Jat Jan Sewak/Jaipur
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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580
संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर
जयपुर
[पृ.482]: पहला नाम अमिट है जो कछवाहों के आने से पूर्व मीणों के कब्जे में था। जयपुर शहर में जाटों की आबादी 300-400 परिवार से ज्यादा नहीं है। डिग्गी, मालपुरा और फुलेरा तहसील में जाट काफी रहते हैं। शेखावाटी तो जाटों का घर है। जयपुर में जाट कुल आबादी का 20 फ़ीसदी है।
सरकारी नौकरियों में जाट ऊंचे ओहदों पर ढूंढने से ही मिलते हैं। पलटन जाटों की जरूर बना रखी है। जब बीचम राज्य के वाइस प्रेसिडेंट थे तब जाटों का एक डेपुटेशन रायबहादुर चौधरी सर छोटूराम के नेतृत्व में उनसे मिला था। इसके बाद सन 1946 में 11, 12, 13 मई को एक बृहद अधिवेशन जयपुर में जाट महासभा का किया गया जिसके प्रेसिडेंट माननीय सरदार बलदेव सिंह जी थे और उद्घाटन की रस्म सर मिर्जा इस्माइल महोदय ने की थी।
बाबू सूरजभान जी डूडी एक जाट बोर्डिंग हाउस कायम करने की योजना में है।
जयपुर का राजवंश
जयपुर का राजवंश कछवाहा है। संवत 1023 विक्रमी (966 ई.) में दूल्हेराम जी ने दौसा के बड़गुजरों के यहां आश्रय लिया और फिर उन्हें विनष्ट करके आप दौसा के मालिक बने। इसके बाद उनके वंशज आमेर की ओर बढ़े। मीनों से आमेर को लेने के बाद यही उन्होंने अपनी राजधानी कायम की। वर्तमान जयपुर आमेर के कछवाहा राजा मिर्जा जयसिंह का बनाया
[पृ.483] हुआ है जो बादशाह अकबर के एक प्रतिष्ठित दरबारी थे।
जयपुर राज्य में लगभग पौने 6 हजार गांव हैं जो 11 निजामतों द्वारा शासित होते हैं। हिंडोन, मालपुरा, सांभर, कोटकासिम, शेखावाटी और तोरावाटी की निजामत में जाट मधुमक्खियों की भांति आबाद है।
जयपुर के जाट जन सेवकों की सूची
जयपुर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)
- बाबू भैरोसिंह जी जयपुर (भादू), तिलोनिया, अजमेर....p.483-484
- बाबू रतनलाल जी (डूडी), जयपुर....p.484-485
- चौधरी छोटूराम जयपुर (कूलावत), जयपुर....p.485-486
- चौधरी लादूराम जयपुर (गरेड़), गरेडों की ढाणी, जयपुर....p.486
- चौधरी रामरिखसिंह जी (बेनीवाल), चुली बागड़ियान , हिसार....p.486-488
- चौधरी लादूराम जयपुर (-----), -----, जयपुर....p.488-489
- स्वामी परमदास जी (-----), मंढ़ा, सीकर....p.489-490
जयपुर के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी
1. बाबू भैरोसिंहजी जयपुर - [पृ.483]: अजमेर मेरवाडा में तिलौनिया एक चहल-पहल का गांव है। यहीं के भादू गोत्र के जाट सरदार बाबू लालाराम जी अत्यंत प्रसिद्ध पुरुष हुये हैं। उनके ही 3 पुत्रों में से बाबू भैरोसिंह जी सबसे छोटे थे। जयपुर का साही ढंग का न्यू होटल जयपुर में लालाराम जी के होटल के नाम से मशहूर हैं। जिन लोगों ने बाबू मूलसिंह जी का पहनावा और रहन-सहन तथा खाने पिने का ढंग देखा है वे कह सकते हैं कि यह घराना आधुनिक सभ्यता रहने-सहने में जाटों में पहला स्थान रखता है। खेद है कि अब बाबू मूलसिंह जी भी हमारे बीच में नहीं है। गत वर्ष ह्रदय की गति रुक जाने से मुंबई में उनका स्वर्गवास हो गया। उनकी एकमात्र प्रिय पुत्री देवी चिरंजीबाई से तमाम जाट जगत परिचित है। वह कौम की एक महिला रत्न है।
