Mohil
Mohil (मोहिल)[1][2] Mohal (मोहल) Mauhal (मौहाल)[3] [4] Mohalia (मोहलिया), Dhanda(ढांडा) is a Jat clan found in Rajasthan, Uttar Pradesh and Muslim Jat clan found in Pakistan. Mohil are from Chauhan branch. Mohil is one of 36 Royal races of Rajasthan. Mail or Mohil clan found in Afghanistan.[5] James Tod places it in the list of Thirty Six Royal Races.[6]
History
According to James Todd[7] We have no mode of judging of the pretensions of this race Mohil to the place it is allowed to occupy by the genealogists. All that can be learned of its past history is, that it inhabited a considerable tract so late as the foundation of the present State of Bikaner, the Rathor founders of which expelled, if not extirpated, the Mohil. With the Malan, Malani, and Mallia, also extinct, it may [119] claim the honour of descent from the ancient Malloi, the foes of Alexander, whose abode was Multan. ( Qu. Mohilthan ? ) They are a mixed race, early settlers in Alwar. [8]
Mohils (Chauhans) were rulers in Jangladesh prior to Rathores.
Mohils of Chhapar (Dronapur) - Chauhan Dhandha son was Indra whose descendant Mohil started this branch. This area earlier was occupied by Bagadiyas who obtained from the descendants of Shishupala in V. 631 (574 AD). It is said that Kauravas had granted this kingdom to Dronacharya and hence the name Dronapura. (K.Devi Singh Mandawa, Prithviraja, p.132)
Ladnu was founded by Dahaliyas. Bagadiyas won this area from Sajjan's son Mohil in v.s. 1130 (1073 AD). Mohil had acquired the title of Rana and made Chhapar as his capital. There were 1400 villages under him.
Mohal are mentioned as a branch of Jadubansi Abhiras mostly found in the Ahirwati and Hariana.[9]
Charlu Inscriptions of Prithviraja III[10]
Inscription 1
(1 horseman, 1 sati)
- 1. ओम् स्वस्ति | मा....
- 2. .....
- 3. .....
- 4. द्रित....र: पातु व: || सवंत् || 1200 पौ[ष] वदि...
- 5. (चा)हमानान्वय-विष्णुदत्त-सुत-देवसरा (?) दे ...
- 6. वलोके गत: || सं. 1234 फाल्गुन वदि 2 सोमवा[रे]
- 7. पौत्र-आहडेन करापितमास्ते शिवमस्तु ||
Inscription 2
(1 horseman, 1 man under the horse)
- 1. [ओम्] स्वस्ति संवत 1241 मा-
- 2. ग्रसि[र] सुदि 12 शुक्रवारे मोहिल
- 3. आहडपुत्र अम्बरक श्रीनागपु-
- 4. रे संग्रामे दे[वलो]के गत: ||
Inscription 3
(1 horseman, 1 man under the horse)
- 1. ओम् सम्वत् 1241 माग्रसिर
- 2. सुदि 12 [शुक्र]वारे मोहि-
- 3. ल श्री [आह?] सुत आहड श्री-
- 4. नागपुर संग्रामे देवलोके
- 5. गत:
Inscription 4
(1 horseman, 3 sati)
- 1. ओम् सम्वत् 1244 वदि... 15 शुके्
- 2. श्री ....दु[र्यो]ध....
- 3. .......
- 4. .......
Reference - Dasharatha Sharma, Early Chauhan Dynasties", pp. 106-107.
Jeenmata Inscription of Mohils v.s. 1162 (1105 AD)
We have found an Inscription of Mohil's son Hardatt (Hathad) of v.s. 1162 (1105 AD) from Jeenmata in Sikar district. This inscriptions tells that Hathad (हठड़) (Hardatt) constructed Jeenmata temple during reign of Prithviraj-I.
We have got many inscriptions of Mohils of the period v.s. 1186 (1129 AD) - v.s. 1188 (1131 AD). The Rana successors of Hardatt were:
- Hardatt → Bar Singh → Bālhar → Āsal → Āhaḍ → Ambaraka (1184 AD)→ Raṇasī → Sohaṇ Pal.
Ahad's son Ambaraka was killed on Mangsir Sudi 12 v. 1241 (16 November 1184 AD) in Nagaur war with Solankis during the period of Prithviraja III. After Ahad Ranasi and Sohanapala became Ranas whose monumental Devalis are at Chhapar. Raṇasī, and Sohaṇ Pal were contemporary of Prithviraj III. One of the samanta of Prithviras was Varasirai Mohil. (K.Devi Singh Mandawa, Prithviraja, p.132)
Mohils of Janglu - Janglu area was ruled by Mohil Chauhans, who were samants of Chauhan Samrat. Rana Lakha was contemporary of Prithviraj III. There were many jagirs of Mohils in Bagad area. These chieftains had to face wars in Nagaur in which many were killed.
