Puru
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Puru (पुरु) is a Gotra of Jats.[1][2] They were rulers in Central Asia. [3] They fought Mahabharata War in Pandava's side
Villages after Puru
- पुरुचाईएसई (जाट गोत्र - पुरू) : पुरुचाईएसई नाम का गाँव झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले की तांतनगर विकास-खंड में है।
Jat History
Ram Swarup Joon[4] writes about Puru: Yayati's second son succeeded his father to the throne and his descendants ruled for thousand of years. Advancing from Haridwar, king Hasti founded Hastinapur as his capital and the Pandava rule was established over Indraprastha.
A large number of gotras originated after the name of the famous kings of this dynasty.
The earliest gotra adopted by the Puru dynasty was Atreya: An account of this dynasty has already been given in chapter II of this book.
According to the "Shiva Puran", Shiva's wife was insulted his in the Yagya by king Daksha. Shiva therefore sent his general named Vir Bhadra from the country named Shiv Jata and he cut off the head of Daksha.
A study of the genealogical tables of the Dholpur dynasty give us an account of one branch of Puru dynasty.
According to these genealogical tables, the descendents of Paunbhadra came to be known as Pauniya and settled down in Rajasthan, Haryana and Brij.
The descendants of Kalahan Bhadra came to be known as Kalhan and settled down in Southern Gujrat and Kathiawar.
The descendants of Atisur Bhadra came to be known
History of the Jats, End of Page-97
as Anjana or Anjilet and settled down in Malwa, Mewar, Marwar and Dhundhar.
The descendants of Jakhbhadra came to be known as Jakhar and settled down in Jammu and Kashmir, Sindh and Punjab.
The descendants of Brahmabhadra came to be known as Bhimarolaya and settled down in Jhelum and the descendants of Dahi Bhadra came to be known as Dahiya and settled down in the Punjab and other lands.
Puru of Mahabharata
Puru was son of Yayati and Sharmishtha. The mother of Anu and Puru, (whom the Jats claim as their progenitors), was Sarmishtha, the princess of King Vrshaparvan(Pargiter, F.E.,: AIHT, pp. 56-7.)[5]
Sons of Puru and Sharmishtha
Yayati had three sons from Sharmishtha – 1. Druhyu 2. Anu and 3. Puru.
Sons of Puru and Devyani
Yayati had two sons from Devayani – 1. Yadu and 2. Turvasu.
Story of Devayani and Sharmishtha
When Devyani came to know about the relationship of Yayati and Sharmishtha and their three sons she felt shocked and betrayed. Devyani went away to her father's house. Shukracharya was displeased with the king, and cursed that he would lose his youth and become an old man immediately. As soon as Shukracharya uttered his curse Yayati became an old man. Shukracharya also said that his curse once uttered could not be taken back and added that the only concession he could give was that if Yayati wanted he could give his old age to someone and take their youth from them. Yayati was relieved at the reprieve he was given and confident that his sons would willingly exchange their youth with him. Yayati went back to his kingdom. Yayati requested all his five sons one by one to give their youth to him to enjoy the worldly happiness. All the sons except Puru rejected his demand. So Yayati took the youth of Puru and enjoyed all the subjects. Puru became the successor King of Yayati.
Puru tribe
The Purus were a tribe, or a confederation of tribes, mentioned many times in the Rigveda, formed around 3180 B.C.E. RV 7.96.2 locates them at the banks of the Sarasvati River. There were several factions of Purus, one being the Bharatas. Purus rallied many other tribes against King Sudas of the Bharata, but were defeated in the Battle of the Ten Kings (RV 7.18, etc.,).
India's famous name Bharat or Bharat-Varsh is actually named after a descendant of the Puru dynasty King Bharat (2860 B.C.E.). There were two main Vedic cultures in ancient India. The first was a northern kingdom centered on the Sarasvati-Drishadvati river region dominated by the Purus and the Ikshvakus that produced the existent Veda texts that we have. The second was a southern culture along the coast of the Arabian Sea and into the Vindhya Mountains, dominated by the Turvashas and Yadus and extending into groups yet further south. These northern and southern groups vied for supremacy and influenced each other in various ways as the Vedas and Puranas indicate. The northern or Bharata culture ultimately prevailed, making India the land of Bharata or Bharatavarsha and its main ancient literary record the Vedas, though militarily the Yadus remained strong throughout history.[6]
Kuru was born after 25 generations of Puru's dynasty, and after 15 generations of Kuru, Kauravas and Pandavas were born. These were the same renowned Kaurav and Pandavs who fought the epic battle of Mahabharata. The dynasty of king Yadu - Andhak, Vrasni and Bhoj, under the leadership of Shree Krishna, helped the Pandavas win the battle. According to Puranic tradition, the war occurred 95 generations after Manu Vaivasvata.[7] The Puranas state that there are 1,050 years between Parikshit of the Kurus and the last Kuru king at the time of Mahapadma Nanda[8].