बाबू भैरोंसिंह जी आजादी पसंद व्यक्ति थे। इसलिए वे अपनी जवानी के दिनों में जयपुर से उदयपुर चले गए और वहां उन्होंने राज होटल का ठेका ले लिया। महाराणा उदयपुर के बड़े-बड़े अतिथि इस होटल में उतरते थे। तत्कालीन वायसराय जब उदयपुर आए और उसी होटल में ठहरे तो आपने ही उनके खाने-पीने का प्रबंध किया। वायसराय ने खुश होकर आप को उपहार स्वरूप स्वर्ण लेखनी भेंट की। महाराणा भूपालसिंह जी
[पृ.484]: उदयपुर नरेश आप से खूब प्रेम करते थे। जब आप वापस जयपुर आने लगे तो महाराणा साहब ने बहुत रोका किंतु वे नहीं रुके।
सन् 1932 से आप जाट सभा की हलचलों में भाग लेने लगे। आपके बड़े भाई बाबू मूलसिंह जी तो आरंभ से ही जाट सभा के रथियों में रहे थे और कई वर्ष तक वे जाट महासभा के खजांची भी रहे थे।
झुञ्झुणु महोत्सव के बाद बाबू भारोंसिंह जी ने राजस्थान जाट सभा में सक्रिय भाग लेना आरंभ कर दिया। वे सभा के 2-4 मीटिंगो में भी शामिल हुए थे।
किन्तु खेद है की उनका असमय स्वर्गवास हो गया। उन्होंने तीन पुत्र छोड़े जिनमें बड़े अमरसिंह जी हैं।
2. बाबू रतनलाल जी - [पृ.484]: शहर जयपुर में बाबू मूलसिंह जी के घराने के बाद शिक्षित और संपन्न घराना बाबू रतनलाल जी का है। आपके पिता का नाम चौधरी रामचंद्र सिंह जी है। आप डूडी गोत्र के जाट सरदार हैं। आपके चार भाई और हैं।
- 1. चौधरी भूरामलजी जो एक्सईएन ऑफिस आबू में हेड क्लर्क पद पर काम करते रहे हैं।
- 2. चौधरी सूरजभान सिंह जी महकमा जंगलात में रेंजर के पद पर काम कर चुके हैं। आपने जयपुर में एक जाट छात्रावास की स्थापना भी की है और जयपुर में होने वाले जाट महासभा के वार्षिक अधिवेशन को सफल बनाने में आप का प्रमुख हाथ था।
- 3. चौधरी चंद्रभान सिंह जी कोर्ट ऑफ वार्डस में सुपरिटेंडेंट है। आप शिकार के काम में बहुत होशियार हैं। वैसे आपने ओवरसियरी भी पास की है।
- 4. चौधरी नेत्रभान सिंह जी फारेस्ट में डिप्टी रेंजर है।
बाबू रतनलाल जी के स्वर्गीय पिताजी एक योग्य आदमी थे और रेलवे में s p w i थे आप इस समय बी बी एंड सी आई रेलवे में पी डब्लू आई है।
आप सभी भाई शांत तरीकों से जाट जाति की उन्नति के इच्छुक हैं और उसके लिए प्रयत्नशील भी हैं। आप लोगों ने जयपुर राज्य में खासतौर से शेखावटी में फैले हुए भ्रामक जाट-राजपूत संघर्ष को मिटाने की भरपूर कोशिश की है। स्वर्गीय ठाकुर भैरों सिंह जी जनरल जयपुर के साथ मिलकर जाट-राजपूत एकता कमेटी का भी संगठन आप ने कराया था।
बाबू रतनलाल जी के परिवार में एक विशेषता है भाईचारे में प्रेम की। वह अपने भाइयों पर अनुशासन रखते हुए भी उन्हें सेवाकार्यों से रोकते नहीं। यही कारण है कि बाबू सूरजभान सिंह जी सर्विस के अलावा जो समय उन्हें मिलता है उसे सेवा कार्य में लगाते हैं।
