Khatri
Khatri (खत्री)[1] [2]Khattri (खत्री)[3] Khetri (खेत्री) Khatria (खत्रीया)[4] [5] gotra Jats are found in Madhya Pradesh, Haryana, Rajasthan and Delhi in India and Pakistan.
Origin
- लोहर गोत्रजनों ने पहले अपने को क्षत्रिय लिखा जो बिगड़ कर खत्री हो गया.[6]
Jat Gotras Namesake
History
Ram Swarup Joon[8] writes that Khaitri (Lahor) or The Khattris are in abundance in the Punjab and Haryana. Although they do not call themselves so, they are Jats. They consider themselves to be the descendants of king Kailash of Kashmir who is mentioned in Rajatrangini. After the fall of the Kashmir kingdom they came and settled down in Lahore for some time.
They have a few villages, Sonepat, Kulashi, Ismaila etc,. in district Rohtak, village Dudhwa in district Charkhi Dadri. One of their branches is called Lohna, who settled down in Sindh. During the conflict. Of the Jats with King Chach, these people took the side of Chach. They are mentioned in Chachnama. They also supported his son Dahir in his conflict with Mohamad Bin Quasim.
According to Bhim Singh Dahiya, they are an ancient tribe mentioned by the Greeks as "Xathroi", corresponding to Sanskrit Kśatri. Kautilya says that they had a a "Vratashāstropjivin" type old sangha or government. K P Jayaswal identifies them with the present Sindhi Khatris. Why not, also, with the Punjabi Khatris and Khatri Jats? It should be remembered that "Kśātra" was the first king of the Persians and the ancient "Hittites" of Turkey, were in fact known to the Egyptians as "Khattis", i.e. 'Khatris'. [9]
Megasthenes has described then as The hill-tribes between the Indus and the Iomanes as Cetriboni (Khatri), along with the Cesi (Khasa), the Megallae (Mukul), the Chrysei (Karesia), the Parasangae (Paraswal), and the Asange (Sangwa) (See Jat clans as described by Megasthenes).
लोहित-लोहर-क्षत्रिय (खत्री) जाटवंश
दलीप सिंह अहलावत [10] के अनुसार महाभारतकाल में इस जाटवंश का राज्य कश्मीर एवं ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में था। पाण्डवों की दिग्विजय में उत्तर की ओर अर्जुन ने सब जनपद जीत लिए।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-295
उसने लोहित (लोहत) जनपद को भी जीत लिया। यह जनपद कश्मीर में था (सभापर्व अध्याय 26-27-28)। भीमसेन ने पूर्व दिशा के देशों को जीत लिया। उसने लोहित देश (ब्रह्मपुत्र क्षेत्र) पर भी विजय प्राप्त की (सभापर्व अध्याय 29-30)।
कश्मीरी कवि कह्लण ने अपनी पुस्तक राजतरंगिणी में इस राजवंश को लोहर राजवंश लिखा है जो कि कश्मीर के इतिहास में एक प्रसिद्ध राजवंश था। ये लोग कश्मीर में पीरपंजाल पहाड़ी क्षेत्र में आबाद थे। इन लोगों के नाम पर लोहर कोट (लोहरों का दुर्ग) है। सुप्रसिद्ध महारानी दीद्दा का विवाह Ksemagupta (कस्मगुप्त) के साथ हुआ था। वह लोहर नरेश सिमहाराज का पुत्र था, जिसका विवाह जाटवंशज लल्ली साही नरेश भीम की पुत्री से हुआ था। यह भीम काबुल और उदभंग (अटक के निकट औन्ध) का शासक था। अतः दीद्दा लोहरिया जाट गोत्र की थी और काबुल के लल्ली (लल्ल) वंशी जाट नरेश की दुहोतरी थी। इस राजवंश की सन्तान आज भी साही जाट कहलाते हैं1।
महारानी दीद्दा ने अपने भाई उदयराज के पुत्र संग्रामराज को अपना उत्तराधिकारी बनाया। उनकी मृत्यु सन् 1028 ई० में हो गई। (कह्लण की राजतरंगिणी, लेखक ए) स्टीन, vi 335, vii, 1284) इसके बाद लोहर जनपद का नरेश विग्रहराज हुआ (देखो कह्लण की राजतरंगिणी Vol. II P. 293, Steins note Ex.)2।
अलबरुनी ने इस ‘लोहर कोट’ (लोहरों का दुर्ग) को ‘लोहाकोट’ का संकेत देकर लिखा है कि “इस लोहर कोट पर महमूद गजनवी का आक्रमण बिल्कुल असफल रहा था।”
