Jat Jan Sewak/Jind

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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580

संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर

जींद के जाट जन सेवक

जींद राज्य

[पृ.512]: पंजाब में जाटों की एक छोटी सी रियासत जींद है। यहां के शासक सिख धर्म को विशेष रुप से मानते हैं। यहां के हिंदू जाटों में चौधरी निहाल सिंह जी तक्षक एक विशिष्ट व्यक्ति हैं। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में जहां लोहारू, जींद और शेखावाटी की भारी सेवा की है वहां जींद में शिक्षा और राजनीति दोनों ही को गतिमान बनाया है। यहां उनका और उनके साथियों का संक्षिप्त परिचय देना अत्यंत आवश्यक समझते हैं।

जींद राज्य के जाट जन सेवकों की सूची

जींद राज्य में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)

  1. श्री पंडित शिवकरण प्रभाकर (सांगवान), डोहकी, चरखी दादरी....p.512
  2. चौधरी मंगलराम नंबरदार (शिवराण), डालावास, भिवानी....p.513
  3. श्री राजेराम फोगाट (फोगाट), खातीवास, भिवानी....p.513-514
  4. चौधरी महताबसिंह (शिवराण), पंचगांवा, भिवानी....p.514
  5. चौधरी नानकचंद बड़गुजर (बड़गुजर), सागरपुर, फरीदाबाद....p.514-515
  6. महाशय रामरिछपाल शिवरान (शिवरान), चाँदवास, भिवानी....p.516-517
  7. स्वामी कर्मानन्द (कलकल), इमलोटा, भिवानी....p.517
  8. महाशय मन्साराम जी (शिवरान), पंचगांवा, भिवानी....p.517-518
  9. प्रोफेसर शेरसिंह काद्यान (काद्यान), बाघपुर, झज्जर....p.518-521
  10. कुंवर निहालसिंह तक्षक (तक्षक), भागवी, भिवानी....p.521-528

जींद राज्य के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी

1. श्री पंडित शिवकरण प्रभाकर MLA - [पृ.512]: आप चौधरी अमिचंद जी सांगवान ग्राम डोहकी के सुपुत्र हैं। आपकी आयु लगभग 40 वर्ष है। प्रभाकर तक शिक्षा पाई है। आप आर्य विद्यालय आहुलाना (रोहतक) में मुख्याध्यापक हैं। प्रभाकर तक हिंदी परीक्षाएं दिलाते हैं। इस वर्ष जिला जींद बदारी से शिक्षा क्षेत्र से जींद राज्य असेंबली में चुने गए हैं। आप प्रजामंडल के संगठन में सहयोग देते रहें हैं। जींद राज्य की प्रजा मंडल असेंबली पार्टी में हैं। हैदराबाद सत्याग्रह के समय आपने हरियाणा से काफी सहायता भिजवाई। चौधरी लहरी सिंह मंत्री पंजाब को सफल बनाने में आपने सहयोग दिया था।


2. चौधरी मंगलराम नंबरदार MLA - [पृ.513]: डालावास पोस्ट बाठड़ा (जींद राज्य) में शिवराण वंश में आपका जन्म हुआ है। आप अपने इलाके के एक प्रसिद्ध जनसेवक हैं। अपने गांव के मिडिल स्कूल के भवन के लिए आपने काफी दान दिया है। सन 1939 में आप पहले नंबरदार प्रजामंडल में सम्मिलित हुए। प्रजामंडल सीट पर आप जींद राजय एसेंबली में चुने गए। आंदोलन के समय आपकी नंबरदारी तोड़ दी गी और गांव में नजर बंद कर दिया गया। उदयपुर अधिवेशन में आप जींद राज्य प्रजामंडल के प्रतिनिधि चुने गए थे। प्रजामंडल कार्य में आप पूरा पूरा सहयोग तथा आर्थिक सहायता देते हैं। शिवरान इलाके के आप किसान नेता हैं।

3. श्री राजेराम फोगाट - [पृ.513]: पिता का नाम चौधरी धर्मसिंह फोगाट जन्मभूमि खातीवास पोस्ट दादरी (जींद राज्य), जन्म तारीख 4 जुलाई सन 1920

दादरी से आपने मिडिल पास किया। सन् 1939 में गोड़ हाई स्कूल रोहतक से आपने द्वितीय श्रेणी में मैट्रिक पास किया। आप सन् 1946 में वालीबाल के खेल में अंबाला डिवीजन में सर्वप्रथम खिलाड़ी माने गए।

मैट्रिक पास करने के पश्चात 1939 में आप ने रावलघी (डालमिया दादरी) में फोगाटों के केंद्र में स्कूल चालू किया। दिन रात परिश्रम करके थोड़े दिनों में ही सौ से ऊपर छात्र कर


[पृ.514]: लिए। आप के प्रयत्न से बडा अच्छा स्कूल भवन तैयार हो गया। अब मिडिल तक की शिक्षा दी जाती है। इस वर्ष मिडिल परीक्षा में बैठने वाले सभी विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में पास हुए।

इलाका दादरी के फोगाट जाटों में आपने काफी जागृति करदी है। आपका स्कूल जिला दादरी का भावी जाट स्कूल बन सकता है।

