi|मांडासी]], | ||
* | *[[Tarachand Jharoda|ताराचंद झारोड़ा]], | ||
*थाना राम [[Bhojasar Jhunjhunu|भोजासर]], | *थाना राम [[Bhojasar Jhunjhunu|भोजासर]], | ||
*दया किशन [[Gaurir|गौरीर]], | *दया किशन [[Gaurir|गौरीर]], | ||
*धोकल सिंह [[Bhojasar Jhunjhunu|भोजासर]], | *धोकल सिंह [[Bhojasar Jhunjhunu|भोजासर]], | ||
*नत्थू सिंह [[Badalwas|बाडलवास]], | *नत्थू सिंह [[Badalwas Jhunjhunu|बाडलवास]], | ||
*नानू राम [[Tigiyas|तिगियास]], | *नानू राम [[Tigiyas|तिगियास]], | ||
*नारायण सिंह [[Jherli|झेरली]], | *नारायण सिंह [[Jherli|झेरली]], | ||
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*प्रहलाद सिंह [[Pichanwa|पिचानवा]], | *प्रहलाद सिंह [[Pichanwa|पिचानवा]], | ||
*बक्सा राम [[Budaniyan|बुडानिया]], | *बक्सा राम [[Budaniyan|बुडानिया]], | ||
*बख्ता राम [[काजी]], | *बख्ता राम [[Kaji|काजी]], | ||
*बलदेव सिंह [[Lutu|लुटू]], | *बलदेव सिंह [[Lutu|लुटू]], | ||
*बस्ती राम [[Badet|बाडेट]] , | *बस्ती राम [[Badet|बाडेट]] , | ||
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*मेघ राम [[Bhikhansar|भीखनसर]], | *मेघ राम [[Bhikhansar|भीखनसर]], | ||
*मोती राम [[Kulod Khurd|कुलोद]], | *मोती राम [[Kulod Khurd|कुलोद]], | ||
*मोहन राम [[Ajari|अजाडी]], | *मोहन राम [[Ajari Kalan|अजाडी]], | ||
*रणजीत सिंह [[Badalwas|बाडलवास]], | *रणजीत सिंह [[Badalwas Jhunjhunu|बाडलवास]], | ||
*राजू राम माली [[Bagad|बगड़]], | *राजू राम माली [[Bagad|बगड़]], | ||
*राम करण [[Hameerwas|हमीरवास]], | *राम करण [[Hameerwas|हमीरवास]], | ||
*राम दयाल [[Bhikhansar|भीखनसर]], | *राम दयाल [[Bhikhansar|भीखनसर]], | ||
*राम लाल [[Bhorki|भोडकी]], | *राम लाल [[Bhorki|भोडकी]], | ||
*राम लाल [[Posana| | *राम लाल [[Posana|पोसाणा]], | ||
*राम सिंह [[Kanwarpura Jhunjhunu|कंवरपुरा]], | *[[Ram Singh Bakhtawarpura|राम सिंह]] [[Kanwarpura Jhunjhunu|कंवरपुरा]], | ||
*रामकुमार [[Fatehsara|फतेहसरा]], | *रामकुमार [[Fatehsara|फतेहसरा]], | ||
*रामदेव [[Bakra|बाकरा]], | *रामदेव [[Bakra|बाकरा]], | ||
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*लादू राम [[Ghumansar Kalan|घुमनसर]], | *लादू राम [[Ghumansar Kalan|घुमनसर]], | ||
*लादू राम [[Lalpur Jhunjhunu|लालपुर]], | *लादू राम [[Lalpur Jhunjhunu|लालपुर]], | ||
*लादू राम [[Raipur Jatan Buhana|रायपुर]], | *[[Ladu Ram Raipur|लादू राम]] [[Raipur Jatan Buhana|रायपुर]], | ||
*लादू राम खाती [[Jeeni|जीणी]], | *लादू राम खाती [[Jeeni|जीणी]], | ||
*लालचंद [[Dhani Kulriya|ढाणी कुलड़िया]], | *लालचंद [[Dhani Kulriya|ढाणी कुलड़िया]], | ||
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इसके प्रत्युत्तर में किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन '''30 जून 1946''' को बुलाया गया. इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए. यह निर्णय किया गया कि पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें. [[विद्याधर कुलहरी]] को ही जयपुर स्टेट की किसान सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया. ([[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]], p. 203) अन्य कार्यकारिणी सदस्य निम्न थे:- | इसके प्रत्युत्तर में किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन '''30 जून 1946''' को बुलाया गया. इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए. यह निर्णय किया गया कि पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें. [[विद्याधर कुलहरी]] को ही जयपुर स्टेट की किसान सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया. ([[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]], p. 203) अन्य कार्यकारिणी सदस्य निम्न थे:- | ||