The King Porus of Alexander's time seem to reflect the old tribal name [9][10][11][12][13][14]. Kosambi mentioned that the Puru name perhaps survived in the modern Punjabi surname Puri [15], while Naval Viyogi (1966) mentions in his work on the IVC that the modern Punjabi surname Puri may possibly originate with the Puru tribe [16]. Buddha Prakash (1964) mentions that the Puru clan probably survived in Punjab under the name of Puri [17].
Jat Gotras originated from Puru
पुरुवंश की पचास पीढ़ियों का वर्णन
सृष्टी परमपिता ब्रम्हा से उत्पन्न हुई है इसलिए उनके बाद से पुरुवंश की पचास पीढ़ियों का वर्णन इस प्रकार है. आप दिए गए नंबरों से उनकी पीढ़ी का पता लगा सकते है.
- १. परमपिता ब्रम्हा से प्रजापति दक्ष हुए.
- २. दक्ष से अदिति हुए.
- ३. अदिति से बिस्ववान हुए.
- ४. बिस्ववान से मनु हुए जिनके नाम से हम लोग मानव कहलाते हैं.
- ५. मनु से इला हुए.
- ६. इला से पुरुरवा हुए जिन्होंने उर्वशी से विवाह किया और इन्द्र के पद पर भी आसीन हुए.
- ७. पुरुरवा से आयु हुए.
- ८. आयु से नहुष हुए.
- ९. नहुष के बड़े पुत्र यति थे जो सन्यासी हो गए इसलिए उनके दुसरे पुत्र ययाति राजा हुए. ययाति के पुत्रों से ही समस्त वंश चले. ययाति के पांच पुत्र थे. देवयानी से यदु और तर्वासु तथा शर्मिष्ठा से दृहू, अनु, एवं पुरु. यदु से यादवों का यदुकुल चला जिसमे आगे चलकर श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. तर्वासु से मलेछ, दृहू से भोज तथा पुरु से सबसे प्रतापी पुरुवंश चला. अनु का वंश ज्यादा नहीं चला.
- १०. पुरु के कौशल्या से जन्मेजय हुए.
- ११. जन्मेजय के अनंता से प्रचिंवान हुए.
- १२. प्रचिंवान के अश्म्की से संयाति हुए.
- १३. संयाति के वारंगी से अहंयाति हुए.
- १४. अहंयाति के भानुमती से सार्वभौम हुए.
- १५. सार्वभौम के सुनंदा से जयत्सेन हुए.
- १६. जयत्सेन के सुश्रवा से अवाचीन हुए.
- १७. अवाचीन के मर्यादा से अरिह हुए.
- १८. अरिह के खल्वंगी से महाभौम हुए.
- १९. महाभौम के शुयशा से अनुतनायी हुए.
- २०. अनुतनायी के कामा से अक्रोधन हुए.
- २१. अक्रोधन के कराम्भा से देवातिथि हुए.
- २२. देवातिथि के मर्यादा से अरिह हुए.
- २३. अरिह के सुदेवा से ऋक्ष हुए.
- २४. ऋक्ष के ज्वाला से मतिनार हुए.
- २५. मतिनार के सरस्वती से तंसु हुए.
- २६. तंसु के कालिंदी से इलिन हुए.
- २७. इलिन के राथान्तरी से दुष्यंत हुए.
- २८. दुष्यंत के शकुंतला से भरत हुए जिनके नाम पर हमारा देश भारतवर्ष कहलाता है.
- २९. भरत के सुनंदा से भमन्यु हुए.
- ३०. भमन्यु के विजय से सुहोत्र हुए.
- ३१. सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती हुए जिनके नाम पर पूरे प्रदेश का नाम हस्तिनापुर पड़ा.
- ३२. हस्ती के यशोधरा से विकुंठन हुए.
- ३३. विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़ हुए.