आप जींद राज्य प्रजा मंडल के अनशन में पूरा पूरा सहयोग देते रहे हैं।

4. चौधरी महताबसिंह - [पृ.514]: आप बीड डालावास पंचगावा के शिवरान वंश में पैदा हुए हैं। बालिग होने पर लगभग 10 वर्ष तक आर्य समाज भजनोपदेशक का कार्य किया। 1939 में प्रजामंडल में अवैतनिक उपदेशक के रूप में काम किया। जिला दादरी प्रजामंडल के उपप्रधान थे। ढाई वर्ष तक नजरबंद रहे। ढाई वर्ष तक पाबंद रहे। प्रजामंडल के संगठन का कार्य कर रहे हैं। जिला दादरी लोहारूशेखावाटी में आप जनजागृती का कार्य कर रहे हैं।

5. नानकचंद बड़गुजर

5. नानकचंद बड़गुजर - [पृ.514]: श्री नानकचंद जी के पिता का नाम चौधरी नारायणसिंह, गोत्र बडगूजर, जन्म भूमि सागरपुर, तहसील बल्लभगढ़ जिला गुडगांव। जन्म तारीख 6 नवंबर सन् 1913

सुनपेर स्कूल में प्राइमरी पास करके फतेहपुर बिल्लोच से मिडिल पास किया। कुछ महीने पलवल हाई स्कूल में पढ़ें DAV हाई स्कूल दरियागंज दिल्ली से 1935 ई. में


[पृ.515]: द्वितीय श्रेणी में मैट्रिक पास किया। एक वर्ष दिल्ली बैंक की ब्रांच में क्लर्क का काम किया। 15 मार्च सन् 1937 से डालावास स्कूल में सेवा कर रहे हैं।

आप सात भाई हैं। चंदसुख सागरपुर में जमीदारी का काम करते हैं। सोहनलाल बिजलीघर पिलानी में काम करते हैं। शीशराम, हरिदत्त, हरिश्चंद्र पढ़ रहा है DAV हाई स्कूल दिल्ली में। सुरेंद्र संस्कृत पाठशाला गदपुरी में पढ़ रहा है।

आप के 3 पुत्र हैं: राजवीर 8 वर्ष, यशवंत 5 वर्ष और ओमप्रकाश ढाई वर्ष।

आपने डालावास में रहकर शिवरान जाटों को अपने कार्य का क्षेत्र बनाया। मिडिल स्कूल के भवन के लिए आपने अपनी धर्मपत्नी के आभूषण तक लगा दिए। ऋण लेकर के स्कूल में लगाया। लगभग ₹30000 का भवन तैयार कर दिया। आपके प्रयतन से यहां मिडिल स्कूल चल सका। 1 अप्रैल सन् 1942 से आप यहां ग्रामीण निर्धन छात्रों के लिए निशुल्क हाई स्कूल स्थापित करने में लगे हुए हैं।

समाज सुधार का कार्य भी साथ-साथ करते हैं। शराब बंद करने के लिए आपने पंचायतों द्वारा व्यवस्था करवाई है।

जींद राज्य प्रजामंडल में आप आरंभ से ही सहयोग देते रहे हैं। गत उदयपुर अधिवेशन के समय आप पंजाब प्रादेशिक प्रजामंडल के सदस्य चुने हैं। नवंबर से आप अपना सारा वेतन स्कूल में दे रहे हैं और 1 अप्रैल सन 1946 से आपने डालावास हाईस्कूल के लिए अवैतनिक सेवा करने के लिए जीवन दान दे दिया है।


6. महाशय रामरिछपाल शिवरान - [पृ.516]: पिता का नाम चौधरी हरनाम सिंह शिवरान, जन्म भूमि ग्राम चाँदवास, पोस्ट नोढ़डा (जींद राज्य), जन्म तारीख 1 जनवरी 1911

आपके पिता अपनी जम्मीदारी बुधाना (जिला रोहतक) में चले गए थे। वहीं से आपने प्राइमरी पास की। आपकी माता जी की साया पहले ही उठ चुकी थी। प्राइमरी पास करने पर आपके पिताजी भी चल बसे। सन 1930 में छारा जिला रोहतक से मिडिल परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की।

मैट्रिक पास करके म्युनिसिपल कमेटी दिल्ली व पंजानी प्रेस में काम किया। सन् 1932 ई. से अपने गांव में रेशम का कपड़ा बनाने की खड्डी लगाई। 1934 में नरेला में वैदिक पाठशाला चालू की और भोजन कपड़े के लिए केवल ₹10 मासिक लेकर अवैतनिक सेवा की। आपके प्रयत्न से वहां मिडिल स्कूल बन गया। आप दिन में पढ़ाई करते रात्रि के समय आस-पास के गांव में विद्या प्रचार करते। आपके प्रयतन से वहां अच्छा मकान स्कूल के लिए बन गया।

1942 आपने आर्यसमाज लाहौर का कार्य किया। आपने पाठशाला के लिए चन्दा करवाया। अक्टूबर 1943 ई. से आप बढ़ाड़ा स्कूल की सेवा कर रहे हैं। आपके प्रयत्न से वहां शिवरान भवन बन गया है। जिसमें लोअर मिडिल स्कूल तक की पढ़ाई हो रही है। जिन विद्यार्थियों ने पढ़ना छोड़ दिया था उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय की हिंदी रत्न वह हिंदी भूषण की परीक्षाएं दिला कर उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहन दिया है।