*अध्यक्ष - [[विद्याधर कुलहरी]] | *अध्यक्ष - [[विद्याधर कुलहरी]] | ||
*उपाध्यक्ष - [[ईश्वर सिंह भैरूपुरा]] एवं [[छाजूराम कुंवरपुरा]] | *उपाध्यक्ष - [[ईश्वर सिंह भैरूपुरा]] एवं [[Chhaju Ram Kunwarpura|छाजूराम कुंवरपुरा]] | ||
*प्रधानमंत्री - राधावल्लभ अग्रवाल, जयपुर | *प्रधानमंत्री - राधावल्लभ अग्रवाल, जयपुर | ||
*उपमंत्री - पंडित ताड़केश्वर शर्मा एवं [[जयदेवसिंह सांगसी]] | *उपमंत्री - पंडित ताड़केश्वर शर्मा एवं [[Jaydev Singh Sangasi|जयदेवसिंह सांगसी]] | ||
*कोषाध्यक्ष - [[लादू राम रानीगंज]] (मूलत: पलसाना से) | *कोषाध्यक्ष - [[Ladu Ram Kisari|लादू राम रानीगंज]] (मूलत: पलसाना से) | ||
*सदस्य - | *सदस्य - | ||
**देवा सिंह बोचाल्या, | **[[Deva Singh Bochalya|देवा सिंह बोचाल्या]], | ||
**त्रिलोक सिंह अलफसर, | **[[Trilok Singh|त्रिलोक सिंह अलफसर]], | ||
**ताराचंद झारोड़ा, | **[[Tarachand Jharoda|ताराचंद झारोड़ा]], | ||
**हेम करण यादव कोटपूतली, | **हेम करण यादव कोटपूतली, | ||
**नवल राम भारणी, | **[[Nawal Ram Kharra|नवल राम]] [[Bharni|भारणी]], | ||
**दुर्गा लाल बिजलीवाला, जयपुर, | **दुर्गा लाल बिजलीवाला, जयपुर, | ||
**गफ्फार अली वकील, जयपुर, | **गफ्फार अली वकील, जयपुर, | ||
**मोती राम धायल कोटडी, | **[[Moti Ram Dhayal|मोती राम धायल कोटडी]], | ||
**मोहन सिंह इन्दाली, | **मोहन सिंह [[Indali|इन्दाली]], | ||
**हरी सिंह बुरड़क पलथाना, | **[[Hari Singh Burdak|हरी सिंह बुरड़क पलथाना]], | ||
**हरदेव सिंह ढांढोता | **हरदेव सिंह [[Dhadhot Khurd|ढांढोता]] | ||
**चौधरी घासी राम, | **[[चौधरी घासी राम]], | ||
**शिव नारायण सिंह वकील | **[[Shiv Narayan Singh Vakil|शिव नारायण सिंह वकील]] | ||
सीकर वाटी में [[त्रिलोक सिंह]], [[देवा सिंह बोचल्या]], [[ईश्वर सिंह भामू]], [[हरी सिंह बुरड़क]] आदि किसान सभा के जिम्मेवार नेताओं के रूप में पहचाने गए. ([[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]], p. 204) | सीकर वाटी में [[Trilok Singh|त्रिलोक सिंह]], [[Deva Singh Bochalya|देवा सिंह बोचल्या]], [[Ishwar Singh Bhamu|ईश्वर सिंह भामू]], [[Hari Singh Burdak|हरी सिंह बुरड़क]] आदि किसान सभा के जिम्मेवार नेताओं के रूप में पहचाने गए. ([[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]], p. 204) | ||
'''किसान सभा के मुख्य उद्देश्य थे''' - | '''किसान सभा के मुख्य उद्देश्य थे''' - | ||
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किसानों में इससे भारी असंतोष फ़ैल गया. किसान सभा ने आह्वान किया कि कोई भी किसान शहर में कुछ भी बेचने न आए. इससे शहरों की जनता परेशान हो उठी. पशु रखने वालों में हाहाकार मच गया. क्योंकि जिनके पास स्टाक था, वे ऊँचे भावों पर देने लगे. आखिर राव राजा को अपनी मूर्खता पर पछताना पड़ा. उसने घोषणा करदी कि न तो पुख्ता निर्माण पर नजराना लिया जायेगा और न किसानों द्वारा कोई चीज बेचने पर टेक्स वसूल होगा. इससे किसान सभा एक मजबूत संगठन के रूप में उभरा. [[ईश्वर सिंह भामू]] और [[त्रिलोक सिंह]] ठिकानेदारों के आँखों में चुभने लगे. ([[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]], p. 205) | किसानों में इससे भारी असंतोष फ़ैल गया. किसान सभा ने आह्वान किया कि कोई भी किसान शहर में कुछ भी बेचने न आए. इससे शहरों की जनता परेशान हो उठी. पशु रखने वालों में हाहाकार मच गया. क्योंकि जिनके पास स्टाक था, वे ऊँचे भावों पर देने लगे. आखिर राव राजा को अपनी मूर्खता पर पछताना पड़ा. उसने घोषणा करदी कि न तो पुख्ता निर्माण पर नजराना लिया जायेगा और न किसानों द्वारा कोई चीज बेचने पर टेक्स वसूल होगा. इससे किसान सभा एक मजबूत संगठन के रूप में उभरा. [[ईश्वर सिंह भामू]] और [[त्रिलोक सिंह]] ठिकानेदारों के आँखों में चुभने लगे. ([[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]], p. 205) | ||
