Haridwar

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(Redirected from Hara-dwara)
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

View of Evening prayers at Har-ki-pairi in Haridwar
Holy Bath at Har-ki-Pauddi
Hardwar – An Aerial View

Haridwar (हरिद्वार), (also spelled Hardwar), is a holy city and municipal board in the Haridwar District of Uttarakhand, India.

Variou names

Tehsils in Haridwar

The district is administratively subdivided into three tehsils-

Six development blocks in Haridwar: 1. Bahadrabad, 2. Bhagwanpur, 3. Khanpur, 4. Laksar,5. Narsan Kalan, 6. Roorkee

Villages in Haridwar tahsil

Haridwar district map

Ahmadpur Grunt, Ajitpur Mustakam, Alawalpur, Alipur Ibrahimpur Urf Ikkad, Aneki Hetmapur, Atmalpur Bangla, Aurangabad, Badshapur Sher Pur Bhatti Pur, Bahadarpur Jat, Banganga No. 2, Bhagtanpur Abidpur Urf Ibrahim, Bhogpur, Bhuwapur Chamrawal, Bishanpur Jharada Mustakam, Bodaheri Mohiuddinpur, Dadpur Govindpur, Daluwala Kalan, Daluwala Mazbata, Fatwa Must, Gadowali, Gaindikhata, Gajiwali, Garh, Hardevpur Sahdevpur Urf Rani M, Hazara Grunt, Jasawa Wala, Jasodhar Pur, Jiya Pota, Kangari, Kasampur, Katarpur Alipur, Khedali, Kotamurad Nagar, Laldhang, Meerpur Muwazarpur, Missarpur Mustakam, Mohammadpur Kunhari, Mustafa Bad, Nagla Khurd, Nasir Pur Kalan, Noorpur Panjanhedi, Padartha Urf Dhanpura, Peeli Padav, Peetpur, Pherupur Ramkhera, Puranpur Salhapur, Rajpur, Ransura, Rasool Pur Mithi Beri, Ruhalki Kishanpur Urf Ikkad, Sahdevpur Shahwazpur, Sajanpur Peeli, Sanghipur, Sarai, Shahpur Shitala Khera, Shivdas Pur Urf Teliwala, Shyampur Nauabad, Sitapur Mazara Jwalapur, Siv Nagar, Sohalpur Sikrodha, Subhashgarh,

History

Ram Sarup Joon[1] writes....According to the Purans and Mahabharat, King Yayati chose his second son Puru as heir to the throne. This branch, therefore, continued to stay in the same area and ruled Hardwar, Hastinapur and Delhi. King Hasti made Hastinapur and Pandavas Indraprastha as their capital. Porus who fought Alexander belonged to this branch, Poruswal, Phalaswal,Mirhan, Mudgil, Gill and a number of other Jat gotras are of the Puru branch.

हरद्वार = हरिद्वार (उ.प्र.)

हरद्वार = हरिद्वार, उ.प्र. (p.1007): शिवालिक पहाड़ियों के कोड में बसा हुआ प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ स्थान है। यहाँ पहाड़ियों से निकल कर भागीरथी गंगा पहली बार मैदानी क्षेत्र में आती है। गंगा के [p.1008]: उत्तरी भाग में बसे हुए बदरीनारायण तथा केदारनाथ नामक भगवान विष्णु और शिव के प्रसिद्ध तीर्थों के लिये इसी स्थान से मार्ग जाता है। इसीलिए इसे 'हरिद्वार' तथा 'हरद्वार' दोनों ही नामों से अभिहित किया जाता है। हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम माया या मायापुरी है.(दे. माया). हरिद्वार का एक भाग आज भी मायापुरी नाम से प्रसिद्ध है। संभवतः माया का ही चीनी यात्री युवानच्वांग ने मयूर नाम से वर्णन किया है। (दे. मयूर) महाभारत में हरिद्वार को गंगाद्वार कहा गया है। इस ग्रंथ में इस स्थान का प्रख्यात तीर्थों के साथ उल्लेख है। (दे. गंगाद्वार) किन्तु हरिद्वार नाम भी अवश्य ही प्राचीन है, क्योंकि 'हरिवंशपुराण' में 'हरद्वार' या 'हरिद्वार' का तीर्थ रूप में वर्णन है- "हरिद्वारे कुशावर्ते नीलके भिल्लपर्वते। स्नात्वा कनखले तीर्थे पुनर्जन्म न विद्यते।" इसी प्रकार 'मत्स्यपुराण' में भी- "सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिपु स्थानेषु दंर्लभा, हरिद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमें।"

किंतु युवानच्वांग के समय तक (7वीं शती ई.) 'हरद्वार' का मायापुरी नाम ही अधिक प्रचलित था। मध्य काल में इस स्थान की कई प्राचीन बस्तियों को, जिनमें 'मायापुरी', 'कनखल', 'ज्वालापुर' और 'भीमगोड़ा' मुख्य हैं, सामूहिक रूप से 'हरिद्वार' कहा जाने लगा था। हरिद्वार का सदा से ही ऋषियों की तपोभूमि माना जाता रहा है। कहा जाता है कि स्वर्गारोहण से पूर्व देवी लक्ष्मी ने 'लक्ष्मण झूला' स्थान के निकट तपस्या की थी।

