Tangana

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(Redirected from Tungli)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Tangana (तंगण) are mentioned as people and a country in Mahabharata, who dwelt by the side of the river Sailoda flowing between the mountains of Meru and Mandara. Tangana republic was located in Bhot area east of Kullu-Kangra.[1] They fought Mahabharata War in Pandava's side

Origin

Variants

Jat clans

History

Sandhya Jain[2] mentions Tribes listed on Pandava Side: Tangana (तङ्गण)/Paratangana (परतङ्गण) - Famous pair of northern mountaineer tribes (III.141.24), who fought on both sides (VI.46.49; VII.197.36; etc.).

Jat History

Bhim Singh Dahiya[3] mentions that We know a people called Ganganoi connected with Tanganoi by St. Markni and followed by others.[4] Gangana never appears as a tribal name in any Indian source. On the other hand, Tangana or Tungana is the appellation of a fairly well-known people of ancient India." Tungli, conquered by the Kushana, may be "the Tanganoi (in place of Ganganoi) of Ptolemy [5]. Their capital was Shachi, identified with Saketa by F.W. Thomas. [6] J. Kennedy suggests that Tungli may denote Magadha.[7] This coincides the Tangals with the "Murunda" rulers of Patliputra prior to the Kushunas.[8] This discussion shows that Tanganoi of the Greek writers and Tungli of the Chinese, may be the country of Tangal clan of the Jats, conquered by the Kusuan (Kushana) clan.


Thakur Deshraj[9] writes that In the Rajakula Jats, Parihars are found in districts of Agra and Mathura. He considers Parihar Gotra in Jats to be based on title and rejects their foreign origin theory propagated by historians like D R Bhandarkar and V A Smith. During Mount Abu mahayagya of of creation of Agnikula Kshatriya some gotras who joined them became Rajput Parihars and those remained out of it were Jat Parihars and Gujar Parihars. Thakur Deshraj considers their origin in The Mahabharata Tribe called Paratangana (परतंगण), rulers near Manasarowar in Himalayas, as these were the people on gate way of India near China border. Their neighbours were Tangana (तंगण) people who are still found amongst Jats in Jaipur and Bharatpur districts in Rajasthan and in Firozabad, Uttar Pradesh in the form of Tangar (तंगड़) Jat clan.

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज[10] लिखते हैं.... परतंगण और तंगण - महाभारत में परतंगण और तंगण लोगों का वर्णन आता है। ये गणतन्त्री समुदाय हिमालय की गोद में मानसरोवर के निकट शासन करते थे जहां इनका जनपद (राज्य) है वह स्थान चीन और भारत का प्रवेश द्वार (फाटक) है। परतंगण का शाब्दिक अर्थ (परतम्...गण) परवर्ती वहिः गण अर्थात् सीमावर्ती गण होता है। इस भांति भारतीय राष्ट्र के ये प्रतिहार (द्वारपाल) सिद्ध होते हैं। इस शब्दार्थ वाली दलील को छोड़ भी दिया जये तो भी परतंगण से प्रतिहार और परिहार बनना भाषा-शास्त्र के अनुसार कठिन बात नहीं है - बिल्कुल सम्भव बात है। सी० बी० वैद्य ने भी इनका अस्तित्व भारत के उत्तर में बताया है। हर हालत में ये भारत के प्रवेशद्वार पर पाये जाते हैं। इनके पड़ौसी तंगण आजकल तांगर के रूए में भरतपुर राज्य में अपना अस्तित्व रखते हैं। जाट-स्टाक में ये समुदाय हजारों वर्ष पूर्व से है। कहा जाता है कि जाटों में अनगिनती गोत हैं। सौलह सौ से कुछ ऊपर गोत्रों की (गिनती) तो जाट-हितकारी के सम्पादक महोदय श्रीकन्हीसिंहजी ने की थी। इस बात से ही जाट कौम बहुत पुरानी साबित होती है और साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि पुराने प्रजातन्त्री अथवा अन्य तंत्री राजवंशों का निशान अगर कहीं जाटों के अलावा दूसरे स्थान पर पाया जाता है तो वह भी जाटों से ही वहां पहुंचा है।

तंगण

विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है ...तंगण देश (AS, p.384) का नाम यहाँ रहने वाली तंगण जाति के नाम हुआ था। तंगणों का उल्लेख महाभारत, भीष्मपर्व में हुआ है- 'मारुता येनुकाश्चैव तंगणा: परतंगणा: बाह्निकास्तित्तिराश्चैव चौला: पांड्याश्च भारत' महाभारत, भीष्मपर्व 50, 51