3. चौधरी छोटूराम जयपुर - [पृ.485]: पिता का नाम गोपाल जी, गोत्र कूलावत, गांव गंगाती, तहसील फुलेरा, राज्य जयपुर
आपके पिता से छोटे बन्नजी पटेल थे। उन्होंने खातियों के संघर्ष में जाट कोम का सर ऊंचा करने के लिए बड़ा काम किया। उनके साथियों में गंगाराम जी बागेत निवासी, हरदेवजी निठारवाल शिवसिंहपुरा, रामकरणजी जाजुंदा किशनपुरा और रामू पटेल कुरडियारा आदि थे।
आपके पाँच पुत्र हैं: 1 रामकरण, 2 सूरजमल, 3 शिवकरन, 4 रामचंद्र, 5 अर्जुन। आप अपने इलाके में मशहूर आदमी हैं। खूब लेन-देन करते हैं। पुष्कर जाट कमेटी के
[पृ.486]: बन्नजी प्रधान थे और उस मंदिर को बनवाने में आप लोगों ने बड़ी मदद की। जयपुर के जाट महोत्सव में दिलचस्पी ली।
4. चौधरी लादूराम जयपुर - [पृ. 486]: पिता का नाम चौधरी घासी रामजी गोत्र गरेड़ उम्र अंदाजन 45 साल। निवास चोमू के पास गरेड़ियों की ढाणी। जयपुर राज्य में लगभग इस गोत्र के 10-12 गाँव है। करीब 20 साल से आप जयपुर में रहते हैं। आरंभ में आप ने मोटर सर्विस चलाई। 7 साल से दुकानदारी करते हैं। झुंझुनू जाट महोत्सव में मय बाल बच्चों के आप सरीक हुये। जयपुर जाट महोत्सव में स्वागत समिति के प्रबंध मंत्री थे। बराबर जाट सभाओं में हिस्सा लेते हैं। आप दो भाई हैं छोटे तेजाराम जी लेन देन का अलग काम करते हैं। एक लड़का आनंद लाल है। छोटे भाई के तीन लड़के दुर्गालाल, रामकुमार, .... है। आप के पोते का नाम रणवीर सिंह है। आपके भांजे भूरे लाल जी डूडी का पुत्र धन्नालाल है जिसे आप पुत्रवत रखते हैं।
5. चौधरी रामरिखसिंहजी - [पृ.486]: पिता का नाम चौधरी हेतराम जी, गोत्र बेनीवाल, गांव चुली बागड़ियान जिला हिसार, जन्म संवत 1967 विक्रमी (1911 ई.) मगसर बदी 13
भाई 4 हैं - बड़े भूराराम जी जिन्होंने जयपुर-अलवर की सरहद पर तहसील बैराठ में मौजा खारडा बसाया है। और एग्रीकल्चर फॉर्म स्टार्ट किया है। जहां काफी तादाद में गुड़ तैयार होता है। 3. रामचंद्र जिन्होंने लाहौर एफ़सी
[पृ.487]: कॉलेज से B.A. किया है। 4. दयाराम जी जो चूली गांव में खेती करते हैं। आप लोगों के पिताजी व माताजी जिंदा है। पिताजी अच्छे व्यवस्थापक हैं।
सन् 1928 में आप (रामरिख जी) जयपुर में आए और मोटर सर्विस आरंभ की जिसमें जिसमें इस समय 12 लारी व ट्रक चलते हैं। आप घर से सिर्फ ₹5 लेकर निकले और मोटर ड्राइवरी से कार्य आरंभ किया। सान 1935 तक ड्रायवरी की उसके बाद घर की लारिया वह मोटर चलाना आरंभ किया। आपने अपने ही कमाई में से ₹50-60 हजार पिताजी को घर भिजवा दिया है। जयपुर में आपने घर का 40 हजार की कीमत का मकान तैयार कर लिया है।
कौमी कार्य में आप बराबर भाग लेते हैं। जयपुर जाट सभा के आप प्रमुख स्तंभ हैं।
आपने सन् 1942-43 में बरेली में मोटर सर्विस का ठेका लिया और उससे ₹60-70 हजार कमाया। यह काम आपने जयपुर में बैठकर आदि दौरा करके संचालन किया। आपकी इस समय जयपुर में काफी पूछ है। आपने अपने हाथों से 15 हिन्द जवानों को ड्राइवरी की शिक्षा दी। यह काम सन् 1936 तक किया।