हरिद्वार परिचय

हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे 'हरिद्वार' का शाब्दिक अर्थ है- 'हरि तक पहुँचने का द्वार'। यह शहर, पश्चिमोत्तर उत्तरांचल राज्य, उत्तरी भारत में स्थित है। हरिद्वार को "धर्म की नगरी" माना जाता है। सैकडों वर्षों से लोग मोक्ष की तलाश में इस पवित्र भूमि में आते रहे हैं। इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना-जाना यहाँ लगा रहता है। गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। उत्तराखंड क्षेत्र के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों का प्रवेश द्वार हरिद्वार ही है। संपूर्ण हरिद्वार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं।

पौराणिक उल्लेख: भारत के पौराणिक ग्रंथों और उपनिषदों में हरिद्वार को 'मायापुरी' कहा गया है। कहा जाता है समुद्र मंथन से प्राप्त किया गया अमृत यहाँ गिरा था। इसी कारण यहाँ कुंभ का मेला आयोजित किया जाता है। बारह वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ के मेले का यह महत्त्वपूर्ण स्थल है। पिछला कुंभ का मेला 1998 में आयोजित किया गया था। अगला कुंभ का मेला 2010 में यहाँ आयोजित किया ग्या था। हरिद्वार में ही राजा धृतराष्ट्र के मन्त्री विदुर ने मैत्री मुनि के यहाँ अध्ययन किया था। कपिल मुनि ने भी यहाँ तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान को कपिलास्थान भी कहा जाता है। कहा जाता है कि राजा श्वेत ने हर की पौड़ी में भगवान ब्रह्मा की पूजा की थी। राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने जब वरदान मांगने को कहा तो राजा ने वरदान मांगा कि इस स्थान को ईश्वर के नाम से जाना जाए। तब से हर की पौड़ी के जल को ब्रह्मकुण्ड के नाम से भी जाना जाता है।

हर की पौड़ी: यह स्थान भारत के सबसे पवित्र घाटों में एक है। कहा जाता है कि यह घाट विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। इस घाट को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो गंगा में नहाने को ही मोक्ष देने वाला माना जाता है लेकिन किंवदन्ती है कि हर की पौडी में स्नान करने से जन्म जन्म के पाप धुल जाते हैं। शाम के वक़्त यहाँ महाआरती आयोजित की जाती है। गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा यहाँ बेहद आकर्षक लगती है। हरिद्वार की सबसे अनोखी चीज़ है शाम होने वाली गंगा की आरती। हर शाम हज़ारों दीपकों के साथ गंगा की आरती की जाती है। पानी में दिखाई देती दीयों की रोशनी हज़ारों टिमटिमाते तारों की तरह लगती है। हरिद्वार में बहुत सारे मंदिर और आश्रम हैं।

मनसा देवी का मंदिर: हर की पौडी के पीछे के बलवा पर्वत की चोटी पर मनसा देवी का मंदिर बना है। मंदिर तक जाने के लिए पैदल रास्ता है। मंदिर जाने के लिए रोप वे भी है। पहाड़ की चोटी से हरिद्वार का ख़ूबसूरत नज़ारा देखा जा सकता है। देवी मनसा देवी की एक प्रतिमा के तीन मुख और पांच भुजाएं हैं जबकि अन्य प्रतिमा की आठ भुजाएं हैं।

चंडी देवी मंदिर: गंगा नदी के दूसरी ओर नील पर्वत पर यह मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा 1929 ई. में बनवाया गया था। कहा जाता है कि आदिशंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में चंडी देवी की मूल प्रतिमा यहाँ स्थापित करवाई थी। किवदंतियों के अनुसार चंडी देवी ने शुंभ निशुंभ के सेनापति चंद और मुंड को यहीं मारा था। चंडीघाट से 3 किलोमीटर की ट्रैकिंग के बाद यहाँ पहुंचा जा सकता है। अब इस मंदिर के लिए भी रोप वे भी बना दिया गया है। रोप वे के बाद बडी संख्या में लोग मंदिर में जाने लगे हैं।

माया देवी मंदिर: माया देवी मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में एक है। कहा जाता है कि शिव की पत्नी सती का हृदय और नाभि यहीं गिरा था। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है। मंदिर के बगल में 'आनंद भैरव का मंदिर' भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं। प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है। हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी, इसलिए इस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है। हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर माँ मनसा और माँ चंडी रक्षा कवच के रूप में स्थित हैं तो वहीं त्रिकोण का शिखर धरती की ओर है और उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं।

सप्तऋषि आश्रम: इस आश्रम के सामने गंगा नदी सात धाराओं में बहती है इसलिए इस स्थान को सप्त सागर भी कहा जाता है। माना जाता है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थीं तो यहाँ सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया। इसलिए इसे 'सप्‍त सागर' भी कहा जाता है।

दक्ष महादेव मंदिर: यह प्राचीन मंदिर नगर के दक्षिण में स्थित है। सती के पिता राजा दक्ष की याद में यह मंदिर बनवाया गया है। किवदंतियों के अनुसार सती के पिता राजा दक्ष ने यहाँ एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में उन्होंने शिव को नहीं आमन्त्रित किया। अपने पति का अपमान देख सती ने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह कर लिया। इससे शिव के अनुयायी गण उत्तेजित हो गए और दक्ष को मार डाला। बाद में शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।