[पृ.517]: आप अपने पिता के इकलौते पुत्र हैं। शिवरान के 25 वह 52 गांवों में आपका विशेष कार्यक्षेत्र है। वहां के जाटों के लिए आपने शिक्षा प्रचार, समाज सुधार का सरहनीय कार्य किया है जींद राज्य प्रजामंडल के संगठन कार्य में भी आपका पूर-पूरा सहयोग है।

7. स्वामी कर्मानन्दजी [पृ.150]: स्वामी कर्मानन्दजी एक कर्मठ और साहसी सन्यासी हैं। स्वामी स्वतंत्रतानंद जी पंजाब के आप प्रिय सहयोगी हैं। 1935-36 के लोहारू जाट आंदोलन और आर्य आंदोलन के बाद कर्मानन्द जी लोहारू में आर्य समाज संगठन के लिए नियुक्त हुए। तब से अब तक अनेक विघ्न बाधाओं का सामना करते हुए उन्होंने लोहारु आर्य समाज को दृढ़ किया तथा लोहारू राज्य में आय समाजिक पाठशालाओं की स्थापना की है। बीकानेर राज्य में अभी कालरी और गागड़वास गांव में दो पाठशालाएं कायम की हैं। बीकानेर में गरीब किसानों के लिए साथ जो ज्यादतियां सरकारी कर्मचारियों और पट्टेदारों की ओर से होती हैं। उनसे आपका ह्रदय क्षुब्ध रहता है। अतः बीकानेर में भी जनजागृती का आपने बिगुल बजाया और गांधी सप्ताह के दिनों में राष्ट्रीय झंडा फहराते हुए बीकानेर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करके नजरबंद भी किया।

आपका जन्म जींद राज्य के बिलोटा नामक गांव में हुआ था। लोहारू के आसपास का प्रदेश स्वामी कर्मानन्द जी से बहुत आशाएं रखता है।

आप बीकानेर प्रजा परिषद के अध्यक्ष और राजस्थान रीजनल काउंसिल के सदस्य रह चुके हैं।

8. महाशय मनसाराम जी - [पृ.517]: पंचगावा (जिला दादरी) जींद राज्य में शिवरान वंश में आपका जन्म हुआ। आप कई वर्ष से आर्य समाज के स्वतंत्र


[पृ.518]: उपदेशक का कार्य करते थे। सन् 1939 से जींद राज्य प्रजामंडल के संस्थापकों में आप सम्मिलित हो गए। प्रजामंडल के संगठन में खूब काम किया। दिसंबर 1940 से आप ढाई वर्ष संरूर में नजरबंद रहे और ढाई वर्ष अपने गांव में पाबंद रहे। नवंबर में आप की पाबंदी हटी। आप प्रजामंडल के संगठन में लगे हुए हैं। इस समय शेखावाटी में काम कर रहे हैं। आपने 32 बीघा जमीन कन्या गुरुकुल पंचगावा के लिए दान दी है और गुरुकुल के लिए अवैतनिक सेवा करने के लिए जीवन दान दिया है।

9. प्रोफेसर शेरसिंह काद्यान

प्रोफेसर शेरसिंह काद्यान

9. प्रोफेसर शेरसिंह काद्यान - [पृ.518]: रोहतक जिले में बेरी कस्बे के पास एक मील भीतर बाघपुर नामक एक गांव है। वहां के चौधरी शीशराम जी ने हरिजनों के लिए कुआं बनवाकर हरिजनों को सबसे पहले कुएं पर चढ़ाया। हरिजनों की सेवा के लिए आप और भी प्रसिद्ध हो गए। बेरी की कांग्रेस में आप पूरा सहयोग देते रहे। और हरियाणा के आर्य समाज के कामों में पूरा पूरा भाग लेते रहे हैं। शेर सिंह जी इन्हीं चौधरी शीशराम के ज्येष्ठ पुत्र हैं।

शेरसिंह जब छोटा बालक ही था, की माता का साया उस पर से उठ गया। पिता व विमाता ने मातृत्व प्रेम से ही उसको पाला। सन 1917 ई में आप सदैव अपनी कक्षा में अच्छे रहे और 15 वर्ष की आयु में अच्छी श्रेणी से मैट्रिक परीक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से पास करके जुलाई 1932 में बिरला कॉलेज पिलानी में भर्ती हुए। आप शरीर से हल्के थे। खेलने कूदने में कम ही भाग लेते थे। अपनी पढ़ाई में अच्छे रहते थे। मिलनसार


[पृ.519]: भी थे। कॉलेज में परिषद में भी भाषण देने में भाग लेते थे। बड़ा सादगी जीवन था। बोर्डिंग हाउस की समाज में आप अच्छा भाग लेते थे। साप्ताहिक हवन के समय ठीक समय पर तैयार रहते थे। अच्छी श्रेणी में इंटर की परीक्षा पास की।