'''कांग्रेस में सम्मिलित''' - सन 1947 के प्रारंभ में [[Chanana|चनाना]] और [[Mahrampur|महरमपुर]] में क्रमशः प्रजामंडल और किसान सभा के जलसे हुए. इन गाँवों में ठिकानेदारों ने हिंसा फ़ैलाने की कोशिश की. किन्तु संगठित किसानों ने मुकाबला किया. आखिर प्रजामंडल का सपना साकार हुआ. 24 मार्च 1947 को जयपुर स्टेट में भी पंडित हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ. पंडित हीरालाल शास्त्री मुख्य मंत्री बने और उन्होंने संत कुमार शर्मा और पंडित ताड़केश्वर शर्मा को प्रजामंडल में सम्मिलित कर लिया गया. बाद में विद्याधर कुलहरी को भी कांग्रेस में सम्मिलित कर लिया गया. विद्याधर कुलहरी ने किसान सभा को स्थगित कर दिया. ([[Rajendra Singh Kaswan|राजेन्द्र कसवा]], p. 206-7) | |||
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Latest revision as of 16:25, 24 May 2019
Author of this article is Laxman Burdak लक्ष्मण बुरड़क |
प्रजामण्डल ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय रियासतों की जनता के संगठन थे। इनकी स्थापना 1920 के दशक में तेजी से हुई. राजस्थान में प्रजामंडलों के संस्थापन की प्रथम कड़ी के रूप में जयपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना सन 1931 में हुई. किसान सभाएं 1937 में ही जयपुर प्रजा-मण्डल में विलीन हो चुकी थी.
प्रस्तावना
इनकी स्थापना 1920 के दशक में तेजी से हुई। चूँकि रियासतों की शासन व्यवस्था ब्रिटिश नियंत्रण वाले भारतीय क्षेत्र से भिन्न थी, तथा अनेक रियासतों के राजा प्रायः अंग्रेजों के मुहरे के समान व्यवहार करते थे, इस सारी जटिलता के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जो कि उस समय ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता संघर्ष चला रही थी, ने रियासतों को अपने अभियान से अलग रखा था। परन्तु जैसे-जैसे रियासतों की जनता में निकटवर्ती क्षेत्रों के कांग्रेस चालित अभियानों से जागरूकता बढ़ी, उनमें अपने कल्याण के लिए संगठित होने की प्रवृत्ति बलवती हुई, जिससे प्रजामंडल बने।
शुरुआती दौर में राष्ट्रीय कांग्रेस देशी रियासतों के प्रति उदासीन रही। परन्तु हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस की नीति में परिवर्तन आया। रियासती जनता को भी अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने की छूट दे दी।
प्रजामण्डल का जन्म
रामेश्वरसिंह[1]ने लिखा है.... सन 1931 में प्रजामण्डल का जन्म हुआ। आरम्भ में इसका कार्य शिथिल ही रहा। सन 1933 में श्री हीरालाल जी शास्त्री के उत्साह के कारण प्रजामण्डल के कार्य में गति आई।
सन 1938 में प्रजामण्डल का प्रथम जलसा सेठ जमनालाल जी की अध्यक्षता में हुआ। इसकी जिला कमेटियां बनी, साथ ही अन्य कमेटियों का निर्माण भी हुआ। प्रजामण्डल में अब कुछ जान आई और उसने शासन में सुधारों के लिए विविध स्तर पर अपनी गतिविधिया तेज कर दी।
इसी वर्ष सीकर में एक बात को लेकर संघर्ष छिड़ गया। सन 1935-36
में सीकर के किसानों ने आन्दोलन किया था। इस आन्दोलन के समय गोली कांड भी हुआ था, जिसमे कुछ आदमी मारे गये थे।
सन 1937 में जयपुर के महाराजा ने सीकर के राजकुमार हरदयाल सिंह को अपने साथ इंग्लैंड ले जाना चाहा। राजकुमार के माता पिता दोनों इस बात के विरुद्ध थे। हिन्दू-मुसलमान सभी जयपुर के विरुद्ध सीकर की मदद करने बड़ी संख्या में सीकर में एकत्रित हो गये। उधर जयपुर की फौज सीकर में आ गई। और उसने घेराबन्दी कर दी। सीकर की मदद के लिए राजपूतों में से कई जयपुर की फौज द्वारा की गई गोली वर्षा में मारे गये। नगर में भयंकर तनाव बना रहा और हड़ताल चलने लगी। आगे चलकर सेठ जमनालाल जी, लादूराम जी जोशी, श्री हीरालाल जी शास्त्री आदि के कारण समझौता हुआ। सीकर के राव राजा कल्याणसिंह पुनः सीकर आकर यथवत राजकाज चलाने लगे। आगे चलकर श्री लादूराम जी जोशी को गिरफ्तार किया गया और उनको एक साल की सजा मिली।