चीला वन्यजीव अभयारण्य: प्रकृति प्रेमियों के लिए हरिद्वार में राजाजी नेशनल पार्क भी है। राजाजी राष्ट्रीय पार्क के अन्तर्गत यह अभयारण्य आता है जो लगभग 240 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ 23 स्तनपायी और 315 वन्य जीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ हाथी, टाइगर, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, सांभर, चीतल, बार्किग डि‍यर, लंगूर आदि जानवर हैं। अनुमति लेकर यहाँ फिशिंग का भी आनंद लिया जा सकता है।

संदर्भ: भारतकोश-हरिद्वार

सप्तपुरी

सप्तपुरी (AS, p.933): पुराणों में वर्णित सात मोक्षदायिका पुरियों को कहा गया है। इन पुरियों में 'काशी', 'कांची' (कांचीपुरम), 'माया' (हरिद्वार), 'अयोध्या', 'द्वारका', 'मथुरा' और 'अवंतिका' (उज्जयिनी) की गणना की गई है - 'काशी कांची चमायाख्यातवयोध्याद्वारवतयपि, मथुराऽवन्तिका चैताः सप्तपुर्योऽत्र मोक्षदाः'; 'अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका, पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः।' [2]

माया = मायापुर

मायापुर अथवा माया (AS, p.736): पुराणों में वर्णित सप्तपुरियों में से एक --'काशी कांची चमायाख्यातवयोध्याद्वारवतयपि, मथुराऽवन्तिका चैताः सप्तपुर्योऽत्र मोक्षदाः'. इसका अभिज्ञान वर्तमान हरद्वार (उत्तर प्रदेश) के क्षेत्र से किया गया है. युवानच्वाङ्ग ने संभवतः मायापुरी का ही मयूर नाम से वर्णन किया है. मायापुरी, कनखल, ज्वालापुर और भीमगोड़ा नामक पंचपुरियों से मिलकर हरिद्वार बना है. हरद्वार में मायादेवी का प्राचीन मंदिर विष्णु घाट से दक्षिण की ओर स्थित है.[3]

गंगाद्वार

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ... गंगाद्वार (AS, p.263) गंगाद्वार का महाभारत में कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है। गंगा नदी का पहाड़ी से नीचे आकर मैदान में प्रवाहित होने का स्थान 'हरद्वार' या हरिद्वार। गंगाद्वार का उल्लेख महाभारत में अनेक बार आया है। आदिपर्व 213, 6 में अर्जुन का अपने द्वादश वर्षीय वनवास काल में यहाँ कुछ समय तक ठहरने का वर्णन है- "सगंगाद्वारमावित्य निवेशमक रोत् प्रभु:।" इसी स्थान पर अर्जुन ने पाताल में प्रवेश कर उस देश की राजकन्या से विवाह किया था। [p.264]: 'एतस्या: सलिलं मर्ध्नि वृषांक: पर्यधारत् गंगाद्वारे महाभाग येन लोकस्थितिर्भवेत्।'--वनपर्व 142, 9 अर्थात् "शिव ने गंगाद्वार में इसी नदी का पावन जल लोक रक्षाणार्थ अपने सिर पर धारण किया था।

महाभारत, वनपर्व 97, 11 में गंगद्वार में अगस्त्य की तपस्या का उल्लेख है- 'गंगाद्वारमथागम्य भगवान्षिसत्तम:, उग्रमातिष्ठत तप: सह पल्यानुकूलया।'


यह कहा जाता है कि यहीं भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर बलि को छला था। शैव क्षेत्र के रूप में इसकी ख्याति है।[5]

जाट इतिहास

ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है ....[पृ.561]: भाट ग्रन्थों का कहना है शिव के प्रसिद्ध गण वीरभद्र की चार स्त्रियां थी। उनमें आशादेवी से सोनभद्र और स्वर्णभद्र, भद्रादेवी से पवनभद्र, अलका देवी से झषभद्र, और मायादेवी से धीरभद्र नामक पुत्र उत्पन्न हुए।

धीरभद्र के पुत्र रुद्रदेव ने कश्मीर में रूद्रकोट नाम का नगर बसाया। रूद्रभद्र के आगे ब्रह्मभद्र, कर्णभद्र, जयभद्र, ताम्रभद्र, ज्ञानभद्र, चक्रभद्र पीढ़ी दर पीढ़ी राजा इस वंश में हुए। चक्रभद्र के 2 पुत्र नागभद्र और वज्रभद्र।

नागभद्र को कर्कोटक नाग की बेटी ब्याही गई। उससे उत्पन्न होने वाले तक्षक कहलाए और तक्षशिला नगरी बसाई।

नागभद्र के दूसरे भाई वज्रभद्र क्रीटभद्र, चंद्रभद्र, रोरभद्र, कोकभद्र, तमालभद्र, मेपभद्र, पुलिंगभद्र, पीढ़ी दर पीढ़ी राजा हुए। इनमें पुलिंगभद्र ने कश्मीर से हटकर गंगा किनारे मायापुरी नामका नगर बसाया जो आगे चलकर हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इनसे आगे इस वंश में तुंगभद्र, पूर्णभद्र, तेजभद्र, राजभद्र, मेघभद्र और (द्वितीय) स्वर्णभद्र हुए। स्वर्णभद्र की 40 वी पीढ़ी में राणा हरिआदित्य हुए। मायापुरी नगरी इन्हीं के नाम पर हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध हुई। हरिआदित्य भीम द्वारा पांडवों की राज सूर्य दिग्विजय में मारे गए।