सन 1934 में रामजस कॉलेज दिल्ली में भर्ती हुये। आपने गणित में ऑनर्स का कोर्स लिया। गणित से आपकी विशेष रुचि थी। अपने कक्षा में सदैव अच्छे थे। B.A. Pass करने तक आपने कभी सिनेमा नहीं देखा। हां श्री निहालसिंह तक्षक और अमर सिंह सहरावत आदि अपने साथियों के साथ केंद्रीय असेंबली के अधिवेशनों को देखने में नेताओं के भाषण सुनने जरूर जाया करते थे। जाट क्षत्रिय कुमार सभा रामजस कॉलेज के आप मंत्री रहे। कॉलेज पार्लियामेंट में भी आप मंत्री रहे।

सन 1935 को दिल्ली में होने वाली अखिल भारतीय जाट विद्यार्थी सम्मेलन के समय जब सर छोटूराम जी के लेफ्टिनेंट की ओर से चौधरी मुख्तारसिंह जी का निरादर किया गया तो आपने हरियाणा तिलक में उन लोगों की नीति की आलोचना में एक लेख माला निकाली। जाट गजट में उसका प्रतिउत्तर निकलता था। छोटी आयु में ही B.A. परीक्षा पास करने से पहले ही ......से टक्कर लेने पर आपके सारे हरियाणा प्रांत में चर्चा हो गई। उसी समय से आपके विचार भविष्य में झज्जर तहसील से पंजाब असेंबली के लिए खड़ा होने के थे और यदि सर छोटूराम जी जीवित होते तो झज्जर तहसील से आप उनका विरोध नहीं करते। फिर आप किसी अन्य क्षेत्र से खड़े होते।

सन 1936 में आपने बीए ऑनर्स अच्छे शान के साथ पास किया।

1938 में गणित में रामजस कॉलेज दिल्ली से M.A. पास किया। उसी समय


[पृ.520]: आपके अंतरजातीय विवाह करने के विचार थे और सुयोग्य हरिजन लड़की मिलने पर हरिजनों में विवाह करने के विचार थे। M.A. के बाद लाहौर से आपने बीटी पास की।

उसके पश्चात केशव मेमोरियल हाई स्कूल हैदराबाद (दक्षिण) के प्रधान अध्यापक नियुक्त हो गए। आप वहां कार्य कर रहे थे कि भरतपुर में श्री महारानी जया इंटर कॉलेज खुलने से आप की नियुक्ति गणित के प्रोफेसर के स्थान पर हो गई। भरतपुर में आपका शीघ्र अच्छा परिचय हो गया और किसान सभा के कार्यकर्ताओं से आपका अच्छा मेलजोल हो गया।

अप्रैल 1945 में आपका विवाह पंडित बुद्धदेव' जी वेद अलंकार की छोटी सुपुत्री श्रीमती प्रभातशोभा से गुरुकुल कांगड़ी में हुआ। इस अंतरजातीय विवाह के अवसर पर श्री रीछपाल जी मंत्री जाट सभा, श्री ठाकुर देशराज जी व कुंवर निहालसिंह तक्षक भी शामिल हुए थे। अपितु समाज के एक बड़े नेता और ब्राह्मणों में पूजनीय पंडित बुद्ध के द्वारा एक जाट कुमार को कन्या देने पर जाट जगत में इस विवाह का अच्छा स्वागत मिला। भरतपुर में रहकर ठाकुर देशराज की संगति से वह जाट राज्य की राजधानी में रहने के कारण श्रीमती प्रभातशोभा भी जाटों को विशेष प्रेम करने लगी और एक जाट परिवार मैं जाट समाज में दूध और पानी की तरह घुल मिल गई और एक पंडितानी की अपेक्षा जाटनी अधिक बन गई। कट्टर आर्य समाजी परिवार होने पर भी जाट समाज का एक सशक्त अंग है।

प्रोफेसर शेर सिंह भरतपुर में ठीक जम गए थे। मंडी में उनकी आढत की दुकान अच्छी चल निकली थी। आपने बेरी में जमीदारी भी खरीद ली थी। पर गणित में खिंचाव Research


[पृ.521]: करने के उद्देश्य से आपने 2 वर्ष की छुट्टी ले ली। कुछ महीने लाहौर में तैयारी की। फिर जाट कॉलेज रोहतक खुलने पर आप की नियुक्ति वहां हो गई।

जाट कॉलेज रोहतक में आप के राजनीतिक विचार नहीं मिलने के कारण कुछ खटपट रहने लगी थी। राष्ट्रीय विचार वाले अल्पमत में थे। श्री स्वरूप सिंह हुड्डा वाइस प्रिंसिपल को कॉलेज छोड़कर जाना पड़ा। मई 1945 में कॉलेज के वार्षिकोत्सव पर पदाधिकारियों के चुनाव पर बड़ी तू तू मैं मैं हुई और काद्यान-जाखड़ गोत्र में से किसी को कालेज की कार्यकारिणी में नहीं लिया गया तो वहां का वातावरण आपके लिए और भी प्रतिकूल हो गया।

सर छोटूराम की मृत्यु के पश्चात रिक्त स्थान पर उप चुनाव होने पर आपका नाम निर्वाचकों की सूची में न होने के कारण नहीं खड़े हो सके। श्री शिवनारायण सिंह जाखड़ को कॉलेज के मंत्री के विरुद्ध आपने सहायता दी। पंजाब असेंबली के चुनाव में आप कप्तान दलपतसिंह के विरुद्ध में लगभग 6000 मतों से जीतकर तहसील झज्जर से MLA चुने गए।