आपके बड़े भाई के चार लड़के हैं: 1 शिवनारायण, 2 रामस्वरूप, 3 चंद्रगुप्त और 4 भौमनाथ। आपके भी चार पुत्र हैं: 1 रामगोपाल, 2 सीताराम, 3 रमेश चंद्र और 4 सुरेश चंद्र। बड़े तीनों पढते हैं। आपके कुटुंब में एक बड़ी विशेषता यह है कि संपन्न होते हुए भी कोई नशा नहीं करते। यहां तक कि बीड़ी भी नहीं पीते। आपके दो बहन हैं नैनीबाई और जेठीबाई
[पृ.488]: आप साहसी आदमियों में से हैं और किसी भी धंधे को आप यह समझ कर आरंभ करते हैं कि उसमें उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी। दृढ़-चित्त होने के कारण सफलता आपके साथ रहती है। आप दिल के साथ हिम्मत के धनी और स्वभाव के हंसमुख व्यक्ति हैं। जो आप के संपर्क में आता है वह आपके लिए अच्छे ख्याल बनाकर वापस होता है।
6. चौधरी लादूरामजी सांभर - [पृ.488]: सांभर लेक पर जहां नमक के ढेर पड़े रहते हैं, हमारी बिरादरी के साधु तबीयत के जमादार हैं। नाम उनका लादूराम जी है। वे शांत पुरुष है। अवस्था इस समय 60 साल के आसपास है। रहन-सहन आपका सादा है। स्वभाव अत्यंत गंभीर है।
वह अपनी जवानी के दिनों से ही जो कुछ भी बन पड़ता है कौम का काम करते रहते हैं। जाटों की वीरता के आप बड़े प्रेमी हैं। देहात से जो लोग उनके पास मिलने-जुलने आते हैं उन्हें यह समाज सुधार और कुरीति निवारण की बातें बताते रहते हैं।
देवासिंह जी बोचल्या ने जब सांभर के इलाके में जाट जागृति का काम आरंभ किया तो आपने बड़े प्रेम और आशा से उन्हें सहयोग दिया। किंतु जब बोचल्या जी काम छोड़कर चले गए तो वह बड़े दुखी हुए।
राजपूताने में होने वाली प्रत्येक जाट कॉन्फ्रेंस में में शामिल होते रहे हैं। जाट महासभा का जो अधिवेशन जयपुर में हुआ उसका संदेश आपने चारों ओर फैलाने में उन्हें बड़ी मदद की।
[पृ.489]: वह एक निष्काम सेवक हैं। गौत उनका.... है। जन्म भूमि गांव..... है उनके पिता श्री...... थे। उनके संतानों में..... हैं।
7. स्वामी परमदासजी - [पृ.489]: रेवाड़ी फुलेरा रेलवे कार्ड लाइन पर भैंसलाना एक स्टेशन है। स्टेशन से पश्चिम की ओर मंढ़ा एक गाँव है। यहीं पर दादू संप्रदाय के साधुओं का एक मठ है। स्वामी परमदास जी इसी मठ के अंतिम जाट महंत थे। आप तीन भाई थे। बालदास जी, जयरामदास जी और परमदास जी। तीनों ही भाइयों ने संत रहते हुए जाट कोम की भारी सेवा की है।
स्वामी बालदास जी ने चौधरी हरलाल सिंह अलवर को श्रीमाधोपुर के पास जाटों में शिक्षा प्रसार के लिए रुपए देकर मदद की किंतु का वह काम पूरा नहीं हुआ। जयरामदास जी जयपुर में ही समस्त भारत के जाटों में 20 वीं सदी के अद्वितीय पंडित और चिकित्सक है। आपने बीसियों हजारों की रसायने और काष्ठादिक औषधियां अपने पीछे छोड़ी थी। आपको इतिहास से बड़ा प्यार था। राजस्थानी जाटों के बारे में कई महत्वपूर्ण खोजें की थी। पूरा जीवन परिचय साधुमना चौधरी रीछपाल सिंह जी धमेडावासी ने लिखा है जो प्रकाशित हो चुका है।