प्रजामण्डल निरन्तर प्रगति कर रहा था। जगह-जगह आन्दोलन जारी थे। राज्य में दमन करना चाहा और दमनकारी कानून बनाये। पब्लिक सोसायटीज रेगुलेशन एक्ट (सार्वजनिक संस्था नियंत्रण कानून) बनाया गया। यह एक्ट 18 जनवरी 1939 को बनाया गया। जिसका उद्देश्य यह था कि राज्य में बिना सरकार की आज्ञा के कोई संस्था नहीं बने। इसी समय एक प्रेस एक्ट बनाया। जिसका उद्देश्य प्रेस और छापेखाने पर पाबन्दी लगाना था। साइक्लोस्टाइल रखने के लिए भी स्वीकृति आवश्यक थी।
राज्य कर्मचारियों को कहा गया कि वे अपने परिवार के लोगों को आन्दोलन में भाग लेने से रोकें और विभागीय अफसरों को सूचना दें। सभा करने और जुलूस निकालने पर पहले ही पाबन्दी लगी हुई थी।
इस साल राज्य में भयंकर अकाल था। सेठ जमनालाल बजाज अकाल सेवा कार्यों का निरीक्षण करने आ रहे थे कि 27 दिसम्बर 1938 को उन्हें सवाईमाधोपुर पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर राज्य में प्रवेश करने पर पाबन्दी
लगा दी। 12 फरवरी को सेठ जी को गठभोरो में बन्द कर दिया गया। 5 फरवरी से नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए सत्याग्रहियों के जत्थे निकालने लगे। इस पर गिरफ्तारियों एवं दमन के दौर शुरू हुए। 19 मार्च को गाँधी जी के आदेश से सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया।
सत्याग्रह बन्द होने पर सभाबन्दी और जुलूस बन्दी कानून रद्द हो गए। समाचार पत्रों पर लगाई गई रोक हटा दी गई। प्रजामण्डल का उद्देश्य स्वतन्त्र भारतीय संघ के अंतर्गत जयपुर राज्य में न्यायोचित उत्तरदायी शासन प्राप्त करना था। पहले 'महाराज की छत्रछाया में'शब्द थे जिन्हें आगे चलकर 1946 में हटा दिया गया।
जयपुर राज्य प्रजामण्डल एक संस्था थी। इसमें अपनी नीति में आवश्यकतनुसार परिवर्तन किये और धीरे-धीरे योग्य नेतृत्व पाकर सफलता की और बढ़ती रही। इसके चार आना सदस्य 43 हजार से ऊपर थे। सामान्य कमेटी में 85 और कार्यकारिणी में 15 सदस्य थे। इसकी 14 इलाका समितियाँ जगह-जगह सेवा कार्यों में रत थी।
सन 1945 से यह सिद्धराज ढड्डा के सम्पादन में दैनिक रूप से निकलना प्रारम्भ हुआ। यह रियासती भारत का सर्वप्रथम दैनिक पत्र था।
जयपुर राज्य प्रजामण्डल जमनालाल जी के कारण से महत्मा गाँधी के निकट रहा। इसके नवें अधिवेशन का उद्घाटन स्वयं राष्ट्रपति कृपलानी जी ने किया। सहयोग और जनप्रेम के कारण प्रजामण्डल निरन्तर प्रगति करता रहा। अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार प्रजामण्डल लोक परिषद आदि संस्थाये बराबर उत्तरदायी शासन की मांग कर थी तथा आन्दोलन का संचालन कर रही थी। इनके फलस्वरूप रियासतों में कुछ रूप में उत्तरदायी शासन प्रारम्भ हुआ।
प्रजा मण्डल एवं जाट पंचायतों में गठबंधन
सन 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें कहा गया कि कांग्रेस रियासती जनता से अपनी एकता की घोषणा करती है और स्वतंत्रता के उनके संघर्ष के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है. त्रिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस ने रियासती जनता के प्रति समर्थन की घोषणा कर दी, इससे जनता में बड़ा उत्साह और उमंग जगी. आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस की स्थानीय इकाइयों के रूप में जगह-जगह प्रजा-मंडल अथवा लोकपरिषदों का गठन हुआ. राजस्थान में प्रजामंडलों के संस्थापन की प्रथम कड़ी के रूप में जयपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना सन 1931 में हुई. [2]