उपर्युक्त श्लोक में तंगण जाति के उल्लेख से ज्ञात होता है कि तंगण देश भारत के उत्तर-पश्चिम सीमा के परे स्थित रहा होगा। महाभारत, सभापर्व 52-53 में भी तंगण और परतंगण लोगों का उल्लेख है- 'पारदाश्च पुलिंदाश्य तंगणा: परतंगणा:।' उपर्युक्त श्लोक में तंगणों को मेरु और मंदार पर्वतों के बीच में बहने वाली शैलोदा नदी के प्रदेश में बताया गया है। शैलोदा वर्तमान खोतन नदी है। (p.385) तंगण देश के पार्श्व में परतंगण देश की स्थिति रही होगी। श्री वासुदेवशरण अग्रवाल के मत में कुल्लू-कांगड़ा के पूरब का भोट क्षेत्र ही तंगण जाति का इलाका था। (दे. कादंबिनी, अक्तूबर,1962)

खोतन नदी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[12] ने लेख किया है ...खोतन नदी (AS, p.259) मध्य एशिया की नदी है। इसके तटवर्ती क्षेत्र को 'खोतन प्रदेश' कहा गया है। खोतन नदी का महाभारत में शैलोदा नाम से वर्णन मिलता है। महाभारत, सभापर्व 52, 2 में शैलोदा तथा सभापर्व 52, 3 में इस नदी के तट पर स्थित खस, पुलिंद और तंगण आदि जातियों का उल्लेख है।

तङ्गण जाटवंश

अर्ह, पारद, तङ्गण-परतङ्गण - ये तीनों जाटवंश हैं। इनका वर्णन - मेरु और मन्दराचाल (मेरु के पूर्व में) पर्वतों के बीच में प्रवाहित होने वाली शैलौदा नदी के दोनों तटों पर छिद्रों में वायु के भर जाने से वेणु की तरह बजने वाले बांसों की रमणीय छाया में जो लोग बैठते थे और विश्राम करते थे, वे अर्ह, पारद, तङ्गण-परतङ्गण आदि नरेश, महाराजा युधिष्ठिर को भेंट देने के लिए पिपीलिकाओं (चींटियों) द्वारा निकाले हुए पिपीलिक नाम वाले स्वर्ण के ढेर के ढेर उठा लाये थे। (सभापर्व 52वां अध्याय, श्लोक 2-4)। इन लोगों का प्रजातन्त्र राज्य मरु तथा मन्दराचल के क्षेत्र में था। आजकल यह स्थान मंगोलिया में है। अर्जुन ने इन तङ्गण-परतङ्गण नरेशों को हराकर इनसे भेंट ली थी (सभापर्व)।[13]


परतंगण और तंगण - ठाकुर देशराज[14] ने लिखा है कि महाभारत में परतंगण और तंगण लोगों का वर्णन आता है। ये गणतन्त्री समुदाय हिमालय की गोद में मानसरोवर के निकट शासन करते थे जहां इनका जनपद (राज्य) है वह स्थान चीन और भारत का प्रवेश द्वार (फाटक) है। परतंगण का शाब्दिक अर्थ (परतम्...गण) परवर्ती वहिः गण अर्थात् सीमावर्ती गण होता है। इस भांति भारतीय राष्ट्र के ये प्रतिहार (द्वारपाल) सिद्ध होते हैं। इस शब्दार्थ वाली दलील को छोड़ भी दिया जये तो भी परतंगण से प्रतिहार और परिहार बनना भाषा-शास्त्र के अनुसार कठिन बात नहीं है - बिल्कुल सम्भव बात है। सी० बी० वैद्य ने भी इनका अस्तित्व भारत के उत्तर में बताया है। हर हालत में ये भारत के प्रवेशद्वार पर पाये जाते हैं। इनके पड़ौसी तंगण आजकल तांगर के रूए में भरतपुर राज्य में अपना अस्तित्व रखते हैं। जाट-स्टाक में ये समुदाय हजारों वर्ष पूर्व से है। कहा जाता है कि जाटों में अनगिनती गोत हैं। सौलह सौ से कुछ ऊपर गोत्रों की (गिनती) तो जाट-हितकारी के सम्पादक महोदय श्रीकन्हीसिंहजी ने की थी। इस बात से ही जाट कौम बहुत पुरानी साबित होती है और साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि पुराने प्रजातन्त्री अथवा अन्य तंत्री राजवंशों का निशान अगर कहीं जाटों के अलावा दूसरे स्थान पर पाया जाता है तो वह भी जाटों से ही वहां पहुंचा है।

In Mahabharata

Tangana (तङ्गण) in Mahabharata (II.48.3), (III.48.21),(VI.10.63),(VI.46.49),(VIII.51.18),


Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 48 describes Kings who presented tributes to Yudhishthira. Tangana (तङ्गण) mentioned in Mahabharata (II.48.3).[15]....They that dwell by the side of the river Sailoda flowing between the mountains of Meru and Mandara and enjoy the delicious shade of tops of the Kichaka Venu (bamboo) viz., the Khashas, Ekasanas, the Arhas, the Pradaras, the Dirghavenus, the Pashupashas, the Kunindas, the Tanganas, and the Paratanganas, brought as tribute heaps of gold....