अपने दोनों भाइयों के मरने पर स्वामी परमदास जी अपने मठ और गद्दी के मालिक हुए। वह बहुत कम पढ़े लिखे थे किंतु उनकी रुचि जाट कौम के हित के लिए अद्वितीय थी। उन्होंने अपने भाई की तमाम संपत्ति (औषधालय) जाट महासभा और किरथल आर्य महाविद्यालय को दान कर दी और अंतिम दिनों में तो उन्होंने अपना शरीर भी किरथल महाविद्यालय को दे
[पृ.490]: दिया। उन्हें गीता से अत्यंत प्रेम था। वह उनकी प्रिय पुस्तक थी उसके प्रचार पर जोर दिया था।
सीकर के शेष परिचयों की सूची
सीकर के अधिकांश परिचय सीकरवाटी के अध्याय में दिये जा चुके हैं। शेष परिचयों की सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)
- चौधरी हरदेव जी (बुरड़क), पलथाना , सीकर....p.490
- चौधरी डूंगारामजी (भामू), भैरूपुरा, सीकर....p.491
- चौधरी धन्नाराम जी (ढाका), डालमास, सीकर....p.491
- चौधरी शयोबाक्सराम जी (काजला), जेरठी, सीकर....p.491-492
- श्री गंगाराम जी खरसाडू (फगेडिया), खरसाडू, सीकर....p.492-493
- चौधरी ईसर जी (ढाका), भूमा छोटा, सीकर....p.493
- चौधरी रामूसिंह जी (भूकर), दिनारपुरा, सीकर....p.494
- चौधरी गंगासिंह जी (भूकर), दिनारपुरा, सीकर....p.494
- चौधरी दानाराम जी (भूकर), दिनारपुरा, सीकर....p.494-495
- चौधरी दलेलसिंह जी (मेहरिया), कूदन, सीकर....p.495-496
- चौधरी कानाराम जी (भूकर), दिनारपुरा, सीकर....p.496-497
सीकर के शेष परिचयों की विस्तृत जानकारी
1. चौधरी हरदेव जी - [पृ.490]: चौधरी तेजसिंह पलथाना के मरदाने पुत्र हरदेव सिंह जी का जन्म संवत 1962 (1905 ई.) में हुआ था। आपके छोटे भाइयों में नारायण सिंह जी का जन्म संवत 1965 (1908 ई.), नोपसिंह जी का संवत 1972 (1915 ई.), भूर सिंह जी का संवत 1976 (1919 ई.) और रामकुमारी भाई का जन्म 1980 (1923 ई.) का है।
हरदेवसिंह जी ने जो किया उसका वृतांत सुंदर है।
- 1. झुंझुनू संवत 1987 में महाराज जयपुर को दरख्वास्त लगान को कम करने की दी। महाराजा उस समय दौरे पर पधारे थे। सरकारी कर्मचारी किसानों को नजदीक नहीं आने देते थे। हरदेव सिंह ने किसानों को एक स्थान पर बिठा दिया और खुद महाराज के पास पहुंचकर दरखास्त दे दी। तब महाराजा ने किसानों को बुलवाया।
- 2. झुञ्झुणु में जाकर सीकर में जलसा करने का निमंत्रण दिया।
- 3. पलथाना में स्कूल खुलवाया।
सन् 1905 में आपके दादा आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तार करके आगरे के किले में भेज दिए गए। तात्पर्य यह है कि आप का खानदान हमेशा से बहादुर रहा है।
2. चौधरी डूंगारामजी - [पृ.491]: भैरूपुरा के तेजस्वी नाम से सभी जाट परिचित हैं। वहां पर चौधरी दूदाराम जी के घर आज से लगभग 50 साल पूर्व चौधरी डूंगारामजी का जन्म हुआ। आप का गोत्र भामू है. आप सीकर महायज्ञ के समय से ही कौम का काम कर रहे हैं। आप अडिग आदमियों में से हैं।