फरिश्ता लिखता है कि “महमूद की नाकामयाबी का कारण यह था कि इस दुर्ग की ऊंचाई एवं शक्ति अदभुत थी।” (देखो, ‘लोहर का किला’ इण्डियन एक्टिक्योरी, 1897)3
महमूद गजनवी ने भारतवर्ष पर 1001 ई० से 1026 ई० तक 17 आक्रमण किये थे। उसने नगरकोट और कांगड़ा को सन् 1009 ई० में जीत लिया। उसके आक्रमण से भयभीत होकर कश्मीर में तत्कालीन शासन इतना अस्थिर हो गया था कि बिना आक्रमण ही अधिकारहीन हो उठा। तब लोहर क्षत्रियों (जाटवंश) ने ही वहां की सत्ता को स्थिर किया। ऐतिहासिक डफ् के लेखानुसार लोहर वंशज राज कलश ने संवत् 1120 (सन् 1063 ई०) से संवत् 1146 (सन् 1089) तक शासन किया। और संवत् 1159 (सन् 1102 ई०) तक राजा हर्ष, जो लोहर वंशज था, ने शासन किया4।
सन् 1258 ई० में खान नल्व तातार ने जब कश्मीर पर आक्रमण करके श्रीनगर को लूटा तथा जलाया तब वहां लोहरवंशी जयसिंह उपनाम सिंहदेव राज्य करता था। उसके भाग जाने पर उसके भाई उदयनदेव ने राज्य सम्भाला। किन्तु उसके सेनापति रामचन्द्र ने राज्य छीन लिया। तिब्बती रैवनशाह ने रामचन्द्र की पुत्री कुतरानी से विवाह करके अपना शासन 2½ वर्ष चलाया। उसकी मृत्यु हो जाने पर लोहरवंशी उदयनदेव ने विधवा कुतरानी से विवाह करके 15 वर्ष अपना शासन चलाया। इस शासक की मृत्यु होते ही इस वंश का राज्य कश्मीर से समाप्त हो गया। तब से आज तक यह
- 1, 2, 3. जाट्स दी ऐनशनट् रूलर्ज पृ० 263, लेखक बी० एस० दहिया आई० आर० एस०।
- 4. जाटों का उत्कर्ष पृ० 365, लेखक कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री। इसी लेखक ने इस जाटवंश को लोहर क्षत्रिय या खत्री लिखा है।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-296
वंश सर्वथा राज्यहीन है (जाटों का उत्कर्ष पृ० 365-366, ले० योगेन्द्रपाल शास्त्री)।
लोहर क्षत्रिय (खत्री) गोत का विस्तार - इस लोहर क्षत्रिय (खत्री) गोत के जाट
जिला सोनीपत में गढ़ी ब्राह्मण, चटया, सबोली (आधा), सफीपुर (आधा), कुंडली, मनीपुर (आधा)।
दिल्ली प्रान्त में नरेला, बांकनेर, टीकरी खुर्द, सिंघोला, शाहपुर गढ़ी,
जिला जींद में नरेला से गये हुए बंनु, भूड़ा, कसान गांव हैं।
Charkhi Dadri जिला चरखी दादरी में दूधवा गांव हैं।
जिला मेरठ में इस वंश के गांव भैंसा और मनफोड़ हैं।
मथुरा के आस-पास इस वंश के लोग हैं जो कि लोहारिया कहलाते हैं। यू० पी० में ये लोग लऊर और लाहर नाम से प्रसिद्ध हैं।
लोहित-लोहर के शाखा गोत्र - 1. लऊर-लाहर 2. लोहारिया-लोहार। इस वंश को लोहर खत्री कहा गया है।
खत्री जाट गोत्र का इतिहास
पंडित अमीचन्द्र शर्मा[11]ने लिखा है - लव खत्री गोत्र के जाटों के दो गाँव हैं – ननेरा और बांकनेर जो जिला दिल्ली में पड़ते हैं। इनके ओर भी कई गाँव हैं। इनके बड़े का नाम लव था। वह खत्री संघ में था जिससे से अलग हो गया। उसकी संतान लव खत्री कहलाई। खत्री संस्कृत के क्षत्रिय शब्द से बिगड़ कर बना है। इस गोत्र की वंशावली भी ग्रंथ विस्तार के भय से नहीं लिखी गई है।
भलेराम बेनीवाल[12] लिखते हैं कि खत्री जाट गोत्र के बारे में एक कथा प्रचलित है. जसवंत सिंह नाम क एक वीर पुरुष व्यापार के लिये राजपुरा रूका हुआ था. वहं एक भैंस खुन्टा उखाड़ कर भाग रही थी. पीछे से एक लड़की ने आवाज लगाई - भैंस पकड़ियो ! वीर पुरुष ने रस्से पर पैर रख कर भैंस को रोका और उस लड़की को सौंप दी. लड़की युवक की वीरता से प्रभावित हुई और विवाह का प्रस्ताव जसवन्त सिंह के सामने रखा. जसवन्त सिंह ने मान लिया और शादी कर लड़की को घर ले गया. जसवन्त सिंह के घरवालो ने कहा कि या तो इस लड़की को छोड़ो या घर छोड़ो. इस पर जसवन्त सिंह ने घर छोड़ दिया और राजा जयचन्द के यहां नौकरी कर ली. राजा को उसकी रानियों ने मरवा डाला व स्वयं शासक बन गयी. उन रानियों को जसवन्त सिंह ने मरवा डाला और स्वयं राजा बन गया. लौर और खत्री एक ही गोत्र है । इसलिए दोनों गोत्र में शादी नही होती है । इस प्रकार जसवन्त सिंह से आगे के वंशज खत्री गोत्र कहलाये.