- ३४. अजमीढ़ से संवरण हुए.
- ३५. संवरण के तपती से कुरु हुए जिनके नाम से ये वंश कुरुवंश कहलाया.
- ३६. कुरु के शुभांगी से विदुरथ हुए.
- ३७. विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा हुए.
- ३८. अनाश्वा के अमृता से परीक्षित हुए.
- ३९. परीक्षित के सुयशा से भीमसेन हुए.
- ४०. भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा हुए.
- ४१. प्रतिश्रावा से प्रतीप हुए.
- ४२. प्रतीप के सुनंदा से शांतनु का जन्म हुआ.
- ४३. शांतनु कि गंगा से देवव्रत हुए जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए. भीष्म का वंश आगे नहीं बढा क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रम्हचारी रहने की प्रतिज्ञा कि थी. शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए. चित्रांगद की मृत्यु युवावस्था में ही हो गयी. विचित्रवीर्य कि दो रानियाँ थी, अम्बिका और अम्बालिका. विचिचित्रवीर्य भी संतान प्राप्ति के पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए, लेकिन महर्षि व्यास की कृपा से उनका वंश आगे चला.
- ४४. विचित्रवीर्य के महर्षि व्यास की कृपा से अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पांडू तथा अम्बिका की दासी से विदुर का जन्म हुआ.
- ४५. धृतराष्ट्र से दुर्योधन, दुःशासन, इत्यादि १०० पुत्र एवं दुशाला नमक पुत्री हुए. इनकी एक वैश्य कन्या से युयुत्सु नमक पुत्र भी हुआ जो दुर्योधन से छोटा और दुःशासन से बड़ा था. इतने पुत्रों के बाद भी इनका वंश आगे नहीं चला क्योंकि इनके समूल वंश का नाश महाभारत के युद्घ में हो गया. किन्दम ऋषि के श्राप के कारण पांडू संतान उत्पत्ति में असमर्थ थे. उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों को दुर्वासा ऋषि के मंत्र से संतान उत्पत्ति की आज्ञा दी. कुंती के धर्मराज से युधिष्ठिर, पवनदेव से भीम और इन्द्रदेव से अर्जुन हुए तथा माद्री के अश्वनीकुमारों से नकुल और सहदेव का जन्म हुआ. इन पांचो के जन्म में एक एक साल का अंतर था. जिस दिन भीम का जन्म हुआ उसी दिन दुर्योधन का भी जन्म हुआ.
- ४६. युधिष्ठिर के द्रौपदी से प्रतिविन्ध्य एवं देविका से यौधेय हुए. भीम के द्रौपदी से सुतसोम, जलन्धरा से सवर्ग तथा हिडिम्बा से घतोत्कच हुआ. घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हुआ. नकुल के द्रौपदी से शतानीक एवं करेनुमती से निरमित्र हुए. सह्देव के द्रौपदी से श्रुतकर्मा तथा विजया से सुहोत्र हुए. इन चारो भाइयों के वंश नहीं चले. अर्जुन के द्रौपदी से श्रुतकीर्ति, सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इलावान, तथा चित्रांगदा से बभ्रुवाहन हुए. इनमे से केवल अभिमन्यु का वंश आगे चला.
- ४७. अभिमन्यु के उत्तरा से परीक्षित हुए. इन्हें ऋषि के श्रापवश तक्षक ने काटा और ये मृत्यु को प्राप्त हुए.
- ४८. परीक्षित से जन्मेजय हुए. इन्होने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पयज्ञ करवाया जिसमे सर्पों के कई जातियां समाप्त हो गयी, लेकिन तक्षक जीवित बच गया.
- ४९. जन्मेजय से शतानीक तथा शंकुकर्ण हुए.
- ५०. शतानीक से अश्वामेघ्दत्त हुए.
ये संक्षेप में पुरुवंश का वर्णन है.