3. चौधरी धन्नारामजी - [पृ.491]: डालमास के चौधरी ईसरराम जी के घर आज से 46-47 साल पहले संवत 1959 वि. (1902 ई.) में जिस लड़के का जन्म हुआ था आज वे चौधरी धनाराम जी के नाम से मशहूर हैं। आप ढाका गोत्र के जाट हैं। आप सीकर महायज्ञ के समय से प्रकाश में आए हैं। इस समय शेखावाटी किसान सभा का काम बड़ी दिलचस्पी से करते हैं।
आप पर लोगों का विश्वास है। आप परिश्रमी और लग्न सील कौमी सेवक नौजवान हैं। तो भी कौम को ऊंचा उठाने की आपके दिल में साध है।
4. चौधरी शयोबाक्सरामजी- [पृ.491]: आप जेरठी गांव के रहने वाले हैं। गोत्र आपका काजला है। आपके 6 लड़के हैं। बड़े चतर सिंह जी हैं जिनका 16 अक्टूबर सन 1921 में जन्म हुआ है। दूसरे गुलाब सिंह जी हैं जो अपने घरेलू धंधों को संभालते हैं। तीसरे रामकुमार जी फौज में चले गए हैं। पांचवें और 6ठे पुत्र महादेव सिंह और
[पृ.492]: जवाहर सिंह जी पढ़ रहे हैं।
चतर सिंह जी इस समय कौमी सेवा में लगे हुए हैं। उनका नाम सिंह पर होने के कारण उन्हें कल्याण हाई स्कूल से अलग कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने यूपी में जाकर मैट्रिक पास किया। फिर पुलिस में थानेदार हो गए किंतु आप का मन जाती सेवा की ओर था। इसलिए नौकरी को लात मारकर सीकर बोर्डिंग के लिए काम करने में जुट गए। तभी से आप लगन के साथ कौम और किसानों का काम करते हैं।
आपके पिता चौधरी श्यौबक्स राम जी एक रास्ते को पसंद करने वाले और कौम से प्रेम करने वाले आदमियों में से हैं।
5. श्री गंगारामजी खरसाडू - [पृ.492]: आपके पिताजी का नाम चौधरी मेवाराम जी फगेडिया था। आपका जन्म संवत 1939 विक्रमी का है। आप सीकर के उन पुराने बहादुर आदमियों में से हैं जिन्होंने अकेले ही अकेले ठिकाने से टक्कर ली। संवत 1987 (1930 ई.) में जो निश्चित लगान से ज्यादा लगान वसूल करने की ठिकाने ने कोशिश की। आपने लगान देने से इनकार किया और उसके उसके विरुद्ध में आपने जयपुर आदि आबू तक पुकार की। आबू में एजीजी हैं 4 दिन तक मिलकर अपनी कष्ट कहानी सुनाई। इसके बाद दिल्ली गए और गोलमेज कांफ्रेंस में दरख्वास्त देते रहे। इससे चिढ़कर ठिकाने वालों ने आपके मकान को लूट लिया, स्त्री और बच्चों को देश निकाला दे दिया और जमीन भी जप्त कर ली। चार पांच साल आपके स्त्री-बच्चों को व आपको काफी सामना
[पृ.493]: करना पड़ा। तब आखिर ठिकाने को झक खानी पड़ी। जमीन भी वापस लौटानी पड़ी, सामान भी जो लूटा था वापस लौटा दिया और जिन लोगों ने लूट की थी उन लोगों से मुकदमा लड़के जयपुर सरकार से सजा करा दी। आपकी इस तरह की हलचलों का यह नतीजा हुआ कि आप लोगों को सवा लाख रुपए लगान में जो बढ़ाएं थे माफ़ किए गए। आप तभी से कौम का बराबर काम करते आ रहे हैं। आपके लड़के का नाम रामबक्स सिंह है।
संवत 1889 (1932 ई.) में आपको लगान बंदी का प्रचार करने के कारण लक्ष्मणगढ़ के पहाड़ी किले में बंद कर दिया गया और 5 दिन तक खाने को भी कुछ नहीं दिया गया। लेकिन आप अपने प्रण पर अटल रहे और सवा लाख की छूट ठिकाने को विवश होकर देनी पड़ी।