खत्री गोत्र के गांव
खत्री गोत्र के गांव हैं:
- दिल्ली में - नरेला, सिंघोला, शाहपुर गढ़ी, बकनेर, टीकरी,
- जिन्द में - बनू, भूड़ा, कसान,
- रोहतक में - इसमायला, कोलासी, गढ़ी ब्राह्मण व चरया
- उत्तर प्रदेश मेरठ - भैसा, मनफ़ोड़ा
- चरखी दादरी में - दूधवा
लववंशी क्षत्रिय जाटोँ का इतिहास
लववंशी क्षत्रिय जाटोँ का बहुत बड़ा इतिहास है । श्री रामचन्द्र जी के दो पुत्र थे एक लव और दूसरे कुश । लोहरा/लौर गोत्र और लोरस क्षत्रिय (खत्री) गोत्र लववंशी क्षत्रिय जाट हैं । लौर और खत्री एक ही गोत्र है । इसलिए दोनों गोत्र में शादी नही होती है ।
जैसे जैसे समय गुजरता गया लोग लववंशी क्षत्रिय जाटोँ को लौह (Lauh), लोह (Loh) कहने लगे या युँ कहो कि लौह (Lauh) या लोह (Loh) कहलाने लगे, लौह (Lauh)/लोह (Loh) का अर्थ है, लोहे के समान बलशाली, ताक़तवर, और समय के साथ शब्दोँ के अपभ्रंश (शब्दोँ का बिगड़ना बोली और क्षेत्र के अनुसार) के कारण लोग लौह (Lauh) से लौर (Laur/Lor) कहने लगे या युँ कहो कहलाने लगे और लोह (Loh) से लोहरा Lohra/लौरा Lohkana-लोह्कना/लोह्काना कहलाने लगे ।
खत्री Khatri भी शब्दोँ के अपभ्रंश के कारण ही प्रचलन मेँ आया । जो जाट आज अपने को खत्री Khatri लिखते हैं वो भी लववंशी क्षत्रिय जाट ही हैं । खत्री जाट पहले अपने आप को लववंशी क्षत्रीय जाट होने के कारण अपने को लोरस क्षत्रिय लिखते थे जो समय के साथ भाषा/बोली और शब्दोँ के अपभ्रंश के कारण लौरस क्षत्रिय (Loras Kshatri) से खत्री Khatri लिखने लग गए या युँ कहो कि खत्री Khatri लिखना प्रचलन मेँ आ गया । लौरस क्षत्रिय (Loras Kshatri) का अपभ्रंश ही खत्री/Khatri है ।
बड़गोती (Badgoti) गोत्र, जो लौर (Laur) गोत्र का ही सब गोत्र है । बड़गोती Badgoti अर्थ है "बड़े गोत्र का" । बड़गोती Badgoti जाट गोत्र भी लौर Laur/Lor के रूप में जाना जाता है या हम कह सकते हैं कि सही विवरण Badgotis लिए Laur/Lor होना चाहिए जिसके द्वारा वे आम तौर पर बुलंदशहर में जाने जाते हैँ । बड़गोती मूल रूप से बहुत अमीर, बड़ी भूमि होने वाली जाट की पीढ़ी के हैं । बड़गोती जाट राष्ट्र के प्रति समर्पित रहे हैँ । ये मुसलमानों और अंग्रेजों के खिलाफ अपने स्वयं के द्वारा देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े । आज के समय मेँ हम इन्हें रक्षा और पुलिस सेवाओं में अधिकतम पा सकते हैं । ये ईमानदार, बहादुर और अपने काम के प्रति जिम्मेदार रहे हैँ । ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उच्च प्रतिष्ठित जाट हैं ।
लववंशी क्षत्रिय जाट राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र मेँ बसे हुये हैं । लववंशी क्षत्रिय जाट गोत्र के 300 से अधिक गाँव हैं । भाषा (बोली) और क्षेत्र के अंतर के कारण कोई अपने को लौर Laur/Lor लिखता है और कोई लोहरा/लौरा Lohra/Laura लिखता है और जो लौरस क्षत्रिय (Loras Kshatri) लिखते थे वो जाट आज अपने को खत्री लिखते हैं ।
सभी की और अधिक जानकारी के लिए लववंशी क्षत्रिय जाटोँ की हर साल मार्च मेँ राम नवमी के दिन नरेला (दिल्ली) गाँव मेँ इनकी वार्षिक बैठक होती है । इस बार एक समुदाय का गठन किया जायेगा और लववंशी क्षत्रिय जाट गोत्र के इतिहास से संबंधित एक पत्रिका का संपादन भी होगा और पत्रिका लववंशी क्षत्रिय जाटोँ के गोत्रोँ के गाँवोँ मेँ मुख्य रुप से बाँटी जायेगी ।