राणा हरिआदित्य जी की 16वीं पीढ़ी के राजा पेजसर ने हरिद्वार को छोड़ दिया और यमुना के तटवर्ती इलाके में उनकी संतान के लोगों ने आबादी की।


[पृ.562]: उधर संघ विजय ने 270 वर्ष पंजाब पर सिकंदर के हमले में तक्षक वंशी राजा वीरसिंह लड़ते हुए मारे गए। उनके दो पुत्र थे: 1. अमरसेन और 2. मदनसेन। अमरसेन अभिसार का अधिपति था। ज्ञात होता है कि यूनानी लेखकों ने अमरसेन (अभिसार) को ही आम्भी लिखा है।

अमरसेन (अभिसार) के दो पुत्र विजयदेव और स्वर्णदेव थे। इससे आगे की कई पीढ़ियों का पता नहीं चलता।

संवत 875 (818 ई.) में करकदेव अभिसार (पंजाब) को छोड़कर दौंदरखेड़े में आ गए और यह लोग दोंदेरिया नाम से मशहूर हुए।

उशीनर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...उशीनर को ऐतरेय ब्राह्मण (ऐतरेय ब्राह्मण, 8,14) के अनुसार मध्य देश में स्थित एक जनपद बताया गया है- 'अस्यांध्रुवायां मध्यमायां प्रतिष्ठायां दिशि'। यहीं कुरुपांचाल और वश जनपदों की स्थिति बताई गई है। कौशीतकी उपनिषद में भी उशीनर-वासियों का नाम मत्स्य, कुरुपांचाल और बशदेशीयों के साथ है।

कथासरित्सागर[8] में उशीनरगिरि का उल्लेख कनखल-हरिद्वार के प्रदेश के अंतर्गत किया गया है। यह स्थान दिव्यावदान (पृ. 22) में वर्णित उसिरगिरि और विनयपिटक (विनयपिटक भाग 2, पृष्ठ 39 ) का उसिरध्वज जान पड़ता है।

पाणिनि ने अष्टाध्यायी 2, 4, 20 और 4, 2, 118 में उशीनर का उल्लेख किया है। कौशीतकी उपनिषद से ज्ञात होता है कि पूर्व बुद्धकाल में गार्ग्य बालाकि जो काशी नरेश अजातशत्रु का समकालीन था उशीनर देश में रहता था।

महाभारत में उशीनर नरेश की राजधानी भोजनगर में बताई है- 'गालवो विमृशन्नेव स्वकार्यगतमानस:, जगाम भोजनगरं द्रष्टुमौशीनरं नृपम्।' (उद्योग पर्व महाभारत 118, 2)

शांतिपर्व महाभारत 29, 39 में उशीनर के शिबि नामक राजा का उल्लेख है- 'शिबिमौशीनरं चैव मृतं सृंजय शुश्रृम'।

ऋग्वेद 10, 59, 10 में उशीनराणी नामक रानी का उल्लेख है- 'समिन्द्रेरय गामनाडवाहंय आवहदुशीनराण्या अन:, भरतामप यद्रपो द्यौ: पृथिवि क्षमारपो मोषुते किंचनाममत्' या जैसा कि उपर्युक्त उद्धरणों से सूचित होता है उशीनरदेश वर्तमान हरिद्वार के निकटवर्ती प्रदेश का नाम था। इसमें ज़िला देहरादून का यमुना तटवर्ती प्रदेश भी सम्मिलित था क्योंकि वन पर्व महाभारत 130, 21 में यमुना के पार्श्ववर्ती प्रदेश में उशीनर नरेश द्वारा यज्ञ किए जाने का उल्लेख है- 'जलां चोपजलां चैव, यमुनामभितो नदीम्, उशीनरो वै यत्रेष्ट्वा वासवादत्यरिच्यत।' [9]

मयूर = हरिद्वार

विजयेन्द्र कुमार माथुर[10] ने लेख किया है ...मयूर (=हरिद्वार) (AS, p.711): इस नगर का वर्णन चीनी यात्री युवानच्वांग की यात्रावृत्त में है. इसका अभिज्ञान वाटर्स (पृष्ठ 328) ने हरिद्वार से किया है. संभव है हरिद्वार के प्राचीन नाम मायापुर का ही चीनी यात्री ने मयूर रूप में उल्लेख किया है. युवानच्वांग के वर्णन के अनुसार इस स्थान की जनसंख्या बड़ी विशाल थी और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के लिए दूर-दूर से यात्री आते थे. अनेक पुण्यशालाएँ जहां निर्धन को दान दिया जाता था, यहां स्थिति थी. इन्हें धर्म प्राण नरेशों ने स्थापित किया था. गरीबों को निशुल्क स्वादु भोजन तथा रोगियों को निशुल्क औषधि भी यहां मिलती थी.