जाटों की सेवा करने के लिए आप में बड़ी भारी लग्न है। अब आप कार्यक्षेत्र में आए हैं। देखें सर छोटूराम की नीति से किसानों की कितनी सेवा करते हैं। भरतपुर में प्रोफेसरी के दिनों में वहां के जाटों को अच्छी सेवा दी।

11. कुंवर निहालसिंह तक्षक

कुंवर निहालसिंह तक्षक

11. कुंवर निहालसिंह तक्षक - [पृ.521]: दिल्ली से दादरी की सड़क पर झज्जर से 12 कोस पश्चिम दादरी से 5 कोस पूर्व में भागवी एक ऐतिहासिक तक्षक (टोकस) वंशीय जाटों का प्रसिद्ध गांव है। चौधरी दोदरामजी महल (हवेली) छतरी कुआं मंदिर 19वीं शताब्दी के


[पृ.522]: बने हुए अभी तक मौजूद हैं। उस समय की कच्ची गढ़ी (गढ़) 32 बीघा का बाग व हाथी, काठ आदि इस समय के अंग्रेजी राज्य में नहीं टिक सके। नवाब झज्जर से मित्रता के संबंध थे। वह प्राय वहां आया करते थे। छतरी व कुएं पर उनके नमाज पढ़ने के लिए स्थान निश्चित किया हुआ था। सैकड़ों गांवों का कर चौधरी दोदाराम जी वसूल करके कुछ भाग नवाब झज्जर को देते थे। सन 1914 विक्रमी (1857 ई. ) के स्वतंत्रता युद्ध में आसपास सब गांवों की स्त्रियां आप के महल में रक्षा पाई। सब आभूषण आदि भोरे (तहखाने) में रख दिया गया।

जब कश्मीर महाराज की सेना उधर से निकली तो 32 मन चावलों से उन्हें भोजन कराया गया। नवाब झज्जर के पतन के पश्चात महाराजा जींद ने आपको स्वरूपगढ़, आसावरीभारीवास आदि के बीड़ देना चाहा तो आपने इनकार कर दिया और एक छोटा जमीदार रहना पसंद किया।

आप के पौत्र चौधरी घनश्यामसिंह जिला दादरी के सबसे बड़े ओजस्वी वह प्रतापी नंबरदार थे। अपने गांव के तो राजा के समान थे। एक बार एक थानेदार ने एक निर्धन को पीट दिया। जब उन्हें सूचना मिली तो वहां पहुंचे और छतरी पर चढ़ते ही ऐसे जोर से थप्पड़ लगाया कि थानेदार को चक्कर आ गया।

चौधरी घनश्यामसिंह के पौत्र सरदार अमरसिंह जी के छह पुत्रों में से कुंवर निहालसिंह तक्षक चौथे पुत्र हैं। 25 मई 1913 को आपका जन्म हुआ।

कुंवर निहालसिंह के बड़े भाई भगवानसिंह जी भागवी में अपनी जम्मीदारी का कार्य करते हैं। दूसरे भाई रामानंद जी सिनसिनी (भरतपुर राज्य) में अपने चक की देखभाल करते हैं। तीसरे भाई मास्टर गंगाराम जी अपने गांव के हिंदी मिडिल


[पृ.523]: स्कूल में अध्यापक हैं। 5 वें भाई कुंवर दलीपसिंह ने जाट कॉलेज लखावटी से एफ़एसएजी तक शिक्षा प्राप्त करके धनबाद, चकलाला व खिड़की में इंजीनियरिंग की शिक्षा ली और आजकल आगरा में सर्विस में है। छटे व सबसे छोटे भाई की मई 1940 में 18 वर्ष की आयु में ही मोती ज्वर से अकाल मृत्यु हो गई।

आपके मकान के पास ही मंदिर में एक पंडित पढ़ाते थे। आप 3 वर्ष की आयु में ही पहाड़े कहलवाने के समय वहां चले जाया करते थे। आपकी बुद्धि इतनी तीव्र थी कि 3 वर्ष की आयु में ही 100 तक गिनती सीख गए थे। एक साल के बाद डेढ वर्ष प्राइवेट पढने पर बामला (जिला हिसार) तीसरी कक्षा में भर्ती हुए। चौथी कक्षा की छात्रवृत्ति परीक्षा में आप तहसील भिवाणी में सर्वप्रथम रहे। पर जींद राज्य निवासी होने के कारण आपको छात्रवृत्ति नहीं दी गई। आयु 14 वर्ष भी नहीं हो पाई थी कि मिडिल परीक्षा में 600 में से 437 अंक प्राप्त करके जिला हिसार में द्वितीय स्थान पर रहकर छात्रवृत्ति प्राप्त की। अध्यापकों के सुझाव पर आप गवर्नमेंट हाई स्कूल हिसार में भर्ती हो गए।

सन 1927 में अखिल भारतीय जाट विद्यार्थी कांफ्रेंस रोहतक में सम्मिलित हुए।

1928 में हिसार जाट विद्यार्थी कॉन्फ्रेंस में सेवा की।

1929 खेड़ागढ़ी में वाद विवाद प्रतियोगिता में जजै स्कूल हिसार के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।