जाटों का शासन
दलीप सिंह अहलावत[18] ने लिखा है.... ययाति जम्बूद्वीप के सम्राट् थे। जम्बूद्वीप आज का एशिया समझो। यह मंगोलिया से सीरिया तक और साइबेरिया से भारतवर्ष शामिल करके था। इसके बीच के सब देश शामिल करके जम्बूद्वीप कहलाता था। कानपुर से तीन मील पर जाजपुर स्थान के किले का ध्वंसावशेष आज भी ‘ययाति के कोट’ नाम पर प्रसिद्ध है। राजस्थान में सांभर झील के पास एक ‘देवयानी’ नामक कुंवा है जिसमें शर्मिष्ठा ने वैरवश देवयानी को धकेल दिया था, जिसको ययाति ने बाहर निकाल लिया था[19]। इस प्रकार ययाति राज्य के चिह्न आज भी विद्यमान हैं।
महाराजा ययाति का पुत्र पुरु अपने पिता का सेवक व आज्ञाकारी था, इसी कारण ययाति ने पुरु को राज्य भार दिया। परन्तु शेष पुत्रों को भी राज्य से वंचित न रखा। वह बंटवारा इस प्रकार था -
1. यदु को दक्षिण का भाग (जिसमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरयाणा, राजस्थान, दिल्ली तथा इन प्रान्तों से लगा उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं कच्छ हैं)।
2. तुर्वसु को पश्चिम का भाग (जिसमें आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब,यमन, इथियोपिया, केन्या, सूडान, मिश्र, लिबिया, अल्जीरिया, तुर्की, यूनान हैं)।
3. द्रुहयु को दक्षिण पूर्व का भाग दिया।
4. अनु को उत्तर का भाग (इसमें उत्तरदिग्वाची[20] सभी देश हैं) दिया। आज के हिमालय पर्वत से लेकर उत्तर में चीन, मंगोलिया, रूस, साइबेरिया, उत्तरी ध्रुव आदि सभी इस में हैं।
5. पुरु को सम्राट् पद पर अभिषेक कर, बड़े भाइयों को उसके अधीन रखकर ययाति वन में चला गया[21]। यदु से यादव क्षत्रिय उत्पन्न हुए। तुर्वसु की सन्तान यवन कहलाई। द्रुहयु के पुत्र भोज नाम से प्रसिद्ध हुए। अनु से म्लेच्छ जातियां उत्पन्न हुईं। पुरु से पौरव वंश चला[22]।
जब हम जाटों की प्राचीन निवास भूमि का वर्णन पढते हैं तो कुभा (काबुल) और कृमि (कुर्रम) नदी उसकी पच्छिमी सीमायें, तिब्बत की पर्वतमाला पूर्वी सीमा, जगजार्टिस और अक्सस नदी
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-185
उत्तरी सीमा और नर्मदा नदी दक्षिणी सीमा बनाती है। वास्तव में यह देश उन आर्यों का है जो चन्द्रवंशी अथवा यदु, द्रुहयु, तुर्वसु, कुरु और पुरु कहलाते थे। भगवान् श्रीकृष्ण के सिद्धान्तों को इनमें से प्रायः सभी ने अपना लिया था। अतः समय अनुसार वे सब जाट कहलाने लग गये। इन सभी खानदानों की पुराणों ने स्पष्ट और अस्पष्ट निन्दा ही की है। या तो इन्होंने आरम्भ से ही ब्राह्मणों के बड़प्पन को स्वीकार नहीं किया था या बौद्ध-काल में ये प्रायः सभी बौद्ध हो गये थे। वाह्लीक,तक्षक, कुशान, शिव, मल्ल, क्षुद्रक (शुद्रक), नव आदि सभी खानदान जिनका महाभारत और बौद्धकाल में नाम आता है वे इन्हीं यदु, द्रुहयु, कुरु और पुरुओं के उत्तराधिकारी (शाखायें) हैं[23]।
सम्राट् ययातिपुत्र यदु और यादवों के वंशज जाटों का इस भूमि पर लगभग एक अरब चौरानवें करोड़ वर्ष से शासन है। यदु के वंशज कुछ समय तो यदु के नाम से प्रसिद्ध रहे थे, किन्तु भाषा में ‘य’ को ‘ज’ बोले जाने के कारण जदु-जद्दू-जट्टू-जाट कहलाये। कुछ लोगों ने अपने को ‘यायात’ (ययातेः पुत्राः यायाताः) कहना आरम्भ किया जो ‘जाजात’ दो समानाक्षरों का पास ही में सन्निवेश हो तो एक नष्ट हो जाता है। अतः जात और फिर जाट हुआ। तीसरी शताब्दी में इन यायातों का जापान पर अधिकार था (विश्वकोश नागरी प्र० खं० पृ० 467)। ये ययाति के वंशधर भारत में आदि क्षत्रिय हैं जो आज जाट कहे जाते हैं। भारतीय व्याकरण के अभाव में शुद्धाशुद्ध पर विचार न था। अतः यदोः को यदो ही उच्चारण सुनकर संस्कृत में स्त्रीलिंग के कारण उसे यहुदी कहना आरम्भ किया, जो फिर बदलकर लोकमानस में यहूदी हो गया। यहूदी जन्म से होता है, कर्म से नहीं। यह सिद्धान्त भी भारतीय धारा का है। ईसा स्वयं यहूदी था। वर्त्तमान ईसाई मत यहूदी धर्म का नवीन संस्करण मात्र है। बाइबिल अध्ययन से यह स्पष्ट है कि वह भारतीय संसकारों का अधूरा अनुवाद मात्र है।
अब यह सिद्ध हो गया कि जर्मनी, इंग्लैंण्ड, स्काटलैण्ड, नार्वे, स्वीडन, रूस, चेकोस्लोवाकिया आदि अर्थात् पूरा यूरोप और एशिया के मनुष्य ययाति के पौत्रों का परिवार है। जम्बूद्वीप, जो आज एशिया कहा जाता है, इसके शासक जाट थे[24]।
Reference
- Genealogy of Manu
- Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III (Page 192-193)
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I,s.n. प-55.