जाट महासभा पंचपुरी

जाट महासभा पंचपुरी, हरिद्वार एवम राष्ट्रीय लोकदल, हरिद्वार द्वारा भारत रत्न चौधरी चरण सिंह जी ( पूर्व प्रधानमंत्री भारत सरकार) की 37 वी पुण्यतिथि के कुछ और आज के फुटेज एवम वीडियो। चौधरी देवपाल सिंह राठी।

देश के लिए गोल्ड मैडल लाने पर शालिनी सिंह को किया सम्मानित

जाट महासभा पंचपुरी, हरिद्वार द्वारा श्रीमति शालिनी सिंह धर्मपत्नी शोरब सिंह निवासी जुरिश कंट्री ज्वालापुर ने KETTLE BELL SPORTS WORLD CHAMPIONSHIP Cholpon-ATA Kyrgyztan में भारत के लिए तीन स्वर्ण पदक एवं एक सिल्वर पदक हासिल कर परिवार ,समाज एवं देश का नाम रोशन किया है। इस खेल में नई प्रतिभाओं को भी बेटी शालिनी सिंह से प्रेरणा मिलेगी।

शालिनी सिंह को जाट महासभा पंचपुरी,हरिद्वार की ओर से समाज के अध्यक्ष चौधरी देवपाल सिंह राठी जी ने अन्य पदाधिकारियों के साथ उनके निवास जुरिस कंट्री पर जाकर फूलो का दस्ता भेट कर उसे सम्मानित किया तथा समाज की ओर से उन्हें बधाई एवम शुभकामनाएं दी। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि जहा शालिनी सिंह जाट समाज की बेटी हैं उससे पहले वह भारत की बेटी है उन्होंने इस अवसर पर अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि आप इसी तरह देश और जाट समाज का नाम रोशन करती रहे हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते है। उन्होंने शालिनी सिंह के साथ उनके परिवार के बीच उपस्थित होकर उनके समस्त परिवार को भी बधाई दी।

इस अवसर पर श्री योगेन्द्र पाल सिंह राणा (कोषाध्यक्ष), हरपाल सिंह (उपाध्यक्ष) रकम सिंह, नरेन्द्र सिंह देशवाल, धीर सिंह, जीत सिंह ढिल्लो, बिरपाल सिंह, विनीत कुमार, शोरब सिंह आदि उपस्थित रहे।

फिटनेस जोन के शालिनी सिंह और सार्वजीत सिंह दिलावरी ने हरिद्वार का किया नाम रोशन

The excavation

Virbhadra Rishikesh, District Haridwar: The site was excavated by N.C. Ghosh of Archaeological Survey of India[11] between 1973-75. The excavation brought to light remains of a three cultural phases:

1. The early phase (1st Century AD to circa 3rd century AD) represented mud brick wall.
2. The middle phase (circa 4th century to circa 5th century AD) is marked by a floor of brick bats and remains of a Saiviate Temple.
3. The late phase (circa 7th century to circa 8th century AD) is marked by some residential structures of burn brick bats.

Visit by Xuanzang in 636 AD

Alexander Cunningham[12] writes that Hwen-Thsang describes the town of Mo-yu-lo, or Mayura, as situated on the north-west frontier of Madawar, and on the eastern bank of the Ganges.[13] At a short distance from the town there was a great temple called "the gate of the Ganges," that is, Ganga-dwara, with a tank inside, which was supplied by a canal with water from the holy river. The vicinity of Ganga-dwara, which was the old name of Haridwara, shows that Mayura must be the present ruined site of Mayapura, at the head of Ganges canal. But both of these places are now on the western bank of the Ganges, instead of on the eastern bank, as stated by Hwen Thsang. His note that they were on the north-west frontier of Madawar seems also to point to the same position ; for if they had been on the western bank of the Ganges, they would more properly be described as on the north-eastern frontier of Srughna. I examined the locality with some care, and I was satisfied that at some former period the Ganges may have flowed to the westward of Mayapura and Kankhal down to Jwalapur. There is, however, no present trace of any old channel between the Gangadwara temple and the hills; but as this ground is now covered with the houses of Haridwar, it is quite possible that a channel may once have existed, which has since been gradually filled up, and built upon. There is therefore no physical difficulty which could have prevented the river from taking this westerly course, and we must either accept Hwen Thsang's statement or adopt the alternative, that he has made a


[p.352]: mistake in placing Mayura and Gangadwara to the east of the Ganges.

There is a dispute between the followers of Siva and Vishnu as to which of these deities gave birth to, the Ganges. In the 'Vishnu Purana' it is stated that the Ganges has its rise "in the nail of the great toe of Vishnu's left foot;"[14] and the Vaishnayas point triumphantly to the Hari-ki-charan, or Hari-ki-pairi (Vishnu's foot-prints), as indisputable evidence of the truth of their belief.

On the other hand, the Saivas argue that the proper name of the place is Hara-dwara, or " Siva's Gate," and not Hari-dwara. It is admitted also, in the ' Vishnu Purana,' that the Alakananda (or east branch of the Ganges) " was borne by Mahadeva upon his head."[15]

But in spite of these authorities, I am inclined to believe that the present name of Haridwar or Haradwar is a modern one, and that the old town near the Gangadwara temple was Mayapura. Hwen Thsang, indeed, calls it Mo-yu-lo, or Mayura, but the old ruined town between Haridwar and Kankhal is still called Mayapur, and the people point to the old temple of Maya-Devi as the true origin of its name. It is quite possible, however, that the town may also have been called Mayura-pura, as the neighbouring woods still swarm with thousands of peacocks (Mayura), whose shrill calls I heard both morning and evening.