1930 में जाट हाई स्कूल से मैट्रिक पास करके बिरला कॉलेज पिलानी में पहले जाट विद्यार्थी कॉलेज में भर्ती हुए। राजपूताना में आकर जाटों की स्थिति में परिवर्तन देखा। दूसरे विद्यार्थी भी एक जाट विद्यार्थी को कॉलेज में देख


[पृ.524]: कर आश्चर्य करते थे। आप पढ़ाई व खेलों में अच्छे होने के कारण अपने सहपाठियों से आदर पाते थे। कुछ महीने बाद घरड़ाना के मोहरसिंह राव दूसरे जाट विद्यार्थी कॉलेज में भर्ती हुए। कुंवर निहालसिंह तक्षक ने पिलानी के 2 वर्ष के जीवन में बहुत शारीरिक उन्नति की। फुटबॉल के कप्तान थे, सभी दौड़ो व कुदाई और अन्य स्पोर्ट्स में सर्वप्रथम रहते थे। लगातार दो वर्ष तक चैंपियन रहे। छात्रावास व कॉलेज की अन्य प्रगतियों में भी बड़ा भाग लेते थे। कालेज परिषद तथा हॉस्टल परिषद में मंत्री थे।

सन 1932 में जाट महासभा के झुंझुनू में होने वाले वार्षिक उत्सव में आपके नेतृत्व में 40 स्वयंसेवकों का एक दल गया और प्रबंध में बड़ी सहायता दी। पिलानी आते ही कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ से आपकी मित्रता हो गई थी और चौधरी रतनसिंह के साथ मिलकर शेखावाटी के जाटों में जनजागृति के लिए कुछ न कुछ करते रहते थे। 1932 ई में पिलानी कॉलेज के विद्यार्थियों की एक टीम लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी सम्मेलन में रोहतक गए और आपने ही अन्य जातियों की समिति ना होते हुए भी अपनी जिम्मेदारी पर 1933 के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी सम्मेलन को निमंत्रण दिया। उसकी सफलता किसी जानने वाले से छिपी नहीं है। जाट महायज्ञ सीकर के समय भी आपके नेतृत्व में सेवादल गया और श्री देवासिंह बोचल्या के साथ आपने सहायक सेनापति का कार्य किया। हाथी चुराने के षड्यंत्र का भेद आप ने लगाया और वहां आप की ही ड्यूटी लगाई थी।

1934 ई. में आप रामजस कॉलेज दिल्ली में भर्ती हुए। 3 महीने की छुट्टियों में गोरीर (जयपुर राज्य) स्कूल की


[पृ.525]: स्थापना की और सैकड़ों छात्र कर दिए। सैकड़ों जाटों का यज्ञोपवित संस्कार कराया। कुंवर नेतराम सिंह के साथ किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। जाट बोर्डिंग हाउस झुंझुनू का चंदा करवाया।

1934 को अखिल भारतीय जाट विद्यार्थी कॉन्फ्रेंस सोनीपत में वाद विवाद प्रतियोगिता में आप का भाषण सबसे अच्छा रहा।

जुलाई से अक्टूबर 1935 ई में चौधरी टीकाराम, चौधरी शादीराम के आग्रह पर कंपिटीशन परीक्षा की तैयारी छोड़ कर 3 महीने तक जाट हाई स्कूल सोनीपत की सेवा की और नवमी और दशमी को अंग्रेजी, गणित, नागरिक शिक्षा विषय पढ़ाये।

दिसंबर 1935 में अखिल भारतीय विद्यार्थी सम्मेलन को रामजस कॉलेज में करवाया। प्रबंध की सारी जिम्मेदारी आप पर थी क्योंकि जाट विद्यार्थियों के दोनों दलों ने आप पर भरोसा डाल दिया था। बीए परीक्षा में आप अपनी कक्षा के 90 छात्रों में सर्वप्रथम और दिल्ली विश्वविद्यालय में द्वीतीय स्थान पर रहकर शानदार सफलता प्राप्त की।

बीए परीक्षा पास करने के बाद 28 जून 1936 को आपका विवाह चौधरी नानकचंद जी ठेकेदार म्यूनिसिपल कमिश्नर अलवर की छोटी बहन श्रीमती दुर्गावती के साथ हुआ।

बिरला एजुकेशन ट्रस्ट की ओर से इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल के पद पर नियुक्ति का बुलावा प्रस्ताव आने पर आपने राजपूताना को अपने कार्य का क्षेत्र बनाया और नवंबर 1936 से शेखावाटी में शिक्षा प्रचार का कार्य आरंभ कर दिया।