Ganedi Inscription of Mohils v.s. 1239 (1183 AD)
As per an inscription of 25 April 1183 (Baisakh sudi 2, v.s. 1239) in village Ganedi district Sikar Rajasthan, Mohil Jhala and his son Lakhan were killed in this war. (Devi Singh Mandawa,p.132)
Mohils of Ladnu - Mohils of Ladnu were samantas of Chauhans. Chhapar and Ladnu were initially in the same state. (Devi Singh Mandawa,p.133)
मोहिल-महला-माहिल जाटवंश का इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[11] लिखते हैं:
मोहिल-महला-माहिल - यह चन्द्रवंशी जाटवंश है जिसका प्राचीनकाल से शासन रहा है। रामायणकाल में इनका जनपद पाया जाता है। महाभारत भीष्मपर्व 9-48 के अनुसार माही और नर्मदा नदियों के बीच इनका जनपद था। यह जनपद गुजरात एवं मालवा की प्राचीन भूमि पर था। पं० भगवद्दत्त बी०ए० ने अपने ‘भारतवर्ष का इतिहास’ में इनके इस जनपद को इन्हीं दोनों नदियों के बीच का क्षेत्र लिखा है। टॉड और स्मिथ ने इस जनपद को सुजानगढ़ बीकानेर की प्राचीन भूमि पर अवस्थित लिखा है। जैमिनीय ब्राह्मण 1-151, बृहद्दवेता 5-62, ऋक्सर्वानुक्रमणी 5-61 के अनुसार अर्चनाना, तरन्त पुरुमीढ़ नामक तीन मन्त्रद्रष्टा-तत्त्वज्ञ कर्मकाण्डी माहेय ऋषियों का वर्णन मिलता है।
मोहिल जाटवंश ने बीकानेर राज्य स्थापना से पूर्व छापर में जो बीकानेर से 70 मील पूर्व में है और सुजानगढ़ के उत्तर में द्रोणपुर में अपनी राजधानियां स्थापित कीं। इनकी ‘राणा’ पदवी थी। छापर नामक झील भी मोहिलों के राज्य में थी जहां काफी नमक बनता है। कर्नल जेम्स टॉड ने अपने इतिहास के पृ० 1126 खण्ड 2 में लिखा है कि “मोहिल वंश का 140 गांवों1 पर शासन था।
- 1. 140 गांवों के जिले (परगने) - छापर (मोहिलों की राजधानी), हीरासर, गोपालपुर, चारवास, सोंदा, बीदासर. लाडनू, मलसीसर, खरबूजाराकोट आदि। जोधा जी के पुत्र बीदा (बीका का भाई) ने मोहिलों पर आक्रमण किया और उनके राज्य को जीत लिया। मोहिल लोग बहुत प्राचीनकाल से अपने राज्य में रहा करते थे। पृ० 1123.
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-250
मोहिलों के अधीश्वर की यह भूमि माहिलवाटी कहलाती थी।” जोधपुर के इतिहास के अनुसार राव जोधा जी राठौर ने माहिलवाटी पर आक्रमण कर दिया। राणा अजीत माहिल और राणा बछुराज माहिल और उनके 145 साथी इस युद्ध में मारे गये। राव जोधा जी राठौर की विजय हुई। उसी समय मोहिल फतेहपुर, झुंझुनू, भटनेर और मेवाड़ की ओर चले गये। नरवद माहिल ने दिल्ली के बादशाह बहलोल लोधी (1451-89) से मदद मांगी। उधर जोधा जी के भाई कांधल के पुत्र बाघा के समर्थन का आश्वासन प्राप्त होने पर दिल्ली के बादशाह ने हिसार के सूबेदार सारंगखां को आदेश दिया कि वह माहिलों की मदद में द्रोणपुर पर आक्रमण कर दे। जोधपुर इतिहास के अनुसार कांधलपुत्र बाघा सभी गुप्त भेद जोधा जी को भेजता रहा। युद्ध होने पर 555 पठानों सहित सारंगखां परास्त हुआ और जोधा जी विजयी बने। कर्नल टॉड के अनुसार जोधा के पुत्र बीदा ने मोहिलवाटी पर विजय प्राप्त की। राव बीदा के पुत्र तेजसिंह ने इस विजय की स्मृतिस्वरूप बीदासर नामक नवीन राठौर राजधानी स्थापित की। तदन्तर यह ‘मोहिलवाटी’ ‘बीदावाटी’ के नाम से प्रसिद्ध की गई। इस प्रदेश पर बीदावत राजपूतों का पूर्ण अधिकार हो गया। राजपूतों ने इस प्राचीनकालीन मोहिलवंश को अल्पकालीन चौहानवंश की शाखा लिखने का प्रयत्न किया।