सन 1938 के प्रजामंडलों की कोई राजनीतिक गतिविधियाँ नहीं थी. इसी साल प्रजामंडल ने संवैधानिक सुधार एवं कृषि सुधार के लिए आन्दोलन चलाये. किसान सभाएं 1937 में ही जयपुर प्रजा-मण्डल में विलीन हो चुकी थी. इसी साल सेठ जमनादास बजाज और पंडित हीरालाल शास्त्री इसके सचिव बने. इसी के साथ इसके वार्षिक अधिवेशन नियमित रूप से होने लगे. प्रजा मण्डल का उद्देश्य जनता के लिए प्राथमिक नागरिक अधिकार प्राप्त करना और जयपुर राज्य में समग्र विकास की प्रक्रिया शुरू करना था. अब तक प्रजा मंडल का काम शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित था. ग्रामीण क्षेत्रों में पैठ नहीं होने से प्रजा मंडल ने जाट पंचायत के साथ जागीरदार विरोधी संधि में शामिल होने पर विचार किया. उधर शेखावाटी में भी यह विचार चल रहा था कि क्या हमें किसान पंचायतों का विलय प्रजा मंडल में कर देना चाहिय. एक गुट, जिसमें चौधरी घासीराम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, विद्याधर कुलहरी आदि थे, का सोच था कि इससे किसानों की मांगें उपेक्षित होंगी, क्योंकि अपनी बहुविध गतिविधयों में प्रजा मंडल इस और पूरा ध्यान नहीं दे पायेगा. दूसरी और सरदार हरलाल सिंह, चौधरी नेतराम सिंह आदि इस विचार के थे कि प्रजा मंडल जैसे सशक्त संगठन में शामिल होने से किसान पंचायतों को सीमित क्षेत्र से निकाल कर विशाल क्षेत्र तक पहुँचाने का यह एक सशक्त माद्यम बन सकेगा. प्रजामंडल में शामिल होने से उनकी पहुँच सीधी जयपुर राज्य से हो जाएगी जिससे जागीरी जुल्मों का वे अधिक सक्रियता से और ताकत से मुकाबला करने में समर्थ होंगे. इस द्विविध विचारधारा के कारण शेखावाटी का राजनीतिक संघर्ष विभाजित हो गया. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 37)
प्रजामंडल की शेखावाटी में गतिविधियाँ
नवंबर 1937 में में प्रजामंडल के महासचिव हीरा लाल शास्त्री ने शेखावाटी का दौरा किया. सरदार हरलाल सिंह तथा चौधरी नेतराम सिंह आदि उनके साथ थे. 25 एवं 30 नवम्बर 1937 को उनका भाषण हनुमानपुरा में हुआ. 16 दिसंबर 1938 को प्रजामंडल के अध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज के जयपुर राज्य में प्रवेश पर रोक लगा दी गयी और 'पब्लिक सोसायटीज एक्ट' के तहत प्रजामंडल को 12 जनवरी 1939 को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. प्रजामंडल के दमन का कारण उसका जाट किसान पंचायत से मेल जोल बढ़ाना था और किसानों को भी इसी संधि की सजा दी जा रही थी. सेठजी ने दो बार 1 फ़रवरी और 5 फ़रवरी को जयपुर की सीमा में प्रवेश की कोशिश की किन्तु दोनों ही बार उन्हें बलपूर्वक खदेड़ कर राज्य से बाहर कर दिया गया. शेखावाटी में इस पर भयंकर प्रतिक्रिया हुई. किसानों ने जगह-जगह सत्याग्रह व आन्दोलन शुरू कर दिए. किसानों पर घोड़े दौडाए गए और लाठी चार्ज हुआ. झुंझुनू में 1 से 4 फ़रवरी तक एकदम अराजकता की स्थिति रही. इसी दौरान प्रजामंडल के प्रभाव में आकर शेखावाटी जाट किसान पंचायत का नाम बदल कर किसान पंचायत और जाट बोर्डिंग हाऊस झुंझुनू का नाम विद्यार्थी भवन कर दिया. सन 1942 में झुंझुनू एवं सन 1942 में श्रीमाधोपुर में प्रजामंडल के वार्षिक अधिवेशन आयोजित किये गए लेकिन ठिकानों की ज्यादतियां अब नए सिरे से शुरू होने लगीं, क्योंकि अब जयपुर दरबार व ब्रिटिश अधिकारी भी उन्हें शह दे रहे थे. ठिकाने कई तरह की लाग-बाग़ और मोहराने मांगने लगे. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 37)
[प्रजामंडल]] का दूसरा वार्षिक अधिवेशन मई 1940 के अंत में जयपुर में होना तय हो गया था. इसी बीच कोई आन्दोलन की गतिविधियाँ भी नहीं चल रही थी. तब यह तय किया गया कि फरार चल रहे किसान नेता गिरफ़्तारी दे दें. अधिवेशन से पूर्व ही मई 1940 में चौधरी घासी राम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा और नतराम सिंह ने झुंझुनू कोर्ट में उपस्थित होकर स्वेच्छा से गिरफ़्तारी दे दी. इन तीनों को झुंझुनू की जेल में बंद कर दिया जो गढ़ में स्थित थी. [3]
यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा की इसी दौरान घासी राम की इकलौती पुत्री मनोरमा बनस्थली विद्यापीठ में प्रवेश ले चुकी थी. घासी राम का बड़ा बेटा बीरबल उनकी गिरफ़्तारी के समय विद्यार्थी भवन झुंझुनू में रह कर पढ़ रहा था. विद्यार्थी भवन में प्राथमिक विद्यालय चल रहा था. जिसमें पन्ने सिंह देवरोड़ के पुत्र सत्यदेव बच्चों को पढ़ाते थे. [4]
प्रजा मंडल में फूट और किसान सभा की स्थापना
पंडित हीरा लाल शास्त्री ऐसे बौद्धिक नेता थे जो एक हाथ से जयपुर रियासत और बिड़ला जी को नमन करते थे तो दूसरे हाथ से किसानों को राम-राम कहते थे. वे दोनों का साथ नहीं छोड़ना चाहते थे. लेकिन इसमें किसानों का भला नहीं हो रहा था. सरदार हरलाल सिंह, नरोत्तम जोशी, नेतराम सिंह जैसे नेता थे जो प्रजामंडल से प्रभावित थे. चौधरी घासी राम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा आदि को कभी विश्वास नहीं रहा कि प्रजामंडल किसानों की समस्याएं हल कर देगा. उनका सोचना था कि पूंजीपतियों के पैसे के बल पर पार्टी चलाने वाले नेता कैसे गाँव, गरीब, किसान और मजदूर का भला कर सकेंगे. [5]
15 जून 1946 को झुंझुनू में किसान कार्यकर्ताओं की एक बैठक चौधरी घासी राम ने बुलाई. शेखावाटी के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने इसमें भाग लिया. अध्यक्षता विद्याधर कुलहरी ने की. इसमें यह उभर कर आया कि भविष्य में समाजवादी विचारधारा को अपनाया जाये. कुछ व्यक्तियों ने किसान सभा का विरोध किया. निम्न व्यक्तियों ने किसान सभा का अनुमादन किया (राजेन्द्र कसवा, p. 201-03).
- अर्जुन राम बीबासर,
- अलबाद सिंह पचेरी,
- उमादत्त महाजन बगड़,
- ओंकार सिंह हनुमानपुरा,
- ओनाड़ जाट झेरली,
- कन्हैया लाल पूरा की ढाणी,
- कमल सिंह हनुमानपुरा,
- करनी राम वकील अजाडी,
- कल्लू राम खाजपुर,
- कालू राम स्योलाना,
- कुरड़ा राम झारोड़ा,
- कूम सिंह बिरोल,
- केसरदेव सांगसी,
- खेता राम माली उदयपुर,
- खेताराम नंदरामपुरा ,
- ख्याली राम भामरवासी,
- गंगा राम चिड़ावा,
- गणेश राम
- गनपत राम पिचानवा,
- गिरधारी लाल बजावा,
- गुरुमुख सिंह दौलतपुरा,
- गुलाब सिंह खाजपुर,
- गोपाल राम खिरोड़,
- गोरू राम तिगियास,
- घडसी राम मांडासी,
- घड़ी राम नंदरामपुरा,
- चत्तर सिंह बख्तावरपुरा,
- चानू राम बास पुनिया,
- चिमना राम लुटू,
- चीखा राम निवाई,
- चुन्नी लाल ढाणी मझाऊ,
- चौधरी घासी राम
- छानू राम भोबिया,
- जगदीश राम लूणा,
- जगन सिंह भोजासर
- जयदेव सिंह सांगासी
- जीता राम भडून्दा कला,
- जीता राम झेरली,
- जीवन राम खिरोड़,
- ठण्डी राम बाकरा,
- डूंगर सिंह कुमावास,
- डूंगर सिंह मांडासी,
- ताराचंद झारोड़ा,
- थाना राम भोजासर,
- दया किशन गौरीर,
- धोकल सिंह भोजासर,
- नत्थू सिंह बाडलवास,
- नानू राम तिगियास,
- नारायण सिंह झेरली,
- पंडित ताड़केश्वर शर्मा पचेरी,
- परसा राम लुटू,
- परसाराम परसरामपुरा,
- पित राम पिचानवा,
- पूर्ण सिंह हमीरवास,
- प्रहलाद सिंह पिचानवा,
- बक्सा राम बुडानिया,
- बख्ता राम काजी,
- बलदेव सिंह लुटू,
- बस्ती राम बाडेट ,
- बस्ती राम नारनोद,
- बालू राम हमीरवास,
- बालू राम ढाणी अडूका,
- बिंदु सिंह अलीपुर,
- बिसना राम बुडानिया,
- बिसना राम सोटवारा,
- बीजा राम ढाणी कुलड़िया,
- बूंटी राम किशोरपुरा,
- बूजन राम,
- भानी राम बाकरा,
- भोज राम निवाई,
- भोमा राम लालपुर,
- मग सिंह घोडीवारा खुर्द,
- महादेवा खाती पचेरी,
- महेंद्र सिंह गोवली,
- मांगी लाल,
- मान सिंह बनगोठडी,
- माम चंद माली बगड़,
- मामराज घुमनसर,
- माल राम हमीरवास,
- मालजी गाडोली,
- माली राम घोडीवारा कला,
- मुकुंद राम धमोरा,
- मुकुंद राम सांगसी,
- मुकुंदा राम महरमपुर,