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Bhopal district
Villages in Guna district
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Rampur district
Khandi Khera (70), Mewala Kalan,
Villages in Meerut district
Distribution in Haryana
Villages in Hissar district
Villages in Rohtak district
Bharan, Gizhi गिज्झी), Gillon Kalan, Kulasi near Sampla, Ismaila
Villages in Sonipat district
Chatia Aulia, Janti Kalan, Kasaan, Kundli, Raipur, Panchi Jatan, Sersa, Tharu Uldepur,
Villages in Jind district
Villages in Jhajjar district
Village in Charkhi Dadri District
Distribution in Delhi
Mamoor Pur, Bakner, Hirnki, Katewara, Kishan Garh, Najafgarh, Narela, Rajpura, Shahpur Garhi, Singhola, Singhu, Tikri Khurd,
Distribution in Rajasthan
Ambabari (Jaipur),
Notable persons
- Swami Omanand Saraswati Arya Samajist
- Surya Prakash Khatri - Senior Lawyer and MLA Candidate
- Kusum Khatri - MCD Councilor and MLA candidate
- Neeldaman Khatri - MCD Councilor and MLA
- [[Mukesh Khatri]
- Amit khatri - IAS (2010)
- Manoj Khatri HCS , SDM Haryana Government
- Mausam Khatri - Wrestler (Hind Kesari)
- Baba Shivnath (बाबा शिवनाथ) - Khatri Gotra बाबा शिवनाथ - खत्री गोत्री, अस्थल बोहर जिला रोहतक के मुखिया रहे।
- Himanshu Khatri: IRS C&CE 2014 batch, presently under training, From Narela, Delhi, M: 9818323839
- Manisha Khatri: IAS 2014 batch, SDM, Kolhapur, Maharashtra Cadre, M: 9215944459
- Saurabh Khatri: Addl Civil Judge(Sn. Div) cum SDJM, Posted at Narwana, Jind, From: Sonipat, M: 8813888512
- Anil Khatri: Bronze Medal, Asian Wrestling Championship 2017
- Rajesh Khatri - Managing Director (IMPCL) & Under Secretary to Govt. of India
Virender Khatri Inspector in Haryana Police , Hisar
- Anil Khatri - (BSF 2012) Dudhwa, Charkhi Dadri, Haryana
Distribution in Pakistan
Khatri - The Khatri are a Mulla Jat clan, who were earlier found in Sonepat and Rohtak. They are now found in Thatta, Okara and Sahiwal districts. The Khatri Jat have no connection with the famous Khatri tribe of Punjab.
External links
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ख-57
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.33,sn-427.
- ↑ B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.240, s.n.117
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ख-26
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, p.298
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu/Gotra, p.6
- ↑ Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Porus and the Mauryas,p.167, s.n.12
- ↑ Ram Swarup Joon: History of the Jats/Chapter V,p. 90
- ↑ Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), p. 260
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.295-296
- ↑ Jat Varna Mimansa (1910) by Pandit Amichandra Sharma, p.30
- ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट यौद्धाओं का इतिहास, पृ. 707-708
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