Hwen Thsang describes the town as about 20 li, or 3⅓ miles, in circuit, and very populous. This account corresponds very closely with the extent of the old city of Mayapura, as pointed out to me by the people.


[p.353]: These traces extend from the bed of a torrent, which enters the Ganges near the modern temple of Sarvvanath to the old fort of Raja Ben, on the bank of the canal, a distance of 7500 feet. The breadth is irregular, but it could not have been more than 3000 feet at the south end, and, at the north end, where the Siwalik hills approach the river, it must have been contracted to 1000 feet. These dimensions give a circuit of 19,000 feet, or rather more than 3½ miles. Within these limits there are the ruins of an old fort, 750 feet square, attributed to Raja Ben, and several lofty-mounds covered with broken bricks, of which the largest and most conspicuous is immediately above the canal bridge. There are also three old temples dedicated to Narayana-sila, to Maya-Devi, and to Bhairava. The celebrated ghat called the Pairi, or "Feet Ghat," is altogether outside these limits, being upwards of 2000 feet to the north-east of the Sarvvanath temple. The antiquity of the place is undoubted, not only from the extensive foundations of large bricks which are everywhere visible, and the numerous fragments of ancient sculpture accumulated about the temples, but from the great variety of the old coins, similar to those of Sugh, which are found here every year.

The name of Haridwara, or " Vishnu's Gate," would appear to be comparatively modern, as both Abu Rihan and Rashid-ud-din mention only Ganga-dwara. Kalidas also, in his ' Meghaduta,' says nothing of Haridwara, although he mentions Kankhal ; but as his contemporary Amarasinha gives Vishnupadi as one of the synonyms of the Ganges, it is certain that the legend of its rise from Vishnu's foot is as old as the fifth century.


[p.354]: I infer, however, that no temple of the Vishnupada had been erected down to the time of Abu Rihan. The first allusion to it of which I am aware is by Sharif-ud-din,[16] the historian of Timur, who says that the Ganges issues from the hills by the pass of Cou-pele, which I take to be the same as Koh-pairi, or the " Hill of the Feet" (of Vishnu), as the great bathing ghat at the Gangadwara temple is called Pairi Ghat, and the hill above it Pairi Pahar. In the time of Akbar, the name of Haridwar was well known, as Abul Fazl speaks of "Maya, vulgo Haridwar, on the Ganges," as being considered holy for 18 kos in length.[17] In the next reign the place was visited by Tom Coryat, who informed Chaplain Terry that at " Haridwara, the capital of Siba, the Ganges flowed amongst large rocks with a pretty full current." In 1790 the town was visited by Hardwicke, who calls it a small place situated at the base of the hills. In 1808, Raper describes it as very inconsiderable, having only one street, about 15 feet in breadth, and a furlong and a half (or three-eighths of a mile) in length. It is now much larger, being fully three- quarters of a mile in length, but there is still only one street.

Hwen Thsang notes that the river was also called Fo-shui [18] which M. Stanislas Julien translates as I'eau qui porte bonhcur, and identifies with Mahabhadra, which is one of the many well-known names of the Ganges. He mentions also that bathing in its waters was sufficient to wash away sin, and that if corpses were thrown into the river the dead would escape the


[p.355]: punishment of being born again in an inferior state, which was clue to their crimes. I should prefer reading Subhadra, which has the same meaning as Mahabhadra, as Ktesias mentions that the great Indian river was named ύπαρχος, which he translates by Φέρων πάητα τά άΎαθά [19] Pliny quoting Ktesias calls the river Hpobarus, which he renders by " omnia in se ferre bona."[20] A nearly similar word, Oibares, is rendered by Nicolas of Damascus as άΎαθάΎΎελος. I infer, there-fore, that the original name obtained by Ktesias was most probably Subhadra.

Haridwar and Jat history

Haridwar was one of the most ancient Jat republics under the rule of Virabhadra with capital at Haridwar. The state of Haryana gets its name from Shiva (Hara). The name of Haryana means 'Hari ka Desh' or the land of Lord Shiva. There is mention of ganas is in the form of attendants of Shiva in the story of creation of Virabhadra and destruction of Daksha in Hindu mythology. The story goes: One day Daksha made arrangements for a great horse sacrifice, and invited all the gods omitting only Shiva. Shiva's first wife was Sati and daughter of Daksha Prajapati. Sati, being greatly humiliated, went to the banquet and Sati released the inward consuming fire and fell dead at Daksha's feet. Narada bore this news to Shiva. Shiva burned with anger, created Vīrabhadra who bowed at Shiva's feet and asked his will. [21]

Shiva directed Virabhadra: "Lead my army against Daksha and destroy his sacrifice; fear not the Brahmanas, for thou art a portion of my very self". On this direction of Shiva, Virabhadra appeared with Shiva's ganas in the midst of Daksha's assembly like a storm wind and broke the sacrificial vessels, polluted the offerings, insulted the priests and finally cut off Daksha's head, trampled on Indra, broke the staff of Yama, scattered the gods on every side; the he returned to Kailash. [22]

Deva Samhita mentions that after the destruction of Daksha's sacrifice by Virabhadra and his ganas, the followers of Shiva, the defeated gods sought Brahma and asked his counsel. Brahma advised the gods to make their peace with Shiva. Shiva accepted his advice and restored the burnt head of Daksha and the broken limbs were made whole. Then the devas thanked Shiva for his gentleness, and invited him to sacrifice. There Daksha looked on him with reverence, the rite was duly performed, and there also Vishnu appeared. A compromise was achieved between Vaishnavas and followers of Shiva.