- मूल सिंह,
- मेघ राम भीखनसर,
- मोती राम कुलोद,
- मोहन राम अजाडी,
- रणजीत सिंह बाडलवास,
- राजू राम माली बगड़,
- राम करण हमीरवास,
- राम दयाल भीखनसर,
- राम लाल भोडकी,
- राम लाल पोसाणा,
- राम सिंह कंवरपुरा,
- रामकुमार फतेहसरा,
- रामदेव बाकरा,
- रामधन खींवासर,
- रामनाथ सिंह श्यामपुरा,
- रामू राम धीरासर,
- रामेश्वर घरडाना,
- लक्ष्मण सिंह बगड़,
- लक्ष्मण सिंह बाजीसर,
- लक्ष्मण सिंह भुडनपुरा ,
- लादू राम बजावा,
- लादू राम देवगांव,
- लादू राम फतेहसरा,
- लादू राम घुमनसर,
- लादू राम लालपुर,
- लादू राम रायपुर,
- लादू राम खाती जीणी,
- लालचंद ढाणी कुलड़िया,
- लालचंद खाती तोगड़ा,
- लाला राम दूलपुरा,
- लेख राम खाजपुर,
- लेख राम प्रतापपुरा,
- लेख राम पूरा की ढाणी,
- विद्याधर कुलहरी]]
- शिव राम स्योलाना,
- शिव लाल जाखड़,
- शिवनारायण सिंह वकील,
- श्याम लाल तिगियास,
- श्योनारायण ढंढारिया ,
- सांवल राम राणासर,
- सुरजा राम ढीगाल,
- सुरजा राम गोपालपुरा,
- सुरजा राम गोठड़ा,
- सुल्तान सिंह खाजपुर,
- सूबेदार सुख राम,
- सूरज मल हनुमानपुरा,
- सूरजा राम,
- सोहन सिंह हनुमानपुरा,
- हजारी राम तिगियास,
- हनुमान कासनिया का बास,
- हनुमान सिंह बाजीसर,
- हरजी राम श्यामपुरा,
- हरदेव सिंह ढांढोटी,
- हरनन्द राम वकील अजाड़ी,
- हीरा राम ढीगाल,
- होती लाल मुकुंदगढ़,
नोट - यह सूची विद्याधर कुलहरी की पुस्तक 'मेरा जीवन संघर्ष' पेज 206 से ली गयी है.
उपरोक्त सूची से प्रकट होता है कि किसान सभा के लिए पूरे जिले से किसानों का समर्थन प्राप्त था. इसमें सीकर जिले के किसानों के नाम नहीं हैं. विद्याधर कुलहरी को किसान सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया. यह दुर्भाग्य पूर्ण था कि किसानों का संघर्ष सफल हुए बिना ही प्रजामंडल में फूट पड़ गयी. दोनों गुट प्रचार-प्रसार में लग गए. अनेक अवसरों पर दोनों गुटों में विवाद हुआ. (राजेन्द्र कसवा, p. 203)
16 जून 1946 को किसान सभा का पुनर्गठन
सरदार हरलाल सिंह ने दूसरे ही दिन 16 जून 1946 को प्रजा मंडल का जिला अधिवेशन नवलगढ़ में बुलाया. इसमें पंडित हीरा लाल शास्त्री भी सम्मिलित हुए. उन्होंने मंच से किसान सभा के विरुद्ध भाषण दिया.
प्रथम गुट के लोग जिसमें चौधरी घासी राम, विद्याधर कुलहरी आदि प्रमुख थे, किसान सभा में बने रहे जबकि दूसरे लोग प्रजा मण्डल से जुड़कर आजादी के संघर्ष की मूल धारा में चले गए. इन परिस्थियों में 16 जून 1946 को किसान सभा का पुनर्गठन किया गया. इस समय शेखावाटी के कुछ प्रमुख किसान नेताओं ने प्रजामंडल से अपने संबंधों का विच्छेद कर लिया. ये थे चौधरी घासी राम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, विद्याधर कुलहरी और तारा सिंह झारोड़. विद्याधर कुलहरी को झुंझुनू जिला किसान सभा का अध्यक्ष बनाया गया. इस विभाजन से शेखावाटी किसान आन्दोलन की गति कम हो गयी. आगे चलकर जयपुर राज्य से प्रजामंडल के कारण उनका संघर्ष शुरू हुआ. इस समय वे कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रहे थे. प्रथम मोर्चा ठिकानेदारों के विरुद्ध, दूसरा उनके हिमायती जयपुर राज के विरुद्ध तथा तीसरा अपने ही उन भाईयों के विरुद्ध जो ठिकानों के अंध भक्त बने हुए थे. इस समय शेखावाटी के विविध क्षेत्रों में किसान सम्मलेन आयोजित कर किसानों की समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जाता था. ऐसे सम्मेलनों कि अध्यक्षता या सभापतित्व सरदार हरलाल सिंह किया करते थे. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 37-38)
किसान सभा का रींगस सम्मलेन 30 जून 1946