6. चौधरी ईसरजी - [पृ.493]: चौधरी गंगाराम जी के पुराने साथियों में छोटे भूमा के चौधरी ईसर जी का नाम भी उल्लेखनीय है। आप ढाका गोत्र के जाट चौधरी बीजाराम जी के पुत्र हैं। इस समय आपकी 50 साल से ऊपर उम्र होगी।
संवत 1979 (1922 ई.) के लगान बढ़ाने पर आरंभ किए गए आंदोलन में आपने बड़ा काम किया। इस आंदोलन में पूरां के चौधरी हनुमाना और रहनावा के फड़सी ने भी काफी काम किया। उस समय कूदन के पेमा चौधरी और पनलावा के सेवा चौधरी को जेल में दे रखा। उन्हें छुड़ाने के लिए तिलोकाराम मील का बेटा हनुमानाराम और घुमा एजेंट साहब जयपुर के पास पहुंचे थे।
7. चौधरी रामूसिंहजी - [पृ. 494]: दिनारपुरा में ही एक दूसरे प्रेमी जाट सरदार हैं चौधरी रामूसिंह जी। आप भी भूकर ही हैं। आपके पिता का नाम चौधरी गोविंदराम जी था। आपका जन्म संवत 1944 विक्रम (1887 ई.) में हुआ है। आपके पाँच संतान हुई हैं: गणेशराम और गोरुराम नाम के दो लड़के थे और सुंदरी, सोनी और कस्तूरी नाम की तीन लड़कियां थी। आपके 5 पोते हैं पोखरराम, भगवानसिंह और रणवीर सिंह गणेश राम जी के बेटे हैं। मदन सिंह और हरकिशन गौरुराम जी के लड़के हैं।
चौधरी रामू सिंहजी ने संवत 1987 विक्रम (1930 ई.) से कौमी सेवा के कामों में भाग लेना शुरू किया है तभी से बराबर कौम का काम करते आ रहे हैं। आप एक श्रद्धालु और सरल स्वभाव के जाट हैं।
8. चौधरी गंगासिंहजी - [पृ.494]: आप भी दिनारपुरा गांव के भूकर गोत्र के जाट सरदार हैं। आपका जन्म संवत 1956 (1899 ई.) में हुआ। आपके पिताजी का नाम चौधरी बिरधाराम जी था। आप के पुत्रों के नाम गणपतिराम, भगवानसिंह और हरलालसिंह है। दो लड़कियां हैं जिनके नाम केसर बाई और शांति बाई हैं। आप सीकर महायज्ञ के समय से ही कौम की सेवा में जुटे हुए हैं।
9. चौधरी दानारामजी - [पृ.494]: दिनारपुरा के भूकर गोत्र के जाटों में एक पुराने सज्जन
[पृ.495]: चौधरी दानाराम जी हैं। जिनका जन्म संवत 1934 (1877 ई.) में चौधरी चिमनाराम जी के यहां हुआ। आप एक भरे पूरे आदमी हैं। आपके चार लड़के हैं। नोपाराम जी, हरबक्सराम, अर्जुनराम और पेमाराम उनके नाम हैं।
नोपाराम जी के परमाराम, तनसुख राम और रामदेवसिंह 3 लड़के हैं।
हरबख्शराम जी के मुकुंद राम, रामलाल, जवाहर सिंह, रामेश्वर और सुल्तान सिंह नाम के पांच पुत्र हैं।
अर्जुनराम जी के पुत्रों के नाम भगवान सिंह और खेमचंद है।
एक लड़का अभी पेमाराम जी के पैदा हुआ है।
चौधरी दानाराम जी ने सदैव जाट हलचलों में भाग लिया है। अब बुड्ढे हो गए हैं इसलिए उनके बड़े लड़के नोपाराम जी पूर्ण दिलचस्पी से काम करते हैं।
दिनारपुरा गांव के सभी आदमी आपस में मेल जोल से रहते हैं। अभी थोड़ा बहुत किसान सभा का काम करते रहते हैं।