The above story of creation of Virabhadra from the Shiva’s lock and destruction of Daksha by Virabhadra and his ganas is mythical and not scientifically possible but has some historical facts in it. Thakur Deshraj has explained that there was a clan of Jats named Shivi who had a republic ruled by democratic system of administration known as ganatantra. Kshudrakas had formed a sangha with Malavas. Shivis formed a sangha with a big federation or sangha known as Jat, which is clear from Paninis shloka in grammar of Aṣṭādhyāyī given below. [23]

The historian Ram Swaroop Joon explains that Shiva lived in Gangotri Hills which, due to Shiva's popularity, came to be known as Shiva's Jata. The mountain ranges in that area is now known as Shivaliks. Raja Virabhadra of the Puru dynasty was the ruler of 'Talkhapur' near Haridwar, which also formed part of the area known as 'Shiv ki Jata'. [24]

This is the area around Haridwar. King Bhagiratha brought the Ganga to the plains in this region. According to legend the Ganga flows out from Shiva's Jata. Actually this also means that the Ganga flows out from the area known as 'Shiv ki Jata', the birthplace of the Jat Raja Virabhadra who was a follower and admirer of Shiva. On hearing of Sati's tragedy, Shiva went to the durbar of Virabhadra and pulled at his hair in fury while narrating the story. This infuriated Virabhadra and with his army, are invaded Kankhal and killed Daksha. [25]

Kankhal, ancient town near Haridwar, was the summer capital and Thanesar (Kurukshetra) the winter capital of Shiva. [26]Shiva after ascending to the throne visited plain areas, the present Haridwar. To give a warm welcome to Shiva the site of Haridwar was made a welcome-gate hence called Haridwar (हरिद्वार) . The country below it was known as Haryana in the memory of Shiva coming to this region. In sanskrit language applying the yaṇa sandhi rules we find that Hari + Ānā = Haryānā. Examples of yaṇa sandhi are:

इति+आदि = इत्यादि

हरि+ आणा = हरयाणा

The region of Haryana in those days covered the areas of 30 districts of Uttar Pradesh, Brajmandal, present Haryana, part east of River Sutlej and Ganganagar, Hanumangarh, Nagaur, Bikaner, Churu and Jhunjhunu districts in Rajasthan. [27]

In Hindu Mythology

According to Hindu mythology, Haridwar is one among the four sites where drops of the elixir of immortality, Amrita, accidentally spilled over from Kumbha, in which it was being carried away by the celestial bird Garuda. These four spots -- Ujjain, Haridwar, Nasik, and Allahabad -- have today become places, where the Kumbha Mela is celebrated once every 3 years in any of these 4 places and after a period of 12 years, the Maha Kumbha Mela is celebrated on the 12th year at Prayag in Allahabad. Millions of pilgrims, devotees, and tourists congregate here from all over the world to celebrate the event. They perform ritualistic bathing on the banks of the river Ganga.

The spot where the Amrita (nectar) fell is considered to be the Brahma Kund at Har-ki-Pauri (literally, "footsteps of the Lord," and symbolically the footprints of the Amrita), the most sacred ghat of Haridwar; thousands of devotees and pilgrims flock here during festivals or snan from all over India to take a holy dip. This act is considered to be the equivalent of washing away one's sins to attain Moksha.

Jat Dharamshala Hardwar

The Haridwar district came into existence on 28 December 1988, with the creation of new state of Uttarakhand, and is developing beyond its religious importance, as a major industrial destination of state, with development works of SIDCUL. This city is also well known for many other attractions apart from the holy river Ganges, such as the township of BHEL (Bharat Heavy Electricals India Ltd.) and fast developing Industrial Estate developed by SIDCUL. Haridwar is adjacent to the neighbour district Roorkee known for educational institution IIT Roorkee.

Haridwar in scriptures

Prince Bhagiratha in penenance for the salvation of 60,000 of his ancestors.

A paradise for nature lovers, Haridwar presents a kaleidoscope of Indian culture and civilisation. In mythology it has been variously mentioned as Kapilsthan, Gangadwar [28] and Mayapuri [29]. It is also a entry point to the Char Dham (the four main centers of pilgrimage in Uttarakhand viz, Badrinath, Kedarnath, Gangotri, and Yamunotri), hence, Shaivism (followers of Lord Shiva) and Vaishnavism (followers of Lord Vishnu) call this place Hardwar and Haridwar respectively, corresponding to Har being Shiv and Hari being Vishnu [28][30].