[पृ.526]: आप ने कार्य संभाला। उस समय ट्रस्ट की ओर से केवल 21 पाठशालाएं पिलानी के आसपास चल रही थी। ऐसी धारणा बनी हुई थी कि ग्रामों में पाठशालाएं उन्हीं ग्रामों में चल सकती हैं जहां ब्राह्मणों, राजपूतों व महाजनों की जनसंख्या पर्याप्त हो। आप ने कार्यभार संभालते ही दिनरात का ध्यान न करके तूफानी दौरे आरंभ किए और एक महीने भीतर ही पाठशालाओं की संख्या 50 से ऊपर होगई। 3 महीने में 75 और जून 1937 तक स्कूलों की संख्या 100 से ऊपर होगई। नई पाठशालाये जाटों के गांवों में खोली गई थी और उनमें छात्र संख्या खूब बढी। उससे पूर्व रूढ़िवादी ब्राह्मण, राजपूत व महाजन जाट अध्यापकों से अपने छात्र नहीं पढ़ाना चाहते थे। वे जन्म से जाट को गुरु की पदवी नहीं देना चाहते थे। पर जब जाट अध्यापकों द्वारा बड़ा अच्छा काम जाटों के गांव में होते देखा तो सभी लोग जाट अध्यापक की मांग करने लग गए। ट्रस्ट के मंत्रीजी ने भी जब कुछ स्कूलों को देखा तो अपनी रिपोर्ट में लिखा कि जाटों के गांवों में बड़ा अच्छा शिक्षा प्रेम है और राजपूतों के गांव में कम उत्साह है। जब कुंवर निहालसिंह ने निरीक्षण के समय देखा कि जाट विद्यार्थियों के नाम अधूरे व अशुद्ध हैं और नाम के साथ सिंह का प्रयोग नहीं किया जा रहा है तो सभी स्कूलों में पूरे नाम लिखे गए। ट्रस्ट के 400 स्कूलों में से 350 से अधिक ऐसे गांव हैं जिनमें जाटों की जनसंख्या अधिक है। लगभग 17000 छात्रों में से 13000 विद्यार्थी गांव के स्कूलों में शिक्षा पा रहे हैं। संवत 1995-1996 के दुर्भिक्ष के समय 100 से ऊपर जाट अध्यापकों को काम देकर सहायता की गई। इन स्कूलों द्वारा जींद राज्य के जिला दादरी में जन जागृति का बड़ा भारी


[पृ.527]: काम हुआ है। सैकड़ों छात्र मिडिल पास करके हाई स्कूल व कॉलेज में शिक्षा पा रहे हैं और कितने ही मैट्रिक व मिडिल परीक्षा पास करने के पश्चात 100 रुपये मासिक वेतन पा रहे हैं।

सन 1935 ई. अक्टूबर में में आप बहुत भारी बहुमत से (66%) जींद राज्य प्रतिनिधि समिति व लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य चुने गए। पहले अधिवेशन में ही आपने स्पष्टवादिता निर्भीकता का परिचय देकर तथा जनहित संबंधी बिल पर प्रभावशाली भाषण देकर अपनी छाप लगा दी। 60 में से 42 किसान सदस्यों ने तो उसी समय अपना नेता मान लिया। जींद राज्य की सरकार पूंजीपतियों के हाथ में होने के कारण प्रजाहित व किसानहित की मांगों का सरकार की ओर से विरोध होता था और आपको विरोधी दल का नेतृत्व करना पड़ता था।

फरवरी 1944 के चुनाव में आप जिला दादरी से जिंद राज्य धारासभा लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य चुने गए।

मई 1945 में होने वाले राज्य व्यवस्थापक सभा के अधिवेशन में भूमि कर पर एक पैसा प्रति रुपया बढ़ाने के सरकारी बिल का आपने बड़ा विरोध किया जो उस समय में पास नहीं हो सका। प्राथमिक शिक्षा व प्राइवेट स्कूलों को सहायता संबंधी बजट की शिक्षामद पर आप का बड़ा प्रभावशाली भाषण रहा।

जनवरी 1946 ई के होने वाले अधिवेशन में तो आपके नेतृत्व में सभी सदस्यों ने नागरिक अधिकारों को कुचलने वाले बिल को सर्वसम्मति से ठुकरा दिया और सभी सरकारी दांव-पेच विफल हुए।

अप्रैल 1939 में जींद राज्य प्रजामंडल की स्थापना हुई। प्रारंभ से ही आप प्रजामंडल में सहयोग देते रहे। आप


[पृ.528]: के राष्ट्रीय विचारों को जानते हुए तथा प्रोत्साहन मिलने पर सभी अध्यापकों तथा छात्रों ने पूरा पूरा सहयोग दिया और प्रजामंडल को सफल बनाया। जींद राज्य की सरकार किसान विरोधी थी।

श्री ठाकुर देशराज जी के चुनाव संबंध में आप जघीना पोलिंग पर भी गए पर ठाकुर देशराज की सेवाओं का ध्यान करके ग्राम पंचायतों ने उन्हें सर्वसम्मति से चुन लिया। दशहरा 1943 के श्री ब्रिज जया प्रतिनिधि समिति के उद्घाटन के समय आप भरतपुर में थे जब श्री ठाकुर देशराज जी वाइस प्रेसिडेंट चुने गए थे।

जींद राज्य के नए विधान द्वारा जब किसानों के उचित अधिकारों को चीना गया तब 20 अगस्त से अब तक आप प्रजामंडल के द्वारा किसानों का संगठन करने में लगे हुए थे। पत्रों व पेंप्लेटो द्वारा किसानों की आवाज को ऊंचा उठाने में आपने पूरा प्रयत्न किया। 24 सितंबर 1945 से 6 अक्टूबर तक पैदल दौरा करके और ग्रामों की पंचायतें करके इसके विरोध में प्रस्ताव भिजवाए। जन जागृति व व्यवस्थापक सभा के लिए मतदाताओं के नाम लिखवाने के लिए आपने विशेष परिश्रम किया। अगस्त से अब तक आप इसी कार्य में अधिक व्यस्त रहे हैं। बीच के दौरान में आप जींद की लोकप्रिय सरकार में मंत्री चुने गए और अब पंजाब रियासती संघ में शिक्षा मंत्री हैं।