10. चौधरी दलेलसिंहजी - [पृ.495]: सीकर राज्य में मेहरिया जाटों का भी स्थान काफी ऊंचा है। शिवि लोगों की अनेक शाखाओं में एक शाखा मेहरिया लोगों की है। शिवि लोगों की शासन व्यवस्था की काफी प्रशंसा गाई गई है। उनके मंत्रिमंडल में सेनापति को वीरभद्र कहा जाता था और रेवेन्यू मिनिस्टर (मालमंत्री) को ‘महि हेरक’ कहा जाता था। यही महि हेरक शब्द आज महेरिया बन गया। जिसे आज कल लोग महेरिया नाम से पुकारने लगे हैं।
[पृ.496]: कूदन को जिन महरियों ने आबाद किया उनमें भीमजी नाम का जो प्रसिद्ध महेरिया जाट था उसकी तीसरी पीढ़ी में रामनारायण जी हुए। रामनारायण जी के बड़े पुत्र चौधरी जीवनराम जी थे जो गणेशराम जी के बड़े भाई थे। उन्हीं जीवनराम जी के पुत्र दलेलसिंह जी हैं। आपने हिंदी अंग्रेजी की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यापार में प्रवेश किया। आपका जन्म संवत 1977 विक्रम का है। आपके अभी तक दो पुत्रियां हैं मोहिनी देवी और गोविंदी देवी।
व्यापार में आप काफी चतुर है। खूब पैसा कमाते हैं। इसके सिवा आप जाट सभा और किसान सभा के कामों में दिलचस्पी लेते हैं। समझदार नौजवान हैं।
11. चौधरी कानारामजी - [पृ.496]: गोठड़ा के पास ही सीकरवाटी में भूकरों एक दूसरा ग्राम है दिनारपुरा । यहां चौधरी देवाराम जी भूकर एक प्रसिद्ध जाट सज्जन हुए हैं। कहते हैं सीकरवाटी में सर्वप्रथम आपने ही अपना मकान पक्का बनवाया था। अब तो सीकरवाट के हर गांव में 30 फ़ीसदी पक्के मकान हैं। चौधरी रामदेव जी के ही यहां भादवा बदी 8 संवत 1913 (?) को कानाराम जी का जन्म हुआ।
चौधरी कानाराम जी अपने पिता की भांति परिश्रमशील तो है ही साथ ही जाति भक्त भी पूरे हैं। जाट महायज्ञ के समय से ही आपने कौमी सेवा में पैर रखा तब से बराबर अपनी शक्ति भर कौम की सेवा करते चले आ रहे हैं। आप दो बार जेल भी हो आए है। पहली बार चौधरी गणेशराम जी
[पृ.497]: कूदन और चौधरी ईश्वरसिंह जी भैरूपुरा के साथ और दूसरी बात कूदन गोलीकांड के सिलसिले में। जाट बोर्डिंग हाउस और किसान सभा के लिए आपने लगन के साथ काम किया है और इनकी तरक्की में ही आप कॉम की तरक्की समझते हैं।
आपके 4 संतान हैं- 1. गोविंदराम, 2. गणेशराम और 3. हरिश्चंद्र नाम के तीन लड़के और मोहरी देवी नाम की एक लड़की। लड़कों में गणेशरामजी व्यापारी दिमाग के आदमी थे। उन्होंने बाराबंकी में दुकान खोली थी किंतु खेद है कि असमय ही में उनका देहांत हो गया। गणेशराम जी ने अपने पीछे रामकुमार नाम का एक लड़का छोड़ा है। गणेशराम जी के बड़े भाई गोविंदराम जी के दो लड़के हैं रणबीर और बृजमोहन उनके नाम हैं।
चौधरी कानाराम जी के छोटे भाई का नाम गोवर्धनसिंह जी था वह भी मर चुके हैं। उनका एक लड़का तनसुख राम है।
चौधरी रामदेव जी एक बहादुर आदमी थे। संवत 1978 (1921 ई.) में जब लगान में एक टका बढ़ाया गया तो आपने मिरजवास के चौधरी पोखराम जी के साथ मिलकर आंदोलन उठाया जिसके कारण आपको जेल जाना पड़ा और भारी-भारी बेड़ियां पहननी पड़ी।
चौधरी कानाराम जी भी अपने पिता की भांति ही हिम्मत के आदमी है और परिश्रम करने से कभी घबराते नहीं। सदा एक ही धुन से काम में चिपके रहना उनका स्वभाव है।