Archaeological findings have proved that terra cotta culture dating between 1700 BCE and 1200 BCE existed in this region [30]. Though first written evidence of Haridwar is found in the accounts of a Chinese traveller, Huan Tsang, who visited India in 629 AD. [31]

The legendary King, Bhagiratha, the great-grandson of the Suryavanshi King Sagara, is said to have brought the river Ganga down from heaven, through years of penance in Satya Yuga, for the salvation of 60,000 of his ancestors from the curse of the saint Kapila [32][33], a tradition continued by thousands of devout Hindus, who brings the ashes of their departed family members, in hope of their salvation [34]. Lord Vishnu is said to have left his footprint on the stone that is set in the upper wall of Har-Ki-Pauri, where the Holy Ganga touches it at all times.

During his visit to Haridwar, Sikh Guru, Guru Nanak (1469-1539) bathed at 'Kushwan Ghat', wherein the famous, 'watering the crops' episode took place [35], his visit is today commemorated by a Gurudwara, besides this third Guru, Sri Amar Das also visited Hardwar twenty two times during his life time [36]. Being one of the oldest living cities, Haridwar finds its mention in the ancient Hindu scriptures as it weaves through the life and time stretching from the period of the Buddha, to the more recent British advent. Haridwar has a rich and ancient religious and cultural heritage. It still has many old havelis and mansions bearing exquisite murals and intricate stonework.

Present Haridwar

The headworks of the Ganga Canal system are located in Haridwar. The Upper Ganga Canal was opened in 1854 after the work began in 1840, prompted by the famine of 1837-38. The unique feature of the canal is the half-kilometre-long aqueduct over another river at Roorkee, which raises the canal 25 metres above the original river.

Haridwar has been an abode of the weary in body, mind and spirit. It has also been a centre of attraction for learning various arts, science, and culture. The city has a long-standing position as a great source of Ayurvedic medicines and herbal remedies and is home to the unique Gurukul school of traditional education.

Haridwar already has a temple of modern civilization, BHEL, a 'Navratna PSU' to its credit. The Roorkee University at Roorkee, now IIT Roorkee, is one of the oldest and most prestigious institutes of learning in the fields of science and engineering. Another university of the district, Gurukul Kangri, which has a vast campus, gives traditional education of its own kind.

Many Government administration offices like Lok Sewa Ayog and Sanskrit Academy are established here. Prior to its inclusion in the newly created state of Uttarakhand, this district was a part of Saharanpur Divisional Commissionary.

Jat Gotras in Haridwar district

Bargoti, Beniwal, Dhama, Jatrana, Jatri, Kharb, Lohan, Rathi, Salaar, Bains,

Jat Monuments

Notable persons

Gallery

External links

References

  1. History of the Jats/Chapter II,p. 31-32
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.933
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.736
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.263
  5. हिन्दी विश्वकोश खण्ड-3 | पृष्ठ संख्या- 343
  6. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.561-562
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.102
  8. दुर्गाप्रसाद और काशीनाथ पांडुरंग द्वारा संपादित, तृतीय संस्करण=पृ. 5
  9. भारतकोश-उशीनर
  10. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.711
  11. Archaeological Survey of India, Dehradun Circle, Uttarakhand
  12. The Ancient Geography of India/Central India, p.351-355
  13. Julien's ' Hiouen Thsang,' li. 230. See Map No. X.
  14. Book ii. 8. Hall's edition of Wilson's translation, ii.73.
  15. Ibid
  16. ' History of Timur,' translated by Petis de la Croix, iii. 131.
  17. 'Ayin Akbari,' ii. 516.
  18. Julien's ' Hwen Thsang,' ii. 217.
  19. Ctesia3 Indica, Excerpp. ab Photio, 19, e.lit. Lion.
  20. Hist. Nat. xxxvii. 11.
  21. Sister Nivedita & Ananda K.Coomaraswamy: Myths and Legends of the Hindus and Bhuddhists, Kolkata, 2001 ISBN 81-7505-197-3
  22. Sister Nivedita & Ananda K.Coomaraswamy: Myths and Legends of the Hindus and Bhuddhists, Kolkata, 2001 ISBN 81-7505-197-3
  23. Thakur Deshraj: Jat Itihas (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 2nd edition 1992 page 87-88.
  24. Ram Swarup Joon: History of the Jats (1938, 1967)
  25. Ram Swarup Joon: History of the Jats (1938, 1967)
  26. Bhaleram Beniwal, Jāton kā Ādikālīn Itihāsa, 2005, Publisher - Jaypal Agencies, Agra, p. 39
  27. Bhaleram Beniwal, Jāton kā Ādikālīn Itihāsa, 2005, Publisher - Jaypal Agencies, Agra, p. 39
  28. 28.0 28.1 Places of peace and power sacred sites.
  29. Hardwar sanatansociety.
  30. 30.0 30.1 Hariwar History haridwar.nic.in.
  31. Kumbh Mela
  32. "Uttarakhand Information Centre - Gangotri Information" The Complete Uttarakhand Travel Guide
  33. Mankodi, Kirit (1973) "Gaṅgā Tripathagā" Artibus Asiae 35(1/2): pp. 139-144, p. 140
  34. Hardwar, About City
  35. Watering the Crops Guru Nanak Sakhis at sikhiwiki.
  36. Gurudwara NanakpuraGurudwaras in Uttarakhand at sikhiwiki.
  37. Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 378
  38. Jat Parivesh, 10/2015,p.16
  39. Jat Samaj, Agra, 7/2016,p.30
  40. Jat Samaj, Agra, 7/2016,p.30
  41. Jat Samaj, Agra, 7/2016,p.32

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