इसके प्रत्युत्तर में किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन 30 जून 1946 को बुलाया गया. इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए. यह निर्णय किया गया कि पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें. विद्याधर कुलहरी को ही जयपुर स्टेट की किसान सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया. (राजेन्द्र कसवा, p. 203) अन्य कार्यकारिणी सदस्य निम्न थे:-
- अध्यक्ष - विद्याधर कुलहरी
- उपाध्यक्ष - ईश्वर सिंह भैरूपुरा एवं छाजूराम कुंवरपुरा
- प्रधानमंत्री - राधावल्लभ अग्रवाल, जयपुर
- उपमंत्री - पंडित ताड़केश्वर शर्मा एवं जयदेवसिंह सांगसी
- कोषाध्यक्ष - लादू राम रानीगंज (मूलत: पलसाना से)
- सदस्य -
- देवा सिंह बोचाल्या,
- त्रिलोक सिंह अलफसर,
- ताराचंद झारोड़ा,
- हेम करण यादव कोटपूतली,
- नवल राम भारणी,
- दुर्गा लाल बिजलीवाला, जयपुर,
- गफ्फार अली वकील, जयपुर,
- मोती राम धायल कोटडी,
- मोहन सिंह इन्दाली,
- हरी सिंह बुरड़क पलथाना,
- हरदेव सिंह ढांढोता
- चौधरी घासी राम,
- शिव नारायण सिंह वकील
सीकर वाटी में त्रिलोक सिंह, देवा सिंह बोचल्या, ईश्वर सिंह भामू, हरी सिंह बुरड़क आदि किसान सभा के जिम्मेवार नेताओं के रूप में पहचाने गए. (राजेन्द्र कसवा, p. 204)
किसान सभा के मुख्य उद्देश्य थे -
- 1.शोषण रहित समाज की स्थापना करना
- 2.जागीरदारी प्रथा का समूल खात्मा व किसानों को भूमि का मालिक घोषित करना
- 3.किसानों को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं शैक्षणिक उन्नति के अवसर प्रदान करना
- 4.सारी जमीन का बंदोबस्त करवाना एवं उचित लगान कायम करना (राजेन्द्र कसवा, p. 204)
विभाजन से रावराजा सीकर का मनोबल बढ़ा - विभाजन होने से रावराजा सीकर का मनोबल बढ़ गया था. पहले सीकर में पक्का मकान बनाने पर मोहराना या नजराना नहीं देना पड़ता था पर अब किसान सभा के विभाजन के पश्चात् पुख्ता निर्माण करने वाले किसानों को नजराना अनिवार्य कर दिया. यदि किसान शहरों में अनाज, चारा, लकड़ी, दूध, दही, घी आदि बेचने आवेंगे तो उन्हें टेक्स देना होगा. (राजेन्द्र कसवा, p. 205)
किसानों में इससे भारी असंतोष फ़ैल गया. किसान सभा ने आह्वान किया कि कोई भी किसान शहर में कुछ भी बेचने न आए. इससे शहरों की जनता परेशान हो उठी. पशु रखने वालों में हाहाकार मच गया. क्योंकि जिनके पास स्टाक था, वे ऊँचे भावों पर देने लगे. आखिर राव राजा को अपनी मूर्खता पर पछताना पड़ा. उसने घोषणा करदी कि न तो पुख्ता निर्माण पर नजराना लिया जायेगा और न किसानों द्वारा कोई चीज बेचने पर टेक्स वसूल होगा. इससे किसान सभा एक मजबूत संगठन के रूप में उभरा. ईश्वर सिंह भामू और त्रिलोक सिंह ठिकानेदारों के आँखों में चुभने लगे. (राजेन्द्र कसवा, p. 205)
कांग्रेस में सम्मिलित - सन 1947 के प्रारंभ में चनाना और महरमपुर में क्रमशः प्रजामंडल और किसान सभा के जलसे हुए. इन गाँवों में ठिकानेदारों ने हिंसा फ़ैलाने की कोशिश की. किन्तु संगठित किसानों ने मुकाबला किया. आखिर प्रजामंडल का सपना साकार हुआ. 24 मार्च 1947 को जयपुर स्टेट में भी पंडित हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ. पंडित हीरालाल शास्त्री मुख्य मंत्री बने और उन्होंने संत कुमार शर्मा और पंडित ताड़केश्वर शर्मा को प्रजामंडल में सम्मिलित कर लिया गया. बाद में विद्याधर कुलहरी को भी कांग्रेस में सम्मिलित कर लिया गया. विद्याधर कुलहरी ने किसान सभा को स्थगित कर दिया. (राजेन्द्र कसवा, p. 206-7)
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सन्दर्भ
- ↑ Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Jaipur Rajya Aur Krishak Andolan,pp.30-32
- ↑ डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 36
- ↑ राजेन्द्र कसवा:किसान यौद्धा, कलम प्रकाशन, झुंझुनू, 2009, p.59
- ↑ राजेन्द्र कसवा:किसान यौद्धा, कलम प्रकाशन, झुंझुनू, 2009, p.60
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 201
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