[12] किन्तु इस वंश के जाट इस पराजय से बीकानेर को ही छोड़ गये। कुछ राजपूत भी बन गये। माहिलों की उरियल (वर्तमान उरई-जालौन) नामक रियासत बुन्देलखण्ड में थी। आल्हा काव्य के चरितनायक आल्हा, उदल, मलखान की विजयगाथाओं से महलाभूपत के कारनामे उल्लेखनीय हैं। बिल्कुल झूठ को सत्य में और सत्य को असत्य में परिणत करने की कला में ये परम प्रवीण थे। (जाट इतिहास उत्पत्ति और गौरव खण्ड पृ० 105 पर लेखक ठा० देशराज ने मलखान को वत्स गोत्र का जाट लिखा है)।
इस माहिल वंश के जाट राणा वैरसल के वंशज मेवाड़ में बस गये तथा शेष माहिल लोग पंजाब, हरयाणा, बृज, रुहेलखण्ड के विभिन्न जिलों में आबाद हो गये।
1941 ई० की मतगणना के अनुसार ये लोग फिरोजपुर में 1045, अमृतसर में 2555, जालंधर में 1575, जींद में 4175, पटियाला में 795 सिख जाट माहिल थे।
शेखावाटी में पईवा, मेरठ में रसूलपुर, दबथला, बड़ला, मथुरा में छाता, बुलन्दशहर में चिट्ठा, हिसार में डाबड़ा, मिलकपुर, सौराया, खेड़ी, लाधड़ी, अलीगढ़ में भोजपुर, जहांगीराबाद गांव माहिल जाटों के हैं।
भाषाभेद से इस वंश को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे पंजाब में माहे-माहि-माहिय और बृज से मध्यप्रदेश तक महला-मोहले तथा हरयाणा, यू० पी० में माहिल मोहिल कहा जाता है।
माहिल वंश की शाखा 1. गोधारा (गोदारा) 2. महनार्या।
1. जाटों का उत्कर्ष, 337-338 लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री; जाट इतिहास उर्दू पृ० 378-380, लेखक ठा० संसारसिंह।
नोट - बहलोल लोधी का शासन सन् 1451-1489 ई० तक् रहा। बीका ने बीकानेर नामक अपनी राजधानी की नींव सन् 1489 ई० में डाली।
भीमसिंह द्वितीय चौहान साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर हमला
पृथ्वीराज चौहान जब जेजूभुक्ति में चंदेलों से युद्ध में व्यस्त थे तब भीमसिंह द्वितीय ने चौहान साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर अपने प्रधान जगदेव प्रतिहार को हमला करने भेजा. इस हमले में अनेक चौहान सामंत वीरगति को प्राप्त हुए. इसके अनेक शिलालेख मिले हैं. वि.संवत १२३९ बैसाख सुदी दो, अप्रेल २५, ११८३ ई. के झोलार के लेख से उपरोक्त प्रदेशों पर भीम सोलंकी का अधिकार हो जाना सिद्ध होता है. इसीप्रकार ११८३ ई. के चुरू (सीकर जिले में है ) जिले के गनेरी मोहलों के युद्ध में काम आ जाने के लेखापाल के वि. वैसाख सुदी ११ (३ मई, ११८३) के वीर की मृत्यु का शिलालेख भी यह सिद्ध करता है कि पृथ्वीराज के सामंतों ने कोई कसर नहीं छोडी थी.
वि.संवत १२४१ में चौहान व सोलंकी सेनाओं के बीच कई युद्ध हुए तथा अनेक वीरों ने वीर गति को प्राप्त किया. यह जानकारी सरदारशहर खींचून्द आदि स्थानों से वि. १२४१ में पाए शिलालेख व स्मारकों से मिलती है. माघ सुदी १२ वि. १२४१ को नागौर में दोनों और की सेनाओं के मद्य भीषण युद्ध हुआ जिसमें पंज्जुवन राय के बड़े पुत्र मलेसी ने जबरदस्त वीरता दिखाई. इस संघर्ष में दो मोहिल वीर आहड़ और उसका पुत्र अम्बरक चौहानों की और से युद्ध करते वीर गति को प्राप्त हुए. यह उनके चरणों के स्मारक लेखों से ज्ञात होता है.
अंत में पूर्णतः पराजित हो जाने पर सोलंकियों के प्रधान जगदेव प्रतिहार ने बड़े प्रयासों से पृथ्वीराज चौहान को संधि करने को तैयार किया.