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.49, s.n. 1530
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV, p.342
- ↑ Ram Swarup Joon: History of the Jats/Chapter V,p. 97-98
- ↑ Hukum Singh Panwar: The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations, p.91, f.n.63
- ↑ The Rig Veda and the History of India (Rig Veda Bharata Itihasa) - David Frawley (Vamadeva Shastri), Aditya Prakashan, 2001, xxvii, 364 p, ISBN : 81-7742-039-9
- ↑ Time Table Of Yoga, By Georg Feuerstein, Ph.D.
- ↑ Gods, Sages and Kings: Vedic Secrets of Ancient Civilization, By David Frawley, pp 142
- ↑ On the other side of the Hydaspes (Jhelum) lay the Kingdom of Porus. The name appears to have been derived from the ancient Puru tribe, which at this time must have spread from Jhelum eastward beyond Chenab, probably up to the River Ravi ..., History of civilizations of Central Asia, By Janos Harmatta, pp 81
- ↑ ... same old family of Puru, to which the former Porus belonged whp had been defeated by Alexander some three centuries previously. - The History of India from the Earliest Ages, By James Talboys Wheeler, pp 206
- ↑ PORUS was of the race of the Puru or Paurava kings, to which in the time of Alexander two princely races belonged. - The cyclopedia of India and of eastern and southern Asia, By Edward Balfour, pp 268
- ↑ and we venture to believe that the Puru of the Veda was the ancestor of the gallant and high-spirited Porus, the one worthy antagonist of Alexander the Great. - Calcutta reviews, Vol 32-33, By University of Calcutta, pp 431
- ↑ The name Porus, which without hesitation, we reduce to the Indian Puru, alone seems to yield a ground of inference as to his having been a remnant of the royal house of Hastina-puri, or boasted family of Puru. - Oriental historical manuscripts in the Tamil language, Volume 1, By William Taylor, pp 244
- ↑ Porus of which the Arabic form Fur is used in the Shahnama is a dynastic or family name and represents the Pauravas who are mentioned in the Mahabharata as reigning in the neighbourhod of Kashmir. - The Shahnama of Firdausi, By Arthur George Warner, pp 31
- ↑ Kosambi 1966: 4
- ↑ Naval Viyogi; 1966
- ↑ Prakash 1964: 4
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, p.185-186
- ↑ महाभारत आदिपर्व 78वां अध्याय, श्लोक 1-24.
- ↑ ये वे देश हैं जो पाण्डव दिग्विजय में अर्जुन ने उत्तर दिशा के सभी देशों को जीत लिया था। इनका पूर्ण वर्णन महाभारत सभापर्व अध्याय 26-28 में देखो।
- ↑ जाट इतिहास पृ० 14-15 लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज ।
- ↑ हाभारत आदिपर्व 85वां अध्याय श्लोक 34-35, इन पांच भाइयों की सन्तान शुद्ध क्षत्रिय आर्य थी जिनसे अनेक जाट गोत्र प्रचलित हुए । (लेखक)
- ↑ जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड) पृ० 146-47 ले० ठा० देशराज।
- ↑ जाट इतिहास पृ० 14-18 लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज ।
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