धोलपुर राज्य के जाट जन सेवक

कुंवर चित्तरसिंह धोलपुर (बमरौलिया), धोलपुर

कुंवर चित्तरसिंह धोलपुर - [पृ.528]: राजपूताना में समृद्धि और शिक्षा की दृष्टि से 4-5 घर काफी ऊंचे हैं। जयपुर में बाबू मूलसिंह जी, बाबू रतनलाल


[पृ.529]: जी जोधपुर में बलदेवराम जी मिर्धा, बाबू गुलाराम जी, अलवर में ठाकुर पूर्णसिंह जी, चौधरी रामस्वरूप सिंह और भरतपुर में कर्नल घमंडी सिंह के घर जिस भांति पैसे और शिक्षा दोनों में चोटी के समझे जाते हैं उसी भांति धौलपुर में कुंवर चित्तर सिंह जी का घर आता है।

आप जाट महासभा के पुराने महारथियों में से हैं। कुंवर हुकुमसिंह, कुंवर कल्याणसिंह, राय साहब हरिराम सिंह जी के साथ आपने जाट महासभा की काफी सेवा की है। आप महाराजा धौलपुर के कुटुंबीजनों में से हैं। इंजीनियर के पद पर भी आपने काम किया है। आप की अवस्था इस समय लगभग 60 साल के होगी। आपके सभी पुत्र सुशिक्षित और मिलनसार हैं। सार्वजनिक कामों में भाग लेने वाले और उत्साही युवक हैं।

खंडेलावाटी के शेष जीवन परिचय

चौधरी नवलसिंह जी (खर्रा), भारणी, सीकर

चौधरी नवलसिंह जी - [पृ.529]: रींगस स्टेशन के पास भारणी जाटों का एक मशहूर गांव है। इसे आज से हजार ग्यारह सौ वर्ष पहले यहां के प्रसिद्ध शहीद चौधरी नाथूराम जी निठारवाल के पूर्वजों ने बसाया था। इसी गांव में खर्रा गोत्र के जाटों में चौधरी भूधाराम जी के लड़के नवलसिंह जी हैं। नवलसिंह जी का जन्म संवत 1940 (1883 ई.) के आसपास हुआ था। आप बिना छल-कपट और लोभ-लालच के संस्थाओं में काम करते हैं। खंडेलावाटी जाट पंचायत के आप जन्म दाताओं में से थे और आपने तथा नारायणसिंह जी


[पृ.530]: ने वर्षों तक जाट पंचायत के द्वारा इस इलाके की सेवा की। इसके बाद यह प्रजामंडल में शामिल हो गए। तब से वहां ईमानदारी के साथ और बिना किसी से ईर्ष्या द्वेष किए सेवा कार्य करते हैं। आपका बहादुर बेटा श्योबक्स खर्रा भोमियों का मुकाबला करता हुआ अब से 4-5 साल पहले चौधरी रामूराम जी के लड़के नाथूराम जी के साथ शहीद हो गया। उसने अपने पीछे श्यामसिंह, भगवानसिंह और प्रतापसिंह नामक बच्चे छोड़े हैं।

कुंवर गणेशराम जी (खर्रा), भारणी, सीकर

कुंवर गणेशरामजी - [पृ.530]: चौधरी नवलसिंह जी के छोटे भाई श्री मोतीराम जी थे जिनके सुयोग्य पुत्र का नाम ही कुंवर गणेशरामजी है। पतला और लंबा छरहरा कद और बेलदार बड़ी मुझे आप की विशेषताएं हैं। आपका जन्म संवत 1968 विक्रमी (1911 ई.) में हुआ है।

भारणी में खर्रा गोत्र के चौधरी कन्हैयारामजी एक बलिष्ठ शरीर के आदमी थे और सुंदर भी थे उन्हीं की गोद चौधरी मोतीराम जी चले गए थे। इस तरह कुंवर गणेश रामजी एक धनी और बलिष्ठ आदमी के पोते हैं। इसलिए वह जन्म से ही भाग्यशाली भी हैं। यह उनके बलवान भाग्य की ही करामात है कि वह जयपुर असेंबली के चुने हुए मेंबर और जिला बोर्ड के नामजद सदस्य हैं।

आपका व्यापार भी चलता है और जन सेवा का कार्य भी। हंसमुख मिजाज और सहज परिश्रम आप के गुण हैं। आपके तीन भाई हैं ओंकारसिंह, चंद्रसिंह और मूलसिंह उनके नाम है। तीन लड़के हरिसिंह, रघुवीर सिंह और मोहनसिंह।

भारणी के चौधरी नारायणसिंह जी से शेखावाटी, सीकर


[पृ.531]: वाटी और खंडेलावाटी के सभी लोग परिचित हैं। उन्हीं के छोटे भाई बालूराम जी चौधरी परसराम जी के सुपुत्र हैं। आज से करीब 53-54 वर्ष पहले आपका जन्म हुआ था। आपके एक पुत्र हरबख्श सिंह हैं जो पढ़ते हैं। आप भी कौमी सेवक हैं।


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