१२४४ के वेरवल के जगदेव प्रतिहार के लेख में भी इससे पूर्व अनेक बार सोलंकियों का पृथ्वीराज से पराजित होना सिद्ध होता है.
इतिहास
कर्नल जेम्स टोड ने लेख किया है कि इनके अलावा तीन और विभाग थे - बागौर, खारी पट्टी और मोहिल। इन पर भी राठौड़ों का प्रभुत्व कायम हो गया था। राजपूत शाखाओं से छिने गए तीन विभाग राज्य के दक्षिण और पश्चिम में थे जिनका विवरण नीचे दिया गया है. [13]
अनुक्रमांक | नाम जनपद | नाम मुखिया | गाँवों की संख्या | राजधानी | अधिकार में प्रमुख कस्बे |
---|---|---|---|---|---|
7. | बागौर | 300 | बीकानेर, नाल, किला, राजासर, सतासर, छतरगढ़, रणधीसर, बीठनोक, भवानीपुर, जयमलसर इत्यादि। | ||
8. | मोहिल | 140 | छापर | छापर, सांडण, हीरासर, गोपालपुर, चारवास, बीदासर, लाडनूँ, मलसीसर, खरबूजा कोट आदि | |
9. | खारी पट्टी | 30 | नमक का जिला |
Charlu Inscriptions of Prithviraja III
Inscription 1
(1 horseman, 1 sati)
- 1. ओम् स्वस्ति | मा....
- 2. .....
- 3. .....
- 4. द्रित....र: पातु व: || सवंत् || 1200 पौ[ष] वदि...
- 5. (चा)हमानान्वय-विष्णुदत्त-सुत-देवसरा (?) दे ...
- 6. वलोके गत: || सं. 1234 फाल्गुन वदि 2 सोमवा[रे]
- 7. पौत्र-आहडेन करापितमास्ते शिवमस्तु ||
Inscription 2
(1 horseman, 1 man under the horse)
- 1. [ओम्] स्वस्ति संवत 1241 मा-
- 2. ग्रसि[र] सुदि 12 शुक्रवारे मोहिल
- 3. आहडपुत्र अम्बरक श्रीनागपु-
- 4. रे संग्रामे दे[वलो]के गत: ||
Inscription 3
(1 horseman, 1 man under the horse)
- 1. ओम् सम्वत् 1241 माग्रसिर
- 2. सुदि 12 [शुक्र]वारे मोहि-
- 3. ल श्री [आह?] सुत आहड श्री-
- 4. नागपुर संग्रामे देवलोके
- 5. गत:
Reference - Dasharatha Sharma, Early Chauhan Dynasties", pp. 106-107.
Distribution in Haryana
Villages in Hisar District
Distribution in Rajastan
Villages in Sikar District
Pewa,
Villages in Churu District
Mohalia live in villages: Chhapar Churu (9),
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Aligarh District
Mohal Jats live in : Sadak Ka Nagla,
Distribution in Pakistan
Found in Districts: Hafizabad, Jhang
Notable persons
- Raja Ajit was a Mohil clan ruler of Jodhpur (Rajasthan) prior to Rajputs.
- Raja Bachhraj was a Mohil clan ruler of Jodhpur (Rajasthan) prior to Rajputs.
- Rana Vairsal (राणा वैरसल) was a Mohil clan ruler of Jodhpur (Rajasthan) prior to Rajputs.
See also
Gallery
-
Sardar Ishri Singh Mohil (pic of circa 1868) Estate of Layallpur, Punjab (present Pakistan). He was born into Hindu Mohil Jat family. Sardae Ishri Singh father Name Sardar Dhanna Singh of Layallpur. Estate:- Dabra Hisar, Dynasty:- Mohil, Source - Jat Kshatriya Culture
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. म-58
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.56,s.n. 2033
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. म-87
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.56,s.n. 2074
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan, H. W. Bellew, p.28
- ↑ James Todd, Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume I,: Chapter 7 Catalogue of the Thirty Six Royal Races, pp.142
- ↑ James Todd, Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume I,: Chapter 7 Catalogue of the Thirty Six Royal Races,pp.142
- ↑ Crooke, Tribes and Castes N.W.P. and Oudh, iv. 86 ff.)".
- ↑ A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/A,p.5
- ↑ Early Chauhan Dynasties (From 800 to 1316) by Dasharatha Sharma, p. 85
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-250,251
- ↑ जाटों का उत्कर्ष, 337-338 लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री; जाट इतिहास उर्दू पृ० 378-380, लेखक ठा० संसारसिंह।
- ↑ कर्नल जेम्स टोड कृत राजस्थान का इतिहास, अनुवाद कालूराम शर्मा,श्याम प्रकाशन, जयपुर, 2013, पृ.402-403
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