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 48 describes Rajasuya sacrifice of Yudhisthira attended by the chiefs of many islands and countries. Tangana (तङ्गण) are mentioned in Mahabharata (III.48.21). [16]....I saw all kings, even those of the Vangas and Angas and Paundras and Odras and Cholas and Dravidas and Andhakas, and the chiefs of many islands and countries on the sea-board as also of frontier states, including the rulers of the Sinhalas, the barbaras, the Mlecchas, the natives of Lanka, and all the kings of the West by hundreds, and all the chiefs of the sea-coast, and the kings of the Pahlavas and the Daradas and the various tribes of the Kiratas and Yavanas and Sakras and the Harahunas and Chinas and Tukharas and the Saindhavas and the Jagudas and the Ramathas and the Mundas and the inhabitants of the kingdom of women and the Tanganas and the Kekayas and the Malavas and the inhabitants of Kasmira, afraid of the prowess of your weapons, present in obedience to your invitation, performing various offices


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 10 describes geography and provinces of Bharatavarsha. Tangana (तङ्गण) province is listed in the other kingdoms in Mahabharata (VI.10.63). [17]....the Rishikas, the Vidarbhas, the Kantikas, the Tanganas, and the Paratanganas.....


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 46 mentions that Krishna, Yudhisthira and his brothers look for arrangements of the war. Tangana (तङ्गण) is mentioned in Mahabharata (VI.46.49).[18]....And king Drupada, surrounded by a large number of troops, became the head (of that array). And the two kings Kuntibhoja and Saivya became its two eyes. And the ruler of the Dasharnas, and the Prayagas, with the Dasherakas, and the Anupakas, and the Kiratas were placed in its neck, O bull of Bharata's race. And Yudhishthira, O king, with the Patachcharas, the Hunas, the Pauravakas and the Nishadas, became its two wings, so also the Pisachas, with the Kundivishas, and the Mandakas, Madaka, Kadaka and Tanganas other Tanganas, Balhikas, Tittiras, and Cholas Pandya.


Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 51 describes terrible massacre and warriors who were killed on seventeenth day of War: [[Tanganas (तङ्गण) are mentioned in Mahabharata (VIII.51.18). [19].....Of terrible deeds and exceedingly fierce, the Tukharas, the Yavanas, the Khasas, the Darvabhisaras, the Daradas, the Shakas, the Ramathas, the Tanganas....


Tanganas have been mentioned in Mahabharata in Kurukshetra War Day-2 fighting for Pandavas.

External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.384-385
  2. Sandhya Jain: Adi Deo Arya Devata - A Panoramic View of Tribal-Hindu Cultural Interface, Rupa & Co, 7/16, Ansari Road Daryaganj, New Delhi, 2004 , p.117, s.n.12
  3. Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), p. 342
  4. op. cit., p. 75
  5. ibid. p. 147.
  6. New· IA, Vol. VII, p. 90-92.
  7. JRAS, 1912, p. 679.
  8. B. N. Puri, op. cit., p. 51.
  9. Jat History Thakur Deshraj/Chapter V, p.145-46
  10. Jat History Thakur Deshraj/Chapter V, p. 146
  11. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.384-385
  12. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.259
  13. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, Page 291
  14. Jat History Thakur Deshraj/Chapter V,p.145
  15. खशा एकाशनाज्यॊहाः प्रदरा दीर्घवेनवः । पशुपाश च कुणिन्दाश च तङ्गणाः परतङ्गणाः (II.48.3)
  16. हारहूणांश च चीनांश च तुखारान सैन्धवांस तदा । जागुडान रमठान मुण्डान सत्री राज्यान अद तङ्गणान (III.48.21)
  17. हृषीविदर्भाः कान्तीकास तङ्गणाः परतङ्गणाः । उत्तराश चापरे मलेच्छा जना भरतसत्तम (VI.10.63)
  18. पिशाचा दरदाश चैव पुण्ड्राः कुण्डी विषैः सह । मडका कडकाश चैव तङ्गणाः परपङ्गणाः (VI.46.49)
  19. उग्राश च करूरकर्माणस तुखारा यवनाः खशाः । दार्वाभिसारा दरदा: शका रमठ तङ्गणाः (VIII.51.18)